Showing posts with label ख़ुशगवार इज़दिवाजी ज़िंदगी मियाँ-बीवी के लिए रहनुमा-उसूल (नियम). Show all posts
Showing posts with label ख़ुशगवार इज़दिवाजी ज़िंदगी मियाँ-बीवी के लिए रहनुमा-उसूल (नियम). Show all posts

ख़ुशगवार इज़दिवाजी ज़िंदगी मियाँ-बीवी के लिए रहनुमा-उसूल (नियम)

🔹ख़ुशगवार इज़दिवाजी ज़िंदगी मियाँ-बीवी के लिए रहनुमा-उसूल (नियम)🔹

*ख़ुत्बा मस्जिद-उल-हराम अज़ शैख़ सालेह बिन अब्दुल्लाह बिन हमीद حفظہ اللہ 26, मई , 2023 'ईस्वी, 6, ज़िल-क़ा'दा 1444, हिजरी से चंद अहम (ख़ास) फ़वाइद (फ़ाइदे) यह ख़ुत्बा शादी-शुदा और 'अन-क़रीब शादी करने वालों के लिए निहायत (बहुत) मुफ़ीद (उपयोगी) है*

🔹ख़ानदानी-व-घरेलू मु'आमलात और ज़ौजैन (मियाँ-बीवी) के त'अल्लुक़ात में बिला इल्म व तज्रिबा (जानकारी) घुसना और बातें करना ख़ानदान ख़राब कर देता है फ़ित्ने बरपा कर देता है और आराम-ओ-सुकून तबाह कर देता है !

🔹शादी एक निहायत (बहुत) ख़ूबसूरत व आ'ला और शर'ई (मज़हबी) व इंसानी रिश्ता है जो हुक़ूक़ की हिफ़ाज़त, दुनियावी व उख़रवी स'आदत (भलाई) का ज़ामिन है और तमानियत व सकीनत (सुख-चैन) का बा'इस (सबब) है !

🔹शादी का कोई मुतबादिल (बदल) रास्ता नहीं है इसे निकाल दें तो पीछे तबाह-कुन शहवात फ़ितरत-ए-सलीम से बग़ावत और मिसाली (आदर्श) मु'आशरे (समाज) की बर्बादी ही बचती है !

🔹इज़दिवाजी ज़िंदगी की हक़ीक़त और घरेलू आराम-ओ-सुकून का का राज़ " हुस्न-ए-मु'आशरत " (ख़ूबसूरत माहौल) है !

🔹क़ुर'आन-ए-मजीद में तेरह '13' मक़ामात (स्थान) पर इज़दिवाजी त'अल्लुक़ (सम्बन्ध) को " मा'रूफ़ तरीक़े " के साथ निभाने का ज़िक्र आया है और यह इस लिए है कि मियाँ-बीवी और ख़ानदान व मु'आशरा (समाज) अच्छी तरह जान ले कि इज़दिवाजी त'अल्लुक़ात कोई ऐसा मैदान नहीं कि जहां बराबरी व मुक़ाबले की फ़ज़ा (माहौल) हो सख़्त क़वानीन (कानून) हो आपस में तनाफ़ुर व तबाग़ुज़ (नफ़रत) और इंक़िबाज़ व ख़ुश्की का दौर-दौरा हो बल्कि यह तो प्यार व मोहब्बत का त'अल्लुक़ (सम्बन्ध) है जिस में एक दूसरे के हुक़ूक़ भी होते हैं और मिल जुल कर ज़िम्मेदारियां भी कंधों पर उठाई जाती है !

🔹हुस्न-ए-मु'आशरत (ख़ूबसूरत माहौल) जामे' कलिमा है जिस का मा'नी (मतलब) यह है कि मियाँ-बीवी बाहम (आपस में) हुस्न-ए-अख़्लाक़ (मिलनसारी) से पेश आए एक दूसरे का बिला-वजह (बेसबब) मुहासबा (पूछ-ताछ) और छोटी छोटी बातों पर नुक्ता-चीनी व तदक़ीक़ (आलोचना) से गुरेज़ करें !

🔹दिल साफ़ हो एक दूसरे के 'उयूब (बुराईयाँ) से तग़ाफ़ुल व चश्म-पोशी से काम लिया जाए और अल्लाह की रज़ा (ख़ुशी) के काम किए जाए तो घर बड़ा ख़ूबसूरत बन जाता है !

🔹ऐसा घराना कितना ख़ूबसूरत होगा जहां मियाँ-बीवी एक दूसरे से मोहब्बत के एहसासात का इज़हार करे एक दूसरे को बताए कि मेरे दिल में आप का कितना मक़ाम ओ मर्तबा है !

🔹हक़ीक़ी जज़्बात व एहसासात का इज़हार तो ज़िंदगी का मज़ा है इस लिए मियाँ-बीवी आपस में प्यार व मोहब्बत के अच्छे कलिमात (अल्फ़ाज़) कहने और प्यार का इज़हार करने में कभी बुख़्ल व कंजूसी से काम न लें मोहब्बत भरे कलिमात बड़े पुर-तासीर (प्रभावी) और गहरे होते हैं दिल पर जादू का काम करते हैं !

🔹मुस्कुराते (हँसते) चेहरे का असर (प्रभाव) तो कलिमात और बातों से भी ज़ियादा होता है मीठे बोल और मुस्कुराते चेहरे के ज़रीये दिलों को अपना गिरवीदा (आज्ञाकारी) बना लेना हलाल जादू है !

🔹ज़बान की ब-जाए (बदले में) अपनी 'अक़्ल को हथियार बनाए ऊँचा-ऊँचा चीख़ना-चिल्लाना नहीं बल्कि ख़ामोशी आप की ताक़त होनी चाहिए !

🔹आवाज़ को बुलंद न करें बल्कि अपने कलिमात व अल्फ़ाज़ को बुलंद करे नर्म-लहजा की ताक़त गला फाड़-फाड़ कर चीख़ने-चिल्लाने से ज़्यादा है !

🔹घरेलू मसाइल का 'इलाज ख़ामोशी के ज़रीये करें !

🔹हर इंसान मद्ह-ओ-सना (ता'रीफ़) का भूका होता है इस लिए ता'रीफ़ करने में कभी बुख़्ल (कंजूसी) न करें लेकिन मुनाफ़क़त से बचें !

🔹जिस क़द्र (जितना) आप का उस्लूब (व्यवहार) बुलंद होगा उसी क़द्र आप का मक़ाम बुलंद होगा !

🔹मुस्कुराने के लिए ख़ुशगवार (अच्छे) वक़्त का इंतिज़ार न करें बल्कि मुस्कुरा कर अपना वक़्त ख़ुशगवार बनाए !

🔹ऐ दूल्हा व दूल्हन! बाहमी (आपस में) एहतिराम (इज़्ज़त) घरों में मोहब्बत पैदा करता है एक दूसरे का एहतिराम (अदब) पुर-सुकून (शांतिपूर्ण) घर का अहम (ख़ास) रुक्न (खम्बा) है एहतिराम अच्छी तर्बियत (परवरिश) का मज़हर (निशानी) होता है !

🔹हार मान कर अपने घर को बचा लें हार जाए और बदले में अपने घर वालों के दिल जीत ले !

🔹ज़ौजैन (मियाँ-बीवी) एक दूसरे की ग़लतियाँ और 'ऐब छुपाए महासिन (अच्छाईयां) व ख़ूबियाँ फैलाईं करे !

🔹आप के शरीक-ए-सफ़र (हम-सफ़र) को जो बात बुरी लगती है उससे ख़ामोश (चुप) रहे ख़ुश करने वाली बातें करें झगड़ा छोड़ दे अच्छे अल्फ़ाज़ में नसीहत करें ग़ैरमौजूदगी में दूसरों के सामने दिफ़ा' (बचाव) करें !

🔹मुंह पर खरी-खरी सुनाने की ब-जाए (बदले में) इशारे-किनाए में समझाए !

🔹सबसे जामे' उसूल (नियम) यह है कि घर के दीगर (अन्य) अफ़राद (लोगों) के साथ वही सुलूक (रवैया) इख़्तियार करे जो आप अपने साथ करवाने के ख़्वाहाँ (इच्छुक) हैं !

🔹नर्मी पर मज़बूती से कार-बंद (पाबंद) रहें जिस चीज़ में भी नर्मी हो उसे
ख़ूबसूरत बना देती है !

🔹मु'आफ़ करना सीख ले यह क़ुव्वत (ताक़त) का सबसे आ'ला (श्रेष्ठ) दर्जा है और इंतिक़ाम व बदला दर-हक़ीक़त (हक़ीक़त में) कमज़ोर तरीन शख़्स की निशानी है !

🔹मु'आफ़ करना कमज़ोरी नहीं दिल साफ़ रखना 'ऐब नहीं और जान बूझ कर चश्म-पोशी (आंखें बंद) कर जाना बेवुक़ूफ़ी नहीं बल्कि यह तमाम चीज़ें तर्बियत (परवरिश) 'अक़्ल और क़ुव्वत (ताक़त) है और अगर साथ हुस्न-ए-निय्यत भी शामिल हो तो यह चीज़ें 'इबादत बन जाती है !

🔹हुस्न-ए-मु'आशरत (ख़ूबसूरत माहौल) में तवाज़ो' (इज़्ज़त) भी सामिल है तवाज़ो' (सम्मान) इंसान को बुलंद करता है जबकि (हालाँकि) ग़ुरूर-व-तकब्बुर (घमंड) नीचा कर देता है !

🔹ख़ूबियां तलाश करें मंफ़ी (negative) चीज़ों से इग़माज़ (दरगुज़र) बरतें ज़ौजैन (मियाँ-बीवी) अगर एक दूसरे की ख़ूबियां और मुसबत (प्रमाणित) चीज़ें तलाश करें तो बहुत मिल जाएगी !

🔹घर की कामयाबी पुर ए'तिमाद फ़ज़ा क़ाएम है एक दूसरे के 'ऐब और ख़ामिया तलाश करने और उन्हें गिन गिन कर रखने से मुकम्मल तौर पर बचें !

🔹मसला यह नहीं है कि मियाँ-बीवी में इख़्तिलाफ़ (मतभेद) न हो यह तो लाज़िमी तौर पर होने ही होते हैं मसला यह है कि उन्हें किस तरह 'अक़्ल-ओ-दानिश (सूझबूझ) और हिक्मत-व-बसीरत (होशियारी) से हल किया जाता है !

🔹ख़ुश-नसीब हैं वो लोग जो एक दूसरे की ग़लतियाँ भुला देते हैं और संग-दिल (ज़ालिम) नहीं होते यही वो लोग हैं जिन से बात करने में लज़्ज़त-व-सुरूर (मज़ा) आता है उनसे मुलाक़ात से तबी'अत सरशार (मस्त) हो जाती है !

🔹अच्छी तरह जान ले कि जो पहले मा'ज़रत (दरगुज़र) करता है वो बहादुर व शुजा' (दिलेर) है जो पहले मु'आफ़ करता है वो क़वी (मज़बूत) है और जो ग़लतियां भुला देता है वो स'आदत-मंद (वफ़ादार) है !

🔹ग़लती का ए'तिराफ़ (स्वीकार) कर लेना हक़ क़ुबूल कर लेना और अपनी अना (अभियान) क़ुर्बान कर देना घरेलू स'आदत-मंदियो (सौभाग्य) की ज़ामिन है !

🔹ऐ ज़ौजैन (मियाँ-बीवी) सच्चाई ए'तिमाद (विश्वास) की बुनियाद (आधार) है जबकि झूठ से इल्ज़ामात लगाने का ख़द्शा (डर) होता है हमेशा सच बोलें झूठ से गुरेज़ (नफ़रत) करें !

लेखक: शैख़ हाफ़िज़ मोहम्मद ताहिर

हिंदी अनुवाद: अब्दुल मतीन सैयद

🔹.........................🔹