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हम अपने आप को अहल-ए-हदीस क्यूं कहते हैं जब अल्लाह ने हमारा नाम मुसलमान रखा है ? | Ham Apne AAp Ko Ahle Hadees Kyu Kahte he?

 हम अपने आप को अहल-ए-हदीस क्यूं कहते हैं जब अल्लाह ने हमारा नाम मुसलमान रखा है ?

  क़ारिईन-ए-किराम !
अहल-ए-हदीस से नफ़रत करने वाले हज़रात (लोग) आए-दिन (हमेशा) कोई-न-कोई (एक ना एक) प्रोपेगंडा करते ही रहते हैं जिनमें से एक क़दीम (पुराना) और जदीद (नया) प्रोपेगंडा यह है कि जब अल्लाह रब-उल-'इज़्ज़त ने तुम्हारा नाम " मुस्लिमीन " या'नी मुसलमान रखा है तो तुम अपने आप को अहल-ए-हदीस क्यूं कहते हो ?
  जैसा कि क़ुरआन-ए-मजीद में है:
" هُوَ سَمَّىٰكُمُ ٱلۡمُسۡلِمِینَ مِن قَبۡلُ ". (الحج : 78)
तर्जमा: उस ने इस से पहले तुम्हारा नाम मुसलमान रखा।
(सूरा अल्-ह़ज्ज:78)

  इस प्रोपेगंडा का जवाब जानने से पहले हम यह वाज़ेह (स्पष्ट) कर देना चाहते हैं कि इस तरह के सतही (दिखावटी) इश्कालात (ए'तिराज़) हम भी कर सकते हैं कि अगर आप अपने आप को मुसलमान समझते हैं तो फिर मज़कूरा आयत पर 'अमल करते हुए अपने आप को सिर्फ़ " मुसलमान " क्यूं नहीं कहते ?

  चूँकि इस तरह की सतही (दिखावटी) शुब्हात (शंकाएं) और इश्कालात हमारे मनहज और ता'लीम के यकसर (बिल्कुल) ख़िलाफ़ हैं लिहाज़ा (इसलिए) हम क़ुरआनी ता'लीम की रौशनी-में (सामने रख के) " लक़ब (उपनाम) अहल-ए-हदीस का वजह-ए-तस्मिया (नाम रखने का कारण) " जानने की कोशिश करते हैं।

  क़ारिईन-ए-किराम ! अहल-ए-हदीस दो कलमों से मुरक्कब (मिला हुआ) है।


(1) अह्ल: जिस का मा'नी (मतलब) है साहिब और वाला।
(2) हदीष: जिस का मा'नी (मतलब) गुफ़्तुगू और बात-चीत के हैं जबकि इस्तिलाह (बोल-चाल) में रसूल-ए-अकरम ﷺ के क़ौल-ओ-फ़े'ल (तौर-तरीक़ा) और तक़रीर (बात-चीत) को हदीष कहा जाता है।
नीज़ (और) क़ुरआन को भी हदीष कहा गया है जैसा कि अल्लाह रब्ब-उल-'इज़्ज़त का फ़रमान है:
" فَبِاَىِّ حَدِيۡثٍۢ بَعۡدَهٗ يُؤۡمِنُوۡنَ ". ( المرسلات : 50)
तर्जमा: फिर इस हदीष (क़ुरआन) के बाद और कौन सी हदीष पर यह ईमान लाएंगे ?
(सूरा अल्-मुर्सलात:50)

  क़ारिईन-ए-किराम !
अहल-ए-हदीस दो वुजूहात (कारण) की बिना (बुनियाद) पर अपने आप को अहल-ए-हदीस कहते हैं।

(1) सिर्फ़ (केवल) क़ुर'आन-ओ-हदीष पर 'अमल करने की वजह (कारण) से अपने आप को अहल-ए-हदीस कहते हैं क्यूंकि हदीष का लफ़्ज़ (शब्द) क़ुर'आन-ओ-हदीष दोनों को शामिल है जैसा कि यहूदिय्यत-व-नसरानिय्यत के पैरोकारों (अनुयायियों) को क़ुर'आन-ए-मजीद में कई मक़ामात (बहुत से स्थान) पर " यहूद और नसारा " कहा गया है
लेकिन चूँकि (इसलिए कि) यह दोनों अहल-ए-किताब थे यहूद को तौरात मिली थी जबकि (हालाँकि) नसारा को इंजील (bible)
लिहाज़ा (इसलिए) इंजील पर 'अमल (पालन) करने की वजह (कारण) से क़ुरआन-ए-करीम ने एक मक़ाम (स्थान) पर उन्हें
 " أهل الإنجيل "
कह कर मुख़ातिब किया है इरशाद-ए-बारी-त'आला है:
وَلۡيَحۡكُمۡ اَهۡلُ الۡاِنۡجِيۡلِ بِمَاۤ اَنۡزَلَ اللّٰهُ فِيۡهِ‌ؕ وَمَنۡ لَّمۡ يَحۡكُمۡ بِمَاۤ اَنۡزَلَ اللّٰهُ فَاُولٰٓئِكَ هُمُ الۡفٰسِقُوۡنَ‏ ". ( المائدة : 47)
तर्जमा: और अहल-ए-इंजील को चाहिए कि जो कुछ अल्लाह ने उसमें अहकाम (आदेश) नाज़िल फ़रमाएं हैं उन्हीं के मुताबिक़ (अनुसार) फ़ैसला करे और जो अल्लाह के नाज़िल कर्दा अहकाम के मुताबिक़ फ़ैसला न करे तो ऐसे ही लोग नाफ़रमान हैं।
(सूरा अल्-माइदा:47)

  अब सवाल यह पैदा होता है कि नसारा ('ईसाईयों) को  " اھل انجیل " क्यूं कहा गया ?
तो जवाब सिर्फ़ (केवल) यही होगा कि इंजील (बाइबल) उन की किताब थी जिस तरह क़ुरआन हमारी किताब है
लिहाज़ा (इसलिए) जिस तरह इंजील पर 'अमल (पालन) करने की वजह से (कारण से) नसारा ('ईसाईयों) को " अहल-ए-इंजील " कहा गया उसी तरह क़ुरआन-ओ-हदीष पर 'अमल करने की वजह से हम भी अपने आप को अहल-ए-हदीस कहते हैं।

(2) अपनी पहचान और शनाख़्त (निशानी) क़ाएम करने के लिए अपने आप को अहल-ए-हदीस कहते हैं।
आप यहां भी ए'तिराज़ (आलोचना) कर सकते हैं कि क्या सिर्फ़ मुसलमान कहना शनाख़्त (परिचय) और पहचान के लिए काफ़ी (बस) नहीं है ?
जवाब 'अर्ज़ (गुज़ारिश) करूंगा कि:
क्या इब्राहीम अलैहिस्सलाम मुसलमान नहीं थे ?
अगर थे तो फिर उन्हें " नबी और रसूल " क्यूं कहा गया ?
सहाबा किराम मुसलमान थे या नहीं ?
अगर थे और ज़रूर थे तो फिर उन्हें सिर्फ़ (केवल) मुसलमान न कह कर " सहाबा " क्यूं कहा गया ?
'अश्रा-ए-मुबश्शरा मुसलमान थे या नहीं ?
अगर थे तो उन को " 'अश्रा-ए-मुबश्शरा " क्यूं कहा गया ?
उम्महात-उल-मोमिनीन मुसलमान थी या नहीं ?
अगर थी तो फिर उन्हें " उम्महात-उल-मोमिनीन " क्यूं कहा गया ?
मक्का हिजरत करने वाले सहाबा मुसलमान थे या नहीं ?
अगर थे तो उन्हें " मुहाजिरीन " क्यूं कहा गया ?
अंसारी सहाबा मुसलमान थे या नहीं ?
अगर थे तो फिर उन्हें " अंसारी " क्यूं कहा गया ?
ताबि'ईन-व-तबा'-ताबि'इन मुसलमान थे या नहीं ?
अगर थे तो उन्हें " ताबि'ईन-व-तबा'-ताबि'इन " क्यूं कहा गया ?
चारों इमाम और दीगर (अन्य) मुहद्दिसीन-व-फ़ुक़हा मुसलमान थे या नहीं ?
अगर थे तो फिर उन्हें " इमाम, मुहद्दिसीन और फ़ुक़हा " क्यूं कहा गया ?
इन सब का जवाब सिर्फ़ यही होगा कि उन की पहचान और शनाख़्त (परख) क़ाएम करने के लिए
सू (और) जब आज के इस दौर (समय) में जबकि हर शख़्स हत्ता कि क़ब्र पूजने वाला और ग़ैरुल्लाह को मुश्किल-कुशा (मदद करने वाला) और हाजत-रवा समझने वाले भी अपने आप को मुसलमान कहते है तो उनसे तफ़रीक़ (जुदाई) के लिए अपने आप को अहल-ए-हदीस कहना न सिर्फ़ (केवल) जाइज़ है बल्कि (किंतु) क़ुरआनी ता'लीम (शिक्षा) के 'ऐन मुताबिक़ (अनुसार) है।

  नीज़ (और) आख़िरी बात यह कि हमारा नाम अल्लाह ने सिर्फ़ (केवल) " मुस्लिमीन " ही नहीं रखा है बल्कि (किंतु) " मुस्लिमीन " के साथ-साथ मोमिनीन और 'इबादुल्लाह भी रखा है
जैसा कि रसूल-ए-अकरम ﷺ ने इरशाद फ़रमाया:
" فَادْعُوا بِدَعْوَى اللَّهِ الَّذِي سَمَّاكُمُ الْمُسْلِمِينَ الْمُؤْمِنِينَ، عِبَادَ اللَّهِ ". ( سنن الترمذي | أَبْوَابُ الْأَمْثَالِ عَنْ رَسُولِ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ  | بَابٌ : مَثَلُ الصَّلَاةِ وَالصِّيَامِ وَالصَّدَقَةِ : 2863 ،صحيح الترمذي للألباني : 2863)
तर्जमा: पस पुकारों अल्लाह की पुकार के साथ जिस ने तुम्हारे नाम मुस्लिमीन, मोमिनीन और 'इबादुल्लाह रखे हैं।
(सहीह तिर्मिज़ी:2863)
जबकि मुसनद अहमद के अलफ़ाज़ में है:
 " فَادْعُوا الْمُسْلِمِينَ بِأَسْمَائِهِمْ بِمَا سَمَّاهُمُ اللَّهُ عَزَّ وَجَلَّ الْمُسْلِمِينَ الْمُؤْمِنِينَ عِبَادَ اللَّهِ عَزَّ وَجَلَّ ". ( مسند احمد : 17170)
तर्जमा: मुसलमानों को उनके नामों मुस्लिमीन, मोमिनीन और 'इबादुल्लाह से पुकारों जो कि अल्लाह ने रखे हैं।

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लेखक: हस्सान अब्दुल ग़फ़्फ़ार

हिंदी अनुवाद: अब्दुल मतीन सैयद




AHLE HADDES KAUN HAIN

_*🔮 अहले हदीस कौन हैं*_
🏐🏐🏐🏐🏐🏐🏐🏐🏐🏐🏐

_*✅ जवाब :* दुनिया के तमाम मुसलमान जो क़ुरआन व हदीस को मानते हैं  , और क़ुरआन व हदीस की तसदीक़ करते हैं  ,और क़ुरआन व हदीस पर अमल भी करते हैं वह सभी *अहले हदीस हैं , इमान वालें हैं .*_

_*🌐 इमान क्या है ? :* इमान ज़बान से इक़रार , दील से तसदीक़ और आज़ा' से अमल करने का नाम है ,(और इमान में कमी-बेशी होती है )_
_الإيمان قول باللسان وتصديق بالقلب وعمل بالجوارح ( وأنه يزيد وينقص.)_

_✔ और यही मज़हब इमाम मालिक व इमाम शाफई व इमाम अहमद व औज़ाई व इस्हाक़ बिन राहुया रहमहुमुल्लाहु तआला अजमईन का और तमाम अहले हदीस का , और अहले मदीना का , और अहले ज़ाहिर का , और मुतकल्लिमीन में से एक जमाअत का है कि (इमान ) दील से तसदीक़ , ज़बान से इक़रार और आज़ा' से अमल का नाम है ._
_وذهب مالك والشافعي وأحمد والأوزاعي وإسحاق بن راهويه وسائر أهل الحديث، وأهل المدينة وأهل الظاهر وجماعة من المتكلمين: إلى أنه تصديق بالْجَنان، وإقرار باللسان، وعمل بالأركان؛ انتهى._

_✔और क़ुरआन पर इमान लाना भी इमान में से है._

_*👇🏻देखिए ,*_

_وَ الَّذِیۡنَ یُؤۡمِنُوۡنَ بِمَاۤ  اُنۡزِلَ اِلَیۡکَ_
_*📚 सूरह बक़रा : 4*_

_✔ और आप ﷺ  की तरफ क़ुरआन से साथ-साथ हदीस भी नाज़ील हुई है ._

_*👇🏻देखिए ,*_

_الا إني أُوتيتُ الكتاب و مثله معه_
_*📚 सुनन अबु दाऊद : 4604*_

_और_

_یا ایھا الناس انی ترکت فیکم ما ان اعتصمتم بہ فلن تضلوا ابداً کتاب اللہ وسنة لنبیہ‘‘_
_*📚 मुस्तद्रक हाकिम : 1/217*_

_🏷 मो'तमिर बिन सुलेमान रह. (106-187 हिजरी ) फरमाते हैं कि मैं ने अपने वालिद सुलेमान बिन तुर्ख़ान रह. (म 143 हिजरी ) को फरमाते हुए सुना : नबी ﷺ की आहदीस हमारे नज़दीक क़ुरआन मजीद की तरह हैं ,.. अबु मुसा (र ) फरमाते हैं : “यानी अमल के ऐतेबार से जिस तरह अल्लाह के कलाम ( क़रआन मजीद ) पर अमल किया जाता है वैसे ही रसूल ﷺ की सुन्नत पर भी अमल किया जाये ”._
_قال المعتمر بن سلیمان سمعت ابی یقول: احادیث النبی عندنا کال تنذیل: قالو ابو موسیٰ: یعنی فی الاستعمال یستعمل سنة رسول اللہ ﷺ کما یستعمل کلام اللہ عزوجل۔_
_*📚 ज़म्मुल-कलाम : 2/157*_

_🏷 जो शख़्स को नबी ﷺ की सहीह हदीस मालूम हो जाने के बाद या नबी ﷺ जो लाये हैं उस पर मोमिनीन का इजमा' होने के बाद उस का इनकार करे वह काफीर है ._
_وکل من کفر بما بلغہ وصح عندہ عن النبی ﷺ او اجمع علیہ المومنون مما جاء بہ النبی ﷺ فھو کافر_
_*📚 अल-मुहल्ला ले बिन हज़्म जिल्द :1 , मसला नं.  20*_

_🏷 मुल्ला अली क़ारी हनफी रह.फरमाते हैं : “मुंछो का काटना और साफ करना अम्बियां अलैहि व सलाम की सुन्नतों में से है , सो इस को बुरा समझना बिल-इत्तिफाक़े उलमा' कुफर है ”._
_*📚 शरह फिक़्हुल अकबर : 213*_

_🏷 नबी ﷺ ने फरमाया : छे (6) ऐसे लोग है जिन पर मैंने और अल्लाह तआला ने लानत फरमाई (उन में से एक ) मेरी सुन्नत को छोड़ने वाला है ._
_ستة لعنتھم ولعنھم اللہ وکل نبی مجاب : ( والتارک لسنتی)_
_*📚 सहीह इब्न हिब्बान मा' इब्न बिलबान : 13/60 ; हाकिम : 1/31* (अलबानी : हसन )_

_*🏷 अल्लाह के रसूल  ﷺ  ने फरमाया :* खबरदार!  जिस ने मेरी सुन्नत से ऐराज़ किया वह हम में नहीं है।_
_. فمن رغب عن سُنَّتي فليس مِنِّي " ._
_*📚सहीह मुस्लिम : 1401*_

_🏷 *अल्लाह तआला फरमाता है :* “सो क़सम है तेरे रब की यह मोमिन ( इमान वाले ) नहीं हो सकते जब तक कि तमाम आपस के इख़तिलाफ में आप को हाकिम ना मान ले और जो फैसला आप इन में कर दें उन से अपने दिल में किसी तरह तनगी और ना ख़ुशी ना पायें और फरमाबरदारी के साथ ( हुकमे रसूल ﷺ को ) क़ुबूल कर लें ”._
_﴿فَلَا وَرَبِّكَ لَا يُؤْمِنُوْنَ حَتّٰي يُحَكِّمُوْكَ فِيْمَا شَجَــرَ بَيْنَھُمْ ثُمَّ لَا يَجِدُوْا فِيْٓ اَنْفُسِهِمْ حَرَجًا مِّمَّا قَضَيْتَ وَيُسَلِّمُوْا تَسْلِــيْمًا 65؀﴾ (النساء: ۴/۶۵)_
_*📚 सूरह निसा : 65*_

_*✅ नोट :* मालूम हुआ क़ुरआन और हदीस पर इमान लाना फर्ज़ है , और इस की दील से तसदीक़ और इस के मुताबिक अमल करना भी ._

_*🉑 क़ुरआन व हदीस को मानने वाला , उसकी तसदीक़ करने वाला और उस पर अमल करने वाला :*_
_✅ दुनिया के तमाम मुसलमान जो क़ुरआन व हदीस को मानते हैं  , और क़ुरआन व हदीस की तसदीक़ करते हैं  ,और क़ुरआन व हदीस पर अमल भी करते हैं वह सभी *अहले हदीस हैं , इमान वालें हैं .*_

_*🉑 क़ुरआन व हदीस को ना मानने वाला बिल-इत्तिफ़ाक़ काफ़िर हैं , और इन में से किसी एक को ना मानने वाला भी काफ़िर है .*_

_🏷 रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “सब लोग जन्नत में जाएगे सिवाय उनके जीस ने  इनकार किया ” सहाबा किराम रज़ी. ने अर्ज़ किया या रसूलुल्लाह! इनकार कौन करेगा ? फरमाया : “जो मेरी इताअत करेगा वह जन्नत में दाख़िल होगा और जो मेरी नाफरमानी करेगा उसने (उसने जन्नत में जाने से ) इन्कार  किया ”._
_📚 *सहीह-बुखारी -7280*_

_*🉑 क़ुरआन व हदीस को तो माने , लेकिन उसकी तसदीक़ ना करे (यानी : दील में ना ख़ुशी और तनगी रखे ) और अलम करने के तालूक़ से (मजबूरन ) उस पर अमल करे :*_
_✅ इस पर अल्लाह तआला का वाज़ेह फरमान है कि ऐसा शख़्स मोमिन है ही नहीं..... और हदीसों के ज़रिए हमें मुनाफिक़ों के बारे में भी ख़बर मिल चुकी है कि वह सहाबा किराम रज़ी. के साथ-साथ अल्लाह की वाहदनियत और रसूल  ﷺ की नबुवत की गवाही भी देते थे , और सहाबा किराम रज़ी. के साथ-साथ अमल भी करते थे , मगर दिल में नाख़ुशी और तनगी रखते हुए और दील से तसदिक़ नहीं करते थे, जबकि सहाबा किराम रज़ी.  ख़ुश-दिली से तसदिक़ भी करते थे और अमल भी करते थे._

_*🉑 क़ुरआन व हदीस को मानने वाला , उसकी तसदीक़ करने वाला लेकिन उस पर अमल नहीं करने वाला :*_
_✅ और जो कोई क़ुरआन व हदीस को तो माने और तसदीक़ भी करे लेकिन अमल नहीं करे , वह अहले हदीस है ही नहीं , क्योंकि वह “सुन्नत के छोड़ने की वजह से लानती है ” , और “वह मिल्लत में से भी बेदखल है ”._

_*🌐 हासिल :* उन लोगों को ग़ौर व फिक्र करना चाहिए जो अपने आप को किसी मसलक व इमाम की तरफ मनसूब करते हैं  और उनकी ख़ता ( गलती ) पर भी जानते बूझते अमल करते हैं जबकि वह फरमान-ए-इलाही और फरमान-ए-मुसतफा ﷺ के सरीह ख़िलाफ़ है ._

_*👉🏻 वाज़ेह रहे कि हर इमाम ने इस बात से पहले ही आगाह कर दिया है कि अगर हमारी राय / बात क़ुरआन व हदीस से टकराये तो हमारी राये / बात को छोड़ दो और क़ुरआन व हदीस को ले लो.*_

_👇🏻लेकिन उसके बाद भी तक़लिदी फिरक़ो ने अपने मसलक को बचाने में अपने इमामों की बात को क़ुरआन और हदीस पर तरजीह दी है._
_*👇🏻देखिए तक़लिद का अंजाम :*_

_🌍 1 - हर वह आयत जो हमारे अस्हाब (फ़ुकहा-ए-हनफीया ) के क़ौल के खिलाफ होगी उसे या तो मनसूख (अल्लाह का वह फरमान जो कुरआन में हो मगर उसका हुकुम अब बाकी ना रहा हो , ऐसा ) समझा जायेगा, या तरजीह पर महमूल किया जाएगा । और ऊला (सब से अच्छा ) ये कि उस आयत की तावील (अर्थ /तात्पर्य /मतलब को बदल देना ) करके उसे अपने फ़ुक़्हा के क़ौल के मुआफीक़ (उस के तहत ) कर लिया जाये ।_
📚 *_[उसुले करख़ी ,पेज-12 (इमाम अबुल-हसन करख़ी , 340 हीजरी.)]_*

_🌍 2 - महमूद अल-हसन देवबन्दी फरमाते है कि, हक़ और इन्साफ ये है कि खयारे मजलीस के मसले में (फ़ीक्ह के क़ानून /उसूल  में ) इमाम शाफ़ई (र.ह ) को तरजीह ( फज़ीलत ) हासिल है, लेकिन हम मुक़ल्लीद है, हम पर इमाम अबु हनीफा (र.ह ) की तक़लीद वाजीब है।_
📚 *_( तकरीर-ए-त्रीमेज़ी, हिस्सा-2, पेज-49 )_*

_🌍 3 - मुफती तक़ी उस़मानी देवबन्दी लीखते है कि, "बल्कि ऐसे व्यक्ति को अगर इत्तेफाकन कोई हदीस ऐसी नजर आ जाय जो उसके इमाम-ए-मुजतहीद के मसलक के खिलाफ हो, तब भी उस का फर्ज़ यही है कि वह अपने इमाम व मुजतहीद के मसलक पर अमल करें ।_
📚 *_( तक़लीद की शरई हैसीयत,  पेज-87 )_*

_*👇🏻जबकि.......*_

_🏷 रसूल ﷺ ने फरमाया : “ ख़ालिक़ की नाफरमानी में किसी मख़लूक की कोई फरमाबरदारी नहीं , और फरमाबरदारी सिर्फ नेक कामो (यानी : अल्लाह और उसके रसूल ﷺ के फरमान ) में है , ”._
_لا طاعة لمخلوق في معصية الخالق،  انماالطاعة في المعروف_
_*📚 सहीह मुस्लिम : 1840*_

_🏐 और अहले हदीस का मसलक क़ुरआन व हदीस ते तहत अमल करना है और अहले हदीस के इमाम *इमामुल अम्बियां हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम* हैं._
👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻
_✨हर इबतिदा से पहले, हर इनतिहा के बाद ,_
               _ज़ात-ए-नबी बुलंद है ज़ात-ए-ख़ुदा के बाद......_

_✨दुनिया में क़ाबिल-ए-अहतेराम हैं जितने लोग,_
               _मैं सब को मानता हूं मगर मुसतफा (ﷺ ) के बाद_

APNE AAP KO AHLE HADEES KEHNA

अपने आप को अहले हदीस कहना:
Daleel no 1 –

abu hurerah rz. Ne apne apko Ahle hadees kaha he

[tazkiratul huffaz 1/29, tareekh e Baghdad 1/174]

Daleel no 2 –

Abdullah bin abbas rz ko Ahle hadees kaha gaya

[tareekh e bagdad al khateeb 3/227]

Daleel no 3 –

abu sayeed khudree rz ne farmaya k ‘hamare baad tum Ahle hadees ho’

[kitab sharful khateeb 12]

Daleel no 4 –

imam shaa’abi ne tamam sahaba ikram ko Ahle hadees kaha he, or 5oo sahaba ikram ko dekha tha. {matlab ap tabayee he}

[tazkiratul huffaz 1/42]

Is baat se malum hua k sahaba  ikram or tabayeen  rh Ahle hadees hi the.
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Ab ham ap ke samne aimma arba k kuch aqwal pesh karenge, jinko ap mati he , magar unki kabhi bhi nahi manti , kher

IMAM ABU HABIFA RH.

‘imam abu hanifa k usool [aqayeed wa jam taqleed] me ahle hadeeso k usoo par he

[asuluddeen – 1/30]’

Wo khud farmate he , mera mazhab sahi hadees he

[shami mujtabayi – 1/46]

Sufyaan bin oaena rh kehte he ki

‘’mujhe pehle pehal imam abu haneefa rh ne Ahle hadees banaya he’’ hayaiqul hanifa 134 {ye alfaz ‘molvi faqeer mohammad dehlwi hanafi ki kitab – hayaiqul hanifa 134 – taba (nawal kishor) k he’}

Malum hua k imam abu hanifa rh khud ahle hadees the

IMAM ABU YUSUF RH.

Ibn mueen ne apko sahibe hadees or sahibe sunnat kaha he

[tareekh e Baghdad – 1/267]

Ap Ahele hadees se mohabbat rakhte or unhi ki taraf mayeel the, Ahle hadeeso ko apne darwaze par ikatha dekh kar farmaya tha ki ‘ruye zameen par tum Ahle hadeeso se behtar or koi nahi’

[kitab ashraful khateeb 61]

IMAM MALIK RH.

Ap bhi ahle hadees the imam muslim rh ne apko apni kitab sahi muslim k muqadme me apko aimma e Ahle hadees me shumar kia he, or imam wahib rh ne apko imam e Ahle hadees kaha he

[tazkeerul huffaz 1/188]

IMAM SHAFAYEE RH.

Imam shafayee rh ne apne liye Ahle hadees ka mazhab pasand kia tha

[minhajussunnah 4/143]

IMAM AHMED BIN HAMBAL RH.

Apko kati bin sayeed ne ‘Ahle hadees’ kaha he

[kitabul sharful khateeb 74]

Ek martaba ap se firqa najiya k bare me pucha gaya to , ap ne kaha , yah Ahle hadees, agar yah firqa najiya na hua to me nahi janta k or kon firqa he

[kitabushsharf - 24]

Ap ne ek martaba farmaya k mere nazdeeq Ahle hadees se behtar koi nahi

[kitabushsharf - 49]

Ek martaba apke samne kisi ne Ahle hadees ko bura kaha to apne us bura kehne wale ko teen martaba ‘zindeeq (be deen)’ kaha.

[tabqat ul hambal – 40, kitabushsharaf – 76, uloomul hadees lil hakim - 41]

SHEKH ABDUL QADIR JILANI RH.

Ap ne apni kitab (gunyatutalebeen) me Ahle hadees ko bura kehne wale ko ahle bidat me shumar kia he. 1/90 [apki pedayeesh pachwi sadi k aakhir me hui he]

SARHADO K  MUSALMAN

Isi pachwi sadi k tamam sarhado k musalmano ka mazhab Ahle hadees ka paband hona [Allama abu mansoor Baghdadi ki kitab usuluddeen 1/317] se wazeh hota he

Rum or sham or jazeera aajrbejaan ki sarhado k bashinde sab k sab Ahle hadees k mazhab par he

[usuluddeen 1/317]

HINDUSTAAN

Or usi zamane me hindustaan me bhi Ahle hadeeso ka wajood milta he mashhoor arab tourist ‘bashshari muqaddasi jo 375 me hindustan aaya tha, ’ apni kitab me sindh k mashhoor mansura k haal me likhta yaha k zimmi [ger muslim] but parast log he or musalmano me aksar Ahle hadees he,

[ahsun taqseem fi marifatul akalim, tareekh e sindh 124]

Is bayan se logo ko bahut taajjub ho ga or agar ap zara bhi sahi tareekh ka ilm rakhti he to apko bhi hoga, k hindustaan me jamat e Ahle hadees molana ismayil shaheed or Allama mohammad bin Abdul wahab rh ki pedayeesh se bhi sekdo saal pehle mojood he, kyonke ye arab tourist muqaddasi chothi sadi 4th hijri me guzra he.

Abeerah Fragrance says - 1300 saal ki taareekh me 400 saal starting ke nikal do aur 200 saal abhi ke hata diya jaye to darmiyan me 700 saal bachte hain, ab aap bataiye ke in 700 saalo ke darmiyan AHL-E-HADEES kaha they?

Asal haqeeqat (jawab) – jesa k ap farmati he 1300 saal ki tareekh me 400 saal starting k nikal do = 900, 200 saal abhi k nikal do = 700, Darmayan me 700 saal bachte he, Alhadulillah . ap ne sirf previous 700 salo ka tareekhi pasemanzar ka mutaba kia tha magar hamane upar 1300 saal se lekar abhi tak ka tareekhi pasemanzar dalayeel k sathbayan kar diya, ab ap isme na 1300 – 400 kare , or na hi 900 – 200 kare. bade itminaan k sath upar diya gaya jawab fir se ek martaba neutral zehan karke, bager kisi jalan wa tassub k ek martaba fir se mutala [reading] kare.  

Abeerah Fragrance says - Tareekh Gawah hai, aur aap hazraat ki kitabo me bhi maujood hai ke aap logo ne angrezo se Apna Naam AHl-E-Hadees Alaat karwaya tha

Asal haqeeqat (jawab) – ab hame nahi malum k ap ne ham hazraat ki kon si kitab padhli k jisme hamne khud  ne Ahle hadees naam allot karwaya he, kher agar ap hame kuch hi daleel faraham kar deti to badi hi meharbani hoti, nab hi bataye to chalega. 

Abeerah Fragrance says - ab aap yeh bataiye ke Aap Log Jab Pehle se they toh yeh achanak ANGREZO se naam alaat karwane ki Zaroorat kyu pesh aayi?

Asal haqeeqat (jawab) – mashallah , ap bhi pura nahi magar thora thora tasleem karti he Ahle hadees pehle se mojood he, magar hame ye nahi samajh aa raha k ap ne kis Ahle hadees ko apna naam lete huye angrez k pas jate huye dekh liya. Daleel ka intezar rahega.

Abeerah Fragrance says - kya in 700 saalo ke darmiyan aap log ne kuch aur naam rakh liya tha?

Asal haqeeqat (jawab) – 1300 saal starting se Alhamdulillah Quran hadees ko manne walo ko Ahle hadees hi kaha jata he, wese jalne wale no kayi naam diye, wo naam ap ham se behtar janti he, batane ki zarurat nahi.

Abeerah Fragrance says - agar kuch aur naam rakha tha to kya name tha? aur kyu rakha tha?

Asal haqeeqat (jawab) – naam rakha to nahi tha magar rakh diye gaye the, or kyo iska jawab bhi Alhamdulillah ap janti he.

Abeerah Fragrance says - in 700 saalo ke darmiyan AHL-E-HADEES duniya ki kis Country me they? aur waha par un ka kya name tha?

Asal haqeeqat (jawab) – dniya ki har country me , or waha har jagah unka naam Ahle hadees hi tha.

AHLE HADEES SE MURAD MUHADDASIN KIRAN AUR AWAM

اھل الحدیث سے مراد محدثین کرام اور عوام دونوں ہیں​

یہ ایک عام غلط فہمی ہے کہ اھل الحدیث سے مراد صرف محدثین ہیں جبکہ حقیقت میں اھل الحدیث سے مراد محدثین (صحیح العقیدہ) اور حدیث پر عمل کرنے والے ان کے عوام دونوں مراد ہیں اس کی فی الحال دس دلیلیں پیش خدمت ہیں:
1) علمائے حق کا اجماع ہے کہ طائفہ منصورہ (فرقہ ناجیہ) سے مراد اہلحدیث ہیں جس کی تفصیل اوپر بیان کی جا چکی ہےتو کیا فرقہ ناجیہ صرف محدثین ہیں؟
ہرگز نہیں یہ بالکل خلاف عقل اور خلاف حقیقت ہے، طائفہ منصورہ اھل الحدیث سے مراد محدثین اور ان کے عوام دونوں ہیں۔

2) امام اہلسنت امام احمد بن حنبل رحمہ اللہ نے فرمایا:
"احب الحدیث عندنا من یستعمل الحدیث
" ہمارے نزدیک اہلحدیث وہ ہے جو حدیث پر عمل کرتا ہے۔
(مناقب الامام احمد بن حنبل لابن الجوزی ص۲۰۹ و سندہ صحیح)

3) شیخ الاسلام امام ابن تیمیہ رحمہ اللہ فرماتے ہیں کہ ہم اہلحدیث کا یہ مطلب نہیں لیتے کہ اس سے مراد صرف وہی لوگ ہیں جنہوں نے حدیث سنی، لکھی یا روایت کی ہے بلکہ اس سے ہم یہ مراد لیتے ہیں کہ ہر آدمی جو اس کے حفظ، معرفت اور فہم کا ظاہری اور باطنی لحاظ سے مستحق ہے اور ظاہری اور باطنی لحاظ سے اس کی اتباع کرتا ہے ۔
(مجموع فتاویٰ ابن تیمیہ جلد ۴ ص ۹۵)

4) امام ابن حبان رحمہ اللہ نے اہل حدیث کی یہ صفت بیان کی ہے:
"وہ حدیثیوں پر عمل کرتے ہیں، ان کا دفاع کرتے ہیں اور ان کے مخالفین کا قلع قمع کرتے ہیں"
(صحیح ابن حبان، الاحسان : ۶۱۲۹)

5) امام احمد بن سنان الواسطی رحمہ اللہ (المتوفی ۲۵۹ ھجری) نے فرمایا: دنیا میں کوئی ایسا بدعتی نہیں جو اہلحدیث سے بغض نہیں رکھتا (معرفة علوم الحدیث للحاکم ص۴ وسندہ صحیح)
یہ بات عام لوگوں کو بھی معلوم ہے کہ صحیح العقیدہ محدثین اور ان کے عوام سے اہل بدعت بہت بغض رکھتے ہیں۔

6) قرآن مجید سے ثابت ہے کہ قیامت کے دن لوگوں کو ان کے امام کیساتھ پکارا جائے گا (بنی اسرائیل:۷۱) اس کی تشریح میں امام ابن کثیر رحمہ اللہ نے بعض سلف سے نقل کیا ہے کہ یہ آیت اہلحدیث کی سب سے بڑی فضیلت ہے کیونکہ ان کے امام نبی صلی اللہ علیہ وسلم ہيں (تفسیر ابن کثیر ۱۶۴/۴)
کیا صرف محدثین کے امام نبی صلی اللہ علیہ وسلم ہیں؟ نہیں بلکہ اہلحدیث سے مراد محدثین اور ان کے عوام دونوں ہیں

7) امام ابن قیم نے اپنے مشہور قصیدے نونیہ میں فرمایا: " اے اہل حدیث سے بغض رکھنے والے اور گالیاں دینے والے تجھے شیطان سے دوستی قائم کرنے کی بشارت ہو" (الکافیہ الشافیہ ص ۱۹۹)

8) امام جلال الدین سیوطی نے بنی اسرائیل:۷۱ کی تفسیر میں نقل فرمایا: "اہل حدیث کے لیئے اس سے زیادہ فضیلت والی کوئی اور بات نہیں کیونکہ نبی صلی اللہ علیہ وسلم کے سوا ان کا کوئی امام نہیں۔(تدریب الراوی جلد۲ ص ۱۲۶)
یہاں بھی اہلحدیث سے مراد محدثین اور ان کے عوام دونوں ہیں۔

9) ابو منصور عبدالقاہر بن طاہر البغدادی (المتوفی ۴۲۹ ھجری) نے ملک شام وغیرہ کی سرحدوں پر رہنے والے مسلمانوں کے بارے میں کہا: وہ سب اہلسنت میں سے اہلحدیث کے مذہب پر تھے۔ (اصول دین ص ۳۱۷)

یہ کسی دلیل سے ثابت نہیں کہ صرف محدثین ہی مذکورہ سرحدی علاقوں میں رہتے تھے اور وہاں ان کے عوام موجود نہیں تھے لہذا اس حوالے سے بھی ثابت ہوا کہ محدثین کے عوام بھی اہل حدیث ہیں۔

10) ابو عبداللہ محمد بن احمد بن البناء المقدسی البشاری (متوفی ۳۸۰ ھجری) نے اپنے دور کے اہل سندھ کے بارے میں لکھا:
"مذاھبھم أکثرھم أصحاب حدیث ورأیت القاضي أبا محمد المنصوري داودیًّا إماماً في مذھبھ ولھ تدریس و تصانیف، قدصنّف کتباً عدّة حسنةً"
ان سندھیوں کے مذاہب میں اکثر اہلحدیث ہیں اور میں نے قاضی ابو محمد المنصوری کو دیکھا، وہ داؤد ظاہری کے مسلک پر اپنے مذہب (اہل ظاہر) کے امام تھے، وہ تدریس بھی کرتے ہیں اور کتابیں بھی لکھتے ہیں، انہوں نے بہت سی اچھی کتابیں لکھی ہیں۔
احسن التقاسیم فی معرفة الاقالیم ص ۳۶۳)

بشاری نے سندھیوں کی اکثریت کو اہلحدیث قرار دے کر ثابت کر دیا کہ محدثین کی طرح صحیح العقیدہ عوام بھی اہلحدیث ہیں نیز (1867 میں) فرقہ دیوبند کی پیدائش سے سینکڑوں سال پہلے۳۸۰ ھجری میں سندھ میں اہلحدیث اکثریت میں تھے۔

Ham ahle hadees KYU hai?

ہم اہلحديث کيوں ہيں ؟ 
غورسےپڑہيۓجزاك الله
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اَللهُ نَزَّلَ اَحْسَنَ الْحَدِيْثِ كِتـٰبَامُّتَشَابِهًا مَّثَانِيَ(٢٣) 
الزُّ مر }
اللہ نےيہ خوبصورت حديث نازل فرماياہے جو ايسي کتاہےکہ آپس ميں ملتي جلني اور بار بار دہرائي ہوئي آيتوں پر مشتمل ہيں) قرآن كانام حديث ہےتو ہم اہلحديث اس ليےہيں !
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مَاكَانَ حَدِيْثًايُّفْتَرٰى وَلٰكنْ تَصْدِيْقَ الَّذِيْ بَينَ يَدَيهِ (١١١) يوسف }
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کياتوان کےپيچهـےخود کوہلاک کرڈاليں گےاس رنج سےکہ ايمان نہ لائيں يہ بےوقوف اس حديث پر )قرآن کوحديث فرماياہے اس ليۓاہلديث ہيں ہم )
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فَلْيَاْتُوْابِحَدِيْثٍ مِّثْلِهِ إِنْ كَانُوْاصٰدِقِينَ(  ٤٣}طور }
بس لےآئيں اس جيسي  حديث اگريہ لوگ سچے ہيں )قرآن حديث ہے هم اس ليۓ ہيں اهحديث )
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اَفَمِنْ هٰذَاالْحَدِيْثِ تَعْجَبُوْنَ(٥٩) النجم }
کياتم اس حديث سے تعجب کرتےہو؟) قرآن کا نام حديث ہے تو هم ہيں اهلحديث تعجب نہيں )
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اَفَبِهٰذَاالْحَدِيْثِ اَنْتُمْ مُّدْهِنُوْنَ(٨١) الواقعة }
کيا اس حديث کے ماننے ميں تم سستي کرکے (معمولي) سمجهـتےہو؟)
ديکهـاقرآن کانام حديث ہےاور هم اهلحديث ہيںو
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فَبِاَيِّ حَدِيْثٍ بَعْدَهُ يُؤْمِنُوْنَ(٥٠) مرسلات , الأعراف ١٨٥}
کيا اب اس حديث کےبعد کونسے کتاب پر ايمان لاؤں گے )
اس قرآن کانام حديث ہے اورهم اهل حديث ہيں )
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فَذَرْنِيْ وَمَنْ يُّكَذِّبُ بِهٰذَاالْحَدِيْثِ (٤٤) ألقم }
بس چهـوڑدو مجهـےاور
جنہوں نے جٹهـلايا اس حديث کو)جب قرآن ہے حديث توهم ہيں مجبورًا اهل حيث )
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وَاِذْ اَسَرَّ النَّبِيُّ اِلَىٰ بَعْضِ اَزْوَاجِهِ حَدِيْثًا( ٣) التحريم }
اور جب نبي ﷺنےاپني بعض بيبيوں سے پوشيده بات کہي )قرآن ميں نبيﷺکي بات کو حديث فرمايا توقرآن اور نبيﷺکي بات دونوں ہيں حديث اور هم ہيں   اهلحديث ، اهل کفرنہيں
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عَنْ حسان قال : كان ينزل جبريل على باسنة كما ينزل عليه بالقرآن ) سنن الدارمي . باب السنة قاضية على كتاب الله)١/ ١٥٣ ح ٥٨٨)
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عَنْجَابِرِ بْنِ عَبْدِ اللهِ قَالَ : قَالَ رَسُوْلُ اللهِ  فَاِنَّ خَيْرَ الْحَدِيْثِ كِتَابُ اللهَ، وَخَيْرَ الْهَدْيِ هَدْيُ مُحمَّدٍ  )
مسلم ٨٦٧ )
جابرؓسےروايت ہےانہوں نےکہاکہ رسول اللہﷺنے فرماياکہ يقينًا بہترين حديث  کتاب اللہ ہے اور بہترين ہدايت محمدﷺ کا هدايت ہے ) محمدﷺ نےبهـهـي قرآن کو حديث فرمايا. اس ليے هم ہيں اهلحديث ، اهل کفرنہيں
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عَنْ زَيْدِ بْنِ ثَابِتٍ قَالَ : سَمِعْتُ رَسُوْلَ اللهِ يَقُوْلُ نَضْرَ اللهِ امْرَءًا سَعَ مِنَّا حَدِيْثًافَحَفِظَهُ حَتَّىٰ يُبَلَّغَهُ ) أبي داود ٣٦٦٠ ) ابن ماجة ٢٣٢ ترمذي ٢٦٥٨ )
زيدبن ثابتؓ سےروايت ہے انہوں نےکہاکہ ميں ميں نےسنا رسول اللہﷺکو فرماتےہوۓکہ اللہ يسے شخص کوتروتازه رکهـے کہ وه مجهـ سے حديث سن کريادکرےيہاں تک کہ
لوگوں ہنچاۓ ) اس ليۓ ہم اهلحديث ہيں کہ حديث يادکرکے اس پر عمل کرتےہيں اورلوگوں کوپہنچاتےهيں الحمدلله
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عن عبدالله بن عباس قال: قال رسول الله ، يأيها الناس اني قد تركت فيكم ما ان اعتصمتم به فلن تضلواأبداكتاب الله وسنة نبيه)مستدرك حاكم١/ ٩٣ سنن كبرىٰ بيعتي ١٠ /١١٤)
عبداللہ بن عباسؓ سے روايت ہےانہوں نےکہاکہ
رسول اللہﷺنےفرماياکہ
اےانسانوں يقينًا ميں تم ميں ايسےچيزيں چهـو ڑيں جارہاہوں کہ جب تک تم اسےمضبوطي کےساتهـ پکڑيں رہوں تو تم کبهـي بهـي گمراه نہيں ہوں گے وه ہے قرآن اور نبيﷺ کےاحاديث ) اس ليۓهم اهلحديث ہيں اور قرآن اور احاديث صحيح کےعلاوه ہرکتاب کوگمراہي سمجهـتےہيں
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عَنْ اَبِيْ سَعِيْدِ الْخُدْرِيِّ اَنَّهُ كَانَ إِذَا رَاَى الشَّبَابَ قَالَ : مَرْحَبًا بّوَصِيَّةِ رَسُوْلِ اللهِ اَمَرَنَا رَسُوْلُ اللهِ اَنْ نُّوَسِّعَ لَكُمْ فِى الْمَجْلِسِ وَاَنْ نُفْهِمَكُمُ الْحَدِيْثَ فَاِنَّكُمْ خُلُوْفَنَا وَاَهْلُ الْحَدِيْثِ بَعْدَنَا ) شرف أصحاب الحديث ، صفحه ١٢ )
روايت ہےابوسعيد خدريؓ 
سےکہ ان کاعادت تهـاکہ جب بهـي جوان لڑکوں کوديکهـتےتوفرماياکرتے مرحبا مرحباً،رسول اللہ ﷺنےہمہيں كو وصيت كياہےاور حکم دياہے ہم  کو رسول اللہﷺنےکہ ہم جوانوں کواپنے محفلوں ميں فراخ دلي سےجگہ ديں اور ہم تم کواحاديث سمجهـائيں کيوں کہ تم ہي ہمارےخلفاء ہوں گے اورہمارے بعد تم ہي اهلحديث ہوں گے) اس سےصاف ثابت ہے کہ اصحابہ اور تابعين تبع تابعين يہ سب اهلحديث تهـےبعد ميں اهل بدعت کےمذاہب بنے
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عَنْ مُعَاوِيَةَ بْنِ قُرَّةَ ، عَنْ اَبِيْهِ ، قَالَ : قَالَ رَسُوْلُ اللهِ لَاتَزَزالُ طَاءِىفَةٌ مِّنْ اُمَّتِي مَنْصُوْرِينَ لَا يَضُرُّهُمْ مَنْ خَذَلَهُمْ حَتَّىٰ تَقُوْمَ السَّا عة ) ابن ماجة ٦ ، بخاري ٧٣١١ ، ابوداود ٢٤٨٤ ، ترمذي ٢١٩٢ )
معاويہ بن قرة ؓاپني باپ ؓسےروايت کرتےہوےکہتے ہےکہ رسول اللہﷺنے فرماياکہ ميري امت ميں مددکياگيا ايک گروه جو کبهـي بهـي ضايع نہ ہو گيں کوئي بهـي انہيں نقصان نہيں پہنچا سکيں گيں اگرچہ وه انہيں نقصان پہنچانا چاہيں گےيہاں تک کہ قيا مت قائم ہوجائيں گيں 
----------------------سال لإمام احمد بن حنبل عن في الطائفة المنصورين ، فقال : ان لم يكونوا أصحاب الحديث فلا ادري من هم ) شرف أصحاب الحديث صفحة ١٤ ، و شرح صحيح مسلم نوي ٢/ ١٤٣) 

امام احمد بن حنبلؒ سے پوچهـاگيا طائفہ منصورين کےمتعلق تو انہوں نےفرماياکہ جب يہ  اهلحديث نہ هو توميں نہيں جانتاکہ پهـرکون ہوں گے)امام احمدؒ کا يہ بات چارمذاهب والوں پر رَدٌّ ہيں کيوں انہوں نے اهلحديث کوہي حق پر قراردياہيں
------------------------قال أبو عيسىٰ ترمذي هٰذا حديث غريب ، إبراهيم المديني ليس هو بالقوي عندأهل الحديث ) ترمذي ٢١٥١ ) حديث
امام ابوعيسى ترمذي نےفرمايا ابراہيم مديني قوي نہيں اهلحديث کے نزديک )يہ تين سوهجري کي لکهـي ہوئي بات ہے
لعنت ہو ايسےجهـوٹوں پرجوکہتےہيں کہ اهلديث توابهـي انڈياميں پيدا ہوئيں ہيں لعنة الله على الکٰذبين
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٢٢١٠ في الترمذي قال أبو عيسىٰ امام ترمذي قد تكلم فيه بعض أهل الحديث )
امام ابو عيسى ترمذي فرماتےہے کہ اس حديث ميں اهلحيثوں نے كلام کياہيں ) يہ ہے اهلحديث کےنام ١٢٥٠سال پراني
اللہ کا لعنت ہو ايسے لوگوں پرجوکہتےہيں کہ اخلحديث تو الهـي ١٠٠ سال پہلے انڈياميں پيدا ہوۓ
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قال الترمذي هذا حديث غريب وعثمان بن عبد الرحمن ليس عند أهل الحديث بالقوي ٢٢٨٨ ترمذي )
امام ترمذي نےفرمايايہ حديث غريب ہے  عثمان بن عبدالرحمٰن قوي نہيں اهلحديث کےنزديک ١٢٥٠ سال قبل نام اهلحديث الله كا لعنت ہو جهـوٹوں پرجوکہتےهيں اهلحديث توابهـي ملکہ ويکٹوريہ کي پيداکرده ہيں
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قال : امام احمد بن حسن لاِمام احمد بن حنبل ، يساَل بعض الرجال لاِ بن قتيلة في المكّة عن الاَهل الحديث فقال له أصحاب الحديث قوم سوء ، فقام أمام احمدؒ وهو ينفض ثوبه فقال: زنديق زنديق زنديق ودخل بيته ) معروفة  علوم للىحاكم ، صفحه ٤ و طبقات الحنابلة  لاَبي الحسن ١/ ٣٨ ، و مناقب الاِ مام احمد لاِ بن الجوزي ، ص ١٨٠ شرف أصحاب الحديث ، ص ٤١ )

امام احمد بن حسن نے کها امام احمد بن حنبلؒ سےکہ کچهـ آدميوں نےمکّہ ميں ابن قتيلہ سے پوچهـا اهلحديثوں کے بارے ميں تو اس نے جواب ديا کہ اهلحديث بہت برا قوم ہيں ، تو امام احمد بن حنبلؒ اُٹهـ کر کهـڑاہوا اور اپنے کپڑے جهـاڑتےہوۓ کہہ رہےتے کہ وه زنديق ہے زنديق ہے زنديق ہے اور جاکےاپنےگهـرميں گهـس گۓ) جولوگ اهلحديث کو براکہتےہيں وه زنديق ہے بحوالہ امام احمد ؒ )
------------------------عَنِ عَبَّاسٍ قَالَ : سمِعْتُ عَلِيَّ بْنَ اَبِيْ طَالِبٍ يَقُوْلُ : خَرَجَ عَلَيْنَا رَسُوْلُ اللهِ فقال : اَللّهُمّ ارْحَمْ خُلَفآءِيْ قال : قُلْنا يا رسول اللهِ وَمَن خُلَفآءُكَ ؟ قال الَّذينَ ياْتُونَ مِنْ بعْدِ يْ يَرْوُوْنَ اَحَادِيثِيْ وَ سُنَّتِيْ وَيُعَلِّمُوْنَهَاالنَّاس  ( الطبرانيِّ في الوسط الترغيب والترهيب جلد  ١ صفحه ١١٠ ، شرف أصحاب الحديث صفحه ١٧ )
عبد اللہ بن عباسؓ سے ووايت ہےانہوں نےکہاکہ ميں سنا عليؓ بن طالب سےفرمارہےتےکہ رسول اللہﷺنکلے ايک وفعہ ہمارےطرف تو فرمايا اے اللہ رحم فرما ميرےخلفاء پر ابن عباسؓ نےکہاکہ ہم نےکہا يا رسول اللہﷺ کون خلفاء ہوں گے اپکا ؟
فرمايا وه لوگ جوميرے بعد آۓگےميرےاحاديث اورسنت ديکےگيں اور اس کےعلم لوگوں کوديں گے) وہي اهلحديث کہ لو گوں کوقرآن اور احاديث کےعلم ديتےہيں الحمد لله فقہ حنفي کا نہيں )
------------------------قال : أمام شعبي تابعي ، مَا حَدَّثْتُ اِلَّا جْمَعَ عَلَيْهِ اَهْلُ الْحَدِيْثً ) تذكرة الحفاظ ، ج ١ص٧٢
امام شعبيؒ جوکہ تابعيؒ ہےنےکہاکہ ميں نہيں کتا ہوں مگر وه ب جس پر اهلحديث کا اجماع ہوں) ليکن زنديق مذهبي کہتے ہيں اهلحذيث توابي ہندوستان ميں پيداہوۓ (لعنة الله على الْكٰذِبِيْـنَ )
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وكان الشافعي ، يقول أهل الحديث في كل زمانهم وكان يقول إذا رأيت صاحب حديث فكأني رأيت أحدا من أصحاب رسول الله ) مزان الشعراني فصل في ما نقل عن الاِمام الشافعي من ذم الراى ، ١/ ٧٣ )

اور امام شافعيؒ فرمايا کرتےتهـے کہ اهلحديث ہر زمانےميں ہوں گےاور وه ہميشہ فرماياکرتےتهےکہ ميں جب اهلحديث کو ديکهـتاہوں توجيساکہ ميں نےرسول اللہﷺكا کسي صحابي کوديکهـا
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قال عبد الله بن مبارك في الطَائِفَةٌ المنصرين  هم عندي أصحاب الحديث ) شرف أصحاب الحديث ، ص ١٥ )

عبداللہ بن مبارکؒ نےکہا طائفہ منصورين ہي ميري علم ميں اهلحديث ہيں ) ابن مبارک اور ابو حنيفہ کےايک دوَر ہيں ١٣٥٠سال قبل ابن مبارک اهلحديث کوجانتاہے اور آج کے زنديق کہتےهيں يہ ابهـي پيداہوۓہيں ، (لعنة اللهِ على لكٰذبين )
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قال عبد القادر جيلاني لِاَهل السنة ولا اسم لهم إلا اسم واحد وهو أصحاب الحديث ) غنية الطالبين ١/ ٨٠ )
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قال أمام يحي بن سعيد القطان حنفية المتوفي  ١٩٨هجري ، ليس في الدنيا مبتدع إلا وهو يبغض أهل الحديث ) مقدمة شرح جامع الاُصول للجزري صفحة ١٠ مطبوع مصر )

امام يحىٰ بن سعيد قحطاني حنفي ١٩٨ هجري ميں کہتاہےکہ دنيا ميں ہر وه شخص مبتديع بدعتي ہيں جو اهلحديث سے بغض رکهـتےہيں يعني وه دين کوبگاڑنےوالاہے) آج سے ١٢٥٠ سال پہلے اهلحديث کے ذکر ہورهي ہيں ليکن آج کےحنفي دجالوں کو جهـوٹ بولتے ہوۓ ذرا برابربهـي ڈرنہيں اللہ سے يہ کہتے ہوۓ کہ يہ اهلحديث تو أَبِيْ ہمارے دادي ملکہ وکٹوريہ کي پيداوارہيں اللہ ان جهـوٹوں کو قوم فرعون کےسزاديدي
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يقول أمام احمد بن سنان القطان ليس في الدنيا مبتدع إلا وهو يبغض أهل الحديث وإذا ابتدع الرجل نزع حلاوة الحديث من قلبه ) معروفة علوم الحديث للحاكم ، صفحة ٤ ، شرف أصحاب الحديث ، ص ٤٠ ) 

امام احمد بن سنان القطان نےکہاکہ دنياميں مبتديع بے دين لوگ وه ہيں جو اهلحديث کے ساتهـ بغض رکهـتےهيں
اورجب اهلحديث سے بغض رکهـيں توان کے دل سے احاديث کےذائقہ نكل کربگاڑ پيداہوجاۓگا
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قَالَ إِمَام قُتَيْبَةَ بْنِ سَعِيْدٍ  إِذَا رَأَيْتَ الرَّجُلَ يُحِبُّ أَهْلَ
الْحَدِيْثِ مِثْلَ يَحْىَ ابْنِ سَعِيْدِ الْقَطَانِ وَ عَبْدِ الرَّ جْمٰنِ بْنِ مَهْدِيٍّ وَأَحْمَدَ ابْنِ حَنْبَلٍ وَ إِسْحَاقَ بْنِ رَاهُوِيَّةَ وَذَكَرَ قَوْمًا اٰخَرِيْنَ فَإِنَّهُ عَلَىٰ السِّنَّةِ وَمَنْ خَالَفَ هٰذَا فَاعْلَمْ أَنّّهُ مِبْتَدِعٌ ) شرف اصحاب ألحديث صفحہ ٤٠ )

امام قتيبہ بن سعيدؒنے فًرمايا جب تم کسي شخص کوديكهـوکہ وه اهلحديث سےمحبت رکهـتاہےجيسےامام يحىٰ بن سعيد القطانؒ ، عبدالر حمان بن مهديؒ ، امام احمد بن حنبلؒ ، اسحاق بن راہويہؒ ، اور اسي طرح بہت سے لوگوں کے نام ليۓ توسمجهـ لوکہ وه سنت پرقائم ہےاورجو کوئي اهلحديث کے مخالف ہےتوسمجهـ لوکہ وه بلاشبہ بدعتي بے دين ہے
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قال عبد الله بن أحمد ساَلت الاِمام احمد عن الرجل يكون في بلد لا يجد فيها إلا صاحب حديث لا يعرف صحيحه من يقيمه ، وصاحب راْي فمن يساَل منها عن دينه ، فقال يساَل صاحب الحديث ، ولا  يساَل صاحب الراْي ، وكان كثرا ما يقول ضعيف الحديث اَحب إلينا مِن راْي الجال ) المدان الكبرىٰ  ، ١/ ٦٢ )

امام عبداللہ نےاپني باپ امام احمد بن حنبلؒ سے پوچهـاکہ ايک شہرميں دوآدمي ہيں ايک صاحب راۓاور دوسرا اهلحديث جوفن حديث ميں پوري طرح مہارت نہيں رکهـتا تو دين کےمتعلق ان ميں سےكس سےمسلہ دريافت کياجاۓ تو احمدؒ نےفرمايا اهلحديث سے دريافت کياجاۓاہل راۓ سےنہ پوچهـاجاۓ اور امام احمدؒ اکثريہ فرمايا کرتےتهـےکہ مجهـے لوگوں کے راۓ سےحديث ضعيف زياده محبوب ہے
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ملاعلي قاري حنفي المتوفي ١٠١٤هجري في بحث الاِيمان قال : أبو حنيفة وسفيان الثوري ومالك والاَوزاعي والشافعي واحمد وعاّىة الفقهاء وأهل الحديث ) شرح فقة اكبر ص١٧١

حنفيوں کےباپ ملاعلي قاري ٤٥٠ سال قبل اهلحديث کے ذکر اکهـتے ہيں ليکن آج کے جهـوٹے زنديق بدعتي مشرکين کہتےہيں اهلحديث تو ابي قاسم نانوتوي اور رشيد احمد گنگوهي کے ماں وکٹوريہ نے پيداکيا ہيں )اےالله ان دجالوں کو بني اسرائيل جيسے سزاوں ميں مببلاکر
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علامة الشيخ سعد الدين التحتاني ، المتوفي ٧٥٨ هجري ، قال وعليه عامة أهل الحديث والشافعية ) التلويح مع التوضيع   ٢/ ٤٦ ) ديکهـو اس بيان ميں ٦٥٠ سال قبل ذكر اهـلحديث موجودہے ليکن جاهل مبتدعين کہتے ہيں اهلحديث تو ابي ١٠٠سال قبل پيدا ہوۓہيں ، لعنة الله على الْكٰذِبِيْـنَ آمين )
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