पानी की हिफ़ाज़त
लेखक: शैख़ अस'अद आज़मी जामि'आ सलफ़िआ बनारस
हिंदी अनुवाद: अब्दुल मतीन सैयद
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इस दुनिया में ज़िंदगी गुज़ारने के लिए मख़्लूक़ को जिन जिन चीज़ों की जरूरत होती है ख़ालिक़ ने वो तमाम चीज़ें वाफ़िर (बहुत) मिक़दार (मात्रा) में मुहय्या (फ़राहम) की है उनमें से कुछ चीज़ें तो ज़िंदगी के लिए हद-दर्जा (बहुत ज़्यादा) अहम और लाज़िमी (ज़रूरी) है जैसे हवा, पानी, रौशनी ख़ालिक़-ए-अर्ज़-ओ-समा ने इन तमाम चीज़ों का निज़ाम (इंतिज़ाम) ऐसा रखा कि बिला तफ़रीक़ (बिना भेदभाव के) हर मख़्लूक़ को यह मुफ़्त-में मयस्सर होती है इनमें से सबसे अहम हवा है इस के निज़ाम को बयान करने की ज़रूरत नहीं वो बिल्कुल वाज़ेह (स्पष्ट) और 'अयाँ (ज़ाहिर) है इस के बाद अहमियत (महत्व) के लिहाज़ से पानी का नंबर आता है जिस के बारे में हर शख़्स जानता है कि ज़िंदगी के लिए पानी की क्या ज़रूरत और कितनी अहमियत है मशहूर मक़ूला (बात) है कि " जल ही जीवन है " पानी ही ज़िंदगी है यह बात चौदह सदी पहले क़ुरआन में इन अलफ़ाज़ में ज़िक्र कर दी गई थी
{وَجَعَلْنَا مِنَ الْمَاء کُلَّ شَیْْء ٍحَی - سورہ انبیاء۳۰}
तर्जमा: हम ने हर ज़िंदा चीज़ को पानी ही से बनाया है
(सूरा अल्-अम्बिया:30)
गोया (जैसे) ज़िंदगी और पानी लाज़िम-ओ-मलज़ूम (ज़रूरी) है वाज़ेह (स्पष्ट) रहे कि ज़िंदगी से सिर्फ़ इंसानी ज़िंदगी मुराद नहीं या सिर्फ़ इंसान व हैवान ही की ज़िंदगी का दार-ओ-मदार पानी पर नहीं है क्यूंकि आप देखते हैं कि पेड़ पौधे, खेती, बाग़ात, वग़ैरा का कुल मु'आमला पानी ही से जुड़ा हुआ है पानी के बग़ैर उन की ज़िंदगी का भी तसव्वुर नहीं किया जा सकता अल्लाह-त'आला का फ़रमान है
{ وَہُوَ الَّذِیَ أَنزَلَ مِنَ السَّمَاء ِ مَاء ً فَأَخْرَجْنَا بِہِ نَبَاتَ کُلِّ شَیْْء ٍ - سورہ انعام :۹۹}
तर्जमा: अल्लाह-त'आला ही ने आसमान से पानी बरसाया फिर हमने उसके ज़री'आ से हर क़िस्म के नबातात (पौधों) को निकाला
(सूरा अल्-अन्आम:99)
इस वक़्त हिंदुस्तान समेत पूरी दुनिया पानी के ज़बरदस्त बोहरान (संकट) से दो-चार है सालो से देखा जा रहा है कि मुल्क के बहुत से इलाक़ों में पानी की शदीद क़िल्लत (कमी) हो जाती है गर्मी का मौसम आने से बहुत पहले ही से नदी, नाले, कुँवें और हैंड-पाइप सूख जाते हैं बा'ज़ बा'ज़ इलाक़ों से ख़बरें आती है कि औरतें और बच्चे बालटी और घड़े ले कर कई कई किलो-मीटर दूर जाती है और लंबी लंबी लाइनों में घंटों खड़े होने के बाद उन्हें किसी तरह एक बालटी पानी मिल पाता है दूसरी तरफ़ यह भी देखा जाता है कि जिन लोगों को यह पानी बिला-मशक़्क़त (बग़ैर तकलीफ़ के) मिलता है वो इंतिहाई (बहुत) लापरवाही के साथ इसे बर्बाद करते रहते हैं
दरअस्ल (हक़ीक़त में) पानी जैसी 'अज़ीम ने'मत की यह शदीद क़िल्लत (कमी) इसी इसराफ़ (फ़ुज़ूल-ख़र्ची) और बर्बादी का नतीजा है वर्ना रब्ब-ए-काइनात ने इस दुनिया में मख़्लूक़ की ज़रूरत की हर चीज़ ज़रूरत के मुताबिक़ मुहय्या (इकट्ठा) फ़रमाईं है क्यूंकि इस के ख़ज़ाने में किसी चीज़ की कमी नहीं है चुनांचे वो इरशाद फ़रमाता है
{ وَإِن مِّن شَیْْء ٍ إِلاَّ عِندَنَا خَزَائِنُہُ وَمَا نُنَزِّلُہُ إِلاَّ بِقَدَرٍ مَّعْلُوم- سورہ حِجْر: ۲۱}
तर्जमा: जितनी भी चीज़ें हैं उन सबके ख़ज़ाने हमारे पास है और हम हर चीज़ को उसके मुक़र्ररा अंदाज़ से उतारते हैं।
(सूरा अल्-ह़िज्र:21)
गोया अल्लाह-त'आला का निज़ाम बड़ा ही मोहकम और मंसूबा-बंद है उसके यहां किसी तरह की बद-नज़्मी और बे-तरतीबी (अनियमितता) नहीं हर चीज़ मुक़र्ररा (निश्चित) मिक़दार (मात्रा) में वो बंदों को फ़राहम करता है वो 'अलीम-ओ-ख़बीर है अच्छी तरह जानता है कि किस को किस चीज़ की कितनी ज़रूरत है।
माहेरीन का कहना है कि रब पाक की तरफ़ से हम में से हर शख़्स के लिए पानी का जो हिस्सा मख़्सूस था वो कब का उसे ख़त्म कर चुका है अब वो आने वाली नस्लों का पानी इस्ते'माल कर रहा है अगर संजीदगी (गंभीरता) से ग़ौर करें कि हर शख़्स अपनी औलाद के मुस्तक़बिल (future) को लेकर फ़िक्र-मंद (परेशान) रहता है उनके लिए रिहाइश (रहन-सहन) कारोबार, मुलाज़मत वग़ैरा को यक़ीनी (ज़रूरी) बनाने की कोशिश करता है लेकिन शायद ही कोई आने वाली नस्ल के लिए पानी की फ़राहमी (एकत्र) के बारे में मुतफ़क्किर (ग़मगीन) दिखाई दे।
अल्लाह-त'आला ने सूरा अल्-ह़िज्र की मज़कूरा आयत में एक 'आम बात कही थी कि हमारे पास हर चीज़ का ज़ख़ीरा (भंडार) मौजूद है लेकिन ज़रूरत के मुताबिक़ एक ख़ास मिक़दार (मात्रा) में ही इसे उतारते हैं इस के म'अन (फ़ौरन) बाद पानी का ख़ास तौर से तज़्किरा (ज़िक्र) करते हुए फ़रमाया:
{ وَأَرْسَلْنَا الرِّیَاحَ لَوَاقِحَ فَأَنزَلْنَا مِنَ السَّمَاء ِ مَاء ً فَأَسْقَیْْنَاکُمُوہُ وَمَا أَنتُمْ لَہُ بِخَازِنِیْنَ-سورہ حجر ۲۲}
तर्जमा: और हम भेजते हैं बोझल (भारी) हवाएं फिर आसमान से पानी
बरसा कर तुम्हें पिलाते हैं और तुम इस का ज़ख़ीरा करने वाले नहीं हो
(सूरा अल्-ह़िज्र:22)
या'नी अल्लाह ही की जात है जो आसमान से पानी उतारतीं है फिर इस को ज़मीन में मुख़्तलिफ़ (अलग-अलग) तरीक़ों से महफ़ूज़ कर देती है इंसान के वसाइल बड़े महदूद है वो इस पानी का ख़ातिर-ख़्वाह (मन-चाहा) ज़ख़ीरा करने की क़ुदरत (ताक़त) नहीं रखता यह अल्लाह का मुक़र्रर (निश्चित) कर्दा निज़ाम है कि पानी को कुओं, चश्मों, तालाबों, नदियों, समुंदरों और बत्न ज़मीन के अंदर महफ़ूज़ कर देता है जिससे इंसान ता-देर (बहुत देर तक) अपनी ज़रूरियात (ज़रूरतें) पुरी करता रहता है अगर पानी की हिफ़ाज़त और ज़ख़ीरा करने की ज़िम्मेदारी इंसान के सुपुर्द (हवाले) होती तो इसे कर नहीं सकता था।
एक दूसरे मक़ाम (जगह) पर अल्लाह-त'आला इरशाद फ़रमाता है:
{وَأَنزَلْنَا مِنَ السَّمَاء ِ مَاء ً بِقَدَرٍ فَأَسْکَنَّاہُ فِیْ الْأَرْضِ وَإِنَّا عَلَی ذَہَابٍ بِہِ لَقَادِرُون-سورہ مؤمنون :۱۸}
तर्जमा: हम एक सहीह अंदाज़े से आसमान से पानी बरसातें है फिर इसे ज़मीन में ठहरा देते हैं और हम उसे ले जाने पर यक़ीनन क़ादिर हैं।
(सूरा अल्-मुमिनून:18)
इस आयत-ए-करीमा में भी
’’ فَأَسْکَنَّاہُ فِیْ الْأَرْضِ‘‘
के अलफ़ाज़ से अल्लाह रब्बुल-'इज़्ज़त ने यह बावर (यक़ीन) कराया है कि बारिश के बाद इस पानी को ज़मीन में ठहरानें और महफ़ूज़ करने का 'अमल हम ख़ुद करते हैं ताकि आइंदा हस्ब-ए-ज़रूरत मख़्लूक़ इस से अपनी ज़रूरत पुरी करतीं रहे अलबत्ता (लेकिन) साथ में यह तंबीह (चेतावनी) कर दी कि जिस तरह हम देने पर क़ादिर है वापस लेने पर भी हमें क़ुदरत (ताक़त) हासिल है लिहाज़ा (इसलिए) इंसान को हमा आन (हर समय) चौकन्ना (सावधान) रहना चाहिए और ने'मतें क्यूं छीन जाती हैं इसे भी क़ुरआन में वाज़ेह (स्पष्ट) कर दिया गया है:
{وَإِذْ تَأَذَّنَ رَبُّکُمْ لَئِن شَکَرْتُمْ لأَزِیْدَنَّکُمْ وَلَئِن کَفَرْتُمْ إِنَّ عَذَابِیْ لَشَدِیْد- سورہ ابراہیم:۷}
तर्जमा: और जब तुम्हारे परवरदिगार ने तुम्हें आगाह कर दिया कि अगर तुम शुक्रगुज़ारी करोगे तो यक़ीनन मैं तुम्हें मज़ीद 'अता करुंगा और अगर तुम ना-शुक्री करोगे तो बिला-शुब्हा (यक़ीनन) मेरी गिरिफ़्त सख़्त होगी।
(सूरा इब्राहीम:7)
पानी के त'अल्लुक़ से इससे बड़ी ना-शुक्री क्या होगी कि हम इसे ज़रूरत से ज़ियादा ख़र्च करें बे-हिसाब बहाएँ और बर्बाद करें ऐसी सूरत (स्थिति) में इस ने'मत से महरूमी या क़िल्लत (कमी) की शक्ल (हालत) में 'अज़ाब-ए-इलाही से दो-चार होते हैं।
(जारी)
(२)
नबी-ए-आख़िरुज़्ज़माँ जनाब मोहम्मद रसूलुल्लाह ﷺ ने अपने अक़्वाल-व-आ'माल दोनों के ज़री'आ पानी जैसी 'अज़ीम ने'मत की क़द्र करने और उसे ज़ाए' (नष्ट) करने से बचाने की तर्ग़ीब (प्रेरणा) दी है
हज़रत जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है:
’’إِنَّ النَّبِيَّ ﷺ نَھَی أَنْ یُبَالَ فِي الْمَاءِ الرَّاکِدِ‘‘ (مسلم:۲۸۱)
तर्जमा: रसूल-ए-अकरम ﷺ ने ठहरे हुए पानी में पेशाब करने से मना' फ़रमाया है।
नदियों और समुंदरों के पानी के बर-'अक्स (विरुद्ध) झील, तालाब और हौज़ वग़ैरा का पानी एक जगह ठहरा रहता है इस में अगर किसी तरह की गंदगी पड़ती है तो पूरा पानी गंदा हो जाता है और इस्ते'माल के क़ाबिल (लायक़) नहीं रह जाता इस लिए ऐसे पानी में पेशाब पाख़ाना या किसी तरह की गंदगी नहीं जाने देना चाहिए ताकि वो पानी महफ़ूज़ रहे और ख़ल्क़ कसीर इस से इस्तिफ़ादा करे।
एक रिवायत में अल्लाह के रसूल ﷺ का यह फ़रमान भी है:
’’إذَا اسْتَیْقَظَ أحَدُکُمْ مِنْ نَوْمِہِ فَلاَ یَغْمِسْ یَدَہٗ فِي الْإِنَاءِ حَتَّی یَغْسِلَھَا ثَلَاثًا، فَإِنَّہُ لَا یَدْرِيْ أَیْنَ بَاتَتْ یَدُہٗ‘‘ (مسلم:۶۴۳)
तर्जमा: जब तुम में से कोई अपनी नींद से बेदार हो तो उस वक़्त तक अपने हाथ बर्तन में न डालें जब तक उसे तीन मर्तबा धो न ले क्यूंकि उसे नहीं मालूम कि रात में उसका हाथ कहाँ-कहाँ रहा।
(मुस्लिम: 643)
'अमली ए'तिबार से देखा जाए तो मा'लूम होता है कि नबी-ए-करीम ﷺ पानी के इस्ते'माल में कितने मोहतात (सावधान) थे चुनांचे (इसलिए) हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं:
’’کَانَ النَّبِیُّ ﷺیَتَوَضَّأُ بِالْمُدِّ وَیَغْتَسِلُ بِالصَّاعِ إِلَی خَمْسَۃِ أَمْدَادٍ‘‘ (مسلم :۷۳۷)
तर्जमा: नबी ﷺ एक मुद पानी से वुज़ू करते थे और एक सा' (चार मुद) से लेकर पांच मुद तक पानी से ग़ुस्ल करते थे।
(मुस्लिम:737)
सा' पैमाइश (नापने या मापने) का एक बर्तन है जिसमें मौजूदा पैमाने के ए'तिबार से दो किलो सो ग्राम से लेकर ढाई किलो तक सामान आता है और मुद इस का एक चौथाई (250 ग्राम) होता है यानी चार मुद का एक सा' होता है इस तरह एक मुद में निस्फ़ (आधा) लीटर से कुछ ज़ियादा पानी आ सकता है गोया (जैसे) नबी-ए-अकरम ﷺ ग़ुस्ल में ढाई लीटर से तीन लीटर तक पानी इस्ते'माल करते थे और वुज़ू में निस्फ़ (आधा) लीटर से कुछ ज़ियादा पानी इस्ते'माल करते थे आज हम वुज़ू और ग़ुस्ल में कितना कितना पानी बहा देते हैं जितने पानी से अल्लाह के रसूल ﷺ ग़ुस्ल फ़रमाँ लिया करते थे बहुत से लोग इतने पानी में वुज़ू भी नहीं कर पाते।
*पानी की अहमियत (महत्व) और इस का बोहरान (संकट)*
ज़िंदगी के लिए पानी की क्या अहमियत (महत्व) है इसे समझने और समझाने की ज़रुरत है ग़िज़ा (खाने) के बग़ैर तो इंसान और दूसरी मख़्लूक़ात कुछ दिन ज़िंदा रह सकती है लेकिन पानी के बग़ैर ऐसा मुश्किल है बताया जाता है कि हमारे बदन (शरीर) का दो-तिहाई (two-third) हिस्सा पानी ही पर मुश्तमिल (आधारित) है किसी मरीज़ (बीमार) को ब-वक़्त ए ज़रूरत हॉस्पिटल में दाख़िल किया जाता है तो 'उमूमन (अक्सर) यह देखने में आता है कि उसे पानी की नलकी (नली) ज़रूर लगाईं जाती है यह भी बताया गया है कि इस काइनात (दुनिया) में दो-तिहाई हिस्सा पानी और सिर्फ़ एक तिहाई (तीसरा) हिस्सा ख़ुश्की का है या तीन चौथाई हिस्सा पानी और एक चौथाई हिस्सा ख़ुश्की का है अलबत्ता (लेकिन) कुर्रा-ए-अर्ज़ (ज़मीन) पर मौजूद पानी का 97.5 फ़ीसद (प्रतिशत) खारा है और बाकी पानी के एक फ़ीसद हिस्से तक ही इंसान की रसाई (पहुंच) है बाकी पीने के क़ाबिल (योग्य) पानी ज़मीन के नीचे और पहाड़ों की चोटियों पर है इस के बाद भी जो पानी बचता है वो पूरी दुनिया के लिए काफ़ी है अगर दुरुस्त तरीक़े से ख़र्च किया जाए हमारी और सारे जानवरों की जो भी ग़िज़ाएँ (खाना) है चाहे अनाज और सब्ज़ी की शक्ल (स्वरूप) में हो या फल फ़्रूट की शक्ल में इनकी अफ़ज़ाइश (बढ़ोतरी) का दार-ओ-मदार पानी ही पर है जैसे ही पानी की कमी होती है खेतियाँ सूखने लगती है ग़ल्ले (अनाज) कम पैदा होते है नतीजतन (नतीजे में) महँगाई बढ़ती है और ज़िंदगी मज़ीद (ज़ियादा) मुश्किल हो जाती है पानी की अहमियत का अंदाज़ा लगाना होतो तसव्वुर (कल्पना) कीजिए जब कभी कुछ देर के लिए हमारे घरों की टोंटियों से पानी आना बंद हो जाता है तो पूरा घर किस मशक़्क़त (तकलीफ़) से दो-चार होता है और उस वक़्त अगर कुछ पानी हमारे पास महफ़ूज़ (सुरक्षित) है तो किस एहतियात (सावधानी) से हम इसे ख़र्च करते हैं।
हम पहले भी बयान कर चुके हैं कि अल्लाह-त'आला मख़्लूक़ की ज़रुरत के मुताबिक़ पानी नाज़िल करता है और इसे महफ़ूज़ (सुरक्षित) रखने का इंतिज़ाम फ़रमाता है लेकिन हम इंसान अपनी
बे-एहतियात, लापरवाही और फ़ुज़ूल-ख़र्ची की वज़ह से बोहरान (संकट) का शिकार हो जाते हैं इस वक़्त दुनिया के अक्सर मुमालिक (देश) पानी की क़िल्लत (कमी) का सामना कर रहे हैं पानी की फ़राहमी (collection) के मस'अले (समस्या) को लेकर मुख़्तलिफ़ ममालिक के दरमियान (बीच में) मुख़ासमत (विवाद) और तकरार भी देखने में आती है बल्कि (किंतु) माहेरीन (experts) का यहां तक कहना है कि अगर तीसरी 'आलमी जंग हुई तो वो पानी के मस'अले ही को लेकर होगी।
यहां तक देखने में आता है कि एक ही मुल्क (देश) की दो रियासतों के दरमियान पानी के मस'अले पर तनाज़'आ (झगड़ा) होता है और बसा-औक़ात (कभी-कभी) मु'आमला 'अदालत-ए-'आलिया (high-court) तक हल के लिए पहुंच जाता है पानी के बे-दरेग़ (बे-हिसाब) इस्ते'माल ही का नतीजा है कि मौसम-ए-गर्मा (गर्मी) की आमद (आने) से महीनों पहले कुँवें, तालाब और नदी-नाले ख़ुश्क हो जाते हैं ज़ेर-ए-ज़मीन (ज़मीन के नीचे) की सत्ह मुसलसल (लगातार) तेज़ी से नीचे जा रही है यके बा'द दीगर (लगातार) आने वाली नित-नई मशीनें फ़ेल होती जा रही हैं नदियों और नालों में कारखानों और फ़ैक्टरियों की गंदगियां जा कर गिरतीं है रहाइशी इलाक़ों के सेवर का गंदा पानी भी इन ही नदियों में गिराया जाता है इन सबकी वजह से यह नदियां और नाले और उनका पानी इस्ते'माल के लाइक़ नहीं रह जाता तरक़्क़ी पज़ीर मुल्कों में तक़रीबन (लग-भग) 90, फ़ी-सद इंसानी ग़िलाज़त (गंदगी) बे-रोक-टोक आबी वसाइल में सामिल हो रही है यही वज्ह (कारण) है कि उन ममालिक में हैज़े, पेचिश (मरोड़) और मे'दे की दूसरी कई बीमारियों ने अपने पाँव मज़बूती से जमा लिए है 'आलमी सेहत की तंज़ीम (संस्था) के अंदाज़े के मुताबिक इन बीमारियों से हर साल 50, लाख लोग हलाक होते हैं बड़ी बड़ी फैक्ट्रियों से निकलने वाली गैस और कीमियाई मवाद (सामग्री) वजह से 'आलमी पैमाने पर दर्जा-ए-हरारत में बराबर इज़ाफ़ा (बढ़ोतरी) हो रहा है जिस की वजह से बड़े बड़े पहाड़ों पर बर्फ़ की शक्ल (स्वरूप) में जमे हुए पानी का स्टॉक पिगल पिगल कर ज़ाए' (बर्बाद) हो रहा है।
(जारी)
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