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Quran ki shikshaye kewal musalmano ke liye hi nahi sari manaw jati ke liye Dr jagdish

कुरान की शिक्षायें केवल मुसलमानों के लिए ही नहीं, सारी मानव जाति के लिए- डॉ जगदीश

सारी सृष्टि को बनाने वाला परमात्मा एक ही है

(1) ईद-उल-फितर सारे विश्व में भाईचारे को बढ़ावा देने वाला त्यौहार है
ईद उल-फितर रमजान उल-मुबारक के महीने के बाद खुशी के त्यौहार के रूप में मुसलमान भाई-बहिन मनाते हैं, जिसे ईद उल-फितर कहा जाता है। ईद उल-फितर इस्लामी कैलेंडर के दसवें महीने के पहले दिन मनाया जाता है। इस्लामी कैलेंडर के सभी महीनों की तरह यह भी नए चाँद के दिखने पर शुरू होता है। मुसलमानों का त्यौहार ईद मूल रूप से सारे विश्व में भाईचारे को बढ़ावा देने वाला त्यौहार है। इस त्यौहार को सभी आपस में मिल के मनाते हैं और खुदा से सुख-शांति और बरक्कत के लिए दुआएं मांगते हैं। पूरे विश्व में ईद की खुशी पूरे हर्षोल्लास से मनाई जाती है। किसी ने क्या खूब कहा है… रात को नया चाँद मुबारक, चाँद को चाँदनी मुबारक, फलक को सितारे मुबारक, सितारों को बुलंदी मुबारक, और आपको ईद मुबारक….!!!
(2) ईद में अल्लाह का शुक्रिया अदा करते हैं उन्होंने उपवास रखने की शक्ति दी
मुसलमानों का त्यौहार ईद रमजान का चांद डूबने और ईद का चांद नजर आने पर उसके अगले दिन चांद की पहली तारीख को मनाई जाती है। इस्लामी साल में दो ईदों में से यह एक है (दूसरा ईद उल जुहा या बकरीद कहलाता है)। उपवास की समाप्ति की खुशी के अलावा इस ईद में मुसलमान अल्लाह का शुक्रिया अदा इसलिए भी करते हैं कि उन्होंने महीने भर के उपवास रखने की शक्ति दी।
ईद के दौरान बढ़िया खाने के अतिरिक्त नए कपड़े भी पहने जाते हैं और परिवार और दोस्तों के बीच तोहफों का आदान-प्रदान होता है। सेवइयां इस त्यौहार की सबसे जरूरी खाद्य पदार्थ है जिसे सभी बड़े चाव से खाते हैं। ईद के दिन मस्जिदों में सुबह की प्रार्थना से पहले हर मुसलमान का फर्ज है कि वो दान या भिक्षा दे। इस दान को जकात उल-फितर कहते हैं। ईद के दौरान बढ़िया खाने के अतिरिक्त, नए कपड़े भी पहने जाते हैं और परिवार और दोस्तों के बीच तोहफों का आदान-प्रदान होता है। परम्परा यह है कि ईद उल-फितर के दौरान ही झगड़ों खासकर घरेलू झगड़ों को निबटाया जाता है।
(3) इस्लाम शब्द का अर्थ है शान्ति
इस्लाम धर्म में अच्छा इन्सान बनने के लिए बुनियादी पांच कर्तव्यों को अमल में लाना अति आवश्यक है। पहला ईमान – अल्लाह के परम पूज्य होने का इकरार। दूसरा नमाज, तीसरा रोजा, चौथा हज और जकात। इस्लाम के ये पांचों फराईज इन्सान को इन्सान से प्रेम, सहानुभूति, सहायता तथा हमदर्दी की प्रेरणा देते हैं। इस्लाम शब्द अरबी भाषा का है। इस्लाम का अर्थ है, इताअत (दान) करना, शरण लेना, अपने-आपको ईश्वर की मर्जी पर पूरी तरह से छोड़ देना।
‘इस्लाम’ शब्द जिस मूल धातु से बना है, उसका अर्थ है- शान्ति। इस्लाम धर्म को मानने वाले जब एक-दूसरे से मिलते हैं तो कहते हैं..अस्सलामोअ़लेकुम जिसका अर्थ होता है- आपको शांति मिले। इस्लाम धर्म के मूल में भी एकता, करूणा, समता, भाईचारा और त्याग की वही सीख प्रवाहित हो रही है, जो विश्व के अन्य धर्मों के मूल में है। एक अल्लाह को मानना, सबसे भाईचारा बरतना, पसीने की कमाई खाना, सदाचार का पालन करना- इस्लाम के रसूल हजरत मोहम्मद साहब का यह आदेश है।
(4) वही सच्चा मुसलिम है जो अल्लाह की शिक्षाओं पर ईमान लाता है
इस्लाम धर्म में ऐसा माना गया है कि जो आदमी नीचे लिखी पाँच बातों पर ईमान लाता है तथा इन पर विश्वास करता है, वही मुसलिम, वही ईमानवाला है:- (पहला) अल्लाह पर ईमान, (दूसरा) अल्लाह की किताबों पर ईमान, (तीसरा) फ़रिश्तों पर ईमान (चौथा) रसूलों पर ईमान (पांचवा) आखिरत पर ईमान। हम जीवन में जो भले-बुरे काम करते हैं, उनका फल हमें एक दिन भोगना पड़ेगा। एक दिन सबका न्याय होगा। उस दिन का नाम है – आखिरत। कोई नहीं जानना कि कब हमारे जीवन का अंतिम पल है। इसलिए रोजाना सोने के पूर्व अपने कर्मों का लेखा-जोखा कर लेना चाहिए। 5) सारी सृष्टि को बनाने वाला परमात्मा एक ही है  
मोहम्मद साहब का जन्म आज से लगभग 1400 वर्ष पूर्व मक्का में हुआ था। अल्पायु में अनाथ एवं यतीम हो जाने के कारण वे शिक्षा से वंचित रहे। केवल 12 वर्ष की आयु में वे अपने चचा के साथ व्यापार में लग गये। प्रभु की इच्छा और आज्ञा को पहचानते हुए मूर्ति पूजा छोड़कर एक ईश्वर की उपासना की बात पर तथा अल्ला की राह पर चलने के कारण मोहम्मद साहब को मक्का में अपने नाते-रिश्तेदारों, मित्रों तथा दुष्टों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा और 13 वर्षों तक मक्का में वे मौत के साये में जिऐ। जब वे 13 वर्ष के बाद मदीने चले गये तब भी उन्हें मारने के लिए कातिलों ने मदीने तक उनका पीछा किया। मोहम्मद साहब की पवित्र आत्मा में अल्लाह (परमात्मा) के दिव्य साम्राज्य से कुरान की आयतें 23 वर्षों तक एक-एक करके नाजिल हुई। कुरान में लिखा है कि खुदा रबुलआलमीन है। आलमीन के मायने सारी सृष्टि को बनाने वाला अल्लाह एक ही है। अर्थात खुदा सारी सृष्टि को बनाने वाला है तथा इस संसार के सभी इन्सान एक खुदा के बन्दे और भाई-भाई हैं। इसलिए हमें भी मोहम्मद साहब की तरह अपनी इच्छा नहीं वरन् प्रभु की इच्छा और प्रभु की आज्ञा का पालन करते हुए प्रभु का कार्य करना चाहिए।
परमात्मा ने मोहम्मद साहब के द्वारा ‘कुरान’ के माध्यम से मानव जाति को ‘भाईचारे’ का सन्देश दिया है। मोहम्मद साहब ने जो उपदेश दिये वे ‘हदीस’ में संगृहित हैं।

(6) मोहम्मद साहब ने सारी मानव जाति को मिल-जुलकर रहने का संदेश दिया  
पैगम्बर मोहम्मद ने उन बर्बर कबीलों के सामाजिक अन्याय के प्रति जिहाद करके समाज को उनसे मुक्त कराया। तथापि मानव जाति में भाईचारे की भावना विकसित करके आध्यात्मिक साम्राज्य स्थापित किया। मोहम्मद साहब का एक ही पैगाम था पैगामे भाईचारा। मोहम्मद साहब ने मक्का में जो लोग खुदा को नहीं मानते थे उनके लिए उन्होंने कहा कि वे खुदा के बन्दे नहीं हैं अर्थात वे काफिर हैं। इसी प्रकार जेहाद का मतलब अपने अंदर के शैतान को मारना है। वास्तव में मनुष्य जिस मात्रा में अल्ला की राह में स्वेच्छापूर्वक दुःख झेलता है उसी मात्रा में उसे अल्ला का प्रेम व आशीर्वाद प्राप्त होता है।
(7) भाईचारे की राह पर चलने पर ही सारी मानव जाति की भलाई है
मोहम्मद साहब ने अनेक कष्ट उठाकर बताया कि खुदा के वास्ते एक-दूसरे के साथ दोस्ती से रहो। आपस में लड़ना खुदा की तालीम के खिलाफ है। मोहम्मद साहब की शिक्षायें किसी एक धर्म-जाति के लिए नहीं वरन् सारी मानव जाति के लिए है। मोहम्मद साहब की बात को मानकर जो भी भाईचारे की राह पर चलेगा उसका भला होगा। मोहम्मद साहब ने अपनी शिक्षाओं द्वारा विश्व बन्धुत्व का सन्देश सारी मानव जाति को दिया। अल्ला की ओर से मोहम्मद साहब पर नाजिल (अवतरित) हुई कुरान की आयतें हमें अपने अंदर की जंग जीतने का सन्देश देती है। परमात्मा की ओर से आये पवित्र ग्रन्थों की शिक्षाओं को जीवन में धारण करना ही हमारे जीवन का मकसद है। यही सच्चा जेहाद है। मुसलमान के मायने जिसका अल्ला पर ईमान सच्चा हो। केवल रफीक, अहमद आदि नाम रख लेने से कोई मुसलमान नहीं हो जाता। मुसलमान बनने के लिए अल्ला की शिक्षाओं पर चलना जरूरी है।
(8) सारे विश्व में शान्ति स्थापित करने के लिए उसे एकता की डोर से बांधना पड़ेगा
ईश्वर एक है। धर्म एक है तथा सारी मानव जाति एक है। हम सभी परमात्मा की आत्मा के पुत्र-पुत्री हैं। इस नाते से सारी मानव जाति हमारा कुटुम्ब है। विश्व के लोग अज्ञानतावश आपस में लड़ रहे हैं। हमें उन्हें एकता की डोर से बाँधकर एक करना है। हमें बच्चों को बाल्यावस्था से ही यह संकल्प कराना चाहिए कि एक दिन दुनियाँ एक करूँगा, धरती स्वर्ग बनाऊँगा। विश्व शान्ति का सपना एक दिन सच करके दिखलाऊँगा। परमात्मा की ओर से अवतरित पवित्र पुस्तकों का ज्ञान सारी मानव जाति के लिए हैं। यदि बच्चे बाल्यावस्था से ही सारे अवतारों की मुख्य शिक्षाओं मर्यादा, न्याय, सम्यक ज्ञान (समता), करूणा, भाईचारा, त्याग तथा हृदय की एकता को ग्रहण कर लें तो वे टोटल क्वालिटी पर्सन बन जायेंगे। इस नयी सदी में विश्व में एकता तथा शान्ति लाने के लिए टोटल क्वालिटी पर्सन (पूर्णतया गुणात्मक व्यक्ति) की आवश्यकता है।
(नोट : संबंधित लेख में दिये गये तथ्यों की पुष्‍टि UPUKLive.com नहीं करता साथ ही लेख में हुई अभिव्यक्ति लेखक के निजी विचार हैं। UPUKLive का इससे सहमत होना जरूरी नहीं। UPUKLive लेखक के विचारों के प्रति किसी भी प्रकार से उत्‍तरदायी नहीं है।)
लेखक डॉ. जगदीश गांधी एक सामाजिक कार्यकर्ता, शिक्षाविद् और लेखक होने के साथ-साथ एक मोटीवेटर भी हैं, जो अपने लेखन व कार्यशालाओं के जरिए तरह तरह की मोटीवेशनल एक्टिविटी करते रहते हैं। डॉ. गांधी संप्रति सिटी मांटेसरी स्कूल के संस्थापक व प्रबंधक हैं

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Hindu dharm

عن عثمان قال قال رسول اﷲﷺ من مات و ہو یعلم انہ لاالہ الا اﷲ دخل الجنۃ (صحیح مسلم) حضرت عثمان غنی رضی اﷲ تعالیٰ عنہ سے روایت ہے کہ نبی کریمﷺ نے ارشاد فرمایا کہ جو شخص اس حال میں مرا کہ اسے اﷲ تعالیٰ کے ایک ہونے پر یقین تھا‘ وہ جنت میں داخل ہوگیا۔ تشریح: مذکورہ حدیث پاک میں اس بات کی کھلی وضاحت ہے کہ وہی شخص آخرت میں کامیاب و کامران ہوگا جو اﷲ تعالیٰ کی وحدانیت کا قائل رہا ہوگا اور اس کے ساتھ کسی کو شریک نہیں کیا ہوگا۔ اس کے علاوہ متعدد آیات قرآنیہ اور احادیث کریمہ میں اس بات پر بہت زور دیا گیا اور اسی کو دین کی اساس قرار دیا گیا۔ کیونکہ توحید کے بغیر دین بے جان و بے وقعت ہوکر رہ جاتا ہے۔ گزشتہ امتوں میں سب سے بڑی خرابی یہی رہی کہ وہ توحید الٰہی کے اعتقاد پر قائم نہ رہیں اور دنیاو آخرت میں رسوا اور ذلیل ہوکر رہ گئیں۔ قرآن و احادیث مبارکہ میں جابجا توحید کی تعلیم اور شرک کی بھرپور مذمت کی گئی ہے۔ اﷲ تعالیٰ ارشاد فرماتا ہے: اور تمہارا معبود ایک ہی معبود ہے‘ اس کے سوا کوئی معبود نہیں مگر وہی بڑی رحمت والا مہربان (البقرہ ۱۶۳) مزید ارشاد خداوندی ہے: اور کچھ لوگوں نے اﷲ کے سوا اور خدا بنالئے ہیں کہ ان سے اﷲ کی طرح محبت رکھتے ہیں اور (جبکہ ان کافروں کے برخلاف) ایمان والوں کے دلوں میں اﷲ کے برابر کسی کی محبت نہیں اور کیا حال ہوگا ان ظالموں (کافروں) کا جس وقت وہ دیکھیں گے کہ عذاب ان کی آنکھوں کے سامنے آئے گا کیونکہ سب سے زیادہ طاقتور تو اﷲ ہی ہے اور اس لئے بھی کہ اﷲ کا عذاب بہت سخت ہے (البقرہ ۱۶۵) ارشاد رب ذوالجلال ہے: اے سننے والے! اﷲ کے ساتھ کوئی دوسرا خدا نہ بنا (ورنہ) تو بیٹھا رہے گا اس حالت میں کہ تیری مذمت کی جائے گی (اور تو) بے یارومددگار ہوگا (بنی اسرائیل ۶۶) مذکورہ آیات مبارکہ کے علاوہ بھی متعدد آیات و احادیث کریمہ اس عنوان پر واضح ہیں۔ ایک مغالطے کا ازالہ ممکن ہے کہ کسی کے ذہن میں مغالطہ پیدا ہو کہ جب سب کچھ توحید الٰہی ہی ہے اور اﷲ تعالیٰ کو ایک ماننا ہی اسلام ہے‘ اسی کے فرمودات پر عمل کرنا ہی ایمان ہے تو پھر نبیﷺ کی اطاعت‘ تعظیم‘ محبت‘ اور ادب کرنے کی کیا ضرورت ہے؟ آپ ﷺ کا کام اﷲ تعالیٰ کے پیغامات پہنچانا تھا‘ وہ پہنچا دیا۔ اب آپﷺ سے کیا واسطہ؟ (نعوذ باﷲ من ذالک) اہل محبت کو شاید تعجب ہو کہ کسی کے ذہن میں کیا اتنا غلیظ مغالطہ آسکتا ہے؟ جی ہاں یہ ایک فرقہ باطلہ کا نظریہ ہے۔ اﷲ تعالیٰ ہمیں اس سے محفوظ رکھے۔ بہرحال تو اس مغالطہ غلیظہ کا جواب بھی ملاحظہ فرمالیجئے۔ اﷲ عزوجل ارشاد فرماتا ہے تو وہ جوانﷺ پر ایمان لائیں‘ ان کی تعظیم کریں‘ ان کی مدد کریں اور اس نور (یعنی قرآن مجید) کی پیروی کریں جو ان پر اترا‘ وہی لوگ کامیاب ہوئے (الاعراف ۱۵۷) ارشاد ربانی ہے۔ اے ایمان والو! اپنی آوازیں اونچی نہ کرو اس غیب بتانے والےﷺ کی آواز سے اور ان کی بارگاہ میں چلا کر بات نہ کرو‘ جیسے آپس میں ایک دوسرے کے ساتھ چلا کر بات کرتے ہو کہیں (اس کی پاداش میں) تمہارے اعمال برباد نہ ہوجائیں اور تمہیں خبر تک نہ ہو (الحجرات ۲) ارشاد عالی شان ہے۔ اے محبوب آپ فرمادیجئے کہ اگر تم اﷲ کی رضا چاہتے ہو تو میری اطاعت کرو تو اﷲ تم سے راضی ہوجائے گا اور تمہارے گناہوں کو معاف فرماد ے گا اور اﷲ بخشنے والا مہربان ہے (آل عمران ۳۱) ان مذکورہ آیات مبارکہ میں وضاحت فرمادی گئی ہے کہ ایمان کی جان توحید کی روح اصل اور توحید باری تعالیٰ کی لذت حضور نبی کریمﷺ کی تعظیم‘ ادب اور اطاعت میں پوشیدہ ہے اور یہ بھی واضح رہے کہ توحید باری تعالیٰ پر ایمان رکھنے کا مطلب ہرگز یہ نہیں ہے کہ صرف اﷲ تعالیٰ کو ایک مانا جائے اور بس! دوسرے اعمال کی ضرورت نہیں۔ بلکہ توحید پر ایمان رکھنے کا مطلب یہ ہے کہ اﷲ تعالیٰ کو ایک ماننے کے ساتھ ساتھ اس کے رسولﷺ پر ایمان لائے اور پھر اس کے بتائے ہوئے زریں اصولوں کے مطابق زندگی بسر کرے۔ اور وہ اصول و ضوابط کیا ہیں۔ ان پر عمل کس طرح کیا جائے تو یہ مسئلہ اﷲ رب کریم نے آسان فرمایا کہ میرے محبوبﷺ کی پیروی اور اطاعت کرو‘ وہی میرا راستہ ہے۔ اس پر چلوگے تو میں تم سے راضی ہوجائوں گا تم سے محبت فرمائوں گا اور تم کامیاب ہوجائو گے۔ اب جب یہ واضح ہوگیا کہ توحید ربانی پر ایمان حضورﷺ کی اطاعت و فرمانبرداری اور تعظیم کے بغیر مکمل نہیں ہوسکتا تو پھر یہ کہنا کہ نبیﷺ کی تعظیم و ادب اور اطاعت کی کوئی ضرورت نہیں۔ صرف اﷲ اﷲ کرو‘ نماز‘ روزے‘ حج وغیرہ کرو اور بس‘ انتہائی غداری اور غیر دانشمندی کا مظاہرہ ہے۔ تھوڑا سا بھی غور کریں تو بات خوب واضح ہوجاتی ہے کہ وہ نبیﷺ جن کے دربار میں اونچی آواز میں بات کرنے پر اتنی سخت وعید ہے کہ سارے اعمال برباد کردیئے جائیں گے تو پھر ان کی تعظیم نہ کرنے کا سوچنا کس قدر شرانگیز اور بربادی اعمال کا سبب بن سکتا ہے۔ بہرحال اب ہم اپنے اصل موضوع کی طرف چلتے ہیں۔ ہم اس سے پہلے کے مضامین میں اﷲ تعالیٰ کی وحدانیت اور اس کے ساتھ کسی کے شریک نہ ہونے پر عقلی اور نقلی دلائل کا ذکر کرچکے ہیں۔ اور آج کے عنوان میں ہم یہ بتانا چاہیں گے کہ جہاں ایسے بے شمار لوگ ہیں جو اﷲ تعالیٰ کی وحدانیت کے قائل اور اس پر ایمان رکھتے ہیں تو دوسری طرف ایسے لوگ بھی بہت ہیں جن کو یہ تک نہیں معلوم کہ ان کے معبود اور خدا کتنی تعداد میں ہیں؟ کیونکہ ان کے مذہب میں خدا انگنت اور بے شمار ہیں۔ عجیب و غریب واہیات و بے کار عقائد کے حامل لوگ ہیں۔ ایسے لوگوں میں ہندو مذہب کے پیروکار سرفہرست ہیں۔ ہم بلامبالغہ تاریخ کی روشنی میں اس مذہب کو بیان کریں گے اور سب مقام ان کے عقائد و نظریات کی تردید بھی کریں گے۔ لیکن ایک بات ذہن میں رکھئے گا کہ دنیا کے تمام مذاہب میں سب سے پیچیدہ ترین مذہب ہندو مذہب ہے‘ جو سب سے زیادہ غلط نظریات اور عقائد کا حامل ہے۔ ہندو مذہب کی ابتداء ہندو فارسی زبان کا لفظ ہے‘ اس کے معنی ہیں چودہ غلام وغیرہ۔ اسی وجہ سے آریا سماج کے بانی سوامی دیانند جی اور پنڈت لیکھرام نے اس نام کے خلاف غصے کا اظہار کیا اور کہا کہ ہمیں ہندو کی بجائے ’’آریا‘‘ کہلانا چاہئے (کلیاٹ آریا مسافر از پنڈت لیکھرام) آریا کے معنی ہیں غیر ملکی‘ اجنبی۔ چنانچہ وہ لوگ جو دوسرے ممالک سے بھارت پہنچے وہ آریا کہلائے۔ ان آریوں کے وطن کے بارے میں اختلاف ہے لیکن نئی تحقیق کے مطابق ان کا اصل وطن ’’ازبکستان‘‘ ہے دراصل آریوں کی آمد سے پہلے ہندوستان کے باسی بت پرستی میں مشغول ہوچکے تھے۔ ان میں دو دیوتائوں کی پوجا بہت زیادہ رواج پائی ’’وشواوریشو دیوتا اس کے بعد ایک تیسرے دیوتا کو بھی ان دونوں کے ساتھ ملادیا اور وہ ہے ’’برہماجی‘‘ اس طرح ہندوئوں میں تریمورتی (یعنی تین دیوتائوں) کا تصور عام ہوگیا۔ تو جب آریا قوم ہندوستان میں داخل ہوئی تو وہ بھی وہاں کے رہنے والوں کی ثقافت اور معاملات سے نہ بچ سکی بلکہ وہ لوگ بھی ان کے نقش قدم پر چل پڑے اور بت کے پجاری بن گئے۔ اس طرح سے ایک ہندو دھرم سامنے آیا۔ لیکن یہ بھی یاد رہے کہ اس کی ابتداء کم و بیش دو ہزار ۲۰۰۰ سال پہلے ہوئی ہے۔ یعنی بہت قدیم مذہب ہے۔ ہندوئوں کی مذہبی کتب ان کی مذہبی کتابوں کو دو قسموں میں تقسیم کیا جاتا (شرتی) یعنی وہ کتابیں جو کانوں سے سنی گئیں (۲) سمرتی یعنی وہ کتابیں جو باپ دادوں کی طرف سے پہنچیں۔ پہلی قسم میں مذہبی کتابیں ’’ویدیں‘‘ شامل ہیں اور دوسری قسم میں بھگوت گیتا وغیرہ کتابیں شامل ہیں۔ وید وہ کتاب ہے جو ہندوئوں دو ہزار سال کے عرصہ میں مختلف علوم و رسوم سے متعلق جمع کی ہے۔ ویدیں اپنے معافی و مفاہیم کے اعتبار سے چار طرح کے ہوتے ہیں۔ ۱۔رگ وید یہ سارا وید نظم کی صورت میں ہے۔ اس کے دس ہزار (۰۰۰’۱۰) منتر ہیں۔ اس میں خڈائوں کی تعریف سے متعلق گیت ہیں اور دیوی دیوتائوں سے دعائیں مانگی گئی ہیں۔ ۲۔ یجر وید یہ وید قربانیوں کے موقع پر گایا جاتا ہے۔ ۳۔ سام وید یہ رات اور گیت پر مشتمل کتاب ہے۔ اس کے تمام منتر رگ وید سے ماخوذ ہیں جوکہ مخصوص لوگوں میں گائے جاتے ہیں۔ ۴۔ استحصرو وید اس میں کل چھ ہزار منتر ہیں۔ اس کا زیادہ وہ حصہ جادو سے متعلق ہے اور یہ کتاب آریائوں کے حالات بھی بتاتی ہے۔ اصلی وید کے متعلق ہندو علماء کا نظریہ مہا بھارت شانتی پرو شلوک ۱۳۴۷۵ میں لکھا ہے ’’دوأسر (یہ ان کے ہاں ایک جن کا نام ہے) جنہوں نے دیوتا پریہما جی کو دنیا پیدا کرنے میں مدد دی تھی۔ وید کو چرا کر لے گئے (دعوت فکر ہے اہل دانش کے لئے کہ وہ خدا ہی کیا ہے جو دوسروں کی مدد کا محتاج ہو اور پھر مددگار بھی دھوکہ دہی کرنے والا) اس سے معلوم ہوتا ہے کہ موجودہ وید اصلی نہیںہیں اور جس مذہب کی بنیادی کتابیں ہی اصلی نہ ہوں تو اس کی حقیقت کیا ہوسکتی ہے؟ اگرچہ اصلی وید بھی کوئی اعلیٰ نہیں تھے۔ اسی طرح ویدوں کی تعداد کے بارے میں بھی شدید اختلاف پایا جاتا ہے۔ پہلے ایک وید تھا پھر زیادہ ہوتے گئے۔ اب تو ان کی تعداد بے شمار ہے۔ جیسا کہ تیتریہ برہمن میں ہے کہ ’’ویدبے شمار ہیں‘‘ باقی آئندہ شمارے میں ملاحظہ فرمائیں ویدیں تحریف سے محفوظ نہیں ہیں سوامی دیانند نے رگ وید آری بھاشیہ بھومکا ہندی ص ۸۶۰ پر اور لیکھرام نے کلیات آریہ مسافر میں اور مہابھاشیہ کے مصنف نے لکھا ہے کہ اتھروید کا پہلا منتر ’’اوم شنودیوی‘‘ ہے جبکہ موجودہ اتھرووید میں یہ منتر چھبیسویں نمبر پر آتا ہے۔ اسی طرح مذکورہ وید کے منتروں کی تعداد میں بھی اختلاف ہے۔ سائیں بھاشیہ نے ۵۹۷۷ سیوک لال نے ۵۰۴۷ ساتولیک نے ۷۰۰ ویدک سدھانت نے ۴۰۰ بتاتے ہیں۔ اس کے علاوہ اور بھی بے شمار اختلافات ہیں۔ کوئی بھی وید تحریف اور لغو باتوں سے خالی نہیں ہے۔ ویدوں کے نامعلوم مصنف یہ بات تو واضح ہے کہ ویدیں غیر الہامی کتابیں ہیں جیسا کہ کتاب ’’سروانو کرنی‘‘ میں لکھا ہے کہ ’’جس کا کلام ہے وہ رشی ہے‘‘ اب رشی کون ہے؟ تو یہ واضح رہے کہ رشی کسی خدا یارسول یا نبی کو نہیں کہتے ہیں۔ بلکہ ویدوں کے شاعر رشی کہلاتے ہیں۔ لفظ رشی کے معنی ہیں ’’منتر دیکھنے والا‘‘ (یعنی توجہ سے منتر کو دیکھنے والا اور بنانے والا) جیسا کہ ’’تیتریہ برہمن میں ہے کہ عقلمند رشی منتروں کے بنانے والے ہیں‘‘ رگوید منڈل ۱۰ سوکت ۶۲ منتر ۵ میں ہے ’’شاعر پنڈت‘ رشیوں کی اولاد اور شاگرد رشی کہلائے۔ نرکت ۷:۱ میں ہے جس دیوتا سے کوئی تمنا پوری ہونے کی آرزو کرکے رشی نے اس کی تعریف کی وہ اس منتر کا دیوتا کہلاتا ہے۔ ان تمام حولہ جات سے واضح ہوا کہ ویدیں غیر الہامی کتابیں ہیں اس کے منتر کسی خدا‘ نبی‘ رسول کے نہیں ہیں۔ خود ان ریشوں نے بھی کبھی اپنے نبی یا رسول یا خدا ہونے کا دعویٰ نہیں کیا۔ اب ہم اصل بات کی طرف چلتے ہیں کہ ان ویدوں کے مصنف کون ہیں؟ اس بارے میں ہندو علماء میں شدید اختلاف ہے۔ ایک نظریہ یہ ہے کہ برہما جی تمام دیوتائوں میں سب سے پہلے ہے (حالانکہ یہ بات واضح ہوچکی ہے پہلے ان کے ہاں دو دیوتا وشنو اور شیو تھے پھر برہمانامی دیوتا کو یعنی ان کو ساتھ ملالیا گویا یہ بعد کا ہے) وہی تمام عالم کا خالق اور رازق ہے۔ اس کے چار منہ تھے۔ ایک ایک منہ سے ایک ایک وید نکلا تو چار وید بن گئے۔ (یہ بات بھی ہم ثابت کرچکے ہیں کہ اب ان ویدوں کی تعداد چار نہیں بلکہ بے شمار ہے) کہتے ہیں کہ: اس کے مشرقی منہ سے رگ وید جنوبی منہ سے یجروید مغربی منہ سے سام اید اور شمالی منہ سے اتھرو وید نکلا ہے۔ا یک اور نظریہ یہ بھی ہے کہ وید ۴۱۴ رشیوں کا کلام ہے اور ایک نظریہ کے مطابق یہ چار رشیوں کا کلام ہے۔ جس نظریئے کے مطابق ویدوں کے مصنفین ۴۱۴ ہیں۔ ان کے نام بھی ویدوں میں مذکور ہیں۔ لیکن ان کے حالات و کردار واضح نہیں ہیں اور یہ بات بھی ٹھوس نہیں ہے کہ مصنفین وہی ۴۱۴ ہی ہیں اور یہ اختلاف اپنی حقیقت کے ساتھ موجود ہے۔ جیسا کہ ڈاکٹر داس گپتا کا خیال ہے کہ رگ وید کے منتر نہ تو کسی ایک شخص کے تصنیف ہیں نہ کسی ایک زمانے کی یہ منتر غالبا مختلف زمانوں میں مختلف رشیوں نے تصنیف کئے۔ خدائوں کی تعداد میں اختلاف یجروید میں لکھا ہے کہ دیوتا کی کل تعداد ۳۳ ہے۔۱۱ زمین پر ۱۱ آسمان میں اور ۱۱ جنت میں۔ رگویہ منڈل ۳ سوکت ۹ منتر ۹ میں ہے کہ یہ تعداد ۳۳۴۰ ہے۔ رگ وید کے مطابق ۳۳۳۱ دیوتائوں نے مل کر آگ دیوتا کو گھی سے سینچا اور اس کے پاس گئے تو یہ ایک دیوتا کا اضافہ ہوا‘ یوں ان کی تعداد ۳۳۴۰ بنی۔ اس کے علاوہ ذاتی‘ گھریلو اور گائوں کے بھی الگ الگ دیوتا ہیں۔ گائے بھی دیوتا ہے۔ الغرض ان کے بے شمار دیوتائوں کی تعداد تقریبا ۳۳ کروڑ بنتی ہے (نگار خدا نمبر ص ۶۶) ہندو متعصب کیوں ہیں؟ ہندوئوں کی مذہبی کتب ’’ویدوں‘‘ میں ظالمانہ احکام کی بھرمار ہے۔ جس سے واضح ہوتا ہے کہ ہندوئوں کا تعصب اور دوسری اقوام سے مخالفت ان کی مذہبی تعلیم ہے۔ اس مذہب میں دوسری اقوام کے متعلق ظالمانہ اور غیر انسانی احکام دیئے گئے ہیں جس کی وجہ سے ہندو قوم متعصب دوسروں کو ناپاک سمجھتی ہے اور زمین کو دوسری اقوام اور دوسرے مذاہب (خواہ وہ اسلام ہو یہودیت ہو یا عیسائیت اور کوئی اور مذہب) کے ماننے والوں سے پاک کرنا فرض اور ضروری سمجھتی ہے۔ اس رو سے ہنوئوں سے امن کی توقع رکھنا انتہائی احمقانہ فعل قرار دیا جاسکتا ہے۔ کیونکہ ان کے مذہب کے مطابق ہندو وہی ہے جواپنے ہندوئوں کے علاوہ دوسروں کو ناپاک اور واجب القتل سمجھے اور اس کی کوشش بھی کرے۔ اب اب کی تعلیمات ملاحظہ کیجئے۔ ہندو مذہب کی ظالمانہ تعلیمات ۱۔ دھرم کے مخالفوں کو زندہ آگ میں جلادو (یجرویدا دھیاء ۱۳ منتر ۱۲ دیانند بھاش) ۲۔ دشمنوں کے کھیتوں کو اجاڑو یعنی گائے ‘ بیل‘ بکری اور لوگوں کو بھوکا مار کر ہلاک کرو (ایضا منتر ۱۳) ۳۔ اپنے مخالفوں کو درندوں سے بھڑو ڈالو (یجروید ۱۵‘۱۷‘۱۹) ۴۔ ان کو سمندر میں غرق کرو (یجر وید ۱۵:۱۶) ۵۔ جس طرح بلی چوہے کو تڑپا تڑپا کر مارتی ہے اسی طرح ان کو تڑپا تڑپا کر مارو (یجروید ۱۶:۶۵) ۶۔ ان کی گردنیں کاٹ دو (یجر وید ۵: ۲۲) ۷۔ جائز اور ناجائز طریق سے ہلاک کردو (یجر وید ۱:۲۸) ۸۔ ان کو پائوں کے نیچے کچل دو اور ان پررحم نہ کرو (یجر وید ۱۷:۳۹) قارئین! ان تمام باتوں سے واضح ہوا کہ ہندو دیگر اقوام مذہب کے ماننے والوں کو زندہ کیوں جلاتے ہیں۔ ان کے گھر‘ کھیتی‘ اور مال مویشیوں کو کیوں جلاتے اور برباد کرتے ہیں۔ یہ بھی معلوم ہوا کہ وہ اس چیز سے باز بھی نہیں آئیں گے کیونکہ اس غلیظ حرکت کو چھوڑنا ان کے مذہب کے خلاف ہے۔ عورتوں کے متعلق بدترین احکام ۱۔ عورتوں کے ساتھ محبت نہیں ہوسکتی عورتوں کے دل درحقیقت بھیڑیوں کی بھٹ ہیں (رگوید منڈل ۱۰ سوکت ۹۵ منتر ۱۵) ۲۔ اندر نے خود یہ کہا کہ عورت کا دل استقلال سے خالی ہے اور یہ عقل کی رو سے ایک نہایت ہلکی چیز ہے (رتوید منڈل سوکت ۳۳ منتر ۱۷) ۳۔ عورت اور شودر دونوں کو نردھن (یعنی مال سے محروم) کیا گیا ہے (یجروید ادھیاء ۸ منتر ۵ ‘ منودھیاء ۸ شلوک ۴۱۶ ادھیاء ۹ شلوک ۱۹۹) ۴۔ لڑکی باپ کی جائیداد کی وارث نہیں (اتھروید کانڈا سوکت ۱۷ منتر وغیرہ کتب) ۵۔ اگر کسی بیوہ کو اپنے خاوند کی طرف سے جائیداد ملتی ہے تو اسے جائیداد کی بیع و فروخت کا کوئی اختیار نہیں (اتھروید کانڈا سوکت ۱۷ منتر ۱) ۶۔ عورت دوسرا نکاح نہیں کرسکتی کیونکہ ایک جائیداد (جو اس کو دوسرے فوت شدہ شوہر سے ملی ہے) بلاوجہ دوسرے کے فیضہ میں نہیں جاکستی (منو ۱۵:۱۵۱) ۷۔ عورت خلع نہیں لے سکتی (یعنی مرد کتنا ہی ظالم یا دائم المریض کیوں نہ ہو‘ عورت کو اس سے علیحدہ ہونے کا کوئی حق نہیں) منو ۵: ۱۵۴) ۸۔ عورت کو جوئے میں ہارنا اور فروخت کرنا جائز ہے(نرکت ۳:۴) ۹۔ جس لڑکیوں کے بھائی نہ ہوں ان کی شادی نہیں ہوسکتی (اتھرو وید ۱:۱۷:۱) ۱۰۔ عورت کے لئے مذہبی تعلیم ممنوع ہے (منو ۹:۱۸) ۱۱۔ کسی عورت کی صرف لڑکیاں ہوں تو وہ لڑکے پیدا کرنے کے لئے نیوگ کرے (ستیارتھ پرکاش باب ۴ مضمون نیوگ) نیوگ کیا چیز ہے اس کی وضاحت آگے آرہی ہے۔ ذات کی تقسیم جہاںہندو مذہب میں بے شمار برائیاں ہیں‘ وہیں ان میں ذات پات کی غیر اخلاقی تقسیم بھی ہے۔ اس فعل میں ان کی مذہبی کتب کا اہم کردار ہے۔ ملاحظہ ہو۔ ہندو مذہب میں قوم کو چار قسموں میں تقسیم کیا گیاہے (۱) براہمن قوم (۲) کشتری قوم (۳) ویش قوم (۴) شودر قوم وید میں ہے کہ برہمن پرماتما کے منہ سے کشتری بازوئوں سے ویش رانوں سے شودر پائوں سے پیدا ہوا (رگ وید باب ۱۰ بھجن ۹۰ ص ۳۸ ‘ یجروید ‘ اتھرو وید) وید کے لئے برہمن حکومت کے لئے چھتری (کشتری) کاروبار کے لئے و بیش اور دکھ اٹھانے کے لئے شودر کو پیدا کیا ہے۔ (یجروید ۳۰:۵) برہمنوں کے لئے وید کی تعلیم اور خود اپنے اور دوسروں کے لئے دیوتائوں کو چڑھاوے دینا اور دان (چندہ) لینے دینے کا فرض قرار دیا (منو شاستر باب اول ۸۸) چھتری کو اس نے حکم دیا کہ مخلوق کی حفاظت کرے دان دے چڑھاوے چڑھائے وید پڑھے اور شہوات نفسانی میں نہ پڑے (منو شاستر باب اول ۸۹) ویش کواس نے حکم دیا کہ وہ مویشی کی سیوا کرے‘ وان دے‘ چڑھاوے چڑھائے ‘ تجارت لین دین اور زراعت کرے (منو شاستر باب اول ۹۰) شودر کے لئے قادر مطلق نے صرف ایک ہی فرض بنایا ہے وہ ہے ان تینوں (برہمن قوم‘ کشتری قوم اور ویش قوم کی خدمت کرنا) (منو شاستری باب اول ۹۱) قارئین آپ نے ملاحظہ کیا کہ ہندو ذات میں چار قسمیں کی گئی ہیں۔ پہلی قوم یعنی برہمن کو اعلیٰ اس کے بعد کشتری اس کے بعد ویش کو رکھاگیا اور چوتھے نمبر پر شودر قوم کو رکھا گیا اور اس قوم کا کام صرف ان مذکورہ اقوام کی خدمت کرنا ہے۔ اس طرح برہمن قوم کے ہر گناہ اور خطا کو معاف قرار دیا جیسے منوشاستری میں ہے کہ ’’جس برہمن کو رگوید یاد ہو وہ بالکل گناہ سے پاک ہے اگرچہ وہ تینوں اقوام کو ناس کردے یا کسی کا بھی کھانا کھالے (باب نہم ۲۶۲) سزائے موت کے عوض برہمن کاصرف سر مونڈا جائے لیکن اور ذات کے لوگوں کو سزائے موت دی جائے گی (باب ہشتم ۳۷۹) شودر جس عضو سے برہمن کی ہتک کرے اس کا وہ عضو کاٹ دیا جائے(منو باب دوم ۳۸۱) وید سننے پر (شودر کے) دونوں کانوں میں سیسہ ڈال دو بڑھے تو زبان کاٹ دو یاد کرے تو دل چیر دو (باب چہارم منو شاستری) ذات پاک کی یہ تقسیم آج تک موجود ہے۔ الحمدﷲ علی احسانہ اہل کس قدروخوش نصیب ہیں کہ اﷲ تعالیٰ نے ہمیں اسلام دیا اور ایسی غلیظ تقسیم سے محفوظ بنایا۔ ہندو مذہب کے بنیادی عقائد ہندوئوں کے ہاں جہاں اخلاقیات کا فقدان ہے اور بے شمار خرافات ہیں اور انسانیت سوز مظالم ہیں وہیں کچھ انسانیت سوز عقائد بھی ہیں۔ ملاحظہ کیجئے۔ نیوگ اس عقیدے کا مطلب ہے کہ اگر کوئی عورت بیوہ ہوجائے تو وہ دوسرا نکاح نہیں کرسکتی۔ اگر چاہے تو شہوت کی تسکین کے لئے دوسرے مرد کے پاس جاسکتی ہے اور اولاد پیدا کرسکتی ہے لیکن شادی نہیں کرسکتی۔ اسی طرح عورت کے ہاں اگر صرف لڑکیاں ہوں‘ لڑکے پیدا نہ ہوتے ہوں تو شوہر کے ہوتے ہوئے بھی وہ زیادہ سے زیادہ دس مردوں کے پاس علیحدہ علیحدہ جاسکتی ہے۔ اس طرح اگر بالکل اولاد نہ ہو تو بھی یہ حکم ہے (ستیارتھ پرکاش ص ۱۳۸) غور کیجئے! ایسی عورت کا معاشرہ میں کیا مقام ہوسکتا ہے؟ ایک خاوند والی عورت غیر خاوند والی کی عزت کیا ہے؟ ہر ایک جانتا ہے‘ پھر شوہر فوت ہوجائے تو معزز زندگی گزارنے کے لئے اسلام نے رہنما اصول وضع کئے ہیں۔ تناسخ سنسکرت والے اس کو اواگوان کہتے ہیں۔ اس کا مطلب یہ ہے کہ انسان کا گناہوں یا نیکیوں کا باعث بار بار جنم لینا۔ ان کا عقیدہ ہے کہ روحوں کی تعداد محدود ہے۔ خدا مزید روح پیدا نہیں کرسکتا۔ اس لئے روحوں کو اواگوان کے چکر میں ڈال دیتا ہے اور ہر روح گناہ کے بدلے ایک لاکھ چوراسی ہزار مرتبہ مختلف شکلوں میں جنم لیتی ہی (کٹھ پنشد ۵:۷) انسان کی روح‘ گدھے گھوڑے‘ بلی دیگر حیوانات‘ گاجر مولی‘ مرچ وغیرہ نباتات‘ جمادات میں داخل ہوجاتی ہے۔ اور یہ سب حیوانات ‘ نباتات‘ جمادات پچھلے جنم میں انسان تھے‘ گناہوں کی وجہ سے ان شکلوں میں ہوگئے۔ اسی طرح انسانوں کا دکھ بیماری میں مبتلا ہونا پچھلے جنم میں گناہوں میں مبتلا ہونے کی وجہ سے ہے (منڈک ۱:۲) تناسخ کا رد تناسخ کے عقیدے سے معلوم ہوتا ہے کہ سب سے پہلے انسان تھا پھر سے یہ انسان گناہوں کی وجہ سے پودا بن گیا‘ جانور بن گیا‘ پتھر ہوگیا وغیرہ۔ حالانکہ آج کی سائنس یہ ثابت کرچکی ہے کہ انسان کی پیدائش سے کروڑوں سال پہلے اس دنیا میں صرف نباتات‘ جمادات اور حیوانات ہی بستے تھے۔ نیز یہ بات عقل کے بھی خلاف ہے کیونکہ انسان تو حیوانات ‘ نباتات اور جمادات کا محتاج ہے ان کے بغیر اسکا گزر بسر نہیں ہوسکتا تھا تو لامحالہ پہلے وہ چیزیں موجود تھیں پھر انسان کو پیدا کیا گیا۔ اسلام حضور علیہ الصلواۃ والسلام نے ارشاد فرمایا ’’بہترین مسلمان وہ ہے جس کے ہاتھ اور زبان سے دوسرے مسلمان محفوظ رہیں‘‘ اسلام امن و سلامتی والا دین و مذہب ہے اس میں سب کے حقوق برابر ہیں۔ انصاف اور قانون سب کے لئے برابر ہے حضور نبی کریمﷺ کی تعلیمات یہی ہیں کہ تمام انسانوں کے لئے قانون یکساں خواہ وہ کسی بھی ذات اور قوم کا ہو‘ اگرچہ نبیﷺ کی اولاد کیوں نہ ہوں سب سے بڑے عظیم صحابی حضرت ابوبکر صدیق رضی اﷲ عنہ کیوں نہ ہوں‘ دنیا نے دیکھا کہ حبشہ کے باشندہ حضرت بلال حبشی رضی اﷲ عنہ جب اسلام قبول کرتے ہیں آقا علیہ الصلواۃ والسلام کی غلامی اختیار کرتے ہیں تو وہ عرب و عجم کے مسلمانوں کے آقا بن جاتے ہیں۔ اسلام میں اگر کوئی اعلیٰ ہے تو وہ صرف تقویٰ‘ پرہیزگاری‘ اور اعمال صالحہ کی بناء پر ہے۔ عدل کے حوالے سے اﷲ تعالیٰ کا فرمان ہے۔ ’’انصاف کرو اگرچہ قریبی رشتہ دار کیوں نہ ہو‘‘ (الانعام ۱۵۲) کسی بھی بے گناہ انسان کے قتل کو پوری انسانیت کا قتل قرار دیا (مائدہ ۳۲) خواہ وہ انسان غلام یا کافر کیوں نہ ہو۔ اسلام میں انسان تو انسان کسی جانور کو اذیت دینا بھی حرام ہے۔ اس کو مارنا ممنوع ہے جبکہ آپ نے ہندو مذہب کو پڑھا کہ وہ برہمن کے علاوہ دیگر اقوام کو کچھ سمجھتے ہی نہیں ہیں۔ اسی طرح اپنے مذہبی افراد کے علاوہ دیگر لوگوں کو قتل کرناضروری سمجھتے ہیں۔ اور ذات پات کی تقسیم نے معاشرے کو اس قدر برباد کردیا کہ بڑے بڑے ہندو دانشور اس نحوست کو مٹانے کی آرزوئیں لئے اس دنیا سے چلے گئے۔ الغرض الحمدﷲ! اگر انسانیت کو انسانیت کے درست مقام سے باور کرایا تو وہ صرف اسلام میں ہے۔ اسلام پر انسان کے حقوق کو مساوی قرار دیتا ہے اور حفاظت بھی کرتا ہے۔ مسلمان خواتین کے لئے لمحہ فکریہ قارئین! آپ نے ہندو معاشرے میں عورتوں کے حقوق ملاحظہ کئے اس مذہب کے علاوہ مغربی معاشرہ بھی ہندو معاشرے سے پیچھے نہیں ہے۔ عورتوں کے حقوق ان کے ہاں بھی کیا ہیں؟ سب کو معلوم ہیں۔ لیکن اﷲ تعالیٰ نے جہاں غیر مسلم خواتین کے حقوق کا تعین فرمایا وہیں اسلام میں بھی عورتوں کو اعلیٰ مقام سے نوازا۔ ماں کا درجہ دیا۔ بہن اور بیٹی کا درجہ دیا اور ان کے ساتھ حسن سلوک کا حکم دیا۔ ان کے ساتھ ناانصافی کرنے والوں کے لئے وعید سنائی گئی۔ لیکن مقام فکر ہے ان مسلم خواتین کے لئے کہ پرامن مذہب اسلام کی تعلیمات کو چوڑ کر غیر مذہب معاشرے کی گرویدہ ہوگئیں۔ عصر حاضر کا تقاضا دور حاضر میں سب سے زیادہ جس چیز کی ضرورت ہے وہ ہے ’’امن‘‘ آپ نے ہندو مذہب کو ملاحظہ کیا۔ اس کے علاوہ اس سے پہلے دیگر مذاہب کو بھی پڑھا اور ان مذاہب کے پیروکاروں اور رہنمائوں کو آتے دیکھ بھی رہے ہیں۔ لیکن ان میں قیام امن کا کوئی ایسا قانون یا منصوبہ نہیں ہے جوکہ قابل عمل ہو۔ ہر مذہب میں کہیں نہ کہیں بے شمار پیچیدگیاں ضرور ہیں کیونکہ وہ مذاہب اﷲ تعالیٰ کے مقرر کردہ اصول و ضوابط کے مطابق نہیں ہیں۔ جبکہ اسلام ہی وہ واحد مذہب ہے جس پر عمل پیرا ہوکر دنیا میں امن قائم کیا جاسکتا ہے۔ جس کی واضح مثال سیدنا محمدﷺ کے نظریات اور آپﷺ کے صحابہ بالخصوص حضرت ابوبکر صدیق رضی اﷲ عنہ اور عمر فاروق رضی اﷲ عنہ کے دور خلافت ہیں۔ اس مذہب کی کتاب ’’قرآن مجید‘‘ ہر قسم کی تبدیلیوں سے پاک ہے۔ جبکہ ہندو مذہب کا عقیدہ تناسخ بھی انسانیت کی کھلی توہین اور عقل کے خلاف ہے اور اسلام میں تو ایسے عقیدے کی کوئی گنجائش نہیں ہے اور ہم نے واضح کیا ہے کہ مذکورہ عقیدہ سائنسی نقطہ نظر کے بھی خلاف ہے۔ قرآن مجید میں ہے۔ بے شک وہ (بمعہ موت) دنیا میں واپس نہیں آئیں گے (الانبیاء ۹۵) الحاصل عصر حاضر کے مقتضی امن وامان کی بحالی‘ انسانیت کے حقوق و فلاح وبہبود صرف اسلام ہی فراہم کرسکتا ہے۔ اﷲ تعالیٰ ہمیں حق بات سمجھنے کی توفیق عطا فرمائے۔ آمین بجاہ النبی الکریم الامینﷺ (نوٹ: اس کے بہت سے اقتباسات دیگر کتب کے علاوہ مذاہب عالم کا تقابلی مطالعہ از پروفیسر چوہدری غلام رسول چیمہ‘ تقابل ادیان و مذاہب از پروفیسر میاں منظور احمد‘ مذاہب عالم کا انسائیکلو پیڈیا از مسٹر لیوس مور سے لئے گئے ہیں)

Hindu rashtr

[26/01 10:17 AM] aqisaiyed: معروف بھارتی مؤرخ گیا نیندر پانڈے نے شری ابھے کمار دوبے کی تالیف کردہ ہندی کتاب ۔سامپر دایکتا کے ستروت(فرقہ واریت کے مآخذ )1993میں شایع اپنے مضمون ۔ہم میں سے ہندو کون ہیں ۔میں لکھا ہے کہ’ہندو راشٹر‘اصطلاح کی تاریخ 1920کے دہے سے قبل کہیں نظر نہیں آتی ۔ اس اصطلاح کا اولین استعمال سوامی شردھا نند کی کتاب ۔ہندو سنگھٹن :سیویر آف دی ڈائینگ ریس(ہندو تنظیم
ایک قریب ا لمرگ نسل کی محافظ )1924میں ملتا ہے ۔ان سے قبل کے برہمن مصلحین بال گنگا دھر تلک اور سوامی دیا نند سرسوتی کی تحریریں بھی اس سے خالی ہیں ۔ ہاں اس کے بعد دامودر ونایک ساورکر اور ایم ایس گول والکر کی تحریروں میں یہ اصطلاح مزید وضاحتوں کے ساتھ نظر آتی ہے ۔ لفظ ہندو راشٹر کا یہ تصور کہ بھارت صرف ہندوؤں کا ملک ہے سب سے پہلے سوامی شردھا نند کی مذکورہ کتاب ہی میں نظر آتاہے ۔ ہم اس سے پہلے بھی لکھ چکے ہیں کہ لفظ ہندو ۔ ہندی ،سنسکرت یا پالی نہیں فارسی زبان کا لفظ ہے جس کے متعدد معانی میں سے ایک سیاہ،کالے رنگ والا بھی ہیں ۔خواجہ حافظ شیرازی کی ایک غزل کا مشہور مصرع ہے کہ :بخال ِ ہندووش بخشم سمر قند و بخارا را یعنی میں نے اس کے سیاہ تل پر سمر قند و بخا را بخش دیے۔سوامی شردھا نند کو اپنے پیشرو اور بعد میں آنے والے برہمن مفکرین اور مصلحین کی طرح یہ فکرستارہی تھی کہ جو کام مسلمانوں نے اپنے دور حکومت میں نہیں کیا تھا وہ انگریزوں نے اپنے ساٹھ ستر سال کے دور حکومت میں کر دکھایا تھا کہ شودروں اور اچھوتوں پر ہزاروں سال سے بند تعلیم کے دروازے انہوں نے کھول دیے تھے اور اس بیداری کا پہلا نتیجہ یہ ہواتھا کہ دلتوں نے برہمنی دھرم کی بیڑیوں کو توڑ کر اسلام اور عیسائیت کو قبول کرنا شروع کر دیا تھا ۔دلتوں میں بابا صاحب اَمبیڈکر ،جیوتی با پھولے اور راما سوامی پیریار وغیرہ مصلحین کے فروغ کا سہرا ،اَنگریزوں کی اِسی فراخدلی کے سر ہے! اِن برہمن مصلحین کی پریشانی کا سب سے بڑا سبب بابا صاحب امبیڈکر تھے جنہوں نے 13اکتوبر 1935کو یہ تاریخی اعلان کیا کہ’’میں ہندو دھرم میں پیدا ہوا تھا یہ میرے بس کی بات نہیں تھی لیکن میں ہندو رہتے ہوئے نہیں مروں گا ،یہ میرے بس کی بات ہے ۔ ۔پھر انہوں نے 31 مئی 1936کو بمبئی میں مہار دلت پریشد بلا کر اپنے دلت بھائیوں کو تفصیل سے یہ بتایا کہ انہیں کیوں اپنا مذہب تبدیل کرنا ہے ۔ انہوں نے یہ تقریر مراٹھی میں کی تھی لیکن اب ہندی اردو اور انگریزی سمیت متعدد زبانوں میں اس تاریخی تقریر کے ترجمے موجود ہیں ۔ انہوں نے کہا کہ ۔۔(دلتوں پر ہونے والے )یہ مظالم ایک سماج پر دوسرے سماج کے ذریعے ہونے والے مظالم اور نا انصافیوں کا معاملہ ہیںیہ صرف ایک انسان پر دوسرے انسان کے ذریعے ڈھائے جانے والے مظالم یا نا انصافیوں کا معاملہ نہیں ۔ یہ ایک طبقے پر دوسرے طبقے کی جانب سے ہونے والے ظلم ،زبردستی ،نا انصافی،استحصال اور استیصال کا سوال ہے ۔ دلتوں پر یہ ظلم ہندو دھرم کے نام نہاد اعلی ذات والے کرتے ہیں ۔ اس لیے نہیں کہ دلت ان کا کچھ بگاڑ رہے ہیں بلکہ اس لیے کہ دلتوں پر ظلم کرنا وہ اپنا مذہبی حق سمجھتے ہیں جو ان کے (منو اسمرتی جیسے ) دھرم گرنتھوں نے انہیں دے رکھا ہے ۔ دلتوں کو اگر اس ظلم سے نجات حاصل کرنی ہے تو اس کے لیے انہیں قوت حاصل کرنا ضروری ہے‘‘۔ بابا صاحب امبیڈکر نے اپنی اس مشہور تقریر میں کہا کہ’’ہندو دھرم ہمارے پوروجوں کا دھرم نہیں ان پر زبر دستی تھوپی گئی غلامی تھی۔ اِس غلامی سے نجات کے لیے ضروری قوت اُن کے پاس نہیں تھی لیکن آج ہمارے پاس وہ قوت ہے اب ہم غلامی کی ان زنجیروں کو توڑ سکتے ہیں لہذا اگر آپ کو انسانیت سے محبت ہے ،اگر آپ سماج میں برابری سے جینے کا حق چاہتے ہیں ،اگر آپ زندگی میں کامیابی اور آزادی چاہتے ہیں تواس کا واحد حل یہی ہے کہ آپ اپنا مذہب تبدیل کر لیجیے ‘‘۔
اس کے بعد بابا صاحب امبیڈکر نے اپنی تقریر میں عیسائیت ،اسلام اور سکھ مذاہب کا تفصیلی موازنہ پیش کیااور یہ ثابت کیا کہ صرف اسلام ہی ایک ایسا دین ہے جو دلتوں کو ان کے تمام انسانی حقوق واپس دلا سکتا ہے ۔ لیکن اس کے بعد کے بیس برسوں میں کیا کچھ ہوا اور ان پر کس کس طرح کے دباؤ پڑے اس کی اپنی ایک طویل تاریخ ہے ۔بالآ خر 14 اکتوبر 1956کو اپنے ہزاروں پیرووں کے ساتھ انہوں نے ہندو دھرم سے ناطہ توڑ کر بودھ دھرم اختیار کر لیا ۔حالانکہ اگر وہ مسلمان ہو گئے ہوتے اور تبدیلی مذہب میں انہوں نے اتنا زیادہ وقت نہ لیا ہوتا اور ملک کی آزادی سے قبل ہی اپنے تمام ماننے والوں کے ساتھ اسلام قبول کر لیا ہوتا تو اول تو اُن کے ساتھ ہزاروں نہیں ، لاکھوں بلکہ کروڑوں دلت مسلمان ہو گئے ہوتے اوردوسرے یہ کہ آج حالات یکسر مختلف ہوتے ‘‘ ۔ آج بھی مسلمانوں کے لیے کرنے کا سب سے بڑا کام یہی ہے کہ اپنی تمام انفرادی اور اجتماعی غلطیو ں کا اعتراف کرتے ہوئے ا
[26/01 10:23 AM] aqisaiyed: اللہ سے استغفار کریں اور باہمی نفاق و افتراق کو چھوڑ کر متحد ہو جائیں ،قرآنی حکم کے مطابق حصول قوت کریں کہ ۔عصا نہ ہو تو کلیمی ہے کار ِ بے بنیاد ! اور صرف اپنے لیے جینے کے بجائے تمام مستضعفین فی ا لا رض کے فلاح و بہبود کے لیے جئیں ،خود بھی سچ بولیں ، سچوں کے ساتھ رہیں اور موت کا خوف دل سے نکال دیں کہ سچے ہونے کا قرآنی معیار یہ ہے کہ وہ موت کی تمنا کرتے ہیں ،موت سے ڈرتے نہیں اگر ہم یہ سب کرتے ہیں تو اللہ کی مدد پھر ہمارے شامل حال ہو سکتی ہے ورنہ وہ غنی ہے، وہ جس سے چاہے اپنے کام لے سکتا ہے -دنیا کو تو بہر حال ظلم و دہشت کی انتہا تک پہنچ کرکامل انصاف اور دائمی امن کی طرف پلٹنا ہے ۔اور دنیا کے تمام جھوٹوں ،منافقوں خود غرضوں اور ظالموں کو بہت جلد معلوم ہو جانے والا ہے کہ انہوں نے کتنی بری کمائی کی ہے ۔و سیعلمو ا ا لذین ظلموا ای منقلب ینقلبون۔!
(بصیرت فیچرس)