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छोटे बच्चे की शर्म-गाह को हाथ लगाने से वुज़ू टूट जाता है या नहीं ? Chhote bachche ki sharmgah ko hath lagane se wujuh tut jata he ya nahi

छोटे बच्चे की शर्म-गाह को हाथ लगाने से वुज़ू ?

छोटे बच्चे की शर्म-गाह को हाथ लगाने से वुज़ू टूट जाता है या नहीं ? Chhote bachche ki sharmgah ko hath lagane se wujuh tut jata he ya nahi

बिल-ख़ुसूस (ख़ास-कर) ख़वातीन (औरतों) को बच्चे की सफ़ाई करते वक़्त या धोते वक़्त हाथ लगाना पड़ता है तो क्या उससे उनका वुज़ू बरक़रार रहता है या टूट जाता है ?

इस हवाले से 'उलमा की दो आरा (मत) में से राजेह (सहीह) यही है कि छोटे बच्चे की शर्म-गाह को हाथ लगने से वुज़ू नहीं टूटता या'नी (मतलब) अगर किसी का वुज़ू हो और उस दौरान (समय) बच्चे की सफ़ाई वग़ैरा करनी पड़ जाए जिससे उसकी शर्म-गाह को हाथ लग जाता है तो उससे वुज़ू पर कोई असर नहीं पड़ता बल्कि (किंतु) वुज़ू बरक़रार और सहीह रहता है

तफ़्सील यूँ हैं कि बच्चे की शर्म-गाह का हुक्म बड़े लोगों वाला नहीं होता मसलन जैसे 'अलावा ज़ौजैन (मियाँ-बीवी के सिवा) किसी बड़े की शर्म-गाह को देखना या छूना हराम है जबकि (हालाँकि) छोटे बच्चे की शर्म-गाह को देखना हराम नहीं होता इसे ब-वक़्त-ए-ज़रूरत देख भी सकते हैं या सफ़ाई के लिए छू सकते हैं।


➡️ जैसा कि शैख़-उल-इस्लाम इब्ने तैमिया रहिमहुल्लाह फ़रमाते हैं:

عورة الصغير لا حكم لها ، ولذلك يجوز مسها.

" छोटे बच्चे की शर्म-गाह का कोई हुक्म नहीं होता इस लिए इसे छूना जाइज़ है "

 (شرح العمدة : 1/ 245)

➡️ 'अल्लामा मर्दावी रहिमहुल्लाह फ़रमाते हैं:

لا يحرم النظر إلى عورة الطفل والطفلة قبل السبع , ولا لمسها ، نص عليه الإمام أحمد. 

" सात साल से छोटे बच्चे या बच्ची की शर्म-गाह को देखना या छूना हराम नहीं है यह मसअला इमाम अहमद रहिमहुल्लाह से नस्सन साबित है "

 (الإنصاف : 8/ 23)

➡️ इमाम इब्ने कुदामा रहिमहुल्लाह ने इमाम ज़हरी और अवजाई रहिमहुल्लाह के हवाले से बयान किया है:

لا وضوء على من مس ذكر الصغير لأنه يجوز مسه والنظر إليه. 

" छोटे बच्चे की शर्म-गाह को छूने पर वुज़ू नहीं है क्यूंकि इसे छूना या देखना जाइज़ है "

 (المغنی : 1/ 133)

➡️ शैख़ मोहम्मद बिन सालेह अल-उसैमीन रहिमहुल्लाह फ़रमाते हैं:

ما دون سبع سنين عند الفقهاء ليس لعورته حكم ، بل عورته مثل يده ، ولهذا يجوز النظر إليها ، ولا يحرم مسها.

" फ़ुक़हा के हां (वहाँ) सात साल से छोटे बच्चे की शर्म-गाह का कोई हुक्म नहीं होता बल्कि (लेकिन) वो इस के हाथ की तरह होती है इस लिए उसे देखना जाइज़ है और उसे छूना भी हराम नहीं "

 (الشرح الممتع : 5/ 275)

➡️ 'अल्लामा कासानी हनफ़ी रहिमहुल्लाह फ़रमाते हैं:

حُكْمَ الْعَوْرَةِ غَيْرُ ثَابِتٍ فِي حَقِّ الصَّغِيرِ وَالصَّغِيرَةِ.

" छोटे बच्चे और बच्ची पर शर्म-गाह

का हुक्म लागू नहीं है "

 (بدائع الصنائع : 1/ 305)


वज़ाहत: जिस हदीष में ज़िक्र है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:

 مَنْ مَسَّ ذَكَرَهُ فَلْيَتَوَضَّأْ. 

" जिस ने अपनी शर्म-गाह को छूया वो वुज़ू करे " 

(سنن ابی داود : 181، سنن الترمذی : 82، صحیح.)

इस का त'अल्लुक़ (संबंध) छोटे बच्चे के साथ नहीं जैसा कि ऊपर बयान हो चुका कि वो बड़ो के हुक्म में है नीज़ (और) हदीष से मुराद (मतलब) भी यह है कि शर्म-गाह को छूने से वुज़ू तब टूटता है जब बिला-वास्ता (डाइरेक्ट) बग़ैर किसी हाइल (आड़) के और शहवत के साथ हाथ लगे 

जैसा कि सय्यदना अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:

«إذا أفْضى أحَدُكُمْ بِيَدِهِ إلى فَرْجِهِ، ولَيْسَ بَيْنَهُما سِتْرٌ ولا حِجابٌ، فَلْيَتَوَضَّأْ»

" जब तुम में से कोई अपना हाथ उस हालत में शर्म-गाह की तरफ़ बढ़ाए कि हाथ और शर्म-गाह के दरमियान (बीच में) कोई रुकावट न हो तो वो वुज़ू करे "

صحیح ابن حبان : 1118 وسندہ حسن، وانظر مسند أحمد ط ؛الرسالہ (14/ 130) 

और सय्यदना तल्क़ रज़ियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ से शर्म-गाह को छूने पर वुज़ू के मुत'अल्लिक़ (बारे में) पूछा गया तो आप ने फ़रमाया:

إِنَّمَا هُوَ بَضْعَةٌ مِنْكَ، أَوْ جَسَدِكَ. 

" वो आपके जिस्म (शरीर) का ही तो एक टुकड़ा है "

(سنن ابی داود : 182، سنن الترمذی : وسندہ صحیح.)

  इस हदीष से मा'लूम हुआ कि अगर जिस्म (शरीर) के दूसरे आ'ज़ा (अंग) हाथ, नाक, कान, चेहरे वग़ैरा की तरह ही शर्म-गाह को बिला-शहवत हाथ लग जाए तो वुज़ू नहीं टूटता

और बच्चे की शर्म-गाह में तो क़त'ई तौर पर (बिल्कुल) एसी कोई चीज़ नहीं होती लिहाज़ा (इसलिए) शर्म-गाह को छूने पर वुज़ू करने वाली हदीष से इस्तिदलाल (दलील पेश) नहीं किया जा सकता 

वल्लाहु-आ'लम।

  शैख़ मोहम्मद बिन सालेह अल-उसैमीन रहिमहुल्लाह से सवाल किया गया कि अगर औरत बच्चे की शर्म-गाह को हाथ लगाए तो क्या उससे वुज़ू टूट जाता है ?

  तो उन्होंने फ़रमाया:

لا ينتقض وضوء المرأة إذا هي غسلت ولدها ومست ذكره أو فرجه.

" जब औरत अपने बच्चे को धोती है और उस दौरान (समय) उस की शर्म-गाह को हाथ लगा लेती है तो उससे वुज़ू नहीं टूटता "

(لقاء الباب المفتوح : 9/ 49)

नोट:

  इस सिलसिले में रसूलुल्लाह ﷺ से मर्वी रिवायत कि

 ((إنَّ حُرْمَةَ عَوْرَةِ الصَّغِيرِ كَحُرْمَةِ عَوْرَةِ الكَبِيرِ.)) 

ग़ैर साबित व सख़्त मुनकर है,

 (المستدرک للحاکم : 3/ 288 ، وعلى فرض صحته فهو محمول على من يبلغ حد الشهوة أو على الندب كما فى السراج المنير للعزيزى (٣/ ٣٥٩)

ख़ुलासा-ए-कलाम:

  हासिल-ए-बहस यह है कि छोटे बच्चे की शर्म-गाह को हाथ लगने से वुज़ू नहीं टूटता इस लिए बच्चों की सफ़ाई वग़ैरा करते वक़्त हाथ लग जाए तो उन का पहले से किया हुआ वुज़ू बरक़रार रहेगा इस पर कोई असर नहीं पड़ेगा सिर्फ़ अपने हाथ धो कर नमाज़ वग़ैरा अदा की जा सकती है।

وما توفیقی إلا باللہ ۔

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लेखक: हाफ़िज़ मोहम्मद ताहिर

हिंदी अनुवाद: अब्दुल मतीन सैयद


क्या कपड़ा या ऊन के मोज़ा पर मस्ह करना दुरुस्त है ? | Kya kapda Ya Unn ke Mozon par Masah karna Durust hai?

क्या कपड़ा या ऊन (wool) के मोज़ा पर मस्ह करना दुरुस्त है ?|Kya kapda Ya Unn ke Mozah par Masha karna Durust hai?


  ठंडी का मौसम है शुमाली (north) हिंदुस्तान और दीगर (अन्य) 'इलाक़ो में ठंडी सख़्त (बहुत ज़ियादा) होती है लोग ठंडी से बचने के लिए गर्म कपड़े और मोज़ा पहने होते हैं 'उमूमन (अक्सर) ठंडी में जब नमाज़ के लिए वुज़ू करना होता है तब मोज़ा को निकालना बहुत मुश्किल गुज़रता है इसी को देखते हुए शरी'अत ने आसानियां पैदा की हैं और मोज़ा को निकालने के ब-जाए (बदले में) इस के ऊपरी हिस्से पर मस्ह करने का हुक्म (आदेश) दिया है मोज़ा अगर चमड़े का होतो उस पर मस्ह करने के मुत'अल्लिक़ (बारे में) कोई इख़्तिलाफ़ (मतभेद) नहीं लेकिन क्या कपड़े या ऊनी मोज़े पर मस्ह किया जाएगा यह सवाल हमेशा से गर्दिश करता है और लोग ला-'इल्मी (अज्ञानता) की वजह (कारण) से शरी'अत की एक रुख़्सत (इजाज़त) से फ़ाइदा (लाभ) नहीं उठा पाते कई लोगों को जो ऑफ़िस में काम करते हैं हर-वक़्त मोज़ा निकालते देखा तो ज़ेहन (मन) में यह सवाल आया कि क्यूं न इस मसअला (विषय) पर 'उलमा की आरा (राय) को क़लम-बंद कर दिया जाए तो लोगों के शुकूक-ओ-शुब्हात (शंकाएं) का इज़ाला (निवारण) हो जाए ज़ैल (नीचे) के सुतूर (लकीरें) में नस (लेख) और 'उलमा के अक़्वाल (कथन) की रौशनी-में (सामने रख के) इस मसअला का जाइज़ा लिया जाएगा।

  ख़ुफ़्फ़ या'नी (मतलब) चमड़े के मोज़े के 'अलावा (सिवा) कपड़े के मोज़े पर मस्ह करना पंद्रह (15) से ज़ाइद (अधिक) अहादीस से साबित है तवालत (लंबाई) के ख़ौफ़ (डर) से सारे अहादीस को यहां ज़िक्र करने से गुरेज़ करते हुए चंद को ज़िक्र किया जाएगा।

(1) हज़रत मुग़ीरा बिन शोबा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नबी-ए-करीम ﷺ ने वुज़ू किया और अपने जौरब या'नी कपड़े के मोज़े पर और चमड़े के मोज़े पर मस्ह किया।
(सुनन अबू दाऊद 'अल्लामा अल्बानी ने इसे सहीह क़रार दिया है) जौरब या'नी कपड़े के मोज़े पर मस्ह करना सहाबा की एक जमा'अत से साबित है
इमाम अबू दाऊद रहिमहुल्लाह अपनी सुनन में फ़रमाते हैं:
हज़रत अली बिन अबू-तालिब, इब्ने मसऊद, बरा बिन आज़िब, अनस बिन मालिक, अबू उमामा, सह्ल बिन साद, अम्र बिन हुरैस रज़ियल्लाहु अन्हुमा अज्म'ईन से कपड़े के मोज़े पर मस्ह करना साबित है हज़रत उमर बिन खत्ताब और अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से भी जौरब (मोज़ों) पर मस्ह करने का सुबूत रिवायत में मौजूद है जौरब (मोज़ों) पर मस्ह करने के 'अदम-जवाज़ (जायज़ न होने) में किसी भी सहाबी का क़ौल (कथन) नहीं है लिहाज़ा (इसलिए) यह इज्मा' (सहमति) और हुज्जत (दलील) है बा'ज़ (कुछ) सहाबा व ताबि'ईन के नज़दीक कपड़े के मोज़े पर और चमड़े के मोज़े पर मस्ह करने की रुख़्सत (छुट्टी) में कोई फ़र्क़ नहीं है बल्कि (किंतु) दोनों हुक्म में मुसावी या'नी बराबर हैं (जो हुक्म चमड़े के मोज़ा पर मस्ह करने का है वहीं हुक्म कपड़े के मोज़े पर मस्ह करने का भी है)
इन्हीं आसार में से एक असर (निशान) याहया अल-बका का है फ़रमाते हैं:
मैं ने हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा को फ़रमाते सुना: " जौरब या'नी कपड़े के मोज़े पर मस्ह करना ख़ुफ़्फ़ या'नी चमड़े के मोज़े पर मस्ह करने के ही जैसे है " (मुसन्नफ़ अब्दुल रज़्ज़ाक़:1/201 हदीष नंबर:782, मुसन्नफ़ इब्न अबी शैबा:1/173 हदीष नंबर:1994 और इस की सनद " हसन " है)

  अल-अज़रक़ बिन क़ैस फ़रमाते हैं कि मैं ने अनस बिन मालिक को देखा कि उन्होंने हदस (नापाकी) लाहिक़ होने के बाद अपने चेहरे (मुंह) और दोनों हाथ को धोया फिर सर का मस्ह किया और फिर अपने ऊनी मोज़े पर मस्ह किया मैं ने उनसे कहा:
आप ने इन दोनों (ऊनी मोज़े) पर मस्ह किया ? हज़रत अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया: यह दोनों भी मोज़े ही हैं बस फ़र्क़ इतना है कि ऊन के हैं।
(الدولابی فی الکنی والاسماء، رقم: 1009
इसे अहमद शाकिर ने सहीह क़रार दिया है)

  इमाम अबू 'ईसा तिर्मिज़ी फ़रमाते हैं कि मैं ने सालेह बिन मुहम्मद अल-तिर्मिज़ी को फ़रमाते हुए सुना कि मैं ने अबू मक़ातिल अल-समरक़ंदी को फ़रमाते हुए सुना वो फ़रमाते हैं कि मैं एक दिन इमाम अबू हनीफ़ा रहिमहुल्लाह जब मरज़-उल-मौत में मुब्तला थे तो उन की ज़ियारत को गया तो मैंने देखा कि इमाम अबू हनीफ़ा रहिमहुल्लाह ने वुज़ू के लिए पानी मँगाया और वुज़ू करने के बाद अपने दोनों मोज़े जो कपड़े के थे पर मस्ह किया फिर फ़रमाया: मैं ने आज वो 'अमल (काम) किया है जिसे मैं ने पहले कभी नहीं किया था मैं ने अपने उन मोज़े पर मस्ह किया जो चमड़े के नहीं हैं।
(सुनन तिर्मिज़ी:1/169)

  इमाम इब्राहीम अल-नखई रहिमहुल्लाह फ़रमाते हैं:
" जिस ने भी कपड़े के मोज़े पर मस्ह करने से ए'राज़ (इंकार) किया गोया (जैसे) वो शैतान है
(مصنف ابن ابی شیبہ: 164/1، رقم: 1885، تحقيق الألباني لرسالة "المسح على الجوربين و النعلين" القاسمي (58)

मोज़ा पर मस्ह करने के शुरूत (शर्तें)

  मोज़ा ख़्वाह (चाहे) चमड़े का हो या ग़ैर चमड़े का उस पर मस्ह करने के ज़ैल (नीचे की) शुरूत (शर्तें) हैं:

(1) उन दोनों को वुज़ू की हालत में पहना गया हो।
(2) दोनों के दोनों पांव साफ़ हो।
(3) मोज़े पर मस्ह सिर्फ़ (केवल) हदस-ए-असग़र में ही होगा अकबर जैसे जनाबत या ग़ुस्ल वाजिब करने वाले ग़ुस्ल में नहीं।
(4) मस्ह एक मशरू' वक़्त-ए-मुहद्दद में ही होगा मुक़ीम (निवाशी) के लिए एक दिन और एक रात और मुसाफ़िर के लिए तीन दिन और तीन रात और मस्ह के वक़्त का ए'तिबार (भरोसा) मस्ह के वक़्त से होगा न कि मोज़ा पहनने के वक़्त से।

दलील:
(1) हज़रत मुग़ीरा बिन शोबा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है फ़रमाते हैं:
मैं एक सफ़र में नबी-ए-करीम ﷺ के साथ था मैं आप का मोज़ा निकालने के लिए झुका तो आप ﷺ ने फ़रमाया: छोड़ दो मैं ने वुज़ू की हालत में पहना था फिर आप ने दोनों पर मस्ह किया।
(बुख़ारी और मुस्लिम)

(2) हज़रत सफ़वान बिन अस्साल रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है फ़रमाते हैं कि नबी-ए-करीम ﷺ ने हमें हुक्म दिया कि जब हम सफ़र में रहें या मुसाफ़िर की हालत में क़ियाम करें तो तीन दिन और तीन रात अपने मोज़े को सिवाए जनाबत या'नी हदस-ए-अकबर लाहिक़ होने के न निकाले और क़ज़ा-ए-हाजत (पाख़ाना) या नींद की वजह (कारण) से न निकाले अलबत्ता (लेकिन) वक़्त-ए-मुक़र्ररा गुज़र जाए तो निकाले।
(तिर्मिज़ी: हदीष हसन सहीह)

मोज़ा पर मस्ह करने का तरीक़ा

मोज़ा ख़्वाह (चाहे) चमड़े का हो या कपड़े का पर मस्ह करने का तरीक़ा यह है कि उसके ऊपरी हिस्से पर उँगलियों के किनारों से मस्ह किया जाएगा।
दलील: हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं: मैं ने नबी-ए-करीम ﷺ को मोज़े के ज़ाहिरी (ऊपरी) हिस्से पर मस्ह करते हुए देखा।
(सुनन अबू दाऊद)

कपड़े या ऊनी मोज़ा पर मस्ह करने के जवाज़ में ताबि'ईन के अक़्वाल (कथन)

ताबि'ईन की एक बड़ी जमा'अत जौरब या'नी कपड़े के मोज़े पर मस्ह करने के क़ाइल है चंद अक़्वाल मुलाहज़ा हो

(1) हज़रत सईद बिन मुसय्यिब रहिमहुल्लाह फ़रमाते हैं:
कपड़े या ऊन का मोज़ा मस्ह करने में चमड़े के मोज़े के हुक्म में ही है या'नी इस पर भी वैसा ही मस्ह होगा जैसे चमड़े के मोज़े पर होता है।

(2) हज़रत 'अता रहिमहुल्लाह से जौरब (मोज़ा) पर मस्ह के मुत'अल्लिक़ (बारे में) सवाल किया गया तो उन्होंने फ़रमाया:
हां इस पर वैसे ही मस्ह करो जैसे चमड़े के मोज़े पर करते हो।
(मुसन्नफ़ इब्न अबी शैबा:1/173)

(3) इब्राहीम नखई रहिमहुल्लाह के नज़दीक कपड़े के मोज़े पर मस्ह करने में कोई हरज नहीं है।

(4) आ'मश से कपड़े के मोज़े पर मस्ह करने के मुत'अल्लिक़ (बारे में) सवाल हुआ कि क्या कोई कपड़े का मोज़ा पहने रात गुज़ारा हो तो उस पर मस्ह कर सकता है ?
तो उन्होंने हां में जवाब दिया।

(5) हसन बसरी के नज़दीक जौरब (मोज़ा) और ख़ुफ़्फ़ मस्ह करने के हुक्म में बराबर हैं।

(6) जौरब पर मस्ह करने के क़ाइलीन (मानने वालों) में सईद बिन जुबैर, नाफ़े' मौला बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा,'अकर्मा, अब्दुल्लाह बिन मुबारक रहिमहुल्लाह भी हैं।

(7) सुफ़्यान अल-सूरी फ़रमाते हैं कि अबू 'अम्र ने फ़रमाया कि कपड़े के मोज़े पर मस्ह करने के क़ाइलीन ताबि'ईन में से अता बिन अबी रबाह, हसन अल-बसरी, सईद बिन अल-मुसय्यिब, अल-नखई, हसन बिन अबी सालेह, इब्ने अल-मुबारक, ज़फ़र, अहमद और इसहाक़ रहिमहुल्लाह हैं।

'अल्लामा इब्ने हज़्म रहिमहुल्लाह फ़रमाते हैं:
मोज़ा पर मस्ह करने के लिए चमड़े का होना शर्त लगाना बे-मा'ना (बेकार) है क्यूंकि इस का ज़िक्र न क़ुरआन में है और न ही सुन्नत में न ही क़ियास में और न ही किसी के क़ौल में कपड़े के मोज़े पर मस्ह करने से रोकना ग़लत है क्यूंकि यह नबी ﷺ से साबित-शुदा सुन्नत आसार-ए-सहाबा व ताबि'ईन के ख़िलाफ़ है नबी ﷺ ने मोज़े पर मस्ह करने में चमड़े का होना ही ख़ास नहीं किया है यही क़ौल इब्ने तैमियाह रहिमहुल्लाह का भी है।

'अल्लामा इब्न अल-हम्माम फ़तह अल-क़दीर में इस तावील (व्याख्या) के रद में फ़रमाते हैं:
मोज़े पर मस्ह करने के जवाज़ (सहीह होने) को चमड़े के साथ ख़ास करना दलील का मोहताज है और इसे ज़रुरी क़रार देना बिला-वजह (बेबुनियाद) है या'नी मोज़ा पर मस्ह करना यह जाइज़ है और इसे चमड़े का होना के साथ मशरूत (सीमित) कर देना बिला-दलील है।

ख़ुलासा (निचोड़): मोज़ा ख़्वाह (चाहे) चमड़े का हो या कपड़ा या ऊन का उस पर मस्ह करना सहीह और साबित है।
वल्लाहु-आ'लम

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लेखक: 'आबिद जमाल सलफ़ी

हिंदी अनुवाद: अब्दुल मतीन सैयद




KHUSHK NAJASAT MAZAR NAHI

KHUSHK NAJASAT MAZAR NAHI

Question :
Kia peshab jab khushk hujaye to is jagah per bethny sy kapry napak nahi hoty? yani aik bachy ny zameen per peshab kia, yh peshab issi tarhan zameen per majod raha aur dhouay bagair hi khushk hugaya,aik shakhs aya aur is khushk zameen per baith gaya to kia is sorat mai is k kapry napak ho jayain gey?
Answer :
khushk najasat ka jism ya khushk kapron per lagna gair mazar hai, issi tarhan khushk nangy paon khushk gusal khany mai dakhil hona bhi gair mazar hai.najsat sirf ter (geeli) huny ki sorat mai suraiyat kerti hai. (shiekh ebn jabreen)

MOZON PER MASAH KI SHARAIT AUR KYA JOOTON KA SATH NAMAZ JAIZ HAI

MOZON PER MASAH KI SHARAIT AUR KYA JOOTON KA SATH NAMAZ JAIZ 
Question :
Roee,oun ya nailon ki bani huwi in jarabon per bhi masah jaiz hai jo ajj kal istemal hoti hain? mozon per masah ki kia sharait hain? kia joty k sath namaz ada kerna jaiz hai?
Answer :
Aisi jarabon per masah jaiz hai jo pak houn aur qadam ko chupai huway jis tarhan mozon per masah jaiz hai Qk hadis sy sabit hai k NAbi (S.A.W) ny jarabon aur mozon per masah farmaya.Hazraat Sahaba Karaam R.A. ki aik jamat sy bhi sabit hai k unhuny jarabon per masah kia. Jarabon aur mai fark yh hai k mozay chamry sy banaye jaty hain jab k jarab roi wagaira sy banai jati hai.mozon aur jarabon per mmasaah ki shartain yh hain k woh paon ko chupai huway houn, inhain bahalat taharat pehna gaya ho.muqeem aik din raat aur musafir 3 din raat k liye masah ker sakta hai,wqt ka agaaz be wazo huny k baad masah sy shumar hoga ta k is masly mai warid tamam ahadis per amal hujaye.aisy joton mai namaz jaiz hai jo pak aoun aur in ki koi najis cheez na lagi huwi hu Qk Nabi kareem (S.A.W) sy sabit hai k App (S.A.W) ny NAalain mai namaz ada farmai.
Hazrat Abu saeed khudri R.A. ki ravayat mai hai:

"Jab tum mai sy koi masjid mai aye to woh dekh ley,agar is k joton mai koi gandagi ho to issy ragar ker saaf ker ley aur in mai namaz parh ley."
Sanan Abi Daud'hadis650.
Jab masjid mai daryaan qaleen wagaira bichy houn to phirziadah aihteyat is mai hai k admi joty utar ker kisi munasib jagah rakh dy ya inhain aik dosry k opar rakh ker apny paon mai rakh ly ta k namaziyon k liye masjid ka farsh kharab na hu. WaAllah Walee Al toufeeq. (Shiekh Ebn Baaz)

AURAT KI SHARAM GAAH SY NIKALNY WALIRATOBAT KA HUKAM

AURAT KI SHARAM GAAH SY NIKALNY WALIRATOBAT KA HUKAM

Question :
Mai ny aik aalim sy suna k aurat ki sharamgah sy nikalny wali ratobat pak hai.Mai ny jab sy yh fatwa suna to namaz ada kerny k liye mutasra shalwar nahi utarti thi.arsadaraz k baad aik dosry alim sy suna k aisi ratobat paleed hai.is bary mai darust baat kon si hai?
Answer :
Qabal ya daber (aagy ya pichy waly hissey) sy nikalny wala pani wagaira naqaz wazu hai.woh kapry ya badan ko lag jaye to issy dhona zarori hai agar yh daimi amar ho to iska hukam Estehaza aur sals albol wala hai,yani aurat ko istanja kerny k baad her namaz k liye wazo kerna hoga.Qk Nabi (S.A.W) ny mustehaza aurat sy farmaya tha:

"Her namaz k liye wazo ker liya karo."
sahi albukhari'hadis:228'wa sanan abi daud'hadis:292,wa jamia al tramzi'hadis:125.
Agar sirf Hawa kharij ho to namaz k liye wazo karna parega aur estanja kerny ki zarorat nahi hogi ratobat kharij huny ki sorat mai namaz k wazo ki tarhan kerna hoga, Yani hath dhona,kulli kerna,naak mai pani charhana,mou dhona,kohniyon tak bazo dhona,sar ka masa kerna aur takhnu samait paon dhona.
YAhi hukam sowny,sharam gaah ko chony aur onte ka gosht khany ka hai.in tamam soraton mai wazo kerna zarori hai.
Is bary mai sahi tareen qaul yh hai k ratobat farj pak hai,agar kapry per lag jaye to kapra paleed nahi hota, tahum is k kharij hony ki sorat mai wazo toot jata hai,lehaza dobara wazo kerna lazim hai. (Abdul Wali) Wa Allah walee al tougeeq (shiekh ebn baaz

JISNE BISMILLAH NAHI PADHA USKA WADHU NAHI

JISNE BISMILLAH NAHI PADHA USKA WADHU NAHI

allah ke rasool sallahu alaiwasallam ne farmaya ;

US shaks ki namaz nahi jiska wadhu nahi aur us shaks ka wadhu nahi jo wadhu se phele allah ka naam na le (yani bismillah na kahe)

((IBNE MAJAH ; SAHI AL-JAME ; 7514))

iske alawa koi bhi dua mere hisab se sabit nahi is liye sirf bismillah kahe kar wadhu shuru kare aj hum apne sathiyo se bat karte karte bismillah kahena bhul jate hai isliye yaad se kahe bat kam kare

WUDHU KE MASAIL

WUDHU KE MASAIL

AS SALAM O ALLAHKUM WR WB

NAMAZ KI DURUSTGI KE LIYE PAAKI ZAROORI HAI AUR PAAKI HAASIL KARNE KE LIYE KHAAS TAUR SE DO CHEEZON KI ZAROORAT HAI EK" WUZU" DUSRA "GHUSL"

WUDHU KA TAREEQA:

1- HAR AMAL KE LIYE NIYYAT ZARURI HAI ISLIYE WUZU KARNE SE PAHLE NIYYAT ZAROORI HAI (BUKHARI,MUSLIM) AUR NIYYAT DIL KE IRADE KA NAAM HAI (SHARHUL MUHAZZAB) ALFAZ KE SATH NIYYAT KARNA SUNNAT SE SABIT NAHI HAI

2- WUDHU KE SHURU ME BISMILLAH PADHNA ZAROORI HAI (ABU DAWOOD), AGAR KOI BHOOL JAAYE TO KOI HARZ NAHI (IBN MAJAH)

3- DONO HAATH(HAND) PAHUNCHU (JOINTS) TAK DHOYEN (BUKHARI)

4- PHIR EK CHULLOO LEKAR AADHE SE KULLI KAREN AUR AADHA NAAK ME DALEN (BUKHARI) ALAG CHULLU SE KULLI KARNA AUR ALAG CHULLU SE NAAK ME PAANI CHADHANA BHI SAHI HAI (TIRMIZI) PHIR MUH DHOYEN (SURAH MAIDA 6) PHIR EK CHULLU LEKAR USE THODI KE NEECHE DAAKHIL KARKE DADHI KA KHILAAL KAREN (ABU DAWOOD)

5-PHIR DAANYA HATH KUHNI SAMET AUR PHIR BAANYA HATH KUHNI SAMET DHONYE (SURAH MAIDA 6)

6-PHIR SIR KA MASAH IS TARAH KAREN KI DONO HATH SIR KE AGLE HISSE SE SHURU KARKE PEECHE KO LE JAAYEN PHIR PEECHE SE USI JAGAH AAYEN JAHAN SE SHURU KIYA THA (BUKHARI,MUSLIM)

7-PHIR KAANO KA MASAH IS TARAH KAREN KI DONO SHAHADAT KI UNGALIYAN DONO KAANO KE SURAKHO ME DAAL KAR KAANO KE PEETH PAR ANGUTHON KE SATH MASAH KAREN (ABU DAWOOD)

8- PHIR APNA DAANYA AUR BAANYA PAIR TAKHNO SAMET DHONYE (MAIDA 6) AUR UNGLIYON KA KHILAAL KAREN (ABU DAWOOD)

9- WUDHU KE AAZA KO EK EK BAAR YA DO DO BAAR DONA SAHIH HAI (BUKHARI) TEEN BAAR SE JYADA DHONA MANA HAI (ABU DAWOOD)

10- WUDHU KE BAAD YE DUA PADHNI CHAHIYE " ASH-HADU ALLA ILLAHA ILLALLAHU WAH-DAHU LA-SHARIKA-LAHU WA ASH-HADU ANNA MUHAMMADAN ABDUHU WA RASOOLUHU" (MUSLIM)

11-MAUZON (SHOCKS) PAR MASAH KARNE KI MUDDAT MUSAPHIR KE LIYE 3 RAATEN WA 3 DIN AUR MUKIM KE LIYE EK RAAT AUR EK DIN HAI (MUSLIM) MAUZON (SHOCKS) PAR MASAH KE LIYE USE WUDHU KI HAALAT ME PEHENNA ZAROORI HAI WARNA MASAH KAAFI NA HOGA (BUKHARI)

12-AGAR PAANI NA MILE YA PAANI SE NUKSAAN KA KHATRA HO TO TAYAMMUM KARNA DURUST HAI (ABU DAWOOD) TAYAMMUM KA TAREEQA YE HAI KI APNE DONO HATH ZAMEEN PAR MAAR KAR DONO KO PHOONK MAARE PHIR HAATH SE CHEHRA AUR HAATHON PAR (PAHUNCHU SAMET) MASAH KARE (BUKHARI) WUDHU KI JAGAH TAYAMMUM KARNE PAR WUDHU KI DUA PADHI JAAYEGI


WUDU TODNE WAALI CHEEZEN:

1- SO JAANA , HAWA KA KHARIJ HONA, MAZI NIKALNA (BUKHARI)(MAZI US SAFED PAANI KO KAHTE HAIN JO BIWI YA LAUNDI SE HANSI MAZAAK KE WAQT YA MANI NIKALNE SE PAHLE SHARMGAAH SE NIKALTA HAI), PESHAAB AUR PAKHANA KARNA, AURTON KO ISTEHAJA (WAH KHOON JO HAIZ KE ELAWA BIMARI KI WAJAH SE AURTON KO AAYE) KA KHOON AANA (ABU DAWOOD, BUKHARI), OONT (CAMEL) KA GOSHT(MEAT) KHANA (MUSLIM), SHARMGAAH HO BEGAIR KISI HAIYL (YANI BINA KAPDA) KE CHOO LENA (IBN MAJA)

JIN CHEEZON SE WUDHU NAHI TOOTTA:

BIWI YA LAUNDI KA BOSA LENA YA UNHE SIRF CHOO LENA (TIRMIZI) AAG PAR PAKI CHEEZ KA KHA LENA (BUKHARI), KAHKAHA LAGANA YAANI JOR SE HASNA , KOI BHI GUNAH KAR LENA.

JIN CHEEZON KE LIYE WUDHU MUSTAHAB HAI:

1-ALLAH KA ZIKR KARNA,(ABU DAWOOD) GHUSK E JANABAT SE PAHLE (BUKHARI), SONE SE PAHLE (BUKHARI) JANABAT KI HAALAT ME KHAANE YA SONE SE PAHLE (ABU DAWOOD),EK HI RAAT ME DUSRI BAAR BIWI YA LAUNDI SE HUMBISTARI SE PAHLE (ABU DAWOOD), MAIYYAT KO UTHANE KI WAJAH SE (TIRMIZI), KAI (ULTI) KARNE KE BAAD (AHMAD)

PAAKI KE MASAIL

AS SALAM O ALLAIKUM WR WB

WUDHU KE MASAIL KE BAAD AB GUSL KE SAATH PAAKI KE MUTALLIQ KUCH AUR CHIZON KO QURAN AUR SAHIH HADITH KI ROSHNI ME BAYAN KIYA JA RAHA HAI:

1-HAIZ KE MASAIL

1.1 HAIZ KA MATLAB: AISA KHOON JO AURAT KE RAHAM(BACCHE DANI) SE BACCHA KI PAIDAISH AUR KISI BIMARI KE ELAWA BAALIGH HONE KE MAKHSOOS DINO ME NIKLE (LISANUL ARAB)

1.2 RANG(COLOR):
ULAMA KA IS BAAT PAR ITTEFAQ HAI KI IS KHOOB KA RANG SIYAAH(KAALA), SURK(RED), ZARD(YELLOW) AUR KHAKI (MITTI KE RANG KA)(YANI SAFED AUR KAALA) KE DARMIYAAN HOTA HAI (FATH-UL-QADIR MA HAASHIYA-TUN-INAYA)

1.3 WAQT:

HAIZ KE LIYE KAM SE KAM YA ZYADA SE ZYADA WAQT MUQARRAR NAHI,(FATAWAL MAR-ATIL MUSLIMA)

1.4 HAIZA AURAT KE AHKAAM:

JIS AURAT KE AADAT(PERIOD) KE KUCH DIN MUKARRAR HON WAH UNHI KE MUTABIK AMAL KAREGI (MUSLIM)

AUR JIS KE DIN MUQARRAR NAHI WO KARAIN KE TARAF RUJU KAREGI (ABU DAWOOD)

YANI KHOON KO PAHCHANE GI KI HAIZ KA HAI KI NAHI

HAIZ KI HAALAT ME AURAT KE LIYE NAMAZ MAAF HAI (BUKHARI)

USKE LIYE ROZA RAKHNA MANA HAI (BUKHARI)

LEKIN BAAD ME KAJA ROZE POORA KAREGI JABKI KAZA NAMAZ PADHNE KI ZAROORAT NAHI (ABU DAWOOD)

AISI AURAT KE SAAT HUMBISTARI(SEX) KARNA MANA HAI(HAIZ KI HAALAT ME) (TIRMIZI)

USKA BOSA(CHOOMNA) WA KINAAR JAYEZ HAI (MUSLIM)

AGAR KISI NE HAIZ KI HAALAT ME BIWI SE HUMBISTARI KARLI TO US PAR EK DINAAR YA AADHA(HALF) DINAR KAFFARA ADA KARNA WAJIB HAI (ABU DAWOOD)

1.5 MUSTAHAZA AURAT KE AHKAAM:

MATLAB: JAB HAIZ KE ELAWA KOI AUR SA KHOON NAZAR AAYE TO ISTIHAZA(BIMARI) KA KHOON HOGA (BUKHARI)

AISI AURAT KE LIYE HAR NAMAZ KE LIYE WUDU WAAJIB HAI (TIRMIZI)

BEHTAR YE HAI KI DO NAMAZON KO IS JAMA KARE KI PAHLE KO MUAKHKAR AUR DUSRI KO MUKADDAM KARE AUR PHIR DONO KE LIYE EK GUSL KARE YANI JUHAR WA ASR KE LIYE EK GUSL, MAGHRIB WA ISHA KE LIYE EK GUSL AUR FAZR KE LIYE EK GUSL (ABU DAWOOD)

2-NIFAAS KE MASAIL:

2.1 MATLAB:

AISA KHOON JO (PAIDAISH KE WAQT) BACCHE KE SAATH YA BAAD ME (AURAT KI SHARMGAAH YANI LING) SE NIKLE(ANEESUL FUQAHA)

2.2 WAQT:

NIFAAS KI ZYADA SE ZYADA MUDDAT 40 DIN HAI (ABU DAWOOD)

NIFAAS WAALI AURAT HAIZA KI TARAH HAI (AL-MUGNI)

ISLIYE AISI AURAT NA NAMAZ PADEGI, NA ROZA RAKHEGI AUR NAHI USSE HUMBISTARI JAYEZ HAI , HAAN ROZE KI KAZA LAAZIM HAI (AL-MUGNI)

3- KAZAYE HAAJAT(TOILET) KE MASAIL:

JISE PESAAB PAKHANE KI HAAJAT HO WAH ZAMEEN KE KAREEB HONE SE PAHLE KAPDA NA UTHAYE (ABU DAWOOD)

WAH AABADI SE DUR CHALA JAAYE YA BAITUL-KHLA ME DAKHIL HO JAYE (BUKHARI)

KAZAY HAAJAT KE DAURAAN KISI SE BAAT NA KARE (AHMAD,MUSLIM)

AUR GHAATON( RIVER BANK) ME KAZAY HAAJAT SE BACHE (IRWA UL GHALEEL)

KHULI JAGAH ME KAZAY HAAJAT KE WAQT QIBLE KI TARAF MUH YA PEETH KARNA MANA HAI (BUKHARI)

PAANI(WATER) SE ISTINJA(DHONA)(PESHAAB PAKHANA KI JAGAH KO SAAF KARNA) AFZAL(BEHTAR) HAI (IBNE MAJAH)

AGAR KOI PATTHAR YA US JAISI KOI PAAK CHEEZ ISTEMAL KARE TO KAM SE KAM 3 ADAD(PIECES) KA ISTEMAL ZAROORI HAI (MUSLIM)

KAZAY HAAJAT SE PAHLE YE DUA PADHNI CHAHIYE " ALLAHUMMA INNI AUZUBIKA MINAL KHABSI WAL KHABAISH" AUR NIKALTE WAQT YE DUA PADHNI CHAHIYE "GUFRANAKA" (ABU DAWOOD)

BAITUL KHLA ME DAAKHIL HOTE WAQT BAANYA PAIR(FOOT) PAHLE RAKHNA AUR NIKALTE WAQT DAANYA PAIR PAHLE NIKAALNA MUNASIB HAI (ABU DAWOOD)

PESAAB KARTE WAQT CHHINTON SE BACHNA ZAROORI HAI (MUSLIM, IBNE MAJAH)

KHADE HOKAR PESHAAB KARNA JAYEZ HAI (BUKHARI)

DAANY(RIGHT) HAATH SE ISTINJA KARNA MANA HAI (BUKHARI)

4-GHUSL-E- JANABAT KA TAREEQA:

PAHLE DONO HAATH DO BAAR PAANI SE DHONYE PHIR DAHNE HAATH SE BAANY HAATH PAR PAANI GIRAKAR SHARMGAAH DHOYEN, USKE BAAD HAATH ZAMEEN PAR RAGDE (YA SOAP SE) DHOYEN PHIR KULLI KARKE NAAK ME PAANI DAALKAR MUH AUR DONO HAATH DHONYEN, USKE BAAD SIR PAR PAANI DAALKAR TAMAM BADAN PAR PAHUNCHANYE PHIR US JAGAH SE JARA HAT KAR DONO PAIR(LEGS) DHONYE (BUKHARI,MUSLIM)

5-JIN CHEEZON KE LIYE GHUSL MUSTAHAB HAI:

JUMA KI NAMAZ (BUKHARI)
DO EID KI NAMAZEN (MOATTA),
MAYYIT KO GHUSL DENE KE BAAD (IRWA UL GHALEEL),
IHRAAM BAANDHNE SE PAHLE (TIRMIZI),
MAKKA ME DAKHIL HONE SE PAHLE (MUSLIM),
MUSTAHAZA (HAIZ KE ELAWAH BIMARI KA KHOOB JIS AURAT KO AAYE) AURAT KE LIYE (BUKHARI,MUSLIM),

JO SHAKS BEHOSH HO JAA

PAAKI KE MASAIL

PAAKI KE MASAIL

AS SALAM O ALLAIKUM WR WB

WUDHU KE MASAIL KE BAAD AB GUSL KE SAATH PAAKI KE MUTALLIQ KUCH AUR CHIZON KO QURAN AUR SAHIH HADITH KI ROSHNI ME BAYAN KIYA JA RAHA HAI:

1-HAIZ KE MASAIL

1.1 HAIZ KA MATLAB: AISA KHOON JO AURAT KE RAHAM(BACCHE DANI) SE BACCHA KI PAIDAISH AUR KISI BIMARI KE ELAWA BAALIGH HONE KE MAKHSOOS DINO ME NIKLE (LISANUL ARAB)

1.2 RANG(COLOR):
ULAMA KA IS BAAT PAR ITTEFAQ HAI KI IS KHOOB KA RANG SIYAAH(KAALA), SURK(RED), ZARD(YELLOW) AUR KHAKI (MITTI KE RANG KA)(YANI SAFED AUR KAALA) KE DARMIYAAN HOTA HAI (FATH-UL-QADIR MA HAASHIYA-TUN-INAYA)

1.3 WAQT:

HAIZ KE LIYE KAM SE KAM YA ZYADA SE ZYADA WAQT MUQARRAR NAHI,(FATAWAL MAR-ATIL MUSLIMA)

1.4 HAIZA AURAT KE AHKAAM:

JIS AURAT KE AADAT(PERIOD) KE KUCH DIN MUKARRAR HON WAH UNHI KE MUTABIK AMAL KAREGI (MUSLIM)

AUR JIS KE DIN MUQARRAR NAHI WO KARAIN KE TARAF RUJU KAREGI (ABU DAWOOD)

YANI KHOON KO PAHCHANE GI KI HAIZ KA HAI KI NAHI

HAIZ KI HAALAT ME AURAT KE LIYE NAMAZ MAAF HAI (BUKHARI)

USKE LIYE ROZA RAKHNA MANA HAI (BUKHARI)

LEKIN BAAD ME KAJA ROZE POORA KAREGI JABKI KAZA NAMAZ PADHNE KI ZAROORAT NAHI (ABU DAWOOD)

AISI AURAT KE SAAT HUMBISTARI(SEX) KARNA MANA HAI(HAIZ KI HAALAT ME) (TIRMIZI)

USKA BOSA(CHOOMNA) WA KINAAR JAYEZ HAI (MUSLIM)

AGAR KISI NE HAIZ KI HAALAT ME BIWI SE HUMBISTARI KARLI TO US PAR EK DINAAR YA AADHA(HALF) DINAR KAFFARA ADA KARNA WAJIB HAI (ABU DAWOOD)

1.5 MUSTAHAZA AURAT KE AHKAAM:

MATLAB: JAB HAIZ KE ELAWA KOI AUR SA KHOON NAZAR AAYE TO ISTIHAZA(BIMARI) KA KHOON HOGA (BUKHARI)

AISI AURAT KE LIYE HAR NAMAZ KE LIYE WUDU WAAJIB HAI (TIRMIZI)

BEHTAR YE HAI KI DO NAMAZON KO IS JAMA KARE KI PAHLE KO MUAKHKAR AUR DUSRI KO MUKADDAM KARE AUR PHIR DONO KE LIYE EK GUSL KARE YANI JUHAR WA ASR KE LIYE EK GUSL, MAGHRIB WA ISHA KE LIYE EK GUSL AUR FAZR KE LIYE EK GUSL (ABU DAWOOD)

2-NIFAAS KE MASAIL:

2.1 MATLAB:

AISA KHOON JO (PAIDAISH KE WAQT) BACCHE KE SAATH YA BAAD ME (AURAT KI SHARMGAAH YANI LING) SE NIKLE(ANEESUL FUQAHA)

2.2 WAQT:

NIFAAS KI ZYADA SE ZYADA MUDDAT 40 DIN HAI (ABU DAWOOD)

NIFAAS WAALI AURAT HAIZA KI TARAH HAI (AL-MUGNI)

ISLIYE AISI AURAT NA NAMAZ PADEGI, NA ROZA RAKHEGI AUR NAHI USSE HUMBISTARI JAYEZ HAI , HAAN ROZE KI KAZA LAAZIM HAI (AL-MUGNI)


3- KAZAYE HAAJAT(TOILET) KE MASAIL:

JISE PESAAB PAKHANE KI HAAJAT HO WAH ZAMEEN KE KAREEB HONE SE PAHLE KAPDA NA UTHAYE (ABU DAWOOD)

WAH AABADI SE DUR CHALA JAAYE YA BAITUL-KHLA ME DAKHIL HO JAYE (BUKHARI)

KAZAY HAAJAT KE DAURAAN KISI SE BAAT NA KARE (AHMAD,MUSLIM)

AUR GHAATON( RIVER BANK) ME KAZAY HAAJAT SE BACHE (IRWA UL GHALEEL)

KHULI JAGAH ME KAZAY HAAJAT KE WAQT QIBLE KI TARAF MUH YA PEETH KARNA MANA HAI (BUKHARI)

PAANI(WATER) SE ISTINJA(DHONA)(PESHAAB PAKHANA KI JAGAH KO SAAF KARNA) AFZAL(BEHTAR) HAI (IBNE MAJAH)

AGAR KOI PATTHAR YA US JAISI KOI PAAK CHEEZ ISTEMAL KARE TO KAM SE KAM 3 ADAD(PIECES) KA ISTEMAL ZAROORI HAI (MUSLIM)

KAZAY HAAJAT SE PAHLE YE DUA PADHNI CHAHIYE " ALLAHUMMA INNI AUZUBIKA MINAL KHABSI WAL KHABAISH" AUR NIKALTE WAQT YE DUA PADHNI CHAHIYE "GUFRANAKA" (ABU DAWOOD)

BAITUL KHLA ME DAAKHIL HOTE WAQT BAANYA PAIR(FOOT) PAHLE RAKHNA AUR NIKALTE WAQT DAANYA PAIR PAHLE NIKAALNA MUNASIB HAI (ABU DAWOOD)

PESAAB KARTE WAQT CHHINTON SE BACHNA ZAROORI HAI (MUSLIM, IBNE MAJAH)

KHADE HOKAR PESHAAB KARNA JAYEZ HAI (BUKHARI)

DAANY(RIGHT) HAATH SE ISTINJA KARNA MANA HAI (BUKHARI)

4-GHUSL-E- JANABAT KA TAREEQA:

PAHLE DONO HAATH DO BAAR PAANI SE DHONYE PHIR DAHNE HAATH SE BAANY HAATH PAR PAANI GIRAKAR SHARMGAAH DHOYEN, USKE BAAD HAATH ZAMEEN PAR RAGDE (YA SOAP SE) DHOYEN PHIR KULLI KARKE NAAK ME PAANI DAALKAR MUH AUR DONO HAATH DHONYEN, USKE BAAD SIR PAR PAANI DAALKAR TAMAM BADAN PAR PAHUNCHANYE PHIR US JAGAH SE JARA HAT KAR DONO PAIR(LEGS) DHONYE (BUKHARI,MUSLIM)

5-JIN CHEEZON KE LIYE GHUSL MUSTAHAB HAI:

JUMA KI NAMAZ (BUKHARI)
DO EID KI NAMAZEN (MOATTA),
MAYYIT KO GHUSL DENE KE BAAD (IRWA UL GHALEEL),
IHRAAM BAANDHNE SE PAHLE (TIRMIZI),
MAKKA ME DAKHIL HONE SE PAHLE (MUSLIM),
MUSTAHAZA (HAIZ KE ELAWAH BIMARI KA KHOOB JIS AURAT KO AAYE) AURAT KE LIYE (BUKHARI,MUSLIM),

JO SHAKS BEHOSH HO JAAYE USKE LIYE (BUKHARI)

MUSHRIK KO DAFAN KARNE KE BAAD (NISAI)

HAR JAMA(SEX) (BIWI SE MEL) KE WAQT (ABU DAWOOD)


6-JIN CHEEZON SE GHUSL WAAJIB HOTA HAI:

KISI BHI WAJAH SE MANI KA NIKALNA (AHMAD),

MARD YA AURAT KE SHARMGAAH KA MIL JAANA (BUKHARI)

HAIZ YA NIFAS KE KHATM HONE PAR (BUKHARI)

MAYYIT KE LIYE (BUKHARI)

ISLAM KABOOL KARNE WAALE KE LIYE (ABU DAWOOD)


ALLAH HAMEN TAUFEEQ DE KI HUM KOI BHI AMAL KARNE SE PAHLE USE KITAAB WA SUNNAT KI ROSHNI ME PARAKH LEN

AMEEN.....