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ALLAH KA HAQ BANDO PE

अल्लाह सुब्हानहु तआला के अधिकार (हम बन्दों(भक्तों) पर) अल्लाह सुब्हानहु तआला ने एकमात्र विश्व ब्रह्माण्ड की सृष्टि की, सारे प्राणियों को अस्तित्व दिया और एकाकी ही पूरी सृष्टि का निर्माण किया, उसने ना केवल हमारी सृष्टि की बल्कि धर्म और संसार की सम्पूर्ण आवश्यकताऐं भी प्रदान कीं एवं अनगिनत सुखद वस्तुओं(नअमतों) से सम्मानित किया तथा उसकी सर्वश्रेष्ठ कृपा तो यह है कि उसने हमारे मार्गदर्शन के लिये रसूलों को भेजा और उनके माध्यम से सारी धार्मिक वस्तुएं सिखलाई एवं विशेष रूप से हम मनुष्यों को ऐसी ऐसी विभिन्न वस्तुओं से सम्मानित किया जिसकी हम गिनती भी नहीं कर पाए गें जैसे अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं। "और जो कुछ तुम ने माँगा सब में से तुमको दिया यदि तुम अल्लाह के कृपादृष्टि(अहसान) को गिनने लगो तो गिन नहीं पाओगे(मगर लोग सुखद वस्तुओं(नअमतों) के आभारी नहीं होते) निसंदेह मनुष्य बड़ा ही अन्यायी एवं कृतघ्न है" (इब्राहीम ;३४),और कहते हैं "अल्लाह सुब्हानहु ने तुम्हें तुम्हारी माओं के पेट से इस दशा में निकाला कि तुम कुछ जानते ना थे, उसने तुम्हें कान आँखें एवं दिल दिये ताकि तुम कृतज्ञता करो" (सूरा नह्ल : ७८) हम मनुष्यों का रोआँ रोआँ उसका उपकृत(अहसानमंद) है इसीलिये हम मनुष्यों को चाहिए कि अपने निर्माता को पहचाने उसके अधिकारों को पहचाने केवलउसी की आराधना करे उसके आदेशों का पालन करें बस वही करे जिसकी वह हमें आज्ञा देता है, जिससे रोकता है रुक जाए क्यूंकि वह विधाता है आवश्यकताओं एवंकामनाओं को पूरा करने वाला है एवं ना ही वह हमसे कुछ चाहता हैउसे किसी चीज़ की आवश्यकता नहीं । सूचि अल्लाह सुब्हानहु तआला के अधिकार अल्लाह सुब्हानहु तआला का परिचय अल्लाह सुब्हानहु तआला पर ईमान अल्लाह सुब्हानहु तआला की आराधना अल्लाह सुब्हानहु तआला के अधिकार वैसे तो अल्लाह सुब्हानहु तआला के अपने बन्दों(भक्तों) पर कई अधिकार हैं परंतु हम यहाँ कुछ महत्वपूर्ण और विशेष अधिकार ही निम्नलिखित करे गें। अल्लाह सुब्हानहु तआला का परिचय हम मनुष्यों के लिये आवश्यक है कि हम अपने विधाता को पूर्ण रूप से जाने एवं यह ३ चीज़ों पर निर्भर करता है, (१). अल्लाह सुब्हानहु तआला का परिचय:अर्थात अल्लाह सुब्हानहु तआला ने जो कुछ भी अपनी किताब(क़ुरआन) में अपने सम्बंधित बताया तथा मुहमम्द सललेल्लाहु अलैही वसल्लम(इनपर अल्लाह की रहमत ओर सलामती हो) ने अपनी सुन्नत(हदीस) में जो अल्लाह सुब्हानहु के सम्बंधित बताया उसका ज्ञान प्राप्त करना, (२). अल्लाह सुब्हानहु तआला के गुणों का परिचय:अर्थात अल्लाह सुब्हानहु तआला ने अपनी किताब(क़ुरआन) में जो आपने गुण बताए तथा मुहमम्द सललेल्लाहु अलैही वसल्लम(इनपर अल्लाह की रहमत ओर सलामती हो) ने अपनी सुन्नत(हदीस) में जो अल्लाह सुब्हानहु के गुण बताए उसका ज्ञान प्राप्त करना, (३). अल्लाह सुब्हानहु तआला के अधिकारों का परिचय: अर्थात अल्लाह सुब्हानहु तआला ने अपनी किताब(क़ुरआन) में जो आपने अधिकार(बन्दों के प्रति) बताए तथा मुहमम्द सललेल्लाहु अलैही वसल्लम(इनपर अल्लाह की रहमत ओर सलामती हो) ने अपनी सुन्नत(हदीस) में जो अल्लाह सुब्हानहु के अधिकार(बन्दों के प्रति)बताएउसका ज्ञान प्राप्त करना। अल्लाह सुब्हानहु तआला पर ईमान अल्लाह सुब्हानहु तआला पर ईमान(पूर्ण विश्वास) रखना एवं यह ३ बातों पर निर्भर करता है, (१).अल्लाह सुब्हानहु तआला के अस्तित्व पर ईमान(पूर्ण विश्वास) रखना है, (२). अल्लाह सुब्हानहु तआला के एकमात्र रब(Lord) होने पर ईमान(पूर्ण विश्वास) रखना है, (३).अल्लाह सुब्हानहु तआला के एकमात्र पूज्ये(इबादत) के योग्य होने पर ईमान(पूर्ण विश्वास) रखना है, (४). अल्लाह सुब्हानहु तआला के नाम एवं गुणों पर ईमान(पूर्ण विश्वास) रखना है। अल्लाह सुब्हानहु तआला की आराधना (worship) अल्लाह सुब्हानहु तआला पर ईमान लाने के बाद उसका श्रेष्ठ एवं महान अधिकार यह है कि केवल उसी की आराधना की जाए एवं उसकी उपासना में किसी को साझी न ठहराया जाए न किसी नबी न किसी वली(सन्त) एवं न ही किसी अन्य जीव को एवं न ही किसी वस्तु को, जैसे अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं " यह सब इसलिये कि अल्लाह सुब्हानहु तआला ही सत्य है एवं उसके सिवा जिसे भी ये पुकारते हैं असत्य है और निसंदेह अल्लाह सुब्हानहु तआला ही सर्वोच्च एवं श्रेष्ठता वाला है।"(अल हज :६२ ) हदीस: मआज़ इब्ने जबल रज़ियल्लाहु अन्हु(अल्लाह इन से प्रसन्न हो) सूचित करते हैं कि मैं मुहमम्द सललेल्लाहु अलैही वसल्लम(इनपर अल्लाह की रहमत ओर सलामती हो) के पीछे एक गधे पर सवार था, मुहमम्द सललेल्लाहु अलैही वसल्लम ने कहा "अए मआज़ क्या तुम जानते हो कि अल्लाह के उसके बन्दों(भक्तों) पर क्या क्या अधिकार हैं और बन्दों(भक्तों) का अल्लाह पर क्या क्या अधिकार हैँ तो मैंने कहा: अल्लाह और उसके रसूल श्रेष्ठ जानते हैं तो मुहमम्द सललेल्लाहु अलैही वसल्लम ने कहा" अल्लाह का अधिकार उसके बन्दों(भक्तों) पर यह है कि वे केवल उसी की उपासना करें और उसके साथ किसी को साझी न ठहराएँ, और बन्दों(भक्तों) का अधिकार अल्लाह पर यह है कि जिस बन्दे(भक्त) ने अल्लाह सुब्हानहु के साथ किसी को साझी न बनाया उसे पीड़ा न दे" (सही बुख़ारी : २८५६, सही मुस्लिम :३०)अल्लाह सुब्हानहु के इस अधिकार की मांग यह है कि केवल उसी की उपासना की जाए सभी प्रकार की पूजा केवल उसी के लिए विशेष हो,एवं उसके साथ किसी को साझी ना बनाया जाए, आराधना ५ प्रकार की होती है : (१). वह आराधनाएं जिनका संबंध मन से होता है उदाहरण के तौर पर स्नेह, भय, आशा, विश्वास एवं अन्य, (२). वह आराधनाएं जिनका संबंध शरीर से होता है उदाहरण के तौर पर नमाज़ रोज़ा तवाफ़ एवं अन्य, (३). वह आराधनाएं जिनका संबंध हमारे धन से होता है उदाहरण के तौर पर दान, बलिदान एवं अन्य, (४). वह आराधनाएं जिनका संबंध हमारे शरीर एवं धन दोनों से होता है उदाहरण के तौर पर हज एवं अन्य, इस्लामी विद्वान कहते हैं कि अल्लाह सुब्हानहु की आराधना इस प्रकार की जाए कि उस में स्नेह, भय, आशा एवं विश्वासचारों का सम्मिलन हो अर्थात उससे स्नेह हो ताकि उसकी आराधना भक्ति से कर पाएं, उसका भय भी हो जो हमें बुराई से रोके एवं उसकी आराधना की ओर आकर्षित करे, उससे आशा भी हो कि हम जो कुछ उसके लिये कर रहे हैं वह हमें उसका अछा परिणाम देगा एवं स्वर्ग में जाने की आशा तो प्रत्येक मुस्लमान को रखनी चाहिये एवं उसपे पूर्ण विश्वास हो कि वह जो कुछकहता है वही करेगा हमारी प्रार्थनाओं को सुनेगा एवं स्वीकार करेगा, हमें हर पीड़ा से बचाए ग। अंत में अल्लाह सुब्हानहु तआला से से प्रार्थना है कि अल्लाह सुब्हानहु हमें सदैव ईमान पर रखे हमारी प्रार्थनाओं को स्वीकार करे हमारी आराधनाओं में स्वच्छता एवं शुद्धि दे। (आमीन या रब्बुल आलमीन) और देखिये अल्लाह पर ईमान, तौहीद, शिर्क, अल्लाह की रहमत, सुन्नत, बिदअत और अन्य

ALLAH KI UPASNA PREM DAR

अल्लाह की उपासना प्रेम, डर, आशा से करना
इस्लाम में उपासना की धारणा का एक अनोखा अंदाज़ है| इसमें (उपासना में) प्रेम, डर तथा आशा सम्मिलित होना चाहिए| यह सब सम्मिलित होने पर ही उपासना पूरी और स्वच्छ होती है| इस विषय में दूसरे धर्म का विचार देखिये : ईसाई केवल अल्लाह के प्रेम के बारे में बात करते है और ये भूल जाते है कि अल्लाह से डरना भी चाहिए| यहूदी केवल आशा लगाये रहते है कि अल्लाह उन्हें नरक में नहीं डालेगा, क्यों कि अल्लाह उन्हें बहुत चाहता है| इसके विरुध्ध इस्लाम यह कहता है कि, अल्लाह का प्रेम, उसकी दया की आशा और उसके दंड के भय के साथ उसकी उपासना की जाये| खुरआन का पहला सूरा, सूरा फातिहा में इसका वर्णन किया गया है|

ALLAH KI RAHMAT

अल्लाह सुब्हानहु तआला की रहमत (कृपा) बहुत सारे लोग, विशेष तौर पर दूसरे धर्मों के लोग अल्लाह सुब्हानहु तआला के संबंध में बहुत सारी मिथ्याबोध एवं अनभिज्ञता के शिकार हैं एवं इसी कारण से अल्लाह सुब्हानहु के सम्बंदित कुछ असामान्य प्रश्न करते हैं जैसे कि यदि अल्लाह सुब्हानहु तआला अत्यंत दयावान है तो उसने हमारी सृष्टि क्यूँ की जब कि वह जानता है कि हम में से अधिक लोकनरक में ही जाएगें तो वह अपनी ही सृष्टि को नरक में क्यूँ भरना चाहता है, यदि वह इतना कृपालु है तो जानते बुझते हमें पीड़ा में क्यूँ दाल रहा है,अब जब कि हमारी सृष्टि हो चुकी है एवं हम इस संसार में स्थित हैं तो इस प्रकार के प्रश्नों से कोई लाभ नहीं होगा और ना ही इससे कुछ बदलेगा हालांकि मनुष्य प्राकृतिक रूप से उत्सुक होता है उसे सब कुछ जानना होता है पर इस स्थिति में जबकि हमारी सृष्टि हो चुकी हमारे लिये अच्छा यह होगा कि हम यह जानने का प्रयत्न करें कि अल्लाह सुब्हानहु तआला ने इस सम्पूर्ण जगत का निर्माण क्यूँ किया ? सूचि यदि हम अपनी बुद्धि एवं तर्क का उपयोग करें तो विश्व ब्रह्मांड का अस्तित्व ही असंभव होगा अल्लाह सुब्हानहु तआला खूंन का प्यासा नहीं है अल्लाह सुब्हानहु तआला की चेतावनी सच्ची(निष्पक्ष) परीक्षा अल्लाह सुब्हानहु तआला की दया अल्लाह सुब्हानहु तआला की क्षमा निष्कर्ष और देखिये सन्दर्भ यदि हम अपनी बुद्धि एवं तर्क का उपयोग करें तो विश्व ब्रह्मांड का अस्तित्व ही असंभव होगा यहाँ आलोच्य विषय यह है कि जब मनुष्य की एक बड़ी संख्या नरक में जा रही है तो मनुष्य का निर्माण ही नहीं करना चाहिये था तथा यदि कोई इसविषय को और खींचना चाहें तो यह भी पूंछ सकता है कि अल्लाह सुब्हानहु तआला ने इन जानवरों को भी क्यूँ पैदा किया जब कि वह जानता था कि एक जानवर दूसरे जानवर को अवश्य खाएगा इस प्रकार वह एक दुजे को पीड़ित करेगें, उदाहरण के तौर पर हिरण को बाघ एवं शेर खा जाते हैं, चूहे को सांप और बिल्लियां खा लेती हैं जब कि कीड़े और मछलियों को पक्षि खा जाते हैं तथा इसी प्रकार गाय और बकरियां पौधों को अपना भोजन बनाती हैं, इस प्रकार सोचे तो आपके तर्क कायही अर्थ होगा कि इस पृथ्वी में किसी भी प्राणी जीव जंतु या पौधे को नहीं होना चाहिये था एवं ना ही उनको इस प्रकार बनाना चाहिये था कि वे अपने भोजन के लिए एक दूसरे पर निर्भर हो एवं एक दूसरे को मार के ही अपना भोजन प्राप्त करते हो अब अगर हम यहाँ इस तर्क को सच माने को तो यह प्रशन उठेगा कि यदि इस पृथ्वी में कोई प्राणी जीव जंतु ना हों तो इस विशाल ब्रह्मांड के निर्माण का उपदेश ही क्या है ? अल्लाह सुब्हानहु तआला खूंन का प्यासा नहीं है अभी हम ने देखा कि कुछ लोग अल्लाह सुब्हानहु तआला के सम्बंधित क्या धारणा रखते हैं जबकि अल्लाह सुब्हानहु तआला खूंन का प्यासा नहीं एवं ना ही वे लोगों को नरक में दंडित करने की इच्छा रखता है परंतु इसबातको समझने के लिये हमें सबसे पहले यह समझना होगा कि वह कौनसे लोग है जो नरक में जाएगे, अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं "इसमें केवल अभागा प्रविष्टि करे गें"(सूरा लैल:१५), इस विषय मेंहदीस है कि अबु हुरैराह रज़ियल्लाहु अन्हु(अल्लाह इन से प्रसन्न हो) सूचित करते हैं कि मुहमम्द सललेल्लाहु अलैही वसल्लम(इनपर अल्लाह की रहमत ओर सलामती हो) ने कहा कि ""मेरे सभी अनुयायि स्वर्ग में प्रवेश करेंगे सिवाए उनके जो इनकार करेगें, लोगों ने पूछा अए अल्लाह के रसूल! वह कौन लोक हैं जो इनकार करेगें तो मुहमम्द सललेल्लाहु अलैही वसल्लम ने कहा "जो कोई मेरी आज्ञापालन करेगा स्वर्ग में जाएगा तथा जो कोई मेरी आज्ञा का उल्लंघन करेगें तो यही इनकार करने वाले हैं" (सही बुख़ारी :९ /३८४ ) , ऊपर बताई गई आयत एवं हदीस से स्पष्ट रूप से पता चलता है कि कोई भी व्यक्ति स्वयं अपनी इच्छा से ही नरक में जाएगा, यदि आप क़ुरआन पढ़ते हो तो देखोगे कि ऐसी बहुत सारी आयतें हैं जिसमें बताया गया कि इनकार करने वाले अपने पापों पर पछताते हैं तथा वहा कोई ऐसा नहीं होगा जो कहेगा कि मेरे साथ अन्याय हुआ है क्यूंकि वे सब जानते हैं कि उन्हें उन्हीं के कर्मों का दंड मिलरहा हैं नीचे ऐसी ही कुछ आयतें बताई जारही हैं, (१). उस दिन उनके चहरे आग में उलट पलट किये जाएगें कहें गें काश हम अल्लाह सुब्हानहु एवं उसके रसूल की आज्ञाकारिता करते और कहे गें अए हमारे रब(lord) हमने अपने सरदारों एवं बड़ों की बात मानी जिन्हूं ने हमें सीधे मार्ग से भटका दिया, अए हमारे रब(lord) उन्हें दोहरी यातना दे एवं एक विशाल अभिशाप के साथ उन्हें शाप दे" (अल अहज़ाब :६६-६८) (२).“ और अपने रब(Lord)को नकारने वालों के लिये नरक की यातना है एवं वह बहुत ही बुरा ठिकाना है, एवं जब वे इसेमें डाले जाएगें है तो उसकी बड़ी ज़ोर की(भयानक) आवाज़ सुने गें एवं वह खौल रही होगीऐसा प्रतीत होगा कि क्रोध के कारण फट जाएगी, जब कभी उसमें कोई समूह डाला जायगा उससे नरक के दारोग़ा पूछें गें क्या तुम्हारे पास कोई डराने वाला नहीं आया था, वह कहेगें कि निसंदेह आया था परंतु हमने उसे झुटला दिया एवं हमने कहा कि अल्लाह सुब्हानहु ने कुछ भी नहीं उतारा बल्कि तुम बहुत बड़ी गुमराही(mislead) में हो, और कहेगें कि यदि हम सुनते होते या बुद्धि रखते होते तो नरक वालों के संगी ना होते, तो उनहूँ ने अपने पापों को स्वीकार कर लिया- अब ये नरक वाले दफ़ा हो(दूर हों)" (सूरा मुल्क :६-११), इन आयतों से से स्पष्ट रूप से पता चलता है कि नरक वाले अपने पापों को स्वीकार कर पछताते हैं क्यूंकि वे जानते हैं कि उनके पाप ही उनके नरक में जाने का कारण बने एवं उनके पाप ही उन्हें नरक में घसीट लाए, अल्लाह सुब्हानहु तआला से प्रार्थना है कि वह हमें नरक की जला देने वाली दर्दनाक आग से बचाए एवं स्वर्ग की कभी ना समाप्त होने वाली संतुष्टि प्रदान करे, (आमीन या रब्बुल आलमीन) अल्लाह सुब्हानहु तआला की चेतावनी अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं " जिस दिन प्रत्येक व्यक्ति अपनी की हुई भलाई एवं अपनी की हुई बुराई को मौजूद पाएगा, कामना करेगा कि काश उसके एवं उसकी बुराईयों के बीच बहुत दूरी होती-अल्लाह सुब्हानहु तुम्हें अपने आप से डरा रहा है एवं अल्लाह सुब्हानहु तआला अपने बन्दों(भक्तों) पर बड़ा ही कृपाशील है" (अल इमरान :३०), ऊपर बताई गई आयत में अल्लाह सुब्हानहु तआला विश्व संसार के प्रत्येक व्यक्ति को स्पष्ट चेतावनी देरहे हैं कि हर प्रकार की बुराई एवं पाप से दूर रहो तो जो कोई बुराई करता है वह इस चेतावनी के विरुद्ध जाता हैतो उसे सम्झ जाना चाहिये कि उसका परिणाम बहुत बुरा एवं भयानक होसकता है । सच्ची(निष्पक्ष) परीक्षा : अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं (१)." निसंदेह अल्लाह सुब्हानहु तआला एक रत्ती-भर भी ज़ुल्म(अन्याय) नहीं करता एवं यदि नेकी हो तो उसे दुगनी कर देता है एवं अपनी ओर से विशेषत पुण्य भी देता है "(सूरा निसा :४०) (२).एवं नामाए-आमाल(कर्मपत्रिका) सामने रख दिया जाएगा तो तू देखेगा कि अपराधी उसकी लिखत से बहुत डर रहे होगे एवं कह रहे होगें हाय हमारा दुर्भाग्य यह कैसी किताब है जिसने कोई छोटा ना बड़ा (पाप)छोड़ा होगा बल्कि इसने सबको घेर रखा है एवं जो कुछ उनहूं ने किया था सब मौजूद पाएगें एवं तुम्हारा रब किसी पर ज़ुल्म(अन्याय) ना करेगा" (सूरा कहफ़ :४९), (३). जो कोई सीधा मार्ग अपनाता है तो वह स्वयं अपने भले के लिये ही सीधा मार्ग अपनाता है एवं जो भटक जाए उसका बोझ उसी के ऊपर है, कोई बोझ वाला किसी और का बोझ अपने ऊपर नहीं लादे गा एवं हम लोगों को यातना नहीं देते जब तक कोई रसूल ना भेज दें" (सूरा इसरा :१५) इन आयतों से से स्पष्ट रूप से पता चलता है कि अल्लाह सुब्हानहु तआला किसी के साथ कोई अन्याय नहीं करता बल्कि लोग तो केवल अपने कर्मों का फल पाते हैं। (५).अल्लाह सुब्हानहु तआला की दया: अल्लाह सुब्हानहु तआला तो अत्यंत दयावान है और वह नहीं चाहता कि हम नरक में जाए इसीलिये वह अपनी कृपा को बढ़ाता जाता है, हमारे अच्छे कर्मों का दुगना पुण्य देता है एवं हमारे पापों को अनगिनत बार क्षमा भी कर देता है जैसे अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं " निसंदेह अल्लाह सुब्हानहु तआला एक रत्ती-भर भी ज़ुल्म(अन्याय) नहीं करता एवं यदि पुण्य हो तो उसे दुगना कर देता है एवं अपनी ओर से विशेषत पुण्य भी देता है "(सूरा निसा :४०) और कहते हैं "तथा जो कोई अल्लाह सुब्हानहु के हाँ एक पुण्य लेके आएगा उसको वैसी ही १० पुण्यफ़ल मिले गें तथा जो बुराई(पाप) लाएगा उसको वैसे ही (उसके पाप अनुसार) दंड मिलेगा एवं उनके साथ कोई अन्याय ना होगा" (अल अनआम : १६०), हदीस: मुहम्मद सललेल्लाहु अलैही वसल्लम कहते हैं: " जो व्यक्ति किसी पुण्य के काम करने का मनोरथ(इरादा) करे तथा उसे ना कर पाए तब भी अल्लाह सुब्हानहु तआला उसके लिये अपने हां एक पुण्य लिख देता है एवं यदि वह मनोरथ(इरादा) करेने के बाद वह पुण्य का काम करले तो अल्लाह सुब्हानहु तआला उसके लिये अपने हां उस एक पुण्य का १० गुना(times) से ७०० गुना बल्कि उससे भी अधिक पुण्य लिख देता है और जो व्यक्ति किसी पाप के काम करने का मनोरथ(इरादा) करे तथा उसे ना कर पाए तो अल्लाह सुब्हानहु तआला उसके लिये अपने हां एक पुण्य लिख देता है एवं यदि वह मनोरथ(इरादा) करेने के बाद वह पाप करले तो उसके बदले केवल एक पाप लिखा जाता है" (सही बुख़ारी : ६४९१, सही मुस्लिम : १२८ ,१२९ ,१३०) ऊपर बताई गई आयतों एवं हदीसे से हम सम्झ सकते हैं कि अल्लाह सुब्हानहु तआला हमारे छोटे छोटे पुण्य के कारण भी हम पर दया करना चाहता है एवं चाहता है कि हम अधिक पुण्य कमा कर नरक से बच जाए - (१). यदि कोई व्यक्ति एक अच्छा काम करता है तो उसका परीणाम 10-700गुना एवं उससे भी अधिक बढ़ जाता है (अल्लाह सुब्हानहु ही उसकी अधिक सीमा जानता है)। (२). यदि कोई व्यक्ति एक अच्छा काम करने का मनोरथ(इरादा) करे तथा उसे ना कर पाए तब भी अल्लाह सुब्हानहु तआला उसके लिये अपने हां एक पुण्य लिख देता है। (३). यदि कोई व्यक्ति किसी पाप के काम करने का मनोरथ(इरादा) करे तथा उसे ना कर पाए तो अल्लाह सुब्हानहु तआला उसके लिये अपने यहाँ एक पुण्य लिख देता है। (४). यदि कोई व्यक्ति किसी पाप के काम करने का मनोरथ(इरादा) करे तथा उसे कर लेता हो तो अल्लाह सुब्हानहु तआला उसके लिये अपने हां केवल एक पाप लिखता है। यहाँ विचारजनक विषय यह है कि क्यूँ अल्लाह सुब्हानहु तआला हमारे पुण्य के कार्यों को असीमित रूप से दुगना कर देता है एवं जब हम कोई पुण्य करते ही नहीं तब भी हमारे लिये पुण्य लिख देता जबकि पाप के विषय में ऐसा नहीं करता एक बुरा कार्य करने पर केवल एक ही पाप लिखता है इससे पता चलता है कि अल्लाह सुब्हानहु तआला अत्यंत दयालु है वह हमें नरक में नहीं डालना चाहता वह तो हमें स्वर्ग में आनंदित देखना चाहता है निसंदेह अल्लाह सुब्हानहु तआला की दया की कोई सीमा नहीं है। अल्लाह सुब्हानहु तआला की क्षमा इन सब के पश्चात हम मनुष्य होने के कारण कई पाप कर जाते हैं, अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं: (१)."(मेरी ओर से) अए मेरे बन्दों(भक्तों) जिन्हूं ने अपनी जनों पर अतिचार किया है तुम अल्लाह सुब्हानहु की कृपा(रहमत) से निराशा ना हो निसंदेह अल्लाह सुब्हानहु तआला सारे पापों की क्षमा करने वाला है, निश्चयी वह बड़ी क्षमा करने वाला एवं अत्यंत दयावान है "(सूरा ज़ुमर ;५३), (२)."जो कोई व्येक्ति कोई बुराई करे या अपनी जान पर ज़ुल्म(अन्याय) करे फ़िर अल्लाह सुब्हानहु से क्षमा चाहे तो वह अल्लाह सुब्हानहु तआला को क्षमा करने वाला एवं अत्यंत दयावान पाएगा" (निसा :११०), (३).एवं मैं ने कहा कि अपने रब से अपने पाप क्षमा करवाओ(क्षमा मांगो) वह निसंदेह बड़ा क्षमाशील है" ( सूरा नूह :१०) ऊपर बताई गई आयतों से एक निष्पक्ष मन को स्पष्ट रूप से चल जाएगा कि कैसे अल्लाह अल्लाह सुब्हानहु तआला उसकी असीम दया को बढ़ाता जाता है उसकी असीमित क्षमा के माध्यम से, इन सब के पश्चात भी यदि मनुष्य अपने आप को नरक से ना बचा पाए तो अब हम जान सकते हैं कि दोष किसका है यह मनुष्य का दोष है या अल्लाह सुब्हानहु तआला का। निष्कर्ष यदि हम ऊपर बताई गई सारी बातों को पढ़े तो सम्झ सकते हैं कि : (१). अल्लाह सुब्हानहु तआला ने हमें पहले ही बता दिया कि दुष्कर्मों का क्या परिणाम होता है एवं स्पष्ट रूप से चेतावनी भी दी। (२). अल्लाह सुब्हानहु तआला अपनी असीम दया को बढ़ाता जाता है, हमारे पुण्य को दुगना करके एवं हमारे पापों को क्षमा करके, अपनी असीमित क्षमा एवं दयालुता के माध्यम से। (३). हमारी परीक्षण बहुत ही उचित है अल्लाह सुब्हानहु हमें हमारे कर्मों का परिणाम बिना किसी अन्याय के देता है। (४). लोक स्वयं अपनी इच्छा से ही नरक में जाते हैं इसमें अल्लाह सुब्हानहु तआला का कोई दोष नहीं (६). नरक में जाने वाले लोक ना केवल अपने पापों को स्वीकार करेंगे बल्कि उसपर बहुत पछताएगे। चले एक बार अल्लाह सुब्हानहु की इस आयत को चेतावनी के रूप में पढ़े, अल्लाह सुब्हानहु कहते हैं "मैं ने तो केवल तुम्हें भड़कती हुई आग से डराया है, इसमें केवल अभागा प्रविष्टि करे गें" (सूरा लैल:१४ -१५), इसके सिवा एक बात यह भी है कि हम केवल निराशावादी क्यूँ हो जाते हैं ? हम केवल नरक आग के बारे में ही क्यूँ सोच रहे हैं? स्वर्ग के बारे में क्यूँ नहीं सोचते? क्यूँ ना हम स्वर्ग को पाने एवं अल्लाह सुब्हानहु तआला को प्रसन्न करने का प्रयास करें ? यह सर्वविदित है कि जब एक व्यक्ति अल्लाह सुब्हानहु तआला को प्रसन्न करने का प्रयत्न करे एवं उसके आदर्शों का पालण करे तो अल्लाह सुब्हानहु तो क्षमा को पसंद करता है एवं हमें सदैव क्षमा करना चाहता है परंतु कया हम अल्लाह सुब्हानहु से क्षमा मांगना चाहते हैं यदि हाँ तो अभी अपने पापों की क्षमा मांगे क्यूंकि सम्य किसी के लिये नहीं ठहरता। अंत में अल्लाह सुब्हानहु तआला से से प्रार्थना है कि अल्लाह सुब्हानहु हमारे पापों को क्षमा करते हुए हमें सीधे मार्ग पर चलाए । (आमीन या रब्बुल आलमीन) और देखये अल्लाह पर ईमान, तौहीद, शिर्क, अल्लाह के अधिकार, सुन्नत, बिदअत और अन्य

LA ILAHA ILLALLAH KA ARTH AUR SHARTE

ला इलाहा इल्लल्लाह का अर्थ और शर्तें गवाही या धार्मिक पंथ को शहादतैन या शहादाह कहते है, जिसके दो हिस्से होते हैं। पहला हिस्सा कालिमा ए ताव्हीद (ला-इलाहा इल्लल्लाह) और दूसरा हिस्सा कालिमा ए रिसालत (मुहम्मद रसूल अल्लाह की गवाही)। इस्लाम में यह वसीयतनामा अन्य सभी विश्वासों और प्रथाओ के लिए एक आधार है। शहादाह का पहला हिस्सा है ला-इलाहा इल्लल्लाह जिसका माना है - कोई देवता अल्लाह के अलावा इबादत करने के योग्य नहीं। भविष्यद्वक्ताओं का आम संदेश यह वही संदेश है जिसे आदम, नुह, इब्राहीम, मूसा, इसा (अल्लाह की शांति इन पर) और आखरी में मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने इंसानियत तक पहुँचाया। खुरान सुरह अंबिया 21:25 यह गवाही स्वर्ग की कुंजी है। हर कुंजी के लकीरें है। आप कुंजी सही लकीरें के साथ आते हैं, तो आप के लिए दरवाजे खोल दिया जायेंगे। आदेश में इस गवाही के माध्यम से स्वर्ग को प्राप्त करने के लिए ला-इलाहा इल्लल्लाह के शर्तो को पूरा करना चाहिय। (तफसीर इब्न कसीर में उल्लेख किया है) सूचि "ला इलाहा इल्लल्लाह" की गवाही का अर्थ ला-इलाहा इल्लल्लाह की शर्तें पहली शर्त: इल्म (ज्ञान) दूसरी शर्त: यक़ीन (विश्वास) तीसरी शर्त: क़बूलियत चौथी शर्त: इन्क़ियाद (आज्ञापालन) पाँचवीं शर्त: (सिदक) ऐसी सच्चाई जो झूठ के विरूद्ध हो छठी शर्त: इख़्लास सातवीं शर्त: महब्बत और देखें संदर्भ "ला इलाहा इल्लल्लाह" की गवाही का अर्थ "ला इलाहा इल्लल्लाह" की गवाही का अर्थ यह है कि: अल्लाह तआला के सिवाय हर चीज़ से इबादत (उपासना और पूजा) की पात्रता का इनकार करना, और उसे एक मात्र सर्वशक्तिमान अल्लाह के लिए साबित करना जिसका कोई साझी नहीं, अल्लाह तआला का फरमान है: "यह सब इस लिए कि अल्लाह ही सत्य है और उसके अतिरिक्त जिसे भी यह पुकारते हैं वह असत्य है, और नि:सन्देह अल्लाह ही सर्वोच्च और महान है।" (सूरतुल हज्ज: 62) शब्द (ला इलाहा) अल्लाह के अलावा पूजी जाने वाली सभी चीज़ों का इनकार करता है, और शब्द (इल्लल्लाह) हर प्रकार की इबादत को केवल अल्लाह के लिए सिद्ध करता है। अत: उसका मतलब यह है कि : अल्लाह के सिवाय कोई सत्य पूज्य नहीं है। तो जिस तरह अल्लाह तआला का उसके अधिराज्य में कोई साझी नहीं उसी तरह अल्लाह सुब्हानहु व तआला का उस की पूजा और उपासना में भी कोई साझी नहीं। ला-इलाहा इल्लल्लाह की शर्तें पहली शर्त इल्म (ज्ञान) : इस कलिमा का जो अर्थ है उसे इस तौर पर जानना जो इस से अज्ञानता को समाप्त कर दे, अल्लाह तआला का फरमान है :"तो आप जान लें कि अल्लाह के अलावा कोई सच्चा पूज्य (मा’बूद) नहीं।" (सूरत मुहम्मदः 19) तथ अल्लाह तआला ने फरमाया : "हां, जो सच बात (अर्थात् ला-इलाहा इल्लल्लाह) को स्वीकार करें और उन्हें इसकी जानकारी भी हो।" अर्थात् उनकी ज़ुबानों ने जिस चीज़ का इक़रार किया है उनके दिल उस का अर्थ जानते हों। तथा सहीह मुस्लिम में उसमान रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्हों ने कहा कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "जिस की मौत इस ह़ालत में हुई कि वह जानता हो कि अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं तो वह जन्नत में दाख़िल होगया।" दूसरी शर्त यक़ीन (विश्वास) : इस कलिमा का इक़रार करने वाला इस कलिमा के अभिप्राय और आशय पर सुदृढ़ विश्वास रखने वाला हो, क्योंकि ईमान में केवल विश्वासपूर्ण ज्ञान ही लाभ देता है, गुमान पर आधारित ज्ञान से काम नहीं चलता, तो फिर जब उस में सन्देह आ जाये तो उस का क्या ऐतिबार होगा? अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल फरमाता है : "ईमान वाले तो वे हैं जो अल्लाह पर और उसके रसूल पर ईमान लायें, फिर शक न करें, और अपने माल से और अपनी जान से अल्लाह के रास्ते में जिहाद करते रहें, अपने ईमान के दावे में यही लोग सच्चे हैं।" (सूरतुल हुजरात :15) चुनाँचि इस आयत में अल्लाह तआला ने उनके अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाने में सच्चे होने के लिए शर्त लगाई है कि वे शक (सन्देह) करने वाले न हों, शक करने वाला तो मुनाफिक़ों में से है। सहीह मुस्लिम में अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि उनहों ने कहा कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "मैं शहादत देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई सच्चा पूज्य नहीं और मैं अल्लाह का रसूल हूँ, जो व्यक्ति भी इन दोनों बातों के साथ इन में शक व सन्देह न करते हुए अल्लाह से मुलाक़ात करेगा, वह जन्नत में दाख़िल होगा।" एक और रिवायत में है कि : "जो बन्दा भी इन दोनों कलिमों के साथ इन में शक न करते हुए अल्लाह से मिले गा तो वह जन्नत से रोका नहीं जाये गा।" तथा मुस्लिम ही में अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से एक लम्बी हदीस में रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उन्हें अपनी जूतियाँ दे कर भेजा और फरमाया : "इस बगीचे के पीछे जिस आदमी से भी मुलाक़ात हो जो दिल में विश्वास रखते हुए ला-इलाहा इल्लल्लाह की गवाही देता हो, उसे जन्नत की बशारत दे दो।" चुनाँचि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इस कलिमा के कहने वाले के स्वर्ग में जाने के लिए यह शर्त लगाई है कि वह अपने दिल से उस पर विश्वास और यक़ीन रखता हो, उस में शक करने वाला न हो, और जब शर्त नहीं पायी गयी तो मश्रूत भी नहीं पाई जाये गी। तीसरी शर्त क़बूलियत : इस कलिमा का जो तक़ाज़ा (अपेक्षा) है उसे अपने दिल और ज़ुबान से क़बूल करना, अल्लाह तआला ने पिछले लोगों की कहानियाँ बयान करते हुए जिन लोगों ने इसे स्वीकार किया है उन्हें नजात देने और जिन लोगों ने इसे ठुकरा दिया और नहीं माना उन से इंतिक़ाम लेने की सूचना दी है, अल्लाह तआला ने फरमाया : "ज़ालिमों को और उनके साथियों को और जिन-जिन की वे अल्लाह के सिवा इबादत करते थे (उन सब को) जमा करके उन्हें नरक का रास्ता दिखा दो। और उन्हें ठहरा लो (इसलिए) कि उन से ज़रूरी सवाल किये जाने वाले हैं।" (सूरतुस्साफ्फात :22-24) अल्लाह के इस फरमान तक "ये वे लोग हैं कि जब इन से कहा जाता था कि अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं, तो ये घमण्ड करते थे। और कहते थे कि क्या हम अपने देवताओं को एक दीवाने शाईर के बात पर छोड़ दें।" (सूरतुस्साफ्फात :35-36) तो अल्लाह तआला ने उन को अज़ाब (सज़ा) देने का कारण उन का ला-इलाहा इल्लल्लाह् कहने से घमंड करना और जो पैगंबर उसे लेकर आये थे उन को झुठलाना करार दिया है। चुनाँचि उन लोगों ने उस चीज़ को नहीं नकारा जिस को यह कलिमा नकारता है और उस चीज़ को स्वीकार नहीं किया जिस को यह स्वीकारता है, बल्कि इंकार और घमंड करते हुये कहने लगे : "क्या इस ने इतने सारे देवताओं (पूज्यों) को एक ही पूज्य कर दिया? वास्तव में यह बड़ी अजीब बात है। उन के सरदार यह कहते हुए चले कि जाओ और अपने देवताओं पर मज़बूत जमे रहो, बेशक इस बात में कोई मक़सद है। यह बात तो हम ने पुराने धर्मों में भी नहीं सुनी, कुछ नहीं, यह तो केवल मनगढ़न्त है।" (सूरत साद :5-7) तो अल्लाह तआला ने उन्हें झुठला दिया और अपने पैगंबर की ज़ुबानी उन का खण्डन करते हुये फरमाया : "(नहीं, नहीं,) बल्कि नबी तो हक़ (सच्चा दीन) लाये हैं और सभी रसूलों को सच्चा जानते हैं।" (सूरतुस्साफ्फात :37) फिर इस कलिमा को स्वीकार करने वालों की प्रतिष्ठा बयान करते हुए फरमाया : "लेकिन अल्लाह के मुख्लिस बंदे उन्हीं के लिए नियमित रोज़ी है। (हर तरह के) मेवे और वह सम्मानित और सादर नेमतों वाली जन्नतों में हों गे।" (सूरतुस्साफ्फात :40) सहीह बुखारी में अबू मूसा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "अल्लाह तआला ने मुझे जिस मार्गदर्शन और ज्ञान के साथ भेजा है उसका उदाहरण अधिक वषाZ के समान है जो एक धरती पर हुई, तो उस में कुछ अच्छी ज़मीन थी जिस ने पानी को स्वीकार कर लिया और बहुत अधिक घास और पौदा उगाया। और कुछ वर्षा ऐसी जगह हुई जो चटियल (बंजर) है न तो वह पानी को रोकती (सोखती) है और न ही पौदा उगाती है, तो यही उदाहरण उस आदमी की है जिस ने अल्लाह के धर्म की समझ हासिल की और अल्लाह तआला ने मुझे जिस चीज़ के साथ भेजा है उस से उसे लाभ पहुँचाया, तो उस ने उसे स्वयं सीखा और दूसरों को सिखाया, और उस आदमी की उदाहरण है जिस ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया और उस मार्गदर्शन को स्वीकार नहीं किया जिस के साथ मैं भेजा गया हूँ।" चौथी शर्त इन्क़ियाद (आज्ञापालन): यह कलिमा जिस चीज़ पर दलालत करता है उसका इस प्रकर अनुपालन करना कि वह उसे त्याग कर देने के विरूद्ध हो, अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल का फरमान है : "और जो व्यक्ति अपने आप को अल्लाह के अधीन कर दे और वह हो भी नेकी करने वाला, तो यक़ीनन उसने मज़बूत कड़ा थाम लिया, और सभी कामों का अन्जाम अल्लाह की ओर है।" (सूरत लुक़्मान :22) "मज़बूत कड़ा" से अभिप्राय ला-इलाहा इल्लल्लाह है, और अपने आप को अल्लाह के अधीन करने का मतलब अल्लाह की ताबेदारी और अनुपालन करना है, मोहसिन (नेकी करने वाला) का अर्थ यह है कि वह मुवह्हिद (एकेश्वरवादी) हो। और जो व्यक्ति अपने आप को अल्लाह के अधीन न करे और मोहसिन (मुवह्हिद) न हो तो उस ने मज़बूत कड़े को नहीं थामा, और ऐसा ही व्यक्ति उसके बाद अल्लाह के इस फरमान से अभिप्राय है : "और काफिरों के कुफ्र से आप दुखी न हों, अंत में उन सभी का लौटना हमारी तरफ ही है, उस समय उनके किये को हम बता देंगे।" (सूरत लुक़मान :23) और एक सहीह हदीस में है कि अल्लाह के पैग़ंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः "तुम में से काई आदमी उस समय तक मोमिन नहीं हो सकता जब तक कि उसकी इच्छा उस चीज़ के अधीन न हो जाये जिसे मैं लेकर आया हूँ।" और यही संपूर्ण और अत्यंत आज्ञापालन और ताबेदारी है। पाँचवीं शर्त ऐसी सच्चाई जो झूठ के विरूद्ध हो: इसका अभिप्राय यह है कि वह इस कलिमा को अपने दिल की सच्चाई से कहे, उसका दिल उसकी ज़ुबान के अनुकूल हो, अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल का फरमान है : "अलिफ. लाम. मीम. क्या लोगों ने यह समझ रखा है कि उन के केवल यह कहने पर कि हम ईमान लाये हैं, वे बिना परीक्षा लिये हुये छोड़ दिये जायेंगे? उन से पहले के लोगों को भी हम ने अच्छी तरह जाँचा, यक़ीनन अल्लाह तआला उन्हें भी जान ले गा जो सच कहते हैं और उन्हें भी जान लेगा जो झूठे हैं।" (सूरतुल अनकबूत :1-3) तथा मुनाफिक़ों के बारे में जो इस कलिमा के कहने में झूठे होते हैं, अल्लाह तआला ने फरमाया : "और लोगों में से कुछ कहते हैं, हम अल्लाह पर और अंतिम दिन पर ईमान लाये हैं, लेकिन वास्तव में वे ईमान वाले नहीं हैं। वो अल्लाह को और ईमान वालों को धोखा दे रहे हैं, लेकिन वास्तव में वे स्वयं अपने आप को धोखा दे रहे हैं, और उन को समझ नहीं है। उनके दिलों में रोग है, अल्लाह ने उनके रोग को और बढ़ा दिया और उनके झूठ बोलने के कारण उन के लिए कष्टदायक अज़ाब है।" (सूरतुल बक़रा :8-10) तथा सहीहैन (बुखारी व मुस्लिम ) में मुआज़ बिन जबल रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "जो आदमी भी अपने दिल की सच्चाई से यह गवाही देता है कि अल्लाह के अलावा कोई सच्चा पूज्य नहीं और मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) उसके बन्दे और रसूल हैं, तो अल्लाह तआला उसे जहन्नम (नरक) पर हराम कर देगा।" छठी शर्त इख़्लास : इस से अभिप्राय अमल को सभी प्रकार के शिर्क (अनेकेश्वरवाद) की मिलावट से पवित्र और शुद्ध करना है। अल्लाह तआला का फरमान है : "सुनो! अल्लाह ही के लिए खालिस उपासना करना है।" (सूरतुज़्ज़ुमर :3) तथा एक दूसरे स्थान पर फरमाया : "आप कह दीजिए कि मैं तो खालिस तौर से केवल अल्लाह ही की इबादत (आराधना) करता हूँ।" (सूरतुज़्ज़ुमर :14) तथा सहीह बुखारी में अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "क़ियामत के दिन मेरी शफाअत को सब से अधिक सौभाग्य उस आदमी को प्राप्त होगा जिस ने अपने खालिस दिल या शुद्ध मन से "ला-इलाहा इल्लल्लाह" कहा।" सातवीं शर्त महब्बत : इसका मतलब यह है कि आदमी इस कलिमा और इस के तक़ाजे़ (अपेक्षाओं) और जिस चीज़ पर यह दलालत करता है, उस से महब्बत करे, इसी तरह इस कलिमा की शर्तों की पाबंदी करते हुये इस पर अमल करने वालों से महब्बत करे और इसके विरूद्ध चीज़ों से द्वेष रखे और नफरत करे। अल्लाह तआला का फरमान है : "और कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अल्लाह के साझीदार दूसरों को ठहरा कर उनसे ऐसा प्रेम रखते हैं जैसा प्रेम अल्लाह से होना चाहिए और ईमान वाले अल्लाह से प्रेम में सख्त होते हैं।" (सूरतुल बक़रा :165) इस आयत में अल्लाह तआला ने यह सूचना दी है कि ईमान वाले अल्लाह से बहुत सख्त महब्बत करने वाले होते हैं (क्योंकि उन्हों ने अल्लाह की महब्बत में उसके साथ किसी अन्य को साझी नहीं ठहराया है, जैसाकि मुश्रिकों (अनेकेश्वरवादियों) में से अल्लाह की महब्बत के दावेदार लोगों का हाल है जिन्हों ने अल्लाह के सिवा ऐसे सीझीदार बना रखे हैं जिन से वे अल्लाह से महब्बत करने के समान महब्बत करते हैं।" तथा बुखारी व मुस्लिम में अनस रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस में है कि अल्लाह के पैग़ंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "तुम में से काई आदमी उस समय तक मोमिन नहीं हो सकता जब तक कि मैं उस के निकट उस की औलाद, उसके माँ-बाप और समस्त लोगों से अधिक प्रिय न हो जाऊँ।" अब्दुल अजीज बिन अब्दुल्ला बिन बाज़(रहिमाहुल्लाह) आठवीं चीज़ यानि ताघूत से कुफ्र का ज़िक्र करते है। देखिये इनकी किताब “अद दुरूस उल मुहिमा ली आमतिल उम्माह” । और देखें अल्लाह; अल्लाह पर ईमान; रसूल अल्लाह; शिर्क; इत्यादि ।

ALLAH KAUN HAI

અલ્લાહ કોણ છે? આપણે અલગ અલગલોકો થી સાંભળીએ છે જે લોકા અલ્લાહ ની ઓળખ પોતાની અકલ અને સમઝ ના આધારે કરે છે. અને કમઝોર ઈમાન મુસલમાન એમના નઝરીયા થી અસર પકડે છે. અલ્લાહ કોણ છે તે સમજવા માટે સોથી સારા માં સારો રસ્તો કુરઆન શરીફ અને રસુલ સ.અ.વ. એ પોતે જે ઓળખ કરાવી હોય તેને એ રીતે સમજવું જે રીતના આપ સ.અ.વ. સાથે રહનારા આપ ના સહાબીયો એ સમજયું. અલ્લાહ જે આ સુષ્ટી નો સર્જન હાર ,માલીક,રદ્દો વ બદલ કરવાવાળો,છે. તેણે કુર આન ઉતાર્યું જેથી આપણે આ મહત્વ ઝીંદગી ને મકસદ વાળી બનાવીએ.અને આખીરત માં કામયાબી આપણ ને મળે. અગર આપણે કુર આન મ્જીદ નો ખુલા દીલ અને દીમાગ થી વાંચન કરીશું તો ખરેખર અલ્લાહ ની હકીકી પહચાન આપણ ને મળશે. જેનાથી આપણ ને અલ્લાહ ના હકો જાણવા મળશે અને તેની બંદગી કરવા માં નીખાલસતા આવશે. અનુક્રમ્ણીકા જલાલા નામ “અલ્લાહ” ના શબ્દ ની તહકીક અલ્લાહ જ રબ છે. તોહીદે રૂબુવ્વીયત અલ્લાહ જ સાચ્ચો પૂજ્ય ને લાયક છે. તોહીદે ઉલૂહીયત અલ્લાહ ના હક્ક બંદાઓ પર ઈબાદત કોને કેહવાય? અલ્લાહ પોતાના નામ અને ગુણો માં એકજ છે. તોહીદે અસ્મા વ સીફાત અલ્લાહ ક્યાં છે? શું અલ્લાહ ફક્ત મુસલમાનો નો જ મઅબુદ છે? વધારે જુઓ હવાલા જલાલા નામ “અલ્લાહ” ના શબ્દ ની તહકીક આ નામ અલ્લાહ નું મૂળ નામ છે. જે ફક્ત અલ્લાહ માટે જ ખાસ છે. કોઈ પણ બીજો આ નામ રાખી શકતો નથી. આ નામ “ ઇલાહ” થી જોડાયલૂ છે જેનો અર્થ મઅબુદ ( પૂજ્ય ને લાયક ). અબ્દુલ્લાહ બીન અબ્બાસ ર.ઝી. ફરમાવે છે. અલ્લાહ નો અર્થ એ થાય છે “ એવા ગુણો નો માલીક જે આ સુષ્ટી ની ઈબાદત નો હકીકી હકદાર. અલ્લાહ નું આ નામ કુર આન માં સોથી વધારે આવ્યું છે. અંદાઝીત 2200 વાર. અલ્લાહ નામ જેવુ બીજું નામ કોઈ પણ ઝૂબાન માં મળતુ જ નથી. અને ન તો આ શબ્દ નો અર્થ બીજી ભાષા માં મુમકીન છે. અલ્લાહ ફરમાવે છે. “ અલ્લાહ સીવાય કોઈ પૂજ્ય ને લાયક નથી તે ન તો સુવે છે અને ન તો તેને ઝોકું પણ આવે છે. ધરતી અને આકાશો માં જે કઈ છે.તેનું જ છે. કોણ છે જે તેના હજુર માં તેની પરવાનગી વગર ભલામણ કરી શકે.?જે કઈ બંદાઓ ની સામે છે. તેને પણ જાણે છે અને તેના થી અર્દ્શય છે તેને પણ તે જાણે છે. અને તેના જ્ઞાન માથી કોઈ પણ વસ્તુ તેઓ જાણી શકતા નથી.સીવાય કે તે પોતે જ કોઈ વસતું નું જ્ઞાન તેમને આપવામાં ચાહે.તેની કુરસી આકાશો અને ધરતી ઉપર વ્યાપત છે.અને તેની દેખભાળ તેના માટે કોઈ થ્ક્વી નાખનારૂ કાર્ય નથી. બસ ! તે જ એક મહાન અને ઉચ્ચ હસ્તી છે. ( બકરહ : 255) બીજી જગ્યાએ અલ્લાહ ફરમાવે છે. “ કે તમારો ખુદા એક જ છે. તે રહમાન ( અતયંત કૃપાળુ ) અને રહીમ ( અતયંત દયાળુ ) છે. તેના સીવાય બીજો કોઈ ખુદા નથી. (બકરાહ : 163) બીજી જગ્યાએ અલ્લાહ ફરમાવે છે. કે “ હું જ અલ્લાહ છું. મારા સીવાય કોઈ ઉપાસ્ય નથી. તો તું મારી જ બંદગી કર અને મારા સ્મરણ માટે નમાઝ કાયમ કર. ( તાહા : 14) બીજી જગ્યાએ આલ્લાહ ફરમાવે છે. કે “ કહો અલ્લાહ એકજ છે. ( ઇખ્લાસ: 1) અલ્લાહ તઆલા જ રબ છે. રબ શબ્દ ડીશનરી માં માલીક,રદ્દો વ બદલ કરવાવાળો ,તરબીયત કરવાવાળો. હીફાઝ્ત કરવાવાળો થાય છે. આ શબ્દ ઇઝાફત વગર ફક્ત અલ્લાહ માટે જ ઇસ્તેમાલ થાય છે. જ્યારે એને બીજા જોડે ઇસ્તેમાલ કરવું હોય તો ઇઝાફત ઝરૂરી છે. જેવી રીત ના કે ઘર નો માલીક.... અલ્લાહ રૂબુવ્વીયત માં એકલોજ છે. તેની સાથે બીજો કોઈ પણ શરીક નથી. તોહીદે રૂબુવ્વીયત અલ્લાહ પોતાના દરેક કામ માં એકલોજ છે. એટ્લે કે અલ્લાહ પેદા કરવામાં,મીલકીયત માં,તદબીર માં,એકલોજ છે. અલ્લાહ જ દરેક વસ્તુ નો માલીક,ખાલીક ,અને મુદબ્બીર પણ છે.સુર્ષ્ટી નું કામકાજ તેજ ચલાવે છે. અલ્લાહ ફરમાવે છે. પ્રશસા અલ્લાહ માટે જ છે. જે સમગ્ર સુર્ષ્ટી નો રબ છે. ( ફાતેહા: 1) બીજી જગ્યાએ અલ્લાહ ફરમાવે છે. “ હકીકત માં તમારો રબ અલ્લાહ જછે. જેણે આકાશો અને ધરતી ને ફકત 6 દીવસ માં પેદા કર્યા .પછી પોતાના રાજ સીહાસન ઉપર બિરાજમાન થયો જે રાત ને દીવસ ઉપર ઢાકી દે છે.અને પછી દીવસ રાત ની પાછળ દોડ્તો આવે છે. જેણે સૂર્ય,તારા,અને ચંદ્ર પેદા કર્યા. બધાજ તેના આદેશ ને આધીન છે. સાવધાન રહો ! તેની જ સુષટી છે.અને તેની જ આજ્ઞા છે. અત્યત બરકત વાળો છે. અલ્લાહ ! સમસ્ત સુષ્ટી નો માલીક અને પાલનહાર .( આ રાફ :54) ફરમાવ્યું કે ‘ધરતી અને આકાશો નો માલીક અલ્લાહ જ છે. અને દરેક ઉપર તેને વર્ચસ્વ પ્રાપ્ત છે. ( આલે ઈમરાન ;189) ફરમાવ્યું કે “ લોકો અલ્લાહે તમારા ઉપર જે ઇનામો કર્યા છે. તેને યાદ કરો .શું અલ્લાહ સેવાય બીજો કોઈ પેદા કરવાવાળો હોય શકે છે. જે તમાને આસમાંનો માથી રોઝી આપે?તેના સીવાય કોઈ પૂજ્ય ને લાયક નથી તમે ક્યાં ઉલ્ટે જઇ રહ્યા છો.( ફાતીર : 3) અલ્લાહ ફરમાવે છે. “ આ લોકો ને પૂછો “ બતાવો જો તમે જાણતા હોય કે દરેક વસ્તુઓ પર કોની સત્તા છે?અને કોણ છે. તે જે શરણ આપે છે. અને તેના વિરૂદ્ધ કોઈ શરણ આપી સક્તુ નથી” ( મુમિનૂન: 88) અલ્લાહ જ પૂજ્ય ને લાયક છે. અલ્લાહ જ સાચ્ચો પૂજ્ય ને લાયક છે. તેના સીવાય બધાજ પોતાની જાતને પૂજ્ય ને લાયક સમઝનારા બાતીલ છે. અને દરેક પ્રકાર ની ઈબાદત એ અલ્લાહ માટે જ ખાસ છે. કોઈ પણ ઈબાદત માં તેનો કોઈ શરીક નથી. તોહીદે ઉલૂહ્હીયત અલ્લાહ જ આ સુષ્ટી નો સર્જનહાર,માલીક,રદ્દ વ બદલ કરવાવાળો તેજ છે. તો પછી ઈબાદત ની હકદાર તેની જ ઝાત છે. અલ્લાહ ફરમાવે છે. “ આ બધુ એટલા માટે છે કે અલ્લાહ જ સત્ય છે.અને તેને છોડી ને જે આ લોકો બીજી વસ્તુ ઑ ને પોકારે છે. તે અસત્ય છે. અને અલ્લાહ જ ઉચ્ચ અને મહાન છે. ( લૂકમાન : 30) બીજી જગ્યાએ અલ્લાહ ફરમાવે છે. કે લોકો બંદગી કરો પોતાના તે રબ ની જે તમારો અને તમારા પહેલા જે લોકો થઈ ગયા છે. તે બધાજ નો સર્જન હાર છે. તમારા બચાવની આશા આ જ રીતે થઈ શકે છે. એ જ તો છે જેણે તમારા માટે ઝ્મીન ને પાથરણું બનાવ્યું આકાશ ને છત બનાવી.ઉપર થી પાણી વર્સાવ્યું અને તેના ધ્વારા દરેક ખાધ પદાર્થો ઉત્પન્ન કરી તમારા માટે જીવીકા પૂરી પાડી. પછી જ્યારે તમે આ જાણો છો તો બીજા ને અલ્લાહ ના સમકક્ષ ન ઠેરવો.( બકરહ : 21,22) ફરમાવ્યું કે અલ્લાહ ની બંદગી કરો અને તેની સાથે બીજાને શરીક ન કરો . ( નીસા : 36) અને ફરમાવ્યું “ કહો મારી નમાઝ મારી બંદગી ની તમામ વિધિઓ મારૂ જીવવું અને મરવું આ બધુ જ અલ્લાહ માટે જ છે. જેનો કોઈ ભાગી દાર નથી તેનો જ મને આદેશ આપ્વામાં આવ્યો છે. અને સોં પ્રથમ આજ્ઞા પાલન માં માથું જુકાવનાર હું છું.( અન આમ : 162,163) અલ્લાહ નો હક બંદાઓ પર અલ્લાહ ફરમાવે છે. કે “ જીન્નાત અને ઈન્સાનો ને મે એટલા માટે પેદા કર્યા કે તેઓ ફક્ત મારીજ બંદગી કરે. ( ઝારીયાત : 56) મઆઝ ર.ઝી. ફરમાવે છે. કે આપ સ.અ.વ. જે સવારી પર સવાર હતા તે ની પાછળ હું બેઠો હતો તે સવારી નું નામ અફીર હતું આપ સ.અ.વ. ફરમાવ્યું “ એ મઆઝ શું તને ખબર છે કે અલ્લાહ નો હક પોતાના બંદાઓ ઉપર શું છે?અને બંદાઓ નો હક અલ્લાહ પર શું છે?મઆઝે કહ્યું કે અલ્લાહ અને તેના રસુલ વધારે જાણે છે. આપ સ.અ.વ. એ ફરમાવ્યું કે અલ્લાહ નો હક બંદાઓ ઉપર આ છે. કે બંદાઓ તેની જ ઈબાદત કરે અને તેની સાથે કોઈને શરીક ન ઠેરાવે. અને બંદાઓ નો હક અલ્લાહ પર એ છે કે જો બંદો ઈબાદત માં અલ્લાહ ની સાથે કોઈ ને શરીક ન ઠેરાવે તો અલ્લાહ તેને અઝાબ ના આપે. ( બુખારી :2856) ઈબાદત કોને કહેવાય ઈબાદત નો અર્થ થાય છે આઝીઝી,ઇનકેસારી,ઈબાદત એ અબ્દ થી છે. જેનો અર્થ થાય છે. અલ્લાહ ને રાઝી કરવા માટે અલ્લાહે આપેલા ઝાહીરી અને બાતીની અઅમાલ જેવી રીત ના કે નમાઝ ,રોઝા,ઝ્કાત,હજ્જ,સાચ્ચું બોલવું,અમાનત નો પાસ વ લેહાઝ ,માં-બાપ સાથે સર્દવર્તન,સગા સંબધી સાથે સર્દવર્તન,ભલાઈ નો હુકમ અને બુરાઈ થી બચવું ,દુઆ ,અલ્લાહ ની યાદ ,કુર આન પઢવું ,વગેરે,. અલ્લાહ ફરમાવે છે . કે કહો મારી નમાઝ મારી બંદગી ની તમામ વિધિઓ મારૂ જીવવું અને મરવું આ બધુ જ અલ્લાહ માટે જ છે. જેનો કોઈ ભાગી દાર નથી તેનો જ મને આદેશ આપ્વામાં આવ્યો છે. અને સોં પ્રથમ આજ્ઞા પાલન માં માથું જુકાવનાર હું છું.( અન આમ : 162,163) અલ્લાહ પોતાના નામ અને ગુણો માં પણ એકલો જ છે. એટ્લે કે અલ્લાહ ના સારા સારા નામ છે. ગુણો છે. એમાં પણ તે એકલોજ છે. તેનોમ કોઈ ભાગીદાર નથી. તોહીદે અસ્મા વ સીફાત અલ્લાહ પોતાના નામ અને ગુણો માં એકલો જ છે. તેનો કોઈ ભાગીદાર નથી અલ્લાહ ફરમાવે છે. કે “ અલ્લાહ ઉત્તમ નામો નો અધીકારી છે.તેને ઉત્તમ નામો થી જ પોકારો અને તે લોકો ને છોડી દો જેઓ તેના નામ રાખવામા સીધા માર્ગ થી હટી જાય છે. અલ્લાહ તેમનો બદલો આપી ને જ રહેશે.( આરાફ: 180 ) અને ફરમાવ્યું કે અલ્લાહ માટે તો ક્ષેષ્ઠ ગુણો છે તે જ તો બધાજ પર પ્રભુત્વશાળી અને તત્વદર્શીતામાં પરિપૂર્ણ છે. ( નહલ : 60) અને ફરમાવ્યું કે સુષ્ટી ની કોઈ વસતું તેના સમાન નથી. તે બધુજ સાંભળનાર અને જોનાર છે. ( શૂરા : 11) અને ફરમાવ્યું કે “ તે અલ્લાહ જ છે. જેના સીવાય કોઈ ઉપાસ્ય નથી અર્દશય અને ર્દશય દરેક વસ્તુ ને જાણવા વાળો તેજ અત્યંત કૃપાળુ અને દયાળુ છે. તે અલ્લાહ જ છે જેના સીવાય કોઈ ઉપાસ્ય નથી તે સમ્રાટ છે.તદ્દન પવિત્ર,સર્વથા સલામતી ,શાંતી પ્રદાન કરનાર,સરક્ષક ,બધાજ પર પ્રભુત્વ ધરાવનાર ,પોતાના આદેશો બળપૂર્વક લાગુ કરનાર અને વાસ્તવ માં મોટાઈ વાળો છે. પવિત્ર છે,અલ્લાહ તેથી જે આ લોકો શિર્ક કરી રહ્યા છે.તે અલ્લાહ જ છે. જે સુષ્ટી ની યોજના ઘડનાર અને તેને ક્રીયાનિવત કરનાર અને તે અનુસાર રૂપ બનાવનારો છે. તેના માટે સર્વક્ષેષ્ઠ નામો છે દરેક વસ્તુ જે આકાશો અને ધરતી માં છે. તેની તસબીહ કરી છે.અને તે પ્રભુત્વ્સાળી અને તત્વદર્શી છે. ( હશર : 22-24) અબુ હુરેરાહ : ર.ઝી. ફરમાવે છે કે અલ્લાહ ના રસુલ સ.અ.વ. એ ફરમાવ્યુંકે અલ્લાહ ના નવ્વાણુ નામો છે. જેને તેને યાદ કર્યા તે જન્નત માં જશે.( બુખારી 2736) અલ્લાહ ક્યાં છે? અલ્લાહ ની કીતાબ કુરઆન અને રસુલ સ.અ.વ. એ આપેલા વચનો થી અને તે પછી નેક લોકો થી આ વાત ષાબીત છે. કે અલ્લાહ આસમાનો ના ઉપર પોતાના અર્શ પર છે. અને તે બુલંદ અને ઘણો તાકતવર છે. તેના ઉપર કોઈ વસ્તુ નથી. અલ્લાહ ફરમાવે છે,“ તે અલ્લાહ જ છે. જેને આકાશો અને ધરતી ને અને તેની વચ્ચે દરેક વસ્તુઓને 6 દીવસ માં પેદા કરી અને તે પછી સીહાસન ઉપર બિરાજમાન થયો. તેના સીવાય ન તમારો કોઈ સમર્થક અને સહાયક છે. ન તેના સામે કોઈ ભલામણ કરનાર પછી શું તમે ભાન માં નહી આવો.( સજ્દહ : 4) ફરમાવે છે. કે હકીકત માં તમારો રબ અલ્લાહ જ છે. જેને આકાશો અને ધરતી ને 6 દીવસ માં પેદા કર્યા.પછી રાજ સીહાસન ઉપર બીરાજમાંન થઈને સુષ્ટી નું તંત્ર ચલાવી રહ્યો છે.(યુનુસ : 3) ફરમાવ્યું કે દરેક શબ્દો અલ્લાહ તરફ્ જ ચઢે છે.અને નેક કાર્યો ને બુલંદ કરે છે. ( ફાતીર 10) અલ્લાહે ફરમાવ્યું કે “ તેજ પ્રથમ પણ છે. અને અંતીમ પણ અને દરષ્ય પણ અને અ દ્ર્ષ્ય પણ અને તે દરેક વસ્તુ નું જ્ઞાન ધરાવે છે. ( હદીદ: 3) આપ સ.અ.વ. એ ફરમાવ્યું અને ઝાહીર છે. અલ્લાહ ના ઉપર કોઈજ વસ્તુ નથી. ( તીરમીઝી : 3481) આ વાત ને સમજવા માટે અલ્લાહ ની આયાત અને તેની હદીષો છે. એ પછી પણ અલ્લાહે એવું કહ્યું કે હું મારા બંદાઓ ની સાથેજ છું. અલ્લાહ ફરમાવે છે. “ શું તમને ખબર નથી કે આસમાન અને ધરતી ની પ્રત્યેક વસ્તુનું અલ્લાહ ને જ્ઞાન છે. ક્યારેય એવું થતું નથી કે ત્રણ વ્યકિતઓ વચ્ચે કોઈ ગુસપુસ થાય અને તેમના વચ્ચે ચોથો અલ્લાહ ન હોય અથવા પાંચ વ્યકિતઓ વચ્ચે ગુસપુસ થતી હોય અને છઠો અલ્લાહ ન હોય ગુપ્ત વાત કરનારા ચાહે આના થી ઓછા હોય કે વધારે જ્યાં પર તેઓ હોય અલ્લાહ તેમની સાથે હોય છે.( મુજાદલહ :7) પરતું અલ્લાહે પોતાના અર્શ પર ,અને એક સાથે જ પોતાના બંદાઓ પાસે હોવાનું એક જ આયત માં દર્શાવી દીધું છે. અલ્લાહ ફરમાવે છે. “ તે જ છે. જેણે આસ્માન અને ઝ્મીન છ દીવસ માં પેદા કર્યા.પછી અર્શ પર બીરાજમાન થયો. તેના જ્ઞાન માં છે જે કઈ ધરતી માં જાય છે અને જે કઈ તેમાથી નીકળે છે.અને જે કઈ આકાશ માં થી ઉતરે છે.અને જે કઈ તેમાં ચઢે છે.તે તમારા સાથે જ છે જ્યાં પણ તમે છો જે કામ પણ તમે કરો છો તેને જોઈ રહ્યો છે.(હદીદ : 4) આનો એવો મતલબ તો બીલ્કુલ એવો નથી કે તે મખલૂક જોડે ખલતમલત છે. પરંતુ તે પોતાના જ્ઞાન પ્રમાણે પોતાના બંદાઓ પાસે છે. અને તેના અર્શ પર હોવા છતાય બંદાઓ ના આમાલ થી વંચીત નથી. અલ્લાહ ફરમાવે છે કે અમે બંદાની ગળાની ધોરી નસ કરતાં પણ વધુ તેનાથી નઝદીક છીએ. ( કૉફ : 16) વધારે પડતાં મુફસ્સીરીન આ આયત નો મતલબ પણ એ જ બયાન કરે છે કે અલ્લાહ ની આ નઝ્દીકી એ ફરીશતાઓ માટે જેમને બંદાઓ ના આ માલ ની હીફઝ્ત કરવાની ઝીમ્મેદારી સોપવામાં આવી છે.અને જે લોકોએ આ આયત ની તફસીર અલાહ ની નઝ્દીકી બયાન કરી છે. તો તેઓ કહે છે અલ્લાહ પોતાના જ્ઞાન ના આધારે કરીબ છે. અહલે સુન્નત વ અલ જમાઅત ની રાય આ પ્રમાણે છે અલ્લાહ ની બુલંદી મખલૂક પર,અને તેની માઈય્યત ને ષાબીત કરે છે . અને મ્ખલૂક માં હુલુલ થી અલ્લાહ ને પાક માને છે. શું અલ્લાહ મુસલમાનોનો જ મઅબુદ છે? અલ્લાહ તે જ મઅબુદ હક છે. જેને યહૂદ અને નસારા પોતાના ગ્રંથો માં એક એકલા મઅબુદ માટે ઇસ્તેમાલ કરતા હતા અરબી બાઇબલ ની શરૂઆત book of genesis માં અલ્લાહ ના શબ્દ ને ઇસ્તેમાલ કરવામાં આવ્યો છે ખાલીક ( દરેક ને પેદા ક્ર્વાવાળો અને પાલ્વા વાળો પણ. ) આ અર્થ માં. બાઇબલ નું જૂનું એડી શન chaper of genesis પાઠ 1 તેજ નંબર 1 . અરબી ઝૂબાન માં અલ્લાહ શબ્દ એ 17 વાર આવ્યો છે.