Showing posts with label 🔹जुम'आ की पहली अज़ान या'नी अज़ान 'उस्मानी का मसअला🔹. Show all posts
Showing posts with label 🔹जुम'आ की पहली अज़ान या'नी अज़ान 'उस्मानी का मसअला🔹. Show all posts

🔹जुम'आ की पहली अज़ान या'नी अज़ान 'उस्मानी का मसअला🔹

🔹जुम'आ की पहली अज़ान या'नी अज़ान 'उस्मानी का मसअला🔹

🖌... अबू अहमद कलीमुद्दीन यूसुफ मदनी 
जामिया इस्लामिया मदीना मुनव्वरह
 
हिंदी अनुवाद: अब्दुल मतीन सैयद 

(पहली क़िस्त)

यह बात मुत्तफ़क़-'अलैह है कि नबी करीम ﷺ के ज़माने में अबू-बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाह 'अन्हु और उमर रज़ियल्लाह 'अन्हु के दौर ए ख़िलाफ़त में जुम'आ के लिए सिर्फ़ एक ही अज़ान दी जाती रही अज़ान सानी (दूसरी) की इब्तिदा (शुरुआत) उस्मान रज़ियल्लाह 'अन्हु का इज्तिहादी फ़ैसला था जो मुत'अद्दिद (कई) अस्बाब (कारण) की बुनियाद लिया गया था और हुक्म सबब (हेतु) से मुत'अल्लिक़ (बारे में) होता है या'नी जब सबब पाया जाएगा तो हुक्म भी मौजूद होगा और जब सबब मा'दूम (गायब) होगा इंशा अल्लाह हम इस मसअला के तमाम गोशे (पहलू) और मा लहु व मा 'अलैह (तमाम पहलू) को किताब-ओ-सुन्नत अक़्वाल (बातें) सलफ़-ए-सालिहीन और मुहद्दिसीन ओ फ़ुक़हा के कलाम की रौशनी-में (सामने रख के) तफ़्सील से क़िस्त-वार समझने की कोशिश करेंगे !


قال السائب بن يزيد رضی اللہ عنہ: أن الأذان [الذي ذكره الله في القرآن] كان أوله حين يجلس الإمام على المنبر [وإذا قامت الصلاة] يوم الجمعة [على باب المسجد] في عهد النبي ﷺ وأبي بكر وعمر فلما كان خلافة عثمان وكثر الناس [وتباعدت المنازل] أمر عثمان يوم الجمعة بالأذان الثالث «وفي رواية: الأول وفي أخرى: بأذان ثالث» [على دار [له] في السوق لها الزوراء] فأذن به على الزوراء [قبل خروجه ليعلم الناس أن الجمعة قد حضرت] فثبت الأمر على ذلك....

साइब बिन यज़ीद रज़ियल्लाह 'अन्हु फ़रमाते हैं: जुम'आ के दिन जिन अज़ान का ज़िक्र अल्लाह रब्ब-उल-'आलमीन ने क़ुर'आन-ए-मजीद में किया है उन में से पहली अज़ान की इब्तिदा (शुरुआत) उस वक़्त हुई थी जब इमाम साहब आ जाते और मिम्बर पर बैठ जाते और दूसरी अज़ान (या'नी इक़ामत) नमाज़ खड़ी होते वक़्त कही जाती 'अहद-ए-नबवी, 'अहद-ए-सिद्दीक़ी, 'अहद-ए-फ़ारूक़ी में इसी पर 'अमल होता रहा जब उस्मान रज़ियल्लाह 'अन्हु ख़लीफ़ा बने और लोगों की ता'दाद (संख्या) में कसरत (भीड़) होने लगी और लोग घर दूर बनाने लगे तो उस्मान रज़ियल्लाह 'अन्हु ने ज़ोरा नामी मार्केट (बाज़ार) में अपने घर पर तीसरी अज़ान देने का हुक्म दिया (एक रिवायत में है: पहली अज़ान और एक दूसरी रिवायत में है: दूसरी अज़ान का हुक्म दिया) उस्मान रज़ियल्लाह 'अन्हु के घर से निकलने से क़ब्ल (पहले) ज़ोरा नामी मार्केट में अज़ान दी जाती ता-कि (जिससे) लोगों को 'इल्म हो जाए कि ख़ुत्बा-ए-जुम'आ का वक़्त हुआ चाहता है और फिर उस्मान रज़ियल्लाह 'अन्हु के इसी फ़ैसले पर 'अमल होने लगा !

[इस हदीस की तख़रीज इमाम बुखारी, इमाम अबू दाऊद, इमाम तिर्मिज़ी, इमाम नसाई और इमाम इब्न ए माजा वग़ैरहा ने की हैं 'अरबी नस में बिराकिट वाले जुमले (शब्द) हदीस की मुख़्तलिफ़ किताबों के हैं ब-ख़ौफ़ तवालत (लंबाई) हवाला-जात (हवाले) नहीं दिए जा रहे हैं जब मुकम्मल मज़मून (लेख) नश्र (प्रसार) किया जाएगा तो तमाम हवाले नक़्ल किए जाएंगे हदीस की 'इबारत (लेख) शैख़ अल्बानी रहिमहुल्लाह की किताब "الأجوبة النافعة" से नक़्ल की गई है क्यूँ कि इस तरतीब (क्रम) से सिर्फ़ शैख़ रहिमहुल्लाह ने ही ज़िक्र (वर्णन) किया है]

फ़वाइद हदीस:
1: नबी करीम ﷺ के ज़माने में जुम'आ के लिए सिर्फ़ एक ही अज़ान दी जाती रही
2: अबू बक्र रज़ियल्लाह 'अन्हु के ज़माने में भी जुम'आ के लिए सिर्फ़ एक अज़ान दी जाती रही
3: और उमर रज़ियल्लाह 'अन्हु के ज़माने में भी जुम'आ के लिए सिर्फ़ एक ही अज़ान दी जाती रही
4: उस्मान रज़ियल्लाह 'अन्हु ने अपने ज़माने में दूसरी अज़ान की इब्तिदा (शुरुआत) मुंदरिजा-ज़ेल (निम्नलिखित) अस्बाब (कारण) की बुनियाद पर की
* लोगों की ता'दाद (संख्या) काफ़ी (बहुत) हो गई थी
* लोगों के घर मस्जिद से दूर हो गए थे
* लोगों को ख़ुत्बा-ए-जुम'आ के वक़्त का इल्म हो जाए
5: अज़ान 'उस्मानी मस्जिद में नहीं दी जाती थी जैसा कि आज कल लोग देते हैं बल्कि (लेकिन) मस्जिद से दूर ज़ोरा नामी बाज़ार में दी जाती थी !

नोट: बा'ज़ (चंद) रिवायत में उस्मान रज़ियल्लाह 'अन्हु की अज़ान को पहली अज़ान कहा गया है बा'ज़ में दूसरी अज़ान और बा'ज़ (चंद) में तीसरी अज़ान
अलहमदुलिल्लाह मज़कूरा रिवायत में कोई त'आरुज़ नहीं वो इस तरह कि इमाम जिस वक़्त मिम्बर पर बैठ ते है वो पहली अज़ान हुई इक़ामत को भी अज़ान कहा जाता है और यह दोनों नबी करीम ﷺ के ज़माने में भी मौजूद थी इस ए'तिबार से उस्मान रज़ियल्लाह 'अन्हु ने जिस अज़ान का इज़ाफ़ा किया वो तीसरी कहलाई गई
और तरतीब (क्रम) के ए'तिबार से उस्मान रज़ियल्लाह 'अन्हु वाली अज़ान पहली अज़ान कहलाएंगी 
और जो लोग इक़ामत को अज़ान में शुमार (गिनती) नहीं करते उनके नज़दीक उस्मान रज़ियल्लाह 'अन्हु की अज़ान दूसरी कहलाएगी क्यूँकि (इसलिए कि) पहली अज़ान तो शरी'अत ने पहले से ही फ़र्ज़ कर रखी है !

🔹........................🔹