🔴नमाज़ मजबूरी में छूट जाये तो कैसे पढ़ें ?
✨ हज़रत अबू सईद ख़ुदरी रज़ि० से रिवायत है कि हम (अहज़ाब की लड़ाई में) अल्लाह के रसूल ﷺ के साथ थे। हमें काफ़िरों ने ज़ुह्र, अस्र, मग़रिब और इशा की नमाज़े पढ़ने का मौक़ा न दिया (और उन नमाज़ों का वक़्त निकल गया) जब मौक़ा हाथ लगा तो अल्लाह के रसूल ﷺ ने हज़रत बिलाल को हुक्म दिया, उन्होंने अज़ान कही तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ज़ुह्र की नमाज़ पढ़ाई। फ़िर इक़ामत कही तो अस्र की नमाज़ पढ़ाई। फ़िर इक़ामत कही तो अल्लाह के रसूल ﷺ ने मग़रिब की नमाज पढ़ाई। उन्होंने फ़िर इक़ामत कही तो फ़िर अल्लाह के रसूल ﷺ ने इशा की नमाज़ पढ़ाई।
📙[मुस्नद अहमद - ( 3/25, 49, 67, 68) नसई (2/17) इसे इब्ने हिब्बान और इमाम नौवी ने सहीह कहा है।]
इस हदीस से मालूम हुआ कि अगर किसी सख़्त मजबूरी के कारण नमाज़ें रह जाए तो उन्हें तब से अदा करना मसनून है, लेकिन नमाज़ें जान बूझ कर कज़ा नहीं करनी चाहियें।