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QURAN sabhi ke liye

कुरान सभी के लिए
कुरआन मजीद इतने उच्चकोटि की वाणी है कि उसे जो सुनता लहालोट हो जाता। हजरत मुहम्मद (सल्ल0) कुरआन पढ़कर लोगो को सुनाते, जो पढ़े-लिखे और समझदार थे वे इस पर र्इमान लाते कि यह र्इशग्रन्थ हैं। इस प्रकार कुरआन के माननेवालों की संख्या बढ़ने लगी और दुश्मनों की परेशानी बढ़ने लगी। जो इस पर र्इमान लाता उसको मारा-पीटा जाता, किसी के पैर मे रस्सी बॉधकर घसीटा जाता, किसी को जलती हुर्इ रेत पर लिटाकर उपर से भारी पत्थर रख दिया जाता, किसी को उलटा लटकाकर नीचे से धूनी दी जाती। फिर भी ये र्इमान लानेवाले पलटने को तैयार नही थे। जब लोगो ने देखा कि र्इमान लानेवालों की संख्या बढ़ती ही जा रही हैं तो तय किया गया कि मुहम्मद (सल्ल0) ही को कत्ल कर दिया जाए। र्इश्वर ने मुहम्मद (सल्ल0) को आदेश दिया कि रातो-रात मदीना चले जाओ, वहां के लोग अच्छे हैं और बहुत-से लोग इस किताब पर र्इमान ला चुके हैं। अत: मुहम्मद (सल्ल0) मदीना हिजरत कर गए जो मुसलमान जहां-जहां थे, धीरे-धीरे मदीना पहुचने लगे। इस प्रकार कुरआन मजीद पर र्इमान लानेावालों का एक गिरोह मदीना में बन गया। इस पर विरोधी बहुत चिन्तित हुए और इस छोटे-से गिरोह को खत्म करने के लिए उन्होने कर्इ बार आक्रमण किए, मगर हर बार पराजित हुए। इस प्रकार बद्र, उहद, हुनैन इत्यादि स्थानों पर युद्ध हुआ, पर हर जगह र्इमान लानेवाले सफल रहे और अरब मे इस कुरआन के आधार पर एक छोटी-सी इस्लामी हुकूमत बन गर्इ। वह अरब जहां कोर्इ हुकूमत ही न थी, दिन-दहाड़े काफिलें लूट लिए जाते और बस्तियों के लोग रातभर डर के मारे सो भी नही पाते कि डाकुओं को कोर्इ गिरोह रात को उनके घर पर आक्रमण करके लूट ले और मर्दो और औरतों को बाजार में ले जाकर बेच दे। यह थी अरब के लोगो की दुर्दशा। परन्तु जब इस्लामी स्टेट स्थापित हुर्इ तो वहां ऐसा अमन हुआ कि एक बुढ़िया सोना उछालते हुए ‘सनाआ’ से ‘हजरे-मौत’ तक सैकड़ो मील की तन्हा रेगिस्तानी यात्रा करती है। रास्ते मे उसको कोर्इ भय नही होता। यह दशा देखकर लोग बड़ी संख्या मे र्इमान लाने लगे और पूरे अरब मे इस्लामी हुकूमत स्थापित हो गर्इ।

मुहम्मद (सल्ल0) की मृत्यु के पश्चात उनके चार खुलफा 1. हजरत अबूबक्र (रजि0)
2. हजरत उमर (रजि0), 3. हजरत उस्मान (रजि0) और 4. हजरत अली (रजि0) ने उस वक्त की सभ्य दुनिया के बहुत बड़े क्षेत्र पर इस्लामी हुकूमत कायम कर दी। यह हुकूमत र्इश्वर के बादशाह होने और इन्सान का इससे पृथ्वी पर र्इश्वर का खलीफा (नायब) होने के आधार पर बनी थी। पूरे देश में र्इशग्रन्थ (कुरआन मजीद) के आधार पर कानून चलता था। पूरे देश मे जनता बड़ी सुखी थी और हुकूमत से पूर्णत: संतुष्ट थी।
गैरमुसलिम लोग जो इस हुकूमत के अन्दर रहते थे, वे हूकूमत से बहुत खुश थे। र्इसार्इयों के विषय मे मिस्टर आरनाल्ड का कथन काफी हैं। वह कहते है-

‘‘मुसलमानों की हुकूमत मे जो र्इसार्इ फिरके रहते थे उनके साथ न्याय करने मे इस्लामी हुकूमत ने कभी कोताही नही ही।’’

अन्य गैरमुसलिम वर्गो के बारे मे केवल दो मिसाले प्रस्तुत की जाती है-
मिस्त्र के एक गैरमुसलिम ने उस वक्त के खलीफा हजरत उमर फारूक (रजि0) से शिकायत की आपके गवर्नर के लड़के को नाहक कोड़े मारे है।
गवर्नर और उसका लड़का तलब किया गया। शिकायत सही साबित हुर्इं। खलीफा ने लड़के को हुक्म दिया कि तुम भी गवर्नर के लड़के को कोड़े मारो। अत: उस लड़के ने गवर्नर के लड़के को कोड़े मारे। जब कोड़ा रखने लगा तो खलीफा ने कहा कि दो कोड़े गवर्नर साहब को भी मारो, क्योकि उनके लड़के को अगर यह घमण्ड न होता कि उसका बाप गवर्नर है तो तुम्हे कोड़े कदापि न मारता, परन्तु गैरमुसलिम लड़के ने यह कहते हुए कोड़ा रख दिया कि जिसने मुझे मारा था मैने उससे बदला ले लिया, मेरा दिल ठंडा हो गया, मै गवर्नर को क्यो मारूं।

मिस्त्र की एक गैरमुसलिम बुढ़िया ने खलीफा हजरत उमर से शिकायत की आप के गवर्नर अबुल आस ने मेरी आज्ञा के बगैर मेरा मकान गिराकर मस्जिद मे सम्मिलित कर लिया हैं गवर्नर बुलाए गए। उन्होने इस बात को स्वीकार किया कि शिकायत सही हैं। मस्जिद तंग पड़ती हैं। किसी तरफ बढ़ने की गुंजार्इश नही हैं, इसके मकान ही की तरफ बढ़ने की गुंजाइश हैं। बुढ़िया को उसके मकान की दुगुनी कीमत दी जा रही हैं, परन्तु उसने लेने से इन्कार कर दिया। हमारे सामने भी मजबूरी थी। अत: हमने उसका मकान गिराकर उसपर मस्जिद बना दी और मकान की दुगुनी रकम बैतुलमाल में जमा हैं। इस पर खलीफा बड़े गजबनाक हुए और हुक्म दिया कि बुढ़िया का मकान वही बनाया जाए जहॉ पहले था।

इस प्रकार बहुत से वाकियात ऐसे हुए जिनसे मालूम होता है कि गैर मुसलिम जनता भी इस्लामी हुकूमत से बहुत खुश थी। यह सारी बाते इतिहास के पन्नों में आज भी सुरक्षित हैं, जिन्हे पढ़कर आज के बुद्धिजीवी भी बोल उठे-

    नेपोलियन बोनापार्ट ने कहा, ‘‘ मुझे आशा हैं कि वह समय दूर नही जब मै इस योग्य हो जाउंगा कि संसार के सारे देशों के शिक्षित और योग्य लोगो को एकत्रित कर दूॅ और उनकी सहायता से कुरआन की बुनियाद पर एक ऐसी व्यवस्था स्थापित कर दूॅ जो सत्य हैं और मानवता को सफलता के मार्ग पर ले जा सकती हैं।’’
    बर्नाड शां ने कहा, ‘‘आनेवाले सौ वर्षो मे हमारी दुनिया का मजहब इस्लाम होगा, मगर आज के मुसलमानों का इस्लाम नही, बल्कि वह इस्लाम जो मानव बुद्धि में रचा बसा हैं।’’
    रवीन्द्र नाथ टैगोर ने कहा, ‘‘ वह समय दूर नही जब इस्लामी अपनी ऐसी सच्चार्इ जो ठुकरार्इ न जा सके, रूहानियत द्वारा सब पर विजय पा लेगा और हिन्दू मजहब पर भी विजयी हो जायेगा, तो हिन्दुस्तान मे एक ही मजहब होगा और वह इस्लाम मजहब होगा।
    महात्मा गॉधी ने कहा:, ‘‘जब हिन्दुस्तान स्वतंत्र हो जाएगा तो हम यहां भी वैसा ही शासन स्थापित करेंगे जैसा अबूबक्र ने स्थापित किया था।’’
    जय प्रकाश नारायण ने पटना मेडिकल कालेज मे सौरेत पर भाषण देते हुए कहा, ‘‘यदि आज दुनिया के मुसलमान गफलत के पर्दे चाक करके मैदान मे आ जाएं और इस्लामी सिद्धान्तों पर काम करें तो सारी दुनिया का मजहब इस्लाम हो सकता हैं।’’

र्इश्वर

        आज चन्द्र नास्तिकों को छोड़कर पूरी दुनिया र्इश्वर को मान रही है, लेकिन किसी की भी विचारधारा किसी र्इश्वरीय ग्रन्थ पर नही है। इसलिए किसी का र्इश्वर-

1-    ऐसा हैं जिसकों छह दिनों में दुनिया पैदा करके सातवें दिन आराम करने की जरूरत पेश आ गर्इ।
2-    किसी का र्इश्वर रब्बुल आलमीन (संसार का पालनहार) नही है, बल्कि रब्बुल र्इसरार्इल (र्इसरार्इल का पालनहार) हैं, जिसका एक नस्ल के लोगो से ऐसा विशेष रिश्ता हैं, जो दूसरे इन्सानों से नही हैं।
3-    किसी का र्इश्वर हजरत याकूब से कुश्ती लड़ता है, लेकिन उसको गिरा नही सका।
4-    किसी का र्इश्वर औजेर नामी एक बेटा भी रखता हैं।
5-    किसी का र्इश्वर यीशु मसीह नामी एक इकलौते बेटे का बाप हैं और वह दूसरो के गुनाहों का कफफारा बनाने के लिए बपने बेटे को सलीब पर चढ़ा देता हैं।
6-    किसी का र्इश्वर बीवी-बच्चे भी रखता हैं, मगर बेचारे के पास बेटियां ही बेटियां पैदा होती हैं।
7-    किसी का र्इश्वर इन्सानी रूप धारण करता हैं। जमीन पर इन्सानी जिस्म मे रहकर इन्सानों के से काम करता हैं।
8-    किसी का र्इश्वर केवल, ‘‘ वाजेबुल वजूद’’ या ‘‘इल्लतुल इलल’’ (First cause) हैं। कायनात के निजाम को एक मरतबा हरकत देकर अलग जा बैठा और उसके बाद कायनात लगे-बंधे कानून मे मुताबिक खुद चल रही है। इनसान का उससे और उसका इन्सान से कोर्इ सम्बन्ध नही है।

इस प्रकार जो लोग र्इश्वर को मानते भी हैं वे खुदा को यह नही मानते कि ब्र्रहम्माण्ड के निजाम को केवल बनाया ही नही हैं बल्कि हर वक्त वही उसको चला भी रहा हैं।  जिसकी जात, सिफात, इख्तियारात और इस्तेहकाके माबूदियत मे कोर्इ इसका साझी नही हैं। जो इस बात से उपर हैं कि कोर्इ उसकी औलाद हो या किसी को अपना बेटा बनाए या किसी को अपना बाप बनाए। वह तो अजन्मा हैं। किसी कौम और नस्ल से उसका खास रिश्ता नही है।

आज दुनिया के पास कुरआन मजीद के अतिरिक्त कोर्इ ऐसा ग्रन्थ नही हैं जो र्इश्वरीय भी हो ओर पूर्णत: सुरक्षित भी। आज दुनिया खुद ही कल्पना द्वारा एक र्इश्वर बनाती हैं और खुद ही उसके गुण तय करती हैं। अब यह बात पूर्ण रूप से सिद्ध हो चुकी है कि कुरआन मजीद अन्तिम र्इशग्रन्थ हैं और पूर्णत: सुरक्षित भी हैं। इसलिए र्इश्वर के बारे मे जो कुछ यह किताब कहती हैं, वही सही हैं।
अन्तिम र्इशग्रन्थ से पहले जितने भी ग्रन्थ र्इश्वर की तरफ से आए थे वे बिगाड़ का शिकार होकर हो चुके थें इसलिए किसी के पास भी र्इश्वर के बारे मे सही जानकारी का कोर्इ साधन न था। हर एक ने अपनी कल्पना से एक र्इश्वर बनाया और स्वंय ही उसके बारे मे जानकारी दे दी। इसी लिए इन लोगो के यहां र्इश्वर के बारे मे प्रस्तुत की हुर्इ जानकारी एक-दूसरे से मेल नही खाती। अन्तिम र्इश-ग्रन्थ के आधार पर जो र्इश्वर का परिचय दिया जाए तो लोग यही समझेंगे कि यह भी लेखक के दिमाग की पैदावार हैं। इसलिए अब र्इश्वर का जो परिचय इस पुस्तक मे दिया जाएगा उसके साथ अन्तिम र्इशग्रन्थ की आयतें भी लिख दी जाएगी, ताकि लोगो के दिमाग में कोर्इ गलत धारणा पैदा न होने पाए। परन्तु छोटी-सी पुस्तक मे पूरी-पूरी आयतों का लिखना असम्भव हैं।इसलिए यहां केवल आयत नम्बर दे दिया जाएगा, ताकि लोग उसको कुरआन मजीद से तुलना करके देख लें।


अन्तिम र्इशग्रन्थ कुरआन मजीद मे र्इश्वर का क्या परिचय दिया गया हैं, उसको हम संक्षेप मे प्रस्तुत करेंगे और कुरआन मजीद की जिन आयतों के आधार पर जो बात कही गर्इ हैं उनका आयत नम्बर भी कर्ज किया गया हैं।

इस्लाम की बुनियाद जिन धारणाओं पर हैं, उनमें सबसे प्रथम एवं मुख्य धारणा एक र्इश्वर पर र्इमान है। केवल इस बात पर नही कि र्इश्वर मौजूद है और केवल इस बात पर भी नही कि वह एक है, बल्कि इस पर कि वही अकेला इस ब्रहम्माण्ड का खालिक, मालिक, हाकिम और मुदब्बिर है। (सूरा अल-आराफ: आयत-5, अल-बकरा : 101, अल-फुरकान : 2,)

उसी के कायम रखने से यह ब्रहम्माण्ड कायम है। उसी के चलाने से यह चल रहा है। उसकी हर चीज को अपने कयाम और बका के लिए जिस शक्ति की आवश्यकता है उसका मुहैया करनेवाला वही हैं। (सूरा फातिर : आयत 3, 41, अल-जासिया : आयत 58, अल-अनआम : आयत 164)।
हाकमियत (Sovereignty) की तमाम सिफात केवल उसी में पार्इ जाती हैं और उनमें जर्रा भर भी उसका कोर्इ शरीक नही है। (सूरा अल-अनआम : 18, 57, अल-कहफ : 26-27, अल-हदीद : 5, अल-हश्र : 23, अल-मुल्क : 1, यासीन0 : 83, अल-फत्ह : 11, यूनुस : 107, अल-जिन्न : 22, अल-मोमिनून :88, अल-बुरूज 16, अल-माइदा : 1, अर-रअद : 41, अल-अम्बिया : 23, अत-तीन : 8, आले इमरान : 26, 83, 154, अल-आराफ : 128)। समस्त ब्रहम्माण्ड को और उसकी एक-एक वस्तु को वह देख रहा हैं। ब्रहम्माण्ड और उसकी हर चीज को वह जानता हैं। न सिर्फ उसके वर्तमान को बल्कि भूत और भविष्य को भी। समस्त इल्मे गैब (अप्रत्यक्ष ज्ञान) उसके अतिरिक्त किसी को प्राप्त नही हैं। (सूरा अल-मुल्क : 13, 14, 19, अल-कहफ : 26, काफ: 16, अल-हदीदी : 4, अल-नम्ल : 65, सबा : 2-3, अल-अनआम : 59)

वह हमेशा से हैं और हमेशा रहेगा। उसके अतिरिक्त सब मरनेवाले हैं और अपनी जात से खुद जिन्दा और बाकी केवल वही हैं। (सूरा अल-हदीद : 3, अल-कसस : 88, अर-रहमान : 27, अल-बकरा : 255, अल-मोमिन : 65)

वह न किसी की औलाद हैं और न कोर्इ उसकी औलाद है। उसकी जात के अतिरिक्त दुनिया में जो भी हैं, वह उसकी मखलूक है। दुनिया में किसी की भी हैसियत नही हैं कि उसको किसी माने मे भी रब्बे कायनात (Lord of the universe) का हमजिन्स या उसके बेटा या बेटी कहा जा सके। (सूरा अल-बकरा : 116, 117, अल-अनआम : 102, अल-मोमिन : 91, अल-कहफ: 4-5, मरयम : 35,8893)

वही मानव का वास्तविक माबूद है। किसी को इबादत मे उसके साथ शरीक करना सबसे बड़ा पाप  और सबसे बड़ी बेवफार्इ हैं। वही मानव की दुआएं सुननेवाला हैं और कबूल करने या न करने का अधिकार वही रखता है। उससे दुआ न मांगना बेजा गुरूर हैं। उसके अतिरिक्त किसी और से दुआ मांगना जहालत हैं और उसके साथ दूसरों से दुआ मॉगना खुदार्इ मे गैर खुदा को खुदा के साथ शरीक ठहराना हैं। (सूरा अल-कसस :88, अज-जुमर : 3,64,5,6, लुकमान : 13, सबा :22, स्वाद : 65, अल-मोमिन :60) इस्लामी दृष्टिकोण से र्इश्वर की हाकमियत केवल प्रकृति के अनुरूप ही नही हैं, बल्कि सियासी और कानूनी भी हैं और इस हाकमियत मे भी कोर्इ उसका शरीक नही है। उसकी जमीन पर, उसके पैदा किए बन्दो पर उसके अतिरिक्त किसी को हुक्म चलाने का अधिकार नही हैं, चाहे वह कोर्इ बादशाह हो या बादशाह हो या बादशाही खानदान हो, शासक वर्ग हो या कोर्इ ऐसा प्रतातंत्र हो जो जनता की सत्ता (Soverengity of people) का कायल  हो। उसके मुकाबले मे जो स्वतंत्र बनता हो वह भी बागी है, जो उसको छोड़कर किसी दूसरे की इताअत करता हो वह भी बागी हैं और ऐसा ही बागी वह  व्यक्ति या संस्था हैं जो राजनीतिक और कानूनी अधिकार को अपने सुरक्षित करके खुदा की सीमा व अधिकार (Jurisdiction) को व्यक्तिगत कानून ( Personal law) या धार्मिक आदेश या उपदेश तक सीमित करना हैं। वास्तव मे अपनी जमीन पर पैदा किए हुए इन्सानों के लिए शरीअत देनेवाला (Law give) उसके सिवा न कोर्इ हैं, न हो सकता हैं और न किसी को यह हक पहुचना हैं कि इकतिदार (Supreme Authority) को चैलेंज करें। (सूरा अल-फुरकान : 42, अत-तौबा : 31, अश-शुअरा :21, अल-मोमिनून :116, अन-नास :1,3, यूसुफ : 40 अल-आराफ :3, अल-माइदा : 38, 40 अल-माइदा: 115, अल-बकरा :178,180,182, 229, 232, अन-निसा : 11, 60, अल-जासिया : 18, अल-माइदा : 44, 45,47,50, अन-नहल :116, अन-नूर : 2, आले-इमरान : 64)

इस्लाम के इस तसव्वुरे खुदा’ के अनुसार चन्द बाते स्वाभाविक रूप से अनिवार्य होती हैं-

1-    खुदा ही मानव का अकेला और वास्तविक माबूद हैं अर्थात इबादत का हकदार केवल वही है, उसके सिवा किसी और की यह हैसियत ही नही हैं कि मानव उसकी इबादत करे।
2-    वही अकेला ब्रहम्माण्ड की सारी शक्तियों का हाकिम हैं। मानव की दुआओं को पूरा करना या न करना उसके अधिकार मे हैं। इसलिए मानव को उसी से दुआ मॉगनी चाहिए।
3-    वही अकेला मानव की किस्मत का मालिक हैं। किसी दूसरे मे यह शक्ति नही हैं कि वह मानव की किस्मत बना सके या बिगाड़ सके। इसलिए मानव की आशा और डर दोनों का केन्द्रबिन्द वास्तव में वही हैं। उसके अतिरिक्त किसी से न उम्मीद करनी चाहिए और न किसी से डरना चाहिए।
4-    मनव और उसके चारों ओर की दुनिया का खालिक और मालिक केवल वही हैं। इसलिए मानव की वास्तविकता और समस्त दुनिया की वास्तविकता का बराहेरास्त और पूर्ण ज्ञान केवल उसी को हैं और हो सकता हैं। अत: वही जीवन के टेढ़े-मेढे रास्तों में मानव को सही मार्गदर्शन और जीवन का सही कानून दे सकता हैं।
5-    फिर चूंकि मानव का खालिक और मालिक वही हैं और इस धरती का मालिक हैं जिसमें मानव रहता हैं, इसलिए मानव पर किसी दूसरे की हाकमियत या खुद अपनी हाकमियत सरासर कुफ्र हैं। इसी प्रकार मानव का कानूनसाज बनना या किसी और व्यक्तियों या संस्थाओं के कानून बनाने के अधिकार मानना भी वही हैसियत रखता हैं। अपनी जमीन पर अपनी पैदा की हुर्इ चीजों का हाकिम और कानून बनानेवाला केवल वही हो सकता है।
6-    सर्वोच्च शासक और वास्तविक मालिक होने की हैसियत से उसका कानून वास्तव मे सर्वश्रेष्ठ कानून (Supreme law) हैं। मानव के लिए बनाने का अधिकार केवल उसी हद तक हैं जो उस सर्वश्रेष्ट कानून के अन्तर्गत आता हैं  या उससे लिया गया हो या उसके दिए हुए आदेश पर आधारित हो।
अन्तिम र्इग्रन्थ का परिचय इतने स्थानों पर दिया गया है कि यदि कोर्इ व्यक्ति कुरआन को समझकर पढ़े तो र्इश्वर के विरोध मे एक कदम भी नही उठा सकता। जब र्इश्वर का परिचय उसके दिल व दिमाग मे बैठ जाए तो वह कोर्इ काम र्इश्वरीय ग्रन्थ के विरोध में कर ही नही सकता। इसका उदाहरण एक ऐतिहासिक घटना से प्रस्तुत किया जा रहा हैं-
सासामी खानदान के एक बादशाह अहमद बिन नसर ने नेशापुर मे पहली बार प्रवेश किया। उसने वहॉ एक दरबार लगाया। स्वंय राजगददी पर ताज बैठा और हुक्म दिया कि जलसे की शुरूआत कुरआन मजीद के पाठ से होगी। यह सुनकर जलसे मे से एक बुजुर्ग उठे और कुरआन का वह भाग पढ़ा  जो परलोक की अदालत के विषय मे था। जब वह इस स्थान पर पहुंचे के ‘‘उसदिन सारी सत्ता र्इश्वर के हाथ मे होगी, और वह कहेगा, आज सत्ता किसके हाथ में है, आज वास्तव मे सत्ता किसके हाथ मे है, संसार मे बहुत-से लोग बादशाह बने हुए थे, आज कहॉ हैं वे बादशाह? चारों ओर से आवाज आएगी-आज सारी सत्ता र्इश्वर के हाथ मे हैं।’’ यह सुनते ही अहमद बिन नसर कांपने लगा। राजगद्दी (सिंहासन) से उतर गया। ताज अलग रख दिया और सजदे मे गिर पड़ा, और रो रोकर कहने लगा, ‘‘ हे र्इश्वर! बदशाह तू हैं, मै नहीं।’’ इससे साफ ज्ञात होता हैं कि यदि र्इश्वर का सही परिचय दिल और दिमाग मे उतर गया हो तो र्इश्वर का ध्यान आते ही सारी बादशाही समाप्त हो जाती हैं।
एक वाकिया हैं कि एक रर्इस के यहां एक नौजवान लड़की नौकर थी। एक दिन रर्इस की नियत खराब हो गर्इ। लड़की को कमरे मे बुलाया और जब वह आर्इ तो कहा कि दरवाजे को अन्दर से बन्द कर लों। लड़की रर्इस की नियत को समझ गर्इ। सारे दरवाजे तो बन्द कर दिए, परन्तु एक दरवाजे के पास खड़ी हो गर्इ। रर्इस ने पूछा क्या सब दरवाजे बन्द हो गए। लड़की ने उत्तर दिया कि हॉ, सब दरवाजे तो बन्द हो गए परन्तु दरवाजा तो नही बन्द हो रहा हैं। रर्इस ने कहा कि आखिर वह कौन सा दरवाजा हैं जो बन्द नही हो रहा हैं। लड़की बोली कि ‘‘ वह दरवाजा जिससे र्इश्वर हमे और आपको देख रहा हैं, बन्द नही हो रहा है।’’ यह सुनते ही रर्इस को र्इश्वर याद आ गया। वह जानता था कि र्इश्वर तो यही है, जो सब कुछ देख रहा हैं और सुन रहा हैं। वह कॉपने लगा और लड़की से कहा कि तुम जल्दी से कमरे से बाहर चली जाओ। रर्इस सजदे मे गिर पड़ा और रो रोकर र्इश्वर से क्षमा मांगने लगा।
इससे ज्ञात हुआ कि यदि र्इश्वर का सही परिचय दिल व दिमाग मे रचा-बसा हो तो आदमी हजार बिगड़ गया हो, र्इश्वर की याद आते ही सारा नशा उत्तर जाएगा।
Author Name: डॉ0 इल्तिफात अहमद इस्ला ही

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MANAW ADHIKAR

मानव अधिकार
मानवाधिकार की आधारशिला—
पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल॰) का विदायी अभिभाषण
इस्लाम में मानवाधिकार
पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल॰) ईश्वर की ओर से, सत्यधर्म को उसके पूर्ण और अन्तिम रूप में स्थापित करने के जिस मिशन पर नियुक्त किए गए थे वह 21 वर्ष (23 चांद्र वर्ष) में पूरा हो गया और ईशवाणी अवतरित हुई :
‘‘...आज मैंने तुम्हारे दीन (इस्लामी जीवन व्यवस्था की पूर्ण रूपरेखा) को तुम्हारे लिए पूर्ण कर दिया है और तुम पर अपनी नेमत पूरी कर दी और मैंने तुम्हारे लिए इस्लाम को तुम्हारे दीन की हैसियत से क़बूल कर लिया है...।’’    
(कु़रआन, 5:3)
आप (सल्ल॰) ने हज के दौरान ‘अरफ़ात’ के मैदान में 9 मार्च 632 ई॰ को एक भाषण दिया जो मानव-इतिहास के सफ़र में एक ‘मील का पत्थर’ (Milestone) बन गया। इसे निस्सन्देह ‘मानवाधिकार की आधारशिला’ का नाम दिया जा सकता है। उस समय इस्लाम के लगभग सवा लाख अनुगामी लोग वहाँ उपस्थित थे। थोड़ी-थोड़ी दूरी पर ऐसे लोगों को नियुक्त कर दिया गया था जो आपके वचन-वाक्यों को सुनकर ऊँची आवाज़ में शब्दतः दोहरा देते; इस प्रकार सारे श्रोताओं ने आपका पूरा भाषण सुना।
भाषण
आपने पहले ईश्वर की प्रशंसा, स्तुति और गुणगान किया, मन-मस्तिष्क की बुरी उकसाहटों और बुरे कामों से अल्लाह की शरण चाही; इस्लाम के मूलाधार ‘विशुद्ध एकेश्वरवाद’ की गवाही दी और फ़रमाया :
● ऐ लोगो! अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं है, वह एक ही है, कोई उसका साझी नहीं है। अल्लाह ने अपना वचन पूरा किया, उसने अपने बन्दे (रसूल) की सहायता की और अकेला ही अधर्म की सारी शक्ति को पराजित किया।
● लोगो मेरी बात सुनो, मैं नहीं समझता कि अब कभी हम इस तरह एकत्र हो सवें$गे और संभवतः इस वर्ष के बाद मैं हज न कर ससूंगा।
● लोगो, अल्लाह फ़रमाता है कि, इन्सानो, हम ने तुम सब को एक ही पुरुष व स्त्री से पैदा किया है और तुम्हें गिरोहों और क़बीलों में बाँट दिया गया कि तुम अलग-अलग पहचाने जा सको। अल्लाह की दृष्टि में तुम में सबसे अच्छा और आदर वाला वह है जो अल्लाह से ज़्यादा डरने वाला है। किसी अरबी को किसी ग़ैर-अरबी पर, किसी ग़ैर-अरबी को किसी अरबी पर कोई प्रतिष्ठा हासिल नहीं है। न काला गोरे से उत्तम है न गोरा काले से। हाँ आदर और प्रतिष्ठा का कोई मापदंड है तो वह ईशपरायणता है।
● सारे मनुष्य आदम की संतान हैं और आदम मिट्टी से बनाए गए। अब प्रतिष्ठा एवं उत्तमता के सारे दावे, ख़ून एवं माल की सारी मांगें और शत्रुता के सारे बदले मेरे पाँव तले रौंदे जा चुके हैं। बस, काबा का प्रबंध और हाजियों को पानी पिलाने की सेवा का क्रम जारी रहेगा। कु़रैश के लोगो! ऐसा न हो कि अल्लाह के समक्ष तुम इस तरह आओ कि तुम्हारी गरदनों पर तो दुनिया का बोझ हो और दूसरे लोग परलोक का सामन लेकर आएँ, और अगर ऐसा हुआ तो मैं अल्लाह के सामने तुम्हारे कुछ काम न आ सकूंगा।
● कु़रैश के लोगो, अल्लाह ने तुम्हारे झूठे घमंड को ख़त्म कर डाला, और बाप-दादा के कारनामों पर तुम्हारे गर्व की कोई गुंजाइश नहीं। लोगो, तुम्हारे ख़ून, माल व इज़्ज़त एक-दूसरे पर हराम कर दी गईं हमेशा के लिए। इन चीज़ों का महत्व ऐसा ही है जैसा तुम्हारे इस दिन का और इस मुबारक महीने का, विशेषतः इस शहर में। तुम सब अल्लाह के सामने जाओगे और वह तुम से तुम्हारे कर्मों के बारे में पूछेगा।
● देखो, कहीं मेरे बाद भटक न जाना कि आपस में एक-दूसरे का ख़ून बहाने लगो। अगर किसी के पास धरोहर (अमानत) रखी जाए तो वह इस बात का पाबन्द है कि अमानत रखवाने वाले को अमानत पहुँचा दे। लोगो, हर मुसलमान दूसरे मुसलमान का भाई है और सारे मुसलमान आपस में भाई-भाई है। अपने गु़लामों का ख़्याल रखो, हां गु़लामों का ख़्याल रखो। इन्हें वही खिलाओ जो ख़ुद खाते हो, वैसा ही पहनाओ जैसा तुम पहनते हो।
● जाहिलियत (अज्ञान) का सब कुछ मैंने अपने पैरों से कुचल दिया। जाहिलियत के समय के ख़ून के सारे बदले ख़त्म कर दिये गए। पहला बदला जिसे मैं क्षमा करता हूं मेरे अपने परिवार का है। रबीअ़-बिन-हारिस के दूध-पीते बेटे का ख़ून जिसे बनू-हज़ील ने मार डाला था, मैं क्षमा करता हूं। जाहिलियत के समय के ब्याज (सूद) अब कोई महत्व नहीं रखते, पहला सूद, जिसे मैं निरस्त कराता हूं, अब्बास-बिन-अब्दुल मुत्तलिब के परिवार का सूद है।
● लोगो, अल्लाह ने हर हक़दार को उसका हक़ दे दिया, अब कोई किसी उत्तराधिकारी (वारिस) के हक़ में वसीयत न करे।
● बच्चा उसी के तरफ़ मन्सूब किया जाएगा जिसके बिस्तर पर पैदा हुआ। जिस पर हरामकारी साबित हो उसकी सज़ा पत्थर है, सारे कर्मों का हिसाब-किताब अल्लाह के यहाँ होगा।
● जो कोई अपना वंश (नसब) परिवर्तन करे या कोई गु़लाम अपने मालिक के बदले किसी और को मालिक ज़ाहिर करे उस पर ख़ुदा की फिटकार।
● क़र्ज़ अदा कर दिया जाए, माँगी हुई वस्तु वापस करनी चाहिए, उपहार का बदला देना चाहिए और जो कोई किसी की ज़मानत ले वह दंड (तावान) अदा करे।
स किसी के लिए यह जायज़ नहीं कि वह अपने भाई से कुछ ले, सिवा उसके जिस पर उस का भाई राज़ी हो और ख़ुशी-ख़ुशी दे। स्वयं पर एवं दूसरों पर अत्याचार न करो।
● औरत के लिए यह जायज़ नहीं है कि वह अपने पति का माल उसकी अनुमति के बिना किसी को दे।
● देखो, तुम्हारे ऊपर तुम्हारी पत्नियों के कुछ अधिकार हैं। इसी तरह, उन पर तुम्हारे कुछ अधिकार हैं। औरतों पर तुम्हारा यह अधिकार है कि वे अपने पास किसी ऐसे व्यक्ति को न बुलाएँ, जिसे तुम पसन्द नहीं करते और कोई ख़्यानत (विश्वासघात) न करें, और अगर वह ऐसा करें तो अल्लाह की ओर से तुम्हें इसकी अनुमति है कि उन्हें हल्का शारीरिक दंड दो, और वह बाज़ आ जाएँ तो उन्हें अच्छी तरह खिलाओ, पहनाओ।
● औरतों से सद्व्यवहार करो क्योंकि वह तुम्हारी पाबन्द हैं और स्वयं वह अपने लिए कुछ नहीं कर सकतीं। अतः इनके बारे में अल्लाह से डरो कि तुम ने इन्हें अल्लाह के नाम पर हासिल किया है और उसी के नाम पर वह तुम्हारे लिए हलाल हुईं। लोगो, मेरी बात समझ लो, मैंने तुम्हें अल्लाह का संदेश पहुँचा दिया।
● मैं तुम्हारे बीच एक ऐसी चीज़ छोड़ जाता हूं कि तुम कभी नहीं भटकोगे, यदि उस पर क़ायम रहे, और वह अल्लाह की किताब (क़ुरआन) है और हाँ देखो, धर्म के (दीनी) मामलात में सीमा के आगे न बढ़ना कि तुम से पहले के लोग इन्हीं कारणों से नष्ट कर दिए गए।
● शैतान को अब इस बात की कोई उम्मीद नहीं रह गई है कि अब उसकी इस शहर में इबादत की जाएगी किन्तु यह संभव है कि ऐसे मामलात में जिन्हें तुम कम महत्व देते हो, उसकी बात मान ली जाए और वह इस पर राज़ी है, इसलिए तुम उससे अपने धर्म (दीन) व विश्वास (ईमान) की रक्षा करना।
● लोगो, अपने रब की इबादत करो, पाँच वक़्त की नमाज़ अदा करो, पूरे महीने के रोज़े रखो, अपने धन की ज़कात ख़ुशदिली के साथ देते रहो। अल्लाह के घर (काबा) का हज करो और अपने सरदार का आज्ञापालन करो तो अपने रब की जन्नत में दाख़िल हो जाओगे।
● अब अपराधी स्वयं अपने अपराध का ज़िम्मेदार होगा और अब न बाप के बदले बेटा पकड़ा जाएगा न बेटे का बदला बाप से लिया जाएगा ।
● सुनो, जो लोग यहाँ मौजूद हैं, उन्हें चाहिए कि ये आदेश और ये बातें उन लोगों को बताएँ जो यहाँ नहीं हैं, हो सकता है, कि कोई अनुपस्थित व्यक्ति तुम से ज़्यादा इन बातों को समझने और सुरक्षित रखने वाला हो। और लोगो, तुम से मेरे बारे में अल्लाह के यहाँ पूछा जाएगा, बताओ तुम क्या जवाब दोगे? लोगों ने जवाब दिया कि हम इस बात की गवाही देंगे कि आप (सल्ल॰) ने अमानत (दीन का संदेश) पहुँचा दिया और रिसालत (ईशदूतत्व) का हक़ अदा कर दिया, और हमें सत्य और भलाई का रास्ता दिखा दिया।
यह सुनकर मुहम्मद (सल्ल॰) ने अपनी शहादत की उँगुली आसमान की ओर उठाई और लोगों की ओर इशारा करते हुए तीन बार फ़रमाया, ऐ अल्लाह, गवाह रहना! ऐ अल्लाह, गवाह रहना! ऐ अल्लाह, गवाह रहना।
इस्लाम में मानव-अधिकारों की अस्ल हैसियत
जब हम इस्लाम में मानवाधिकार की बात करते हैं तो इसके मायने अस्ल में यह होते हैं कि ये अधिकार ख़ुदा के दिए हुए हैं। बादशाहों और क़ानून बनाने वाले संस्थानों के दिए हुए अधिकार जिस तरह दिए जाते हैं, उसी तरह जब वे चाहें वापस भी लिए जा सकते हैं। डिक्टेटरों के तस्लीम किए हुए अधिकारों का भी हाल यह है कि जब वे चाहें प्रदान करें, जब चाहें वापस ले लें, और जब चाहें खुल्लम-खुल्ला उनके ख़िलाफ़ अमल करें। लेकिन इस्लाम में इन्सान के जो अधिकार हैं, वे ख़ुदा के दिए हुए हैं। दुनिया की कोई विधानसभा और दुनिया की कोई हुकूमत उनके अन्दर तब्दीली करने का अधिकार ही नहीं रखती है। उनको वापस लेने या ख़त्म कर देने का कोई हक़ किसी को हासिल नहीं है। ये दिखावे के बुनियादी हुव़ू$क़ भी नहीं हैं, जो काग़ज़ पर दिए जाएँ और ज़मीन पर छीन लिए जाएँ। इनकी हैसियत दार्शनिक विचारों की भी नहीं है, जिनके पीछे कोई लागू करने वाली ताक़त (Authority) नहीं होती। संयुक्त राष्ट्रसंघ के चार्टर, एलानात और क़रारदादों को भी उनके मुक़ाबले में नहीं लाया जा सकता। क्योंकि उन पर अमल करना किसी के लिए भी ज़रूरी नहीं है। इस्लाम के दिए हुए अधिकार इस्लाम धर्म का एक हिस्सा हैं। हर मुसलमान इन्हें हक़ तस्लीम करेगा और हर उस हुकूमत को इन्हें तस्लीम करना और लागू करना पड़ेगा जो इस्लाम की नामलेवा हो और जिसके चलाने वालों का यह दावा हो कि ‘‘हम मुसलमान’’ हैं। अगर वह ऐसा नहीं करते और उन अधिकारों को जो ख़ुदा ने दिए हैं, छीनते हैं, या उनमें तब्दीली करते हैं या अमलन उन्हें रौंदते हैं तो उनके बारे में कु़रआन का फै़सला यह है कि ‘‘जो लोग अल्लाह के हुक्म के ख़िलाफ़ पै़$सला करें वही काफ़िर हैं’’ (5:44)। इसके बाद दूसरी जगह फ़रमाया गया ‘‘वही ज़ालिम हैं’’ (5:45)। और तीसरी आयत में फ़रमाया ‘‘वही फ़ासिक़ हैं’’ (5:47)। दूसरे शब्दों में इन आयतों का मतलब यह है कि अगर वे ख़ुद अपने विचारों और अपने फै़सलों को सही-सच्चा समझते हों और ख़ुदा के दिए हुए हुक्मों को झूठा क़रार देते हों तो वे काफ़िर हैं। और अगर वह सच तो ख़ुदाई हुक्मों ही को समझते हों, मेगर अपने ख़ुदा की दी हुई चीज़ को जान-बूझकर रद्द करते और अपने फै़सले उसके ख़िलाफ़ लागू करते हों तो वे फ़ासिक़ और ज़ालिम हैं। फ़ासिक़ उसको कहते हैं जो फ़रमाबरदारी से निकल जाए, और ज़ालिम वह है जो सत्य व न्याय के ख़िलाफ़ काम करे। अतः इनका मामला दो सूरतों से ख़ाली नहीं है, या वे कुफ्ऱ में फंसे हैं, या फिर वे फ़िस्क़ और जु़ल्म में फंसे हैं। बहरहाल जो हुक़ूक़ अल्लाह ने इन्सान को दिए हैं, वे हमेशा रहने वाले हैं, अटल हैं। उनके अन्दर किसी तब्दीली या कमीबेशी की गुंजाइश नहीं है।
ये दो बातें अच्छी तरह दिमाग़ में रखकर अब देखिए कि इस्लाम मानव-अधिकारों की क्या परिकल्पना पेश करता है।