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इस्लाम से ख़ारिज (बाहर) कर देने वाले उमूर (काम)

🔹इस्लाम से ख़ारिज (बाहर) कर देने वाले उमूर (काम)🔹

तालीफ़: शैख़ अब्दुल 'अज़ीज़ बिन बाज़ रहिमहुल्लाह

उर्दू तर्जमा: अहमद मुख़्तार मदनी

हिंदी अनुवाद: अब्दुल मतीन सैयद
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तमाम ता'रीफ़ें सिर्फ़ अल्लाह के लिए हैं और अल्लाह की रहमत और सलामती हो नबी ﷺ पर जिन के बा'द कोई नबी नहीं और आप की आल और सहाबा पर और जिन को अल्लाह ने हिदायत दी !

अल्लाह रब्ब-उल-'आलमीन ने हर इंसान पर इस्लाम की ता'लीमात (शिक्षाएं) पर मुकम्मल तौर से 'अमल-पैरा होने को लाज़िम (ज़रूरी) क़रार दिया है और इस्लाम से दूर करने वाली हर चीज़ से बचने की ताकीद की है उसने अपने नबी ﷺ को इस्लाम का दा'ई (दा'वत देने वाला) बना कर भेजा साथ ही इस बात की ख़बर दी के जिसने आप ﷺ की इत्तिबा' (पैरवी) की वह हिदायत-याफ़्ता हो गया और जिसने इंकार व रु-गर्दानी की (मुंह फेरा) वो गुमराह हो गया !

अल्लाह रब्ब-उल-'आलमीन ने मुख़्तलिफ़ आयतों में इर्तिदाद (मुर्तद हो जाने) नीज़ (और) कुफ़्र और शिर्क की तमाम किस्मों से बचने की सख़्त ताकीद फ़रमाइ है और 'उलमा ने भी मुर्तद के हुक्म में यह बात ज़िक्र की है कि इर्तिदाद की बहुत सारी किस्में हैं जिससे मुसलमान दीन-ए-इस्लाम से मुर्तद हो सकता है जिस की वजह से उस का ख़ून और उस का माल हलाल हो जाता है और वो इस्लाम के दाइरे से निकल जाता है !

यूँ तो इस्लाम से ख़ारिज (बाहर) करने वाली बहुत सारी चीजें हैं लेकिन उन में से ज़ियादा संगीन व ख़तरनाक और सबसे ज़ियादा पेश आने वाली दश चीजें हैं जिन्हें इमाम मुहम्मद बिन अब्दुल वहाब रहिमहुल्लाह और दीगर (अन्य) 'उलमा ने ज़िक्र किया है हम इन्हें इख़्तिसार के साथ (मुख़्तसर तौर पर) ज़िक्र कर रहे हैं ता-कि (इसलिए) आप खुद इस से बचें और दूसरों को भी बचने की दा'वत दें अल्लाह रब्ब-उल-'आलमीन से 'आफ़ियत और सलामती की उम्मीद है !

(1) अल्लाह की 'इबादत में शिर्क करना: अल्लाह-त'आला का इरशाद हैं: यक़ीनन अल्लाह-त'आला अपने साथ शरीक किए जाने को नहीं बख़्शता और इस के सिवा जिसे चाहे बख़्श दे और जो अल्लाह-त'आला के साथ शरीक मुक़र्रर करे उसने बहुत बड़ा गुनाह और बोहतान बांधा, 
(सूरा अन्-निसा:48)
    मुर्दों से फ़रियाद व मदद तलब करना उन्हें पुकारना उन के लिए नज़्र-ओ-नियाज़ व ज़बीहा पेश करना और किसी जिन्न के लिए या किसी क़ब्र पर जानवर ज़ब्ह करना भी शिर्क है !

(2) अपने और अल्लाह के दरमियान (बीच में) ग़ैरुल्लाह को वास्ता व वसीला बना कर पुकारना:
और उनसे शफ़ा'अत तलब करना और उन पर तवक्कुल (भरोसा) करना जिसने ऐसा किया वो मुत्तफ़िक़ा तौर पर (सब की एक राय से) काफ़िर हो गया !
   कुफ़्फ़ार अपने मा'बूदों के बारे में कहा करते थे:
या'नी इन बुतों की 'इबादत हम सिर्फ़ इस लिए करते हैं क्यूंकि यह अल्लाह के पास हमारे सिफ़ारिशी हैं, (सूरा यूनुस:18)

(3) मुशरिकीन को काफ़िर क़रार न देना: या उनके कुफ़्र में शक करना या उनके मज़ाहिब (धर्मों) को सहीह कहना यह सब इज्मा'अन (सब की एक राय से)कुफ़्र है !

(4) इस बात का 'अक़ीदा रखना कि नबी-ए-अकरम ﷺ से दूसरे का तौर-तरीक़ा ज़ियादा बेहतर है या यह कि आप ﷺ के फ़ैसलों और अहकाम (आदेश) से ग़ैर के फ़ैसले और अहकाम अफ़ज़ल हैं:
मिसाल के तौर पर तवाग़ीयत (ताग़ूत हर वो चीज़ है जिस की अल्लाह के सिवा पूजा की जा रही हो) के फ़ैसलों को आप ﷺ के फ़ैसलों पर तरजीह (श्रेष्ठता) देना जिसने यह 'अक़ीदा रखा वो काफ़िर हो गया !

(5) नबी-ए-करीम ﷺ की लाई हुई शरी'अत के किसी भी हुक्म से बुग़्ज़ व 'अदावत (दुश्मनी) रखने वाला काफ़िर है अगरचे वो ज़ाहिरी तौर पर दीन पर 'अमल करने वाला क्यूं न हो:
  चुनांचे इरशाद-ए-इलाही है: यह इस लिए कि वो अल्लाह की नाज़िल-कर्दा चीज़ से नाख़ुश हुए पस अल्लाह-त'आला ने भी उनके आ'माल जाएँ (बर्बाद) कर दिए.
(सूरा मुह़म्मद:9)

(6) आप ﷺ की शरी'अत के किसी हुक्म या किसी सवाब व 'इक़ाब (नेकी और 'अज़ाब) का मज़ाक़ उड़ाना कुफ़्र है:
इरशाद-ए-बारी-त'आला है:
" आप कह दीजिए कि अल्लाह उस की आयतें और उस का रसूल ही तुम्हारे हँसी-मज़ाक़ के लिए रह गए हैं ? तुम बहाने न बनाओं यक़ीनन तुम अपने ईमान लाने के बा'द काफ़िर हो गए,
(सूरा अत्-तौबा:65,66)

(7) जादू: उस की एक क़िस्म दिलों को फेरना भी है (यह एक जादूई 'अमल है जिस से इंसानी ख़्वाहिश तब्दील कर दी जाती है शौहर (या बीवी) के दिल को एक दूसरे से मुहब्बत की ब-जाए बुग़्ज़ व 'अदावत में तब्दील कर दिया जाता है) जादू की एक क़िस्म दिल में झुकाव और मिलान (लगाव) पैदा करना भी है (जिस से शैतानी तरीकों को अपना कर इंसान के दिल में नफ़रत की जगह मुहब्बत पैदा की जाती है) जादूगर और जादू क़ुबूल करने वाला दोनों काफ़िर है इरशाद-ए-बारी-त'आला है: 
" वह दोनों भी किसी शख़्स को उस वक़्त तक (जादू) नहीं सिखाते थे जब तक यह न कह दे हम तो एक आज़माइश है तूं कुफ़्र न कर,
(सूरा अल्-ब-क़-रा:102)

(8) मुसलमानों के बर-ख़िलाफ़ (विरुद्ध) मुशरिकीन की मदद और उन से दोस्ती करना:
 इरशाद-ए-रब्बानी है: " ऐ ईमान वालो तुम यहूद-ओ-नसारा को दोस्त न बनाओं यह तो आपस में ही एक दूसरे के दोस्त हैं तुम में से जो भी उन में से किसी से दोस्ती करे वो बेशक उन्हीं में से हैं ज़ालिमों को अल्लाह-त'आला हरगिज़ राह-ए-रास्त नहीं दिखाता,
(सूरा अल्-माइदा :51)

(9) जिस का 'अक़ीदा हो कि बा'ज़ (कुछ) इंसानों के लिए शरी'अत-ए-मुहम्मदिया की पाबंदी ज़रूरी नहीं है वो काफ़िर है:
अल्लाह-त'आला का इरशाद हैं:
 " जो शख़्स इस्लाम के सिवा और दीन तलाश करें उस का दीन क़ुबूल न किया जाएगा और वो आख़िरत में नुक़्सान पाने वालों में से होगा,
(सूरा आले इम्रान:85)

(10) दीन-ए-इस्लाम से मुकम्मल इंहिराफ़ (मुंह फेरना) न उस का इल्म हासिल करे और न ही उस पर 'अमल करे:
अल्लाह-त'आला का इरशाद हैं:
" उस से बढ़ कर ज़ालिम कौन है जिसे अल्लाह-त'आला की आयतों से वा'ज़ किया गया (नसीहत की गई) फिर भी उसने उन से मुंह फेर लिया यक़ीन मानो कि हम भी गुनाहगारों से इंतिक़ाम (बदला) लेने वाले हैं, (सूरा अस्-सज्दा:22)
  मज़कूरा " नवाक़िज़ ए इस्लाम " का मुर्तकिब (मुजरिम) मुर्तद कहलाएगा चाहे उस का इर्तिकाब ('अमल करना) मज़ाक़ व इस्तेहज़ा (हंसी मज़ाक़) में हुआ हो या संजीदगी (गंभीरता) में अलबत्ता (लेकिन) वो शख़्स मुर्तद न होगा जिसे काफिरों ने इस-क़दर मजबूर कर दिया हो कि उसे अपनी जान का ख़तरा हो गया हो,
  इन नवाक़िज़ को उन की संगीनी (गंभीरता) और उन के 'आम होने की वजह से ज़िक्र किया गया है इस लिए हर मुसलमान की ज़िम्मेदारी है कि इन से बचे और ख़ौफ़ खाए हम ग़ज़ब-ए-इलाही नीज़ (और) उस के अस्बाब (कारण) और 'अज़ाब की सख़्ती से अल्लाह की पनाह चाहते हैं चौथी क़िस्म में वो भी दाख़िल है जिस का यह 'अक़ीदा हो कि वज़'ई निज़ाम व क़वानीन (बनावटी निज़ाम और कानून) इस्लामी निज़ाम व शरी'अत से बेहतर है या दोनों बराबर हैं या यह कि वज़'ई (मन-घड़त) क़वानीन (कानून) से फैसला जाइज़ है अगरचे उस का यह 'अक़ीदा हो कि इस्लामी शरी'अत दीगर (अन्य) निजामों से अफ़ज़ल व बेहतर है या यह कि इस्लामी निज़ाम में इक्कीसवीं सदी के शाना-ब-शाना (साथ-साथ) चलने की सलाहिय्यत नहीं या यह कि इस्लामी निज़ाम ही मुसलमानों के तख़ल्लुक़ व पसमांदगी (पीछे रह जाने) का सबब (कारण) है या यह कि इस्लाम सिर्फ़ मस्जिदों तक महदूद (सीमित) है ज़िंदगी के दूसरे शो'बों (हिस्सों) में उस का कोई 'अमल-दख़ल (अधिकार) नहीं या जिस का यह ख़याल हो कि चोर के हाथ काटना या शादी-शुदा ज़िना-कार को संगसार करना मौजूदा ज़माने के मुनासिब (अनुकूल) नहीं है इसी तरह जिस का यह ख़याल हो कि मु'आमलात (व्यवहार) और हुदूद वग़ैरा में वज़'ई-क़वानीन (मन-घड़त कानून) का नफ़ाज़ (लागू करना) दुरुस्त है अगरचे उस का यह 'अक़ीदा न हो कि यह शरी'अत से अफ़ज़ल हैं क्यूंकि उसने उस चीज़ को जाइज़ समझा जिसे अल्लाह रब्ब-उल-'आलमीन ने हराम करार दिया है और जिस ने भी अल्लाह की हराम कर्दा चीज़ों जैसे ज़िना, शराब, सूद और अल्लाह की शरी'अत को छोड़ कर बशरी क़वानीन (कानून) के नफ़ाज़ को जाइज़ समझा (या'नी इंसान के बनाए गए कानून को लागू करने को जाइज़ समझा) वो इज्मा'अन काफ़िर हो गया,
अल्लाह रब्ब-उल-'आलमीन से दु'आ है कि हम सब को अच्छे कामों की तौफ़ीक़ (हिम्मत) दे और हमें और तमाम मुसलमानों को सिरात-ए-मुस्तक़ीम की हिदायत (रहनुमाई) फ़रमाए वो बहुत ही क़रीब और सुनने वाला है,
 और दुरूद-ओ-सलाम (उस की रहमत व सलामती) हो उस के नबी ﷺ और आप के आल व असहाब पर !

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