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જાન દે દેના શિર્ક સે આસાન હૈ

જાન દે દેના શિર્ક સે આસાન હૈ



*હઝરત અબુ દર્દા રઝી*. સે રિવાયત. તે ઉન્હોને  કહા મેરે   જીગરી દોસ્ત રસુલુલ્લાહ  ( ﷺ) ને   નસીહત કરતે હુએ ફરમાયા કે અલ્લાહ કે સાથ કિસી ચિઝ કો શરીક ન  કરના  અગરચે તુઝે ટુકડે  ટુકડે કર દિયા યા તુઝે જલા દિયા જાથે,


ઔર ફર્ઝ નમાઝ જાન બૂઝકર મત છોડના જીસ ને ફર્ઝ નમાઝ  જાન બુઝ કર છોડ દિયા તો ઉસે (અલ્લાહ કી હિફાજત કા) ઝિમમા ખતમ હો જાતા હૈ ઔર શરાબ ન પીના ક્યુ કે શરાબ હર બુરાઈ કી ચાબી હૈ
،‏‏‏‏ عَنْ أَبِي الدَّرْدَاءِ،‏‏‏‏ قَالَ:‏‏‏‏ أَوْصَانِي خَلِيلِي صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ أَنْلَا تُشْرِكْ بِاللَّهِ شَيْئًا،‏‏‏‏ وَإِنْ قُطِّعْتَ وَحُرِّقْتَ،‏‏‏‏ وَلَا تَتْرُكْ صَلَاةً مَكْتُوبَةً مُتَعَمِّدًا،‏‏‏‏ فَمَنْ تَرَكَهَا مُتَعَمِّدًا فَقَدْ بَرِئَتْ مِنْهُ الذِّمَّةُ،‏‏‏‏ وَلَا تَشْرَبْ الْخَمْرَ،‏‏‏‏ فَإِنَّهَا مِفْتَاحُ كُلِّ شَرٍّ.
(ઇબ્ને માઝા 4034)

હદીસે સે પાક સે માલુમ હુઆ કે તૌહિદ કે લિયે જાન ભી કુર્બાન કરની પડે તો સઆદત હૈ દુસરી બાત યે માલુમ હુઈ કે શિર્ક કે બાદ સબસે બડા ગુના નમાઝ કા છોડના હૈ જો કુફર કે બરાબર હે તીસરી બાત યે માલુમ હુઈ કે અકલ અલ્લાહ કી બહોત બડી નેઅમત હૈ નશા વાલી ચિઝ ઇસ્તિમાલ કર કે ઈસ નેઅમત ખરાબ કરના અલ્લાહ કી ના શુક્રી હૈ..

*મકતબા અલ ફૂર્કાન સમી ગુજરાત-*

ALLAH KAUN HAI ?

अल्लाह कौन है? हम अल्लाह के बारे में सिर्फ और सिर्फ अल्लाह से है जान सकते हैं। और यह दो रास्तों से ही संभव है: पहला: उन आयातों से जिन्हें अल्लाह ताला ने अपनी पुस्तक कुरान मजीद में रहस्योद्घाटन किया और नबी सल्लालाहू अलैहि वसल्लम के शब्दों में जो उन्होंने हमें अल्लाह के बारे में बताया। दूसरा: अल्लाह ताला के पैदा किये हुवे प्राणियों से उस कई बनाये हुवे इस संपूर्ण जगत से । इन दो मार्गों से हमें अल्लाह की महानता उस की एकता रुबुबियत उलुहियत और उस के नामों में पता चलती है । और कुरान मजीद इन जैसी आयातों से भरी हवी है रही बात छंद ब्रह्मांडीय की तो यह जगत खुली किताब है सरे मानुष इसे किसी भी भाषा में पढ़ सकते हैं और हर तरह के निवासियों इसे अपनी भुद्धि द्वारा पढ़ और समझ सकता है । सूचि अल्लाह शब्द का मूल अल्लाह का अस्तित्व और उसकी विशेषताएँ परमेश्वर की क्षमता और उनकी महानता के सबूत अल्लाह के खोज की यात्रा उसकी रचनाएँ उसका पता देती हैं यदि आप उसे पहचानना चाहते हैं... तो दरवाज़े पर दस्टाक दीजिये और देखें संदर्भ अल्लाह शब्द का मूल “अल्लाह”शब्द का मूल अरबी है lइस्लाम से पहले अरबों द्वारा इस नाम का प्रयोग रहा हैlऔर “अल्लाह”का शब्द परमेश्वर सर्वशक्तिमान के लिए बोला जाता था जिसका कोई साझेदार नहीं है lइस्लामी अवधि से पहले अज्ञानता के समय में अरब उसपर ईमान रखते थे, लेकिन वे अन्य देवताओं को भी उसके साथ साथ पूजते थे और कुछ लोग उसकी उपासना में मूर्तियों को भी शामिल किया करते थे l अल्लाह का अस्तित्व और उसकी विशेषताएँ (विश्वासियों और नास्तिक दोनों) बल्कि सारे लोगों के बीच इस बात पर एकमत होना संभव है कि अल्लाह के अस्तित्व और विशेषताओं की सच्चाई तक पहुंचने के लिए एक ही रास्ता है और वह है शुद्ध वैज्ञानिक तर्क का रास्ता lक्योंकि इस बात से हर कोई सहमत हैं कि हर काम के लिए कोई न कोई करनेवाला होता है और हर चीज़ के लिए कोई न कोई कारण होता है lइस से कोई चीज़ बाहर नहीं हैlकोई भी चीज़ बिना कारण या ऐसे ही नहीं हो जाती है lकोई न कोई कारण या कोई न कोई वजह ज़रूर होती है lइसके लिए उदाहरण अनगिनत हैं जो सभी जानते हैं lऔर पूरा ब्रह्माण्ड अपने सभी जीवित या निर्जीव, स्थिर और चलनेवाली चीज़ों और वस्तुओं के साथपहले नहीं था फिर हुआ lतर्क और विज्ञान दोनों इस बात की पुष्टि करते हैं कि कोई ऐसा अस्तित्व है जिसने ब्रह्मांड को बनाया है lचाहे उसका नाम अल्लाह हो या निर्माता या सिरजनहार या सृष्टा lइस से उसकी वस्तुता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है lइसलिए पूरा ब्रह्मांड अपनी सारी चीजों के साथ एक निर्माता के होने पर साफ़ प्रमाण है l और इस रचयिता के गुणों की पहचान उसकी रचनाओं, कामों और आविष्कारों के अध्ययन और उनमें चिंतन और विचार के माध्यम से होती है lउदाहरण के लिए एक पुस्तक को ही ले लीजिए जो लेखक के ज्ञान और अनुभव और संस्कृति, और उनकी शैली, उनकी सोच और उनके करने की शक्ति और विश्लेषण करने की क्षमता का पता देती है lइसी तरह सारी चीज़ें अपने अपने निर्माता की विशेषताओं के बारे में एक व्यापक विचार देती है lयदि लोग ब्रह्मांड और उसकी प्राणियों और उसकी रचनाओं के बारे में भी इसी वैज्ञानिक तर्क का उपयोग करें तो रचयिता और सिरजनहार की विशेषताओं की जानकारी तक पहुँच सकते हैं lसमुद्र और प्रकृति की सुंदरता, कोशिकाओं की बारीकी और उनकी विशेषताएं, ब्रह्मांड के संतुलन और उसके चलने का सिस्टम, इन तथ्यों के बारे में मानव विज्ञाननेजो कुछ भी सामने लाया है यह सब के सब सिरजनहार की महानता और निर्माता के ज्ञान और बुद्धि का संकेत देते हैं l चाहे लोग संसार को पैदा करने के कारण के विषय में सहमत हो सकें या न हो सकें, और जीवन में कठिनाइयों और दर्द के पाए जाने के पीछे कारण के विषय में सहमति हो या न हो लेकिन इससे वह परिणाम प्रभावित नहीं होता है जो सही वैज्ञानिक तर्कके द्वारा निकला है कि एक अस्तित्व है जो रचयिता, महान, जानकार, ज्ञानी और बुद्धिमान है और उसीको मुसलमान लोग “अल्लाह” कहते हैं l परमेश्वर की क्षमता और उनकी महानता के सबूत अल्लाह सर्वशक्तिमान ने नास्तित्व से अपने उपासकों को पैदा किया और उन्हें अपने उपहारों से सम्मानित किया, और उनसे पीड़ा और विपरीत परिस्थितियों को टाला, और शुद्ध हृदय सदा उस से प्यार करता है और चाहता है जो उसे सहायता देता है और उस पर कृपा करता है lऔर आत्माओं को अपने पालनहार को पहचानने की ज़रूरत भोजन और पानी बल्कि सांस से भी अधिक हैlऔर न ही इस दुनिया में कोई खुशी मिल सकती है और न आखिरत का कोई सुख मिल सकता है मगर उसकी परिचय, प्यार और पूजा के माध्यम से ही lऔर जो उसे ज़ियादा जानते हैं वही सबसे ज़ियादा उसपर विश्वास रखते हैं और वे अधिक से अधिक उसकी पूजा करते हैं, याद रहे कि हार्दिक उपासना शारीरिक उपासना से अधिक महत्वपूर्ण, क्योंक हार्दिक उपासना अधिक देर तक रहनेवाली और अधिक बेहतर है lऔर हार्दिक उपासना तो हर समय आवश्यक है और शारीरिक उपासना तो वास्तव में हृदय को ही शुद्ध करने के लिए अनिवार्य हुई है ताकि अल्लाह की उपासना भी हो और दिल भी शुद्ध रहे l इब्न अल-क़य्यिम -अल्लाह उनपर दया करे- इस विषय में कहते हैं: "अल्लाह अपने बन्दे को उसी दर्जा पर रखता है जहां बन्दा ख़ुद अपने को रखता है lऔर जब दास अपने पालनहार को पहचान लेता है तो उस से उसके हृदय को शांति मिल जाती है और उसकी आत्मा को चैन मिल जाता है lऔर जिसे अल्लाह के बारे में और उसके गुण के बारे में अधिक जानकारी होगी तो उसका विश्वास अधिक स्वस्थ और मजबूत होगा और ऐसा व्यक्ति उससे ज़ियादा डरनेवाला होगा l और लोगों में सब से पूर्ण रूप से उसकी उपासना वही करता है जो अल्लाह सर्वशक्तिमान को उसके सभी पवित्र नामों और विशेषताओं पर ध्यान रख कर श्रद्धा और तपस्या करता हैlऔर अल्लाह -सर्वशक्तिमान- के बहुत सारे सुंदर नाम हैं lउसके सारे नामों से प्रशंसा ही प्रशंसा और स्तुति ही स्तुतिटपकती है और बड़ाई ही बड़ाई झलकती है l इसी तरह उसके सरे गुण उत्तम, बड़े और संपूर्ण हैं l पैगंबर हज़रत मुहम्मद -उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो- जब रुकू के लिए नमाज़ में झुकते थे तो यह शब्द कहा करते थे : )سبحان ذي الجبروت والملَكوت والكبرياء والعَظَمة( (पवित्रता है उसके लिए जो शक्तिशाली, बड़ाईवाला, राज्यपाल, और शान रखनेवाला है l) (इसे नसाई ने उल्लेख किया है) जी हाँ, हर गुण में वही पूर्ण है पैगंबर हज़रत मुहम्मद -उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो- ख़ुद कहा करते थे: )لا أُحصِي ثناءً عليك، أنت كما أثنيتَ على نفسك( (मैं वैसी गिन गिन कर तेरी प्रशंसा नहीं कर सकता जिस तरह तूने ख़ुद अपनी प्रशंसा की है l) (इसे मुस्लिम ने उल्लेख किया है l) आकाशों और धरती के सभी प्राणी अल्लाह सर्वशक्तिमान का गुण गाते हैं और हर दोष और कमी से उसे पाक ठहराते हैं, जैसा कि अल्लाह सर्वशक्तिमान ने फ़रमाया : )سَبَّحَ لِلَّهِ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ( (अल्लाह की तसबीह की है हर उस चीज़ ने जो आकाशों और धरती में है l)[अल-हश्र: १] और सबके सब उसी के लिए सजदा में झुकते हैं lजैसा कि अल्लाह सर्वशक्तिमान ने शुभ क़ुरआन में फ़रमाया : )وَلَهُ أَسْلَمَ مَنْ فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ طَوْعًا وَكَرْهًا) (हालाँकि आकाशों और धरती में जो कोई भी है, स्वेच्छापूर्वक या विवश होकर उसी के आगे झुका हुआ है।)[आले-इमरान: ८३] पैदा करने और आदेश चलाने का अधिकार केवल अल्लाह सर्वशक्तिमान के हाथ में ही है, जो भी बनाया है ख़ूब महारत से बनाया और जो भी पैदा किया है बिल्कुल अनोखा पैदा किया और सारी रचनाओं को हिसाब से पैदा किया । याद रहे अल्लाह सर्वशक्तिमान ने आकाशों और पृथ्वी को पचास हज़ार साल में बनाया(स्प्ष्ट रहे कि अल्लाह सर्वशक्तिमान तो “हो जा”कह कर यह सब को बना सकता था लेकिन वास्तव में अल्लाह सर्वशक्तिमान ने ऐसा इसलिए किया ताकि लोगों को यह पाठ मिल जाए कि कामों को आराम से करना चाहिए जल्दी जल्दी नहीं करना चाहिए ।) और अल्लाह सर्वशक्तिमान का शासन शासन है उस में किसी को साझेदारी नहीं है, उसके निर्णय को कोई रोकने और टालनेवाला नहीं है । और न उसके फैसले पर कोई उसका पकड़ करनेवाला है वह सदा से जीवित है और अमर है सारी रचना उसके हाथ के नीचे और उसके क़ब्ज़े में है । वही उन्हें मारता और जिलाता है, वही उन्हें रुलाता और हंसाता है, वही उन्हें ग़रीब और धनवान करता है। और जैसा चाहता है उन्हें गर्भ में रूप देता है । इस विषय में अल्लाह सर्वशक्तिमान फ़रमाता है : )مَا مِنْ دَابَّةٍ إِلَّا هُوَ آخِذٌ بِنَاصِيَتِهَا](هود: 56[ (चलने-फिरनेवाला जो प्राणी भी है, उसकी चोटी तो उसी के हाथ में है।)[हूड: ५६] उसे जैसे चाहता है चलाता है और लोगों के दिल उसकी उंगलियों के बीच में हैं जैसे चाहता है नचाता है और लोगों के माथे उसके हाथ में हैं जैसे चाहता है घुमता है और सारी चीज़ों के बागडोर उसके लिखे भाग और क़िस्मत से बंधे हैं, न कोई उससे उसका शासन छीन सकता है और न कोई उसे हरा सकता है । यदि पूरा राष्ट्र किसी को नुक़सान पहुंचाने पर तुल जाए और अल्लाह ने नुक़सान नहीं लिखा तो कोई उसे नुक़सान नहीं पहुंचा सकेगा और यदि सारे के सारे लोग उसे लाभ पहुंचाने पर तुल जाएं लेकिन वह लाभ अल्लाह सर्वशक्तिमान की इच्छा में न हो तो कोई उसे लाभ नहीं दे सकता है । यदि कोई दुर्घटना होनेवाली हो तो उसके सिवा कोई रोक नहीं सकता और यदि कोई मुसीबत घटनेवाली हो तो उसके सिवा कोई उसे टाल नहीं सकता है।वह जो चाहता है बनाता है और जो चाहता है करता है । वह अपने कामों पर किसी के सामने जवाबदेह नहीं है और सारे लोग उसके सामने जवाबदेह हैं । वह अपने आप है और अपनी रचना का मुहताज नहीं है । वह सब पर आदेश चलाता है, सारी अनदेखी और उन्सुनी की कुंजी उसी के पास है जिसे कोई नहीं जान सकता है बल्कि उसका ज्ञान तो फ़रिश्तों से भी छिपा है, इसलिए फ़रिश्ते भी यह नहीं जानते हैं कि कल कौन मरनेवाला है या ब्रह्माण्ड में क्या होनेवाला है ? वह सब राजाओं का है जो अपने दासों का काम बनाता है। वही आदेश देता है और हुक्म चलाता है, वही देता है और वही रोकता है, वही ऊँचा करता है और वही नीचा करता है ।हर समय और हर घड़ी उसके आदेश आते रहते हैं, उसकी इच्छा और इरादे के अनुसार उसका शासन चलता है । जो चाहा हुआ और जो नहीं चाहा नहीं हुआ । अल्लाह सर्वशक्तिमान इस विषय में फ़रमाता है : يسْأَلُهُ مَنْ فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ كُلَّ يَوْمٍ هُوَ فِي شَأْنٍ [الرحمن: 29[ (आकाशों और धरती में जो भी है उसी से माँगता है। उसकी हर रोज़ नित्य नई शान है ।) [अर-रहमान: २९]. और उसकी शानों में यह शामिल है कि किसी को संकट से छुटकारा दिलाता है , और टूटे दिल को सहायता देता है, और गरीबको अमीर बनाता है और प्रार्थना को स्वीकार करता है । अल्लाह सर्वशक्तिमान फ़रमाता है : )وَمَا كُنَّا عَنِ الْخَلْقِ غَافِلِينَ) [المؤمنون: 17[ (और हम सृष्टि-कार्य से ग़ाफ़िल नहीं ।) [अल-मोमिनून:१७]. उसका ज्ञान सब को अपने दामन में समेटा है, वह उसे भी जानता है जो हुआ है और उसे भी जानता है जो अभी नहीं हुआ है, उसकी अनुमति के बिना कोई तिनका भी नहीं हिलता है । उसकी अनुमति के बिना कोई पत्ता भी नहीं हिलता है ।कोई रहस्य उसपर छिपा नहीं है ।बल्कि उसके पास तो गुप्त और खुला दोनों बराबर है ।अल्लाह सर्वशक्तिमान का फ़रमान है : )سَوَاءٌ مِنْكُمْ مَنْ أَسَرَّ الْقَوْلَ وَمَنْ جَهَرَ بِهِ وَمَنْ هُوَ مُسْتَخْفٍ بِاللَّيْلِ وَسَارِبٌ بِالنَّهَارِ) [الرعد: 10] (तुममें से कोई चुपके से बात करे और जो कोई ज़ोर से और जो कोई रात में छिपताहो और जो दिन में चलता-फिरता दीख पड़ता हो उसके लिए सब बराबर है।) [अर-रअद: १०] वह सबकी आवाज को सुनता है, हज़रत आइशा-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे- फरमाती हैं: उसके सुनने की क्षमता सारी आवाज़ों को सुन लेती है। वह आगे फ़रमाती हैं: जब बहस करनेवाली महिला हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के पास आई, वह उनसे बात कर रही थी और मैं घर के एक कोने में थी, वह जो बात कर रही थी वह मैं नहीं सुन पा रही थी । हज़रत आइशा-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे- आगे कहती हैं: इसी बारे में अल्लाह सर्वशक्तिमान ने यह आयत उतारी: )قَدْ سَمِعَ اللَّهُ قَوْلَ الَّتِي تُجَادِلُكَ فِي زَوْجِهَا( (अल्लाह ने उस स्त्री की बात सुन ली जो अपने पति के विषय में तुमसे झगड़ रही है।) [मुजादिलह:१] उसपर लोगों के कार्य घटाटोप रात के अंधेरे में भी नहीं छिपता है । अल्लाह सर्वशक्तिमान फ़रमाता है : )الَّذِي يَرَاكَ حِينَ تَقُومُ ,وَتَقَلُّبَكَ فِي السَّاجِدِينَ(الشعراء: 218، 219 (जो तुम्हें देख रहा होता है, जब तुम खड़े होते हो, और सजदा करनेवालों में तुम्हारे चलत-फिरत को भी वह देखता है।) [अश-शुअरा: २१८, २१९] वह तो अंधेरी रात में काली चट्टान पर काली चींटी को भी देख लेता है । उसके ख़ज़ाने आकाश और पृथ्वी दोनों में भरे हैं , और उसके दोनों हाथ उदारता के लिए खुले हैं, वह रात और दिन बल्कि सदा उदार है जैसे चाहता है खर्च करता है, बड़ा दाता और बड़ा उदार है, मांगने पर बल्कि मांगने से पहले देता है, हर रात जब रात का तीसरा भाग आता है तो वह पहले आकाश पर दया का प्रकाश डालता है और कहता है : है कोई मांगनेवाला? कि दूँ, और यदि उससे नहीं मांगता है तो वह उस पर क्रोधित होता है । उसने अपने दरवाज़ों को अपनी प्राणियों के लिए खोल रखा है, उसने समुद्रों को मनुष्य के क़ाबू में दिया, और नदियों को बहाया और सबकी रोज़ी का आयोजन किया, और सारी प्राणियों तक उनकी रोज़ी पहुंचाई, चींटी को धरती के भीतर रोज़ी दिया और पक्षियों को हवा में भोजन दिया और मछलियों को पानी में रोज़ी दिया , अल्लाह सर्वशक्तिमान फ़रमाता है : )وَمَا مِنْ دَابَّةٍ فِي الْأَرْضِ إِلَّا عَلَى اللَّهِ رِزْقُهَا(هود: 6 (धरती में चलने-फिरनेवाला जो प्राणी भी है उसकी रोज़ी अल्लाह के ज़िम्मे है।)[हूड: ६] उसकी रोज़ी सबको काफी है , उसने भ्रूण को उसकी माँ के गर्भ में रोज़ी का आयोजन किया और मजबूत और शक्तिशाली को भी रोज़ी दिया, वह अत्यंत उदार है और उदारता और दानशीलता को चाहता है, यदि उससे माँगा जाता है तो दे देता है, और यदि उसे छोड़ कर दूसरे से माँगा जाए तो उसपर क्रोधित होता है, जो जो भी भलाई यहाँ है वह उसी से है । जैसा कि शुभ क़ुरआन में आया है । )وَمَا بِكُمْ مِنْ نِعْمَةٍ فَمِنَ اللَّهِ( النحل: 53 (तुम्हारे पास जो भी नेमत है वह अल्लाह ही की ओर से है।) [अन-नहल: ५३]. उसके पास रोज़ी में कमी नहीं होती है, पैगंबर हज़रत मुहम्मद -उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-ने फ़रमाया: “क्या तुम देखते नहीं कि जब से आकाशों और पृथ्वी को बनाया खर्च कर रहा है लेकिन जो उसके पास है उसमें कोई कमी नहीं हुई है।”यह मुस्लिम द्वारा उल्लेख की गई । और यदि सभी लोग उससे मांगें और वह उनकी सारी मांगों को पूरी करे तब भी उसके राज्य में कोई कमी नहीं होगी । और आप -उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-ने फ़रमाया: अल्लाह सर्वशक्तिमान ने फ़रमाया : ऐ मेरे दासो! यदि तुम्हारे अगले और पिछले, तुम्हारे मनुष्य और जिन्नात, सब के सब एक मैदान में खड़े हो जाएँ और मुझ से मांगें और मैं सारे की मांग पूरी करूँ तो भी मेरे पास जो है उसमें कुछ कमी नहीं होगी मगर केवल उतना जितना कि समुद्र में सोई डालने से कमी होती है । (मतलब जब सोई समुद्र में रखी जाए तो सोई में पानी लगकर समुद्र के पानी में जितनी कमी हो सकती है ।) यह मुस्लिम द्वारा उल्लेख की गई । और अल्लाह सर्वशक्तिमान अच्छे कार्य पर कई गुना इनाम देता है, यदि कोई एक भलाई करता है तो उसपर दस गुना उसका इनाम देता है बल्कि सात सौ गुना तक भी उसका इनाम पहुँच जाता है, व्यक्ति के इरादे में पवित्रता के हिसाब से कई कई गुना बढ़ कर इनाम पाता है, और वह आज्ञाकारिता के एक छोटे से समय को बहुत बढ़ा देता है, जैसे शबेक़दर एक हज़ार महीने से बेहतर है, (शबेक़दर रमज़ान के महीने के अंतिम दस रातों में से कोई एक रात है जिसमें इबादत और अच्छा काम करना हज़ार महीने में इबादत करने से बेहतर है ।) और हर महीने के तीन दिन के रोज़े पूरे ज़माने के रोज़े के बराबर है । अगर कोई व्यक्ति अपने पालनहार को प्रसन्न करने के लिए अपना धन खर्च करता है तो अल्लाह उसके बदले में कई कई गुना बढ़कर उसे वापस देता है । उसकी उदारता ऐसी है कि वह कल्पना से भी बढ़कर देता है , स्वर्गीय लोगों के लिए ऐसे ऐसे इनाम रखे जिसे न किसी आंख ने देखा और न किसी कान ने सुना बल्कि जो न किसी मनुष्य के कल्पना में आया ।यदि कोई व्यक्ति अल्लाह के लिए किसी चीज़ को त्याग देता है तो वह उसे उससे अच्छा देता है । उसे किसी की ज़रूरत नहीं है, लेकिन सारी चीज़ों को उसकी ज़रूरत है ।अल्लाह सर्वशक्तिमान का फ़रमान है: )يَا أَيُّهَا النَّاسُ أَنْتُمُ الْفُقَرَاءُ إِلَى اللَّهِ وَاللَّهُ هُوَ الْغَنِيُّ الْحَمِيدُ( فاطر: 15 (ऐ लोगो! तुम्ही अल्लाह के मुहताज हो और अल्लाह तो निस्पृह, स्वप्रशंसित है ।) [फ़ातिर: १५] न लोग उसे कुछ लाभ पहुंचा सकते हैं कि लाभ पहुंचाएं और न कुछ नुक़सान पहुंचा सकते हैं कि नुक़सान पहुंचाएं, वह बहुत बड़ाईवाला और अत्यंत महान है, उसका राज्य सब पर है, आकाश और पृथ्वी सब उसकी हुकूमत की कुरसी के नीचे हैं बल्कि सातों आकाश उसकी हुकूमत की कुर्सी के नीचे ऐसे हैं अल्लाह के खोज की यात्रा अल्लाह को पहचानने के लिए यात्रा करने के अलग अलग रास्ते हैं lहम जो रास्ता यहाँ चलेंगे वह है खोज का अभियान या रास्ता जिस पर एक महान व्यक्ति चले थे और जिनको यह महसूस हुआ था कि इस दुनिया के बनाने के पीछे एक निर्माता और सिरजनहार का होना ज़रूरी है जो पूजा का हक़दार है lऔर वह महान आदमी हज़रत इबराहीम अल-ख़लील(अल्लाह के वफ़ादार दोस्त) थे, जो ख़ुद भी एक नबी थे और कई नबियों के पिता और दादा थे l हज़रत इबराहीम –सलाम हो उनपर-अल्लाह की रचनाओं में विचार और चिंतन करते हुए निकले वह अल्लाह को पहचानना चाहते थे क्योंकि वह उसकी रचनात्मकता और क्षमता को अपने सामने देख रहे थे lउन्होंने अल्लाह को खोजने की अपनी यात्रा शुरू की lऔर उनकी कहानी को शुभ क़ुरआन ने इस तरह उल्लेख किया है : " وَكَذَلِكَ نُرِي إِبْرَاهِيمَ مَلَكُوتَ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضِ وَلِيَكُونَ مِنَ الْمُوقِنِينَ (75) فَلَمَّا جَنَّ عَلَيْهِ اللَّيْلُ رَأَى كَوْكَبًا قَالَ هَذَا رَبِّي فَلَمَّا أَفَلَ قَالَ لا أُحِبُّ الآفِلِينَ(76) فَلَمَّا رَأَى الْقَمَرَ بَازِغًا قَالَ هَذَا رَبِّي فَلَمَّا أَفَلَ قَالَ لَئِن لَّمْ يَهْدِنِي رَبِّي لأكُونَنَّ مِنَ الْقَوْمِ الضَّالِّينَ(77) فَلَمَّا رَأَى الشَّمْسَ بَازِغَةً قَالَ هَذَا رَبِّي هَذَا أَكْبَرُ فَلَمَّا أَفَلَتْ قَالَ يَا قَوْمِ إِنِّي بَرِيءٌ مِّمَّا تُشْرِكُونَ(78) إِنِّي وَجَّهْتُ وَجْهِيَ لِلَّذِي فَطَرَ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضَ حَنِيفًا وَمَا أَنَاْ مِنَ الْمُشْرِكِينَ(79) وَحَاجَّهُ قَوْمُهُ قَالَ أَتُحَاجُّونِّي فِي اللَّهِ وَقَدْ هَدَانِ وَلاَ أَخَافُ مَا تُشْرِكُونَ بِهِ إِلاَّ أَن يَشَاء رَبِّي شَيْئًا وَسِعَ رَبِّي كُلَّ شَيْءٍ عِلْمًا أَفَلاَ تَتَذَكَّرُونَ (80) " ( سورة الأنعام : 75-80( (और इस प्रकार हम इबराहीम को आकाशों और धरती का राज्य दिखाने लगे (ताकि उसके ज्ञान का विस्तार हो) और इसलिए कि उसे विश्वास हो lअतएवः जब रात उसपर छा गई, तो उसने एक तारा देखा। उसने कहा, "इसे मेरा रबठहराते हो!" फिर जब वह छिप गया तो बोला, "छिप जानेवालों से मैं प्रेम नहींकरता।"फिर जब उसने चाँद को चमकता हुआ देखा, तो कहा, "इसको मेरा रब ठहराते हो!"फिर जब वह छिप गया, तो कहा, "यदि मेरा रब मुझे मार्ग न दिखाता तो मैं भीपथभ्रष्ट! लोगों में सम्मिलित हो जाता।" फिर जब उसने सूर्य को चमकता हुआ देखा, तो कहा, "इसे मेरा रब ठहराते हो! यहतो बहुत बड़ा है।"फिर जब वह भी छिप गया, तो कहा, "ऐ मेरी क़ौन के लोगो!मैं विरक्त हूँ उनसे जिनको तुम साझी ठहराते हो l"मैंने तो एकाग्र होकर अपना मुख उसकी ओर कर लिया है, जिसने आकाशों और धरती को पैदा किया। और मैं साझी ठहरानेवालों में से नहीं।" उसकी क़ौम के लोग उससे झगड़ने लगे। उसने कहा, "क्या तुम मुझसे अल्लाह केविषय में झगड़ते हो? जबकि उसने मुझे मार्ग दिखा दिया है। मैं उनसे नहींडरता, जिन्हें तुम उसका सहभागी ठहराते हो, बल्कि मेरा रब जो कुछ चाहता हैवही पूरा होकर रहता है। प्रत्येक वस्तु मेरे रब की ज्ञान-परिधि के भीतर है।फिर क्या तुम चेतोगे नहीं? ((अल-अनआम:७५-८०) जब हज़रत इबराहीम को यह महसूस हुआ कि एक ऐसी शक्ति मौजूद है जिसने सबको बनाया है, आकाशों और पृथ्वी का निर्माण कियाlऔर उनको अपने आप में यह महसूस हुआ कि इन देवताओं से कुछ लाभ या नुक़सान होनेवाला नहीं जिनकी पूजापाठ यह लोग लगे हैं । और यह देवी-देवता हरगिज़ हरगिज़ कुछ बना नहीं सकते। और आगे चल कर उन्होंने साबित कर दिया कि वे तो स्वयं की रक्षा भी नहीं कर सकते है । हज़रत इबराहीम अपने पालनहार को खोजने के अभियान पर निकले , पहले आकाश को देखा और उसपर एक बड़ा सितारा देखा और सोचा क्या यह मेरा पालनहार हो सकता है? लेकिन सितारा कितना भी चमके फिर उसे डूबना ही है, जब रात को अंधेरा छा गया और रात खत्म हो गई और सितारा छिप गया तो हज़रत इबराहीम अचंभित हो गए और बोले जो सितारा रात आने पर छिप जाता हो वह परमेश्वर कैसे हो सकता है! हज़रत इबराहीम अपना अभियान जारी रखे और जब आकाश में चांद को देखे तो तो सोचा क्या यह वह परमेश्वर हो सकता जिसको वह खोज रहे हैं लेकिन चाँद तो सितारा की तरह ही सुबह होते ही आँखों के सामने से छिप गया । और जब अल्लाह के पैगंबर हज़रत इबराहीम ने सूर्य को देखा तो कहा: क्या यह मेरा पालनहार हो सकता है? क्योंकि यह तो उससे अधिक बड़ा है लेकिन दिन के अंत में सूर्य डूब गया तो उनको विश्वास हो गया कि यह भी हमारा परमेश्वर नहीं हो सकता है lऔर फिर अल्लाह ने उनपर कृपा किया और उन्हें विश्वास से सम्मानित किया और अल्लाह ने उन्हें अपनी वाणी दी और उन्हें लोगों में घोषणा कर देने का आदेश दिया कि लोगों को बता दें कि अल्लाह ने उन्हें सब को मार्गदर्शन करने लिए चुन लिया है और उनको अपना नबी बनाया है । जी हाँ, वह ही अल्लाह है जिसको हज़रत इबराहीम ने पहचाना, वह चाँद है न सूर्य और न वह मूर्ति जिसकी उनकी जाति पूजा कर रही थी । अल्लाह तो वह है जिसने आकाशों और पृथ्वी को बनाया है । याद रहे कि अल्लाह के खोज के लिए यह पहली यात्रा नहीं थी । बल्कि इस तरह की यात्राएं होती रही हैं उन्हीं में से एक यात्रा वह थी जो हज़रत इबराहीम–सलाम हो उनपर-की मौत के हज़ारों साल बाद की गई, आइये अगले लेख में उसी यात्रा के विषय में बात करते हैं । उसकी रचनाएँ उसका पता देती हैं सबसे अधिक जो अल्लाह के अस्तित्व का पता देती है वह है उसकी रचनाएँ जिनको उसने बनाया है lऔर जिनको बहुत सुंदर बनाया, यह रचनाएँ जिनको उसने पैदा किया और उसकी कृपाएं भी उसका पता देती हैं जो उसने अपने दासों पर रखी हैं चाहे नास्तिक हो या भक्त हो l पवित्र क़ुरआन अल्लाह के चमत्कार और उसकी क्षमता पर सब से बड़ा गवाह है lअल्लाह सर्वशक्तिमान ने उस में अगलों और पिछलों का समाचार रख दिया है lऔर उसमें ऐसी अनदेखी और अनसुनी बातों का खुलासा किया जिसका पहले कभी भी मनुष्य को पता नहीं था lयहाँ हम पवित्र क़ुरआन में उल्लेखित कुछ चमत्कारों को आपके सामने रखते हैं जिनसे साफ़ संकेत मिलता है कि अल्लाह का अस्तित्वऔर उसका ज्ञान सब चीज़ों से पहले से हैl * वैज्ञानिकों ने लौहा के धातु घटकों को पता करने की बहुत कोशिश की क्योंकि जो ऊर्जा उसके गुटों को जोड़ने के लिए दरकार हैं वह तो हमारे सौर सूर्य मंडल में उपलब्ध शक्ति से चार गुना बढ़कर है... यह बात वैज्ञानिकों के लिए बहुत अजीब थी, लेकिन यह तथ्य इस्लामी विद्वानों के लिए कोई हैरानी की बात नहीं थी जो अल्लाह सर्वशक्तिमान के शब्दों को पढ़ते और समझते हैं lअल्लाह सर्वशक्तिमान लोहा के विषय में फ़रमाता है: " وَأَنزَلْنَا الْحَدِيدَ فِيهِ بَأْسٌ شَدِيدٌ وَمَنَافِعُ لِلنَّاسِ وَلِيَعْلَمَ اللَّهُ مَن يَنصُرُهُ وَرُسُلَهُ بِالْغَيْبِ إِنَّ اللَّهَ قَوِيٌّ عَزِيزٌ " (سورة الحديد : 25) “और लोहा भी उतारा, जिसमें बड़ी दहशत है और लोगों के लिए कितने ही लाभ है, और (किताब एवं तुला इसलिए भी उतारी) ताकि अल्लाह जान ले कि कौन परोक्ष मेंरहते हुए उसकी और उसके रसूलों की सहायता करता है। निश्चय ही अल्लाहशक्तिशाली, प्रभुत्वशाली है।” मुस्लिम विद्वानों को तुरंत पता चल गया कि अल्लाह सर्वशक्तिमान ने तोलोहा के विषय में “उतारा”का शब्द फ़रमाया है इससे सिद्ध होता है कि लोहा के घटक पार्थिव नहीं हैं बल्कि वह तो आकाश से नीचे उतारा गया है । और आधुनिक युग में वैज्ञानिकों ने भी इसी की पुष्टि की है कि लोहा के घटक पृथ्वी के घटक नहीं हैं । * अब चलिए जरा हम समुद्र की गहराई में डुबकी लगाते हैं क्योंकि सागरों की भूवैज्ञानिक विशेषताओं के माहेरीन ने पता लगाया है कि सागरों की भूवैज्ञानिक विशेषताएं बिल्कुल वही हैं जो अल्लाह सर्वशक्तिमान ने पवित्र क़ुरआन में उल्लेख किया है, अल्लाह सर्वशक्तिमान का फ़रमान है : " أَوْ كَظُلُمَاتٍ فِي بَحْرٍ لُّجِّيٍّ يَغْشَاهُ مَوْجٌ مِّن فَوْقِهِ مَوْجٌ مِّن فَوْقِهِ سَحَابٌ ظُلُمَاتٌ بَعْضُهَا فَوْقَ بَعْضٍ إِذَا أَخْرَجَ يَدَهُ لَمْ يَكَدْ يَرَاهَا وَمَن لَّمْ يَجْعَلِ اللَّهُ لَهُ نُورًا فَمَا لَهُ مِن نُّورٍ " (سورة النور : 40) "या फिर जैसे एक गहरे समुद्र में अँधेरे, लहर के ऊपर लहर छा रही हैं; उसकेऊपर बादल है, अँधेरे है एक पर एक। जब वह अपना हाथ निकाले तो उसे वह सुझाईदेता प्रतीत न हो। जिसे अल्लाह ही प्रकाश न दे फिर उसके लिए कोई प्रकाशनहीं।"(सूरत अन-नूर: ४०) इस तथ्य का पता ऐसे नहीं चला बल्कि इसके लिए सैकड़ों समुद्री टर्मिनल की स्थापना हुई और उपग्रह इमेजिंग उद्योग के द्वारा फोटो लिए गए तब जाकर इस तथ्य का खुलासा हुआ .. इस रिपोर्ट के मालिक (Professor Rashryder) प्रोफेसर श्रोएडर पश्चिम जर्मनी में समुद्री वैज्ञानिकों केसबसे बड़े वैज्ञानिक हैं, उन्होंने इस आयत को सुन कर कहा कि: यह किसी मनुष्य का शब्द नहीं हो सकता है ।.. एक दूसरे प्रोफेसर और सागर के भूविज्ञान के विशेषज्ञ , प्रोफेसर Professor Dorjaro इस आयत के विषय में वैज्ञानिक दृष्टिकोण से व्याख्या करते हुए कहते हैं: "अतीत में मनुष्य बिना मशीनरी के इस्तेमाल के बीस मीटर से अधिक समुद्र की गहराई में डुबकी नहीं लगा सकते थे .. लेकिन अब हम आधुनिक उपकरणों के द्वारा समुद्र में दो सौ मीटर की गहराई तक डुबकी लगाई जा रही है और हम देख रहे हैं कि दो सौ मीटर की गहराई पर बहुत अधिक अंधेरा है। शुभ आयत में “बहरिन लुज्जी”(एक गहरे समुद्र में) का शब्द आया है और गहरे समुद्र की खोजों से संबंधित जो फ़ोटोज़ लिए गए हैं उन में इस शुभ आयत के अर्थ की साफ़ साफ़ सच्चाई प्रमाणित होती है: )ظُلُمَاتٌ بَعْضُهَا فَوْقَ بَعْضٍ( (अँधेरे हैं एक पर एक) और यह बात सब अच्छी तरह जानते हैं कि स्पेक्ट्रम के सात अलग अलग रंग होते हैं लाल, पीला, नीला, हरा,नारंगी आदि, यदि हम समुद्र की गहराई में डुबकी लगाते हैं तो एक बाद एक सारे रंग गायब हो जाते हैं .. और इन रंगों के गायब होने से अंधेरा पैदा होता है, पहले लाल रंग गायब होता है फिर नारंगी, उसके बाद पीला, सबसे आखिर में नीला रंग गायब होता है मतलब दो सौ मीटर की गहराई पर नीला रंग गायब होता है .. यह सारे रंगों के गायब होने से बिल्कुल अँधेरा ही अंधेरा बाक़ी रह जाता है.. और अल्लाह सर्वशक्तिमान ने जो फ़रमाया : )مَوْجٌ مِّن فَوْقِهِ مَوْجٌ( (लहर के ऊपर लहर छा रही हैं), यहाँ यह बात स्प्ष्ट रहे कि वैज्ञानिक रूप से यह सिद्ध किया जा चुका है कि समुद्र के गहरे हिस्से और ऊपरी भाग के बीच एक विभाजन रेखा है .. लेकिन हम उसे नहीं देख पाते हैं और समुद्र की ऊपरी सतह पर लहरें हैं जिनको हम देखते हैं इसलिए ऐसा लगता है कि लहर पर लहर है।याद रहे कि यह एक तथ्य है जिसकी वैज्ञानिक पुष्टि हो चुकी है इसलिए प्रोफेसर दारजारो Professor Dorjaro ने इस आयत के विषय में साफ़ साफ़ कहाकि यह आयत किसी मानव ज्ञान का फल नहीं है । जी हाँ, यही अल्लाह की शान है अगर अभी तक आपको उसकी परिचय नहीं मिल पाई हो तो अब परिचित हो जाइए। उसके चमत्कार और उसकी रचनाओं में सोचिए ।आकाश को देखिए कौन उसे गिरने से रोकता है? इस बात में ज़रा सोचिए कि आपके पैरों के नीचे कैसे भूमि को बराबर बनाया ? ज़रा इस बात में नज़र दौड़ा कर देखिए कि कौन यह सारे सिस्टम को नियंत्रण में रखता है ? जी हाँ, वह अल्लाह है जो अमर है और सबको संभालनेवाला है । यदि आप उसे पहचानना चाहते हैं... तो दरवाज़े पर दस्टाक दीजिये ऐसे कई तरीके हैं जिसके माध्यम से मनुष्य अपने आसपास की वस्तुओं और प्राकृतिक और अप्राकृतिक घटनाओं के बारे में जानकारी प्राप्त करता है lऔर इसे पहचानने का तरीका भी वस्तुओं के लिहाज़ से अलग अलग हुआ करता है l उदाहरण के लिए जब आप किसी व्यक्ति को पहचानना चाहते हैं तो आप उसके क़रीब होते हैं और उनसे दोस्ती करते हैं और उनको सम्मान देते हैं और उनकी इज़्ज़त करते हैं बल्कि अलग अलग भाषाओं के लोग सर्वनाम का इस्तेमाल करते हैं जो अनजान को बताने का काम देते हैं और जिसे "सम्मान या इज़्ज़त का शब्द" कहा जाता हैlकभी कभी अपना परिचय आप ख़ुद दूसरों को देते हैं और कभी कभी आपका दोस्त आपकी ओर से आपका परिचय दूसरों को देता है और कहता है कि आप फुलांन हैं lकई लोगों को हम समाचारपत्रों के पन्नों और टीवी स्क्रीन द्वारा पहचान प्राप्त करते हैं lकई लोगों के बारे में हम कहानियों और क़िस्सों के द्वारा जानकारी प्राप्त करते हैं जो कहानियाँ लेखकों द्वारा बुनाई जाती हैं और यह कहानियाँ कभी सच के नज़दीक होती हैं और कभी दूर रहती हैं l किसी भी चीज़ और किसी भी व्यक्ति को जानने और पहचानने के लिए कई तरीके होते हैं और सबसे अच्छा रास्ता यह है कि किसी को पहचानने के लिए उन्हीं की बात सुन ली जाए lऔर शायद अल्लाह को पहचानने के विषय में हम इसी तरीक़ा को लागू करें l अब प्रश्न यह है कि अल्लाह कौन है? इस सवाल का जवाब अल्लाह सर्वशक्तिमान ख़ुद दे रहा है, उसका फ़रमान है: " اللّهُ لاَ إِلَـهَ إِلاَّ هُوَ الْحَيُّ الْقَيُّومُ لاَ تَأْخُذُهُ سِنَةٌ وَلاَ نَوْمٌ لَّهُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الأَرْضِ مَن ذَا الَّذِي يَشْفَعُ عِنْدَهُ إِلاَّ بِإِذْنِهِ يَعْلَمُ مَا بَيْنَ أَيْدِيهِمْ وَمَا خَلْفَهُمْ وَلاَ يُحِيطُونَ بِشَيْءٍ مِّنْ عِلْمِهِ إِلاَّ بِمَا شَاء وَسِعَ كُرْسِيُّهُ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضَ وَلاَ يَؤُودُهُ حِفْظُهُمَا وَهُوَ الْعَلِيُّ الْعَظِيمُ " ( البقرة : 255( “अल्लाह कि जिसके सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं, वह जीवन्त-सत्ता है, सबकोसँभालने और क़ायम रखनेवाला है। उसे न ऊँघ लगती है और न निद्रा। उसी का हैजो कुछ आकाशों में है और जो कुछ धरती में है। कौन है जो उसके यहाँ उसकीअनुमति के बिना सिफ़ारिश कर सके? वह जानता है जो कुछ उनके आगे है और जो कुछउनके पीछे है। और वे उसके ज्ञान में से किसी चीज़ पर हावी नहीं हो सकते, सिवाय उसके जो उसने चाहा। उसकी कुर्सी (प्रभुता) आकाशों और धरती को व्याप्तहै और उनकी सुरक्षा उसके लिए तनिक भी भारी नहीं और वह उच्च, महान है l” यहाँ अल्लाह सर्वशक्तिमान ख़ुद अपने बारे में परिचय दे रहा है कि वही अकेला पूज्य है उसके सिवा कोई पूजनीय नहीं है,सभी रचनाओं के लिए वही एक पूजा किए जाने के योग्य है और वही जीवन्त-सत्ता है, सबकोसँभालने और क़ायम रखनेवाला है। अर्थातः वह अपने आप जीवित है और अमर जिसे कभी मृत्यु नहीं आ सकती, सारी वस्तुओं को संभालनेवाला है, सारा संसार उसका ज़रूरतमंद है उस से कोई आज़ाद नहीं हो सकते और न उसके आदेश के बिना किसी को कोई शक्ति है । अल्लाह सर्वशक्तिमान का यह फ़रमान कि: "उसे न ऊँघ लगती है और न निद्रा" अर्थातः उसमें कोई कमी नहीं आ सकती है और न वह अपनी रचना से एक पल के लिए भी ग़ाफिल या बेख़बर है, बल्कि वह प्रत्येक आत्मा को संभाल रहा है , उसके कार्य को देख रहा है, कोई रहस्य उसपर छिपा हुआ नहीं है, कोई चीज़ उस से ओझल नहीं हो सकती है, उसकी निपुणता में यह भी शामिल है कि उसे न कभी नींद आ सकती और न ऊँघ, नींद तो बड़ी बात है बल्कि उसे तो एक पल के लिए ऊँघ भी नहीं आ सकती है । अल्लाह सर्वशक्तिमान का यह फ़रमान:“उसी का हैजो कुछ आकाशों में है और जो कुछ धरती में है।" इसमें अल्लाह सर्वशक्तिमान हमें यह बता रहा है कि सब के सब उसके क़ब्ज़े में हैं और सब उसके अधीन हैं और उसके क़ाबू में हैं । अल्लाह सर्वशक्तिमान का यह फ़रमान: "कौन है जो उसके यहाँ उसकीअनुमति के बिना सिफ़ारिश कर सके?" इससे अल्लाह सर्वशक्तिमान की महानता और उसकी बड़ाई और उसका महिमा झलक रहा है क्योंकि अल्लाह सर्वशक्तिमान के पास किसी की हिम्मत नहीं कि उसकी अनुमति के बिना कोई सिफ़ारिश कर सके । और अल्लाह सर्वशक्तिमान का यह फ़रमान कि:"जानता है जो कुछ उनके आगे है और जो कुछउनके पीछे है।" इस से यह स्प्ष्ट हो रहा है कि उसका ज्ञान सभी वस्तुओं को घेरा है और वह सबके अतीत, वर्तमान और भविष्य को अच्छी तरह जानता है । अल्लाह सर्वशक्तिमान का यह फ़रमान कि : “और वे उसके ज्ञान में से किसी चीज़ पर हावी नहीं हो सकते, सिवाय उसके जो उसने चाहा।" इस का अर्थ यह है कि अल्लाह सर्वशक्तिमान के ज्ञान में से किसी बात का किसी को कोई पता नहीं है लेकिन केवल उतना ही जितना कि वह ख़ुद बता देता है । और अल्लाह सर्वशक्तिमान का यह फ़रमान कि :"उसकी कुर्सी (प्रभुता) आकाशों और धरती को व्याप्तहै ।"अर्थातः उसकी हुकूमत और उसकी तख़्त शाही सबको घेरे हुए है । और अल्लाह सर्वशक्तिमान का यह फ़रमान :“और उनकी सुरक्षा उसके लिए तनिक भी भारी नहीं”अर्थातः आकाशों और धरती और जो उन दोनों के बीच में है उन सब की सुरक्षा उसपर भारी या बोझ नहीं है, यह तो उसके लिए बिल्कुल आसान है , वह तो हर चीज़ को संभालनेवाला है, और सारी वस्तुओं का निगहबान है, उससे कोई चीज़ न छिप सकती है और न अलोप होती है, सारी चीज़ें उसके सामने नीच मामूली और छोटी हैं, और सबको उसकी ओर ज़रूरत है और उसे किसी की ज़रूरत नहीं है और वह सराहनीय है और जो चाहता है कर गुज़रता है, वह किसी के सामने जवाबदेह नहीं है और सबके सब उसके सामने जवाबदेह हैं, सब चीज़ पर उसकी हुकूमत है और सबका हिसाब रखनेवाला है और सब चीज़ का निगहबान है, वह बहुत बड़ाईवाला और महान है, उसके सिवा कोई पालनहार नहीं । और अल्लाह सर्वशक्तिमान का यह फ़रमान कि: "वह उच्च, महान है l" अर्थातः वह सब से ऊपर है और सबसे बड़ा है l मेरे प्रिय पाठक यदि आप अल्लाह सर्वशक्तिमान के विषय में जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो यही उसका बुनियादी पहचानपत्र है जो मैंने आपके सामने रखा , यहाँ हमने आप के सामने तर्क और प्रमाण का हवाला देने का प्रयास नहीं किया है और न ही हमने कोई कविता या प्रशंसा लिखी है, बल्कि इस बारे में मैंने अपनी ओर से कोई बात नहीं की हैlवास्तव में यह तो ख़ुद अल्लाह सर्वशक्तिमान की ओर से दिया गया एक परिचय थाlकितना ऊंचा और क्या ही धन्य है अल्लाह सर्वशक्तिमान का अस्तित्व lयह सुभ आयत है जो “आयत अल-कुरसी”के नाम से जानी जाती है lवास्तव में यह आयत शुभ क़ुरआन की सबसे बड़ी शानवाली आयत है lइसे अच्छी तरह ध्यान से पढ़ें और सुनें कि अल्लाह सर्वशक्तिमान ने किस तरह अपने विषय में परिचय दे दिया, यह पढ़कर निकट से उसके बारे में पता करने की कोशिश करें, और अगर आप कुछ बात को न समझ सकें तो इसी विषय पर मेरा आनेवाला लेख पढ़ लें l

Tauhid

توحید اور اس کی اقسام شروع از بتاریخ : 29 October 2013 09:04 AM السلام عليكم ورحمة الله وبركاته توحید اور اس کی اقسام الجواب بعون الوهاب بشرط صحة السؤال وعلیکم السلام ورحمة اللہ وبرکاته الحمد لله، والصلاة والسلام علىٰ رسول الله، أما بعد! توحید اور اس کی اقسام الحمد لله رب العالمين’والعاقبة للمتقين’والصلاة والسلام علي عبده ورسوله وخليله واميه علي وحيه وصفوته من خلقه’نبينا وامامنا وسيدنا محمد بن عبدالله’وعلي اآله واصحابه’ومن سلك سبيله واهتدي بهداه الي يوم الدين_ اما بعد: میں اللہ عز وجل کا شکر ادا کرتا ہوں کہ اس نے دینی بھائیوں اور عزیز بچوں کے ساتھ اس ملاقات کا موقع عطا فرمایا،اللہ تعالیٰ کے حضور دست بدعا کرتا ہوں کہ وہ اس ملاقات کو بابرکت بنا دے،ہمارے دلوں اور عملوں کی اصلاح فرما دے،ہمیں دین کی سمجھ بوجھ اور اس پر ثابت قدمی عطا فرمائے،دنیا بھر میں بسنے والے تمام مسلمانوں کی اصلاح فرما دے،اچھے لوگوں کو مسلمانوں کا حکمران بنا دے اور ان کے قائدین کی اصلاح فرما دے اور داعیان ہدایت بکثرت فرما دے۔انه جواد كريم۔ میں اس جامعہ،جامعہ ام القری کی انتظامیہ کا‘‘مرکز الصیفی’’میں اس پروگرام کے انعقاد کرنے پر ان کا شکریہ ادا کرتا ہوں،جن میں مدیر جامعہ برادر گرامی قدر جناب ڈاکٹر راشد بن راجح بطور خاص قابل ذکر ہیں کہ انہوں نے اس ملاقات کی مجھے دعوت دی،میں اللہ تعالیٰ سے اس کے اسسماءحسنیٰ اور صفات علیا کے واسطہ سے یہ دعا کرتا ہوں کہ وہ ہم سب کو دنیا وآخرت کی خیر وبھلائی اور سعادت کی توفیق عطا فرمائے! دینی بھائیو!سامعین کرام!!ہم نے ابھی ابھی سورۂ حشر کی وہ آیات کریمہ سنی ہیں،جن کی ایک طالب علم نے تلاوت کی ہے،ان آیات کریمہ میں عبرت بھی ہے اور نصیحت بھی،چنانچہ ارشاد باری تعالیٰ ہے: ﴿يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اتَّقُوا اللَّـهَ وَلْتَنظُرْ‌ نَفْسٌ مَّا قَدَّمَتْ لِغَدٍ ۖ وَاتَّقُوا اللَّـهَ ۚ إِنَّ اللَّـهَ خَبِيرٌ‌ بِمَا تَعْمَلُونَ﴾ (الحشر۱۸/۵۹) ‘‘اےایمان والو!اللہ سے ڈرتے رہو اور ہر شخص کو دیکھنا چاہئے کہ اس نے کل(یعنی فردائے قیامت)کے لئے کیا(سامان)بھیجا ہے اور(ہم پھر کہتے ہیں کہ)اللہ سے ڈرتے رہو،بےشک اللہ تمہارے سب اعمال سے خبردار ہے۔’’ اللہ عز وجل کی یہ ساری کتاب مقدس اول سے آکر تک سراپا نصیحت ودعوت خیر ہے،اس میں اسباب نجات وسعادت کی یاد دہانی ہے اور ترغیب وترہیب کی تلقین بھی،لہٰذا سب مسلمانوں کو چاہئے کہ اس کتاب میں خوب غور وفکر کریں اور امر ونہی کی پہچان کے لئے اس کی کثرت سے تلاوت کریں تاکہ جس بات کا اللہ تعالیٰ نے حکم دیا ہے،مومن اس کے مطابق عمل کر سکے اور جس بات سے اس نے منع فرمایا ہے،مرد مومن اس سے رک جائے۔ کتاب اللہ سراپا ہدایت ونور اور اس میں ہر خیر وبھلائی کے لئے رہنمائی کا سامان ہے،ہر شر سے بچنے کی تلقین ہے،اس میں مکارم اخلاق اور محاسن اعمال کی دعوت ہے اور اس میں برے اخلاق واعمال سے بچنے کی تلقین بھی ہے۔ارشاد باری تعالیٰ ہے: ﴿ إِنَّ هَـٰذَا الْقُرْ‌آنَ يَهْدِي لِلَّتِي هِيَ أَقْوَم﴾ (الاسراء۱۷/۹) ‘‘یقیناً یہ قرآن وه راستہ دکھاتا ہے جو سب سے سیدھا ہے۔’’ یعنی قرآن مجید اس راستہ کی طرف رہنمائی کرتا ہے جو سب سے زیادہ ہدایت والا،سیدھا اور صحیح راستہ ہے،جیسا کہ اللہ سبحانہ وتعالیٰ نے فرمایا ہے: ﴿قُلْ هُوَ لِلَّذِينَ آمَنُوا هُدًى وَشِفَاءٌ﴾ (فصلت٤١/٤٤) ‘‘آپ کہہ دیجئے! کہ یہ تو ایمان والوں کے لیے ہدایت و شفا ہے۔’’ اور فرمایا: ﴿كِتَابٌأَنزَلْنَاهُ إِلَيْكَ مُبَارَ‌كٌ لِّيَدَّبَّرُ‌وا آيَاتِهِ وَلِيَتَذَكَّرَ‌ أُولُوالْأَلْبَابِ﴾ (ص٢٩/٣٨) ‘‘(یہ)بابرکت کتاب ہے جو ہم نے آپ کی طرف نازل کی ہے تاکہ اس کی آیتوں پر غور کریں اور تاکہ عقلمند لوگ نصیحت حاصل کریں۔’’ مزید ارشاد فرمایا: ﴿وَأُوحِيَ إِلَيَّ هَـٰذَا الْقُرْ‌آنُ لِأُنذِرَ‌كُم بِهِ وَمَن بَلَغَ﴾ (الانعام۶/۱۹) ‘‘اور یہ قرآن مجید مجھ پر اس لئے اتارا گیا ہے کہ میں اس کے ذریعے سے تم کو اور جس جس شخص تک یہ قرآن پہنچے ان سب کو ڈراؤں۔’’ کتاب اللہ سراپا ہدایت ونور اور مجسم عبرت ونصیحت ہے لہٰذا میں اپنے آپ کو اور ان کو بھی جو میری بات سن رہے ہیں یا جن تک میری یہ بات پہنچے،یہ وصیت کرتا ہوں کہ اس کتاب عظیم کے ساتھ خصوصی تعلق قائم کرو،یہ کائنات کی سب سے اشرف واعظم کتاب ہے،یہ آسمان سے نازل ہونے والی کتابوں میں سب سے آخری کتاب ہے،جو شخص طلب ہدایت اور معرفت حق کے لئے اس کتاب میں غوروفکر کرے،اللہ تعالیٰ اسے ضرور اس کی توفیق عطا کرتا اور ہدایت سے بہرہ مند فرماتا ہے۔ یہ کتاب عظیم جس اہم ترین موضوع پر مشتمل ہے،وہ اس بات کا بیان ہے کہ اللہ تعالیٰ کا اپنے بندوں پر کیا حق ہے،اور بندوں کا اپنے اللہ پر کیا حق ہے،یہ قرآن مجید کا سب سے اہم موضوع ہے کہ اللہ تعالیٰ کا اپنے بندوں پر حق ہے کہ وہ اس کی توحید کے عقیدہ کو اختیار کریں،اخلاص کے ساتھ صرف اسی کی عبادت کریں اور اس کے ساتھ ساتھ قرآن مجید شرک اکبر کو بیان کرتا اور ہمیں بتاتا ہے کہ یہ نا قابل معافی گناہ ہے نیز قرآن مجید کفر وضلالت کی مختلف انواع واقسام کو بھی بیان کرتا ہے۔ اس کتاب میں تدبر کرنے سے اگر اس واجب عظیم کا علم ہو جائے اور اس سلسلے میں اللہ تعالیٰ نے جو ذکر فرمایا ہے اس پر غور کرنے کا موقع مل جائے تو یہ بھی خیر عظیم اور فضل کبیر ہے لیکن اس کے ساتھ ساتھ اس کتاب عظیم میں خیر وبھلائی کی طرف رہنمائی کی گئی اور ہر شر سے ڈرایا گیا ہے،جیسا کہ قبل ازیں بیان کیا گیا۔ کتاب اللہ کے بعد خصوصی توجہ کا مرکز ومحور سنت رسول اللہ کو ہونا چاہئے کہ یہ ہمارے دین کا اصل ثانی اور وحی ثانی ہے،سنت رسول اللہ،کتاب اللہ کی تفسیر ہے،کلام الہٰی کے مخفی مقامات کی تشریح اور کتاب اللہ کی توضیح ہے،جیسا کہ اللہ تعالیٰ نے فرمایا ہے: ﴿وَأَنزَلْنَا إِلَيْكَ الذِّكْرَ‌ لِتُبَيِّنَ لِلنَّاسِ مَا نُزِّلَ إِلَيْهِمْ وَلَعَلَّهُمْ يَتَفَكَّرُ‌ونَ﴾ (النحل۴۴/۱۶) ‘‘اورہم نے آپ ؐ پر یہ کتاب نازل کی ہے تاکہ آ پ لوگوں پر ان احکامات (ارشادات)کو واضح کردیں جوان کی طرف نازل کئے گئے ہیں۔’’ اورفرمايا: ﴿وَمَا أَنزَلْنَا عَلَيْكَ الْكِتَابَ إِلَّا لِتُبَيِّنَ لَهُمُ الَّذِي اخْتَلَفُوا فِيهِ﴾ (النحل ۶۴/۱۶) ‘‘اس کتاب(قرآن مجید)کوہم نے آپ پر اس لئے اتاراہےکہ آپ ہراس چیز کوواضح کردیں جس میں ان کا اختلاف ہے: ’’ قرآن مجید اس لئے نازل کیا گیا کہ لوگوں کو خیروبھلائی کی دعوت دی جائے،انہیں راہ نجات کی تعلیم دی جائے،ہلاکت وبربادی کے راستوں سے بچایا جائے اوراللہ تعالی نے اپنے نبی علیہ الصلوۃ والسلام کو یہ حکم دیا کہ لوگوں کی طرف جا نازل کیا گیا ہے ،اسے کھول کھول کر نازل بیان فرمادیں اورمشتبہ امور کی تشریح وتوضیح فرمادیں،چنانچہ نبی علیہ الصلوۃ والسلام نےبعثت سے لے کر وفات تک لوگوں کو کتاب اللہ کے احکام پر عمل پیرا ہونے کی دعوت دیتے رہے،کتاب اللہ کے احکام کی تشریح وتوضیح فرماتے رہےاورجس سے قرآن نے منع کیا ہے،اس سے ڈراتے رہے۔آپ ؐ کی عمر مبارک میں سے نبوت کا یہ عرصہ تیئس پرس پر مشتمل ہے جوسب کا سب دعوت وبیان اورترغیب وترہیب میں بسرہواحتی کہ آپؐ اپنے اس کام کی تکمیل کے بعد اپنے رفیق اعلی کے پاس تشریف لے گئے۔آج کی اس رات میرے لیکچر کا موضوع بہت عظیم اور بہت اہم ہے اوروہ ہے عقیدہ کا موضوع یعنی یہ موضوع کہ توحید کیا ہے اوراس کی ضد کیا ہے۔توحید وہ امر ہے جس کی وجہ سے اللہ تعالی نے رسولوں کو مبعوث فرمایا ،کتابیں نازل فرمائیں اورجنوں اورانسانوں کو پیدا فرمایا ،اصل مسئلہ توحید ہے اورباقی تمام احکام اس کے تابع ہیں۔ارشاد باری تعالی ہے: ﴿وَمَا خَلَقْتُ الْجِنَّ وَالْإِنسَ إِلَّا لِيَعْبُدُونِ﴾ (الذاریات۵۶/۵۱) ‘‘اور میں نے جنوں اورانسانوں کو محض اسی لیے پیدا کیا ہے کہ وه صرف میری عبادت کریں’’ اس کےمعنی یہ ہیں کہ وہ اللہ سبحانہ وتعالی کی ذات گرامی کو عبادت کے لئے مخصوص قراردےلیں اورصرف اسی ہی کی عبادت کریں ، جنوں اورانسانوں کوعبث اوربے معنی پیدا نہیں کیا گیا اورنہ اس کے لئے کہ وہ کھائیں پیائیں ،محلات تعمیر کریں،نہریں جاری کریں،درخت لگائیں اورنہ انہیں دنیا کے دوسرے اہم کاموں کے لئے پیدا کیا گیا ہے بلکہ ان کی تخلیق کا مقصد یہ ہے کہ اپنے رب کی عبادت کریں،اس کی تعظیم بجالائیں ،اس کے ارشادات کے سامنے سرجھکا دیں،اس کے نواہی سے باز رہیں ،اس کی حدود کے پاس رک جائیں ،بندوں کو اس کی طرف متوجہ کریں اوران کی اس کے حق کی طرف رہنمائی کریں اوراس نے اپنے بندوں کے لئے انواع واقسام کی نعمتیں اس لئے پیدا فرمائی ہیں تاکہ ان کے استعمال سے اس کی اطاعت بندگی کے لئے ان میں توانائی آجائے،اللہ تعالی نے فرمایا ہے: ﴿هُوَ الَّذِي خَلَقَ لَكُم مَّا فِي الْأَرْ‌ضِ جَمِيعًا﴾ (البقرۃ۲۹/۲) ‘‘وہی تو ہے جس نے سب چیزیں جو زمین میں ہیں،تمھاے لئے پیدا کیں۔’’ نیز فرمایا: ﴿وَسَخَّرَ‌ لَكُم مَّا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْ‌ضِ جَمِيعًا مِّنْهُ﴾ (الجاثیۃ۱۳/۴۵) ‘‘اورآسمان وزمین کی سب (تمام)چیزوں کو اس نے اپنے حکم سے مطیع کردیا ہے۔’’ اللہ جل وعلا نے بارشوں کو نازل فرمایا،اسی نے نہروں کو چلایا ،اسی نے بندوں کے لئے رزق اورانواع واقسام کی نعمتعوں تک رسائی کو آسان بنادیا تاکہ بندے انہیں استعمال کرکے اس کی اطاعت وبندگی کے لئے توانائی حاصل کرسکیں،اوریہ رزق اوریہ نعمتیں زندگی کے آخر تک ان کے لئے زادہ راہ کا کام دیں اورتاکہ ان پر حجت قائم ہوجائے اورکسی قسم کی گنجائش باقی نہ رہے ۔اللہ تعالی کا فرمان ہے: ﴿وَلَقَدْ بَعَثْنَا فِي كُلِّ أُمَّةٍ رَّ‌سُولًا أَنِ اعْبُدُوا اللَّـهَ وَاجْتَنِبُوا الطَّاغُوتَ﴾ (النحل۳۶/۱۶) ‘‘اور ہم نے ہر امت میں رسول بھیجا کہ اللہ کی عبادت کرو اور بت پرستی سے اجتناب کرو’’ فرمان باری تعالی ہے: ﴿وَمَا أَرْ‌سَلْنَا مِن قَبْلِكَ مِن رَّ‌سُولٍ إِلَّا نُوحِي إِلَيْهِ أَنَّهُ لَا إِلَـٰهَ إِلَّا أَنَا فَاعْبُدُونِ﴾ (الانبیاء۲۵/۲۱) ‘‘اور جو رسول ہم نے آپؐ سے پہلےبھیجےان کی طرف یہی وحی نازل فرمائی کہ میرے سوا کوئی معبود برحق نہیں پس تم سب میری ہی عبادت کرو’’ ارشاد ربانی ہے: ﴿وَاسْأَلْ مَنْ أَرْ‌سَلْنَا مِن قَبْلِكَ مِن رُّ‌سُلِنَا أَجَعَلْنَا مِن دُونِ الرَّ‌حْمَـٰنِ آلِهَةً يُعْبَدُونَ﴾ (الزخرف۴۳/۴۵) ‘‘اور(اے محمد!(ﷺ)جو اپنے پیغمبرہم نے آپؐ سے پہلے بھیجے ہیں،ان کے احوال دریافت کرلو کیا ہم نے سوائے رحمٰن کےسوا اور معبود مقرر کیے تھےکہ ان کی عبادت کی جائے۔’’ مزید فرمایا: ﴿ وَقَضَىٰ رَ‌بُّكَ أَلَّا تَعْبُدُوا إِلَّا إِيَّاهُ﴾ (الاسراء۲۳/۱۷) ‘‘اور تمھارے پروردگارنےارشاد فرمایا ہے کہ اس کے سوا کسی کی عبادت نہ کرو۔’’ اورسورہ فاتحہ میں فرمایا: ﴿إِيَّاكَ نَعْبُدُ وَإِيَّاكَ نَسْتَعِينُ﴾ (الفاتحۃ۵/۱) ‘‘(اے پروردگار!) ہم خاص تیری ہی عبادت کرتے ہیں اور خاص تجھ ہی سے مدد چاہتے ہیں۔’’ ان کے علاوہ اور بھی بہت سی آیات ہیں جو اس بات پر دلالت کناں ہیں کہ اللہ سبحانہ وتعالیٰ نے مخلوق کو اس لئے پیدا فرمایا ہے کہ مخلوق صرف اسی کی عبادت کرے،اللہ تعالی نے انہیں حکم بھی یہی دیا ہے اور اسی مقصد کی خاطر رسولوں کو بھیجا تاکہ وہ لوگوں کو اللہ کی طرف دعوت دیں اور اس کی توحید کو لوگوں کے سامنے بیان فرمائیں۔ اہل علم،جو حضرات انبیاءکرام کے نائب ہیں،ان پر بھی واجب ہے کہ اس امر عظیم کو لوگوں کے سامنے بیان کریں،اہل علم کا سب سے بڑا مطلوب یہی ہونا چاہئے ،ان کی پوری توجہ عنایت اسی طرف ہونی چاہئے ،کیونکہ اگر عقیدہ توحید سلامت رہا تو دیگراموربھی اس کے تابع ہوں گے اوراگر توحید میں خلل آگیا تودیگراعمال اقوال کچھ نفع وپہنچاسکیں کے ۔اللہ تعالی نے فرمایا ہے : ﴿وَلَوْ أَشْرَ‌كُوا لَحَبِطَ عَنْهُم مَّا كَانُوا يَعْمَلُونَ ﴾ (الانعام۸۸/۶) ‘‘اور اگر (بالفرض والمحال)یہ لوگ شرک کرتے تو جوعمل وہ کرتے تھے، وه سب ضاوئع ہوجاتے۔’’ اورفرمایا: ﴿وَقَدِمْنَا إِلَىٰ مَا عَمِلُوا مِنْ عَمَلٍ فَجَعَلْنَاهُ هَبَاءً مَّنثُورً‌ا﴾ (الفرقان۲۵/۲۳) ‘‘اور انہوں نے جو جو عمل کیے گے ہم نےان کی طرف متوجہ ہوکر ان کو اڑتی خاک (پراگنده ذروں کی طرح) کردیں گے۔’’ نیز فرمایا: ﴿وَلَقَدْ أُوحِيَ إِلَيْكَ وَإِلَى الَّذِينَ مِن قَبْلِكَ لَئِنْ أَشْرَ‌كْتَ لَيَحْبَطَنَّ عَمَلُكَ وَلَتَكُونَنَّ مِنَ الْخَاسِرِ‌ينَ﴾ (الزمر۶۵/۳۹) ‘‘(اے محمد!ﷺآپؐ کی طرف اور آپؐ سے پہلے کے تمام ا نبیاء علھیم السلام کی طرف یہی وحی کی بھیجی ہےگئی ہےکہ اگر تم نے بھی شرک کیا توتمھارے عمل برباد ہوجائیں گےاور تم تو زیاںکاروں میں سے ہوجاو گے۔’’ اس کی تائید اس بات سے بھی ہوتی ہے کہ نبی علیہ الصلواۃ والسلام نے نبوت سے سرفراز ہونے کے بعد مکہ مکرمہ میں دس برس گزارے اوراس عرصہ میں نماز کی فرضیت سے قبل آپؐ نے لوگوں کو اللہ تعالی کی توحید کی دعوت دی،اس سارے عرصہ میں آپؐ کی دعوت یہ تھی کہ اللہ تعالی کی توحید کو اختیار کرو ،شرک اوربت پرستی کو چھوڑ دو،تمام جنوں اورانسانوں پر یہ واجب ہے کہ وہ صرف اللہ وحدہ لاشریک کی عبادت کریں اوراپنے آباواجداد کے شرک کو چھوڑدیں۔روم کے باشاہ ہرقل نے صلح حدیبیہ کے ایام میں ابوسفیان بن حرب سے پوچھا تھا جب کہ ابوسفیان قریش کے ایک تجارتی قافلہ کے ہمراہ فلسطین گئے تھے اورادھر اتفاق سے ہرقل بھی ان دنوں القدس میں آیا ہوا تھا،جب ہرقل کو اس قریشی قافلہ کے بارے میں بتایا گیا تو اس نے انہیں اپنے دربار میں طلب کیا تاکہ ان سے نبی کے بارے میں سوال کرے،اس قافلہ کے سربراہ ابوسفیان تھے ،ہرقل نے ان سے آپؐ کے اور آپؐ کےدعوی نبوت کے بارے میں کچھ سوالات پوچھے۔ہرقل نے حکم دیا کہ ابوسفیان کو اس کے سامنے بٹھایا جائے اوراس کے ساتھیوں کو اس کے پیچھے بٹھادیا جائے اور اپنے ترجمان سے کہا کہ ان لوگوں سے کہہ دو کہ میں ابوسفیان سے کچھ سوالات پوچھنے لگا ہوں اوراگر یہ غلط جواب دیں تو ان کی تکذیب کردینا۔ہرقل نے اس موقع پر ابوسفیان سے نبی کریم ﷺکے بارے میں بہت سے سوالات پوچھے جو مشہورومعروف ہیں اورصیح بخاری اوردیگر کتب میں موجود ہیں،ان سوالات میں سے ایک سوال یہ بھی تھا کہ ‘‘یہ نبوت کا دعوی کرنے والاانسان کس بات کی دعوت دیتا ہے۔’’ابوسفیان کا جواب تھاکہ وہ ہمیں یہ دعوت دیتا ہے کہ ہم اللہ وحدہ کی عبادت کریں،اپنے آباواجدادکےدین کوترک کردیں نیز وہ ہمیں نماز پڑھنے ،سچ بولنے ،صلہ رحمی کرنے اورعفت وپاک دامنی کی زندگی بسر کرنے کا حکم دیتا ہے۔ہر قل نے یہ سن کر کہا کہ اگر تم ٹھیک کہتے ہو تو وہ ایک دن میرے ان قدموں کی جگہ کا مالک ہوگا،چنانچہ ایسے ہی ہوا،اللہ تعالیٰ نے مسلمانوں کہ ملک شام کا مالک بنا دیا،رومیوں کو وہاں سے نکال دیا اور اپنے نبی اور اپنے لشکر کو اس نے فتح ونصرت سے سرفراز فرمایا۔ مقصود یہ کہ شریعت کا یہ اصول ایک عظیم امر ہے اور لوگوں نے جب اس مین سستی کی تو وہ شرک اکبر میں مبتلا ہو گئے۔۔۔مگر جس پر اللہ تعالیٰ نے رحم فرمایا۔یہ لوگ اسلام کے مدعی ہیں اور جو ان پر اسلام کی خلاف ورزی کا الزام عائد کرے،اس کی مخالفت کرتے ہیں لیکن اس عظیم اصول سے جہالت کی وجہ سے خود شرک میں مبتلا ہیں انہوں نے اللہ تعالیٰ کو چھوڑ کر بہت سے مُردوں کو معبود بنا کر ان کی عبادت شروع کر دی ہے،یہ لوگ ان کی قبروں کا طواف کرتے ہیں،ان سے فریاد کرتے ہیں،ان سے اپنے بیماروں کی شفاء کے لئے دعا کرتے ہیں،حاجتوں کے پورا کرنے اور دشمنوں پر فتح حاصل کرنے کے لئے ان سے دعا کرتے ہیں اور کہتے ہیں کہ یہ شرک نہیں بلکہ یہ تو نیک لوگوں کی تعظیم اور ان کا اللہ تعالیٰ کے ہاں وسیلہ پیش کرنا ہے۔یہ لوگ یہ بھی کہا کرتے ہیں کہ انسان اللہ تعالیٰ کو براہ راست نہیں پکار سکتا بلکہ اس کے لئے ضروری ہے کہ اولیاء کے واسطہ کو اختیار کیا جائے جیسے بادشاہوں تک پہنچنے کے لئے وزیروں کا وسیلہ اختیار کرنا پڑتا ہے،اسی طرح رب تک پہنچنے کے لئے اولیاء کا وسیلہ اختیار کرنا ضروری ہے کہ اولیاء درحقیقت اللہ تعالیٰ کے وزیر ہیں۔ان لوگوں نے اللہ تعالیٰ کو مخلوق کے ساےھ تشبیہٖہ دی اور پھر اللہ تعالیٰ کو چھوڑ کر مخلوق ہی کی عبادت شروع کر دی۔نسال الله العافية! یہ سب کچھ اس عظیم اصول کے بارے میں جہالت اور قلت بصیرت کی وجہ سے ہے۔بدوی،شیخ عبدالقادر،حسین اور دیگر اولیاء کے پجاری درحقیقت بہت بڑی مصیبت میں مبتلا ہو چکے ہیں،یہ لوگ توحید کی حقیقت سے ناآشنا ہیں یہ انبیاءکرام کی دعوت سے ناواقف ہیں،ان پر امور خلط ملط ہو گئے،یہ شرک میں مبتلا ہو کر اسے مستحہن سمجھنے لگے اور شرک ہی کو انہوں نے دین اور تقرب الہٰی کا ذریعہ سمجھ لیا اور جو انہیں سمجھائے اس کے یہ منکر ہیں اور پھر اکثر شہروں میں اس عظیم اصول کے بارے میں بصیرت رکھنے والے علماء بھی بہت کم ہیں،اس قدر کم کہ انہیں انگلیوں پر شمار کیا جاسکتا ہے،اور ان میں سے بھی بعض کے بارے میں یہ کہا جاتا ہے کہ وہ عالم ہیں لیکن وہ بھی قبروں کی اس طرح تعظیم کرتے ہیں کہ اللہ تعالیٰ نے اس طرح حکم نہیں دیا یہنی وہ بھی اہل قبور کو پکارتے،ان سے مدد طلب کرتے اور ان کی نذر وغیرہ مانتے ہیں۔ باقی رہے علماءحق،علماءسنت اور علماءتوحید تو وہ ہر جگہ ہی کم ہیں لہٰذا اس جامعہ کے طلبہ اور دیگر تمام اسلامی جامعات کے طلبہ پر یہ واجب ہے کہ وہ اس اصول کو تھام لیں،اس کو نہایت مضبوط ومستحکم کر لیں تاکہ وہ ہدایت کے داعی اور حق کی بشارت سنانے والے بن جائیں اور لوگوں کو ان کے دین کی وہ حقیقت بتائیں جس کے ساتھ اللہ تعالی نے اپنے نبی حضرت محمدﷺکو مبعوث فرمایا ہے بلکہ جس کے ساتھ اس نے اپنے تمام انبیاءکرام کو مبعوث فرمایا۔ اس وقت میں آپ کے سامنے جو گفتگو کروں گا اس کا تعلق توحید کی اقسام اور شرک کی اقسام سے ہے۔توحید،وحد يوحد توحيدا کا مصدر ہے جس کے معنی یہ ہیں کہ اللہ تعالی کو واحد مانا جائے یعنی یہ عقیدہ رکھا جائے کہ اللہ تعالیٰ اپنی ربوبیت،اسماءوصفات اور الوہیت وعبادات میں وحدہ لاشریک ہے،لوگ اسے تسلیم نہ بھی کرین تو وہ پھر بھی واحد ہے۔صرف ایک اللہ کی عبادت کو توحید کے نام سے اس لئے موسوم کیا گیا کہ اس عقیدہ کے ساتھ بندہ اپنے رب کو واحد سمجھتا ہے اور اس عقیدہ کی روشنی میں وہ اپنے رب کی اخلاص کے ساتھ عبادت کرتا ہے،صرف اسی کو پکارتا اور یہ ایمان رکھتا ہے کہ صرف وہی اس کائنات کے تمام امور کا مدبر ہے،وہ ساری مخلوقات کا خالق ہے،وہ صاحب اسماءحسنیٰ وصفات کاملہ ہے۔صرف اور صرف وہی مستحق عبادت ہے،اس کے سوا کوئی اور عبادت کا مستحق نہیں ہے۔اگر تفصیل کے ساتھ بیان کیا جائے تو ہم یوں کہ سکتے ہیں کہ توحید کی تین قسمیں ہیں(۱)توحید ربوبیت(۲)توحید الوہیت اور(۳)توحید اسماءوصفات،توحید ربوبیت کا تو مشرک بھی اقرار کرتے تھے اور اس کا انکار نہیں کرتے تھے لیکن اس اقرار کے باوجود وہ دائرہ اسلام میں داخل نہ ہوسکے کیونکہ انہوں نے عبادت کو اللہ تعالی کے لئے خاص نہ کیا اور توحید الوہیت کا اقرار نہ کیا ۔یہ اقرار تو کیا کہ ان کا رب وہی خالق ورازق ہے اور اللہ ان کا رب ہے لیکن انہوں نے عبادت کے لائق اسی وحدہ لاشریک کو نہ سمجھا۔یہی وجہ ہے کہ نبی کریم ﷺنے ان کے خلاف جہاد کیا حتی کہ وہ اللہ وحدہ لاشریک ہی کی عبادت کے قائل ہوگئے۔توحید ربوبیت کے معنی رب تعالی کے افعال ،کائنا ت کے لئے اس کی تدبیر اوراس میں اس کے تصرف کے اقرارکے ہیں،اسے توحید ربوبیت کے نام سے اس لئے موسوم کیا جاتا ہے کہ بندہ اعتراف کرتا ہے کہ وہ خلاق ورزاق ،امورکی تدبیر اوران میں تصرف کرنے والا ہے ،وہ دیتا بھی ہے اور روک بھی لیتا ہے ،وہ تہہ بالا کرتا ہے ،عزت وذلت سے نوازتا ،جلاتا اور مارتا اورہرچیز پر قدرت رکھتاف ہے فی الجملہ مشرکوں کو بھی اس کا اقرارتھا،جیسا کہ اللہ سبحانہ وتعالی کا فرمان ہے: ﴿وَلَئِن سَأَلْتَهُم مَّنْ خَلَقَهُمْ لَيَقُولُنَّ اللَّـهُ﴾ (الزخرف۸۷/۴۳) ‘‘اوراگر آپ ؐان سےپوچھیں کہ انہیں کس نے پیدا کیا ہے؟ تو یقیناً کہیں گے‘‘ اللہ’’ نے۔’’ نیز فرمایا: ﴿وَلَئِن سَأَلْتَهُم مَّنْ خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْ‌ضَ لَيَقُولُنَّ اللَّـهُ﴾ الذمر۳۸/۳۹) ‘‘اگر آپؐ ان سے پوچھیں کہ آسمانوں ا ور زمین کو کس نے پیدا کیا ہے توضرورکہیں گے کہ‘‘ اللہ’’ نے۔’’ اور ارشاد گرامی ہے: ﴿قُلْ مَن يَرْ‌زُقُكُم مِّنَ السَّمَاءِ وَالْأَرْ‌ضِ أَمَّن يَمْلِكُ السَّمْعَ وَالْأَبْصَارَ‌ وَمَن يُخْرِ‌جُ الْحَيَّ مِنَ الْمَيِّتِ وَيُخْرِ‌جُ الْمَيِّتَ مِنَ الْحَيِّ وَمَن يُدَبِّرُ‌ الْأَمْرَ‌ ۚ فَسَيَقُولُونَ اللَّـهُ ۚ فَقُلْ أَفَلَا تَتَّقُونَ﴾ (یونس۳۱/۱۰) ‘‘(ان سے)پوچھئےکہ تمھیں آسمان وزمین سے روزی کون پہنچاتا ہےیا(تمھارے)کانوں اورآنکھوں کا مالک کون ہےاوربے جان سے جاندار اورجاندار سے بے جان کون پیدا کرتا ہے اوردنیا کے کاموں کا انتظام کون کرتا ہے؟تو جھٹ (فورا)کہہ دیں گے کہ اللہ !تو کہو پھر تم (اللہ سے)ڈرتے کیوں نہیں؟’’ وہ ان امور کے متعرف تھے لیکن عبادت میں اللہ تعالی کی توحید کے سلسلہ میں اس اقرار سے انہوں نے فائدہ نہ اٹھایااوراخلاص کے ساتھ اللہ تعالی کی عبادت نہ کی بلکہ اس کے ساتھ انہوں نے کئی واسطے اختیار کرلئے اورگمان یہ کیا کہ اللہ تعالی کے ہاں یہ ان کے سفارش کرنے والے اورانہیں اللہ تعالی کے قریب کردینے والے ہیں جیسا کہ اللہ تعالی نے فرمایا ہے: ﴿وَيَعْبُدُونَ مِن دُونِ اللَّـهِ مَا لَا يَضُرُّ‌هُمْ وَلَا يَنفَعُهُمْ وَيَقُولُونَ هَـٰؤُلَاءِ شُفَعَاؤُنَا عِندَ اللَّـهِ﴾ (یونس۱۸/۱۰) ‘‘اوریہ(لوگ)اللہ تعالی کو چھوڑ کرایسی چیزوں کی عبادت کرتے ہیں جوان کا کچھ بگاڑ سکتی ہیں نہ ان کو نفع پہنچاسکتی ہیں اورکہتے ہیں کہ یہ اللہ کے پاس ہمارے سفارشی ہیں۔’’ اللہ تعالی نے اس کی تردید کرتے ہوئے فرمایا: ﴿قُلْ أَتُنَبِّئُونَ اللَّـهَ بِمَا لَا يَعْلَمُ فِي السَّمَاوَاتِ وَلَا فِي الْأَرْ‌ضِ ۚ سُبْحَانَهُ وَتَعَالَىٰ عَمَّا يُشْرِ‌كُونَ﴾ (یونس۱۰/۱۸) ‘‘آپ کہہ دیجئے کیا تم اللہ کو ایسی چیز کی خبر دیتے ہوجس کا وجود اسے آسمانوں میں معلوم ہوتا ہےنہ زمین میں؟اورپاک اوربرتر ہے لوگوں کے شرک سے ۔’’ اللہ سبحانہ وتعالی کا کوئی شریک نہیں ،آسمان نہ زمین میں بلکہ وہ تو واحد ہے ،پاک ومنزہ اوربلند وبالاہے،فردوصمدہے،صرف اورصرف وہی مستحق عبادت ہے ،جیسا کہ اس نے فرمایاہے:﴿ فَاعْبُدِ اللَّـهَ مُخْلِصًا لَّهُ الدِّينَ ﴿٢﴾ أَلَا لِلَّـهِ الدِّينُ الْخَالِصُ﴾ (الزمر۳۹/۲۔۳) ‘‘پس آپ اللہ ہی کی عبادت کریں،اسی کے لئے عبادت کو خالص کرتے ہوئے ،خالص عبادت اللہ ہی کے لئے (زیبا)ہے۔’’ اورپھر یہ بھی فرمایا ہے: ﴿وَالَّذِينَ اتَّخَذُوا مِن دُونِهِ أَوْلِيَاءَ مَا نَعْبُدُهُمْ إِلَّا لِيُقَرِّ‌بُونَا إِلَى اللَّـهِ زُلْفَىٰ﴾ (الزمر۳۹/۳) ‘‘اورجن لوگوں نے اس کو چھوڑ کراوردوست بنارکھے ہیں(وہ کہتے ہیں کہ)ہم ان کی اس لئے عبادت کرتے ہیں کہ یہ ہمیں اللہ کامقرب بنادیں۔’’ یعنی وہ یہ کہتے تھے کہ ہم ان کی اس لئے عبادت نہیں کرتے کہ یہ نفع ونقصان کے مالک ہیں یا یہ پیدا کرتے اوررزق دیتے ہیں یا یہ امور کی تدبیر کرتے ہیں ،نہیں!بلکہ ہم تو ان کی اس لئے عبادت کرتے ہیں کہ یہ ہمیں اللہ تعالی کے قریب کر دیتے ہیں جیسا کہ سورہ یونس کی آیت کے حوالے سے گزر چکا ہے کہ وہ اپنے ان معبودوں کے بارے میں یہ بھی کہا کرتے تھے کہ: ﴿هَـٰؤُلَاءِ شُفَعَاؤُنَا عِندَ اللَّـهِ﴾ (یونس۱۰/۱۸) ‘‘یہ اللہ کے پاس ہماری سفارش کرنے والے ہیں۔’’ اس سے معلوم ہوا کہ وہ یہ عقید ہ نہیں رکھتے تھے کہ ان کے یہ معبودنفع ونقصان کے مالک ہیں،یا موت وحیات کا اختیار رکھتے ہیں،یا رزق دیتے ،عطاکرتے اورمنع کرتے ہیں بلکہ وہ تو ان کی اس لئے عبادت کرتے تھے کہ یہ ان کی سفارش کریں اورانہیں اللہ تعالی کے قریب کردیں ،لات عزی ومنات ،مسیح ومریم اورنیک بندوں کی پہلے زمانے کے مشرک اس لئے عبادت نہیں کرتے تھے کہ وہ ان کو نفع ونقصان کا مالک سمجھتے تھے بلکہ وہ ان کی ا س لئے عبادت کرتے تھے کہ وہ اس بات کے امیدوار تھے کہ ان کی سفارش کردیں گے اورانہیں اللہ تعالی کے قریب کردیں گے،چنانچہ ان کے اس عقیدے کی وجہ سے حسب ذیل آیت کریمہ میں اللہ تعالی نے انہیں مشرک قراردیا ہے: ﴿قُلْ أَتُنَبِّئُونَ اللَّـهَ بِمَا لَا يَعْلَمُ فِي السَّمَاوَاتِ وَلَا فِي الْأَرْ‌ضِ ۚ سُبْحَانَهُ وَتَعَالَىٰ عَمَّا يُشْرِ‌كُونَ﴾ (یونس۱۰/۱۸) ‘‘آپ کہہ دیں کیا تم اللہ کو ایسی چیز کی خبر دیتے ہوجس کا وجود اسے آسمانوں میں معلوم ہےنہ زمین میں؟اورپاک ہےاور(اس کی شان)ان کے شرک کرنے سےبہت بلند وبرتر ہے ۔’’ سورہ زمر کی آیت میں فرمایاہے: ﴿إِنَّ اللَّـهَ يَحْكُمُ بَيْنَهُمْ فِي مَا هُمْ فِيهِ يَخْتَلِفُونَ ۗ إِنَّ اللَّـهَ لَا يَهْدِي مَنْ هُوَ كَاذِبٌ كَفَّارٌ‌﴾ (الزمر۳۹/۳) ‘‘جن باتوں میں یہ لوگ اختلاف کرتے ہیں ،یقینا اللہ تعالی ان کے درمیان ان کا فیصلہ کردے گا۔بے شک اللہ تعالی اس شخص کو جوجھوٹا ناشکراہے ہدایت نہیں دیتا۔’’ جب انہوں نے یہ کہا کہ ہم تو ان کی عبادت اس لئے کرتے ہیں کہ یہ ہمیں اللہ کے قریب کردیں تو اللہ تعالی نے انہیں کافر اورکاذب قراردیا اور بیان فرمایا کہ یہ اپنے اس گمان میں جھوٹے ہیں کہ یہ انہیں اللہ کے قریب کردیں گےاوراپنے اس عمل یعنی ان کی عبادت ،ان کے نام پر ذبح ،ان کے نام کی نذرونیاز،ان سے دعا اوراستعغاثہ وغیرہ کی وجہ سے کافر ہیں۔نبی ﷺنے مکہ میں دس سال تک یہ دعوت دی کہ ‘‘لاالہ الا اللہ ’’کہوکامیاب ہوجاوگے’’لیکن اکثر لوگوں نے آپؐ کی اس دعوت کو قبول کرنے سے اعراض کیا اوربہت تھوڑے لوگ تھے جنہوں نے ہدایت قبول کی،پھرمکہ والوں نے اتفاق سے یہ طے کیا کہ آپؐ کو شہید کردیں لیکن اللہ تعالی نے آپؐ کو ان کے شر اور مکروفریب سے نجات عطافرمائی اورپھرآپؐ مدینہ منورہ کی طرف ہجرت فرماگئے،وہاں آپؐ نے اللہ تعالی کی شریعت کوقائم کیا اوردعوت الی اللہ دی،انصار نے اس دعوت کو قبول کرلیا اورپھر انہوں نے اورمہاجرین نے آپؐ کے ساتھ مل کر مشرکین مکہ اوردوسرے کفار سے جہاد کیا حتی کہ اللہ تعالی نے اپنے دین کو غالب اوراپنے کلمہ کو سربلند کردیا اورکفر اور کافروں کو ذلیل وخوارکردیا۔مشرکین توحید کی جس قسم کا اقرار کرتے تھے یہ توحید ربوبیت ہے یعنی اللہ تعالی اپنے افعال مثلا پیدا کرنے ،رزق دینے،تدبیرکرنے،زندہ کرنے اورمارنے وغیرہ میں وحدہ لاشریک ہے حالانکہ یہ توحید ربوبیت،ان کے توحید الوہیت کے انکار کے خلاف دلیل ہے کیونکہ توحید ربوبیت،توحید الوہیت کومستلزم ہے ،یہ اس کی دلیل ہے اوراسے واجب قرار دیتی ہے،اسی وجہ سے ان کے اقرا ر کو ان کے خلاف حجت کے طورپر استعمال کرتے ہوئے اللہ تعالی نے فرمایا ہے: ﴿فَقُلْ أَفَلَا تَتَّقُونَ﴾ (یونس۳۱/۱۰) ‘‘توکہوکہ پھرتم(اللہ سے)ڈرتے کیوں نہیں؟’’ اوردوسری آیات میں فرمایا: ﴿أَفَلَا تَعْقِلُونَ﴾ (یونس۱۰/۱۶) ‘‘پھرکیا تم عقل نہیں رکھتے !’’ ﴿أَفَلَا تَذَكَّرُ‌ونَ﴾ (یونس۱۰/۳) ‘‘پھرکیا تم پھر بھی نہیں سمجھتے۔’’ اگرکوئی شخص اس امر پر تدبر کرے جس کا یہ لوگ اقرارکرتے تھے اوروہ عقل سے کام لے تو یقینا اس نتیجہ پر پہنچے گاکہ جو ہستی ان صفات سے متصف ہو وہ یقینا اس کی مستحق ہے کہ اس کی عبادت کی جائے،جب وہ خلاق ہے ،رزاق ہے،محی(حیات عطاکرنے والا)ہے،ممیت(مارنے والا)ہے،معطی(عطاکرنے والا)ہے،مانع(روکنے والا)ہے،امورکائنات کی تدبیر کرنے والا ہے ،ہرچیز کو جاننے والا اورہر چیز پر قدرت رکھنے والا ہےتوپھر یہ کیسے ہوسکتا ہے کہ اسے چھوڑ کراس کے غیر کی عبادت کی جائے،امیدو خوف کا مرکز کسی اور کو قراردیا جائے،اےکاش!کفاراس حقیقت کو سمجھ لیتے لیکن یہ لوگ اس حقیقت کو سمجھتے ہی نہیں کہ : ﴿اسْتَحْوَذَ عَلَيْهِمُ الشَّيْطَانُ فَأَنسَاهُمْ ذِكْرَ‌ اللَّـهِ ۚ أُولَـٰئِكَ حِزْبُ الشَّيْطَانِ ۚ أَلَا إِنَّ حِزْبَ الشَّيْطَانِ هُمُ الْخَاسِرُ‌ونَ﴾ (المجادلۃ۱۹/۵۸) ‘‘شیطان نے ان کو قابو میں کرلیا ہےاوراللہ کی یاد ان کو بھلادی ہے۔یہ(جماعت)شیطان کا لشکر ہےاوریقینا شیطان کا لشکرنقصان اٹھانے والا ہے۔’’ اورمنافقین کے بارے میں فرمایا : ﴿صُمٌّ بُكْمٌ عُمْيٌ فَهُمْ لَا يَرْ‌جِعُونَ﴾ (البقرۃ۱۸/۲) ‘‘یہ بہرے ہیں، گونگے ہیں ،اندھے ہیں کہ(کسی طرح سیدھے راستے کی طرف )لوٹ ہی نہیں سکتے ۔’’ ان کے ساتھ مشابہت رکھنے والے لوگ بھی اسی طرح ہیں ،جیسا کہ ارشاد باری تعالی ہے: ﴿وَلَقَدْ ذَرَ‌أْنَا لِجَهَنَّمَ كَثِيرً‌ا مِّنَ الْجِنِّ وَالْإِنسِ ۖ لَهُمْ قُلُوبٌ لَّا يَفْقَهُونَ بِهَا وَلَهُمْ أَعْيُنٌ لَّا يُبْصِرُ‌ونَ بِهَا وَلَهُمْ آذَانٌ لَّا يَسْمَعُونَ بِهَا ۚ أُولَـٰئِكَ كَالْأَنْعَامِ بَلْ هُمْ أَضَلُّ ۚ أُولَـٰئِكَ هُمُ الْغَافِلُونَ﴾ (الاعراف۱۷۹/۷) ‘‘اورہم نے بہت سے جن اورانسان دوزخ کے لئے پیدا کئے ہیں،ان کے دل ہیں لیکن سمجھتے نہیں ،ان کی آنکھیں ہیں مگر ان سے دیکھتے نہیں اوران کے کان ہیں مگر ان سے سنتے نہیں،یہ لوگ(بالکل)جوپایوں کی طرح ہیں بلکہ ان سے بھی زیادہ گمراہ ہیں،یہی لوگ ہی غفلت میں پڑے ہوئے ہیں۔’’ یہ لوگ حقیقی طور پر غافل ہیں،یہ جانوروں سے مشابہت رکھتے ہیں بلکہ ان سے بھی زیادہ بھٹکے ہوئے ہیں جیسا کہ اللہ نے آیات بینات،روشن دلائل اورساطع براہین میں ان کے بارے میں یہی فرمایا ہے لیکن اس کے باوجود یہ لوگ سمجھتے نہیں اورنہ عقل سے کام لیتے ہیں بلکہ اپنے کفر وضلالت میں ڈٹے ہوئے ہیں حتی کہ انہوں نے رسول اللہ ﷺسےبدر،خندق اوراحزاب۔۔۔کےدن باقاعدہ جنگیں بھی کیں ،یہ لوگ اپنے کفر وضلالت میں سرگرداں رہے اور آیات الہی نے بھی انہیں کوئی نفع نہ دیا اورغفلت وبے نیازی سے بھی باز نہ آئے!پھر ایک دن آیا کہ اللہ تعالی نے اپنے نبی کو غلبہ عطافرمایا،اپنے دین کو عزت بخشی اوردشمنوں کو مغلوب کردیا اورنبی کریمﷺنے جب فتح مکہ کے دن ان سے جہاد کیا تو اللہ تعالی نے اپنے پیغمبر کو دشمنوں کے مقابلہ میں فتح ونصرت سے سرفرازفرمایا اور آپؐ نے مکہ کو بھی فتح کرلیااوراب لوگ اللہ کے دین میں فوج درفوج داخل ہونا شروع ہوگئے اوراس وقت نبی علیہ الصلواۃ والسلام نے توحید الوہیت کو خوب نمایاں طورپر کھول کھول کربیان فرمایا،لوگوں نے اسے قبول کیا اور وہ دین حق میں داخل ہوگئے لیکن بعد ازاں ہوازن اورطائف کے لوگوں نے آپؐ کی مخالفت میں سر اٹھایا تو ان کے مقابلہ میں بھی اللہ تعالی نے آپؐ کو فتح ونصرت سے نوازااوران کے شیرازہ کو منتشر کردیا اوران کی عورتوں ،بچوں اورمالوں پر اللہ تعالی نے اپنے پیغمبر کو غلبہ عطافرمایااوراس طرح آخر کاراللہ تعالی نے اپنے محبوب نبی حضرت محمدﷺاوراپنے ایمان داربندوں کو فتح ونصرت سے سرفرازفرمایا۔فالحمدلله علي ذلك! توحيد کی دوسری قسم ‘توحيد اسماء وصفات ہے۔یہ بھی توحید ربوبیت ہی کی جنس سے ہے۔زمانہ جاہلیت کے لوگ اس توحید کا بھی اقرار کرتے اوراسے جانتے پہچانتے تھے،توحید ربوبیت،توحید اسماءوصفات کوبھی مستلزم ہے کیونکہ جو ہستی خلاق،رزاق اورہرچیز کی مالک ہوگی وہ تمام اسماء حسنی وصفات علیا کی بھی مستحق ہوگی اوروہ اپنی ذات ،اسماء وصفات اورافعال میں کامل ہے ،کوئی اس کا شریک ہے نہ اس کے مشابہ،آنکھیں اس کا ادراک نہیں کرسکتیں اوروہ سمیع وعلیم ہے،جیسا کہ اللہ تعالی نے فرمایا: ﴿لَيْسَ كَمِثْلِهِ شَيْءٌ ۖ وَهُوَ السَّمِيعُ الْبَصِيرُ‌﴾ (الشوری۱۱/۴۲) ‘‘اس جیسی کوئی چیز نہیں اوروہ سنتا دیکھتا ہے۔’’ نیز فرمایا: ﴿قُلْ هُوَ اللَّـهُ أَحَدٌ ﴿١﴾ اللَّـهُ الصَّمَدُ ﴿٢﴾ لَمْ يَلِدْ وَلَمْ يُولَدْ ﴿٣﴾ وَلَمْ يَكُن لَّهُ كُفُوًا أَحَدٌ﴾ (الاخلاص۱۱۲/۱۔۴) ‘‘آپ کہہ دیجئے کہ وہ (ذات پاک جس کانام)اللہ ہے ایک ہی ہے(وہ)معبودبرحق بےنیازہے،نہ کسی کا باپ ہےاورنہ کسی کا بیٹا اورکوئی اس کا ہمسر نہیں۔’’ کفاراپنے رب کو اس کے اسماء وصفات سے پہچانتے تھے اوراگر بعض نے ضد اورہٹ دھرمی کی روش اختیا ر بھی کی تو اللہ تعالی نے ان کی تکذیب کرتے ہوئے فرمایا: ﴿كَذَٰلِكَ أَرْ‌سَلْنَاكَ فِي أُمَّةٍ قَدْ خَلَتْ مِن قَبْلِهَا أُمَمٌ لِّتَتْلُوَ عَلَيْهِمُ الَّذِي أَوْحَيْنَا إِلَيْكَ وَهُمْ يَكْفُرُ‌ونَ بِالرَّ‌حْمَـٰنِ ۚ قُلْ هُوَ رَ‌بِّي لَا إِلَـٰهَ إِلَّا هُوَ عَلَيْهِ تَوَكَّلْتُ وَإِلَيْهِ مَتَابِ﴾ (الرعد۳۰/۱۳) ‘‘(کس طرح ہم اورپیغمبر بھیجتے رہے ہیں)اسی طرح (اے محمد !(ﷺ)ہم نے آپ کو اس امت میں جس سے پہلے بہت سی امتیں گزر چکی ہیں،بھیجا ہے تاکہ آپ ان کو وہ (کتاب)جوہم نے تمہاری طرف بھیجی ہے ،پڑھ کرسنا دیں اوریہ لوگ رحمن کو نہیں مانتے ۔کہہ دیجئے ،وہی تومیرا پروردگارہے،اس کے سوا کوئی معبودبرحق نہیں ہے،میں اسی پر بھروسہ رکھتا ہوں اوراسی کی طرف رجوع کرتا ہوں۔’’ توحید کی تیسری قسم یہ ہے کہ عبادت کا مستحق صرف اورصرف اللہ تعالی کی ذات گرامی کوقراردیا جائے اوریہی معنی ہیں‘‘لا الہ الا اللہ’’کے یعنی اللہ تعالی کے سوا کوئی اورمعبودنہیں ہے‘‘لا الہ الا اللہ’’کےاقرار سے غیراللہ کی عبادت کی تمام انواع واقسام کی نفی ہوجاتی ہےاوراللہ وحدہ سبحانہ وتعالی کے لئے اس کا اثبات ہوجاتا ہے۔یہ کلمہ تمام دین کی اصل اوراساس ہے۔یہ وہ کلمہ ہے جس کی طرف نبی کریم ﷺنے اپنی قوم کو دعوت دی،اپنے چچا ابوطالب کو دعوت دی مگر ابوطالب مسلمان نہ ہو ااوروہ اپنی قوم کے دین پر فوت ہواتھا۔اللہ تعالی نے اپنی کتاب مقدس کے بہت سے مقامات پر اس کلمہ کے معنی کی وضاحت فرمائی ہے۔مثلا اللہ تعالی کافرمان ہے: ﴿ وَإِلَـٰهُكُمْ إِلَـٰهٌ وَاحِدٌ ۖ لَّا إِلَـٰهَ إِلَّا هُوَ الرَّ‌حْمَـٰنُ الرَّ‌حِيمُ﴾ (البقرۃ۲/۱۶۳) ‘‘اور(لوگو)تمھارا حقیقی معبود اللہ واحد ہے،اس بڑے مہربان(اور)رحم کرنے والے کے سوا کوئی عبادت کے لائق نہیں۔’’ ایک اور ارشاد گرامی ہے: ﴿وَقَضَىٰ رَ‌بُّكَ أَلَّا تَعْبُدُوا إِلَّا إِيَّاهُ﴾ (الاسراء۲۳/۱۷) ‘‘اورتمہارے پروردگار نے حکم فرمایا ہےکہ اس کے سواکسی کی عبادت نہ کرو۔’’ مزید فرمایا: ﴿إِيَّاكَ نَعْبُدُ وَإِيَّاكَ نَسْتَعِينُ﴾ (الفاتحۃ۵/۱) ‘‘(اے پروردگار!ہم تیری ہی عبادت کرتے ہیں اورتجھی سے مدد مانگتے ہیں۔’’ اورفرمایا: ﴿وَمَا أُمِرُ‌وا إِلَّا لِيَعْبُدُوا اللَّـهَ مُخْلِصِينَ لَهُ الدِّينَ حُنَفَاءَ﴾ (البینۃ۵/۹۸) ‘‘انہیں تو حکم ہی یہی دیا گیا تھا کہ اخلاص عمل کے ساتھ اللہ کی عبادت کریں!’’ ان کے علاوہ اور بھی بہت سی آیات کریمہ ہیں جوسب کی سب اس کلمہ کی تفسیر بیان کرتی ہیں اور یہ وضاحت کرتی ہیں کہ اس کلمہ کے معنی یہ ہیں کہ غیراللہ کی عبادت کو باطل قراردیا جائے اوریہ ثابت کیا جائے کہ عبادت صرف اور صرف اللہ وحدہ لاشریک کا حق ہے جس طرح کہ اس نے سورہ حج میں فرمایا: ﴿ذَٰلِكَ بِأَنَّ اللَّـهَ هُوَ الْحَقُّ وَأَنَّ مَا يَدْعُونَ مِن دُونِهِ هُوَ الْبَاطِلُ وَأَنَّ اللَّـهَ هُوَ الْعَلِيُّ الْكَبِيرُ‌﴾ (الحج۶۲/۲۲) ‘‘یہ اس لئے کہ اللہ ہی برحق ہے اورجس چیز کو (کافر )اللہ کے سوا پکارتے ہیں،وہ باطل ہےاور اس لئے کہ اللہ رفیع الشان اوربڑا ہے۔’’ اورسورہ لقمان میں فرمایا: ﴿ذَٰلِكَ بِأَنَّ اللَّـهَ هُوَ الْحَقُّ وَأَنَّ مَا يَدْعُونَ مِن دُونِهِ هُوَ الْبَاطِلُ وَأَنَّ اللَّـهَ هُوَ الْعَلِيُّ الْكَبِيرُ‌﴾ (لقمان۳۰/۳۱) ‘‘یہ اس لئے کہ اللہ ہی کی ذات برحق ہے اورجن کو یہ لوگ اللہ کے سوا پکارتے ہیں،وہ لغو ہیں اوریہ کہ اللہ ہی عالی رتبہ(اور)گرامی قدر ہے۔’’ پس اللہ سبحانہ وتعالی کی ذات گرامی حق ہے،اس کی دعوت بھی حق ہے ،اورصرف اورصرف اللہ سبحانہ وتعالی ہی کی عبادت حق ہے،لہذا صرف اسی سے فریاد کی جائے ،اسی کے نام کی نظر مانی جائے ،اسی پر بھروسہ کیا جائے،اسی سے شفاءطلب کی جائے ،اسی کے بیت عتیق(قدیم گھر)کاطواف کیا جائے ۔الغرض جس قد ربھی عبادت کی مختلف انواع واقسام ہیں،ان سب کو اللہ تعالی کی ذات گرامی کے لئے مخصوص سمجھاجائے کہ وہ ذات گرامی حق ہے ،اس کا دین بھی حق ہے،جو شخص توحید کی ان تینوں قسموں کو خوب اچھی طرح معلوم کرے،ان کی حفاظت کرے اور ان کے معانی پر ڈٹ جائے تو وہ جان لے گا کہ اللہ تعالی کی ذات گرامی واحد اوربرحق ہےاورساری مخلوقات کے سوا صرف اورصرف وہی مستحق عبادت ہے۔ جو شخص توحید کی ان تین قسموں میں سے کسی ایک کو بھی ضائع کردے تو اس نے گویا سب کو ضائع کردیا کیونکہ یہ آپس میں لازم وملزوم ہیں۔دین اسلام کا تقاضا یہ ہےکہ توحید کی ان سب قسموں پر ایمان رکھا جائے۔جو شخص اللہ تعالی کی صفات واسماء کا انکار کرے،اس کا کوئی دین نہیں اورجو شخص یہ گمان رکھے کہ اللہ تعالی کے ساتھ امور کی تدبیر کرنے کے لئے کوئی اورمصرف بھی ہے تواہل علم کے اجماع کے مطابق وہ کافر اورشرک فی الربیت کا مرتکب ہے۔جو شخص توحید ربوبیت اورتوحید اسماء وصفات کا اقرار کرے لیکن عبادت صرف اللہ تعالی کی نہ کرے بلکہ اس کے ساتھ مشائخ یا انبیاءیافرشتوں،یاجنوں یاستاروں یابتوں وغیرہ کی بھی عبادت کرے تو اس نے اللہ تعالی کی ذات گرامی کے ساتھ شرک اور کفر کیا اوراس حالت میں توحید کی باقی قسمیں یعنی توحید بوبیت اورتوحید اسماء وصفات بھی اس کے کچھ کام نہ آئیں گی۔لہذا ضروری ہے کہ انسان کا توحید کی تینوں قسموں پر ایمان اوران کے مطابق عمل ہو اوراقرارکرے کہ اللہ تعالی اس کا رب ہے اوروہ خالق ،رازق اورتمام امور کا مالک ہے اوراس کا بھی ارارکرے مشرک جس کا انکار کرتے تھے اورپھر اللہ تعالی کے اسماء حسنی اورصفات علیا پر ایمان رکھے کہ اس کا کوئی ساجھی ہے نہ سہیم وشریک ،جیسا کہ اس نے خود ارشاد فرمایا ہے: ﴿قُلْ هُوَ اللَّـهُ أَحَدٌ ﴿١﴾ اللَّـهُ الصَّمَدُ ﴿٢﴾ لَمْ يَلِدْ وَلَمْ يُولَدْ ﴿٣﴾ وَلَمْ يَكُن لَّهُ كُفُوًا أَحَدٌ﴾ (الاخلاص۱۱۲/۱۔۴) ‘‘آپ کہہ دیجئے کہ وہ (ذات پاک جس کانام)اللہ ہے ایک ہی ہے(وہ)معبودبرحق بےنیازہے،نہ کسی کا باپ ہےاورنہ کسی کا بیٹا اورکوئی اس کا ہمسر نہیں۔’’ نیز فرمایا: ﴿فَلَا تَضْرِ‌بُوا لِلَّـهِ الْأَمْثَالَ ۚ إِنَّ اللَّـهَ يَعْلَمُ وَأَنتُمْ لَا تَعْلَمُونَ﴾ (النحل۱۶/۷۴) ‘‘تو(لوگو!)اللہ کے بار ے میں (غلط)مثالیں نہ بناواللہ تعالی ہی جانتا ہے اورتم نہیں جانتے۔’’ مزید ارشاد فرمایا: ﴿لَيْسَ كَمِثْلِهِ شَيْءٌ ۖ وَهُوَ السَّمِيعُ الْبَصِيرُ﴾‌ (الشوری۴۲/۱۱) ‘‘اس جیسی کوئی چیز نہیں اوروہ سنتادیکھتا ہے۔’’ باقی رہ گیا امرثالث تووہ توحید عبادت ہے اوریہی معنی ہیں‘‘لا الہ الا اللہ’’کے اوریہی تمام انبیاء کی دعوت کی اساس عظیم ہے کیونکہ مشرک ،توحید کی باقی دوقسموں کے منکر نہ تھے ،بلکہ صرف اس قسم یعنی عبادت کے منکر تھے یہی وجہ ہے کہ جب نبیﷺنے ان سے کہا:کہ کہو‘‘لا الہ الا اللہ’’توانہوں نے کہا: ﴿ أَجَعَلَ الْآلِهَةَ إِلَـٰهًا وَاحِدًا ۖ إِنَّ هَـٰذَا لَشَيْءٌ عُجَابٌ﴾ (ص٣٨/٥) ‘‘کیا اس نے اتنے معبودوں کی جگہ ایک ہی معبود بنا دیا ؟یہ تو بڑی عجیب بات ہے۔’’ انہوں نے یہ بھی کہا: ﴿وَيَقُولُونَ أَئِنَّا لَتَارِ‌كُو آلِهَتِنَا لِشَاعِرٍ‌ مَّجْنُونٍ﴾ (الصافات۳۶/۳۷) ‘‘ کیا ہم نے ایک دیوانے شاعر کی خاطر اپنے معبودوں کو چھوڑدیں؟ ’’ اوراس سے پہلے اللہ تعالی نے ان کے بارے میں یہ بیان فرمایا ہے : ﴿إِنَّهُمْ كَانُوا إِذَا قِيلَ لَهُمْ لَا إِلَـٰهَ إِلَّا اللَّـهُ يَسْتَكْبِرُ‌ونَ ﴿٣٥﴾ وَيَقُولُونَ أَئِنَّا لَتَارِ‌كُو آلِهَتِنَا لِشَاعِرٍ‌ مَّجْنُونٍ﴾ (الصافات۳۷/۳۵۔۳۶) ‘‘یہ وہ لوگ ہیں کہ جب ان سے کہا جاتا تھا کہ اللہ کے سوا کوئی معبود نہیں تواظہار تکبر کرتے تھے اورکہتے تھے کہ بھلا کیا ہم ایک دیوانے شاعرکےکہنے سے اپنے معبودوں کو چھوڑدیں۔’’ اوراللہ تعالی نے ان کی تکذیب کرتے ہوئے فرمایا: ﴿بَلْ جَاءَ بِالْحَقِّ وَصَدَّقَ الْمُرْ‌سَلِينَ﴾ (الصافات۳۷/۳۷) ‘‘(نہیں)بلکہ وہ حق لے کر آئے ہیں اور(پہلے)پیغمبروں کوسچا کہتے ہیں۔’’ توحید کی یہ قسم توحید عبادت ہے،پہلے مشرکوں نے بھی اس کا انکار کیا تھا اورآج کے مشرک بھی اس کے منکر ہیں اور اس کے ساتھ ایمان نہیں رکھتے بلکہ یہ اللہ تعالی کے ساتھ غیراللہ اشجاراوراحجارکی عبادت کرتے ہیں ،بتوں کی عبادت کرتے ہیں،اولیاءوصالحین کی عبادت کرتے ہیں،ان سے فریاد کرتے ہیں ان کےنام کی نذر مانتے اوران کے نام پر جانوروں کو ذبح کرتے ہیں اوروہ تمام امور بھی کرتے ہیں جن کو آج کل قبروں ،بتوں اوردرختوں وغیرہ کے پجاری بجالاتے ہیں اوراس طرح غیراللہ کی عبادت کرنے کی وجہ سے یہ لوگ مشرک وکافر ہیں اوراگراسی حالت میں فوت ہوجائیں توان کی بخشش نہ ہوگی،جیسا کہ اللہ سبحانہ وتعالی نے ارشاد فرمایا ہے: ﴿إِنَّ اللَّـهَ لَا يَغْفِرُ‌ أَن يُشْرَ‌كَ بِهِ وَيَغْفِرُ‌ مَا دُونَ ذَٰلِكَ لِمَن يَشَاءُ﴾ (النساء۴/۴۸) ‘‘یقینا اللہ تعالیٰ یہ جرم نہیں بخشے گا کہ کسی کو اس کا شریک ٹھہرایاجائے، اس کے سوا اور گناہ جس کو چاہےمعاف کر دے ۔’’ نیز فرمایا: ﴿وَلَوْ أَشْرَ‌كُوا لَحَبِطَ عَنْهُم مَّا كَانُوا يَعْمَلُونَ ﴾ (الانعام۶/۸۸) ‘‘اور اگر (بالفرض)وہ لوگ(مذکورہ انبیاء بھی) شرک کرتے تو جوعمل وہ کرتے تھے، وه سب ضائع ہوجاتے۔’’ مزید فرمایا: ﴿إِنَّهُ مَن يُشْرِ‌كْ بِاللَّـهِ فَقَدْ حَرَّ‌مَ اللَّـهُ عَلَيْهِ الْجَنَّةَ وَمَأْوَاهُ النَّارُ‌ ۖ وَمَا لِلظَّالِمِينَ مِنْ أَنصَارٍ‌﴾ (المائدہ۸۲/۵) ‘‘یقین مانو کہ جو شخص بھی اللہ کے ساتھ (کسی کو)شریک کرتا ہے،اللہ تعالی نے اس پر بہشت حرام کردی ہےاوراس کا ٹھکانہ دوزخ ہی ہے اورظالموں کا کوئی مددگارنہیں ہوگا۔’’ لہذا ازبس ضروری ہے کہ توحید کی اس قسم کو بھی اختیار کیا جائے اور صرف اورصرف اللہ وحدہ لاشریک کی عبادت کی جائے،اس کی ذات گرامی کے ساتھ شرک کی نفی کردی جائے ،اسی عقیدہ پر استقامت کا مظاہرہ کیا جائے،دوسروں کو اس کی دعوت دی جائے ،اسی کو دوستی اوردشمنی کا معیار قرار دیا جائے ۔توحید کی اس قسم سے جہالت اورعدم بصیرت کے سبب لوگ شرک میں مبتلا ہوجاتے ہیں لیکن سمجھتے یہ ہیں کہ وہ بہت ہدایت یافتہ ہیں،جیسا کہ اللہ عزوجل نے فرمایا ہے: ﴿إِنَّهُمُ اتَّخَذُوا الشَّيَاطِينَ أَوْلِيَاءَ مِن دُونِ اللَّـهِ وَيَحْسَبُونَ أَنَّهُم مُّهْتَدُونَ﴾ (الاعراف۳۰/۷) ‘‘ان لوگوں نےاللہ کوچھوڑکرشیطان کو رفیق بنالیااورسمجھتے (یہ)ہیں کہ (راہ راست پر)ہیں۔’’ عیسائیوں اوران جیسے دیگر لوگوں کے بارے میں فرمایا: ﴿قُلْ هَلْ نُنَبِّئُكُم بِالْأَخْسَرِ‌ينَ أَعْمَالًا ﴿١٠٣﴾ الَّذِينَ ضَلَّ سَعْيُهُمْ فِي الْحَيَاةِ الدُّنْيَا وَهُمْ يَحْسَبُونَ أَنَّهُمْ يُحْسِنُونَ صُنْعًا﴾ (الکھف۱۸/۱۰۳۔۱۰۴) ‘‘کہہ دیجئے کہ ہم تمھیں بتائیں کون لوگ اعمال کے لحاظ سے بہت زیادہ نقصان میں ہیں،وہ لوگ جن کی کوشش دنیا کی زندگی میں بربادہوگئی اوروہ یہی سمجھتے رہے کہ وہ اچھے کام کررہے ہیں۔’’ کافراپنی جہالت اوردل کی کجی کی وجہ سے یہ سمجھتا ہے کہ وہ اچھا کام کررہا ہےحالانکہ وہ غیر اللہ کی عبادت کررہا ہوتا ہے،غیراللہ کو پکار رہا ہوتا ہے،غیراللہ سے فریاد کررہا ہوتا ہے،غیر اللہ کے نام پر جانوروں کو ذبح کرنے اوران کے نام کی نذریں مان کر ان کا تقرب حاصل کرنے کی کوشش کررہا ہوتا ہے،حالانکہ یہ سب کچھ ان کی جہالت اوعدم بصیرت کی وجہ سے ہے ،انہی لوگوں کے بارے میں اللہ تعالی نے ارشاد فرمایا ہے: ﴿أَمْ تَحْسَبُ أَنَّ أَكْثَرَ‌هُمْ يَسْمَعُونَ أَوْ يَعْقِلُونَ ۚ إِنْ هُمْ إِلَّا كَالْأَنْعَامِ ۖ بَلْ هُمْ أَضَلُّ سَبِيلًا﴾ (الفرقان۴۴/۲۵) ‘‘کیا تم یہ خیال کرتے ہو کہ ان میں اکثر سنتے یا سمجھتے ہیں؟(نہیں)یہ تو چوپایوں کی طرح ہیں بلکہ ان سے بھی زیادہ گمراہ (بھٹکے ہوئے)ہیں۔’’ اورفرمایا: ﴿وَلَقَدْ ذَرَ‌أْنَا لِجَهَنَّمَ كَثِيرً‌ا مِّنَ الْجِنِّ وَالْإِنسِ ۖ لَهُمْ قُلُوبٌ لَّا يَفْقَهُونَ بِهَا﴾ (الاعراف۱۷۹/۷) ‘‘اورہم نے بہت سے جن اورانسان دوزخ کے لئے پیدا کئے ہیں،ان کے دل ہیں لیکن سمجھتے نہیں ۔۔۔۔’’ اہل علم اورطلبہ علم پر یہ واجب ہے کہ توحید کی اس نوع (قسم)کی جانب بہت ہی زیادہ توجہ مبذول کریں کیونکہ اس کے بارے میں جہالت کی بہت کثرت ہے اوراکثر مخلوق توحید کی اس نوع کے خلاف روش اختیار کئے ہوئے ہے۔توحید کی باقی دو قسمیں تو بحمداللہ بہت واضح اورروشن ہیں لیکن یہ قسم یعنی توحید عبادت ،اکثر لوگوں پر ان بہت سے شبہات کی وجہ سے مشتبہ ہے،جنہیں اللہ کے دشمنوں نے رواج دے رکھا ہے اوربہت سے لوگوں کو گمراہ کررہے ہیں لیکن اس شخص کے لئے بحمد اللہ معاملہ نہایت واضح اورصاف ہے جس کی بصیرت کو اللہ تعالی نے منور فرمادیا ہوکیونکہ دشمنوں کے پھیلائے ہوئے تمام شبہات باطل ہیں،ان میں کوئی حقیقت نہیں اوراس کے مقابلہ میں حق نہایت واضح اور روشن ہے اوروہ یہ کہ ہرانسان کے لئے یہ واجب ہے کہ وہ عبادت کو اخلاص کے ساتھ صرف اورصرف اپنے اللہ کے لئے بجالائے ،جیسا کہ اس نے ارشاد فرمایا ہے: ﴿فَادْعُوا اللَّـهَ مُخْلِصِينَ لَهُ الدِّينَ وَلَوْ كَرِ‌هَ الْكَافِرُ‌ونَ﴾ (الغافر۴۰/۱۴) ‘‘سوتم نہایت اخلاص سےاللہ کی عبادت کی عبادت کرتے ہوئے اللہ کو پکارو اگرچہ یہ کافروں کوناگوارہو۔’’ اورفرمایا: ﴿فَلَا تَدْعُوا مَعَ اللَّـهِ أَحَدًا﴾ (الجن۱۸/۷۲) ‘‘اللہ کے ساتھ کسی اورکی عبادت نہ کرو’’ اورارشاد ربانی ہے: ﴿وَلَا تَدْعُ مِن دُونِ اللَّـهِ مَا لَا يَنفَعُكَ وَلَا يَضُرُّ‌كَ ۖ فَإِن فَعَلْتَ فَإِنَّكَ إِذًا مِّنَ الظَّالِمِينَ﴾ (یونس۱۰۶/۱۰) ‘‘اوراللہ کو چھوڑ کر ایسی چیز کی عبادت مت کرنا جو تمہاراکچھ بھلا کرسکے نہ کچھ بگاڑ سکے ،اگرایساکرو گے توظالموں میں سے ہوجاوگے۔’’ ایک اورفرمان ہے: ﴿ذَٰلِكُمُ اللَّـهُ رَ‌بُّكُمْ لَهُ الْمُلْكُ ۚ وَالَّذِينَ تَدْعُونَ مِن دُونِهِ مَا يَمْلِكُونَ مِن قِطْمِيرٍ‌ ﴿١٣﴾ إِن تَدْعُوهُمْ لَا يَسْمَعُوا دُعَاءَكُمْ وَلَوْ سَمِعُوا مَا اسْتَجَابُوا لَكُمْ ۖ وَيَوْمَ الْقِيَامَةِ يَكْفُرُ‌ونَ بِشِرْ‌كِكُمْ ۚ وَلَا يُنَبِّئُكَ مِثْلُ خَبِيرٍ‌﴾ (فاطر۳۵/۱۳۔۱۴) ‘‘یہی اللہ تو(معبود حقیقی)تمہارا پروردگار ہے بادشاہی اسی کی ہے جن لوگوں کو تم اس کے سوا پکارتے ہو وہ کھجور کی گٹھلی کے چھلکے برابر بھی(کسی چیز کے)مالک نہیں اگر تم ان کو پکارو تو وہ تمہاری پکار سنتے ہی نہیں اور اگر(بالفرض)سن بھی لیں تو قبول نہیں کر سکتے(یعنی تمہاری حاجت روائی اور مشکل کشائی نہیں کر سکتے)اور قیامت کے روز تمہارے شرک سے انکار کر دیں گے اور(اللہ)باخبر کی طرح تم کو کوئی خبر نہیں دے گا۔’’ اور فرمایا: ﴿وَمَن يَدْعُ مَعَ اللَّـهِ إِلَـٰهًا آخَرَ‌ لَا بُرْ‌هَانَ لَهُ بِهِ فَإِنَّمَا حِسَابُهُ عِندَ رَ‌بِّهِ ۚ إِنَّهُ لَا يُفْلِحُ الْكَافِرُ‌ونَ﴾(المؤمنون۱۱۷/۲۳) ‘‘اور جو شخص اللہ کے ساتھ کسی دوسرے معبود کو پکارتا ہے،جس کی اس کے پاس کوئی دلیل نہیں تو اس کا حساب اللہ ہی کے ہاں ہو گا،یقینا کافر لوگ نجات سے محروم ہیں۔’’ اس مضمون کو اللہ تعالیٰ نے بہت سی آیات کریمہ میں بیان فرمایا ہے جو سب کی سب اس بات پر دلالت کرتی ہیں کہ عبادت صرف اور صرف اللہ تعالیٰ ہی کی ذات گرامی کی اخلاص کے ساتھ واجب ہے۔غیراللہ کو عبادت کا مستحق سمجھنا شرک اور کفر ہے۔اسی طرح اگر کوئی شخص یہ عقیدہ رکھے کہ فلاں شخصیت یا جمادات میں سے کوئی چیز اس قابل ہے کہ اس کی عبادت کی جائے تو وہ شخص کافر ہے خواہ اس کی عبادت نہ بھی کرے،مثلا اگر کوئی شخص یہ عقیدہ رکھے کہ یہ بت یا یہ شخص مثلا جبریل یا نبی مکرم حضرت محمدﷺیا شیخ عبدالقادر جیلانی،یا بدوی،یاحضرت حسینؓ یا حضرت علی بن ابی طالبؓ یا ان کے علاوہ کوئی اور عبادت کے لائق ہے،اللہ کے سوا کسی اور کو پکارنے یا کسی اور سے فریاد طلب کرنے میں کوئی حرج نہیں،تو وہ شخص یہ عقیدہ رکھنے سے کافر ہو جاتا ہے،خواہ عملی طور پر وہ ایسا نہ بھی کرے۔ اسی طرح اگر کوئی شخص یہ عقیدہ رکھے کہ یہ علم غیب جانتے ہیں،یا کائنات میں تصرف رکھتے ہیں تو اس کی وجہ سے بھی وہ کافر ہو جائے گا،اس پر تمام اہل علم کا اجماع ہے اور اگر کوئی شخص فی الواقع غیر اللہ کو پکارے،ان سے مدد مانگے یا غیر اللہ کے نام کی نذر مانے تو وہ شرک اکبر کا مرتکب ہوگا،اسی طرح اگر کوئی شخص غیر اللہ کو سجدہ کرے،یا اس کے لئے نماز پڑھے،یا اس کے لئے روزہ رکھے تو وہ بھی شرک اکبر کا مرتکب ہوگا۔اللہ تعالیٰ ہمیں اس سے محفوظ رکھے۔ توحید کی ضد شرک ہے،شرک کی بھی تین قسمیں ہیں لیکن درحقیقت شرک کی صرف دو ہی قسمیں ہیں(۱)شرک اکبر(۲)شرک اصغر۔ شرک اکبر:شرک اکبر یہ ہے کہ عبادت یا اس کے کچھ حصے کو غیراللہ کے ساتھ مخصوص کر دیا جائے یا دین کے ان امور معلومہ میں سے کسی کا انکار کر دیا جائے جن کو اللہ تعالیٰ نے واجب قرار دیا ہے مثلا نماز،رمضان کا روزہ یا کسی ایسی چیز کو حرام ماننے سے انکار کر دیا جائے جسے دین نے حرام قرار دیا ہو مثلا زنا اور شراب وغیرہ،یا خالق کی معصیت لازم آنے کے باوجود مخلوق کی اطاعت کو اختیار کیا جائے اور ایسا کرنا حلال سمجھا جائے کہ فلاں مرد یا عورت،سربراہ مملکت یا وزیر اعظم،عالم یاکسی اور کی ان امور میں بھی اطاعت جائز ہے جو اللہ تعالی کے دین کے خلاف ہیں،توہر وہ عمل جس میں عبادت کا کچھ حصہ غیراللہ کے لئے وقف کردیا جائے مثلا اولیاءاللہ کو پکارنا،ان سے فریادکرنا ،ان کے نام کی نذرماننایاکوئی ایسا عمل کرنا جس سے اللہ تعالی کے کسی حرام کردہ امر کو حلال ٹھہرانا لازم آتا ہو یااللہ تعالی کے کسی واجب کو ساقط قراردینا لازم آتا ہو۔مثلا یہ عقیدہ رکھنا کہ نماز واجب نہیں یا روزہ واجب نہیں یا استطاعت کے باوجود حج واجب نہیں یا زکوۃ واجب نہیں یا یہ عقیدہ رکھنا کہ اس طرح کے امور کا شرعا کوئی حکم نہیں ہے تویہ کفراکبراورشرک اکبرہے کیونکہ یہ عقیدہ رکھنا اللہ تعالی اوراس کے رسول ﷺکی تکذیب کے مترادف ہے۔اسی طرح اگر کوئی شخص کسی ایسے کام کے حلال ہونے کا عقیدہ رکھتا ہے جس کا حرام ہونا دین سے بالضرورۃ معلوم ہو مثلا زنا،شراب یاوالدین کی نافرمانی کو حلال سمجھنا یا ڈکیتی ورورہزنی ،لواطت ،سودخوری اورایسے دیگر امورکو حلال سمجھنا جن کی حرمت نص اوراجماع سے ثابت ہے تو اس پر تمام امت کا اجماع ہے کہ عقیدہ رکھنے والا کافر ہوجاتا ہےاور اس کا شمار شرک اکبر کا ارتکاب کرنے والے مشرکوں میں ہوتا ہے۔اسی طرح جو شخص دین کا مذاق اڑائے تووہ بھی مشرک اور اس کا کفر بھی کفر اکبرہے۔ارشاد باری تعالی ہے: ﴿قُلْ أَبِاللَّـهِ وَآيَاتِهِ وَرَ‌سُولِهِ كُنتُمْ تَسْتَهْزِئُونَ ﴿٦٥﴾ لَا تَعْتَذِرُ‌وا قَدْ كَفَرْ‌تُم بَعْدَ إِيمَانِكُمْ﴾ (التوبۃ۹/۶۵۔۶۶) ‘‘کہوکیا تم اللہ اوراس کی آیتوں اوراس کے رسول سے ہنسی کرتے تھے ؟بہانے مت بناوتم ایمان لانے کے بعدکافرہوچکے ہو۔’’ اسی طرح اگر کوئی شخص کسی ایسی چیز کو حقیر سمجھتے ہوئے اس کی توہین کرتا ہو جسے اللہ تعالیٰ نے عظیم قرار دیا ہو مثلا یہ کہ کوئی قرآن مجید کی توہین کرے،اس پر بول وبراز کر دے یا اس پر بیٹھ جائے یا اسی طرح توہین کا کوئی اور پہلو اخےیا کرے تو اجماع ہے کہ وہ بھی کافر ہے،کیونکہ اس طرح یہ شخص درحقیقت اللہ تعالیٰ کی تنقیص وتحقیر کرتا ہے،کیونکہ قرآن مجید تو اللہ سبحانہ وتعالیٰ کا کلام پاک ہے لہٰذا جس نے اس کی توہین کی اس نے گویا اللہ تعالیٰ کی توہین کی ان تمام مسائل کو علماء نے اپنی کتب کے‘‘باب حکم المرتد’’میں بیان کیا ہے،چنانچہ مذاہب اربعہ میں سے ہر مذہب کی کتب فقہ میں ایک ایسا باب ہے جسے‘‘باب حکم المرتد’’کے نام سے موسوم کیا گیا ہے،اس باب میں کفر وضلالت کی تمام اقسام کو بیان کیا گیا ہے،یہ باب لائق مطالعہ ہے،خصوصا آج کے اس دور میں جب کہ ارتداد کی بہت سی قسمیں پیدا ہوچکیں ہیں اور بہت سے لوگوں کے سامنے صورت حال واضح نہیں ہے لہٰذا جو شخص کتب فقہ کے اس باب کا غور سے مطالعہ کرے گا تو اسے معلوم ہو جائے گا کہ نواقض اسلام،اسباب ارتداد اور کفر وضلالت کی انواع واقسام کون کون سی ہیں۔ دوسری قسم شرک اصغر ہے۔اس سے مراد وہ کام ہے جسے نصوص میں شرک کے نام سے موسوم کیا گیا ہے لیکن شرک کی یہ قسم شرک اکبر سے کم تر درجہ کی ہے۔مثلا ریاکاری وغیرہ جیسے کوئی شخص ریاکاری کے لئے قرآن مجید کی تلاوت کرے یا ریاکاری کے لئے نماز پڑھے یا ریاکاری کے لئے دعوت الی اللہ کا کام کرے،چنانچہ حدیث میں ہے کہ رسول اللہﷺنے فرمایا‘‘تمہارے بارے میں مجھے سب سے زیادہ خوف شرک اصغر کا ہے اور جب آپﷺسے اس کے متعلق پوچھا گیا تو آپ نے فرمایا‘‘اس سے مراد ریا ہے۔’’اللہ تعالیٰ قیامت کے دن ریاکاری(دکھاوا)کرنے والوں سے فرمائے گا‘‘جاؤ ان لوگوں کے پاس جاؤ جن کو دکھانے کے لئے تم دنیا میں عمل کرتے تھے،کیا ان کے پاس تمہارے لئے کوئی جزا ہے۔؟’’ اس حدیث کو امام احمد نے صحیح سند کے ساتھ محمود بن لبیداشہلی انصاریؓ سے روایت کیا ہے،طبرانی،بیہقی اور بحدثین کی ایک جماعت نے بھی اسے محمود مذکور سے روایت کیا ہے۔یہ محمود صغیر صحابی ہیں،نبی کریمﷺسے ان کا سماع ثابت نہیں ہے لیکن اہل علم کے نزدیک صحابہکرام کی مرسل روایات صحیح اور حجت ہیں اور بعض اہل علم نے لکھا ہے کہ اس پر تمام امت کا اجماع ہے کہ صحابہ کی مرسل صحیح اور حجت ہیں۔ اسی طرح کسی آدمی کا یہ کہنا کہ‘‘جو اللہ اور فلاں چاہے،اگر اللہ اور فلاں شخص نہ ہوتا’’یا یہ جملہ کہ‘‘یہ اللہ اور فلاں کی طرف سے ہے۔’’تو اس طرح کہنا بھی شرک اصغر ہے جیسا کہ اس صحیح حدیث سے ثابت ہے جسے امام ابوداؤد نے صحیح سند کے ساتھ حضرت حذیفہؓسے روایت کیا ہے کہ نبی کریمﷺنے فرمایا‘‘یہ نہ کہا کرو کہ جو اللہ تعالیٰ چاہے اور فلاں چاہے بلکہ یہ کہا کرو کہ جو اللہ تعالیٰ چاہے اور پھر فلاں چاہے۔’’ اسی طرح امام نسائی نے‘‘قتیلہ’’سے روایت کیا ہے کہ یہودیوں نے حضرات صحابہکرامؓ سے کہا ہے کہ تم بھی شرک کرتے ہو کیونکہ تم یہ کہتے ہو کہ‘‘جو اللہ چاہے اور جو محمدﷺچاہے۔’’اور تم کہتے ہو کہ‘‘کعبہ کی قسم!’’تو نبیﷺنے صحابہ کرامؓ کو حکم دیا کہ وہ جب قسم کھانا چاہے تو یہ کہیں‘‘رب کعبہ کی قسم’’اور یہ کہیں کہ‘‘جو اللہ چاہے اور پھر جو محمدﷺچاہیں۔’’ سنن نسائی میں حضرت ابن عباسؓ سے مروی ہے کہ ایک آدمی نے کہ دیا‘‘یارسول اللہﷺجو اللہ چاہے اور جو آپ چاہیں’’تو آپ نے فرمایا‘‘کیا تم نے مجھے اللہ کا شریک بنا دیا ہے؟’’یہ کہو کہ‘‘جو صرف اللہ وحدہ چاہے۔’’ اسی طرح حضرت ابن عباسؓ سے درج ذیل ارشاد باری تعالیٰ کی تفسیر میں منقول ہے: ﴿فَلَا تَجْعَلُوا لِلَّـهِ أَندَادًا وَأَنتُمْ تَعْلَمُونَ﴾(البقرۃ۲۲/۲) ‘‘پس کسی کو اللہ کا ہمسر نہ بناؤ اور تم جانتے تو ہو’’ اس امت میں شرک اس قدر مخفی ہوگا جیسے اندھیری رات میں،کالے پتھر پر چیونٹی کے چلنے کی آواز ہوتی ہے مثلا آپ کا یہ کہنا کہ‘‘اے فلاں شخص!واللہ!میری اور آپ کی زندگی کی قسم!’’یا یہ کہنا کہ‘‘اگر یہ کتیا نہ بھونکتی تو ہمارے گھر چور آجاتے۔’’یا‘‘اگر گھر میں بطخ نہ ہوتی تو چور آجاتے۔’’اسی طرح آدمی کا یہ کہنا کہ‘‘جو اللہ اور آپ چاہیں،اگر اللہ تعالیٰ اور فلاں نہ ہوتا’’تو ان جملوں میں فلاں کا استعمال نہ کرو کہ یہ سب شرک بن جائے گا۔اس حدیث کو امام ابن ابی حاتم نے حسن سند کے ساتھ روایت کیا ہے۔ یہ اور اس طرح کےدیگر امور شرک اصغر کے قبیل سے ہیں،اسی طرح غیر اللہ کی قسم کھانا مثلا کعبہ،انبیاء،امانت،کسی کی زندگی یا کسی کی عزت وغیرہ کی قسم کھانا شرک اصغر ہے کیونکہ‘‘مسند’’میں صحیح سند کے ساتھ حضرت عمر بن خطابؓ سے روایت ہے کہ نبی کریمﷺنے فرمایا‘‘جو شخص اللہ کے سوا کسی اور چیز کی قسم کھائے وہ شرک کرتا ہے۔’’ امام احمد،ابوداؤد اور ترمذی رحمہم اللہ نے صحیح سند کے ساتھ حضرت ابن عمرؓ سے مروی حدیث بیان کی ہے کہ نبی کریمﷺنے فرمایا‘‘جس نے غیر اللہ کی قسم کھائی اس نے کفر یا شرک کیا۔’’اس میں یہ بھی احتمال ہے کہ راوی کو شک ہے کہ آپ نے کفر کا لفظ استعمال فرمایا یا شرک کا؟اور یہ بھی احتمال ہے کہ او بمعنی واؤ ہو اور معنی یہ ہو کہ اس نے کفر اور شرک کیا۔ اسی طرح شیخین نے حضرت عمرؓ سے مروی یہ حدیث بیان کی ہے کہ نبی کریمﷺنے فرمایا‘‘جس نے قسم کھانی ہو اسے چاہۓ کہ وہ اللہ کی قسم کھاۓ یا خاموش رہے۔’’اس مفہوم کی اور بھی بہت سی احادیث ہیں۔ اگرچہ یہ شرک اصغر کی قسمیں ہیں لیکن دل کی کیفیت کے باعث یہ شرک اصغر،شرک اکبر بھی ہوسکتا ہے مثلا اگر نبی یا بدوی یا کسی بزرگ کی قسم کھانے والے کے دل میں یہ ہو کہ وہ اللہ کے مثل ہے یا اللہ کے ساتھ اسے بھی پکارا جا سکتا ہےیا اللہ تعالیٰ کے ساتھ اس کا بھی اس کائنات میں تصرف ہے تو اس عقیدے کی وجہ سے یہ شرک اصغر،شرک اکبر بن جائےگااور اگر غیر اللہ کی قسم کھانے والے کا یہ مقصد نہ ہو اور محض عادت کے طور پر وہ اس طرح کی قسم کھائے تو یہ شرک اصغر ہوگا۔ شرک کی ایک اور قسم بھی ہے جسے شرک خفی کہا جاتا ہے۔بعض اہل علم نے اس کے،شرک کی تیسری قسم ہونے کے سلسلہ میں حضرت ابوسعیدخدریؓ کی اس حدیث سے استدلال کیا ہے کہ نبی کریمﷺنے فرمایا‘‘کیا میں تمہیں اس چیز کے بارے میں نہ بتاؤں جو میرے نزدیک تمہارے لئے مسیح الدجال سے بھی زیادہ خطرناک ہے؟’’صحابہ کرامؓ نےعرض کیا‘‘یارسول اللہ!ضرور ارشاد فرمائیے!’’آپ نے فرمایا‘‘وہ شرک خفی ہے،آدمی جب نماز پڑھتے ہوئے یہ دیکھتا ہے کہ اسے کوئی دیکھ رہا ہے تو وہ نماز کو سنوار کر پڑھنا شروع کر دیتا ہے۔’’(احمد) صحیح بات یہ ہے کہ یہ شرک کی کوئی تیسری قسم نہیں ہے یہ شرک اصغر ہی ہے اور یہ کبھی خفی بھی ہوتا ہے کیونکہ اس کا تعلق دل سے ہے جیسا کہ اس حدیث میں ہے۔اس کی مزید مثالیں،ریاکاری کے لئے قرآن مجید پڑھنا،ریاکاری کے لئے امر بالمعروف اور نہی عن المنکر کرنا،ریاکاری کے لئے جہاد کرنا وغیرہ۔ بعض لوگوں کی نسبت حکم شرعی کے اعتبار سے یہ کبھی خفی بھی ہوتا ہے جیسا کہ حضرت ابن عباسؓ سے مروی مذکورہ حدیث میں بیان کی گئی،مثالیں ہیں اور کبھی یہ شرک اکبر ہونے کے باوجود مخفی ہوتا ہے جیسے کہ منافقین کا اعتقاد کہ وہ ظاہری اعمال ریاکاری کے لئے کرتے ہیں،جب کہ ان کا کفر خفی ہوتا ہے،جسے وہ ظاہر نہیں کرتے،جیسا کہ ارشاد باری تعالیٰ ہے: ﴿إِنَّ الْمُنَافِقِينَ يُخَادِعُونَ اللَّـهَ وَهُوَ خَادِعُهُمْ وَإِذَا قَامُوا إِلَى الصَّلَاةِ قَامُوا كُسَالَىٰ يُرَ‌اءُونَ النَّاسَ وَلَا يَذْكُرُ‌ونَ اللَّـهَ إِلَّا قَلِيلًا ﴿١٤٢﴾ مُّذَبْذَبِينَ بَيْنَ ذَٰلِكَ لَا إِلَىٰ هَـٰؤُلَاءِ وَلَا إِلَىٰ هَـٰؤُلَاءِ﴾ (النساء۱۴۲/۴۔۱۴۳) ‘‘منافق(ان چالوں سے اپنے خیال میں)اللہ کو دھوکا دیتے ہیں(یہ اس کو کیا دھوکا دیں گے)وہ انہیں کو دھوکے میں ڈالنے والا ہے اور جب یہ نماز کو کھڑے ہوتے ہیں تو سست اور کاہل ہوکر(صرف)لوگوں کے دکھاوے کے لیے اور اللہ کی یاد تو برائے نام ہی کرتے ہیں(ان کی)حالت یہ ہے کہ(کفر وایمان میں)مترود ہیں۔نہ ان کی طرف(ہوتے ہیں)نہ ان کی طرف۔’’ منافقین کے کفر اور ان کی ریاکاری کا ذکر بہت سی آیات میں ہے۔نسال الله العافية ہم نے جو کچھ ذکر کیا اس سے معلوم ہوگیا ہوگا کہ شرک خفی بھی شرک کی مذکورہ دو قسموں شرک اکبر اور شرک اصغر سے خارج نہیں ہے اور اسے خفی اس لئے کہا گیا کہ شرک کبھی خفی ہوتا ہے اور کبھی جلی۔جلی کی مثال مُردوں کو پکارنا،ان سے مدد طلب کرنا،اور ان کے نام کی نذر ماننا وغیرہ اورخفی کی مثال وہ شرک ہے جومنافقوں کے دل میں ہوتا ہےحالانکہ وہ بظاہرلوگوں کے ساتھ مل کر نمازیں پڑھتے اورروزے بھی رکھتے ہیں لیکن باطنی طور پر یہ کافر ہوتے ہیں کیونکہ یہ بتوں کی عبادت کے جواز کا عقیدہ رکھتے ہیں اوراس طرح گویا یہ مشرکوں کے دین پر ہوتے ہیں تویہ شرک خفی ،اکبر ہےکیونکہ اس کا تعلق دلوں سے ہے ۔اس طرح شرک خفی،اصغر سے مثلا وہ شخص جو اس لئے قرآن مجید کی تلاوت کرتایا نماز پڑھتا یا صدقہ کرتا ہےکہ لوگ اس کی تعریف کریں یا اس طرح کے کوئی اورکام کرتا ہے تویہ شرک خفی لیکن اصغر ہے۔اس تفصیل سے واضح ہواکہ شرک کی دوقسمیں ہیں(۱)اکبراور(۲)اصغر اوران میں سے ہر ایک خفی بھی ہوسکتا ہے ۔مثلا منافقوں کا شرک جوکہ اکبر ہے اوریہ کبھی خفی اوراصغربھی ہوسکتا ہے مثلا نماز،یاصدقہ یا دعایادعوت الی اللہ یا امربالمعروف اورنہی عن المنکرکےکاموں کوریاکاری کے لئے کرنا۔ہرمومن کے لئے یہ واجب ہے کہ وہ شرک سے اجتناب کرے اور شرک کی ان تمام صورتوں سے دور رہے،خصوصا شرک اکبر سے،کیونکہ یہ وہ سب سے بڑا گناہ ہے جس کے ساتھ اللہ تعالی کی نافرمانی کی جاتی ہے اور یہ وہ سب سے بڑا جرم ہے جس میں لوگ مبتلا ہوگئے ہیں اوریہ وہ جرم ہے جس کے بارے میں اللہ سبحانہ وتعالی نے فرمایا ہے: ﴿وَلَوْ أَشْرَ‌كُوا لَحَبِطَ عَنْهُم مَّا كَانُوا يَعْمَلُونَ﴾ (الانعام۸۸/۶) ‘‘اوراگروہ لوگ(انبیاء علیہم السلام)شرک کرتے تو جو عمل وہ کرتے تھے،سب ضائع ہوجاتے۔’’ نیز اسی کے بارے میں فرمایا: ﴿إِنَّهُ مَن يُشْرِ‌كْ بِاللَّـهِ فَقَدْ حَرَّ‌مَ اللَّـهُ عَلَيْهِ الْجَنَّةَ وَمَأْوَاهُ النَّارُ‌﴾ (المائدہ۵/۷۲) ‘‘یقین مانوکہ جو شخص اللہ کے ساتھ شریک کرتا ہے اللہ تعالی نے اس پر بہشت حرام کردی ہے اوراس کا ٹھکانہ جہنم ہی ہے۔’’ اس کے متعلق ایک اورارشاد ہے: ﴿إِنَّ اللَّـهَ لَا يَغْفِرُ‌ أَن يُشْرَ‌كَ بِهِ وَيَغْفِرُ‌ مَا دُونَ ذَٰلِكَ لِمَن يَشَاءُ﴾ (النساء۱۱۶/۴) ‘‘اللہ اس گناہ کو نہیں بخشے گا کہ کسی کو اس کا شریک بنایا جائے،اس کے سوا(اورگناہ)جس کو چاہے گا بخش گا۔’’ جوشخص حالت شرک پر مرگیا وہ یقینی طورپر جہنمی ہے ۔جنت اس کے لئے حرام ہے اوروہ ہمیشہ ہمیشہ کے لئے جہنم ہی میں رہے گا۔۔نعوذباللہ من ذلک! شرک اصغر کا شمار بھی اکبر الکبائر میں ہوتا ہے،اس کا مرتکب بھی عظیم خطرے سے دوچار ہوتا ہے لیکن نیکیوں کے غالب آجانے سے یہ معاف بھی ہوجاتا ہے اورکبھی اس کی سزا بھی ملتی ہے لیکن اس کا مرتکب کفار کی طرح ابدی جہنمی نہ ہوگا کیونکہ یہ ایسا گناہ نہیں ہے جو جہنم میں ہمیشہ ہمیشہ رہنے کا موجب ہواوراس سے تمام اعمال رائیگاں ہوجاتے ہوں،ہاں البتہ جس عمل میں اس کی آمیزش ہوگی وہ یقینا رائیگاں ہوجائے گا۔شرک اصغر کی جس عمل میں آمیزش ہو وہ رائیگاں ہوجاتا ہےمثلا اگر کوئی شخص ریا کاری کے لئے نماز پڑھے تونہ صرف یہ کہ اسے کوئی اجر نہیں ملے گابلکہ اسے گناہ بھی ہوگا۔اسی طرح اگر کوئی شخص ریا کاری کے لئے قرآن مجید پڑھے تواسےبھی کوئی اجر نہیں ملے گابلکہ گناہ بھی ہوگالیکن شرک اکبر اورکفر اکبر ایسے سنگین جرائم ہیں کہ ان سے زندگی کے تمام اعمال ضائع ہوجاتے ہیں جیسا کہ ارشاد باری تعالی ہے: ﴿وَلَوْ أَشْرَ‌كُوا لَحَبِطَ عَنْهُم مَّا كَانُوا يَعْمَلُونَ﴾ (الانعام۸۸/۶) ‘‘اوراگروہ(سابقہ انبیاء علیہم السلام)بھی شرک کرتے تو ان کےتمام اعمال ضائع ہوجاتے۔’’ لہذا سب مردوں اورعورتوں ،عالم اور متعلم اورہرایک مسلمان پر یہ واجب ہےکہ وہ اس امرکوسیکھے اوراس میں بصیرت حاصل کرے تاکہ وہ توحید کی حقیقت اوراقسام کو جان لے اورشرک کی ان دونوں قسموں ،اکبر واصغر کو پہچان لے تاکہ اگر اس سے شرک اکبر یا اصغر کا ارتکاب ہوا ہو تو وہ فورا سچی توبہ کرے،توحید کولازم پکڑے،اس پر استقامت کا مظاہرہ کرے،اللہ تعالی کی اطاعت وبندگی اوراس کے حق کی ادائی میں زندگی بسر کرے۔توحید کے کئی حقوق ہیں اوروہ ہیں فرائض کو اداکرنا اورنواہی کو ترک کرنا یعنی توحید کے ساتھ ساتھ یہ بھی انتہائی ضروری ہے کہ فرائض ادا کئے جائیں اور نواہی کو ترک کیا جائے اورشرک کی تمام صورتوں سے خواہ وہ صغیرہ ہوں یاکبیرہ ،مکمل طورپر اجتناب کیا جائے۔شرک اکبر،توحید اوراسلام کے کلی طورپر منافی ہے جبکہ شرک اصغر ،کمال واجب کے منافی ہے لہذا دونوں صورتوں یعنی شرک صغر واکبر کا ترک کرنا ازبس ضروری ہے۔ہمیں چاہئے کہ دل ودماغ کی اتھاہ گہرائیوں سے اسے سیکھیں اوراس میں فقاہت حاصل کریں اورپوری عنایت اور وضاحت کے ساتھ اسے لوگوں تک پہنچائیں تاکہ مسلمانوں کو ان عظیم الشان امور کے بارے میں شرح صدر حاصل ہو۔اللہ عزوجل کی بارگاہ قدس میں دست سوال دراز ہے کہ وہ ہمیں اورآپ سب کو علم نافع اورعمل صالح کی توفیق عطا فرمائے۔ہمیں اورتمام مسلمانوں کو دین میں فقاہت وثابت قدمی عطافرمائے۔اپنے دین کو فتح ونصرت اوراپنے کلمہ کو سربلندی عطافرمائےاورہمیں اورآپ سب لوگوں کو اپنے ہدایت یافتہ بندوں میں بنادے!انہ سمیع قریب۔وصلي الله علي نبينا محمد وعلي آله واصحابه واتباعه باحسان الي يوم الدين مقالات وفتاویٰ ابن باز صفحہ 50 محدث فتویٰ تبص

અલ્લાહ ફરમાવે છે.

અલ્લાહ ફરમાવે છે.

“ અલ્લાહ સીવાય કોઈ પૂજ્ય ને લાયક નથી તે ન તો સુવે છે અને ન તો તેને ઝોકું પણ આવે છે. ધરતી અને આકાશો માં જે કઈ છે.તેનું જ છે. કોણ છે જે તેના હજુર માં તેની પરવાનગી વગર ભલામણ કરી શકે.?જે કઈ બંદાઓ ની સામે છે. તેને પણ જાણે છે અને તેના થી અર્દ્શય છે તેને પણ તે જાણે છે. અને તેના જ્ઞાન માથી કોઈ પણ વસ્તુ તેઓ જાણી શકતા નથી.સીવાય કે તે પોતે જ કોઈ વસતું નું જ્ઞાન તેમને આપવામાં ચાહે.તેની કુરસી આકાશો અને ધરતી ઉપર વ્યાપત છે.અને તેની દેખભાળ તેના માટે કોઈ થ્ક્વી નાખનારૂ કાર્ય નથી. બસ ! તે જ એક મહાન અને ઉચ્ચ હસ્તી છે. ( બકરહ : 255) બીજી જગ્યાએ અલ્લાહ ફરમાવે છે. “ કે તમારો ખુદા એક જ છે. તે રહમાન ( અતયંત કૃપાળુ ) અને રહીમ ( અતયંત દયાળુ ) છે. તેના સીવાય બીજો કોઈ ખુદા નથી. (બકરાહ : 163) બીજી જગ્યાએ અલ્લાહ ફરમાવે છે. કે “ હું જ અલ્લાહ  છું. મારા સીવાય કોઈ ઉપાસ્ય નથી. તો તું મારી  જ બંદગી કર અને મારા સ્મરણ માટે નમાઝ કાયમ કર.  ( તાહા : 14) બીજી જગ્યાએ આલ્લાહ ફરમાવે છે. કે “  કહો અલ્લાહ એકજ છે. ( ઇખ્લાસ: 1)

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અલ્લાહ કોણ છે?

અલ્લાહ કોણ છે?
આપણે અલગ અલગલોકો થી સાંભળીએ છે જે લોકા અલ્લાહ ની ઓળખ પોતાની અકલ અને સમઝ ના આધારે કરે છે. અને કમઝોર ઈમાન મુસલમાન એમના નઝરીયા થી અસર પકડે છે. અલ્લાહ કોણ છે તે સમજવા માટે સોથી સારા માં સારો રસ્તો કુરઆન શરીફ અને રસુલ સ.અ.વ. એ પોતે જે ઓળખ કરાવી હોય તેને એ રીતે સમજવું જે રીતના આપ સ.અ.વ. સાથે રહનારા આપ ના સહાબીયો એ સમજયું.

અલ્લાહ  જે આ સુષ્ટી નો સર્જન હાર ,માલીક,રદ્દો વ બદલ કરવાવાળો,છે. તેણે  કુર આન ઉતાર્યું જેથી આપણે આ મહત્વ ઝીંદગી ને મકસદ વાળી બનાવીએ.અને આખીરત માં કામયાબી આપણ ને મળે. અગર આપણે કુર આન મ્જીદ નો ખુલા દીલ અને દીમાગ થી વાંચન કરીશું તો ખરેખર અલ્લાહ ની હકીકી પહચાન આપણ ને મળશે. જેનાથી આપણ ને અલ્લાહ ના હકો જાણવા મળશે અને તેની બંદગી કરવા માં નીખાલસતા આવશે.
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ALLAH ARSH PE HaI

Bismillahirrahmanirraheem

Charo imamo rh k aqwaal k baad degar tabayi aur taba tabayi k aqwaal paish e khidmat hai, jis tarha charo imamo ka zikr karte hue unki tareekh e wafaat likhi thi in sha Allah isi tarha ab jin jin buzurgaan e deen ka zikr karunga unki tareekh e wafaat bhi zikr karunga

1. Masrook bin ajdaa al hamdaani koofi rahimahullah (tabayi tareekh e wafaat 62 hijri)
inhone bahut se sahaba RA se sunnat e Rasool SAW afzal salaat wa tasleem ka ilm hasil kiya aur aagey pahunchaya, jab ye emaan walo ki maa Aisha RA se koi hadees riwayat karte to kaha karte: mujhe siddeque ki beti siddeqa, Allah k habeeb ki habeebiya, jis ki baraat 7 aasmano k uper se hue, ne bataya: aur phir hadees bayan karte imam ibne qayyim rh ne "IJTAMA  JAYUSH AL ISLAMIYA" mai is qaul ko sahih karaar diya.

2. Sufyan suri rahimahullah (tabayi tareekh e wafaat 161 hijri)
kehte hai k mai rabiyya bin abu abdur rahman rahimahullah (tabayi tareek e wafaat 163 hijri) k paas tha k ek aadmi ne unse pucha "rahman arsh par istawa kese hue hai, is istawa ki kefiyat kya hai?" to unhone jawab diya: istawa kya hai ye sab ko maloom hai, aur (Allah k) is istawa ki kefiyat kya hai ye hame nhi maloom lekin is par eman lana farz hai aur is kefiyat k baare mai sawal karna bidaat hai, imam zahbi rh ne kaha "ALAWUL ALLIYIL GAFFAR" mai ye riwayat nakal ki, aur imam al albani rh ne is ko sahih sanad karar diya.

3. Ibne ayeena abu imran rahimahullah (taba tabayi tareek e wafaat 198 hijri)
kehte hai k mai rabiyya bin abu abdur rahman rahimahullah (tabayi tareek e wafaat 163 hijri) k paas tha k ek aadmi ne unse pucha "rahman arsh par istawa kese hue hai, is istawa ki kefiyat kya hai?" to unhone jawab diya: istawa kya hai ye sab ko maloom hai, aur (Allah k) is istawa ki kefiyat kya hai ye hame nhi maloom aur ye paigham Allah ki tarf se hai, aur Rasool Allah SAW k zimmey mai uski tableeg thi (so wo unhone kardi) aur hamare zimmey is ki tasdeeq karna hai (jo hum karte hai) imam habtullah bin hasan al lalkayi abu mansoor rh tareekh e wafaat 418 hijri ne "ETAQAAD AHLUS SUNNAH" mai sahih sanad k sath riwayat kiya.

4. Imam e tafseer al zihaak bin mazahim halali rahimahullah (taba tabayi tareekh e wafaat 106 hijri)
ki taraf se bayan karte hue kehte hai k unhone kaha: Allah apne arsh par hai aur uska ilm un (yani uski makhlookaat) k sath hai (imam allama qazi subhan abu ahmad asaal aur imam habdullah al lalkayi rh ne sahih sanad k sath nakal kiya)

5. Siddeque ibne muntasir kehte hai k mene sulemaan tameemi rahimahullah (taba tabayi tareekh e wafaat 172 hijri)
ko kehte hue suna: agar mujhse ye pucha jaye k Allah kaha hai to mai ye kahunga k wo aasman par hai, imam zahbi rh ki "ALAWUL ALLIYAL GAFFAR" daleel rakam 114, imam al albani rh ka kehna hai k (ye kaul) imam habtullah al lalkayi rh ne sahih sanad k sath riwayat kiya.

6. Imam abdur rahman bin umar al ouzayi rahimahullah (taba tabayi tareekh e wafaat 157 hijri)
kehte hai: hum tabayi ki mojoodgi mai bhi ye hi kaha karte they k: Allah apne arsh k uper hai aur Allah ki jo bhi sifaat sunnat e shareefa mai warid hue hai hum un par (bila taweel) emaan rakhte hai. (imam beheqi rh ne "ASMA WA SIFAAT" mai imam hakim rh ki riwayat se nakal kiya)

7. Waleed bin muslim rahimahullah kehte hai k mene imam abdur rahman bin umar al ouzayi rh aur imam malik bin anas rh (taba tabayi tareekh e wafaat 179 hijri) aur imam sufyan suri rh (taba tabayi tareek e wafaat 161 hijri) aur imam al lais bin saad fehmi misri rh (taba tabayi tareekh e wafaat 175 hijri) rahimahullah jameean se un ahadees k baare mai pucha jin mai Allah ki mukhtalif sifaat ka zikr hai to unhone kaha: is par aese hi emaan rakho jesa k ahadees mai aya hai. (MUKHTASAR ALAWUL ALLIYIL GAFFAR, imam zahbi rh

Allah Arsh par hai

♻اللہ تعالی عرش پر ہے۔ (مدلل بحث)
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کتاب وسنت اور امت کے سلف سے یہ ثابت ہے کہ اللہ تعالی اپنے آسمانوں کے اوپر اپنے عرش پر مستوی ہے اور وہ بلند و بالا اور ہر چیز کے اوپر ہے اس کے اوپر کوئی چیز نہیں ۔
فرمان باری تعالی ہے :

1⃣إِنَّ رَبَّكُمُ ٱللَّهُ ٱلَّذِى خَلَقَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضَ فِى سِتَّةِ أَيَّامٍۢ ثُمَّ ٱسْتَوَىٰ عَلَى ٱلْعَرْشِ۔
ترجمہ : بے شک تمہارا رب الله ہے جس نے آسمانوں اور زمین کو چھ دن میں پیدا کیا پھرعرش پر قرار پکڑا۔(سورۃ الاعراف ،آیت 54)

2⃣إِنَّ رَبَّكُمُ ٱللَّهُ ٱلَّذِى خَلَقَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضَ فِى سِتَّةِ أَيَّامٍۢ ثُمَّ ٱسْتَوَىٰ عَلَى ٱلْعَرْشِ۔
ترجمہ : بے شک تمہارا رب الله ہی ہے جس نے آسمان اور زمین چھ دن میں بنائے پھر عرش پر قائم ہوا۔(سورۃ یونس ،آیت 3)

3⃣ٱللَّهُ ٱلَّذِى رَفَعَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ بِغَيْرِ عَمَدٍۢ تَرَوْنَهَا ۖ ثُمَّ ٱسْتَوَىٰ عَلَى ٱلْعَرْشِ۔
ترجمہ : الله وہ ہے جس نے آسمانوں کو ستونوں کے بغیر بلند کیا جنہیں تم دیکھ رہے ہو پھر عرش پر قائم ہوا۔(سورۃ الرعد،آیت 2)

4⃣ٱلرَّحْمَٰنُ عَلَى ٱلْعَرْشِ ٱسْتَوَىٰ۔
ترجمہ: رحمان جو عرش پر جلوہ گر ہے (سورۃ طہ،آیت 5)

5⃣ٱلَّذِى خَلَقَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضَ وَمَا بَيْنَهُمَا فِى سِتَّةِ أَيَّامٍۢ ثُمَّ ٱسْتَوَىٰ عَلَى ٱلْعَرْشِ۔
ترجمہ: جس نے آسمان اور زمین اور جو کچھ ان میں ہے چھ دن میں بنایا پھر عرش پر قائم ہوا۔(سورۃ الفرقان،آیت 59)

��مذکورہ بالا آیات سے اس بات کا ثبوت ملتا ہے کہ اللہ تعالی عرش پر مستوی ہے اور اس بات کے انکار کی کسی کو جرات نہیں کیونکہ یہ اللہ تعالی کا فرمان ہے۔

��اب یہ سمجھتے ہیں کہ استواء کیا ہے ؟
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چنانچہ شیخ الاسلام ابن تیمیہ رحمہ الله نے استواء کی تفسیر میں فرمایا کہ: اس سے مراد عرش کے اوپر علو ہے، اور اس پر ایمان لانا واجب ہے، اور بے شک اس کی کیفیت کے متعلق سوائے اللہ کے کوئی نہیں جانتا، اور یہی معنی ام المومنین حضرت ام سلمہ سے بھی منقول ہے، اور ربيعہ بن ابو عبد الرحمن سے بھی منقول ہے جو کہ امام مالک رحمہ الله کے استاذ ہیں، اور یہی حق ہے جس میں کوئی شک نہیں، اور بلا شبہ یہی اہل سنت وجماعت کا قول ہے۔

��احادیث سے استدلال
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احادیث سے بھی اس بات کی خوب وضاحت ہوجاتی ہے کہ اللہ تعالی آسمانوں کے اوپر ہے ، وضاحت کے لئے ایک حدیث ذکر کرنے پر اکتفا کرتے ہیں۔
صحیح مسلم میں معاویہ بن الحکم السلمی کی وہ روایت جس میں انہوں نے رسول اللہ ز سے اپنی لونڈی کو آزاد کرنے کا پوچھا تو آپ ﷺ نے فرمایا کہ اسے میرے پاس لاؤ۔ آپ ﷺ نے اس لونڈی سے پوچھا کہ "اللہ کہاں ہے؟" تو اس نے کہا کہ آسمان پر۔ پھر آپ ﷺ نے پوچھا کہ "مین کون ہوں" تو اس نے کہا کہ اللہ کے رسول۔ تب آپ ﷺ نے فرمایا۔ اسے آزاد کر دو۔ بے شک یہ مومنہ ہے۔

��ائمہ کرام کے اقوال
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اب اس سلسلے میں ہم ائمہ کے اقوال ذکر کرتے ہیں ۔
1⃣ابو مطیع البلخی نے امام ابو حنیفہ سے پوچھا: اس کا کیا حکم ہے جو شخص یہ کہے کہ میں نہیں جانتا کہ اللہ آسمان پر ہے یا زمین پر۔۔۔۔؟
امام ابو حنیفہ فرماتے ہیں: بلا شبہ اس نےکفر کیا۔۔۔ اس لیے کہا اللہ تعالیٰ نے فرمایا: ” الرحمٰن علی العرش استویٰ“ اور اس کا عرش ساتوں آسمانوں کے اوپر ہے۔۔
ابو مطیع بلخی کہتے ہیں : میں کہا اچھا اگر وہ کہے کہ اللہ عرش پر ہے لیکن اسے نہیں پتا کہ عرش آسمان پر ہے یا زمین پر ۔۔۔؟
امام ابو حنیفہ فرماتے ہیں: وہ کافر ہے اس لیے کہ اس نے عرش کے آسمان پر ہونے کا انکار کیا۔۔۔۔
(شرح عقیدہ الطحاویہ ص:387 از- امام ابن ابی العز الحنفی ۔۔۔طبع: موسسہ الرسالہ)

2⃣امام مالک نے کہا: اللہ عرش پہ ہے اور اس کا علم پوری کائنات میں ہے کوئی بھی جگہ اس کے علم سے خالی نہیں۔ (مسائل الامام احمد از ابو داؤد۔ باب فی الجھمیہ۔ صفحہ 353)

3⃣یوسف بن موسیٰ القطان جو کہ ابو بکر خلال کے شیخ ہیں انہوں نے کہا کہ ابو عبداللہ (احمد بن حنبل) سے کہا گیا : اللہ ساتوں آسمانوں سے اوپر اپنی مخلوقات سے جدا اور علیحدہ اپنے عرش پر ہے اور اس کا علم اور قدرت ہر جگہ ہے؟
انہوں (احمد بن حنبل) نے کہا: ہاں ، وہ اپنے عرش پر ہے، کوئی چیز اس کے علم سے بچ نہیں سکتی (یعنی کوئی چیز اس کے علم سے خالی نہیں اور وہ سب کچھ جانتا ہے)۔ (مختصر العلو للعلی الغفار للذھبی۔ صفحہ 189)۔

4⃣راوی کہتا ہے کہ میں نے اوزاعی کو یہ کہتے سنا: ہمارا عقیدہ اور سب تابعین کا عقیدہ ہے کہ اللہ تعالیٰ عرش کے اوپر ہے، ہم اللہ تعالیٰ کی جملہ صفات کو مانتے ہیں جو احادیث میں آئی ہیں۔ (الاسماٰء والصفات للبیھقی۔ ص 291)

5⃣امام عثمان بن سعید الدارمی فرماتے ہیں کہ تمام مسلمان اس بات پر متفق ہیں کہ اللہ تعالی آسمانوں کے اوپر اپنے عرش پر مستوی ہے۔

6⃣الإمام قتيبة بن سعيد ( المتوفى سنه 240هـ) فرماتے ہیں: کہ آئیمہ اسلام اور اھل السنۃ والجماعۃ کا یہ قول ہے کہ اللہ تعالی ساتویں آسمان کے اوپر اپنے عرش پر ہے جیسا کہ اس نے قرآن میں فرمایا " الرحمن علی العرش استوی۔

7⃣امام ابن عبد البر حافظ المغرب ( المتوفى سنة 463هـ ) اپنی کتاب التمهيد ( 6/ 124) میں حدیث نزول کی شرح میں فرماتے ہیں اور یہ حدیث بہت سے متواتر اور عادل رواۃ سے نبی ز سے منقول ہے، جس میں یہ دلیل ہے کہ اللہ عزوجل ساتوں آسمانوں کے اوپر اپنے عرش پر مستوی ہے۔ اور محدثین کی ایک بڑی جماعت نے اس دلیل "الرحمن علی العرش استوی" کو معتزلۃ اور جھمیۃ کی بات " کہ اللہ ہر جگہ موجود ہے" کے رد میں واضح کیا ہے.

8⃣امام الحافظ أبو نعيم صاحب الحلية اپنی كتاب محجة الواثقين میں فرماتے ہیں : کہ تمام محدثین کا اس بات پر اجماع ہے کہ اللہ تعالی تمام آسمانوں کے اوپر اپنے عرش پر مستوی ہے۔ اور اس کے اوپر کوئ چیز مستوی نہیں جیسا کہ جھمیۃ کا یہ کہنا کہ اللہ ہر جگہ موجود ہے۔

9⃣راوی کہتا ہے کہ شقیق نے عبداللہ بن مبارک سے کہا: ہم اپنے رب کو کیسے پہچانیں؟ (عبداللہ بن مبارک نے) کہا: اس طرح کہ وہ ساتوں آسمانوں سے اوپر اپنے عرش پر ہے اور وہ اپنی مخلوقات سے جداء ہے۔ (الرد علی الجھمیہ از عثمان بن سعید دارمی۔صفحہ 39،40)۔

��امام الذهبي اپنی کتاب "العلو" کے آخر میں فرماتے ہیں اور اللہ تعالی اپنے عرش کے اوپر ہے جیسا کہ تمام صحابہ تابعین اور تبع تابعین کا اس بات پر اجماع ہے۔

��کلام آخر
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اس موضوع کے اختتام پر قول فیصل کے طور پر امام ابن خزیمہ ؒ کا فیصلہ سنا دینا چاہتا ہوں۔
اما م ابن خزیمۃ رحمہ اللہ نے فرمایا کہ جو اس بات کا انکار کرے کہ اللہ تعالی ساتوں آسمانوں کے اوپر اپنے عرش پر مستوی ہے اسے توبہ کرنی چاہیے۔ پس اگر تو وہ توبہ کرلے تو بہتر ورنہ اس کی گردن اڑا دی جائے اور اسے سر عام لٹکا دیا جائے تاکہ اہل علاقہ اس سے عبرت حاصل کریں۔

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