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Janwaro ki hatya karna

जानवरों की हत्या एक क्रूर निर्दयतापूर्ण कार्य है। मुसलमान मांस क्यों खाते हैं??..
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शाकाहार ने अब संसार भर में एक आन्दोलन का रूप ले लिया है। बहुत से लोग तो इसको जानवरों के अधिकार से जोड़ते हैं। निस्संदेह लोगों की एक बड़ी संख्या मांसाहारी है और थोड़े से लोग मांस खाने को जानवरों के अधिकारों का हनन मानते हैं।इस्लाम प्रत्येक जीव एवं प्राणी के प्रति स्नेह और दया का निर्देश देता है। साथ ही इस्लाम इस बात पर भी ज़ोर देता है कि अल्लाह ने पृथ्वी, पेड़-पौधे और छोटे-बड़े हर प्रकार के जीव-जन्तुओं को इंसान के लाभ के लिए पैदा किया है। अब यह इंसान पर निर्भर करता है कि वह ईश्वर की दी हुई नेमत और अमानत के रूप में मौजूद प्रत्येक स्रोत को वह किस प्रकार उचित रूप से इस्तेमाल करता है।आइए इस तथ्य के अन्य पहलुओं पर विचार करते हैं—1. एक मुसलमान पूर्ण शाकाहारी हो सकता हैएक मुसलमान पूर्ण शाकाहारी होने के बावजूद एक अच्छा मुसलमान हो सकता है। मांसाहारी होना एक मुसलमान के लिए ज़रूरी नहीं है।

2. पवित्र कु़रआन मुसलमान को मांसाहार की अनुमति देता हैपवित्र क़ुरआन मुसलमानों को मांसाहार की इजाज़त देता है। निम्न क़ुरआनी आयतें इस बात का सुबूत हैं—‘‘ऐ ईमान वालो! प्रत्येक कर्तव्य का निर्वाह करो। तुम्हारे लिए चैपाए जानवर जायज़ हैं केवल उनको छोड़कर जिनका उल्लेख किया गया है।’’

(क़ुरआन, 5:1)

‘‘रहे पशु, उन्हें भी उसी ने पैदा किया, जिनमें तुम्हारे लिए गर्मी का सामान (वस्त्र) भी है और हैं अन्य कितने ही लाभ। उनमें से कुछ को तुम खाते भी हो।’’

(क़ुरआन, 16:5)

‘‘और मवेशियों में भी तुम्हारे लिए ज्ञानवर्धक उदाहरण हैं। उनके शरीर के भीतर हम तुम्हारे पीने के लिए दूध पैदा करते हैं, और इसके अतिरिक्त उनमें तुम्हारे लिए अनेक लाभ हैं, और जिनका मांस तुम प्रयोग करते हो।’’

(क़ुरआन, 23:21)

3. मांस पौष्टिक आहार है और प्रोटीन से भरपूर हैमांसाहारी खाने भरपूर उत्तम प्रोटीन का अच्छा स्रोत हैं। इनमें आठों आवश्यक अमीनो एसिड पाए जाते हैं जो शरीर के भीतर नहीं बनते और जिसकी पूर्ति आहार द्वारा की जानी ज़रूरी है। मांस में लोह, विटामिन बी-1 और नियासिन भी पाए जाते हैं।

4. इंसान के दाँतों में दो प्रकार की क्षमता हैयदि आप घास-फूस खाने वाले जानवरों जैसे भेड़, बकरी अथवा गाय के दाँत देखें तो आप उन सभी में समानता पाएँगे। इन सभी जानवरों के दाँत चपटे होते हैं, जो घास-फूस खाने के लिए उचित हैं। यदि आप मांसाहारी जानवरों जैसे शेर, चीता अथवा बाघ इत्यादि के दाँत देखें तो आप उनमें नुकीले दाँत भी पाएँगे जो कि मांस को खाने में मदद करते हैं। यदि मनुष्य के दाँतों का अध्ययन किया जाए तो आप पाएँगे कि उनके दाँत नुकीले और चपटे दोनों प्रकार के हैं। इस प्रकार वे वनस्पति और मांस खाने में सक्षम होते हैं। यहाँ प्रश्न उठता है कि यदि सर्वशक्तिमान परमेश्वर मनुष्य को केवल सब्जि़याँ ही खिलाना चाहता तो उसे नुकीले दाँत क्यों देता? यह इस बात का प्रमाण है कि उसने हमें मांस एवं सब्जि़याँ दोनों को खाने के अनुकूल बनाया है।

5. इंसान मांस अथवा सब्जि़याँ दोनों पचा सकता हैशाकाहारी जानवरों के पाचनतंत्र केवल सब्जि़याँ ही पचा सकते हैं और मांसाहारी जानवरों के पाचनतंत्र केवल मांस पचाने में सक्षम हैं, परंतु इंसान के पाचनतंत्र सब्जि़याँ और मांस दोनों पचा सकते हैं। यदि सर्वशक्तिमान ईश्वर हमें केवल सब्जि़याँ ही खिलाना चाहता है तो वह हमें ऐसा पाचनतंत्र क्यों देता जो मांस एवं सब्ज़ी दोनों को पचा सके।

6. हिन्दू धार्मिक ग्रंथ मांसाहार की अनुमति देते हैं बहुत से हिन्दू शुद्ध शाकाहारी हैं। उनका विचार है कि मांस-सेवन धर्म विरुद्ध है। परंतु सत्य यह है कि हिन्दू धर्म ग्रंथ इंसान को मांस खाने की इजाज़त देते हैं। ग्रंथों में उन साधुओं और संतों का वर्णन है जो मांस खाते थे।

(क) हिन्दू क़ानून पुस्तक मनुस्मृति के अध्याय 5 सूत्र 30 में वर्णन है कि—‘‘वे जो उनका मांस खाते हैं जो खाने योग्य हैं, कोई अपराध नहीं करते हैं, यद्यपि वे ऐसा प्रतिदिन करते हों, क्योंकि स्वयं ईश्वर ने कुछ को खाने और कुछ को खाए जाने के लिए पैदा किया है।’’

(ख) मनुस्मृति में आगे अध्याय 5 सूत्र 31 में आता है—‘‘मांस खाना बलिदान के लिए उचित है, इसे दैवी प्रथा के अनुसार देवताओं का नियम कहा जाता है।’’
(ग) आगे अध्याय 5 सूत्र 39 और 40 में कहा गया है कि—‘‘स्वयं ईश्वर ने बलि के जानवरों को बलि के लिए पैदा किया, अतः बलि के उद्देश्य से की गई हत्या, हत्या नहीं।’’

महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 88 में धर्मराज युधिष्ठिर और पितामह भीष्म के मध्य वार्तालाप का उल्लेख किया गया है कि कौन से भोजन पूर्वजों को शांति पहुँचाने हेतु उनके श्राद्ध के समय दान करने चाहिएँ।प्रसंग इस प्रकार है—‘‘युधिष्ठिर ने कहा, ‘‘हे महाबली! मुझे बताइए कि कौन-सी वस्तु जिसको यदि मृत पूर्वजों को भेंट की जाए तो उनको शांति मिलेगी? कौन-सा हव्य सदैव रहेगा? और वह क्या है जिसको यदि पेश किया जाए तो अनंत हो जाए?’’भीष्म ने कहा, ‘‘बात सुनो, ऐ युधिष्ठिर कि वे कौन-सी हवि हैं जो श्राद्ध रीति के मध्य भेंट करना उचित हैं। और वे कौन से फल हैं जो प्रत्येक से जुड़े हैं? और श्राद्ध के समय सीसम बीज, चावल, बाजरा, माश, पानी, जड़ और फल भेंट किया जाए तो पूर्वजों को एक माह तक शांति रहती है। यदि मछली भेंट की जाएँ तो यह उन्हें दो माह तक राहत देती हैं। भेड़ का मांस तीन माह तक उन्हें शांति देता है। ख़रगोश का मांस चार माह तक, बकरी का मांस पाँच माह और सूअर का मांस छः माह तक, पक्षियों का मांस सात माह तक, ‘प्रिष्टा’ नाम के हिरन के मांस से वे आठ माह तक और ‘‘रूरू’’ हिरन के मांस से वे नौ माह तक शांति में रहते हैं। Gavaya के मांस से दस माह तक, भैंस के मांस से ग्यारह माह और गौ मांस से पूरे एक वर्ष तक। पायस यदि घी में मिलाकर दान किया जाए तो यह पूर्वजों के लिए गौ मांस की तरह होता है। वधरीनासा (एक बड़ा बैल) के मांस से बारह वर्ष तक और गैंडे का मांस यदि चंद्रमा के अनुसार उनको मृत्य वर्ष पर भेंट किया जाए तो यह उन्हें सदैव सुख-शांति में रखता है। क्लास्का नाम की जड़ी-बूटी, कंचना पुष्प की पत्तियाँ और लाल बकरी का मांस भेंट किया जाए तो वह भी अनंत सुखदायी होता है।अतः यह स्वाभाविक है कि यदि तुम अपने पूर्वजों को अनंत सुख-शांति देना चाहते हो तो तुम्हें लाल बकरी का मांस भेंट करना चाहिए।’’

7. वर्तमान हिन्दू मत अन्य धर्मों से प्रभावितयद्यपि हिन्दू ग्रंथ अपने मानने वालों को मांसाहार की अनुमति देते हैं फिर भी बहुत से हिन्दुओं ने शाकाहारी व्यवस्था अपना ली, क्योंकि वे जैन जैसे धर्मों से प्रभावित हो गए थे।

8. पेड़-पौधों में भी जीवनकुछ धर्मों ने शुद्ध शाकाहार को अपना लिया क्योंकि वे पूर्ण रूप से जीव-हत्या के विरुद्ध हैं। अतीत में लोगों का विचार था कि पौधों में जीवन नहीं होता। आज यह विश्वव्यापी सत्य है कि पौधों में भी जीवन होता है। अतः जीव-हत्या के संबंध में उनका तर्क शुद्ध शाकाहारी होकर भी पूरा नहीं होता।

9. पौधों को भी पीड़ा होती हैवे आगे तर्क देते हैं कि पौधे पीड़ा महसूस नहीं करते; अतः पौधों को मारना जानवरों को मारने की अपेक्षा कम अपराध है। आज विज्ञान कहता है कि पौधे भी पीड़ा अनुभव करते हैं परंतु उनकी चीख़ मनुष्य के द्वारा नहीं सुनी जा सकती है। इसका कारण यह है कि मनुष्य में आवाज़ सुनने की अक्षमता जो श्रुत-सीमा में नहीं आते अर्थात् 20 हर्ट्ज से 20,000 हर्ट्ज तक, इस सीमा के नीचे या ऊपर पड़ने वाली किसी भी वस्तु की आवाज़ मनुष्य नहीं सुन सकता है। एक कुत्ते में 40,000 हर्ट्ज तक सुनने की क्षमता है। इसी प्रकार कुत्ते की ध्वनि की लहर संख्या 20,000 से अधिक और 40,000 हर्ट्ज से कम होती है। इन ध्वनियों को केवल कुत्ते ही सुन सकते हैं, मनुष्य नहीं। एक कुत्ता अपने मालिक की सीटी पहचानता है और उसके पास पहुँच जाता है। अमेरिका के एक किसान ने एक मशीन का आविष्कार किया जो पौधे की चींख को ऊँची आवाज़ में परिवर्तित करती है जिसे मनुष्य सुन सकता है। जब कभी पौधे पानी के लिए चिल्लाते तो उस किसान को इसका तुरंत ज्ञान हो जाता है।वर्तमान के अध्ययन इस तथ्य को उजागर करते हैं कि पौधे भी पीड़ा, दुख और सुख का अनुभव करते हैं और वे चिल्लाते भी हैं।

10. दो इंद्रियों से वंचित प्राणी की हत्या कम अपराध नहींएक बार एक शाकाहारी ने अपने पक्ष में तर्क दिया कि पौधों में दो अथवा तीन इंद्रियाँ होती हैं जबकि जानवरों में पाँच होती हैं। अतः पौधों की हत्या जानवरों की हत्या के मुक़ाबले में छोटा अपराध है। कल्पना करें कि अगर किसी का भाई पैदाइशी गूंगा और बहरा है और दूसरे मनुष्य के मुक़ाबले उसके दो इंद्रियाँ कम हैं। वह जवान होता है और कोई उसकी हत्या कर देता है तो क्या आप न्यायधीश से कहेंगे कि वह दोषी को कम दंड दे क्योंकि उसके भाई की दो इंद्रियाँ कम हैं और मरते वक़्त वह दर्द से चिल्लाया नहीं था। वास्तव में उसको यह कहना चाहिए कि उस अपराधी ने एक गूंगे व्यक्ति की हत्या की है और न्यायधीश को उसे कड़ी से कड़ी सज़ा देनी चाहिए।
पवित्र क़ुरआन में कहा गया है—‘‘ऐ लोगो! खाओ जो पृथ्वी पर है परंतु पवित्र और जायज़।’’ (क़ुरआन, 2:168)

DAWAT E ISLAM PESH KERNY KI GARAZ SY KUFFAR K SATH MAIL MILAP RAKHNY KA HUKAM

DAWAT E ISLAM PESH KERNY KI GARAZ SY KUFFAR K SATH MAIL MILAP RAKHNY KA HUKAM

Question :
Kia nasrani,hindu aur digar gair muslimu ko dawat deny k liye in sy mail joul rakhna,in k sath khana pina,guftago kerna aur hussan mamla kerna jiaz hai?
Answer :
Dawat eli Allah, islami talimat ki tashreeh o touzeeh,deen hanif apnanay ki tergeeb, Ahl emaan k achy anjam ka biyaan aur be deen logo ki khatarnaak saza aqaab kaa izhaar,aisy amoor ki anjam dahi k liye kuffar aur gair muslim logo sy mail milap kerna,in k sath majlis kerna aur anas o modat ka izhaar kerna jaiz hai.chunk eska anjam acha hai,lehaza es bary mai is sy kisi musalman (mard) ka izhar-e-dosti qabil-e-muafi hai. (shiekh ebn e jabreen)

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MAKTABA AL FURQAN SAMI GUJARAT 9998561553
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