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🔹क़ज़िय्या (लड़ाई) फ़िलिस्तीन और क़ौम-ए-यहूद की तक़दीर🔹

🔹क़ज़िय्या (लड़ाई) फ़िलिस्तीन और क़ौम-ए-यहूद की तक़दीर🔹

लेखक: रिज़वानुल्लाह फ़ैज़ी 

हिंदी अनुवाद: अब्दुल मतीन सैयद
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क़ौम-ए-यहूद के जराइम (बहुत से अपराध) पर क़ुरआन-ए-पाक ने बड़ी तफ़्सील से रौशनी डाली है क़ुरआन ने उनके मशहूर जराइम की जो फ़ेहरिस्त (लिस्ट) मुरत्तब (तैयार) की है उसमें नबियों की तकज़ीब (झुटलाना) और उनका क़त्ल भी शामिल है 
हराम-ख़ोरी, सूदी-कारोबार जंग की आग भड़काना (झगड़ा बढ़ाना) आसमानी किताबों में तहरीफ़ करना यहूदियों की ख़ास पहचान बताई गई है यहूदी क़ौम अपने इन्हीं जराइम (अपराध) की वजह से अल्लाह की ला'नत (फटकार) और उसके दाइमी (हमेशा के) ग़ज़ब की मुस्तहिक़ (हक़दार) बन गई
सूरा आले इम्रान में अल्लाह-त'आला फ़रमाता है
"ضُرِبَتْ عَلَيْهِمُ ٱلذِّلَّةُ أَيْنَ مَا ثُقِفُوٓاْ إِلَّا بِحَبْلٍۢ مِّنَ ٱللَّهِ وَحَبْلٍۢ مِّنَ ٱلنَّاسِ وَبَآءُو بِغَضَبٍۢ مِّنَ ٱللَّهِ وَضُرِبَتْ عَلَيْهِمُ ٱلْمَسْكَنَةُ ۚ ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمْ كَانُواْ يَكْفُرُونَ بِـَٔايَٰتِ ٱللَّهِ وَيَقْتُلُونَ ٱلْأَنۢبِيَآءَ بِغَيْرِ حَقٍّۢ ۚ ذَٰلِكَ بِمَا عَصَواْ وَّكَانُواْ يَعْتَدُونَ" ، (آل عمران 112)
तर्जमा: यह जहां भी पाए गए उन पर ज़िल्लत की मार पड़ी कहीं अल्लाह की या इंसानों की हिफ़ाज़त में उन्हें ('आरज़ी) पनाह मिल गई तो और बात है (दाइमी तौर पर) यह अल्लाह के ग़ज़ब में घिर गए हैं और मोहताजी और मग़लूबी (हार) उन पर मुसल्लत कर दी गई है क्यूंकि यह अल्लाह के अहकाम (आदेश) का इंकार करते थे नबियों को ना-हक़ क़त्ल करते थे अल्लाह के नाफ़रमान और बाग़ी थे।
(सूरा आले इम्रान:112)
यह है क़ौम ए यहूद की वो तक़दीर जो किताब अल्लाह में मस्तूर (लिखा हुआ) है तमाम दुनिया की एटमी और सुपर-पावर ताक़तें एक साथ मिलकर भी इस तक़दीर को बदलना चाहे तो इस में वो कामयाब नहीं हो सकते हैं।
  एक सवाल यह ज़ेहन (मन) में पैदा होता है कि इस क़दर मग़ज़ूब और ला'नत-ज़दा (ला'नत का मारा) होने के बावुजूद (तब भी) यहूदी आज इतने ताक़तवर कैसे नज़र आते हैं कि पूरा 'आलम-ए-इस्लाम उनके सामने ब-ज़ाहिर (देखने में) बेबस (कमज़ोर) और लाचार दिखाई देता है उनके पास मज़बूत फ़ौजी क़ुव्वत (ताक़त) है और रियासत (हुकूमत) के भी मालिक हैं ? यह सवाल हर उस शख़्स को उलझन (परेशानी) का शिकार बनाता है जो यहूद के जराइम (अपराध) को जानता है और इस क़ौम के मग़ज़ूब-'अलैह होने पर यक़ीन (भरोसा) रखता है।
  इस सवाल का जवाब सूरा आल-ए-'इमरान की मज़्कूरा-बाला (जिसका ऊपर ज़िक्र किया है) आयत में अल्लाह-त'आला ने ख़ुद ही दे दिया है
 (إِلَّا بِحَبْلٍۢ مِّنَ ٱللَّهِ وَحَبْلٍۢ مِّنَ ٱلنَّاسِ) 
या'नी क़ौम-ए-यहूद का वुजूद दो ही सूरतों (स्थितियों) में बाक़ी रह सकता है।
(1) पहली सूरत (स्थिति) यह है कि वो अल्लाह की पनाह में आ जाए।
(2) दूसरी सूरत (स्थिति) यह है कि उन्हें लोगों की पनाह हासिल हो जाए।
यह जानने से पहले कि क़ौम ए यहूद को फ़िलहाल (इस समय) किस तरह की पनाह हासिल है
यह जान लेना ज़रूरी है कि अल्लाह-त'आला की पनाह में आने की चंद शक्लें क्या हैं ?
(1) अल्लाह के दीन को क़ुबूल कर के अल्लाह के मुंक़ाद-व-फ़रमाँ-बरदार (आज्ञाकारी) बन जाए इसी को
 (بحبل من اللہ)
से ता'बीर किया गया है क्यूंकि एक दूसरी आयत में किताब अल्लाह को अल्लाह की रस्सी कहा गया है 
(واعتصموا بحبل اللہ)
(2) जिज़्या की रक़म (धन) दे कर जान-ओ-माल का तहफ़्फ़ुज़ (बचाव) कर ले जैसा कि इस्लामी ख़िलाफ़तों के 'अहद में (समय में) ज़िम्मी बन कर उन्होंने अल्लाह की पनाह हासिल की थी
(3) किसी बड़े झटके के बाद अल्लाह की तरफ़ से सुधरने और इस्लाह क़ुबूल करने का एक 'आरज़ी (अस्थायी) मौक़ा' दे कर उन पर एहसान कर दिया जाए इस की मिसाल सूरा अल्-इस्रा की इब्तिदाई (शुरू'आती) आयात में मौजूद है जब बाबिल के फ़रमाँ-रवा (राजा) ने उन पर चढ़ाई की और ग़ुलाम बना कर भेड़ बकरियों की तरह हाँक कर बाबिल ले गया तो चालीस साल तक ग़ुलामी की ज़िल्लत सहने के बाद अल्लाह-त'आला ने दोबारा (फिर) उनके दिन लौटा दिए और न सिर्फ़ ग़ुलामी से आज़ादी दिलाई बल्कि (किंतु) माल-ओ-अस्बाब और नफ़री क़ुव्वत (ताक़त) में भी इज़ाफ़ा (बढ़ोतरी) फ़र्मा दिया था जो किसी भी क़ौम के वुजूद-ओ-बक़ा (अस्तित्व) के लिए ज़रूरी होता है
(ثُمَّ رَدَدْنَا لَكُمُ ٱلْكَرَّةَ عَلَيْهِمْ وَأَمْدَدْنَٰكُم بِأَمْوَٰلٍۢ وَبَنِينَ وَجَعَلْنَٰكُمْ أَكْثَرَ نَفِيرًا) 
(حبل من اللہ) 
की मज़कूरा पहली दो शक्लों का तो सिरे-से (बिल्कुल) कोई इम्कान (मुमकिन) नहीं है क्यूंकि यहूद ने न तो अल्लाह के दीन को क़ुबूल किया है और न ही जिज़्या की कोई सूरत (स्थिति) मौजूद है रही तीसरी शक्ल तो इस का भी इम्कान मौजूद नहीं है क्यूंकि इस तरह का मौक़ा' (अवसर) उन्हें उस वक़्त मिला करता था जब दुनिया में उम्मत-ए-मुस्लिमा की हैसिय्यत से सिर्फ़ वही क़ौम थी लिहाज़ा (इसलिए) उसे सुधरने और ने'मत-ए-इस्लाम को सँभालने का
मौक़ा' मिलता रहा नबी-ए-आख़िरुज़्ज़माँ ﷺ की बे'सत (रिसालत) के बाद यहूदियों ने आख़िरी पैग़ंबर से 'अदावत (दुश्मनी) का रास्ता इख़्तियार (पसंद) किया और इस तरह वो ख़ुद ही उम्मत-ए-मुस्लिमा की सफ़ से ख़ारिज (बाहर) हो गए
  क़ुर'आन-ए-मजीद में यहूदियों के लिए अपने वुजूद (अस्तित्व) को बरक़रार (उपस्थित) रखने की दुसरी सूरत (स्थिति) यह बताई गई है कि उन्हें दुसरी क़ौमों की पुश्त-पनाही (मदद) हासिल हो जाए आज यहूद को जो ताक़त हासिल है वो उसी दुसरी सूरत (स्थिति) का नतीजा (असर) है दुनिया जानती है कि रियासत (हुकूमत) इसराईल को अमरीका और यूरोप की पुश्त-पनाही (मदद) मिली हुई है अगर दीगर (अन्य) अक़्वाम की हिमायत (मदद)
 (حبل من الناس) 
ख़त्म हो जाए तो रियासत (हुकूमत)
इसराईल को अपना वुजूद (अस्तित्व) बाकी रख पाना मुश्किल हो जाएगा।
 यहूद फ़ितरी तौर पर एक चालाक क़ौम है यह क़ौम मुस्तक़बिल (future) की हमेशा प्लानिंग करती है इस की एक मिसाल देख ले कि क़ुर्ब-ए-क़ियामत के मौक़ा' (समय) पर मुसलमानों के साथ उनका आख़िरी फ़ैसला-कुन मा'रका (युद्ध) होगा उस वक़्त मुसलमानों के हाथों अल्लाह-त'आला उन्हें ख़ूब ज़लील (अपमानित) करेगा यहां तक कि तमाम शजर-ओ-हजर (पेड़ और पत्थर) उनके ख़िलाफ़ मुख़्बिरी (जासूसी) करेंगे सिवाए शजर (वृक्ष) ग़र्क़द के (तफ़सीलात अहादीस में दर्ज हैं) यह क़ुर्ब-ए-क़यामत की बात है लेकिन आज ही से तमाम यहूदी ग़र्क़द का दरख़्त (वृक्ष) कसरत से लगा रहे हैं बल्कि (किंतु) रियासत (हुकूमत) इसराईल इस के लिए अच्छा-ख़ासा (बहुत) बजट मुख़्तस (आरक्षित) करती है।
  माज़ी (भूतकाल) में इस क़ौम ने तक़रीबन (लगभग) दो-हज़ार साल तक ईसाई बादशाहों की तरफ़ से 'इताब (ग़ुस्सा) झेला है इस की वज्ह (कारण) यह है कि 'ईसाई 'अक़ीदे के मुताबिक़ (अनुसार) 'ईसा अलैहिस्सलाम के क़ातिल यही लोग हैं (हालांकि पैग़ंबर 'ईसा न मक़्तूल (क़त्ल) हुए थे न मसलूब (सूली चढ़े) बल्कि उन्हें ज़िंदा आसमान पर उठा लिया गया था) ताहम (फिर भी) मु'आमला उन पर मुश्तबा (doubtful) कर दिया गया था
 (ولکن شبه لھم)
हुआ यह था कि जब यहूदियों ने 'ईसा अलैहिस्सलाम को क़त्ल करना चाहा तो ब-ज़रिया' वही 'ईसा को पहले ही इत्तिला' (ख़बर) मिल गई और अल्लाह का प्लान (योजना) समझा दिया गया कि पैग़ंबर को ज़िंदा आसमान की तरफ़ उठा लिया जाएगा और एक हवारी (मददगार) को 'ईसा अलैहिस्सलाम की शक्ल दे दी जाएगी लोग इसी को 'ईसा अलैहिस्सलाम समझ कर क़त्ल कर देंगे चुनांचे (इसलिए) ऐसा ही हुआ।

  यहूदियों ने समझा कि हम ने 'ईसा अलैहिस्सलाम को सूली (फांसी) पर चढ़ा दिया और 'ईसाई दुनिया ने माना कि उनके पैग़ंबर के क़ातिल यहूदी हैं इस घटना के बाद तवील 'अर्से (लंबे समय) तक 'ईसाई दुनिया ने यहूदियों को सज़ा देने का सिलसिला (परम्परा) जारी रखा और यहूदी क़ौम दुनिया भर में सदियों तक मारी-मारी फिरती रही।

  सवाल पैदा होता है कि अगर 'ईसा अलैहिस्सलाम को ज़िंदा आसमान पर उठाना ही था तो यह काम सब की आंखों (नज़र) के सामने 'अला रूसुल-अश्हाद (सबके सामने) क्यूं नहीं हुआ और क्यूं मु'आमले को मुश्तबा (doubtful) करने के लिए एक हवारी (मददगार) को 'ईसा अलैहिस्सलाम की शक्ल दे कर शहीद होने दिया गया ? आख़िर इस में कौन सी ख़ुदाई (क़ुदरती) हिकमत कार-फ़रमा नज़र आती है ?
  जब हम 'ईसाई बादशाहों की तरफ़ से यहूदियों पर होने वाले बदतरीन और ज़िल्लत-आमेज़ (अपमानजनक) सुलूक (बर्ताव) पर नज़र डालते हैं तो हमें इस बात का सहीह जवाब बड़ी आसानी से मिल जाता है कि अल्लाह की मर्ज़ी यह थी कि 'ईसाई दुनिया के हाथों से यहूदियों को ज़लील (बे-'इज़्ज़त) किया जाता रहे चुनांचे (इसलिए) सदियों तक यहूदियों पर ज़िल्लत की मार पड़ती रही।

  अगर रफ़'-ए-'ईसा ('ईसा अलैहिस्सलाम को आसमान पर उठाने) का वाक़ि'आ सब के सामने तख़्ता-ए-दार से बराह-ए-रास्त (सीधे तौर पर) 'अमल (काम) में आया होता और 'ईसाईयों ने अपनी आंखों से इस मंज़र (दृश्य) का मुशाहदा (निरीक्षण) किया होता कि हमारे पैग़ंबर को बा-'इज़्ज़त तरीक़े से आसमान की तरफ़ उठा लिया गया है तो 'ईसाइयत के दिल में यहूदिय्यत के ख़िलाफ़ इतनी नफ़रत की आग नहीं सुलगती और उन पर इतना ग़ुस्सा नहीं पैदा होता जितना कि सूली (फांसी) पर 'ईसा अलैहिस्सलाम के हम-शक्ल को चढ़ाने के बाद पैदा हुआ चुनांचे (इसलिए) रफ़'-ए-'ईसा ('ईसा अलैहिस्सलाम को आसमान पर उठाने) के वाक़ि'ए के बाद रोम के बादशाह ने फ़िलिस्तीन पर (ख़ुदाई हिकमत के तहत) चढ़ाई की और यहूदी क़ौम को रुई की तरह धुन डाला जिसका तज़्किरा (ज़िक्र) सूरा अल्-इस्रा की इब्तिदाई (शुरू'आती) आयात में हुआ है।

  क़ौम-ए-यहूद की तारीख़ (history) सदियों पर मुहीत (व्यापक) है तारीख़ (इतिहास) के मुख़्तलिफ़ (अलग-अलग) अदवार (समय) में दर-दर भटकने और ख़ाना-बदोशी (इधर-उधर घूम-फिर कर जीवन व्यतीत करने) की ज़िल्लत (अपमान) सहने के बावुजूद (तब) भी यह क़ौम अब तक ज़िंदा है इस का एक सबब (कारण) तो यह
है कि क़ानून-ए-इलाही के तहत (नीचे) बा'ज़ (कुछ) चीज़ों को ब-तौर-ए-'इबरत बाकी रखा जाता है मसलन (जैसे) फ़िर'औन की लाश और मु'अज़्ज़ब (दंडित) क़ौमों के बा'ज़ (कुछ) आसार (यादगारें) वग़ैरा
  लेकिन एक वज्ह (कारण) और भी है जिस की तरफ़ बा'ज़ (कुछ) अहल-ए-'इल्म ने इशारा किया है कि यहूद का त'अल्लुक़ (संबंध) नस्ल-ए-इसहाक़ से है और 'अरबों का इस्मा'ईल से जब सय्यदना इब्राहीम अलैहिस्सलाम को इसहाक़ की पैदाइश (जन्म) की बशारत (ख़ुशख़बरी) दी गई तो
 "غلام علیم "
कह कर दी गई जबकि (हालाँकि) इस्मा'ईल की बशारत (ख़ुशख़बरी)
"غلام حلیم"
के लफ़्ज़ (शब्द) के साथ आई 'अरब दुनिया इस्मा'ईल की नस्ल (क़ौम) से त'अल्लुक़ (संबंध) रखते है इस लिए उसमें हिल्म-ओ-बुर्द-बारी (नर्मी) का 'उंसुर (हिस्सा) ग़ालिब (ज़्यादा) है जबकि नस्ल-ए-इसहाक़ (बनी-इस्राईल) फ़ितरी (क़ुदरती) तौर पर 'इल्म-ओ-चालाकी में शोहरत (प्रतिष्ठा) पाने वाली क़ौम से मशहूर-ओ-मा'रूफ़ (प्रसिद्ध) है चुनांचे (जैसा कि) उन्हों (यहूद) ने 'ईसाइयत ('ईसाई धर्म) को क़ाबू में करने के लिए तवील-उल-मी'आद मंसूबे तैयार किए सबसे पहले उन्होंने 'ईसाई मज़हबी (धार्मिक) किताब में हाशिया वग़ैरा लगवा कर 'ईसाई नस्लों का brainwash किया और यहूदिय्यत के तईं (लिए) नर्म-गोशा पैदा किया ईसाईयों के अंदर 'उर्यानियत-व-फ़हहाशी (अश्लीलता) को फ़रोग़ (बढ़ावा) दे कर मज़हबी (धार्मिक) ख़यालात (विचार) को कमज़ोर किया और मीडिया की ताक़त इस्ते'माल (प्रयोग) करते हुए जमहूरियत (लोकतंत्र) और इंसानी हुक़ूक़ (अधिकार) के हक़ में राय-'आम्मा (लोक-मत) को हमवार (बराबर) किया यह सैलाब इतना तेज़ (प्रचंड) था कि इस के बहाव (प्रवाह) में 'ईसाई बादशाहों का तख़्त-ओ-ताज (हुकूमत) बह गया 'ईसाई दुनिया को नज़रियाती (वैचारिक) दंगल (भीड़) में उतार कर 'ईसाइयत ('ईसाई धर्म) को फ़िरक़ों में तक़सीम (टुकड़े) कर के आपस में (एक दूसरे से) ख़ूब लड़ाया और जानी-दुश्मन बना दिया "लेनिन" और "मार्क्स" जैसे उनके बा'ज़ (कुछ) मुफ़क्किरीन ने इल्हाद-ओ-दहरिय्यत (नास्तिकता) का सूर इतनी शिद्दत से (ज़ोर से) फूँका कि आधी 'ईसाई दुनिया को इश्तिराकियत (साम्यवाद) के 'इफ़रीत (शैतान) ने निगल लिया दुनिया को दो 'अज़ीम (बहुत बड़ी) जंगों का ख़म्याज़ा (परिणाम) भुगतना पड़ा और दोनों ही जंग-ए-'अज़ीम (विश्व युद्ध) के पीछे यहूदियों का हाथ सामने आया जर्मनी और ब्रतानिया (इंग्लैंड) के दरमियान (बीच में) जंग-ए-'अज़ीम के अस्ल मुहर्रिक (प्रेरणा देने वाले) यही थे हिटलर की फ़ौज में आ'ला 'ओहदों (ऊंचे पद) पर रहते हुए ब्रिटिश हुकूमत की ख़ूब मदद की जर्मन फ़ौज को रद्दी (ख़राब) गोला-बारूद सप्लाई करते रहे जिससे ब्रिटिश हुकूमत का नुक़्सान कम हुआ जबकि ब्रतानिया (इंग्लैंड) को जर्मन फ़ौज की हस्सास (ख़ुद्दार) फ़ौजी ठिकानों का पता देते रहे जिस की वजह से जर्मनी को तारीख़ की बदतरीन शिकस्त (हार) का सामना करना पड़ा बाद में हिटलर पर जब यह राज़ खुला तो उसने यहूदियों के क़त्ल-ए-'आम (नरसंहार) के हुक्म-नामे (आदेशपत्र) पर दस्तख़त (हस्ताक्षर) कर दिया मशहूर (प्रसिद्ध) है कि साठ (60) लाख यहूदी क़त्ल कर दिए गए इस तरह यहूदियों पर अल्लाह की तरफ़ से ज़िल्लत-ओ-रुसवाई (बदनामी) की तारीख़ एक बार फिर दोहरा दी गई जिस को दुनिया होलोकॉस्ट के नाम से जानती है ब्रिटिश हुकूमत के साथ वफ़ादारी का सिला (इनाम) उन्हें (यहूद को) यह मिला कि हुकूमत-ए-ब्रतानिया ने अपने 'आलमी असरात को ब-रू-ए-कार (काम में) लाते हुए यहूदियों के लिए क़ौमी वतन बनाने का ए'लान किया यह यहूद की ब्रतानिया (ब्रिटेन) से वफ़ादारी का वो इन'आम था जो ब्रतानिया ने जर्मनी के साथ ग़द्दारी करने के 'इवज़ (बदले में) यहूदियों को तोहफ़े में पेश किया था इसी तोहफ़े का नाम रियासत-ए-इस्राईल है।

  पहली जंग-ए-'अज़ीम के बाद ही सल्तनत-ए-'उस्मानिया ताश के पत्तों की तरह बिखर गई थी और ब्रतानिया के लिए फ़िलिस्तीन पर क़ब्ज़ा करने की राह (रास्ते) की तमाम रुकावटें ख़त्म हो चुकी थी लेकिन दूसरी जंग-ए-'अज़ीम (विश्व युद्ध) में नाज़ियों की शिकस्त (हार) के बाद जब होलोकोस्ट का वाक़ि'आ पेश (सामने) आया तो यहूदी रियासत (हुकूमत) के क़ियाम (स्थापना) के लिए दुनिया भर में हमदर्दी समेटने का मौक़ा' मिला 29 नवम्बर 1947 'ईसवी को अक़्वाम-ए-मुत्तहिदा (संयुक्त राष्ट्र) की जनरल-असेम्बली ने फ़िलिस्तीन की तक़सीम (विभाजन) का मंसूबा (योजना) मंज़ूर (क़ुबूल) किया और इसी अक़्वाम-ए-मुत्तहिदा (United Nations) ने 14 मई 1948 'ईसवी में रियासत-ए-इस्राईल के क़ियाम (स्थापना) का ए'लान कर दिया इस ए'लान के बाद फ़िलिस्तीन दो लख़्त (टुकड़े) हो गया अक़्वाम-ए-मुत्तहिदा (संयुक्त राष्ट्र) ने 55 फ़ीसद (प्रतिशत) रक़्बा (क्षेत्रफल) यहूदियों को दिया और 45 फ़ीसद (प्रतिशत) रक़्बा (क्षेत्रफल) फ़िलिस्तीनियों के हिस्से में आया यह था अक़्वाम-ए-मुत्तहिदा का पहला इंसाफ़।

15 मई 1948 'ईसवी को या'नी क़ियाम-ए-इसराईल के ए'लान के अगले रोज़ (दिन) कई (अनेक) हमसाया (पड़ोसी) 'अरब ममालिक ने इसराईल पर एक साथ हमला कर दिया बा'द के बरसों में भी कई बार इसराईल के हमसाया (पड़ोसी) ममालिक उस पर हमला कर चुके हैं लेकिन हर-बार (हमेशा) इसराईल फ़ातेह (विजेता) रहा और 'अरबों के हिस्से में शिकस्त (हार) आई अब तक की गुफ़्तुगू (बात-चीत) में एक बात जो क़ाबिल-ए-ग़ौर है वो यह कि यहूद ने पहले 'ईसाई दुनिया से अपनी दुश्मनी ख़त्म (समाप्त) की (अगरचे इस कोशिश में सदियों का सफ़र तय करना पड़ा तब जाकर वो एक दूसरे के हलीफ़ (सहयोगी) हुए) उसके बाद ही उन्होंने दुश्मनी का रुख़ (दिशा) मुसलमानों की तरफ़ मोड़ा।

  इसराईल दुनिया का वाहिद (अकेला) मुल्क है जिसने अपनी पार्लियामेंट की पेशानी (मस्तक) पर लिख रखा है कि " ऐ इसराईल तेरी सरहदें नील से फ़ुरात तक हैं " दरिया-ए-नील से दरिया-ए-फ़ुरात तक की ज़मीन को यहूदी अपनी मीरास (विरासत) की ज़मीन कहते हैं और ब-ज़ोर-ए-ताक़त (ज़बरदस्ती) इस पर क़ब्ज़ा कर लेने को वो अपना जाइज़ हक़ मानते हैं यहूदियों के तौसी' पसंदाना (विस्तारवादी) 'अज़ाइम (इरादे) के हिसाब से पूरा शाम, लेबनान, जोर्डन, 'इराक़ और आधा सऊदी अरब ब-शुमूल (साथ मिला कर) मदीना-मुनव्वरा यहूद के निशाने पर है जिस पर क़ब्ज़ा करना यहूदी मंसूबे में शामिल है
( لا قدر اللہ)
यही वज्ह (कारण) है कि इसराईल अपने क़ियाम के बा'द ही से मुसलसल (लगातार) क़ब्ज़ा और तौसी' पसंदाना (विस्तारवादी) 'अज़ाइम (इरादे) के साथ आगे बढ़ रहा है और उसने अब तक 80 फ़ीसद (प्रतिशत) से ज़ाइद (अधिक) फ़िलिस्तीनी रक़्बे (क्षेत्रफल) पर क़ब्ज़ा कर लिया है और मज़ीद (अधिक) करता चला जा रहा है।

  'अरबों के 'ऐन क़ल्ब (दिल) में इसराईल को बसा कर 'ईसाई दुनिया ने एक तीर से दो शिकार किए है एक तरफ़ तो उन्होंने सलीबी-जंगों में अपनी हज़ीमत (हार) का इंतिक़ाम (बदला) लिया है और दूसरी तरफ़ मश्रिक़-ए-वुस्ता (Middle East) में मज़बूत फ़ौजी बैस (इसराईल) क़ाएम कर के 'अरब और इस्लामी दुनिया को ख़ौफ़ज़दा रखते हैं इस सूरत-ए-हाल (अवस्था) में 'अरबों में 'अदम-ए-तहफ़्फ़ुज़ (असुरक्षित होने) का एहसास (अनुभव) पैदा होना फ़ितरी (क़ुदरती) था चुनांचे (इसलिए) 'अरबों में जदीद (आधुनिक) अस्लहों (युद्ध के हथियार) की ख़रीदारी की दौड़ शुरू' हुई और इस के लिए ज़रूरी था कि वो तरक़्क़ी-याफ़ता (विकसित) ममालिक के साथ पहले अपने रिश्ते उस्तुवार (मज़बूत) करे इस तरह 'अरब दुनिया अमलन (व्यावहारिक तौर पर) अमरीका और यूरोप के लिए अस्लहे (युद्ध के हथियार) की तिजारत (व्यापार) की एक बहुत बड़ी मंडी (बाज़ार) बन गई।

  'अरब दुनिया के लिए एक बड़ा दर्द-ए-सर (मुसीबत) ईरान है यह भी इसराईल की तरह तौसी' पसंदाना (विस्तारवादी) ख़यालात (विचार) रखता है और मुख़्तलिफ़ (अलग-अलग) ख़ित्तों (एरिया) में मुसल्लह (हथियार बंद) ग्रुप्स को प्रमोट करता रहता है 'अरबों के ऊपर ग्रेटर इसराईल का ख़ौफ़ (डर) पहले से है ही ईरान के तौसी 'पसंदाना (विस्तारवादी) 'अज़ाइम (इरादे) भी किसी डरावने-ख़्वाब से कम नहीं हैं इस को समझने के लिए थोड़ा माज़ी (भूतकाल) की तरफ़ चलते हैं कहानी शुरू' होती है ईरान 'इराक़ जंग से और ख़त्म होती है 'इराक़ के शी'आ स्टेट बन जाने पर दरमियान में (बीच में) अमरीका की एंट्री और बे-तहाशा (अचानक) बम्बारी से सिर्फ़ शिय्यत को फ़रोग़ (बढ़ावा) हासिल हुआ बा'ज़ (चंद) नादानों को अब भी यक़ीन (भरोसा) है कि ईरान से अमरीका व इसराईल की ठनी हुई है सियासत (राजनीति) दुनिया का सबसे टफ गेम है जो होता है वो दिखाई नहीं देता है और जो दिखाई देता है वो होता नहीं।

  इस वक़्त ईरान दुनिया के नक़्शे पर मौजूद तीन अहम ममालिक ('इराक़, लेबनान, शाम) पर बिल-वास्ता (indirectly) कंट्रोल हासिल कर चुका है हूती बाग़ियों के ज़री'आ यमन को भी ज़ेर-ए-कंट्रोल लाने की कोशिश कर चुका है लेकिन सऊदी अरब की मुदाख़लत (हस्तक्षेप) से फ़िलहाल (इस समय) कामयाबी हासिल नहीं हुई 'अरब बहारिया (फ़सादिया) के पीछे भी दर-पर्दा (पीठ पीछे) ईरान ही था फ़िलिस्तीन में हमास को फ़िक्री व 'अस्करी ख़ुराक पहुंचा रहा है इख़्वान, तुर्की और क़तर के साथ उसके सियासी व नज़रियाती (राजनीतिक और वैचारिक) रवाबित (मेल-मिलाप) हैं इन हालात में तहरिकी और इंक़िलाबी (क्रांतिकारी) सोच (विचार) रखने वाले लोग जब 'अरबों को ता'ना देते हैं कि वो इसराईल के सामने बुज़दिली दिखा रहे हैं तो हंसी छूट जाती है।

  'अरब इसराईल जंग के बाद ही से 'अरबों के समझ में आ गया था कि इसराईल को शिकस्त (पराजय) दे पाना मुश्किल है लिहाज़ा (इसलिए) उन्होंने हमेशा बात-चीत के ज़रीये पुर-अम्न (शांतिपूर्ण) हल (समाधान) तलाश करने की कोशिश की इस के 'अलावा फ़िलहाल (अभी) इस्लामी दुनिया के पास कोई ओपसन भी नहीं है इस दौरान फ़िलिस्तीन की तरफ़ से मुख़्तलिफ़ मुज़ाहमती (रक्षात्मक) ग्रुप ने इसराईल के साथ झड़पों का सिलसिला भी जारी रखा जो अब तक जारी है लेकिन तारीख़ बताती है कि हर झड़प इसराईल को मज़ीद (अधिक) क़ब्ज़ा करने और फ़िलिस्तीनी जानों को तलफ़ (नष्ट) करने का जवाज़ (मौक़ा') अता कर देती है इसराईल ने फ़िलिस्तीन के मुज़ाहमत (विरोध) कारों को भी बड़ी चालाकी से तक़सीम कर के कमज़ोर बना दिया है हमास अपने आका ईरान का आला-ए-कार (औज़ार) है और इसी के इशारों पर रोल प्ले कर रहा
है ईरान और तुर्की के ख़ुफ़्या (गुप्त) रवाबित (मेल-जोल) इसराईल के साथ अब ढके-छुपे नहीं है लाखों यहूदी आज भी ईरान में 'इज़्ज़त की रोटी खा रहे हैं दुनिया भर से यहूदियों को लाकर इसराईल में बसाया जा रहा है लेकिन ईरान में मुक़ीम (निवासी) यहूदी ईरान से हिजरत नहीं कर रहे हैं आख़िर (अंत) इस की क्या वज्ह (कारण) हैं ? अगर ईरान इसराईल में वाक़ि'ई (सच-मुच) दुश्मनी होती तो यह ईरानी यहूद सबसे पहले भाग खड़े होते लेकिन पर्दे के पीछे की सच्चाई कुछ और है इस तनाज़ुर में ईरान के जौहरी (परमाणु) प्रोग्राम पर होने वाले हंगामे को समझना भी आसान हो जाता है कि वो महज़ (सिर्फ़) एक ड्रामा (नाटक) है इसराईल और अमरीका की मर्ज़ी के बग़ैर ईरान का जौहरी (परमाणु) प्रोग्राम एक इंच भी आगे नहीं बढ़ सकता है इस गेम को समझने के लिए याद-दाश्त पर थोड़ा जोर दे कर सोचे कि सद्दाम हुसैन के 'इराक़ पर इसराईल ने फ़ज़ाई (हवाई) बम्बारी कर के एटमी प्लांट को नीस्त-ओ-नाबूद (तबाह) कर दिया था लेकिन ईरान के जौहरी (परमाणु) प्रोग्राम के ख़िलाफ़ ऐसी कोई कार्रवाई अब तक नहीं की गई ? क्या अब भी किसी को इस अम्र (विषय) में शुब्हा (शक) है कि इसराईल को शी'आ बम से नहीं बल्कि (किंतु) सुन्नी बम से ख़तरा (डर) है ? अगर कोई शख़्स यह समझता हो कि ईरान के पीछे रूस (Russia) खड़ा है या ख़ुद ईरान इतना ताक़तवर (शक्तिशाली) हो गया है कि इसराईल को उस पर हमले की जुरअत (हिम्मत) नहीं हो रही है तो यह सिर्फ़ (केवल) ख़ाम-ख़याली (मूर्खता) है सद्दाम के पीछे भी रूस था और उसकी फ़ौजी क़ुव्वत (ताक़त) भी ईरान से कमज़ोर नहीं थी इस के बावुजूद (तब भी) इसराईल ने उस पर हमला कर दिया था।

  यह मज़मून (लेख) ख़ासा तवील (लंबा) हो गया मक़्सद यह बताना था कि ग़ासिब (हक़ मारने वाला) सहयूनी (zionist) रियासत (हुकूमत) का मुक़ाबला और आज़ाद फ़िलिस्तीनी रियासत (हुकूमत) का क़ियाम तवील-उल-मी'आद (लंबे 'अर्सा का) मंसूबे का मोहताज है जिस के लिए पहले मुनासिब (ठीक) तैयारी की ज़रूरत है 'अरबों को इस बात का ब-ख़ूबी (अच्छी तरह से) अंदाज़ा (अनुमान) भी है इस लिए वो मुसल्लह (हथियार बंद) जिद्द-ओ-जहद (प्रयत्न) की खुल कर हिमायत (मदद) नहीं कर रहे हैं नाक़िस बंद-ओ-बस्त के साथ आग में कूद जाने का नाम जिहाद हरगिज़ (कदापि) नहीं है इस के लिए मुनासिब (ठीक) लफ़्ज़ (शब्द) ख़ुदकुशी (आत्म-हत्या) है जो इस वक़्त बा'ज़ (चंद) मुज़ाहमत (विरोध) कारों की तरफ़ से हो रही है जहां तक बात इसराईल की है तो जैसा कि मज़मून (लेख) के आग़ाज़ (शुरू') में बताया जा चुका है कि यहूद एक मग़ज़ूब क़ौम है इंशा अल्लाह आप देखेंगे कि यह क़ौम जल्द (तुरंत) अपने अंजाम-बद (बुरे अंत) से दो-चार होगी इस सिलसिले में अल्लाह-त'आला का फ़रमान बहुत पहले जारी हो चुका है और इस पर हमारा कामिल (पूरा) ईमान है।
" وَإِذْ تَأَذَّنَ رَبُّكَ لَيَبْعَثَنَّ عَلَيْهِمْ إِلَىٰ يَوْمِ الْقِيَامَةِ مَن يَسُومُهُمْ سُوءَ الْعَذَابِ ۗ إِنَّ رَبَّكَ لَسَرِيعُ الْعِقَابِ ۖ وَإِنَّهُ لَغَفُورٌ رَّحِيمٌ " (اعراف /167)
तर्जमा: तुम्हारे रब ने ए'लान कर दिया है कि वो यहूदियों के मद्द-ए-मुक़ाबिल (दुश्मन) क़ियामत तक ऐसे लोगों को खड़ा करता रहेगा जो उन्हें बदतरीन सज़ा देंगे क्यूंकि वो (ज़ालिमों को) जल्द पकड़ता भी है और (मोमिनो को) ज़ियादा मु'आफ़ भी करता है।
(सूरा अल्-आराफ़:167)

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