✍️... नदीम अख़्तर सलफ़ी
हिंदी अनुवाद: अब्दुल मतीन सैयद
🔹 दोस्तों इस्लाम के साथ ना-इंसाफ़ी (अन्याय) की एक घिनाओनी शक्ल (चेहरा) देखें कि दुनिया में कहीं भी कोई वाक़ि'आ (घटना) होता है तो इसे फ़ौरन (तुरंत) इस्लाम से जोड़ कर देखा जाने लगता है और इस्लाम से ख़ार खाने और नफ़रत करने वाले चीख़ने लगते हैं कि इस्लाम दहशत-गर्दी (आतंकवाद) वाला दीन (धर्म) हैं
वो अपने मानने वालों को दहशत-गर्दी (आतंकवाद) की ता'लीम (शिक्षा) देता है इस के मानने वाले आतंकी और दहशत-गर्द (आतंकवादी) होते हैं यह चीख़ने वाले ज़रा भी समझदार (बुद्धिमान) और 'अक़्ल वाले होते तो इस्लाम को पढ़ने के बाद यह जरूर (अवश्य) जान लेते कि अम्न-ओ-अमान (शांति और सुरक्षा) और शांति में रहने वाले लोगों पर किसी तरह की तकलीफ़ (कष्ट) और अज़िय्यत (दुख) को इस्लाम हराम (निषेध) क़रार देता है !
🔹 लोगों को डराने वाले रास्तों के लुटेरे ज़मीन में हड़बोंग (शोर शराबा) मचाने वाले और शांति को भंग करने वालों के लिए इस्लाम में तो सख़्त (कठोर) तरीन सज़ा रखी गई हैं और यह इस लिए ताकि लोगों को उन के शर (उपद्रव) से बचाया जाए उन की जान-ओ-माल और 'इज़्ज़त-आबरू (प्रतिष्ठा) की हिफ़ाज़त (सुरक्षा) की जाए
अल्लाह-त'आला का इरशाद हैं:
﴿ إِنَّمَا جَزَاءُ الَّذِينَ يُحَارِبُونَ اللَّهَ وَرَسُولَهُ وَيَسْعَوْنَ فِي الْأَرْضِ فَسَادًا أَنْ يُقَتَّلُوا أَوْ يُصَلَّبُوا أَوْ تُقَطَّعَ أَيْدِيهِمْ وَأَرْجُلُهُمْ مِنْ خِلَافٍ أَوْ يُنْفَوْا مِنَ الْأَرْضِ ذَلِكَ لَهُمْ خِزْيٌ فِي الدُّنْيَا وَلَهُمْ فِي الْآخِرَةِ عَذَابٌ عَظِيمٌ ﴾ [المائدة: 33]
तर्जुमा: जो अल्लाह-त'आला से और उसके रसूल से लड़ाई और ज़मीन में फ़साद (उपद्रव) करते फिरें उन की सज़ा यही है कि वो क़त्ल कर दिए जाए या मुख़ालिफ़ (विपरीत) जानिब (दिशा) से उन के हाथ पांव काट दिए जाए या इन्हें जला-वतन (तड़ीपार) कर दिया जाए यह तो हुई इन की दुनयवी (सांसारिक) ज़िल्लत (अपमान) और ख़्वारी (बरबादी) और आख़िरत (परलोक) में इन के लिए बड़ा भारी 'अज़ाब हैं !
(सूरा अल्-माइदा:33)
🔹 सोचने वाली बात है कि जिस दीन (धर्म) में फ़सादियो (झगड़ालू) के लिए इतनी सख़्त (कठोर) सज़ा हो वो दीन (धर्म) ख़ुद (स्वयं) फ़सादियो को पनाह कैसे दे सकता हैं ? अम्न-ओ-शांति को भंग करने वालों की हिमायत (समर्थन) कैसे कर सकता है ? इंसानों के जान-ओ-माल और 'इज़्ज़त-आबरू (प्रतिष्ठा) की हिफ़ाज़त (सुरक्षा) करने वाले दीन (धर्म) पर आतंक का लेबल कैसे चिपकाया जा सकता हैं ?
🔹 नबी करीम ﷺ के एक बयान (प्रवचन) में बात तो इस से भी आगे की कही गई हैं कि जो मुसलमान किसी ज़िम्मी (इस्लामी राज्य में ग़ैर मुस्लिम नागरिक) पर ज़ुल्म (अन्याय) करेगा तो क़यामत (प्रलय) के दिन नबी करीम ﷺ इस से मुक़ाबला करेंगे इस के मुक़ाबिल (प्रतिस्पर्धी) और हरीफ़ (विरोधी) रहेंगे और जिस के मुक़ाबिल (प्रतिस्पर्धी) नबी हो वो यक़ीनन (अवश्य) हारने वालों में से होगा (तबरानी ने अल औसत में हसन सनद के साथ इसे रिवायत किया है)
🔹 और इसी किताब में एक दूसरी रिवायत है जिस में नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया कि जिस ने किसी ज़िम्मी (इस्लामी राज्य में ग़ैर मुस्लिम नागरिक) को तकलीफ़ (कष्ट) पहुंचाई इस ने मुझे तकलीफ़ दी और जिस ने मुझे तकलीफ़ दी इस ने अल्लाह को तकलीफ़ दी !
🔹 सुनन अबू दाऊद में सफ़वान बिन सुलेम ने कई सहाबा के बेटो से यह रिवायत किया है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:
(ألَا مَن ظلَم مُعاهَدًا أو انتقَصه أو كلَّفه فوق طاقتِهِ أو أخَذ منه شيئًا بغَيرِ طِيبِ نَفْسٍ، فأنا حَجيجُهُ يومَ القِيامةِ) (ابو داؤد حدیث:3052)
तर्जुमा: ख़बर-दार जिस किसी ने किसी 'अहद (शपथ) वाले (ज़िम्मी) (इस्लामी राज्य में गैर मुस्लिम नागरिक) पर ज़ुल्म (अन्याय) किया या उस की तन्क़ीस की (या'नी (अर्थात) इस के हक़ में कमी की) या उस की ताक़त से बढ़ कर उसे किसी काम की ज़िम्मादारी दी या उस की दिली (हार्दिक) रज़ामंदी (सहमति) के बग़ैर (बिना) कोई चीज़ (वस्तु) ली तो क़यामत (प्रलय) के रोज़ (दिन) में उस की तरफ़ से झगड़ा करुंगा
(अबू दाऊद हदीष:3052)
🔹 सहीह बुखारी में अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हुमा की रिवायत है कि नबी करीम ﷺ ने इरशाद फ़रमाया:
(مَن قَتَلَ مُعاهَدًا لَمْ يَرِحْ رائِحَةَ الجَنَّةِ، وإنَّ رِيحَها تُوجَدُ مِن مَسِيرَةِ أرْبَعِينَ عامًا) (بخاری حدیث:3166)
तर्जुमा: जिस ने किसी मु'आहिद (ग़ैर-मुस्लिम) को क़त्ल (हत्या) किया वो जन्नत (स्वर्ग) की बू (सुगंध) तक नही पाएगा जब कि उस की बू (सुगंध) चालीस साल की मसाफ़त (दूरी) के बराबर की दूरी से महसूस (प्रतीत) की जाती हैं
(बुखारी हदीष नंबर:3166)
🔹 साथियों क्या इस बात पर विचार नहीं होना चाहिए कि अत्याचार और हिंसा के ख़िलाफ़ (विरोध) जो धर्म इतनी सख़्ती (कठोरता) से निपट सकता हैं क्या वो आतंक का सहयोग कर सकता है ? जिस धर्म में फ़सादियों (झगड़ालू) ज़ालिमों और किसी भी देश की शांति को ख़राब करने वालों की इतनी ख़तरनाक (भयंकर) सज़ा हो सकती हैं वो धर्म ख़ुद (स्वयं) कैसे ऐसे ग़लत कामों की हिमायत (समर्थन) करेगा ? आतंक और दहशत-गर्दी (आतंकवाद) पुरी दुनिया का विषय है इस पर बाते हो रही हैं इस के ख़िलाफ़ (विरूद्ध) क़ानून बनाए जा रहे हैं सज़ाएँ तय की जा रही हैं लेकिन इस्लाम को देखें कि इस ने आतंकियों के लिए बहुत पहले ही सज़ा मुक़र्रर (नियुक्त) कर दी है सबसे पहले जिस धर्म में आतंकियों और दहशत-गर्दो (आतंकवादियों) के ख़िलाफ़ (विरूद्ध) सज़ा मुक़र्रर (नियुक्त) की गई हैं वो इस्लाम ही है जिसे मोहब्बत और अपनाइयत (भाई-चारा) के साथ पढ़ने और क़रीब (निकट) करने की जरूरत है
इस्लाम से नफ़रत करने वाले और उस के ख़िलाफ़ (विरूद्ध) प्रोपेगंडा करने वाले न पहले कामयाब हुए हैं और न आइंदा (भविष्य में) होंगे इस्लाम तो ख़ुद (स्वयं) शांति और मोहब्बत वाला धर्म हैं वो अपने मानने वालों को दहशत-गर्दी और आतंक की ता'लीम (शिक्षा) कभी नही दे सकता एक सच्चा मुसलमान कभी आतंकी और दहशत-गर्द (आतंकवादी) हो ही नही सकता और जो ऐसा करता है वो मुसलमान नही हो सकता
और सच्चाई यह भी है कि आतंक का कोई धर्म नही और दीन-ए-इस्लाम ऐसे तमाम (समस्त) इल्ज़ामों का खंडन करता हैं जिस का इस्लाम से कोई सरोकार (संबंध) नहीं !
🔹 अल्लाह हमें मज़हब-ए-इस्लाम को इस की ख़ूबियों के साथ समझने की तौफ़ीक़ (शक्ति) अता फ़रमाए !
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