🔹शैख़ मोहम्मद बिन अब्दुल वहाब रहिमहुल्लाह ने कहा:
जो शख़्स शरी'अत-ए-मुहम्मदिय्या में से किसी भी एक हुक्म या उसके सवाब ओ 'इताब का मज़ाक उड़ाए तो वो भी ब-इजमा' ए उम्मत काफ़िर क़रार पाएगा जैसा कि फ़रमान ए इलाही हैं: (قُلْ أَبِاللَّهِ وَآيَاتِهِ وَرَسُولِهِ كُنتُمْ تَسْتَهْزِؤُونَ * لاَ تَعْتَذِرُواْ قَدْ كَفَرْتُم بَعْدَ إِيمَانِكُمْ)
तर्जुमा: कह दीजिए क्या तुम अल्लाह उस की आयतों और उसके रसूल के साथ मज़ाक किया करते थे ? तुम बहाने न बनाओं बिला-शुब्हा (यक़ीनन) तुम ईमान के बा'द काफ़िर हो गए (सूरा अत्-तौबा:66)
शरह:
नबी-ए-अकरम ﷺ की लाई हुई शरी'अत में से किसी भी हुक्म के ज़ाहिर (स्पष्ट) और मा'लूम होने के बा'द (उपरांत) उसका मज़ाक उड़ाना इस्तेहज़ा (खिल्ली) करना और उसे हक़ीर (मामूली) समझना कुफ़्र अकबर हैं
चुनांचे (इसलिए) अगर कोई क़ुरआन का मज़ाक उड़ाए दीन-ए-इस्लाम के किसी हुक्म का मज़ाक उड़ाए या'नी (अर्थात) नबी-ए-अकरम ﷺ का मज़ाक उड़ाए या आप ﷺ के किसी सिफ़त का मज़ाक़ उड़ाए जैसे कोई घनी दाढ़ी का मज़ाक़ उड़ाए और उसे पता हो कि नबी-ए-अकरम ﷺ की दाढ़ी घनी थी या कोई दाढ़ी को गंदगी कहे उसे तहज़ीब (सभ्यता) के ख़िलाफ़ बताएं तो यह सब कुफ़्र अकबर होगा जो दाइरा ए इस्लाम से ख़ारिज (बाहर) कर देता है
इसी तरह जन्नत,दोज़ख़, जन्नत की ने'मतो और दोज़ख़ के 'अज़ाब का मज़ाक़ उड़ाए तो यह भी कुफ़्र हैं यह सब कुफ़्रिया बातें ऐसे दिल से नहीं निकल सकती जो अल्लाह उसके रसूल और उसके दीन की ता'ज़ीम (एहतिराम) करने वाला हो यह मुनाफ़िक़ों का कुफ्र है इरशाद-ए-बारी-त'आला है:
(يَحْذَرُ الْمُنَافِقُونَ أَنْ تُنَزَّلَ عَلَيْهِمْ سُورَةٌ تُنَبِّئُهُمْ بِمَا فِي قُلُوبِهِمْ قُلِ اسْتَهْزِئُوا إِنَّ اللَّهَ مُخْرِجٌ مَا تَحْذَرُونَ)
तर्जुमा: मुनाफ़िक़ डरते हैं कि उन पर कोई ऐसी सूरत उतारी जाएं जो उनहें वो बातें बता दें जो उनके दिलों में हैं कह दे तुम मज़ाक़ उड़ाओ बेशक अल्लाह उन बातों को निकाल ज़ाहिर (स्पष्ट) करने वाला है जिनसे तुम डरते हो
( सूरा अत्-तौबा :64)
मज़ीद अल्लाह-त'आला ने मुनाफ़िक़ों को EXPOSE करते हुए कहा:
(وَلَئِنْ سَأَلْتَهُمْ لَيَقُولُنَّ إِنَّمَا كُنَّا نَخُوضُ وَنَلْعَبُ قُلْ أَبِاللَّهِ وَآيَاتِهِ وَرَسُولِهِ كُنْتُمْ تَسْتَهْزِئُونَ[65] لَا تَعْتَذِرُوا قَدْ كَفَرْتُمْ بَعْدَ إِيمَانِكُمْ إِنْ نَعْفُ عَنْ طَائِفَةٍ مِنْكُمْ نُعَذِّبْ طَائِفَةً بِأَنَّهُمْ كَانُوا مُجْرِمِينَ)
तर्जुमा: और बिला-शुब्हा (यक़ीनन) अगर तूँ उन से पूछे तो जरूर ही कहें गे हम तो सिर्फ़ शग़्ल की बात कर रहे थे और दिल-लगी कर रहे थे कह दे क्या तुम अल्लाह और उसकी आयात और उसके रसूल ही के साथ मज़ाक़ कर रहे थे ? [65]
बहाने मत बनाओ बेशक तुम ने अपने ईमान के बा'द कुफ़्र किया अगर हम तुम मे से एक गिरोह को मु'आफ़ कर दे तो एक गिरोह को 'अज़ाब देंगे इस वजह से कि यक़ीनन वो मुजरिम थे [66]
(सूरा अत्-तौबा:65:66)
इन आयात के शान-ए-नुज़ूल में बयान किया जाता हैं कि तबूक जाते हुए नबी करीम ﷺ के साथ मुनाफ़िक़ों का एक गिरोह भी था जिनमें
एक मुनाफ़िक़ कह रहा था कि हमारे यह क़ुरआन-ख़्वाँ (क़ुरआन पढ़ने वाले) लोग बड़े पेटू और बड़े फ़ुज़ूल और बड़े बुज़दिल है नबी करीम ﷺ के पास जब इस का ज़िक्र हुआ तो यह 'उज़्र (बहाना) पेश करता हुआ आया कि या रसूलुल्लाह ﷺ हम तो यूहीं वक़्त-गुज़ारी के लिए हँस-बोल रहे थे आप ﷺ ने फ़रमाया: हाँ (अच्छा) तुम्हारे हँसी के लिए अल्लाह-त'आला व रसूल ﷺ और क़ुरआन ही रह गया है याद रखो अगर किसी को हम मु'आफ़ कर देंगे तो किसी को सख़्त सज़ा भी करेंगे
उस वक़्त नबी करीम ﷺ अपनी ऊँटनी पर सवार जा रहें थे यह मुनाफ़िक़ आप ﷺ की तलवार पर हाथ रखे पत्थरों से ठोकरें खाता हुआ यह कहता हुआ साथ जा रहा था आप ﷺ उस की तरफ़ देखते भी न थे जिस मुसलमान ने उस का यह क़ौल सुना था उसने उसी वक़्त ज़वाब भी दिया था कि तू बकता है झूठा है तू मुनाफ़िक़ हैं यह वाक़ि'आ (घटना) जंग-ए-तबूक के मौक़े का हैं मस्जिद में इस ने यह ज़िक्र किया था
(تفسیر ابن جریر الطبری:۱۱/ ۵۴۵)
शैख़ मुक़बिल बिन हादी अल वादी रहिमहुल्लाह ने इस वाक़िए को तफ़्सील के साथ अपनी किताब
" الصحیح المسند من اسباب النزول"
के अंदर ज़िक्र किया है मज़ीद इरशाद ए बारी-त'आला है:
(وَمَا نُرْسِلُ الْمُرْسَلِينَ إِلَّا مُبَشِّرِينَ وَمُنْذِرِينَ وَيُجَادِلُ الَّذِينَ كَفَرُوا بِالْبَاطِلِ لِيُدْحِضُوا بِهِ الْحَقَّ وَاتَّخَذُوا آيَاتِي وَمَا أُنْذِرُوا هُزُوًا)
तर्जुमा: और हम रसूलों को नही भेजते मगर ख़ुशख़बरी देने वाले और डराने वाले और वो लोग जिन्होंने कुफ़्र किया बातिल को लेकर झगड़ा करते हैं ताकि उसके साथ हक़ को फुसला दे और उन्होंने मेरी आयात को और उन चीज़ों को जिनसे उन्हें डराया गया मज़ाक़ बना लिया (सूरा अल्-कह्फ़:56)
यह कुफ़्फ़ार के कुफ्र की वजह बताई गई है कि वो अल्लाह की आयतों का मज़ाक़ उड़ाते थे नबी-ए-अकरम ﷺ की लाई हुई शरी'अत का इस्तेहज़ा (मज़ाक़) करते थे जो इस बात की वाज़ेह दलील है कि अगर कोई दीन के किसी भी हुक्म का मज़ाक़ उड़ाएगा तो वो दाइरा इस्लाम से ख़ारिज (बाहर) हो जाएगा या उसका निफ़ाक़ वाज़ेह (स्पष्ट) हो जाएगा यह हुक्म इस वक़्त होगा जब कोई दीन का या दीनी शि'आर (निशान) का मज़ाक़ दीन की ख़ातिर उड़ाएगा लेकिन जहाँ तक अफ़राद का त'अल्लुक़ (सम्बन्ध) हैं तो यह फ़िस्क़-ओ-फ़ुजूर (बदचलनी) में शुमार होगा जैसा कि हदीष के अंदर वारिद हुआ है:
عَنْ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ مَسْعُودٍ ، قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: " سِبَابُ الْمُسْلِمِ فُسُوقٌ، وَقِتَالُهُ كُفْرٌ "
तर्जुमा: सय्यदना अब्दुल्लाह बिन मस'ऊद रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है: रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: मुसलमान को गाली देना
(या उसका 'ऐब बयान करना)
फ़िस्क़ हैं (या'नी गुनाह है और ऐसा करने वाला फ़ासिक़ (गुनाहगार) हो जाता हैं) और उससे लड़ना कुफ्र है
(सहीह मुस्लिम:64)
जैसे कि कोई किसी की दाढ़ी से मज़ाक़ उड़ाए उसके दाढ़ी रखने की वजह से जबकि इसे मा'लूम है कि इस का हुक्म शरी'अत से साबित है लेकिन फिर भी वो दाढ़ी का मज़ाक़ उड़ाता है तो यह कुफ्र हैं
लेकिन अगर कोई किसी की दाढ़ी से मज़ाक़ उड़ाए दाढ़ी रखने की वजह से नहीं बल्कि (किंतु) किसी दूसरी ख़ास सिफ़त की वजह से तो यह कुफ़्र तो नहीं होगा मगर फ़िस्क़-ओ-फ़ुजूर में शुमार जरुर होगा
🖌...डॉ: अजमल मंजूर मदनी
हिंदी अनुवाद: अब्दुल मतीन सैयद
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