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धीमा ज़हर

    धीमा ज़हर

लेखक: शैख़ अस'अद आज़मी

हिंदी अनुवाद: अब्दुल मतीन सैयद
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प्यारे भाईयों

रोज़-मर्रा की ज़िंदगी में यह देखा जाता है कि आदमी खाने पीने की जो चीज़ इस्ते'माल करता है इस के त'अल्लुक़ से यह कोशिश करता है कि वह साफ़-सुथरी हो गंदी न हो फ़ाइदे-मंद हो नुक़सान-देह न हो किसी भी खाने या पीने वालीं चीज़ के बारे में मा'लूम हो जाए कि इस से जिस्म (शरीर) को कोई नुक़्सान पहुंचता है या इस से फ़ुलाँ-फ़ुलाँ बीमारी होती है तो ऐसी चीज़ ख़रीदना और इस्ते'माल करना क़त'अन (हरगिज़) गवारा नहीं करेगा 
लेकिन तम्बाकू से बनी हुई चीज़े जिन के बारे में पूरी दुनिया और डॉक्टर व साइंस-दाँ यह मान चुके हैं कि इन का इस्ते'माल सेहत के लिए इंतिहाई (बहुत) ख़तरनाक है इन से मोहलिक (घातक) व ख़तरनाक बिमारियां जन्म लेती है फिर भी बा'ज लोग इन पर पैसा ख़र्च करते हैं इन को ख़रीदते और शौक़ से खाते हैं अगर किसी को इन चीजों के नुक़सान-देह होने के बारे में शुब्हा (शक) होतो तंबाकू मस्नू'आत (products) की किसी भी पैकेट या डब्बा को उठाकर देख सकता है सब पर वाज़ेह (स्पष्ट) हुरूफ़ (अक्षर) में और मुख़्तलिफ़ (अलग-अलग) ज़बानों में यह 'इबारत लिखी होती है कि 
" तंबाकू से कैंसर होता है "
" Tobacco Causes Cancer "

*नुक़्सानात*

 तम्बाकू-नोशी (smoking) और तम्बाकू-ख़ोरी से एक दो बिमारियां पैदा नहीं होती इस से कैंसर जैसा ख़तरनाक मरज़ (रोग) लाहिक़ होता है जो ज़बान, फेफड़ा,गला और दीगर (अन्य) आ'ज़ा (अंग) में फैल कर आदमी को सख़्त अज़िय्यत (तकलीफ़) में मुब्तला करता है और बिल-आख़िर (अंत में) वो मौत के मुंह में जा पहुंचता है इस तरह के मुत'अद्दिद (अनेक) वाक़ि'आत (घटनाएं) सामने आते रहते हैं 
तंबाकू मस्नू'आत (products) से कैंसर के 'अलावा टीबी,दमा (साँस का रोग) सर-दर्द, बे-ख़्वाबी (नींद न आना) दीवानगी (पागलपन) ज़ो'फ़-ए-आ'साब (शरीर के पट्ठो की कमज़ोरी) फ़ालिज (लक़्वा) ज़ो'फ़-ए-बसारत (आँखों की रौशनी कम होना) खाँसी सल (बेचैनी) इख़्तिलाज (दिल घबराना) और ज़ो'फ़-ए-बाह वग़ैरा अमराज़ (बहुत से रोग) पैदा होते है इन अश्या (चीजें) की ख़तरनाकी का अंदाज़ा इस से लगाया जा सकता है कि 'आलमी इदारा (इंटरनेशनल संस्था) सेहत (health) " वर्ल्ड-हेल्थ आर्गनाइजेशन " (W.H.O) के मुताबिक़ (अनुसार) तक़रीबन (लगभग) (60) लाख अफ़राद (आदमी) हर साल सिर्फ़ तम्बाकू-नोशी (smoking) की वजह से मौत का शिकार होते है
इक़्तिसादी (आर्थिक) लिहाज़ से देखा जाए तो एक मुहतात अंदाज़ के मुताबिक़ (अनुसार) सिगरेट पीने वाला अपनी 'उम्र-भर में पांच लाख से ज़ाइद (अधिक) रूपये तक सिर्फ़ इस नुक़सान-देह काम में ख़र्च कर देता है और तक़रीबन (लगभग) यही हाल पान,पान मसाला खैनी (चूने के साथ खाई जाने वाली तंबाकू या सूरती) ज़र्दा, गुटका वग़ैरा इस्ते'माल करने वालों का भी है

*प्यारे भाईयों* 

दर-हक़ीक़त (हक़ीक़त में) यह तमाम चीजें " धीमा ज़हर " है जिन से आदमी घुट घुट कर मरता है 'आम जहर खाने वाला तो फ़ौरन (तुरंत) अपनी जान से हाथ धो लेता है मगर इस धीमे ज़हर का 'आदी शख़्स बड़े ख़तरनाक और 'इबरत-आमोज़ मरहलो से गुज़रता है क्या इन तमाम हक़ाइक़ (सच्चाई) को जानने के बावुजूद आप अब भी अपनी सेहत और अपने मुस्तक़बिल (future) के बारे में कुछ सोचने के लिए तैयार है या नहीं ?

*बेहतरीन मौक़ा'*

रमज़ान-उल-मुबारक में रोज़ा की हालत में आप रोज़ाना (हर रोज़) 14-15 घंटे इन चीजों से अपने आप को रोके रखते है यह बेहतरीन मौक़ा' है कि बक़िया औक़ात (समय) में भी इस " धीमे ज़हर " से आप ख़ुद को रोकने की कोशिश करें मरहला-दार कोशिश करे धीरे-धीरे ता'दाद (संख्या) कम करते रहे और रमज़ान के इख़्तिताम (समापन) से पहले इस ला'नत से छुटकारा हासिल कर लेने का 'अज़्म-ए-मुसम्मम (पक्का इरादा) करें 'अज़्म (इरादा) करे पुख़्ता 'अज़्म (इरादा) करे ख़ुद को भी बचाएं अपने दोस्तों को भी बचाएं और हर उस शख़्स को बचाए जो इस ला'नत का शिकार है 

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