_*🔮 अहले हदीस कौन हैं*_
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_*✅ जवाब :* दुनिया के तमाम मुसलमान जो क़ुरआन व हदीस को मानते हैं , और क़ुरआन व हदीस की तसदीक़ करते हैं ,और क़ुरआन व हदीस पर अमल भी करते हैं वह सभी *अहले हदीस हैं , इमान वालें हैं .*_
_*🌐 इमान क्या है ? :* इमान ज़बान से इक़रार , दील से तसदीक़ और आज़ा' से अमल करने का नाम है ,(और इमान में कमी-बेशी होती है )_
_الإيمان قول باللسان وتصديق بالقلب وعمل بالجوارح ( وأنه يزيد وينقص.)_
_✔ और यही मज़हब इमाम मालिक व इमाम शाफई व इमाम अहमद व औज़ाई व इस्हाक़ बिन राहुया रहमहुमुल्लाहु तआला अजमईन का और तमाम अहले हदीस का , और अहले मदीना का , और अहले ज़ाहिर का , और मुतकल्लिमीन में से एक जमाअत का है कि (इमान ) दील से तसदीक़ , ज़बान से इक़रार और आज़ा' से अमल का नाम है ._
_وذهب مالك والشافعي وأحمد والأوزاعي وإسحاق بن راهويه وسائر أهل الحديث، وأهل المدينة وأهل الظاهر وجماعة من المتكلمين: إلى أنه تصديق بالْجَنان، وإقرار باللسان، وعمل بالأركان؛ انتهى._
_✔और क़ुरआन पर इमान लाना भी इमान में से है._
_*👇🏻देखिए ,*_
_وَ الَّذِیۡنَ یُؤۡمِنُوۡنَ بِمَاۤ اُنۡزِلَ اِلَیۡکَ_
_*📚 सूरह बक़रा : 4*_
_✔ और आप ﷺ की तरफ क़ुरआन से साथ-साथ हदीस भी नाज़ील हुई है ._
_*👇🏻देखिए ,*_
_الا إني أُوتيتُ الكتاب و مثله معه_
_*📚 सुनन अबु दाऊद : 4604*_
_और_
_یا ایھا الناس انی ترکت فیکم ما ان اعتصمتم بہ فلن تضلوا ابداً کتاب اللہ وسنة لنبیہ‘‘_
_*📚 मुस्तद्रक हाकिम : 1/217*_
_🏷 मो'तमिर बिन सुलेमान रह. (106-187 हिजरी ) फरमाते हैं कि मैं ने अपने वालिद सुलेमान बिन तुर्ख़ान रह. (म 143 हिजरी ) को फरमाते हुए सुना : नबी ﷺ की आहदीस हमारे नज़दीक क़ुरआन मजीद की तरह हैं ,.. अबु मुसा (र ) फरमाते हैं : “यानी अमल के ऐतेबार से जिस तरह अल्लाह के कलाम ( क़रआन मजीद ) पर अमल किया जाता है वैसे ही रसूल ﷺ की सुन्नत पर भी अमल किया जाये ”._
_قال المعتمر بن سلیمان سمعت ابی یقول: احادیث النبی عندنا کال تنذیل: قالو ابو موسیٰ: یعنی فی الاستعمال یستعمل سنة رسول اللہ ﷺ کما یستعمل کلام اللہ عزوجل۔_
_*📚 ज़म्मुल-कलाम : 2/157*_
_🏷 जो शख़्स को नबी ﷺ की सहीह हदीस मालूम हो जाने के बाद या नबी ﷺ जो लाये हैं उस पर मोमिनीन का इजमा' होने के बाद उस का इनकार करे वह काफीर है ._
_وکل من کفر بما بلغہ وصح عندہ عن النبی ﷺ او اجمع علیہ المومنون مما جاء بہ النبی ﷺ فھو کافر_
_*📚 अल-मुहल्ला ले बिन हज़्म जिल्द :1 , मसला नं. 20*_
_🏷 मुल्ला अली क़ारी हनफी रह.फरमाते हैं : “मुंछो का काटना और साफ करना अम्बियां अलैहि व सलाम की सुन्नतों में से है , सो इस को बुरा समझना बिल-इत्तिफाक़े उलमा' कुफर है ”._
_*📚 शरह फिक़्हुल अकबर : 213*_
_🏷 नबी ﷺ ने फरमाया : छे (6) ऐसे लोग है जिन पर मैंने और अल्लाह तआला ने लानत फरमाई (उन में से एक ) मेरी सुन्नत को छोड़ने वाला है ._
_ستة لعنتھم ولعنھم اللہ وکل نبی مجاب : ( والتارک لسنتی)_
_*📚 सहीह इब्न हिब्बान मा' इब्न बिलबान : 13/60 ; हाकिम : 1/31* (अलबानी : हसन )_
_*🏷 अल्लाह के रसूल ﷺ ने फरमाया :* खबरदार! जिस ने मेरी सुन्नत से ऐराज़ किया वह हम में नहीं है।_
_. فمن رغب عن سُنَّتي فليس مِنِّي " ._
_*📚सहीह मुस्लिम : 1401*_
_🏷 *अल्लाह तआला फरमाता है :* “सो क़सम है तेरे रब की यह मोमिन ( इमान वाले ) नहीं हो सकते जब तक कि तमाम आपस के इख़तिलाफ में आप को हाकिम ना मान ले और जो फैसला आप इन में कर दें उन से अपने दिल में किसी तरह तनगी और ना ख़ुशी ना पायें और फरमाबरदारी के साथ ( हुकमे रसूल ﷺ को ) क़ुबूल कर लें ”._
_﴿فَلَا وَرَبِّكَ لَا يُؤْمِنُوْنَ حَتّٰي يُحَكِّمُوْكَ فِيْمَا شَجَــرَ بَيْنَھُمْ ثُمَّ لَا يَجِدُوْا فِيْٓ اَنْفُسِهِمْ حَرَجًا مِّمَّا قَضَيْتَ وَيُسَلِّمُوْا تَسْلِــيْمًا 65﴾ (النساء: ۴/۶۵)_
_*📚 सूरह निसा : 65*_
_*✅ नोट :* मालूम हुआ क़ुरआन और हदीस पर इमान लाना फर्ज़ है , और इस की दील से तसदीक़ और इस के मुताबिक अमल करना भी ._
_*🉑 क़ुरआन व हदीस को मानने वाला , उसकी तसदीक़ करने वाला और उस पर अमल करने वाला :*_
_✅ दुनिया के तमाम मुसलमान जो क़ुरआन व हदीस को मानते हैं , और क़ुरआन व हदीस की तसदीक़ करते हैं ,और क़ुरआन व हदीस पर अमल भी करते हैं वह सभी *अहले हदीस हैं , इमान वालें हैं .*_
_*🉑 क़ुरआन व हदीस को ना मानने वाला बिल-इत्तिफ़ाक़ काफ़िर हैं , और इन में से किसी एक को ना मानने वाला भी काफ़िर है .*_
_🏷 रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “सब लोग जन्नत में जाएगे सिवाय उनके जीस ने इनकार किया ” सहाबा किराम रज़ी. ने अर्ज़ किया या रसूलुल्लाह! इनकार कौन करेगा ? फरमाया : “जो मेरी इताअत करेगा वह जन्नत में दाख़िल होगा और जो मेरी नाफरमानी करेगा उसने (उसने जन्नत में जाने से ) इन्कार किया ”._
_📚 *सहीह-बुखारी -7280*_
_*🉑 क़ुरआन व हदीस को तो माने , लेकिन उसकी तसदीक़ ना करे (यानी : दील में ना ख़ुशी और तनगी रखे ) और अलम करने के तालूक़ से (मजबूरन ) उस पर अमल करे :*_
_✅ इस पर अल्लाह तआला का वाज़ेह फरमान है कि ऐसा शख़्स मोमिन है ही नहीं..... और हदीसों के ज़रिए हमें मुनाफिक़ों के बारे में भी ख़बर मिल चुकी है कि वह सहाबा किराम रज़ी. के साथ-साथ अल्लाह की वाहदनियत और रसूल ﷺ की नबुवत की गवाही भी देते थे , और सहाबा किराम रज़ी. के साथ-साथ अमल भी करते थे , मगर दिल में नाख़ुशी और तनगी रखते हुए और दील से तसदिक़ नहीं करते थे, जबकि सहाबा किराम रज़ी. ख़ुश-दिली से तसदिक़ भी करते थे और अमल भी करते थे._
_*🉑 क़ुरआन व हदीस को मानने वाला , उसकी तसदीक़ करने वाला लेकिन उस पर अमल नहीं करने वाला :*_
_✅ और जो कोई क़ुरआन व हदीस को तो माने और तसदीक़ भी करे लेकिन अमल नहीं करे , वह अहले हदीस है ही नहीं , क्योंकि वह “सुन्नत के छोड़ने की वजह से लानती है ” , और “वह मिल्लत में से भी बेदखल है ”._
_*🌐 हासिल :* उन लोगों को ग़ौर व फिक्र करना चाहिए जो अपने आप को किसी मसलक व इमाम की तरफ मनसूब करते हैं और उनकी ख़ता ( गलती ) पर भी जानते बूझते अमल करते हैं जबकि वह फरमान-ए-इलाही और फरमान-ए-मुसतफा ﷺ के सरीह ख़िलाफ़ है ._
_*👉🏻 वाज़ेह रहे कि हर इमाम ने इस बात से पहले ही आगाह कर दिया है कि अगर हमारी राय / बात क़ुरआन व हदीस से टकराये तो हमारी राये / बात को छोड़ दो और क़ुरआन व हदीस को ले लो.*_
_👇🏻लेकिन उसके बाद भी तक़लिदी फिरक़ो ने अपने मसलक को बचाने में अपने इमामों की बात को क़ुरआन और हदीस पर तरजीह दी है._
_*👇🏻देखिए तक़लिद का अंजाम :*_
_🌍 1 - हर वह आयत जो हमारे अस्हाब (फ़ुकहा-ए-हनफीया ) के क़ौल के खिलाफ होगी उसे या तो मनसूख (अल्लाह का वह फरमान जो कुरआन में हो मगर उसका हुकुम अब बाकी ना रहा हो , ऐसा ) समझा जायेगा, या तरजीह पर महमूल किया जाएगा । और ऊला (सब से अच्छा ) ये कि उस आयत की तावील (अर्थ /तात्पर्य /मतलब को बदल देना ) करके उसे अपने फ़ुक़्हा के क़ौल के मुआफीक़ (उस के तहत ) कर लिया जाये ।_
📚 *_[उसुले करख़ी ,पेज-12 (इमाम अबुल-हसन करख़ी , 340 हीजरी.)]_*
_🌍 2 - महमूद अल-हसन देवबन्दी फरमाते है कि, हक़ और इन्साफ ये है कि खयारे मजलीस के मसले में (फ़ीक्ह के क़ानून /उसूल में ) इमाम शाफ़ई (र.ह ) को तरजीह ( फज़ीलत ) हासिल है, लेकिन हम मुक़ल्लीद है, हम पर इमाम अबु हनीफा (र.ह ) की तक़लीद वाजीब है।_
📚 *_( तकरीर-ए-त्रीमेज़ी, हिस्सा-2, पेज-49 )_*
_🌍 3 - मुफती तक़ी उस़मानी देवबन्दी लीखते है कि, "बल्कि ऐसे व्यक्ति को अगर इत्तेफाकन कोई हदीस ऐसी नजर आ जाय जो उसके इमाम-ए-मुजतहीद के मसलक के खिलाफ हो, तब भी उस का फर्ज़ यही है कि वह अपने इमाम व मुजतहीद के मसलक पर अमल करें ।_
📚 *_( तक़लीद की शरई हैसीयत, पेज-87 )_*
_*👇🏻जबकि.......*_
_🏷 रसूल ﷺ ने फरमाया : “ ख़ालिक़ की नाफरमानी में किसी मख़लूक की कोई फरमाबरदारी नहीं , और फरमाबरदारी सिर्फ नेक कामो (यानी : अल्लाह और उसके रसूल ﷺ के फरमान ) में है , ”._
_لا طاعة لمخلوق في معصية الخالق، انماالطاعة في المعروف_
_*📚 सहीह मुस्लिम : 1840*_
_🏐 और अहले हदीस का मसलक क़ुरआन व हदीस ते तहत अमल करना है और अहले हदीस के इमाम *इमामुल अम्बियां हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम* हैं._
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_✨हर इबतिदा से पहले, हर इनतिहा के बाद ,_
_ज़ात-ए-नबी बुलंद है ज़ात-ए-ख़ुदा के बाद......_
_✨दुनिया में क़ाबिल-ए-अहतेराम हैं जितने लोग,_
_मैं सब को मानता हूं मगर मुसतफा (ﷺ ) के बाद_
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