DAYYUS KON

दय्यूस यानि औरतों का दलाल

औरत की दलाली सिर्फ यही नहीं है कि कोठों पर बैठने वाली औरतों की दलाली की जाये बल्कि औरत का दलाल वो भी है जिसे आज कल बड़ी आसानी से देखा जा सकता है कि अपनी बीवी बहन और घर की औरतों को सजा संवारकर बाज़ार में होटलों में पार्कों में दावतों में बे-पर्दा लेकर लोग घूम रहे हैं ताकि गैर मर्द उनकी औरतों की खूबसूरती देखें और तारीफ करें

गर ये औरत की दलाली नहीं है तो फिर औरत की दलाली किसे कहते हैं ?

क्यों कि यही काम तो वो दलाल भी करते हैं बस फर्क इतना होता है कि वहां मर्दों को औरत के पास भेजा भी जाता है और यहां ये मॉडर्न दलाल अपनी घर की औरतों को ग़ैरों के पास भेजते नहीं बल्कि उनको सिर्फ दिखाकर ही तसल्ली करा देते हैं

बात कड़वी ज़रूर है मगर सच्ची है

ऐसे मर्द और ऐसी औरतें सिर्फ और सिर्फ दुनिया में लाअनत के और आखिरत में जहन्नम के हक़दार हैं

कुछ हदीस की किताबों से बेपर्दगी के ऊपर पेश करता हूं अगर ऐसे मर्दों में ग़ैरत अब तक ज़िंदा हो तो अमल करें वरना अगर ग़ैरत मर चुकी है तब तो वो खुद ही मुर्दा हैं और मुर्दे से अमल की क्या उम्मीद रखी जाये

जो गैर औरत और मर्द एक दूसरे को देखें तो दोनों पर अल्लाह की लाअनत है
📕 मिश्कात,सफह 270

पारसा औरतों का बाज़ारू औरतों से भी पर्दा करना वाजिब है
क्यों कि वो उसका हुलिया ज़रूर ज़रूर मर्दों में बतायेंगी लिहाज़ा उनसे भी पर्दा करने का हुक्म है
📕 अबु दाऊद,सफह 292

सोचिये जब औरत को औरत से पर्दा करने का हुक्म दिया जा रहा है तो मर्दों से क्या कुछ हुक्म ना होगा और यहां तो हाल ही बुरा है पहले तो औरत पर्दा ही नहीं करना चाहती है और कुछ करती हैं तो अल्लाह की पनाह कि नक़ाब भी वो पहना जाता है कि पूरे जिस्म की बनावट ऊपर से ही मालूम हो जाती है

और नक़ाब भी ऐसा कि कम से कम उन्हें नहीं तो नक़ाब तो लोग देखें ही
और अगर कोई अल्लाह की बन्दी सही पर्दा करना चाहती भी है तो ये मॉडर्न दलाल उसे मॉडर्निटी के नाम पर पर्दा नहीं करने देते

अब दय्यूस का हुक्म सुनिये :

हदीस - हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि दय्यूस जन्नत में नहीं जायेगा
📕 निसाई,जिल्द 1, सफह 327

बाज़ औरतें गैर मर्दों से चूड़ियां पहनती हैं मेंहदी लगवाती हैं ये हराम हराम हराम है गैर को हाथ दिखाना हराम उस के हाथ में हाथ देना हराम
और घर के जो मर्द इस पर राज़ी हों तो वो दय्यूस हैं यानि औरतों के दलाल हैं

याद रखें कि घर का मुखिया यानि हाकिम यानि सरदार अगरचे खुद नेक भी हो तब भी क़यामत के दिन उस वक़्त तक छुटकारा नहीं मिलेगा जब तक कि अपने पूरे परिवार की ज़िम्मेदारी का हिसाब ना दे दे कि सबको इस्लामी तहज़ीब और अमल की दावत देता था या नहीं तो जब नेको-कार का हाल ये होगा तो जो खुद भी बुरे हों और अपने घर वालों से बुराई दूर भी ना करते हों तो वो किस तरह वहां निजात पायेंगे

लिहाज़ा अपने हाल पर रहम खायें और मुसलमान हैं तो मुसलमान जैसा अमल करें ग़ैरों की तरह नहीं

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