ASSALAMUALAIKUM
NAITIK MULY (AKHLAQI KADRE)
नैतिक मूल्य (अखलाकी कद्रें)
नेकी यह नहीं है कि तुमने अपने चेहरे पूरब की तरफ कर लिए या पश्चिम की तरफ, बल्कि नेकी यह है कि आदमी अल्लाह को और अन्तिम दिन (कयामत) और फरिश्तों को और अल्लाह की उतारी हुई किताब और उसके पैगम्बरों को दिल से माने, और अल्लाह की मोहब्बत में अपना दिल पसंद माल रिश्तेदारों, और यतीमों (अनाथ) पर, मिस्कीनों और मुसाफिरों पर, मदद के लिए हाथ फैलाने वालों पर, और गुलामों की रिहाई पर खर्च करें। नमाज कायम करें और जकात दें। और नेक वे लोग हैं जब वादा करें उसे निभाएं और तंगी व मुसीबत के समय में और सच और झूठ की लड़ाई में सब्र करें। यह हैं सच्चे लोग और यही अल्लाह से डरने वाले (परहेजगार) हैं।
बकर 2: 177
तुम नेकी को नहीं पहुंच सकते जब तक कि अपनी वह चीजें (अल्लाह की राह में ) खर्च न करो जिन्हें तुम प्यार करते हो और जो कुछ तुम खर्च करोगे अल्लाह उससे बेखबर न होगा।
आले इमरान 3: 92
लोगो! हमने तुमको एक मर्द और एक औरत से पैदा किया है फिर तुम्हारी कौमें और बिरादरियां बना दी ताकि तुम एक दूसरे को पहचानो । हकीकत में अल्लाह के नजदीक तुम में सबसे ज्यादा इज्जत वाला वह है जो तुम्हारे अन्दर सबसे ज्यादा परहेजगार (अल्लाह से डरने वाला) है।
हुजुरात 49: 13
फिर तुम्हारा क्या खयाल है कि बेहतर इंसान वह है जिसने अपनी इमारत (भवन) की बुनियाद (आधार) अल्लाह के डर और उसकी खुशी की चाहत पर रखी हो या जिसने अपनी इमारत की बुनियाद एक घाटी की कोख के किनारे पर उठायी और वह उसे लेकर सीधे जहन्नुम (नर्क) की आग मे जा गिरी ? ऐसे जालिम लोगों को अल्लाह कभी सीधी राह (रास्ता) नहीं दिखाता। यह इमारत जो उन्होंने बनाई है, हमेशा उनके दिलों में बे यकीनी की जड़ बनी रहेगी (जिसके निकलने की अब कोई सूरत नहीं है) इसलिए की उनके दिल ही पारा पारा (टुकड़े, टुकड़े) हो जाएं, और अल्लाह जानने वाला और हकीम व दाना है ।
तौबा 9: 109-110
उस शख्स की बात से अच्छी बात किसकी होगी जिसने अल्लाह की तरफ बुलाया और नेक काम किया और कहा कि मैं मुसलमान हँू । और ऐ नबी (स.अ.व.) नेकी और बदी (बुराई) एक से नहीं है, तुम बदी (बुराई) को उस नेकी से मिटाओ जो बेहतरीन हो, तुम देखोगे तुम्हारे साथ जिसकी दुश्मनी थी वह जिगरी दोस्त बन गया। यह गुण (सिफ्त) नसीब नहीं होता मगर उन लोगों को जो सब्र करते हैं, और यह मुकाम (स्थान) नहीं मिलता मगर उन लोगों को जो बड़े भाग्यशाली होते हैं। और शैतान की तरफ से कोई उकसाहट महसूस करो तो अल्लाह की पनाह माँग लो, वह सब कुछ जानता है ।
हमीम सजदा 41: 33-36
ऐ लोगो ! जो ईमान लाए हो अल्लाह से डरो और सच्चे लोगों का साथ दो ।
तौबा 9: 119
ऐ लोगो जो ईमान ले आए हो इंसाफ का झंडा उठाने वाले और अल्लाह के वास्ते गवाह बनो अगरचे तुम्हारे इंसाफ और तुम्हारी गवाही की चोट खुद तुम्हारे ऊपर या तुम्हारे माता पिता और रिश्तेदारों पर ही क्यों न पड़ती हो। मामला पेश करने वाला (मुद्दई) चाहे मालदार हो या गरीब, अल्लाह तुम से ज्यादा उनका खैरख्वाह है इसलिए अपने मन की पैरवी में इंसाफ से बाज न रहो (यानी इंसाफ पर रहो) अगर तुमने लगी लिपटी बात कही या सच्चाई से पहलू बचाया, तो जान लो जो कुछ तुम करते हो अल्लाह को उसकी खबर है।
निसा 4: 135
अल्लाह अदल (इंसाफ , न्याय) और सिलारहमी (रिश्तेदारों के मामले मे अहसान की खास सूरत जिसमें खुशहाल लोगों की दौलत में औलाद और माँ बाप के अलावा रिश्तेदारों का भी हक है और उनकी मदद देने के आदेश) का हुक्म देता है और बुराई (बदी) और बेशर्मी और जुल्म और ज्यादती से मना करता है। वह तुम्हें नसीहत करता है ताकि तुम सबक लो। अल्लाह के साथ किए गए वादे को पूरा करो जबकि तुमने उससे कोई अहद बांधा हो, और अपनी कसमें पक्की करने के बाद तोड़ न डालो जबकि तुम अल्लाह को गवाह बना चुके हो। अल्लाह तुम्हारे सब कामों की खबर रखता है
नहल 16: 90 - 91
और नाप तोल में इंसाफ करो। जब बात कहो तो इंसाफ की कहो भले मामला रिश्तेदार ही का क्यों न हो ।
अनआम 6: 153
नेक लोग वे हैं जो अहद (वादा, करार) करें तो उसे पूरा करें ।
बनी इस्राईल 17: 34
मुसलमानो। अल्लाह तुम्हें हुक्म देता है कि अमानतें (माल, सामान, स्थान, बातें आदि) अमानत के मालिक को सौंप दो और जब लोगों के दरमियान फैसला करो तो इंसाफ के साथ फैसला करो। अल्लाह तुमको बहुत ही उम्दा नसीहत करता है।
निसा 4: 58
ऐ लोगो जो ईमान लाए हो जब किसी तय मुद्दत (समय) के लिए आपस में कर्ज का लेन देन करो तो उसे लिख लिया करो। दोनों पक्षों के दरमियान एक आदमी इंसाफ के साथ दस्तावेज लिखे, कर्ज लेने वाला लिखवाए। और जिसे अल्लाह ने लिखने पढऩे की काबलियत दी हो उसे लिखने से इंकार नहीं करना चाहिए। वह लिखे और लिखवाए वह आदमी जो उधार ले रहा है। और उसे (लिखने वाले को) अपने रब से डरना चाहिए कि जो मामला तय हुआ हो उसमें कोई कमी बेशी न करे । लेकिन अगर उधार लेने वाला खुद नादान (अज्ञानी) हो या बूढा हो, या लिखवा न सकता हो तो उसका प्रतिनिधि इंसाफ के साथ इमला (दस्तावेज की शर्तें आदि) कराए। फिर अपने मर्दों में से दो गवाह करवालो। हां जो तिजारती लेनदेन आमने-सामने चुका कर आपस में किया जाता हो उसको न लिखा जाए तो कोई हर्ज नहीं।
बकर 2: 282
(मोमिन) अपनी अमानतों (नकद सामान जो किसी के पास हिफाजत के लिए रख दिया हो) और अपने अहद व पैमा (वादे, करार, समझौता) का पास रखते हैं (निभाते हैं) और अपनी नमाजों की मुहाफिजत (निगहबानी यानी नमाज समय पर आदाब व उसके सब भाग लगन के साथ) करते हैं। यही लोग वारिस (उत्तराधिकारी) बनेगें फिरदौस के (स्वर्ग का सबसे अच्छा स्थान) और उसमें हमेशा रहेंगे।
मोमिनून 23: 8-11
हमने अपने रसूलों को साफ साफ निशानियों और हिदायत (मार्गदर्शन) के साथ भेजा और उनके साथ किताब और मिजान (तराजू, नाप तोल और इंसाफ का स्तर, सच और झूठ का वह मियार जो तोल तोल कर बता देता है कि मानव जीवन व्यवस्था इंसाफ पर स्थापित रहे।) उतारा ताकि लोग इंसाफ पर डटे (कायम) रहें ।
हदीद 57: 25
और जब लोगों के बीच में फैसला करो तो इंसाफ के साथ फैसला करो।
निसा 4: 58
और नाप तोल में पूरा इंसाफ करो, हम हर आदमी पर जिम्मेदारी का उतना ही बोझ रखते हैं जितनी उसमें ताकत है, और जब बात कहो तो इंसाफ की कहो भले ही मामला रिश्तेदारों ही का क्यो न हो ।
अनआम 6: 152
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SABAR
सब्र
ऐ लोगो जो ईमान लाए हो सब्र और नमाज से मदद लो, अल्लाह सब्र करने वालों के साथ है। और जो लोग अल्लाह की राह में मारे जाएं उन्हें मुर्दा न कहो, ऐसे लोग तो हकीकत में जिन्दा हैं, लेकिन तुम्हें उनकी जिन्दगी का शऊर (समझ) नहीं होता, और हम जरूर तुम्हें डर और खतरे, भुखमरी, जान व माल के नुकसान, और आमदनियों के घाटे में डालकर तुम्हारी आजमाइश करेंगे। इन हालात में जो लोग सब्र करे और जब कोई मुसीबत पड़े तो कहे 'हम अल्लाह ही के हैं और अल्लाह ही की तरफ पलट कर जाना है।' उन्हें खुशखबरी दे दो उन पर उनके रब की तरफ से बड़ी इनायात (देन, रहमत, इनाम) होगी, उसकी रहमत (मेहरबानी) उन पर साया करेगी और ऐसे ही लोग सच्चे रास्ते (राह ए रास्ते) पर हैं ।
बकर 2: 153-157
तुम इस हिदायत की पैरवी (पालन) किए जाओ जो तुम्हारी तरफ वही के जरिए भेजी जा रही है और सब्र करो यहां तक कि अल्लाह फैसला कर दे, और वही बेहतरीन फैसला करने वाला है।
यूनुस 10: 109
उनका हाल यह होता है कि अपने रब की रजा (खुशी) के लिए सब्र से काम लेते हैं, नमाज कायम करते हैं, हमारे दिए हुए माल में से खुले और छिपे खर्च करतें हैं और बुराई को भलाई से दफा (मिटाना) करते हैं, आखिरत का घर इन्हीं के लिए है।
रअद 13: 22
दीन (धर्म) के मामले मे कोई जोर जबरदस्ती नहीं है। सही बात गलत विचारों से अलग छांट कर रख दी गई है। अब जो कोई तागूत (जो अपने आपको बंदों का मालिक बना दे और अपनी चलाए) का इनकार करके अल्लाह पर ईमान ले आया उसने ऐसा मजबूत सहारा थाम लिया जो कभी टूटने वाला नहीं, और अल्लाह सब कुछ सुनने वाला और जानने वाला है। जो लोग ईमान लाते हैं उनका हामी व मददगार अल्लाह है। और वह उनको अंधेरों में से रोशनी मे निकाल लाता है। और जो लोग कुफ्र (इनकार) की रविश इख्तियार करते हैं उनका हामी व मददगार तागूत है। और वे उन्हें रोशनी से अंधेरों की तरफ खींच ले जाते हैं। ये आग में जाने वाले लोग हैं जहां ये हमेशा रहेंगे।
बकर 2: 256-257
(ऐ मुसलमानो) ये लोग अल्लाह के सिवाय जिनको पुकारते हैं (हाजत रवां के रूप मे) उन्हें गालियां न दो, कहीं ऐसा न हो कि ये शिर्क से आगे बढ़कर जहालत (अज्ञानता) के कारण अल्लाह को गालियां देने लगे ।
अनआम 6: 108
इजाजत दे दी गई उन लोगों को जिनके खिलाफ जंग की जा रही है क्योंकि वे मजलूम (जिन पर जुल्म किया गया) हैं। और अल्लाह निश्चय ही उनकी मदद करने की ताकत रखता है। ये वह लोग हैं जो अपने घरों से नाहक निकाल दिए गए, सिर्फ इस कसूर पर कि वे कहते थे 'हमारा रब एक है' अगर अल्लाह लोगों को एक दूसरे के जरिए हटाता न रहता तो संतों के रहने की जगह (खानागाहें) और गिरजा और पूजाघर (माअबद) और मस्जिदें जिनमें अल्लाह का बहुत बार नाम लिया जाता है सब ढहा दी जाएं। अल्लाह जरूर उनकी मदद करेगा जो उसकी मदद करेंगे।
हज 22: 39-40
और जो कोई बदला ले वैसा ही जैसा उसके साथ किया गया और फिर उस पर ज्यादती भी की गई तो अल्लाह उसकी मदद जरूर करेगा ।
हज 22: 60
न तो अपना हाथ गर्दन से बाँध रखो और न उसे बिलकुल खुला छोड़ दो (सभी कुछ दे डालो) कि मलामत जदा आजिज (बेइज्जत और मोहताज) बन कर रह जाओ ।
बनी इस्राईल 17: 29
जो खर्च करते हैं तो न फिजूल (व्यर्थ) करते हैं न कंजूसी बल्कि उनका खर्च दोनों के बीच पर कायम रहता है।
फुरकान 25: 67
अपनी चाल में सहजता और संतुलन बनाए रख और अपनी आवाज धीमी रख। बेशक सब आवाजों से ज्यादा बुरी आवाज गधों की आवाज होती है।
लुकमान 31: 19
जिन लोगों ने भलाई का तरीका अपनाया उनके लिए भलाई है (बदले में) उससे भी ज्यादा है। और उनके चेहरों पर न तो कलौंस छाएगी और न जिल्लत (बेइज्जती)। वे ही जन्नत के अधिकारी हैं, वे उसमें हमेशा रहेंगे।
यूनुस 10: 26
अहसान कर जिस तरह अल्लाह ने तेरे साथ अहसान किया है।
कसस 28: 77
जो लोग अपना माल रात और दिन छिपे और खुले खर्च करते हैं उनका बदला उनके रब के पास है और न उन्हें कोई डर है और न कोई दुख होगा।
बकर 2: 274
उन्हें माफ कर देना चाहिए और दरगुजर करना चाहिए। क्या तुम यह नहीं चाहते कि अल्लाह तुम्हें माफ करे? और अल्लाह तो माफ करने वाला और रहीम (दयालु) है।
नूर 24: 22
ऐ नबी नरमी और दरगुजर का तरीका अपनाओ, भलाई का हुक्म देते रहो और अज्ञानियों (जाहिलों) से न उलझो ।
आराफ 7: 199
(ऐ पैगम्बर) यह अल्लाह की बड़ी रहमत है (दयालुता, रहमदिली ) कि तुम इन लोगों के लिए नरम मिजाज रहे हो, वरना अगर कहीं तुम कठोर मिजाज और सख्त दिल वाले होते तो ये सब लोग तुम्हारे पास से छंट (दूर चले) जाते, उनके कसूर माफ कर दो, इनके लिए मगफिरत (अल्लाह उन्हें कयामत के दिन माफ कर दे) की दुआ करो और मामलों में उनसे मशविरा कर लिया करो, और जब किसी मामले में राय बन जाए तो अल्लाह पर भरोसा करो, अल्लाह को वे लोग पसंद हैं जो उसी के भरोसे पर काम करें ।
आले इमरान 3: 159
और ऐ नबी! नेकी और बदी एक जैसी नहीं हैं, तुम बदी (बुराई) को उस नेकी (भलाई) से दूर करो जो बेहतरीन हो। तुम देखोगे कि तुम्हारे साथ जिसकी दुश्मनी थी वह जिगरी दोस्त बन गया है।
हा.मीम.सजदा 41: 34
ऐ नबी बुराई को उस तरीके से दूर करो (मिटाओ) जो सबसे अच्छा हो
मोमिनून 23: 96
रहमान के असली बन्दे वे हैं जो जमीन पर नरम चाल चलते हैं और जब जाहिल (अज्ञानी) उनके मुंह आए (बहस करने लगे) तो कह देते हैं 'तुम को सलाम' ।
फुरकान 25: 63
TALLUQAT
ताल्लुकात
सब मिलजुल कर अल्लाह की रस्सी को मजबूत पकड़ लो और तफरके (अलग अलग फिरकों में बंट जाना) में न पड़ो।
आले इमरान 3: 103
(अल्लाह की रस्सी का अर्थ कुरआन मजीद)
मोमिन तो एक दूसरे के भाई हैं इसलिए अपने भाइयों के दरमियान ताल्लुकात (संबंधों) को ठीक करो और अल्लाह से डरो। उम्मीद है कि तुम पर रहम किया जाए।
हुजुरात 49: 9
जब तुम्हारे पास वे लोग आएं जो हमारी आयात पर ईमान लाते है (यानी मुसलमान) तो उनसे कहो- ''तुम पर सलामती है''। (सलामु अलेयकुम)
अनआम 6: 54
जो काम नेकी और परहेजगारी (अल्लाह के डर के कारण) के हैं उनमें सबको सहयोग दो और गुनाह (पाप) और हक मारने (अत्याचार व ज्यादती ) के काम मे किसी का भी सहयोग न करो।
माइदा 5: 2
बेटा। नमाज कायम कर, नेकी (भलाई) का हुक्म दे, बदी (बुराई) से मना कर, और जो मुसीबत भी पड़े उस पर सब्र कर।
लुकमान 31: 17
और यह है कि लोगों से भली बात कहो और नमाज कायम करो, जकात दो।
बकर 2: 83
ऐ लोगो जो ईमान लाए हो! न मर्द दूसरे मर्दों का मजाक उड़ाएं। हो सकता है कि वे उनसे बेहतर (अच्छे) हों, और न औरतें दूसरी औरतों का मजाक उड़ाएं, हो सकता है कि वे उनसे बेहतर हों, एक दूसरे को ताने न दो, और न एक दूसरे को बुरे नाम से पुकारो। ईमान लाने के बाद नियम तोडऩे वालों में शुमार होना बहुत बुरी बात है।
हुजुरात 49: 11
छोड़ो उन लोगों को, जिन्होंने अपने धर्म (दीन) को खेल और तमाशा बना रखा है और जिन्हें दुनिया की जिन्दगी ने फरेब (धोखे) में डाल रखा है। हाँ मगर यह कुरआन सुना कर नसीहत की, कहीं ऐसा ना हो कि वह आदमी अपनी करतूतों के कारण तबाही में पड़ जाए कि अल्लाह से बचने वाला कोई दोस्त (हामी, मददगार,) और सिफरिश करने वाला न हो।
अनआम 6: 70
अगर मोमिनों में से दो गिरोह आपस मे लड़ पड़े तो उनके बीच सुलह करा दो। फिर अगर उनमें से एक गिरोह दूसरे गिरोह पर ज्यादती करे तो ज्यादती करने वालों से लड़ो यहाँ तक कि वे अल्लाह के हुक्म की तरफ पलट आएं तो उनके बीच न्याय के (इंसाफ) साथ सुलह करा दो और इंसाफ करो कि अल्लाह इंसाफ करने वालों को पसंद करता है।
हुजुरात 49: 9
और माफी मांगो (अल्लाह से) अपने कसूर के लिए भी और मोमिन मर्द और मोमिन औरतों के लिए भी ।
मुहम्मद 47: 19
और जब तुम्हारे पास ऐसे लोग आया करें जो हमारी आयतों पर ईमान लाए हैं तो अस्सलामु अलेयकुम कहा करो ।
अनआम 6: 54
जब कोई तुमसे सलाम करे तो तुम उसको उससे बेहतर तरीके से जवाब दो।
निसा 4: 86
और लोगों से भली बात कहो।
बकर 2: 83
और नेकी का हुक्म दो और बुराई से रोको।
लुकमान 31: 17
और उस आदमी से ज्यादा भली बात कहने वाला और कौन होगा जो अल्लाह की तरफ बुलाए और नेक काम करे और कहे- मैं मुसलमान हूँ ।
हा मीम सजदा 41: 33