Namaz ka tarika

मुकम्मल नमाज़ सहीह अहादीस के मुताबिक़
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بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ

रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया “ नमाज़ उस तरह पढ़ो जिस तरह मुझे
पढ़ते हुए देखते हो. ” (बुख़ारी ह० 631)

🔎क़याम का सुन्नत तरीक़ा

◾ पहले ख़ाना-ए- काबा की तरफ़ रुख़ करके खड़े होना (इब्न माजा ह० 803 )
◾ अगर बाजमात नमाज़ पढ़े तो दूसरों के कंधे से कंधा और टख़ने से टख़ना मिलाना. (अबू दाऊद ह० 662)
◾ फिर तक्बीर कहना और रफ़अ़ यदैन करते वक़्त हाथों को कंधों तक उठाना (बुख़ारी ह० 735, मुस्लिम ह० 861)
या कानों तक उठाना (मुस्लिम ह० 865)
◾ फिर दायां हाथ बाएं हाथ पर सीने पर रखना (मुस्नद अहमद ह० 22313)
दायां हाथ बायीं ज़िराअ़ पर (बुख़ारी ह० 740, मुवत्ता मालिक ह० 377)
ज़िराअ़ : कुहनी के सिरे से दरमियानी उंगली के सिरे तक का हिस्सा कहलाता है [अरबी लुग़त (dictionary) अल क़ामूस पेज 568]
दायां हाथ अपनी बायीं हथेली, कलाई और साअ़द पर (अबू दाऊद  ह० 727, नसाई  ह० 890)
साअ़द : कुहनी से हथेली तक का हिस्सा कहलाता है [अरबी लुग़त (dictionary) अल क़ामूस  पेज 769]
◾ फिर आहिस्ता आवाज़ में ‘सना’ (यानी पूरा सुब्हानक्ल्लाहुम्मा) पढ़ना (मुस्लिम ह० 892, अबू दाऊद ह० 775, नसाई ह० 900)
इसके अलावा और भी दुआएं जो सहीह अहादीस से साबित हैं, पढ़ी जा सकती हैं.
◾ फिर क़ुरआन पढ़ने से पहले ‘अऊज़ू बिल्लाहि मिनश् शैतानिर रजीम’ (क़ुरआन 16:98, बुख़ारी ह० 6115, मुसन्नफ़ अब्दुर्रज्ज़ाक़ ह० 2589)
और ‘बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम’ पढ़ना (नसाई ह० 906, सहीह इब्न ख़ुज़ैमा ह० 499)
◾ फिर सूरह फ़ातिहा पढ़ना (बुख़ारी ह० 743, मुस्लिम ह० 892)
जो शख्स़ सूरह फ़ातिहा नहीं पढ़ता उसकी नमाज़ नहीं होती. (बुख़ारी ह० 756, मुस्लिम ह० 874)
◾ जहरी (ऊँची आवाज़ से क़िराअत वाली) नमाज़ में आमीन भी ऊंची आवाज़ से कहना (अबू दाऊद ह० 932, 933, नसाई ह० 880 )
◾ फिर कोई सूरत पढ़ना और उससे पहले ‘बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम’ पढ़ना (मुस्लिम ह० 894)
◾ पहली 2 रकअ़तों में सूरह फ़ातिहा के साथ कोई और सूरत या क़ुरआन का कुछ हिस्सा भी पढ़ना (बुख़ारी ह० 762, मुस्लिम ह० 1013, अबू दाऊद ह० 859)
और आख़िरी 2 रकअ़तों में सिर्फ़ सूरह फ़ातिहा पढ़ना और कभी कभी कोई सूरत भी मिला लेना. (मुस्लिम ह० 1013, 1014)

🔎 रुकूअ़ का सुन्नत तरीक़ा

◾ फिर रुकूअ़ के लिए तक्बीर कहना और दोनों हाथों को कंधों तक या कानों तक उठाना (यानी रफ़अ़ यदैन करना) (बुख़ारी ह० 735, मुस्लिम ह० 865)
◾ और अपने हाथो से घुटनों को मज़बूती से पकड़ना और अपनी उंगलियां खोल देना. (बुख़ारी ह० 828, अबू दाऊद ह० 731)
◾ सर न तो पीठ से ऊंचा हो और न नीचा बल्कि पीठ की सीध में बिलकुल बराबर हो. (अबू दाऊद  ह० 730)
◾ और दोनों हाथों को अपने पहलू (बग़लों) से दूर रखना (अबू दाऊद  ह० 734)
◾ रुकूअ़ में ‘सुब्हाना रब्बियल अज़ीम’ पढ़ना. (मुस्लिम ह० 1814, अबू दाऊद ह० 869) इस दुआ को कम से कम 3 बार पढ़ना चाहिए (मुसन्नफ़ इब्न अबी शैबा ह० 2571)

🔎 क़ौमा का सुन्नत तरीक़ा

◾ रुकूअ़ से सर उठाने के बाद रफ़अ़ यदैन करना और ‘समिअ़ल्लाहु लिमन हमिदह, रब्बना लकल हम्द’ कहना (बुख़ारी ह० 735, 789)
◾ ‘रब्बना लकल हम्द' के बाद 'हम्दन कसीरन तय्यिबन मुबारकन फ़ीह' कहना. (बुख़ारी ह० 799)

🔎 सज्दा का सुन्नत तरीक़ा

◾ फिर तक्बीर कहते हुए सज्दे के लिए झुकना और 7 हड्डियों (पेशानी और नाक, दो हाथ, दो घुटने और दो पैर) पर सज्दा करना. (बुख़ारी  ह० 812)
◾ सज्दे में जाते वक़्त दोनों हाथों को घुटनों से पहले ज़मीन पर रखना (अबू दाऊद  ह० 840, सहीह इब्न ख़ुज़ैमा ह० 627)
नोट: सज्दे में जाते वक़्त पहले घुटनों और फिर हाथों को रखने वाली सारी रिवायात ज़ईफ़ हैं. (देखिये अबू दाऊद ह० 838)
◾ सज्दे में नाक और पेशानी ज़मीन पर ख़ूब जमा कर रखना, अपने बाज़ुओं को अपने पहलू (बग़लों) से दूर रखना और दोनों हथेलियां कंधों के बराबर (ज़मीन पर) रखना. (अबू दाऊद ह० 734, मुस्लिम ह० 1105)
◾ सर को दोनों हाथों के बीच रखना (अबू दाऊद ह० 726)
◾ और हाथों को अपने कानों से आगे न ले जाना. (नसाई ह० 890)
◾ हाथों की उंगलियों को एक दूसरे से मिला कर रखना और उन्हें क़िब्ला रुख़ रखना. (सुनन बैहक़ी 2/112, मुस्तदरक हाकिम 1/227)
◾ सज्दे में हाथ (ज़मीन पर) न तो बिछाना और न बहुत समेटना और पैरों की उंगलियों को क़िब्ला रुख़ रखना. (बुख़ारी ह० 828)
◾ सज्दे में एतदाल करना और अपने हाथों को कुत्तों की तरह न बिछाना. (बुख़ारी ह० 822)  
◾ सज्दे में अपनी दोनों एड़ियों को मिला लेना (सहीह इब्न खुज़ैमा ह० 654, सुनन बैहक़ी 2/116)
◾ और पैरों की उंगलियों को क़िब्ला रुख़ मोड़ लेना. (नसाई ह० 1102)
नोट: रसूलुल्लाह ﷺ  ने फ़रमाया कि “ उस शख्स़ की नमाज़ नहीं जिसकी नाक पेशानी की तरह ज़मीन पर नहीं लगती.” (सुनन दार क़ुत्नी 1/348)
◾ सज्दों में यह दुआ पढ़ना ‘सुब्हाना रब्बियल आला’ (मुस्लिम ह० 1814, अबू दाऊद ह० 869) इस दुआ को कम से कम 3 बार पढ़ना (मुसन्नफ़ इब्न अबी शैबा ह० 2571)

🔎 जलसा का सुन्नत तरीक़ा

◾ फिर तक्बीर कह कर सज्दे से सर उठाना और दायां पांव खड़ा कर, बायां पांव बिछा कर उस पर बैठ जाना. (बुख़ारी ह० 827, अबू दाऊद ह० 730)
◾ दो सजदों के बीच यह दुआ पढ़ना ‘रब्बिग़ फ़िरली रब्बिग़ फ़िरली ’ (अबू दाऊद ह० 874, नसाई ह० 1146, इब्न माजा ह० 897)
◾ इसके अलावा यह दुआ पढ़ना भी बिल्कुल सहीह है ‘अल्लाहुम्मग्फ़िरली वरहम्नी वआफ़िनी वहदिनी वरज़ुक़्नी’ (अबू दाऊद ह० 850, मुस्लिम ह० 6850)
◾ दूसरे सज्दे के बाद भी कुछ देर के लिए बैठना. (बुख़ारी ह० 757) (इसको जलसा इस्तिराहत कहते हैं)
◾ पहली और तीसरी रक्अ़त में जलसा इस्तिराहत के बाद खड़े होने के लिए ज़मीन पर दोनों हाथ रख कर हाथों के सहारे खड़े होना. (बुख़ारी ह० 823, 824)

🔎 तशह्हुद का सुन्नत तरीक़ा 

◾ तशह्हुद में अपने दोनों हाथ अपनी दोनों रानों पर और कभी कभी घुटनों पर भी रखना. (मुस्लिम  ह० 1308, 1310)
◾ फिर अपनी दाएं अंगूठे को दरमियानी उंगली से मिला कर हल्क़ा बनाना, अपनी शहादत की उंगली को थोडा सा झुका कर और उंगली से इशारा करते हुए दुआ करना. (मुस्लिम ह० 1308, अबू दाऊद ह० 991)
◾ और उंगली को (आहिस्ता आहिस्ता) हरकत भी देना और उसकी तरफ़ देखते रहना. (नसाई ह० 1161, 1162, 1269, इब्न माजा ह० 912)
◾ पहले तशह्हुद में भी दुरूद पढ़ना बेहतर अमल है. (नसाई ह० 1721, मुवत्ता मालिक ह० 204)
◾ लेकिन सिर्फ़ ‘अत तहिय्यात ….’ पढ़ कर ही खड़ा हो जाना भी जायज़ है. (मुस्नद अहमद ह० 4382)
◾ (2 तशह्हुद वाली नमाज़ में) आख़िरी तशह्हुद में बाएं पांव को दाएं पांव के नीचे से बाहर निकाल कर बाएं कूल्हे पर बैठ जाना और दाएं पांव का पंजा क़िब्ला रुख़ कर लेना. (बुख़ारी ह० 828, अबू दाऊद  ह० 730) (इसको तवर्रुक कहते हैं )
◾ तशह्हुद में ‘अत तहिय्यात… ’ और दुरूद पढ़ना. (बुख़ारी ह० 1202, 3370, मुस्लिम ह० 897,908)
◾ दुरूद के बाद जो दुआएं क़ुरआन और सहीह अहादीस से साबित हैं, पढ़ना चाहिए. (बुख़ारी ह० 835, मुस्लिम ह० 897)
◾ इसके बाद दाएं और बाएं ‘अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह ’ कहते हुए सलाम फेरना. (बुख़ारी  ह० 838, मुस्लिम ह० 1315, तिरमिज़ी ह० 295)

नोट: अहादीस के हवालों में काफ़ी एहतियात बरती गयी है लेकिन फिर भी अगर कोई ग़लती रह गयी हो तो ज़रूर इस्लाह करें

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