MUSAAFA EK HAATH SE YA DO HAATH SE

MUSAAFA EK HAATH SE YA DO HAATH SE ??
मुकल्लिदीन  कहते हैं के सहीह बुखारी मे दो हाथ से मुसाफा  करने की दलील है

अपने आपको गैर अहले हदीस कहने वाले मुकल्लिद हज़रात अहले हदीस को चेलेंज करते हैं की एक हाथ से मुसाफे की दलील अहले हदीस कयामत तक नहीं दे सकते  ताज्जुब की बात है  जो कुरान वा हदीस को मानने का दावा करता हो उसी के  पास हदीस ना हो. ऐसा  क्या मुमकिन हो सकता है,
एक सवाल किया जाता है की दो हाथ से मुसाफे की दलील सहीह बुखारी मे है. लेकिन अहले हदीस इनकार करते हैं,

मेरा मूकल्लिदीन से सवाल है की बतायें की इमाम बुखारी  ने कहाँ पर लिखा है की मुसाफ़ा दो हाथ से करना चाहिये. बुखारी  हमने भी पड़ी है

दर हकीकत  असल मे इमाम बुखारी रह ने बाब उल मुसाफा  के बाद एक बाब बाँधा है  "बाब उल अख्ज बिल यदैन  " यानी दो हाथ से पकड़ने का बयान, दर हकीकत मुहद्दिस का बाब दावा होता है, और उस बाब के तहत जो हदीस लायी गयी है वो दावे की दलील होती है, लेकिन यहाँ मुकल्लुद्दीन को शुबह हूआ  और समझा की यहाँ इमाम बुखारी  कह रहें हैं की दो हाथ से मुसाफा करना चाहिये,

फ़िर से समझो, पहले इमाम बुखारी बाब बाँधते हैं  "बाब अख्ज  बिल  यदैन " दो हाथ से पकड़ने का  बयान, जाहिर  है  ये दावा है, और इमाम बुखारी  इस दावे की दलील लायें हैं इस बाब मे, हदीस  लायी  गयी, बीच  मे एक सहाबा का  असर  लाया गया

" हज़रत  हम्माद इब्ने जैद ने अब्दुल्लाह इब्ने मुबारक रह से दो हाथ  से मुसाफा किया "

देखिये तीन चीज़ें हो गयी, एक बाब है  जो दावा है, बाद मे हज़रत हम्माद इब्ने जैद का असर पेश किया गया, उसके बाद हदीस लायी  गयी, और हदीस आ रहि है उस दावे की दलील मे

" हज़रत  अब्दुल्लाह  इब्ने मसूद रजि  का एक हाथ मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैही वसल्लम  ने अपने दोनो हाथों  मे लिया  हूआ  था "

लिहाजा जो ये हदीस लायी गयी है वो दावे के मुताबिक नहीं है, अगर  मान लिया जाये  की दोनो हाथ से मुसाफा है  तो बीच मे ये असर क्यों लाया गया? इस वजह से लाया गया की  इतना बड़ा आदमी उसका ये अमल हदीस के खिलाफ है. लिहाजा उसका ये अमल नहीं माना जायेगा,

और एक दलील से साबित करूँ, हज़रत  इब्ने  शुब्रुमा  रजि  की एक बात  को हज़रत इमाम बुखारी  रह  ने सही बुखारी के अंदर लाते हैं  किताब  उल फजाईल कुरान  मे

" इब्न शुब्रुमा कहते हैं की मैने नहीं देखा की  पूरे कुरान मे कोई सूरह  3 आयत से कम बोले,अगर नमाज़ मे 3 आयत से कम पढ़ना दुरुस्त नहीं है "  किसने  कहा "इब्ने  शुब्रुमा " लिहाजा  नमाज़  मे  3 आयत से कम तिलावत नहीं करना चाहिये,कम  से  कम 3 आयत,

अब इब्ने शुब्रुमा का ये कौल  हज़रत इमाम बुखारी  बाब मे जिक्र  करते है और इसके बाद हदीस लाते हैं
"हज़रत  मुहम्मद  सल्लल्लाहो  अलैहि  वसल्लम  ने  नमाज़ मे 3 आयतों से कम भी  पड़ा है, " और दलील पेश की के ये 2 आयते  आपने  पड़ी हैं

(सही बुखारी जिल्द नO 6 किताब न0 61 हदीस न0 571)

अब दो हाथ से मुसाफा  या एक हाथ से

حَدَّثَنَا عَبْدُ الْوَارِثِ بْنُ سُفْيَانَ قَالَ حَدَّثَنَا قَاسِمُ بْنُ أَصْبَغَ قَالَ حَدَّثَنَا ابْنُ وَضَّاحٍ قَالَ حَدَّثَنَا يَعْقُوبُ بْنُ كَعْبٍ قَالَ حَدَّثَنَا مُبَشِّرُ بْنُ إِسْمَاعِيلَ عَنْ حَسَّانَ بْنِ نُوحٍ عَنْ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ بُسْرٍ قَالَ تَرَوْنَ يَدِي هَذِهِ صَافَحْتُ بِهَا رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ

हज़रत अब्दुल्लाह  बिन बुस्रिन रजि  फ़रमाते हैं के :-" तुम लोग मेरे इस हाथ को देखते हो, मैने इसी हाथ से रसूल्लुल्लह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम  से मूसाफा किया है  और हदीस को जिक्र किया "
(तम्हीद इब्नुल बर्र जिल्द 12 पेज 247)

ये हदीस एक हाथ से मुसाफा करने की खुली दलील है,

हज़रत अमर बिन अल आस रजि  बयान करते हैं के जब अल्लाह ताला ने मेरे दिल मे इस्लाम डाला तोह मैं रसूल्लूल्लाह सल्ललहो अलैहि वसल्लम के पास आया और कहा:-" रसूलूल्लाह सल्लल्लाहो  अलैहि  वसल्लम अपने दायें  हाथ को आगे बढ़ाइये  के मैं आपसे बैत करूँ, पस  आप सल्लल्लाहो  अलैहि वसल्लम  ने अपना  दाँया हाथ आगे बढ़ाया, के मैने अपने हाथ को समेट लिया,

आप रसूल्लूल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया की :-" अमर तुझे किस चीज़ ने रोक लिया " मैने अर्ज किया  के कुछ शर्त करना चाहता हूं, आप रसूल्लूल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम  ने फरमाया :-" किस बात की शर्त करना चाहते हो "

मैने कहा :-" मुझे बख्श दिया जाये, आप सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम  ने फरमाया की :-"तुझे मालूम  नहीं  के इस्लाम कुबूल करने से पहले जितने गुनाह होते हैं उनको इस्लाम मिटा देता है "
(सही मुस्लिम जिल्द 1 पेज 76 हदीस न 117)

गोया ये रिवायत बैय्यत मूसाफा  के बारे मे है, लेकिन बैय्यत  मे भी मुसाफा  ही होता है,

हज़रत उमैमा बिनते रुकैय्या रजि  फ़रमाती  हैं के :-" हम बहुत सी औरते दीन  ए इस्लाम  पर बैय्यत करने के लिये रसूल्लूल्लाह सल्लल्लाहो  अलैहि  वसल्लम  के पास आयीं  और हमने बैय्यत  के वक्त मुसाफा की दरख्वास्त की  तो आप रसूल्लूल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया के

" मैं औरतों से मुसाफा नहीं करता " (मौत्ता  इमाम मालिक  बाब माजा फिल बय्यह )

हाफिज इब्ने बर्र रह  इन अल्फाज की शरह मे फ़रमाते हैं के :-" इन अल्फाज  ए नबी सल्लल्लाहो अलैहि  वसल्लम मे दलील है के नबी बय्यत वगेरह के वक्त  मर्दों  से मुसाफा करते थे " (तम्हीद  जिल्द  12 पेज  352)

हाफिज इब्ने बर्र रह  इस हदीस को नकल करने के बाद फ़रमाते हैं :-" इन मसायल के ऐलावा  इस हदीस  मे  इस  बात की दलील  है के बैय्यत कैफ़ियत वा तरीका मे मुसाफा है  और इस सिलसिले  मे आसार  ए नबवी मे कोई इख्तेलाफ  नहीं " (तम्हीद जिल्द 12 पेज 352)

इन दलायल से साबित हुआ के  बैय्तत और मुलाकात के वक्त मुसाफा की कैफ़ियत वा तरीका एक ही है 

अल्लाह ताला हम सबको कुरान व सहीह हदीस पर अमल करने की तौफीक दे,      आमीन 

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