JINE KA ADHIKAR INSAN KO SHIRF ISLAM NE DIYA HAI

जीने का अधिकार ‘‘ इन्सान’’ को सिर्फ इस्लाम ने दिया है
जीने का अधिकार ‘‘ इन्सान’’ को सिर्फ इस्लाम ने दिया है
अब आप देखिए कि जो लोग मानव-अधिकारों का नाम लेते हैं, उन्होने अगर अपने संविधानों में या ऐलानो ंमें कहीं मानव-अधिकारों का जिक्र किया हैं तो हकीकत में इस में यह बात छिपी (Implied) होती है कि यह हक या तो उनके अपने नागरिकों के हैं, या फिर वह उनको सफे़द नस्ल वालों के लिए खास समझते हैं। जिस तरह आस्ट्रेलिया में इन्सानों का शिकार करके सफेद नस्ल वालों के लिए पुराने बाशिन्दों से जमीन खाली करार्इ गर्इ और अमेरिका में वहॉ के पुराने बाशिन्दों की नस्लकुशी की गर्इ और जो लोग बच गये उन को खास इलाकों (Reservations) में कैद कर दिया गया और अफ्रीका के विभिन्न इलाको में घुस कर इन्सानों को जानवरों की तरह हलाक किया गया, यह सारी चीजे इस बात को साबित करती हैं कि इन्सानी जान का ‘‘ इन्सान’’ होने की हैसियत से कोर्इ आदर उन के दिल में नही हैं। अगर कोर्इ आदर हैं तो अपनी कौम या अपने रंग या अपनी नस्ल की बुनियाद पर हैं। लेकिन इस्लाम तमाम इन्सानों के लिए इस हक को तस्लीम करता हैं। अगर कोर्इ आदमी जंगली कबीलों से संबंध रखता हैं तो उसको भी इस्लाम इन्सान ही समझता हैं।

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