BHAWISHYA PURAN AUR MOHAMMAD S.A.W

PART 3
पुराणों के प्रमाण
भविष्य पुराण और हज़रत मुहम्मद (सल्ल.)

केवल वेद ही नहीं बल्कि पुराणों में भी मुहम्मद साहब का कार्यस्थल रेगिस्तानी क्षेत्र में होने का उल्लेख आता है। भविष्य पुराण में स्पष्टतः कहा गया है कि ‘एक दूसरे देश में एक आचार्य अपने मित्रों के साथ आएंगे। उनका नाम महामद होगा। वे रेगिस्तानी क्षेत्र में आएंगे।1 इस अध्याय को श्लोक 6,7,8 भी मुहम्मद साहब के विषय में है। इस्लाम के पैग़म्बर (सल्ल) का जन्म स्थान-सहित अन्य साम्यताएं कल्कि अवतार में भी मिलती है, जिनका वर्णन कल्कि पुराण में है। इसकी चर्चा बाद में की जाएगी।
यहां यह उल्लेख कर देना उचित होगा कि भविष्य पुराण में कई नबियों (ईशदूतों) की जीवन गाथा है। इस्लाम पर भी विस्तृत अध्याय है। इस पुराण में एकदम सटीक तौर पर हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के

1.एतिस्मिन्नन्तिरे म्लच्छ आयाय्योंण समन्वितः ।। महामद इति ख्यातः शिष्य शाखा सममन्विः ।।

बारे में बातें आई हैं। इसमें जहां महामद आचार्य के नाम की ‘मुहम्मद’ शब्द से निकटता है, वहीं इस्लाम के पैग़म्बर (सल्ल.) की पहचान की अन्य बातें बिल्कुल सत्य उतरती हैं। इनमें ज़रा भी व्याख्या की ज़रूरत नहीं। भविष्य पुराण के अनुसार, शालिवाहन (सात वाहन) वंशी राजा भोज दिग्विजय करता हुआ समुद्र पार (अरब) पहुंचेगा। इसी दौरान (उच्च कोटि के) आचार्य शिष्यों से घिरे हुए महामद (मुहम्मद सल्ल.) नाम से विख्यात आचार्य को देखेगा। भविष्य पुराण (प्रतिसर्ग पर्व 3, अध्याय 3, खंड 3, कलियुगियेतिहास समुच्चय) में कहा गया है—
लिंड्गच्छेदी शिखाहीन श्मश्रुधारी स दूषकः ।
         उच्चालापी सर्वभक्षी भविष्यति जनो मम ।।
विना कौलं च पशवस्तेषां भक्ष्या मता मम ।
         मुसलेनैव संस्कारः कुशैरिव भविष्यति ।।
         तस्मान्मुसलवन्तो हि जातयो धर्मदूषकः ।
इति पैशाचधर्मश्च भविष्यति मया कृतः ।। (श्लोक 25-27)
इन श्लोकों का भावार्थ इस प्रकार है— ‘हमारे लोगों का ख़तना होगा, वे शिखाहीन होंगे, वे दाढ़ी रखेंगे, ऊंचे स्वर में आलाप करेंगे यानि आज़ान देंगे। शाकाहारी-मांसाहारी (दोनों) होंगे, किन्तु उनके लिए बिना कौल यानि मंत्र से पवित्र किए बिना कोई पशु भक्ष्य (खाने योग्य) नहीं होगा (वे हलाल मांस खाएंगे। इस प्रकार हमारे मत के अनुसार -हमारे अनुयायियों का मुस्लिम संस्कार होगा। उन्हीं से मुसलवन्त यानि निष्ठावानों का धर्म फैलेगा और ऐसा मेरे कहने से पैशाच धर्म का अंत होगा।’1
भविष्य पुराण की इन भविष्यवाणियों की हर चीज़ इतनी स्पष्ट है कि ये स्वतः ही हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) पर खरी उतरती हैं। अतः आप (सल्ल.) की अंतिम ऋषि के रूप में पहचान भी स्पष्ट हो जाती है। ऐसी भी शंका नहीं है कि इन पुराणों की रचना इस्लाम के आगमन के बाद हुई हो। वेद और इस तरह के कुछ पुराण इस्लाम के काफ़ी पहले के हैं।

पं. धर्मवीर उपाध्याय का शोध
डॉ. कमला कान्त तिवारी और डॉ. रमेश प्रताप गर्ग ने अपनी प्रकाशित पुस्तक ‘कलयुग के अन्तिम नबी’ में संस्कृत के उद्भट

1.‘Similarities Between Hinduism & Islam’ (By Dr. Zakir naik P.37; 38 Publisher : M.S.S New Delhi-25), ‘अन्तिम सन्देष्टा कब कहां और कौन?’ पृष्ठ, 52, 53 लेखक : मुफ्ती मुहम्मद सरवर फ़ारूक़ी नदवी (आचार्य, B.H.U., वाराणसी) प्रकाशक : मक्तबा पयामे अमन, 504/38/2 फ़ारूक़ी मन्ज़िल, नदवा रोड़, लखनऊ (उ.प्र.)
2.यह पुस्तक 1927 ई. में नेशनल प्रिंटिंग प्रेस, दरिया गंज, दिल्ली से सर्वप्रथम प्रकाशित हुई थी।

विद्वान पं. धर्मवीर उपाध्याय की पुस्तक ‘अंतिम ईशदूत’2 के कतिपय अंशों को उद्धृत करते हुए लिखा है—
“पंडित जी ने एक और अनोखी बात लिखी है कि कागभुसुन्डि एवं गरुड़ दोनों ही श्री रामचंद्र की सेवा में दीग्घकाल तक रहे एवं उनके उपदेशों को न केवल सुनते ही रहे अपितु अन्य जिज्ञाशु श्रोताओं को भी सुनाते रहे। इन उपदेशों की चर्चा श्री गोस्वामी तुलसीदास जी ने ‘संग्राम पुराण’ के अनुवाद में (जिसमें ईश्वर ने अपने पुत्र शण्मुख की आने वाले धर्म और अवतार के प्रति भविष्यवाणी की है। लिखा है, जिसका अनुवाद इस प्रकार है—
   यहां न पक्षपात कछु राखहुं। वेद पुराण संत मत भाखहुं।।
अर्थात् मैने यहां किसी का पक्ष न लेकर वेदों, पुराणों और संतों के मत को प्रकट किया।
   संवत विक्रम दोउ अनग्ड़ा।महांकोक नस चतुर्पतग्ड़ा।।
अर्थात्, सातवीं विक्रम सदी के चारों सूर्यों की ज्योति के साथ वह जन्म लेगा।
   राजनीति भव प्रीती दिखावे।आपन मत सबका समझावै।।
अर्थात्, राज्य करने में जैसी स्थिति हो प्रेम से अथवा कठोरता से अपना मत सभी को समझा सकेगा।
   सुरन चतुसुदर शतचारी।तिनको वंश भयो अतिभारी।।

अर्थात्, उनके चारों देव साथ होंगे जिनकी सहायता से उसके अनुयायियों की संख्या बढ़ेगी।
   तब तक सुंदरमाद्दिकोंया। बिना महामद पार न होय।।
जब तक उसका पत्र रहेगा महामद के बिना पार नहीं होगा—
   तबसे मानहु जन्तु भिखारी। समरथ नाम एहि ब्रत धारी।।
अर्थात, मानव, भिक्षुक एवं जन्तु सभी इस व्रतधारी का नाम जपते1 ईश्वर के भक्त हो जाएंगे।
   हर सुंदर निर्माण को होई। तुलसी वचन सत्य सचसोई।।
अर्थात्, फिर कोई उसकी तरह जन्म न लेगा गोस्वामी तुलसी जी वह कह रहे हैं जो सत्य है। (संग्राम पुराण, स्कंद 12 काण्ड 6)।
पं. धर्मवीरजी ने इसी प्रकार अन्य कथा भी लिखी है वह इस प्रकार है—
जब श्री शंकर जी पृथ्वी को त्याग हिमालय पर्वत की ओर जाने लगे तो उन लोगों को संबोधित करते हुए बोले, जिन्होंने उन्हें सताया होगा कि आप लोग कुमार्ग पर न चलें अपितु सतमार्ग पर चलें

1. मूल पाठ में ‘मानहु’ शब्द प्रयुक्त हुआ है, अतः इसका अर्थ ‘मानना’ हुआ। इसलिए अर्थ यह होगा कि ‘इस व्रत धारी को मानते ही ईश्वर के भक्त हो जाएंगे’।

अन्यथा द्वापर के अंत में एक ऐसा ईश्वर-भक्त जन्म लेगा जो आप जैसे आततायियों का अंत कर देगा।
जब श्री शंकर जी कैलाश पर्वत की चोटी पर पहुंच कर ध्यानावस्थित हुए तो किसी दिन उनकी प्रिय पत्नी पार्वती जी ने प्रश्न पूछा कि हे महादेव ! द्वापर के अंत में ऐसा पराक्रमी कौन होगा जो धर्मभ्रष्टों का अंत करेगा। श्री शंकर जी ने उन्हें उत्तर दिया आदाम (आदम) के 6000 वर्षों बाद शम्बल द्वीप के समीप मंदरीने में ईश्वर का अंश आदम की संतान चमत्कारिक रूप में अवतरित होगा जिस धरती पर वह जन्म लेगा वह मेरी प्रिय धरती होगी। उसके सिर पर मेघ आच्छादित रहेंगे और धरती पर उसकी परछाई नहीं पड़ेगी।
उपरोक्त कथा को श्री रामचंद्र के गुरु (श्री वशिष्ठ मुनि) ने भगवान शंकर जी से सुनकर रामचंद्र जी को बतलाया। मुनि वशिष्ठ श्री शिव के भक्त तो थे ही, रामचंद्र के गुरु भी थे। श्री हरगोविन्द लाल ने अपनी लिखित ‘राम कथा’ के पृष्ठ 112 पर इन सभी बातों की चर्चा की है। पं. धर्मवीरजी भागवत पुराण, स्कंद दस के अंतर्गत लिखते हैं कि कल्कि अवतार की सवारी विद्युत सरीखी तीव्रगामी होगी एवं उसका मुखमंडल स्त्री की भांति एवं शेष शरीर घोड़े की तरह होगा
आखिल भारतीय हिन्दु महासभा के पूर्व अध्यक्ष लाला हंसराज ने बतलाया है कि राजा सामरी की अंतिम इच्छा केरल के एक मठ में

अन्यथा द्वापर के अंत में एक ऐसा ईश्वर-भक्त जन्म लेगा जो आप जैसे आततायियों का अंत कर देगा।
जब श्री शंकर जी कैलाश पर्वत की चोटी पर पहुंच कर ध्यानावस्थित हुए तो किसी दिन उनकी प्रिय पत्नी पार्वती जी ने प्रश्न पूछा कि हे महादेव ! द्वापर के अंत में ऐसा पराक्रमी कौन होगा जो धर्मभ्रष्टों का अंत करेगा। श्री शंकर जी ने उन्हें उत्तर दिया आदाम (आदम) के 6000 वर्षों बाद शम्बल द्वीप के समीप मंदरीने में ईश्वर का अंश आदम की संतान चमत्कारिक रूप में अवतरित होगा जिस धरती पर वह जन्म लेगा वह मेरी प्रिय धरती होगी। उसके सिर पर मेघ आच्छादित रहेंगे और धरती पर उसकी परछाई नहीं पड़ेगी।
उपरोक्त कथा को श्री रामचंद्र के गुरु (श्री वशिष्ठ मुनि) ने भगवान शंकर जी से सुनकर रामचंद्र जी को बतलाया। मुनि वशिष्ठ श्री शिव के भक्त तो थे ही, रामचंद्र के गुरु भी थे। श्री हरगोविन्द लाल ने अपनी लिखित ‘राम कथा’ के पृष्ठ 112 पर इन सभी बातों की चर्चा की है। पं. धर्मवीरजी भागवत पुराण, स्कंद दस के अंतर्गत लिखते हैं कि कल्कि अवतार की सवारी विद्युत सरीखी तीव्रगामी होगी एवं उसका मुखमंडल स्त्री की भांति एवं शेष शरीर घोड़े की तरह होगा
आखिल भारतीय हिन्दु महासभा के पूर्व अध्यक्ष लाला हंसराज ने बतलाया है कि राजा सामरी की अंतिम इच्छा केरल के एक मठ में लिखित प्रमाण स्वरूप सुरक्षित है, जिसका अवलोकन करने से ही स्पष्ट हो जाता है कि राजा मदीना गया था एवं राजा ने हज़रत मुहम्म्द के धर्म को स्वीकार किया। “ {‘कलयुग के अंतिम ऋषि’, पृ. 7-9 प्रकाशक, हिन्दी-उर्दू साहित्य संगम, (रजिस्टर्ड) ए 25/42, मछोदरी, वाराणसी, 221001} 

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