KAISE MACHI TAZIYA KI DHOOM
: कैसे मची ताजिया की धूम
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फारस अफगानिस्तान एवं रूस के कुछ भागों में विजय प्राप्त कर के तैमूर लंग 1398 में अपने 98000 फौजी के
साथ हिन्दुस्तान आया दिल्ली के बादशाह मोहम्मद तुगलक से जंग करके अपना ठिकाना बनाया और खुद को शहंशाह घोषित किया।
लंग तुर्की शब्द है जिसका अर्थ लंगङा होता है वह दायें हाथ व दायें पैर से अपाहिज था। तैमूर लंग शिया समुदाय का था वह हर वर्ष मुहर्रम के माह में इराक जरूर जाता था लेकिन बीमारी के कारण एक वर्ष नहीं जा पाया वह ह्रदय रोगी था जिसे डॉ ने यात्रा से रोक दिया दरबारियों ने शहंशाह को खुश करने के लिए कलाकारों से इराक के कर्बला में बने इमाम हुसैन की कब्र मुबारक की नकल बनाने का आदेश दिया कुछ कलाकारों ने बांस की खपच्चियों की सहायता से कब्र या इमाम हुसैन की यादगार का ढांचा तैयार किया उसे रंगबिरंगे फूलों से सजाया गया और उसका नाम ताजिया दिया गया। इस तरह ताजिया को प्रथम बार लगभग 801 हिजरी वर्ष पश्चात तैमूर लंग के महल में रखा गया।
तैमूर लंग के इस ताजिया की धूम बहुत जल्द पूरे देश में मच गई देश के राजे रजवाङे एवं अाम अकीदतमंद ताजिया की जियारत के लिए पहुंचने लगे। तैमूर लंग को खुश करने के लिए देश के दूसरे प्रान्तों में भी प्रारंभ हुआ दिल्ली के आसपास शिया समुदाय के नवाबों ने अपने अपने राज्यों में विशेष प्राथमिकता दी तब से आज तक यह रीति भारत पाकिस्तान बांग्लादेश बर्मा नेपाल म्यांमार में मनाया जा रहा है जबकि तैमूर लंग के देश उज्बेकिस्तान कजाकिस्तान या शिया समुदाय के बहुसंख्यक ईरान देश में ताजिया का कोई प्रमाण नहीं मिलता ।
1404 में तैमूर समरकन्द गया बीमारी में चीन विजय प्लान किया लेकिन 19 फरवरी 1405 को कजाकिस्तान में मर गया तैमूर लंग गया लेकिन हिन्दुस्तान में ताजियादारी बाकी रही तैमूर के बाद मुगल शासक ने ताजिया रखा जो परम्परा अबतक चल रही है।
ताजिया का इस्लाम धर्म से कोई संबंध नहीं है।: ﮐﯿﺴﮯ ﻣﭽﯽ ﺗﻌﺰﯾﮧ ﮐﯽ ﺩﮬﻮﻡ؟۔ ۔ ۔ ۔ ۔
ﻓﺎﺭﺱ، ﺍﻓﻐﺎﻧﺴﺘﺎﻥ، ﻣﯿﺴﻮﭘﻮﭨﺎﻣﯿﺎ ﺍﻭﺭ ﺭﻭﺱ ﮐﮯ ﮐﭽﮫ ﺣﺼﻮﮞ ﮐﻮ ﺟﯿﺘﺘﮯ ﮨﻮﺋﮯ ﺗﯿﻤﻮﺭ 1398 ﮐﮯ ﺩﻭﺭﺍﻥ ﮨﻨﺪﻭﺳﺘﺎﻥ ﭘﮩﻨﭽﺎ۔ ﺍﺱ ﮐﯿﺴﺎﺗﮫ 98000 ﻓﻮﺟﯽ ﺑﮭﯽ ﮨﻨﺪﻭﺳﺘﺎﻥ ﺁﺋﮯ۔ ﺩﮨﻠﯽ ﻣﯿﮟ ﻣﺤﻤﺪ ﺗﻐﻠﻖ ﺳﮯ ﺟﻨﮓ ﮐﺮ ﮐﮯ ﺍﭘﻨﺎ ﭨﮭﮑﺎﻧﮧ ﺑﻨﺎﯾﺎ ﺍﻭﺭ ﯾﮩﯿﮟ ﺍﺱ ﻧﮯ ﺧﻮﺩ ﮐﻮ ﺷﮩﻨﺸﺎﮦ ﺍﻋﻼﻥ ﮐﯿﺎ۔ ﺗﯿﻤﻮﺭ ﺗﺮﮐﯽ ﻟﻔﻆ ﮨﮯ، ﺟﺲ ﮐﺎ ﻣﻄﻠﺐ ﺗﯿﻤﻮﺭﻟﻨﮕﮍﺍ ﮨﻮﺗﺎ ﮨﮯ۔ ﻭﮦ ﺩﺍﺋﯿﮟ ﮨﺎﺗﮫ ﺍﻭﺭ ﺩﺍﮮ ﭘﺎﻭ ﮞ ﺳﮯ ﺍﭘﺎﮨﺞ ﺗﮭﺎ۔ﺗﯿﻤﻮﺭ ﻟﻨﮓ ﺷﯿﻌﮧ ﻓﺮﻗﮧ ﺳﮯ ﺗﮭﺎ ﺍﻭﺭ ﻣﺤﺮﻡ ﮐﮯ ﻣﮩﯿﻨﮯ ﻣﯿﮟ ﮨﺮ ﺳﺎﻝ ﻋﺮﺍﻕ ﺿﺮﻭﺭ ﺟﺎﺗﺎ ﺗﮭﺎ، ﻟﯿﮑﻦ ﺑﯿﻤﺎﺭﯼ ﮐﯽ ﻭﺟﮧ ﺳﮯ ﺍﯾﮏ ﺳﺎﻝ ﻧﮩﯿﮟ ﺟﺎ ﭘﺎﯾﺎ۔ ﻭﮦ ﺩﻝ ﻣﺮﯾﺾ ﺗﮭﺎ، ﺍﺱ ﻟﺌﮯ ﺍﻃﺒﺎﻧﮯ ﺍﺳﮯ ﺳﻔﺮ ﮐﯿﻠﺌﮯ ﻣﻨﻊ ﮐﯿﺎ ﺗﮭﺎ۔ﺑﺎﺩﺷﺎﮦ ﺳﻼﻣﺖ ﮐﻮ ﺧﻮﺵ ﮐﺮﻧﮯ ﮐﯿﻠﺌﮯ ﺩﺭﺑﺎﺭﯾﻮﮞ ﻧﮯ ﺍﯾﺴﺎ ﮐﺮﻧﺎ ﭼﺎﮨﺎ، ﺟﺲ ﺳﮯ ﺗﯿﻤﻮﺭ ﺧﻮﺵ ﮨﻮ ﺟﺎﺋﮯ۔ ﺍﺱ ﺯﻣﺎﻧﮧ ﮐﮯ ﻓﻨﮑﺎﺭﻭﮞ ﮐﻮ ﺟﻤﻊ ﮐﺮ ﮐﮯ ﺍﻧﮩﯿﮟ ﻋﺮﺍﻕ ﮐﮯ ﮐﺮﺑﻼ ﻣﯿﮟ ﺑﻨﮯ ﺍﻣﺎﻡ ﺣﺴﯿﻦ ﺭﺿﯽ ﺍﻟﻠﮧ ﻋﻨﮧ ﮐﯽ ﻗﺒﺮﻣﺒﺎﺭﮎ ﮐﯽ ﻧﻘﻞ ﺑﻨﺎﻧﮯ ﮐﺎ ﺣﮑﻢ ﺩﯾﺎ۔ﮐﭽﮫ ﻓﻨﮑﺎﺭﻭﮞ ﻧﮯ ﺑﺎﻧﺲ ﮐﯽ ﮐﮭﭙﭽﯿﻮﮞ ﮐﯽ ﻣﺪﺩ ﺳﮯﻗﺒﺮ ﯾﺎ ﺍﻣﺎﻡ ﺣﺴﯿﻦ ﺭﺿﯽ ﺍﻟﻠﮧ ﻋﻨﮧ ﮐﯽ ﯾﺎﺩﮔﺎﺭ ﮐﺎ ﮈﮬﺎﻧﭽﮧ ﺗﯿﺎﺭ ﮐﯿﺎ۔ ﺍﺳﮯ ﻃﺮﺡ ﻃﺮﺡ ﮐﮯ ﭘﮭﻮﻟﻮﮞ ﺳﮯ ﺳﺠﺎﯾﺎ ﮔﯿﺎ۔ ﺍﺳﯽ ﮐﻮ ﺗﻌﺰﯾﮧ ﮐﺎ ﻧﺎﻡ ﺩﯾﺎ ﮔﯿﺎ۔ﺍﺱ ﻃﺮﺡ ﺗﻌﺰﯾﮧ ﮐﻮ ﭘﮩﻠﯽ ﺑﺎﺭ 801 ﮨﺠﺮﯼ ﻣﯿﮟ ﺗﯿﻤﻮﺭ ﻟﮓ ﮐﮯ ﻣﺤﻞ ﮐﮯ ﺍﺣﺎﻃﮯ ﻣﯿﮞﺮﮐﮭﺎ ﮔﯿﺎ۔ﺗﯿﻤﻮﺭ ﮐﮯ ﺍﺱ ﺗﻌﺰﯾﮧ ﮐﯽ ﺩﮬﻮﻡ ﺑﮩﺖ ﺟﻠﺪ ﭘﻮﺭﮮ ﻣﻠﮏ ﻣﯿﮟ ﻣﭻ ﮔﺌﯽ۔ ﻣﻠﮏ ﺑﮭﺮ ﺳﮯ ﺭﺍﺟﮯ ﺭﺟﻮﺍﮌﮮ ﺍﻭﺭ ﻋﻘﯿﺪﺕ ﻋﻮﺍﻡ ﺍﻥ ﺗﻌﺰﯾﻮﮞ ﮐﯽ ﺯﯾﺎﺭﺕ ﮐﯿﻠﺌﮯ ﭘﮩﻨﭽﻨﮯ ﻟﮕﮯ۔ ﺗﯿﻤﻮﺭ ﻟﮓ ﮐﻮ ﺧﻮﺵ ﮐﺮﻧﮯ ﮐﯿﻠﺌﮯ ﻣﻠﮏ ﮐﯽ ﺩﯾﮕﺮ ﺭﯾﺎﺳﺘﻮﮞ ﻣﯿﮟ ﺑﮭﯽ ﺍﺱ ﺭﻭﺍﯾﺖ ﮐﯽ ﺳﺨﺘﯽ ﮐﯿﺴﺎﺗﮫ ﺁﻏﺎﺯﮨﻮ ﮔﯿﺎ۔ﺧﺎﺹ ﻃﻮﺭ ﭘﺮ ﺩﮨﻠﯽ ﮐﮯ ﺁﺱ ﭘﺎﺱ ﮐﮯ ﺁﺑﺎﺩ ﺷﯿﻌﮧ ﻓﺮﻗﮯ ﮐﮯ ﻧﻮﺍﺏ ﺗﮭﮯ، ﺍﻧﮩﻮﮞ ﻧﮯ ﻓﻮﺭﯼ ﻃﻮﺭ ﭘﺮ ﺍﺱ ﺭﻭﺍﯾﺖ ﭘﺮ ﻋﻤﻞ ﺷﺮﻭﻉ ﮐﺮ ﺩﯾﺎ ﺍﺱ ﮐﮯ ﺑﻌﺪ ﺳﮯ ﻟﮯ ﮐﺮﺁﺝ ﺗﮏ ﺍﺱ ﻣﻨﻔﺮﺩ ﺭﻭﺍﯾﺖ ﮐﻮ ﺑﮭﺎﺭﺕ، ﭘﺎﮐﺴﺘﺎﻥ، ﺑﻨﮕﻠﮧ ﺩﯾﺶ ﺍﻭﺭ ﺑﺮﻣﺎ ﯾﺎﻣﯿﺎﻧﻤﺎﺭ ﻣﯿﮟ ﻣﻨﺎﯾﺎ ﺟﺎ ﺭﮨﺎ ﮨﮯ۔ﺟﺒﮑﮧ ﺧﻮﺩ ﺗﯿﻤﻮﺭ ﻟﮓ ﮐﮯ ﻣﻠﮏ ﺍﺯﺑﮑﺴﺘﺎﻥ ﯾﺎ ﻗﺎﺯﻗﺴﺘﺎﻥ ﻣﯿﮞﯿﺎ ﺷﯿﻌﮧ ﺍﮐﺜﺮﯾﺘﯽ ﻣﻠﮏ ﺍﯾﺮﺍﻥ ﻣﯿﮟ ﺗﻌﺰﯾﻮﮞ ﮐﯽ ﺭﻭﺍﯾﺖ ﮐﺎ ﮐﻮﺋﯽ ﺫﮐﺮﻧﮩﯿﮟ ﻣﻠﺘﺎ ۔ 68 ﺳﺎﻟﮧ ﺗﯿﻤﻮﺭ ﺍﭘﻨﯽ ﺷﺮﻭﻉ ﮐﯽ ﮔﺌﯽ۔ﺗﻌﺰﯾﻮﮞ ﮐﯽ ﺭﻭﺍﯾﺖ ﮐﻮ ﺯﯾﺎﺩﮦ ﻧﮩﯿﮞﺪﯾﮑﮫ ﻧﮩﯿﮟ ﺩﯾﮑﮫ ﺳﮑﺎ ﺍﻭﺭ ﺳﻨﮕﯿﻦ ﺑﯿﻤﺎﺭﯼ ﻣﯿﮟ ﻣﺒﺘﻼ ﮨﻮﻧﮯ ﮐﯽ ﻭﺟﮧ ﺳﮯ 1404 ﮐﮯ ﺩﻭﺭﺍﻥ ﺳﻤﺮﻗﻨﺪ ﻭﺍﭘﺲ ﮔﯿﺎ۔ ﺑﯿﻤﺎﺭﯼ ﮐﮯ ﺑﺎﻭﺟﻮﺩ ﺍﺱ ﻧﮯ ﭼﯿﻦ ﻣﮩﻢ ﮐﯽ ﺗﯿﺎﺭﯾﺎﮞ ﺷﺮﻭﻉ ﮐﯿﮟ، ﻟﯿﮑﻦ 19 ﻓﺮﻭﺭﯼ 1405 ﮐﻮ ﻗﺎﺯﻗﺴﺘﺎﻥ ﻣﯿﮟ ﺗﯿﻤﻮﺭ ﮐﺎ ﺍﻧﺘﻘﺎﻝ ﮨﻮﮔﯿﺎ۔ ﻟﯿﮑﻦ ﺗﯿﻤﻮﺭﮐﮯ ﺟﺎﻧﮯ ﮐﮯ ﺑﻌﺪ ﺑﮭﯽ ﮨﻨﺪﻭﺳﺘﺎﻥ ﻣﯿﮟ ﯾﮧ ﺭﻭﺍﯾﺖ ﺟﺎﺭﯼ ﺭﮨﯽ۔ﺗﯿﻤﻮﺭﮐﮯ ﺗﻨﺰﻝ ﮐﮯ ﺑﻌﺪ ﻣﻐﻠﻮﮞ ﻧﮯ ﺑﮭﯽ ﺍﺱ ﺭﻭﺍﯾﺖ ﮐﻮ ﺟﺎﺭﯼ ﺭﮐﮭﺎ۔ﻣﻐﻞ ﺷﮩﻨﺸﺎﮦ ﮨﻤﺎﯾﻮﮞ ﻧﮯ ﺳﻦ 9 ﮨﺠﺮﯼ 962 ﻣﯿﮟ ﺑﮯﺭﻡ ﺧﺎﮞ ﺳﮯ 46 ﻭﺯﻥ ﮐﮯ ﺯﻣﺮﺭﺩﮐﺎ ﺑﻨﺎ ﮨﻮﺍ ﺗﻌﺰﯾﮧ ﻣﻨﮕﻮﺍﯾﺎ ﺗﮭﺎﺟﺒﮑﮧ ﺗﻌﺰﯾﮧ ﮐﺎ ﺍﺳﻼﻡ ﺳﮯ ﮐﻮﺋﯽ ﺗﻌﻠﻖ ﮨﯽ ﻧﮩﯿﮟ ﮨﮯ ۔
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MAKTABA AL FURQAN SAMI GUJARAT 9998561553
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