दुरूस किताबुत तौहीद

🔹दुरूस किताबुत तौहीद🔹

पार्ट:1

ख़तीब: शैख़ अब्दुल्लाह नासिर रहमानी

✍️....जुनैद रहमानी 

हिंदी अनुवाद: अब्दुल मतीन सैयद
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  बा'द-ए-हमद-ओ-सना
मुबारकबाद यह कि दौरे में किताबुत तौहीद जैसी 'अज़ीम किताब का इंतिख़ाब (चयन) किया यह किताब 'अक़ीदे तौहीद में अपनी मिसाल आप है और एक मुनफ़रिद (बे-मिसाल) किताब है जो इस किताब के उस्लूब (शैली) हैं वो दीगर (अन्य) किताब में नज़र नहीं आते।
  यह बार-बार पढ़ी जाए बार-बार सुनी जाए बल्कि (किंतु) हर गली में इस किताब का दर्स (lecture) हो ताकि लोग इस से ज़्यादा से ज़्यादा मुस्तफ़ीद (फ़ाइदा) हो सकें आप को मुबारकबाद दूंगा कि आप इस दौरे के लिए तशरीफ़ लाए और इंशा-अल्लाह तशरीफ़ लाते रहेंगे ताकि अल्लाह की तौफ़ीक़ से हम बड़े इख़्तिसार (संक्षेप) के साथ इस किताब को मुकम्मल (समाप्त) कर सकें और जो बुनियादी 'अक़ीदे के मसाइल हैं उन्हें समझ सकें सब से पहले ज़रूरी है कि मैं इस किताब के मुअल्लिफ़ (लेखक) अल-इमाम अल-मुजद्दिद मोहम्मद बिन अब्दुल वहाब रहिमहुल्लाह की तरफ़ अपनी सनद पहुँचा दूं ताकि इस सनद का इत्तिसाल हमारे लिए वाज़ेह (स्पष्ट) हो जाए और अल्लाह की तौफ़ीक़ से इस सनद में आप भी शामिल हो जाए।
  सनद इस उम्मत का इम्तियाज़ (पहचान) है अब्दुल्लाह बिन मुबारक रहिमहुल्लाह का कौल है "الاسناد من الدین" सनद दीन है अगर सनद न होती तो जो शख़्स चाहता जो मर्ज़ी कहता फिरता और ऐसे बहुत से लोग मौजूद हैं जो जी में (दिल में) आए कहते फिरते हैं क़िस्से कहानियां और उन का मुवाख़ज़ा (पकड़) सनद (दलील) की तलब (मांग) के साथ है इस की सनद (दलील) पेश करो जिस ने उन को 'आजिज़ (कमज़ोर) कर दिया।
  मोहम्मद बिन सिरिन रहिमहुल्लाह बड़ी चोटी के मुहद्दिस 'उलमा-ए-ताबि'ईन में से है फ़रमाया करते थे " سموا لنا رجالکم “
कि ऐ 'इल्म बयान करने वालों ज़रा अपने मशाइख़ का नाम तो बताओ अपने रिजाल (अकाबिरीन) हमारे सामने बयान तो करो तुम कहां से आए हो क्या तुम्हारा मख़रज (अस्ल) है।
  हाफ़िज़ इब्ने सलाह रहिमहुल्लाह जो फ़न-ए-हदीष और मुस्तलह के इमाम माने जाते हैं वो फ़रमाते हैं कि तलब-ए-'इल्म ('इल्म की तलाश) में इस्तिफ़ादा (नफ़ा' उठाना) शर्त (ज़रूरी) है एक बयान करने वाला कहाँ-कहाँ पढ़ने गया किस किस से पढ़ा कौन उस के मशाइख़ हैं ताकि मशाइख़ की मा'रिफ़त (पहचान) से हमारे सामने उन का मनहज वाज़ेह (स्पष्ट) हो जाए।
  बड़ी इस की अहमियत (महत्व) है
"ان هذا العلم دين فانظروا عمن تأخذون دينكم "
यह 'इल्म क्या है यह दीन है यह 'इल्म अल्लाह का नूर है और ख़ूब देखो और ग़ौर करो कि यह 'इल्म तुम किस से ले रहे हो ?
  किस से हासिल कर रहे हो और इसके लिए 'उलमा शर्त (ज़रूरी) हैं
क्यूंकि रसूल-ए-अकरम ﷺ ने 'उलमा ही को 'इल्म की बक़ा (हिफ़ाज़त) का सबब (कारण) क़रार दिया है सहीह बुखारी में हदीष है 
إنَّ اللهَ لا ينزِعُ العِلمَ مِن النَّاسِ انتزاعًا ينتزِعُه منهم بعدَ إذ أعطاهموه ولكِنْ بقَبْضِ العلماءِ فإذا لَمْ يَبْقَ عالِمٌ اتَّخَذ النَّاسُ رُؤساءَ جُهَّالًا يستفتونَهم فيُفتُونَ بغيرِ عِلمٍ فيَضِلُّونَ ويُضِلُّونَ
कि क़ियामत से क़ब्ल (पहले) 'इल्म उठा लिया जाएगा कि सीनों से 'इल्म नहीं उठाएगा बल्कि (किंतु) 'उलमा ही को उठा लेगा और वो 'इल्म अपने साथ ले के चले जाएंगे इस से क्या साबित हुआ कि 'इल्म की बक़ा (हिफ़ाज़त) का सबब (कारण) 'उलमा हैं किताबें नहीं तुम्हारी सीडी नहीं तुम्हारे कंप्यूटर नहीं बल्कि (किंतु) 'उलमा ('आलिम) तलब-ए-'इल्म ('इल्म सीखने) के लिए 'उलमा के पास जाया करो मैं ने मुबारकबाद आप को दी कि आप यहां चल कर आए तलब-ए-'इल्म के लिए चल के आना बड़ा बा-बरकत है रसूल-ए-अकरम ﷺ का फ़रमान है 
" من سلك طريقا يلتمس فيه علما سهل الله له به طريقا الى الجنة "
जो शख़्स एक राह (रास्ते) पर चले किस लिए ? तलब-ए-'इल्म के लिए नबी अलैहिस्सलाम के फ़रामीन (हुक्म) सुनने के लिए अल्लाह-त'आला उस का जन्नत का रास्ता आसान कर देता है।
  मैं यहां दो शख़्सियात आप के सामने पेश करता हूं कि उन का तलब-ए-'इल्म के लिए चल के जाना किन नताइज (अंजाम) का बा'इस (कारण) हुआ और एक तालिब-ए-'इल्म (student) क़ुरआन ने पेश किया है इस का चल के जाना ज़िक्र किया है क्यूंकि नाबीना (अंधा) था
بسم اللہ الرحمن الرحیم 
عبس و تولي ، ان جاءہ الاعمي.
नबी अलैहिस्सलाम के पास नाबीना आया उसे कुछ सुवालात के जवाब मतलूब थे हाज़िर-ए-ख़िदमत हो गया नाबीना (अंधा) था उस वक़्त रसूल-ए-अकरम ﷺ के पास कुछ रुऊसा-ए-मक्का (मक्का के सरदार) बैठे हुए थे और आप उन्हें दा'वत दे रहे थे दीन की चूंकि यह नाबीना था उन्हें माहौल नज़र न आया और अपना सवाल आ कर पेश कर दिया नबी अलैहिस्सलाम को यह अदब के मुनाफ़ी (ख़िलाफ़) लगा कुछ नागवार (अच्छा न) लगा और आप के माथे पर बल आ गए है।
यह वाक़ि'आ (घटना) मा'रूफ़ (मशहूर) है अल्लाह-त'आला क्या फ़रमाता है 
" فأما من جاءك يسعى فهو يخشى"
जो शख़्स आप के पास आया बड़ी कोशिश
करते हुए और तेज़ी के साथ चलते हुए ताकि आप से 'इल्म ले और इस का दिल अल्लाह की ख़शीय्यत (डर) से भरा हुआ है यह 'अमल ख़शिय्यत-ए-इलाही का मोजिब (कारण) है तलब-ए-'इल्म के लिए चलना और जाना अल्लाह-त'आला की ख़शीय्यत (डर) का मोजिब (कारण) है अल्लाह-त'आला ने उस की स'ई (कोशिश) पर उस की ख़शीय्यत (डर) की शहादत (गवाही) दी इस का दिल अल्लाह की ख़शीय्यत (डर) से लबरेज़ (भरा हुआ) है तो यक़ीनन जो लोग भी तलब-ए-'इल्म के लिए जाते हैं निकलते हैं चलते हैं वो दीन-ए-इस्लाम में इंतिहाई (बहुत) मो'तबर (पसंदीदा) हैं वो दर्स-गाह (मदरसा) की तरफ़ नहीं जा रहे बल्कि (किंतु) जन्नत की तरफ़ जा रहे हैं और जितना वक़्त वो बैठे रहे और 'इल्म के समा' (सुनने) का सिलसिला क़ाएम रहे उतना वक़्त क्या होता है वहीं जो पैग़ंबर अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया " जो लोग अल्लाह के किसी घर में बैठ जाए और 'इल्म का मुज़ाकरा (ज़िक्र) शुरू' हो जाए क़ुरआन-ओ-हदीष की ता'लीम शुरू' हो जाए जब तक बैठे रहेंगे अल्लाह-त'आला की रहमत उन्हें ढाँपें रहेंगी फ़रिश्ते अपने परों का साया करेंगे और अल्लाह-त'आला एक-एक शख़्स का नाम लेकर अपने फ़रिश्तों के सामने उस का ज़िक्र करेगा देखो फ़ुलाँ भी है फ़ुलाँ भी है और फ़ुलाँ भी है उस का चर्चा और उस का नाम 'अर्श-ए-मु'अल्ला पर गूँज रहा है अल्लाह-त'आला उस का नाम लेता है और फ़रिश्तों के सामने लेता है तो ग़ौर (विचार) कीजिए यह तलब-ए-'इल्म (सीखने) का सिलसिला है इतना बा-बरकत है बस अल्लाह रब्ब-उल-'इज़्ज़त हमारी निय्यतों में इख़्लास पैदा फ़रमा दे और हमें सहीह फ़हम ('अक़्ल) 'अता फ़रमा दे सहीह समझ 'अता फ़रमा दे क्यूंकि अस्ल फ़ज़ीलत (नेकी) सहीह समझ और फ़हम ('अक़्ल) की है त'अल्लुक़ बिल-दीन की नहीं है क्यूंकि पैग़ंबर अलैहिस्सलाम का फ़रमान है 
" من يريد الله به خيرا يفقه في الدين" 
अल्लाह-त'आला जिस शख़्स के साथ भलाई का फ़ैसला फ़रमा ले उसे क्या देता है ? दीन की समझ देता है।
  हमारे मुल्कों में दीन के साथ जज़्बाती त'अल्लुक़ (लगाव) है मगर फ़हम (समझ) नहीं नबी अलैहिस्सलाम की हुरमत (सम्मान) के नाम पर कट मरने के लिए तैयार होगे मगर पैग़ंबर अलैहिस्सलाम की सुन्नत पर 'अमल की तौफ़ीक़ नहीं तो दीन उन जज़्बात का नाम नहीं है
अल्लाह-त'आला दुनिया देता है ख़्वाह (चाहे) उस से मोहब्बत हो या न हो लेकिन दीन सिर्फ़ उस शख़्स को देगा जिससे अल्लाह को मोहब्बत होगी
तो तलब-ए-'इल्म (सीखने) का रास्ता अल्लाह-त'आला की मोहब्बत का रास्ता है और अगर यह 'इल्म किताब-ओ-सुन्नत की इत्तिबा' (पैरवी) का हो तो वो बंदा यक़ीनन (ज़रूर) अल्लाह-त'आला का महबूब बन जाता है क्यूंकि परवरदिगार (अल्लाह) का फ़रमान है 
" قُلْ اِنْ كُنْتُمْ تُحِبُّوْنَ اللّٰهَ فَاتَّبِعُوْنِیْ یُحْبِبْكُمُ اللّٰهُ "
ऐ पैग़ंबर कह दीजिए अगर तुम अल्लाह-त'आला की मोहब्बत के दा'वेदार हो या अल्लाह-त'आला की मोहब्बत के तलबगार होतो उस का एक ही रास्ता है एक ही सबील (तरीक़ा) है और वो यह कि मेरी इत्तिबा' (पैरवी) करो या'नी मोहम्मद रसूलुल्लाह ﷺ की इत्तिबा' (पैरवी) करो तो अल्लाह रब्ब-उल-'इज़्ज़त इस सिलसिले को बा-बरकत बना दे इस की तकमील (पूरा करने) की तौफ़ीक़ 'अता फ़रमा दे और सहीह फ़हम (समझ) तौहीद का और 'अक़ीदे का हमें 'अता फ़रमा दे।
  हमने सनद का ज़िक्र किया है हमारे शैख़ शैख़-उल-'अरब-व-'अजम 'अल्लामा बदीउद्दीन शाह राशदी रहिमहुल्लाह उनके बहुत से मशाइख़ में से एक शैख़, शैख़ अब्दुल हक़ अल-हाशमी जो मक्का-मुकर्रमा हरम के मुदर्रिस (उस्ताद) थे और वहीं हिजरत कर के आए और फ़ौत हुए वो उनके शैख़ हैं इस के 'अलावा हमारे एक और शैख़ मुहद्दिस जलालपुर पीर वाला मुल्तान शैख़ सुलतान महमूद रहिमहुल्लाह उनसे हम को इजाज़ा हासिल है और उनके शैख़ भी शैख़ अब्दुल हक़ हाशमी अल-मक्की रहिमहुल्लाह है शैख़ अब्दुल हक़ हाशमी रहिमहुल्लाह उनका तलम्मुज़ (शागिर्द) 'इराक़ के मुहद्दिस शैख़ अहमद बिन अब्दुल्लाह बिन सालिम अल-'इराक़ी से क़ाएम और हासिल है यह उनके शागिर्द (शिष्य) हैं और शैख़ अहमद 'अली अल-'इराक़ी यह शागिर्द हैं शैख़ अब्दुल रहमान इब्ने हसन रहिमहुल्लाह के जो शैख़-उल-इस्लाम मोहम्मद बिन अब्दुल वहाब रहिमहुल्लाह के पोते (grand -son) हैं और शैख़ अब्दुल रहमान अपने दादा के शागिर्द हैं या'नी शैख़ मोहम्मद बिन अब्दुल वहाब के तो इस तरह हमारी सनद का इत्तिसाल (सिलसिला) शैख़ की सनद में शामिल है और आप इस समा' (सुनने) में इस सनद में शामिल हो चुके हैं इंशा अल्लाह सनद में शामिल होना एक बड़ी फ़ख़्र और तमीज़ (शान) की बात है अल्लाह-त'आला हमें इस मक़ाम के तहफ़्फ़ुज़ (हिफ़ाज़त) की तौफ़ीक़ (हिम्मत) 'अता फ़रमा दे।

(जारी....)

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              पार्ट:2


  अल्लाह के बंदों तौहीद के बग़ैर (बिना) गुज़ारा नहीं अल्लाह-पाक का फ़रमान है 
जो शख़्स ईमान का इंकार कर बैठे उसके सारे 'अमल बर्बाद और ईमान क्या है ? ईमान में सर-ए-फ़िहरिस्त (सब से ज़रूरी) अल्लाह-त'आला पर ईमान लाना है बल्कि (किंतु) नबी अलैहिस्सलाम से पूछा गया सहीह बुखारी की हदीष है या रसूलुल्लाह सब से अफ़ज़ल (सब से अच्छा) 'अमल कौन सा है रसूल-ए-करीम ने इरशाद फ़रमाया ईमान-बिल्लाह अल्लाह पर ईमान लाना सब से अफ़ज़ल है।
  इस से यह बात भी समझिए कि ईमान को 'अमल कहा गया है बल्कि सब से अफ़ज़ल 'अमल क़रार दिया गया है और पैग़ंबर अलैहिस्सलाम की एक और हदीष है कि सारे आ'माल की सेहत (खरापन) और क़ुबूलियत इंसान की निय्यत पर है
अक्सर लोगों से पूछा जाता है कि आप मुसलमान क्यूं हैं ?
मोमिन क्यूं हैं ? उन का जवाब होता है क्यूंकि हमारे बाप दादा मुसलमान हमारा घराना (ख़ानदान) मोमिन है यह जवाब ग़लत है जो निय्यत मुस्तक़ीमा (सही) है उस के ख़िलाफ़ है ईमान सब से अफ़ज़ल 'अमल है और यह बे-कार निय्यत यहां नहीं चल सकेगी ईमान पर 'अमल करना ईमान के तक़ाज़ों को (ज़रूरत) को पूरा करना दीन-ए-इस्लाम की सब से अहम (ज़रूरी) बुनियाद है और अगर इस को आबा-ओ-अजदाद (बाप-दादा) की पैरवी पर डाल दिया जाए तो यह 'अमल भी ग़लत है निय्यत भी ग़लत है।
  आप मोमिन क्यूं हैं ? मुसलमान क्यूं हैं ? इस लिए कि ईमान लाना इस्लाम क़ुबूल करना अल्लाह का हुक्म है मेरे परवरदिगार का अम्र (आदेश) है जिस की ता'मील ('अमल) करना ज़रूरी है अक्सर लोग अपने मुसलमान होने के मक़्सद ही में ख़ता (ग़लती) के मुर्तकिब (अपराधी) है हर 'अमल (काम) में अपनी बरादरी (समाज) और आबा-ओ-अजदाद (बाप-दादा) की पैरवी (आज्ञा पालन) को तरजीह (प्रमुखता) देते हैं इस किताब में आप पढ़ेंगे कि यह गोशा भी शिर्क है सच्ची तौहीद का फ़हम (इल्म) हासिल कीजिए प्यारे पैग़ंबर मोहम्मद रसूलुल्लाह ﷺ उन का एक त'आरुफ़ (परिचय) आप के सहाबी जनाब अब्दुल्लाह बिन मस'ऊद रज़ियल्लाहु अन्हु कराते हैं और मैं समझता हूं कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम की इत्तिबा' (आज्ञा पालन) में यह एक ही हदीष काफ़ी (बस) है और बड़ी अहम (ख़ास) फ़रमाते हैं कि तुम्हारे नबी मोहम्मद रसूलुल्लाह ﷺ को अल्लाह-त'आला ने तीन चीज़ें दी हैं आप के फ़रामीन (हुक्म) आप की सुन्नतों और आप की हदीसों का तमय्युज़ (परखना) तीन चीज़ें हैं एक यह कि आप के फ़रामीन (आदेश) ख़ैर (भलाई) के फ़वातिह हैं (फ़वातिह जम' है फ़ातेह) और फ़ातेह का मा'नी (मतलब) खोलने वाले इसी से एक लफ़्ज़ (शब्द) आप जानते हैं मिफ़्ताह चाबी को बोलते हैं यह फ़ातेह (खोलने) का माख़ज़ (आधार) है।
  तो नबी अलैहिस्सलाम फ़वातिह-अल-ख़ैर दिए गए जो आप की हदीसें हैं आप की सुन्नतें हैं वो ख़ैर (भलाई) को खोलने वाली ख़ैर के ख़ज़ानों को खोलने वाली अगर किसी को ख़ैर (भलाई) हासिल करनी है और ख़ैर के ख़ज़ाने लूटने हैं उस पर यह फ़र्ज़ होगा कि वो अल्लाह के पैग़ंबर की हदीसों का 'इल्म हासिल करे और जो लोग पैग़ंबर-ए-इस्लाम की सुन्नतों से और हदीसों से दूर हैं वो ख़ैर के ख़ज़ाने हासिल नहीं कर सकते और उस के साथ-साथ जवामे' (समग्र) जो आप के फ़रामीन (आदेश) हैं बड़े जामे' हैं आप की हदीसें तासीर (प्रभाव) का दर्जा रखतीं हैं बा'ज़ (चंद) ऐसे फ़रामीन (आदेश) हैं एक ही हदीष ऐसे मनहज को खोलतीं है और दो-टूक (स्पष्ट) तरीक़े से कि दुसरी कोई गुंजाइश (मौक़ा') ही नहीं बचती एक मिसाल (उदाहरण) आप को देता हूं नबी अलैहिस्सलाम का फ़रमान सहीह मुस्लिम में है
"من عمل عملاً ليس عليه أمرنا فهو رد"
यह हदीष दो-टूक (स्पष्ट) तासीर " कलिमत-उल-फ़स्ल " है यह और पत्थर पर लकीर है जो जो शख़्स कोई ऐसा 'अमल (काम) करे जिस पे हमारा ठप्पा नहीं है हमारे से मुराद (मतलब) मोहम्मद रसूलुल्लाह ﷺ जिस पर हमारी मोहर नहीं जिस 'अमल को हमारी तस्दीक़ (गवाही) हासिल नहीं चाहे पूरी दुनिया उस की तस्दीक़ (पुष्टि) करे लेकिन अगर हमारी तस्दीक़ हासिल नहीं है तो वो 'अमल (काम) मर्दूद है।
  यह क़ौल-ए-फ़ैसल (आख़िरी बात) है कोई भी हो कोई क़ैद (पाबंदी) नहीं वो 'अरबी हो 'अजमी (ग़ैर-अरब) हो गोरा हो काला हो मशरिक़ (पूरब) का हो मग़रिब (पश्चिम) का हो मर्द हो या औरत हो आजिर (मालिक) हो ताजिर (व्यापारी) हो मुस्ताजिर (ज़मीन-दार) हो कोई भी हो कोई ऐसा 'अमल (काम) कर ले जिस में हमारा ठप्पा नहीं है 'अमल (काम) कुछ भी हो हज्ज हो 'उम्रा हो ज़कात हो क़िताल (युद्ध) हो अगर वो तरीक़ा हमारा इख़्तियार (पसंद) नहीं कर रहा है तो उस का वो 'अमल (काम) मर्दूद है कितनी जामे' (व्यापक) बात है या'नी (मतलब) एक जुमले में एक बड़ा मसअला वाज़ेह (स्पष्ट) किया है और यह बात समझादी कि जिस 'अमल (काम) को अल्लाह के पैग़ंबर की तस्दीक़ (गवाही) हासिल नहीं वो मर्दूद है
तो नबी अलैहिस्सलाम की हदीसें फ़वातिह उल-ख़ैर जवामे'-उल-ख़ैर और ख़वातिम-उल-ख़ैर हैं।
  इन हदीसों को पढ़ो इन पर ग़ौर करो इन को अपनाओ तुम्हारा एक बड़ा अहम (ख़ास) मरहला (मुश्किल काम) हल (आसान) हो जाएगा और वो यह है कि ख़ातिमा (मौत) ख़ैर पे होगा ख़ातिमा ख़ैर पे हो नबी अलैहिस्सलाम का फ़रमान है "انما الاعمال بالخواتم "
बंदों के आ'माल की क़ुबूलियत (रज़ामंदी) और सेहत (दुरुस्ती) का दार-ओ-मदार बंदों के ख़ातिमे पर है एक ही फ़ज़ीलत इतनी बड़ी है कि अगर यह एक ही हदीष होती नबी अलैहिस्सलाम की सुन्नत और हदीष की फ़ज़ीलत में तो किसी दूसरी चीज़ की हाजत (ज़रूरत) न होती 
पहली चीज़ फ़वातिह उल-ख़ैर कि नबी अलैहिस्सलाम की अहादीस ख़ैर की चाबी है मैं एक हदीष का हवाला देता हूं इस की सनद में कलाम है मगर उस की ताईद (पुष्टि) दूसरी हदीष से हासिल होती है
रसूलुल्लाह ﷺ का फ़रमान है
 " لا اله الا الله مفتاح الجنه"
ला-इलाहा-इल्लल्लाह जन्नत की चाबी है यह चाबी किस ने फ़राहम की मोहम्मद रसूलुल्लाह ﷺ ने यह आप की हदीष फ़वातिह उल-ख़ैर है ला-इलाहा-इल्लल्लाह जन्नत की चाबी है और इस की ताईद (पुष्टि) एक और हदीष से सहीह मुस्लिम की हदीष है नबी अलैहिस्सलाम का फ़रमान है " जो बंदा अच्छे तरीक़े से वुज़ू कर ले और फिर यह कलमा-ए-तौहीद अदा करे अशहदो-अन-ला-इलाह इल्लल्लाह मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह के सिवा कोई मा'बूद नहीं वोही ला-इलाहा-इल्लल्लाह यह कलमा-ए-तौहीद अदा करे और ताकीद के साथ अदा करे वहदहू वो अकेला है ला-शरीक उस का कोई शरीक नहीं यह कलिमा पढ़ ले फ़रमाया कि उसके लिए जन्नत के आठों (आठ के आठ) दरवाज़े खोल दिए जाए जहां से चाहे दाख़िल हो जाए।
  देखें यह कलिमा-ए-तौहीद जन्नत की चाबी है मा'नी (मतलब) जन्नत इस कलिमे से खुलेगी तौहीद के कलिमे से तौहीद के 'अक़ीदे से अगर आप की तौहीद में एक सूई के नाके के बराबर ख़लल (ख़ामी) है तो आप की ज़कात आप के सदक़ात आप के रोज़े आप का 'उम्रा हर-साल का हज्ज जन्नत के दरवाज़े को नहीं खोल सकता जन्नत के मेहवर (मध्य) और जन्नत के मदार (आधार) ला-इलाहा-इल्लल्लाह है 'अक़ीदा-ए-तौहीद इस लिए तौहीद की बड़ी इस्लाह (सुधार) की ज़रूरत है चूँकि (इसलिए कि) वुज़ू का ज़िक्र हुआ और पैग़ंबर अलैहिस्सलाम की इस हदीष का ज़िक्र हुआ कि आप के फ़रामीन (आदेश) फ़वातिह उल-ख़ैर हैं और जवामे'-उल-ख़ैर हैं और ख़वातिम उल-ख़ैर हैं तो ख़वातिम-उल-ख़ैर के त'अल्लुक़ से वुज़ू ही के हवाले से एक और हदीष सुन लीजिए सहीह इब्ने हिब्बान के हवाले से रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फ़रमाया कि जो शख़्स वुज़ू कर ले अच्छे तरीक़े से सुन्नत के मुताबिक़ (अनुसार) आप नाराज़ न होइएगा सर के मस्ह के बाद अलग से गर्दन का मस्ह ख़िलाफ़-ए-सुन्नत बिद'अत है अलग से बाज़ू पर हाथ फेरना बिद'अत है।
  और वुज़ू मिफ़्ताह-उल-सलात (नमाज़ की चाबी) है नबी अलैहिस्सलाम का फ़रमान है कि नमाज़ की चाबी वुज़ू है अगर यहीं गड़बड़ हो गई तो ग़लत चाबी से ताले नहीं खुलते किस तरह मफ़ातीह जो हैं वो तक़सीम हो रहे हैं जो शख़्स वुज़ू कर ले और एक और दु'आ का ज़िक्र वो पढ़ ले
سبحان اللهم و بحمدك أشهد أن لا اله الا انت استغفرك و اتوب اليك
वही कलिमा-ए-तौहीद
 اشہد لا الہ الا انت  
मैं गवाही देता हूं कि तेरे सिवा कोई मा'बूद नहीं वुज़ू के बाद यह दु'आ पढ़ ले बे-ऐनिही (बिल्कुल) वोही दु'आ है जो कफ़्फ़ारा मजलिस की दु'आ है इस का अज्र (सवाब) क्या है देखें ख़वातिम-उल-ख़ैर इस का अज्र (इनाम) यह है अल्लाह रब्ब-उल-'इज़्ज़त आप की इस दु'आ को हदीष में सख़्त अलफ़ाज़ है कि क़ीमती काग़ज़ पर लिखवाएगा बड़ी आ'ला (श्रेष्ठ) दस्तावेज़ पर यह कलिमात (शब्द) लिखे जाएंगे और फिर अपनी मोहर लगा देगा आगे क्या फ़रमाया इस मोहर को क़ियामत तक कोई तोड़ नहीं सकेगा
ख़ातिमा ख़ैर जिस शख़्स के एक 'अमल (काम) पर मोहर लग जाए और वो मोहर क़यामत तक क़ायम रहे उस का ख़ातिमा ख़ैर (भलाई) पर यक़ीनी है या नहीं ?
उस की मौत शिर्क पर आ सकती है ? कुफ़्र पर आ सकती है ? हरगिज़ (कभी) नहीं।
  पैग़ंबर अलैहिस्सलाम के फ़रामीन (आदेश) कितना 'अज़ीम (बहुत बड़ा) सरमाया (संपत्ति) है तो इन नुसूस (दलील) से ये वाज़ेह (स्पष्ट) हुआ कि जन्नत की चाबी एक ही नमाज़ें, रोज़े, हज्ज-व-ज़कात नहीं अगर तौहीद में ख़लल (बिगाड़) है तो इन में से कोई 'अमल (काम) जन्नत को खोलने की सलाहिय्यत (योग्यता) नहीं रखता जन्नत खुलेगी सिर्फ़ कलिमा ला-इलाहा-इल्लल्लाह की बरकत से बड़ा 'अज़ीम कलिमा 'अक़ीदा तौहीद की असास (आधार) 'अक़ीदा तौहीद की बुनियाद मगर सच्चे फ़हम (समझ) के साथ आगे दुरूस (lecture) में हम ने इस कलिमे पर बात करनी है इस का सहीह फ़हम (समझ) आप को देना है क्यूंकि सहीह फ़हम के साथ यह कलिमा पढ़ना और पढ़ाना क़ाबिल-ए-क़ुबूल होगा।
  यह 'अक़ीदा तौहीद की अहमियत (महत्व) तौहीद गुनाहों का कफ़्फ़ारा (बदला) तौहीद अल्लाह-त'आला के क़ुर्ब (नज़दीकी) का सबसे अक़रब (नज़दीक) रास्ता शॉर्टकट
जन्नत का शोर्टकट अल्लाह की रज़ा (ख़ुशी) का शोर्टकट सहीह मुस्लिम की एक तवील (लंबी) हदीष है अबूज़र ग़िफ़ारी रज़ियल्लाहु अन्हु की रिवायत से यह पैग़ंबर अलैहिस्सलाम के साथ थे और मदीने की गलियों में जा रहे थे अचानक उहद पहाड़ सामने आ गया हमारी मोहब्बतों का मरकज़
"هذا جبل يحبنا و يحبكم،"
यह उहद पहाड़ हम से मोहब्बत करता है हम उससे मोहब्बत करते हैं नबी ﷺ ने अबूज़र ग़िफ़ारी को एक 'इल्म दिया ऐ अबूज़र 
"ما یسرنی ان یکون احد لی ذھبا"
यह उहद पहाड़ है यह छे, सात कीलो-मीटर के तूल-ओ-'अर्ज़ (लंबाई चौड़ाई) में यह फैला हुआ है मुझे यह बात पसंद ही नहीं कि मुझे यह पहाड़ सोने का बना कर दे दिया जाए अगर यह पहाड़ मुझे सोने का बना कर दे दिया जाए मुझे कोई ख़ुशी नहीं होगी ग़ौर करें पैग़ंबर अलैहिस्सलाम का त'अल्लुक़ जा कर कहा जुड़ता है यह दुनिया नहीं दुनिया के मरासिम (रिवाज) नहीं यह दुनिया के दिरहम-ओ-दीनार (दौलत) नहीं।
  त'अल्लुक़ बिल्लाह मुझे कोई ख़ुशी न होगी क़िस्सा तवील (लंबा) है आगे चलते गए बढ़ते गए और पैग़ंबर अलैहिस्सलाम कुछ बातें करते गए कि आख़िर (अंत) में फ़रमाया कि अबूज़र " मकानक " यहां खड़े हो जाओ ठहर जाओ यहां से हिलना नहीं जब तक मैं वापस न आ जाऊं वहां खड़ा कर गए और ख़ुद आगे चले गए अबूज़र फ़रमाते हैं कि मुझे एक ज़ोर-दार धमाके की आवाज़ आई बहुत ऊंची आवाज़ में घबरा गया कि प्यारे नबी अकेले गए हैं कोई परेशानी न हो गई हो इरादा किया कि दौड़ के जाऊं और जा कर अपने नबी को देखूं पैग़ंबर अलैहिस्सलाम की हदीष याद आ गई कि यहां ठहरे रहना यहां से हिलना नहीं अब 'अजीब कश्मकश (परेशानी) एक तरफ़ पैग़ंबर अलैहिस्सलाम के हवाले से तशवीश (घबराहट) है दूसरी तरफ़ पैग़ंबर अलैहिस्सलाम का फ़रमान यहां से हिलना नहीं।
  उन्होंने किस चीज़ को मुक़द्दम (अनिवार्य) किया ? और एक सलफ़ी फ़िक्र क्या है ? अल्लाह के पैग़ंबर का फ़रमान अभी शैख़ भी फ़रमा रहे थे कि पैग़ंबर अलैहिस्सलाम का फ़रमान पैग़ंबर अलैहिस्सलाम की सुन्नत हर चीज़ पर मुक़द्दम (अफ़ज़ल) है
एक तरफ़ नबी अलैहिस्सलाम की ज़ात के त'अल्लुक़ से ख़तरा पैदा हो गया एक तरफ़ पैग़ंबर अलैहिस्सलाम का फ़रमान यहां से हिलना नहीं चूँकि (इसलिए कि) पैग़ंबर अलैहिस्सलाम का हुक्म था आप का अम्र (आदेश) था यहां खड़े रहना मगर बड़े मुज़्तरिब (हैरान) कितना तड़पे होंगे लेकिन नबी अलैहिस्सलाम के फ़रमान को नहीं छोड़ा थोड़ी देर बाद पैग़ंबर अलैहिस्सलाम तशरीफ़ ले आए अबूज़र ग़िफ़ारी मुतमइन (संतुष्ट) हुए और नबी अलैहिस्सलाम को अपनी तशवीश (घबराहट) से आगाह (सूचित) किया गया आप ने फ़रमाया कि अबूज़र तुम ने भी आवाज़ सुनी थी 'अर्ज़ किया कि जी-हाँ फ़रमाया यह जिब्रील-ए-अमीन थे बार-बार आते थे मगर आज एक मुनफ़रिद-अंदाज़ से आए बड़ा शोर कर के एक धमाका सा कर के क्यूंकि एक बड़ा अहम (ख़ास) पैग़ाम (संदेसा) अल्लाह की तरफ़ से लाए थे उस अहम पैग़ाम को सुनाने के लिए जिब्रील-ए-अमीन मा'मूल की तरह आराम से नहीं आए बल्कि (किंतु) एक शोर के साथ आए इस पैग़ाम की अहमियत (महत्व) को उजागर (स्पष्ट) करने के लिए वो पैग़ाम क्या था अबूज़र ग़िफ़ारी सरापा-ए-इश्तियाक़ बन के उस फ़रमान को सुनने के लिए तैयार हो गए रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फ़रमाया कि अबूज़र आज अल्लाह ने पैग़ाम यह भेजा है कि आप की उम्मत का हर वो फ़र्द (शख़्स) इस हाल में मर जाए कि उसने शिर्क न किया हो वो जन्नत में दाख़िल हो जाएगा वो जन्नती वो जन्नती।
  अबूज़र ग़िफ़ारी ने एक सवाल कर लिया बड़ा अहम सवाल पूछा वो शख़्स ज़िना करे चोरी करे फिर भी ? फ़रमाया कि वो ज़िना का इर्तिकाब करे ख़्वाह (चाहे) वो चोरी का इर्तिकाब करे फिर भी (वो जन्नती होगा) अगर वो गुनाह करता है अव्वल (पहले) तो वो गुनाह नहीं करेगा 'अक़ीदा-ए-तौहीद बंदे को अल्लाह की ख़शीय्यत (डर) से भर देता है और यह त'अल्लुक़ बिल्लाह अल्लाह के ख़ौफ़ (डर) का ज़री'आ है ऐसा बंदा गुनाह का इर्तिकाब नहीं करता अगर हो जाए तो अल्लाह-त'आला उस को तौबा की तौफ़ीक़ देता है लेकिन वो तौबा भी न कर सका तो कल क़यामत के दिन उसका मु'आमला अल्लाह के सामने होगा अल्लाह की मशिय्यत (इच्छा) के साथ चाहे तो उस को इन गुनाहों की सज़ा दे दे और चाहे तो उस की इंतिहाई (बहुत) क़वी (मज़बूत) और ठोस तौहीद की बिना (बुनियाद) पर इन गुनाहों को मु'आफ़ भी कर दे और इब्तिदाअन (शुरू') में किसी 'अज़ाब के बग़ैर जन्नत में दाख़िल कर दे यह तौहीद की 'अज़मत (सम्मान) है कि यहां इब्तिदा (शुरू'आत में) बख़्शिश का इम्कान (संभव) है यह तौहीद की ताक़त है।

(#जारी...)

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