क्या कपड़ा या ऊन (wool) के मोज़ा पर मस्ह करना दुरुस्त है ?|Kya kapda Ya Unn ke Mozah par Masha karna Durust hai?
ठंडी का मौसम है शुमाली (north) हिंदुस्तान और दीगर (अन्य) 'इलाक़ो में ठंडी सख़्त (बहुत ज़ियादा) होती है लोग ठंडी से बचने के लिए गर्म कपड़े और मोज़ा पहने होते हैं 'उमूमन (अक्सर) ठंडी में जब नमाज़ के लिए वुज़ू करना होता है तब मोज़ा को निकालना बहुत मुश्किल गुज़रता है इसी को देखते हुए शरी'अत ने आसानियां पैदा की हैं और मोज़ा को निकालने के ब-जाए (बदले में) इस के ऊपरी हिस्से पर मस्ह करने का हुक्म (आदेश) दिया है मोज़ा अगर चमड़े का होतो उस पर मस्ह करने के मुत'अल्लिक़ (बारे में) कोई इख़्तिलाफ़ (मतभेद) नहीं लेकिन क्या कपड़े या ऊनी मोज़े पर मस्ह किया जाएगा यह सवाल हमेशा से गर्दिश करता है और लोग ला-'इल्मी (अज्ञानता) की वजह (कारण) से शरी'अत की एक रुख़्सत (इजाज़त) से फ़ाइदा (लाभ) नहीं उठा पाते कई लोगों को जो ऑफ़िस में काम करते हैं हर-वक़्त मोज़ा निकालते देखा तो ज़ेहन (मन) में यह सवाल आया कि क्यूं न इस मसअला (विषय) पर 'उलमा की आरा (राय) को क़लम-बंद कर दिया जाए तो लोगों के शुकूक-ओ-शुब्हात (शंकाएं) का इज़ाला (निवारण) हो जाए ज़ैल (नीचे) के सुतूर (लकीरें) में नस (लेख) और 'उलमा के अक़्वाल (कथन) की रौशनी-में (सामने रख के) इस मसअला का जाइज़ा लिया जाएगा।
ख़ुफ़्फ़ या'नी (मतलब) चमड़े के मोज़े के 'अलावा (सिवा) कपड़े के मोज़े पर मस्ह करना पंद्रह (15) से ज़ाइद (अधिक) अहादीस से साबित है तवालत (लंबाई) के ख़ौफ़ (डर) से सारे अहादीस को यहां ज़िक्र करने से गुरेज़ करते हुए चंद को ज़िक्र किया जाएगा।
(1) हज़रत मुग़ीरा बिन शोबा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नबी-ए-करीम ﷺ ने वुज़ू किया और अपने जौरब या'नी कपड़े के मोज़े पर और चमड़े के मोज़े पर मस्ह किया।
(सुनन अबू दाऊद 'अल्लामा अल्बानी ने इसे सहीह क़रार दिया है) जौरब या'नी कपड़े के मोज़े पर मस्ह करना सहाबा की एक जमा'अत से साबित है
इमाम अबू दाऊद रहिमहुल्लाह अपनी सुनन में फ़रमाते हैं:
हज़रत अली बिन अबू-तालिब, इब्ने मसऊद, बरा बिन आज़िब, अनस बिन मालिक, अबू उमामा, सह्ल बिन साद, अम्र बिन हुरैस रज़ियल्लाहु अन्हुमा अज्म'ईन से कपड़े के मोज़े पर मस्ह करना साबित है हज़रत उमर बिन खत्ताब और अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से भी जौरब (मोज़ों) पर मस्ह करने का सुबूत रिवायत में मौजूद है जौरब (मोज़ों) पर मस्ह करने के 'अदम-जवाज़ (जायज़ न होने) में किसी भी सहाबी का क़ौल (कथन) नहीं है लिहाज़ा (इसलिए) यह इज्मा' (सहमति) और हुज्जत (दलील) है बा'ज़ (कुछ) सहाबा व ताबि'ईन के नज़दीक कपड़े के मोज़े पर और चमड़े के मोज़े पर मस्ह करने की रुख़्सत (छुट्टी) में कोई फ़र्क़ नहीं है बल्कि (किंतु) दोनों हुक्म में मुसावी या'नी बराबर हैं (जो हुक्म चमड़े के मोज़ा पर मस्ह करने का है वहीं हुक्म कपड़े के मोज़े पर मस्ह करने का भी है)
इन्हीं आसार में से एक असर (निशान) याहया अल-बका का है फ़रमाते हैं:
मैं ने हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा को फ़रमाते सुना: " जौरब या'नी कपड़े के मोज़े पर मस्ह करना ख़ुफ़्फ़ या'नी चमड़े के मोज़े पर मस्ह करने के ही जैसे है " (मुसन्नफ़ अब्दुल रज़्ज़ाक़:1/201 हदीष नंबर:782, मुसन्नफ़ इब्न अबी शैबा:1/173 हदीष नंबर:1994 और इस की सनद " हसन " है)
अल-अज़रक़ बिन क़ैस फ़रमाते हैं कि मैं ने अनस बिन मालिक को देखा कि उन्होंने हदस (नापाकी) लाहिक़ होने के बाद अपने चेहरे (मुंह) और दोनों हाथ को धोया फिर सर का मस्ह किया और फिर अपने ऊनी मोज़े पर मस्ह किया मैं ने उनसे कहा:
आप ने इन दोनों (ऊनी मोज़े) पर मस्ह किया ? हज़रत अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया: यह दोनों भी मोज़े ही हैं बस फ़र्क़ इतना है कि ऊन के हैं।
(الدولابی فی الکنی والاسماء، رقم: 1009
इसे अहमद शाकिर ने सहीह क़रार दिया है)
इमाम अबू 'ईसा तिर्मिज़ी फ़रमाते हैं कि मैं ने सालेह बिन मुहम्मद अल-तिर्मिज़ी को फ़रमाते हुए सुना कि मैं ने अबू मक़ातिल अल-समरक़ंदी को फ़रमाते हुए सुना वो फ़रमाते हैं कि मैं एक दिन इमाम अबू हनीफ़ा रहिमहुल्लाह जब मरज़-उल-मौत में मुब्तला थे तो उन की ज़ियारत को गया तो मैंने देखा कि इमाम अबू हनीफ़ा रहिमहुल्लाह ने वुज़ू के लिए पानी मँगाया और वुज़ू करने के बाद अपने दोनों मोज़े जो कपड़े के थे पर मस्ह किया फिर फ़रमाया: मैं ने आज वो 'अमल (काम) किया है जिसे मैं ने पहले कभी नहीं किया था मैं ने अपने उन मोज़े पर मस्ह किया जो चमड़े के नहीं हैं।
(सुनन तिर्मिज़ी:1/169)
इमाम इब्राहीम अल-नखई रहिमहुल्लाह फ़रमाते हैं:
" जिस ने भी कपड़े के मोज़े पर मस्ह करने से ए'राज़ (इंकार) किया गोया (जैसे) वो शैतान है
(مصنف ابن ابی شیبہ: 164/1، رقم: 1885، تحقيق الألباني لرسالة "المسح على الجوربين و النعلين" القاسمي (58)
मोज़ा पर मस्ह करने के शुरूत (शर्तें)
मोज़ा ख़्वाह (चाहे) चमड़े का हो या ग़ैर चमड़े का उस पर मस्ह करने के ज़ैल (नीचे की) शुरूत (शर्तें) हैं:
(1) उन दोनों को वुज़ू की हालत में पहना गया हो।
(2) दोनों के दोनों पांव साफ़ हो।
(3) मोज़े पर मस्ह सिर्फ़ (केवल) हदस-ए-असग़र में ही होगा अकबर जैसे जनाबत या ग़ुस्ल वाजिब करने वाले ग़ुस्ल में नहीं।
(4) मस्ह एक मशरू' वक़्त-ए-मुहद्दद में ही होगा मुक़ीम (निवाशी) के लिए एक दिन और एक रात और मुसाफ़िर के लिए तीन दिन और तीन रात और मस्ह के वक़्त का ए'तिबार (भरोसा) मस्ह के वक़्त से होगा न कि मोज़ा पहनने के वक़्त से।
दलील:
(1) हज़रत मुग़ीरा बिन शोबा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है फ़रमाते हैं:
मैं एक सफ़र में नबी-ए-करीम ﷺ के साथ था मैं आप का मोज़ा निकालने के लिए झुका तो आप ﷺ ने फ़रमाया: छोड़ दो मैं ने वुज़ू की हालत में पहना था फिर आप ने दोनों पर मस्ह किया।
(बुख़ारी और मुस्लिम)
(2) हज़रत सफ़वान बिन अस्साल रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है फ़रमाते हैं कि नबी-ए-करीम ﷺ ने हमें हुक्म दिया कि जब हम सफ़र में रहें या मुसाफ़िर की हालत में क़ियाम करें तो तीन दिन और तीन रात अपने मोज़े को सिवाए जनाबत या'नी हदस-ए-अकबर लाहिक़ होने के न निकाले और क़ज़ा-ए-हाजत (पाख़ाना) या नींद की वजह (कारण) से न निकाले अलबत्ता (लेकिन) वक़्त-ए-मुक़र्ररा गुज़र जाए तो निकाले।
(तिर्मिज़ी: हदीष हसन सहीह)
मोज़ा पर मस्ह करने का तरीक़ा
मोज़ा ख़्वाह (चाहे) चमड़े का हो या कपड़े का पर मस्ह करने का तरीक़ा यह है कि उसके ऊपरी हिस्से पर उँगलियों के किनारों से मस्ह किया जाएगा।
दलील: हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं: मैं ने नबी-ए-करीम ﷺ को मोज़े के ज़ाहिरी (ऊपरी) हिस्से पर मस्ह करते हुए देखा।
(सुनन अबू दाऊद)
कपड़े या ऊनी मोज़ा पर मस्ह करने के जवाज़ में ताबि'ईन के अक़्वाल (कथन)
ताबि'ईन की एक बड़ी जमा'अत जौरब या'नी कपड़े के मोज़े पर मस्ह करने के क़ाइल है चंद अक़्वाल मुलाहज़ा हो
(1) हज़रत सईद बिन मुसय्यिब रहिमहुल्लाह फ़रमाते हैं:
कपड़े या ऊन का मोज़ा मस्ह करने में चमड़े के मोज़े के हुक्म में ही है या'नी इस पर भी वैसा ही मस्ह होगा जैसे चमड़े के मोज़े पर होता है।
(2) हज़रत 'अता रहिमहुल्लाह से जौरब (मोज़ा) पर मस्ह के मुत'अल्लिक़ (बारे में) सवाल किया गया तो उन्होंने फ़रमाया:
हां इस पर वैसे ही मस्ह करो जैसे चमड़े के मोज़े पर करते हो।
(मुसन्नफ़ इब्न अबी शैबा:1/173)
(3) इब्राहीम नखई रहिमहुल्लाह के नज़दीक कपड़े के मोज़े पर मस्ह करने में कोई हरज नहीं है।
(4) आ'मश से कपड़े के मोज़े पर मस्ह करने के मुत'अल्लिक़ (बारे में) सवाल हुआ कि क्या कोई कपड़े का मोज़ा पहने रात गुज़ारा हो तो उस पर मस्ह कर सकता है ?
तो उन्होंने हां में जवाब दिया।
(5) हसन बसरी के नज़दीक जौरब (मोज़ा) और ख़ुफ़्फ़ मस्ह करने के हुक्म में बराबर हैं।
(6) जौरब पर मस्ह करने के क़ाइलीन (मानने वालों) में सईद बिन जुबैर, नाफ़े' मौला बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा,'अकर्मा, अब्दुल्लाह बिन मुबारक रहिमहुल्लाह भी हैं।
(7) सुफ़्यान अल-सूरी फ़रमाते हैं कि अबू 'अम्र ने फ़रमाया कि कपड़े के मोज़े पर मस्ह करने के क़ाइलीन ताबि'ईन में से अता बिन अबी रबाह, हसन अल-बसरी, सईद बिन अल-मुसय्यिब, अल-नखई, हसन बिन अबी सालेह, इब्ने अल-मुबारक, ज़फ़र, अहमद और इसहाक़ रहिमहुल्लाह हैं।
'अल्लामा इब्ने हज़्म रहिमहुल्लाह फ़रमाते हैं:
मोज़ा पर मस्ह करने के लिए चमड़े का होना शर्त लगाना बे-मा'ना (बेकार) है क्यूंकि इस का ज़िक्र न क़ुरआन में है और न ही सुन्नत में न ही क़ियास में और न ही किसी के क़ौल में कपड़े के मोज़े पर मस्ह करने से रोकना ग़लत है क्यूंकि यह नबी ﷺ से साबित-शुदा सुन्नत आसार-ए-सहाबा व ताबि'ईन के ख़िलाफ़ है नबी ﷺ ने मोज़े पर मस्ह करने में चमड़े का होना ही ख़ास नहीं किया है यही क़ौल इब्ने तैमियाह रहिमहुल्लाह का भी है।
'अल्लामा इब्न अल-हम्माम फ़तह अल-क़दीर में इस तावील (व्याख्या) के रद में फ़रमाते हैं:
मोज़े पर मस्ह करने के जवाज़ (सहीह होने) को चमड़े के साथ ख़ास करना दलील का मोहताज है और इसे ज़रुरी क़रार देना बिला-वजह (बेबुनियाद) है या'नी मोज़ा पर मस्ह करना यह जाइज़ है और इसे चमड़े का होना के साथ मशरूत (सीमित) कर देना बिला-दलील है।
ख़ुलासा (निचोड़): मोज़ा ख़्वाह (चाहे) चमड़े का हो या कपड़ा या ऊन का उस पर मस्ह करना सहीह और साबित है।
वल्लाहु-आ'लम
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हिंदी अनुवाद: अब्दुल मतीन सैयद
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