नौजवानाने इस्लाम और मीडिया का किरदार | Naujawanane Islam Aur Media Ka Kirdar

 नौजवानाने इस्लाम और मीडिया का किरदार | Naujawanane Islam Aur Media Ka Kirdar



वालिदैन (मां-बाप) का अपनी औलाद की तर्बियत (परवरिश) करना एक ने'मत (उपहार) और औलाद पर बड़ा एहसान है ज़रूरी है कि औलाद भी अपने वालिदैन (मां-बाप) को इस का बदला दे तर्बियत (परवरिश) के हवाले से यह बात याद रखने की है इस से मुराद (मतलब) औलाद के लिए सिर्फ़ (केवल) खाने पीने की चीज़ों की फ़राहमी (भंडार) नहीं है यह तो जानवरों की तर्बियत (परवरिश) का अंदाज़ है इस से ज़ियादा अहम (ज़रूरी) इस की मा'नवी (अस्ली) या'नी (मतलब) जिस्म (शरीर) से ज़ियादा रूह की तर्बियत (परवरिश) है जिसमें उसके फ़ितरत (प्रकृति) की हिफ़ाज़त भलाई की तरफ़ उसकी रहनुमाई (रास्ता बताना) उसके दिल की ज़मीन पर ख़ैर (भलाई) का पौदा लगाना और भलाई पर उसकी नश्व-ओ-नुमा (परवरिश) यह है वो अस्ल तर्बियत (ता'लीम) जो मुफ़ीद (उपयोगी) भी है और बच्चों पर जिसके आसार (गुण) भी उसकी 'उम्र के साथ बाकी रहने वाले हैं।


दौर-ए-हाज़िर के नौजवान कई तरह की परेशानियों के शिकार हो चुके हैं वो कई ख़तरनाक हमलों का सामना कर रहे हैं मुख़्तलिफ़ (अलग-अलग) जिहात (दिशाएं) और मुत'अद्दिद (अनेक) असालीब (तौर तरीक़े) को इस्ते'माल में लाकर मिल्लत-ए-इस्लामिया की इस ताक़तवर जत्थे को कमज़ोर करने की पूरी कोशिश की जा रही है अगर उन्हें यूहीं छोड़ दिया गया तो यह सारे हमले उनके अख़्लाक़ उनके चाल-चलन और उनके 'अक़ाइद को बिगाड़ सकते हैं बल्कि (किंतु) बहुत हद तक बिगाड़ चुके हैं टेलीविज़न, मैगज़ीन, किताबें, मोबाइल और इंटरनेट के ज़री'आ पेश किए जाने वाले ज़हर-भरे प्रोग्राम जो किसी न किसी ज़राए' (माध्यम) से नौजवानों तक पहुंच रहे हैं अगर उन पर तवज्जोह (ध्यान) न दी गई तो इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया का यह सैलाब उन्हें कहीं दूर बहा ले जाएगा और इस तरह वो मिल्लत (क़ौम) के लिए नाकारा (बे-कार) बन जाएंगे जिस से क़ौम-ओ-मिल्लत को ही नुक़्सान पहुँचने वाला है और पहुंच रहा है।


यह ज़हर-आलूद वसाइल (माध्यम) के नतीजे में बहुत सारे नौजवान अपनी हैअत (शक्ल) और लिबास में यूरप और ग़ैर क़ौमों की नक़्क़ाली (नक़्ल) करने लगे उनके शु'ऊर-ओ-एहसास (समझ) और हरकात-ओ-सकनात ('आदत) में यूरोप की जगमगाती दुनिया रस-बस चुकी है यहां तक कि उनके 'अक़ाइद भी बिगड़ गए कोई मुल्हिद (बे-दीन) बन गया कोई कम्युनिस्ट बन गया तो कोई किसी और ख़तरनाक फ़िक्र का हामिल और दा'ई बन गया मीडिया के फैलाव के नतीजे में कोई मुशरिक बन रहा है तो कोई बिद'अती कोई मज़ारात को ज़िंदा कर रहा है तो कोई ख़ानक़ाहों को तो कोई बाबाओं का रूप धार कर लोगों के ईमान और पैसों से खिलवाड़ कर रहा है और यह सब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के तवस्सुत (माध्यम) से हो रहा है जिस का शिकार 'उमूमन (अक्सर) नौजवान हो रहे हैं हाथों में मोबाइल और कान में ब्लूटूथ मुसलमान नौजवानों की पहचान बनती जा रही है 'इल्म से दूर दीन से बेज़ार (नाराज़) ख़ाली ज़ेहन (नासमझ) नौजवानों के पास जब यह मसमूम शुब्हात (मुग़ालता-आमेज़ (भटकाने वाली) बातें) और शहवत भरे मनाज़िर (नज़ारे) पहुंचेंगे तो यक़ीनन (ज़रुर) यह नौजवान उन की तरफ़ राग़िब (आकर्षित) होंगे और दीन-ओ-दुनिया को भस्म करने वाले यह सारे अफ़्कार (काम) उनके ज़ेहनों (बुद्धि) में समाझाएंगे अगर उनकी गिरिफ़्त (पकड़) नहीं की गई तो यह सारे ख़ुराफ़ात (बुराई) उनके दिलों में रासिख़ (मज़बूत) हो जाएंगे जिन्हें बाद में उनके दिल-ओ-दिमाग़ से निकालना बहुत दुश्वार (मुश्किल) हो जाएगा।
 

अल्लाह-त'आला का इरशाद है:
(يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا قُوا أَنفُسَكُمْ وَأَهْلِيكُمْ نَارًا وَقُودُهَا النَّاسُ وَالْحِجَارَةُ)(سورۃ التحریم: 6)
तर्जमा: ऐ ईमान वालों तुम अपने आप को और अपने घर वालों को उस आग से बचाओ जिस का ईंधन इंसान हैं और पत्थर।
(सूरा अत्-तह़रीम:6)


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लेखक: नदीम अख़्तर सलफ़ी

हिंदी अनुवाद: अब्दुल मतीन सैयद





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