पानी की हिफ़ाज़त | Pani Ki Hifazat

पानी की हिफ़ाज़त (पार्ट:2)


लेखक: शैख़ अस'अद आज़मी
 ‌‌जामि'आ सलफ़िया बनारस

हिंदी अनुवाद: अब्दुल मतीन सैयद
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पानी का तहफ़्फ़ुज़ (हिफ़ाज़त) अहादीस ए नबविय्या की रौशनी-में

नबी-ए-आख़िरुज़्ज़माँ जनाब मोहम्मद रसूलुल्लाह ﷺ ने अपने अक़्वाल-व-आ'माल दोनों के ज़री'आ पानी जैसी 'अज़ीम ने'मत की क़द्र करने और उसे ज़ाए' (नष्ट) करने से बचाने की तर्ग़ीब (प्रेरणा) दी है
हज़रत जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है:
’’إِنَّ النَّبِيَّ ﷺ نَھَی أَنْ یُبَالَ فِي الْمَاءِ الرَّاکِدِ‘‘ (مسلم:۲۸۱)
तर्जमा: रसूल-ए-अकरम ﷺ ने ठहरे हुए पानी में पेशाब करने से मना' फ़रमाया है।
(मुस्लिम:281)
  नदियों और समुंदरों के पानी के बर-'अक्स (विरुद्ध) झील, तालाब और हौज़ वग़ैरा का पानी एक जगह ठहरा रहता है इस में अगर किसी तरह की गंदगी पड़ती है तो पूरा पानी गंदा हो जाता है और इस्ते'माल के क़ाबिल (लायक़) नहीं रह जाता इस लिए ऐसे पानी में पेशाब पाख़ाना या किसी तरह की गंदगी नहीं जाने देना चाहिए ताकि वो पानी महफ़ूज़ रहे और ख़ल्क़ कसीर इस से इस्तिफ़ादा करे।

एक रिवायत में अल्लाह के रसूल ﷺ का यह फ़रमान भी है:
 ’’إذَا اسْتَیْقَظَ أحَدُکُمْ مِنْ نَوْمِہِ فَلاَ یَغْمِسْ یَدَہٗ فِي الْإِنَاءِ حَتَّی یَغْسِلَھَا ثَلَاثًا، فَإِنَّہُ لَا یَدْرِيْ أَیْنَ بَاتَتْ یَدُہٗ‘‘ (مسلم:۶۴۳)
तर्जमा: जब तुम में से कोई अपनी नींद से बेदार हो तो उस वक़्त तक अपने हाथ बर्तन में न डालें जब तक उसे तीन मर्तबा धो न ले क्यूंकि उसे नहीं मालूम कि रात में उसका हाथ कहाँ-कहाँ रहा।
(मुस्लिम: 643)
'अमली ए'तिबार से देखा जाए तो मा'लूम होता है कि नबी-ए-करीम ﷺ पानी के इस्ते'माल में कितने मोहतात (सावधान) थे चुनांचे (इसलिए) हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं:
’’کَانَ النَّبِیُّ ﷺیَتَوَضَّأُ بِالْمُدِّ وَیَغْتَسِلُ بِالصَّاعِ إِلَی خَمْسَۃِ أَمْدَادٍ‘‘ (مسلم :۷۳۷) 
तर्जमा: नबी ﷺ एक मुद पानी से वुज़ू करते थे और एक सा' (चार मुद) से लेकर पांच मुद तक पानी से ग़ुस्ल करते थे।
(मुस्लिम:737)
  सा' पैमाइश (नापने या मापने) का एक बर्तन है जिसमें मौजूदा पैमाने के ए'तिबार से दो किलो सो ग्राम से लेकर ढाई किलो तक सामान आता है और मुद इस का एक चौथाई (250 ग्राम) होता है यानी चार मुद का एक सा' होता है इस तरह एक मुद में निस्फ़ (आधा) लीटर से कुछ ज़ियादा पानी आ सकता है गोया (जैसे) नबी-ए-अकरम ﷺ ग़ुस्ल में ढाई लीटर से तीन लीटर तक पानी इस्ते'माल करते थे और वुज़ू में निस्फ़ (आधा) लीटर से कुछ ज़ियादा पानी इस्ते'माल करते थे आज हम वुज़ू और ग़ुस्ल में कितना कितना पानी बहा देते हैं जितने पानी से अल्लाह के रसूल ﷺ ग़ुस्ल  फ़रमाँ लिया करते थे बहुत से लोग इतने पानी में वुज़ू भी नहीं कर पाते।

*पानी की अहमियत (महत्व) और इस का बोहरान (संकट)*

  ज़िंदगी के लिए पानी की क्या अहमियत (महत्व) है इसे समझने और समझाने की ज़रुरत है ग़िज़ा (खाने) के बग़ैर तो इंसान और दूसरी मख़्लूक़ात कुछ दिन ज़िंदा रह सकती है लेकिन पानी के बग़ैर ऐसा मुश्किल है बताया जाता है कि हमारे बदन (शरीर) का दो-तिहाई (two-third) हिस्सा पानी ही पर मुश्तमिल (आधारित) है किसी मरीज़ (बीमार) को ब-वक़्त ए ज़रूरत हॉस्पिटल में दाख़िल किया जाता है तो 'उमूमन (अक्सर) यह देखने में आता है कि उसे पानी की नलकी (नली) ज़रूर लगाईं जाती है यह भी बताया गया है कि इस काइनात (दुनिया) में दो-तिहाई हिस्सा पानी और सिर्फ़ एक तिहाई (तीसरा) हिस्सा ख़ुश्की का है या तीन चौथाई हिस्सा पानी और एक चौथाई हिस्सा ख़ुश्की का है अलबत्ता (लेकिन) कुर्रा-ए-अर्ज़ (ज़मीन) पर मौजूद पानी का 97.5 फ़ीसद (प्रतिशत) खारा है और बाकी पानी के एक फ़ीसद हिस्से तक ही इंसान की रसाई (पहुंच) है बाकी पीने के क़ाबिल (योग्य) पानी ज़मीन के नीचे और पहाड़ों की चोटियों पर है इस के बाद भी जो पानी बचता है वो पूरी दुनिया के लिए काफ़ी है अगर दुरुस्त तरीक़े से ख़र्च किया जाए हमारी और सारे जानवरों की जो भी ग़िज़ाएँ (खाना) है चाहे अनाज और सब्ज़ी की शक्ल (स्वरूप) में हो या फल फ़्रूट की शक्ल में इनकी अफ़ज़ाइश (बढ़ोतरी) का दार-ओ-मदार पानी ही पर है जैसे ही पानी की कमी होती है खेतियाँ सूखने लगती है ग़ल्ले (अनाज) कम पैदा होते है नतीजतन (नतीजे में) महँगाई बढ़ती है और ज़िंदगी मज़ीद (ज़ियादा) मुश्किल हो जाती है पानी की अहमियत का अंदाज़ा लगाना होतो तसव्वुर (कल्पना) कीजिए जब कभी कुछ देर के लिए हमारे घरों की टोंटियों से पानी आना बंद हो जाता है तो पूरा घर किस मशक़्क़त (तकलीफ़) से दो-चार होता है और उस वक़्त अगर कुछ पानी हमारे पास महफ़ूज़ (सुरक्षित) है तो किस एहतियात (सावधानी) से हम इसे ख़र्च करते हैं।

  हम पहले भी बयान कर चुके हैं कि अल्लाह-त'आला मख़्लूक़ की ज़रुरत के मुताबिक़ पानी नाज़िल करता है और इसे महफ़ूज़ (सुरक्षित) रखने का इंतिज़ाम फ़रमाता है लेकिन हम इंसान अपनी
बे-एहतियात, लापरवाही और फ़ुज़ूल-ख़र्ची की वज़ह से बोहरान (संकट) का शिकार हो जाते हैं इस वक़्त दुनिया के अक्सर मुमालिक (देश) पानी की क़िल्लत (कमी) का सामना कर रहे हैं पानी की फ़राहमी (collection) के मस'अले (समस्या) को लेकर मुख़्तलिफ़ ममालिक के दरमियान (बीच में) मुख़ासमत (विवाद) और तकरार भी देखने में आती है बल्कि (किंतु) माहेरीन (experts) का यहां तक कहना है कि अगर तीसरी 'आलमी जंग हुई तो वो पानी के मस'अले ही को लेकर होगी।

  यहां तक देखने में आता है कि एक ही मुल्क (देश) की दो रियासतों के दरमियान पानी के मस'अले पर तनाज़'आ (झगड़ा) होता है और बसा-औक़ात (कभी-कभी) मु'आमला 'अदालत-ए-'आलिया (high-court) तक हल के लिए पहुंच जाता है पानी के बे-दरेग़ (बे-हिसाब) इस्ते'माल ही का नतीजा है कि मौसम-ए-गर्मा (गर्मी) की आमद (आने) से महीनों पहले कुँवें, तालाब और नदी-नाले ख़ुश्क हो जाते हैं ज़ेर-ए-ज़मीन (ज़मीन के नीचे) की सत्ह मुसलसल (लगातार) तेज़ी से नीचे जा रही है यके बा'द दीगर (लगातार) आने वाली नित-नई मशीनें फ़ेल होती जा रही हैं नदियों और नालों में कारखानों और फ़ैक्टरियों की गंदगियां जा कर गिरतीं है रहाइशी इलाक़ों के सेवर का गंदा पानी भी इन ही नदियों में गिराया जाता है इन सबकी वजह से यह नदियां और नाले और उनका पानी इस्ते'माल के लाइक़ नहीं रह जाता तरक़्क़ी पज़ीर मुल्कों में तक़रीबन (लग-भग) 90, फ़ी-सद इंसानी ग़िलाज़त (गंदगी) बे-रोक-टोक आबी वसाइल में सामिल हो रही है यही वज्ह (कारण) है कि उन ममालिक में हैज़े, पेचिश (मरोड़) और मे'दे की दूसरी कई बीमारियों ने अपने पाँव  मज़बूती से जमा लिए है 'आलमी सेहत की तंज़ीम (संस्था) के अंदाज़े के मुताबिक इन बीमारियों से हर साल 50, लाख लोग हलाक होते हैं बड़ी बड़ी फैक्ट्रियों से निकलने वाली गैस और कीमियाई मवाद (सामग्री) वजह से 'आलमी पैमाने पर दर्जा-ए-हरारत में बराबर इज़ाफ़ा (बढ़ोतरी) हो रहा है जिस की वजह से बड़े बड़े पहाड़ों पर बर्फ़ की शक्ल (स्वरूप) में जमे हुए पानी का स्टॉक पिगल पिगल कर ज़ाए' (बर्बाद) हो रहा है।

(जारी)

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