व्यभिचार भी बलात्कार ही जितना घातक
आजकल बलात्कारी के लिए सज़ा ए मौत की मांग हर वर्ग की ओर से की जा रही है । यह भी कहा जा रहा है कि इस्लाम में बलातकारी की सज़ा मौत ही है । इस सिलसिले में दो बातें हैं जिन्हें पूरी तरह नज़रअंदाज़ किया जा रहा है ।
एक बात तो यह है कि ऐसे समाज में इस अपराध के लिए सज़ा ए मौत की मांग किसी तरह उचित नहीं है जहां इसके रोकने या कम करने का कोई उपाय नहीं किया गया हो । हम देखते हैं कि एक ओर तो बलात्कार के विरुद्ध धरने प्रदर्शन हो रहे हैं सज़ा ए मौत की मांग की जा रही है, लेकिन वहीं दूसरी ओर बलात्कार की घटनाएं भी उसी रफ़्तार से जारी हैं, उनमें कोई नहीं आ रही है ।
इंसाफ़ तो यह है कि एक ऐसे समाज में जहां इस अपराध को रोकने के पुख़्ता उपाय कर दिए गए हैं फिर भी कोई व्यक्ति इतना उद्दंड और बिगड़ैल है कि सारे प्रतिबंधों को तोड़ कर यह अपराध कर गुज़रता है तो उसे सख़्त से सख़्त सज़ा दी जानी चाहिए, जो सज़ा ए मौत भी हो सकती है । लेकिन जिस समाज में नैतिक मूल्यों का पतन हो चुका हो, ऐसे अपराध करने के सारे अवसर उपलब्ध हों, न कोई पाबंदी हो न किसी के प्रति जवाबदेही का एहसास, वहां इस अपराध के लिए इतनी सख़्त सज़ा या कोई भी सख़्त सज़ा देना इन्साफ़ नहीं है ।
दूसरी बात यह है कि व्यभिचार और बलात्कार को दो अलग अलग ख़ानों में नहीं बांटा जा सकता । आज हम बलात्कार को तो अपराध मानते हैं मगर व्यभिचार को अपराध की श्रेणी से बाहर रखते हैं । व्यभिचार को सामाजिक मान्यता देकर हम ख़ुद बलात्कार की प्रेरणा देते हैं । प्राचीन काल से अब तक किसी भी सभ्य समाज ने बलात्कार को स्वीकार नहीं किया । सच्चाई यह है कि विवाह के बन्धन में बंध कर सारी ज़िम्मेदारियां उठाने को तैयार हुए बिना नाजाइज़ तरीक़े से यौन सम्बंध बनाना परिवार के ढांचे को ही तोड़ कर रख देता है, समाज निर्माण की बुनियादी इकाई है । इसलिए चर्चा इस पर होनी चाहिए कि व्यभिचार भी अपराध है और वयभिचारी की सज़ा भी वही होनी चाहिए जो बलात्कारी की हो । व्यभिचार और बलात्कार को अलग अलग करने का एक बड़ा नुक़सान यह भी है कि बलात्कार के अधिकतर मामलों में अदा
No comments:
Post a Comment