ISLAM DHARAM KYA HAI

Islam Dharma Kya Hai?

इस्लाम धर्म क्या है?

हमारे आम देशबंधु्ओं का सामान्य विचार है कि इस्लाम ‘सिर्फ  मुसलमानों’ का धर्म है। इसके प्रवर्तक ह्ज़रत मुहममद साहब हैं। जो मुसलमानों के पैग़म्बर, महापुरूष हैं। कु़रआन ‘सिर्फ़ मुसलमानों’ का धर्मग्रंथ है। लेकिन सच्चाई इस से भिन्न है। स्वंय मुसलमानों के रवैये और आचार व्यवहार की वजह से यह भ्रम उत्पन्न हो गया है। वरना अस्ल बात तो यह है कि इस्लाम पूरी मानवजाति के लिए है, हज़रत मुहम्मद (ईश्वर की कृपा और शान्ति हो उन पर) सारे इंसानों के पैग़म्बर, शुभचिन्तक, उध्दारक और मार्गदर्शक हैं। और इस्लाम के प्रवर्तक (Founder) नहीं बल्कि शाशवत (Eternal) धर्म के आवाहक हैं। कुरआन पूरी मानवजाति के लिए अवतरित हुआ है।
इस्लाम का अर्थ
इस्लाम, अरबी वर्णमाला के मूल अक्षर स,ल,म, से बना शब्द है। इन अक्षरों से बनने वाले शब्द दो अर्थ रखते हैं: एक शान्ति, दो-आत्मसमर्पण। इस्लामी परिभाषा में इस्लाम का अर्थ होता है: ईश्वर के हुक्म, इच्छा, मर्ज़ी और आदेश-निर्देश के सामने पूर्ण आत्मसमर्पण करके समपूर्ण व शाशवत शान्ति प्राप्त करना…अपने व्यक्तित्व व अन्तरात्मा के प्राति शान्ति, दूसरे तमाम इंसानों के प्रति शान्ति, अन्य जीवधारियों के प्रति शान्ति, ईश्वर की सृष्टि के प्रति शान्ति, इस जीवन के बाद परलोक-जीवन में शान्ति।
इस्लाम का मूल-ग्रंथ
क़ुरआन इस्लाम का मूल-ग्रंथ है। यह प्रथम अक्षर से अंतिम अक्षर तक ईश-वाणी है। विश्व के समस्त धर्मों के मूलग्रंथों से भिन्न क़ुरआन की ऐतिहासिकता एवं विशवसनीयता  शोध व रिकार्ड के मापदंड से प्रमाणिक है। यह ईश्वर की ओर से, फरिशतों ‘जिब्रील’ के माध्यम से 17 अगस्त 610 ई० को मक्का (अरब देश) के एक पहाड़ की गुफ़ा ‘हिरा’ में (जो आज भी पूर्वत: मौजूद है) हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) की 40 वर्ष की उम्र में उन पर अवतरित होना शुरू हुआ जो परिस्थिति एवं आवशयकतानुसार थोड़ा-थोड़ा करके, आप (सल्ल०) के देहावसान (5 जून, 632 ई०) के तीन महीने पहले तक अवतरित होता रहा। अवतरित अंश को तुरंत लिख लिया जाता। ऐसे लिपिकों की कुल संख्या 41 है उन सब के नाम, पिता के नाम, क़बीले के नाम इतिहास के पन्नों में उसी समय से सुरक्षित हैं। आप (सल्ल०) के तीसरे उत्तराधिकारी हज़रत उस्मान (रज़ि०) ने पूर्ण ग्रंथ की सात प्रतियां तैयार कराके इस्लामी राष्ट्र के प्रमुख केन्द्रों पर भिजवाईं, उन में से कुछ प्रतियां आज भी ताशक़न्द, इस्तंबूल आदि के संग्रहालयों में सुरक्षित हैं।
कुरआन में आध्यात्मिक व भौतिक जीवन की सारी मूल-शिक्षाएं समाहित हैं। व्यक्तिगत, दाम्पत्य, पारिवारिक, सामाजिक, सामूहिक सारे आदेश-निर्देश वर्णित हैं। वैचारिक, बौध्दिक, आर्थिक, व्यापारिक, प्रशासनिक, सामरिक, अपराध व दंड संबंधी, तथा राष्ट्रीय व अंन्तर्राष्ट्रीय नियम व क़ानून की मौलिक रूप-रेखा सुनिश्चित कर दी गई हैं। इंसान क्यों पैदा किया गया है? उसकी सृष्टि का मूल उद्देश्य क्या है? ईश्वर से इसका संबंध क्या है? इस संबंध के तक़ाज़े क्या हैं?  इन्सान और विशाल सृष्टि में क्या संबंध है? क्या चीज़ हानिकारक व अवैध है, क्या लाभदायक और वैध है? क्या उचित है, क्या अनुचित है? जु़ल्म क्या है, इंसाफ़ क्या है? इस जीवन के बाद क्या है?  परलोक, स्वर्ग, नरक की वास्तविकता क्या है? कैसे लोग स्वर्ग में जाएंगे और कैसे लोग नरक में? मानव पर मानव के हक़ व अधिकार क्या हैं और ईश्वर के अधिकार हक़ क्या हैं? एकेशवरवाद की विशुध्द वास्तविकता क्या है? शिर्क (अनेकेश्वरवाद) की वास्तविकता, प्रभाव एवं परिणाम क्या हैं? ज़ालिम, सरकश अन्यायी, व्यभिचारी, अत्याचारी इन्सानों और क़ौमों के साथ प्राचीन युगों में ईश्वर की ओर से दंड व विनाश का इतिहास क्या है? मानव-समानता व एकता की दृढ़ बुनियाद क्या हैं? दुर्बलों, ग़रीबों, दरिद्ररों अनाथों, अबलाओं, असहायों, महरूमों मज्ञलूमों व पीड़ितों के अधिकार, माता-पिता, सन्तान, पति-पत्नी, रिश्तेदारों, पड़ोसियों के अधिकार व कर्तव्य क्या क्या हैं? … आदि अनेकानेक विषयों पर आदेश व नियम क़ुरआन में वर्णित हैं।
द्वितीय श्रेणी का स्रोत-‘हदीस’
क़ुरआन की बातें सैध्दान्तिक व मौलिक स्तर की हैं। उन सब को व्यावहारिक व विस्तृत स्तर पर करने, कहने, समझाने और आदर्श व नमूना बनकर पेश करने का काम हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) ने किया। इस पूरी प्रक्रिया के लिखित व प्रमाणिक रिकार्ड को हदीस कहा जाता है। आज ऐसी बेशुमार हदीसें, पूरी प्रमाणिकता के साथ कई भाषाओं में, संसार के अनेक क्षेत्रों में, पुस्तक-रूप में उपलब्ध हैं।

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