हम जिस मस्ज़िद में नमाज़ अदा करते हैं वहा हमे वुज़ू के लिए पानी, हवा के लिए पंखा,
रौशनी के लिए लाइट., बैठने के लिए कारपेट .,जमात से नमाज़ के लिए इमाम साहब और
बहुत कुछ... ताकि हमे नामज़ में आसानी हो । इस के बदले में हम मस्ज़िद को क्या देते है ?
10₹ 20₹ 50₹ 100₹
.???
जब की हम टीवी केबेल
(300₹),
इंटरनेट/रिचार्ज
(500₹),
हर महीने देते है.
एक फ़िल्म देखने में हम 500 ₹
खर्च कर देते है एक बार बहार जाकर खाने में 1000 ₹
खर्च कर देते है ।
ज़रा सोचिये !
मुसलमानो का पैसा कहा खर्च हो रहा है.
जो इमाम मस्ज़िद में नमाज़ पढ़ाते है क्या उनकी कोई ज़रूरत नहीं होती क्या मस्ज़िद
की देख भाल और हम लोगो को नमाज़ में आसानी के लिए मस्ज़िद को दुरुस्त रखने में
पैसा नहीं लगता ।
ज़रा सोचिये ।
आज हम जितना पैसा अपने परिवार और अपने ऊपर
खर्च करते है क्या हमारा फ़र्ज़ नहीं बनता की हम मस्ज़िद में इमदाद करे । ज़रा सोचिये ।
मदरसो में जो बच्चे पढते है उनका खाना और तालीम और दवाई वगेरह का खर्च मुसलमानो पर फ़र्ज़ है की नहीं
ज़रा सोचिये।
कोशिश करिये की कुछ पैसे मस्ज़िद को भी जाये.
हो सके तो ये अपने दोस्तों और
रिश्तेदारो को भेजे ।
हर कोई चाहता है की उसे कामयाबी मिल जाए लेकिन जब मस्ज़िद से 5 बार आवाज़ आती है।
"हय्या अस्सलह "
"हय्या अल्ल्फला"
आओ सलाह की तरफ
आओ कामयाबी की तरफ
तो कोई नहीं समझता की जिस चीज़ को वो सारी ज़िन्दगी हर जगह तलाश कर रहे है
वो खुद उसे अपने पास बुला रही है या अल्लाह ये सब जो दुसरो को बताये उसे
कामयाबी अता फरमा और अम्ल करने की तौफ़ीक़ अता फरमा । आमीन ।
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