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बहुपत्नी प्रथा
प्रश्नः इस्लाम में पुरूष को एक से अधिक पत्नियाँ रखने की अनुमति क्यों है?
उत्तरः बहुपत्नी प्रथा (Policamy)से आश्य विवाह की ऐसे व्यवस्था से है जिसके अनुसार एक व्यक्ति एक से अधिक पत्नियाँ रख सकता है। बहुपत्नी प्रथा के दो रूप हो सकते हैं। उसका एक रूप (Polygyny)है जिसके अनुसार एक पुरूष एक से अधिक स्त्रिायों से विवाह कर सकता है। जबकि दूसरा रूप (Polyandry) है जिसमें एक स्त्री एक ही समय में कई पुरूषों की पत्नी रह सकती है। इस्लाम में एक से अधिक पत्नियाँ रखने की सीमित अनुमति है। परन्तु (Polyandry)अर्थात स्त्रियों द्वारा एक ही पुरूष में अनेक पति रखने की पूर्णातया मनाही है।
अब मैं इस प्रश्न की ओर आता हूँ कि इस्लाम में पुरूषों को एक से अधिक पत्नियाँ रखने की अनुमति क्यों है?
पवित्र क़ुरआन विश्व का एकमात्र धर्मग्रंथ है जो केवल ‘‘एक विवाह करो’’ का आदेश देता है
सम्पूर्ण मानवजगत मे केवल पवित्र क़ुरआन ही एकमात्र धर्म ग्रंथ (ईश्वाक्य) है जिसमें यह वाक्य मौजूद हैः ‘‘केवल एक ही विवाह करो’’, अन्य कोई धर्मग्रंथ ऐसा नहीं है जो पुरुषों को केवल एक ही पत्नी रखने का आदेश देता हो। अन्य धर्मग्रंथों में चाहे वेदों में कोई हो, रामायण, महाभारत, गीता अथवा बाइबल या ज़बूर हो किसी में पुरूष के लिए पत्नियों की संख्या पर कोई प्रतिबन्ध नहीं लगाया गया है, इन समस्त ग्रंथों के अनुसार कोई पुरुष एक समय में जितनी स्त्रियों से चाहे विवाह कर सकता है, यह तो बाद की बात है जब हिन्दू पंडितों और ईसाई चर्च ने पत्नियों की संख्या को सीमित करके केवल एक कर दिया।
हिन्दुओं के धार्मिक महापुरुष स्वयं उनके ग्रंथ के अनुसार एक समय में अनेक पत्नियाँ रखते थे। जैसे श्रीराम के पिता दशरथ जी की एक से अधिक पत्नियाँ थीं। स्वंय श्री कृष्ण की अनेक पत्नियाँ थीं।
आरंभिक काल में ईसाईयों को इतनी पत्नियाँ रखने की अनुमति थी जितनी वे चाहें, क्योंकि बाइबल में पत्नियों की संख्या पर कोई प्रतिबन्ध नहीं लगाया गया है। यह तो आज से कुछ ही शताब्दियों पूर्व की बात है जब चर्च ने केवल एक पत्नी तक ही सीमित रहने का प्रावधान कर दिया था।
यहूदी धर्म में एक से अधिक पत्नियाँ रखने की अनुमति है। ‘ज़बूर’ में बताया गया है कि हज़रत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) की तीन पत्नियाँ थीं जबकि हज़रत सुलेमान (अलैहिस्सलाम) एक समय में सैंकड़ों पत्नियों के पति थे। यहूदियों में बहुपत्नी प्रथा ‘रब्बी ग्रश्म बिन यहूदा’ (960 ई. से 1030 ई.) तक प्रचलित रही। ग्रश्म ने इस प्रथा के विरुद्ध एक
धर्मादेश निकाला था। इस्लामी देशों में प्रवासी यहूदियों ने, यहूदी जो कि आम तौर से स्पेनी और उत्तरी अफ्ऱीकी यहूदियों के वंशज थे, 1950 ई. के अंतिम दशक तक यह प्रथा जारी रखी। यहाँ तक कि इस्राईल के बड़े रब्बी (सर्वोच्चय धर्मगुरू) ने एक धार्मिक कानून द्वारा विश्वभर के यहूदियों के लिए बहुपत्नी प्रथा पर प्रतिबन्ध लगा दिया।
रोचक तथ्य
भारत में 1975 ई. की जनगणना के अनुसार मुसलमानों की अपेक्षा हिन्दुओं में बहुपत्नी प्रथा का अनुपात अधिक था। 1975 ई. में Commitee of the Status of Wemen in Islam (इस्लाम में महिलाओं की प्रतिष्ठा के विषय में गठित समिति) द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के पृष्ठ 66-67 पर यह बताया गया है कि 1951 ई. और 1961 ई. के मध्यांतर में 5.6 प्रतिशत हिन्दू बहुपत्नी धारक थे, जबकि इस अवधि में मुसलमानों की 4.31 प्रतिशत लोगों की एक से अधिक पत्नियाँ थीं। भारतीय संविधान के अनुसार केवल मुसलमानों को ही एक से अधिक पत्नियाँ रखने की अनुमति है। गै़र मुस्लिमों के लिए एक से अधिक पत्नी रखने के वैधानिक प्रतिबन्ध के बावजूद मुसलमानों की अपेक्षा हिन्दुओं में बहुपत्नी प्रथा का अनुपात
अधिक था। इससे पूर्व हिन्दू पुरूषों पर पत्नियों की संख्या के विषय में कोई प्रतिबन्ध नहीं था। 1954 में ‘‘हिन्दू मैरिज एक्ट’’ लागू होने के पश्चात हिन्दुओं पर एक से अधिक पत्नी रखने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। इस समय भी, भारतीय कानून के अनुसार किसी भी हिन्दू पुरूष के लिए एक से अधिक पत्नी रखना कषनूनन वर्जित है। परन्तु हिन्दू
धर्मगं्रथों के अनुसार आज भी उन पर ऐसा कोई प्रतिबन्ध नहीं है।
आईये अब हम यह विश्लेषण करते हैं कि अंततः इस्लाम में पुरूष को एक से अधिक पत्नियाँ रखने की अनुमति क्यों दी गई है?
पवित्र क़ुरआन पत्नियों की संख्या सीमित करता है जैसा कि मैंने पहले बताया कि पवित्र क़ुरआन ही वह एकमात्र धार्मिक ग्रंथ है जिसमें कहा गया हैः
‘‘केवल एक से विवाह करो।’’
इस आदेश की सम्पूर्ण व्याख्या पवित्र क़ुरआन की निम्नलिखित आयत में मौजूद है जो ‘‘सूरह अन्-निसा’’ की हैः
‘‘यदि तुम को भय हो कि तुम अनाथों के साथ न्याय नहीं कर सकते तो जो अन्य स्त्रियाँ तुम्हें पसन्द आएं उनमें दो-दो, तीन-तीन, चार-चार से निकाह कर लो, परन्तु यदि तुम्हें आशंका हो कि उनके साथ तुम न्याय न कर सकोगे तो फिर एक ही पत्नी करो, अथवा उन स्त्रियों को दामपत्य में लाओ जो तुम्हारे अधिकार में आती हैं। यह अन्याय से बचने के लिए भलाई के अधिक निकट है।’’ (पवित्र क़ुरआन, 4 : 3 )
पवित्र क़ुरआन के अवतरण से पूर्व पत्नियों की संख्या की कोई सीमा निधारित नहीं थी। अतः पुरूषों की एक समय में अनेक पत्नियाँ होती थीं। कभी-कभी यह संख्या सैंकड़ों तक पहुँच जाती थी। इस्लाम ने चार पत्नियों की सीमा निधारित कर दी। इस्लाम किसी पुरूष को दो, तीन अथवा चार शादियाँ करने की अनुमति तो देता है, किन्तु न्याय करने की शर्त के साथ।
इसी सूरह में पवित्र क़ुरआन स्पष्ट आदेश दे रहा हैः
‘‘पत्नियों के बीची पूरा-पूरा न्याय करना तुम्हारे वश में नहीं, तुम चाहो भी तो इस पर कषदिर (समर्थ) नहीं हो सकते। अतः (अल्लाह के कानून का मन्तव्य पूरा करने के लिए यह पर्याप्त है कि) एक पत्नी की ओर इस प्रकार न झुक जाओ कि दूसरी को अधर में लटकता छोड़ दो। यदि तुम अपना व्यवहार ठीक रखो और अल्लाह से डरते रहो तो अल्लाह दुर्गुणों की उपेक्षा करने (टाल देने) वाला और दया करने वाला है।’’ (पवित्र क़ुरआन, 4:129)
अतः बहु-विवाह कोई विधान नहीं केवल एक रियायत (छूट) है, बहुत से लोग इस ग़लतफ़हमी का शिकार हैं कि मुसलमानों के लिये एक से अधिक पत्नियाँ रखना अनिवार्य है।
विस्तृत परिप्रेक्ष में अम्र (निर्देशित कर्म Do's) और नवाही (निषिद्ध कर्म Dont's) के पाँच स्तर हैंः
कः फ़र्ज़ (कर्तव्य) अथवा अनिवार्य कर्म।
खः मुस्तहब अर्थात ऐसा कार्य जिसे करने की प्रेरणा दी गई हो, उसे करने को प्रोत्साहित किया जाता हो किन्तु वह कार्य अनिवार्य न हो।
गः मुबाह (उचित, जायज़ कर्म) जिसे करने की अनुमति हो।
घः मकरूह (अप्रिय कर्म) अर्थात जिस कार्य का करना अच्छा न माना जाता हो और जिस के करने को हतोत्साहित किया गया हो।
ङः हराम (वर्जित कर्म) अर्थात ऐसा कार्य जिसकी अनुमति न हो, जिसको करने की स्पष्ट मनाही हो।
बहुविवाह का मुद्दा उपरोक्त पाँचों स्तरों के मध्यस्तर अर्थात ‘‘मुबाह’’ के अंर्तगत आता है, अर्थात वह कार्य जिसकी अनुमति है। यह नहीं कहा जा सकता कि वह मुसलमान जिसकी दो, तीन अथवा चार पत्नियाँ हों, वह एक पत्नी वाले मुसलमान से अच्छा है।
स्त्रियों की औसत आयु पुरूषों से अधिक होती है प्राकृतिक रूप से स्त्रियाँ और पुरूष लगभग समान अनुपात से उत्पन्न होते हैं। एक लड़की में जन्म के समय से ही लड़कों की अपेक्षा अधिक प्रतिरोधक क्षमता (Immunity)होती है और वह रोगाणुओं से अपना बचाव लड़कों की अपेक्षा अधिक सुगमता से कर सकती है, यही कारण है कि बालमृत्यु में लड़कों की दर अधिक होती है। संक्षेप में यह कि स्त्रियों की औसत आयु पुरूषों से अधिक होती है और किसी भी समय में अध्ययन करने पर हमें स्त्रियों की संख्या पुरूषों से अधिक ही मिलती है।
कन्या गर्भपात तथा कन्याओं की मृत्यु के कारण भारत में पुरूषों की संख्या स्त्रियों से ज़्यादा है
अपने कुछ पड़ौसी देशों सहित, भारत की गणना विश्व के उन कुछ देशों में की जाती है जहाँ स्त्रियों की संख्या पुरूषों से कम है। इसका कारण यह है कि भारत में अधिकांश कन्याओं को शैशव काल में ही मार दिया जाता है। जबकि इस देश में प्रतिवर्ष दस लाख से अधिक लड़कियों की भ्रुणहत्या अर्थात ग्रर्भपात द्वारा उनको इस संसार में आँख खोलने से पहले ही नष्ट कर दिया जाता है। जैसे ही यह पता चलता है कि अमुक गर्भ से कन्या का जन्म होगा, तो गर्भपात कर दिया जाता है, यदि भारत में यह क्रूरता बन्द कर दी जाए तो यहाँ भी स्त्रियों की संख्या पुरूषों से अधिक होगी।
(आज स्थिति यह है कि भारतीय समाज विशेष रूप से हिन्दू समाज में कन्याभ्रुण हत्या का प्रचलन बढ़ता जा रहा है। अल्ट्रा साउण्ड तकनीक द्वारा भ्रुण के लिंग का पता चलते ही गर्भ्रपात कराने का चलन चर्म पर पहुँच गया है और अब यह स्थिति है कि पंजाब, हरियाणा आदि राज्यों में स्त्रियों की इतनी कमी हो गई है कि लाखों पुरूष कुंवारे रह गए हैं। कुछ लोग अन्य राज्यों से पत्नियाँ ख़रीद कर लाने पर विवश हैं। इसका मुख्य कारण हिन्दू समाज में भयंकर दहेज प्रथा को बताया जाता है) अनुवादक
विश्व जनसंख्या में स्त्रियाँ अधिक हैं
अमरीका में स्त्रियों की संख्या कुल आबादी में पुरूषों से 87 लाख
अधिक है। केवल न्यूयार्क में स्त्रियाँ पुरूषों से लगभग 10 लाख अधिक हैं, जबकि न्यूयार्क में पुरूषों की एक तिहाई संख्या समलैंगिक है। पूरे अमरीका में कुल मिलाकर 2.50 करोड़ से अधिक समलैंगिक (Gays)मौजूद हैं अर्थात ये पुरूष स्त्रियों से विवाह नहीं करना चाहते। ब्रिटेन में स्त्रियों की संख्या पुरूषों से 40 लाख के लगभग अधिक है। इसी प्रकार जर्मनी में स्त्रियाँ पुरूषों से 50 लाख अधिक हैं। रूस में स्त्रियाँ पुरूषों से 90 लाख अधिक हैं। यह तो अल्लाह ही बेहतर जानता है कि विश्व में स्त्रियों की संख्या पुरूषों की अपेक्षा कितनी अधिक है।
प्रत्येक पुरूष को केवल एक पत्नी तक सीमित रखना व्यावहारिक रूप से संभव नहीं
यदि प्रत्येक पुरूष को केवल एक पत्नी रखने की अनुमति हो तो केवल अमरीका ही में लगभग 3 करोड़ लड़कियाँ बिन ब्याही रह जाएंगी क्योंकि वहाँ लगभग ढाई करोड़ पुरूष समलैंगिक हैं। ब्रिटेन में 40 लाख, जर्मनी में 50 लाख और रूस में 90 लाख स्त्रियाँ पतियों से वंचित रहेंगी।
मान लीजिए, आपकी या मेरी बहन अविवाहित है और अमरीकी नागरिक है तो उसके सामने दो ही रास्ते होंगे कि वह या तो किसी विवाहित पुरूष से शादी करे अथवा अविवाहित रहकर सार्वजनिक सम्पत्ति बन जाए, अन्य कोई विकल्प नहीं। समझदार और बुद्धिमान लोग पहले विकल्प को तरजीह देंगे।
अधिकांश स्त्रियाँ यह नहीं चाहेंगी कि उनके पति की एक और पत्नी भी हो, और जब इस्लाम की बात सामने आए और पुरूष के लिए इससे शादी करना (इस्लाम को बचाने हेतु) अनिवार्य हो जाए तो एक साहिबे ईमान विवाहित मुसलमान महिला यह निजी कष्ट सहन करके अपने पति को दूसरी शादी की अनुमति दे सकती है ताकि अपनी मुसलमान बहन को ‘‘सार्वजनिक सम्पत्ति’’ बनने की बहुत बड़ी हानि से बचा सके।
‘‘सार्वजनिक सम्पत्ति’’ बनने से अच्छा है कि विवाहित पुरूष से शादी कर ली जाए
पश्चिमी समाज में यह आम बात है कि पुरूष एक शादी करने के बावजूद (अपनी पत्नी के अतिरिक्त) दूसरी औरतों जैसे नौकरानियों (सेक्रेट्रीज़ और सहकर्मी महिलाओं) आदि से पति-पत्नि वाले सम्बन्ध स्थापित कर लेते हैं। यह एक ऐसी स्थिति है जो एक स्त्री के जीवन को लज्जाजनक और असुरक्षित बना देती है, क्या यह अत्यंत खेद की बात नहीं कि वही समाज जो पुरूष को केवल एक ही पत्नी पर प्रतिबंधित करता है और दूसरी पत्नी को सिरे से स्वीकार नहीं करता, यद्यपि दूसरी स्त्री को वैध पत्नी होने के कारण समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त होती है, उसका सम्मान समान रूप से किया जाता है और वह एक सुरक्षित जीवन बिता सकती है।
अतः वे स्त्रियाँ जिन्हें किसी कारणवश पति नहीं मिल पाता। वे केवल दो ही विकल्प अपनाने पर विवश होती हैं, किसी विवाहित पुरूष से दाम्पत्य जोड़ लें अथवा ‘‘सार्वजनिक सम्पति’’ बन जाएं। इस्लाम अच्छाई के आधार पर स्त्री को प्रतिष्ठा प्रदान करने के लिये पहले विकल्प की अनुमति देता है। इसके औचित्य में अनेक तर्क मौजूद हैं। परन्तु इस का प्रमुख उद्देश्य नारी की पवित्रता और सम्मान की रक्षा करना है।
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