पूर्व अमेरिकी नौसैनिक ने कुबूल किया इस्लाम
अमेरिकी पूर्व नौसैनिक जीनेशा की इस्लाम अपनाने की दास्तां।
जीनेशा बिंगम (जीनेशा ने इस्लाम अपनाने के बाद आइशा नाम रखा है) अमेरिकी नौसेना में एक सैनिक के रूप में कार्यरत्त थी। जीनेशा की जिंदगी में कई तरह के उतार चढ़ाव आए। उनका जीवन बाल्यवस्था में यौन शोषण से गुजरते हुए, फिर अफगानिस्तान के युद्ध क्षेत्र से लास वैगास के नाइट क्लब होते हुए अस्पताल के बिस्तर पर इस्लाम अपनाकर सुकून हासिल करते हुए आगे बढ़ता है।
जीनेशा की जुबां से जानिए उनकी इस्लाम अपनाने की कहानी।
मेरा नाम जीनेशा बिंगम (इस्लाम अपनाने के बाद जीनेशा बिंगम) है। मैं मोरमन कैथोलिक ईसाई धर्म में पैदा हुई। मैं पच्चीस साल की हूं। मैं अमेरिका के लास वेगास शहर में जन्मी,पली बढ़ी और कॉलेज की पढ़ाई की।
मेरा पारिवारिक माहौल बेहद गंदा था। मेरे पिता अक्सर मुझे झिाड़कते और पीटते थे। मेरी मां मुझे उनके उत्त्पीडऩ से बचाने में लगी रहती थी। पिता मेरी मां की भी पिटाई करते थे। मेरे दादा यौनाचारी थे। मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि वे मुझे अपनी हवस का शिकार बना सकते हैं। मेरे दादा ने मेरी मां, मेरी बहिन और मेरे साथ बलात्कार किया। जब भी मेरे पिता शराब पीए हुए होते तो हम समझ लेते थे कि घर में हम में से कोई ना कोई जख्मी जरूर होगा। मेरे पिता मुझे लज्जित करने के लिए मेरे रिश्तेदारों और मित्रों के सामने बुरी तरह पीटते थे। मैं अक्सर सोचती ईश्वर मेरे साथ आखिर ऐसे क्यों होने दे रहा है। ऐसे उत्पीड़क और घुटनभरे माहौल में मैं बड़ी हुई। जब मैं चौदह साल की हुई तो मेरी मां हम भाई बहिनों को लेकर घर छोड़कर आ गई। जिस रात हम निकले हमारे पिता ने हमें गाड़ी से कुचलने की कोशिश की। पिता से छुटकारा लेकर हम पांचों एक महान शख्स की शरण में चले गए। उस शख्स ने हम भाई-बहिनों को अपनी संतान की तरह रखा। यहां हमें ऐसा लगा मानों हम ईश्वर की कृपा में आ गए। यह शख्स नास्तिक होने के बावजूद भला आदमी था।
इस बीच मैंने हाई स्कूल पास किया और मैं नौ सेना में भर्ती हो गई। मैं छठी मेरीन बटालियन की एक टुकड़ी में रेडियो ऑपेरटर थी। यह बटालियन अमेरिका की सबसे ज्यादा प्रतिष्ठित बटालियन होने के साथ ही खतरनाक जंग में हिस्सा लेने की काबिलियत रखती थी। हमारी बटालियन को मार्च 2008 में अफगानिस्तान के गार्मसिर में तालिबान से लडऩे के लिए भेजा गया। हमारी तालिबानियों से चार महीने तक जंग चलती रही। इसी जंग में हमारी एक साथी को गोली लगी। हमें आदेश मिला कि उस साथी की मदद की जाए ताकि उसे मेडिकल सहायता उपलब्ध कराई जा सके। दोनों तरफ गोलीबारी के बीच हम अपने साथी को बचाने की कोशिश के बीच ही एक गोली मेरे चेहरे के नजदीक से दनदनाती हुई गुजरी। गोली नजदीक से गुजरने से मुझे दो दिनों तक अपने बाएं कान से कुछ भी सुनाई नहीं दिया। मुझे लगा मानो मौत मुझे छूकर चली गई हो। हमारे टीम लीडर ने हमें बता रखा था कि युद्ध के मोर्चे पर किसी को भी नास्तिक नहीं रहना चाहिए। मैं गोलीबारी के बीच आगे बढ़ती रही और ईश्वर से प्रार्थना करती रही कि वह मेरी हिफाजत करे। हालांकि सच्चाई यह है कि उस वक्त ईश्वर में मेरी सच्ची आस्था नहीं थी। हम उस घायल नौसेनिक को स्टे्रचर पर लेकर आगे बढ़े। मैंने उस घायल सैनिक को देखकर महसूस किया मानो उसकी आत्मा उसके शरीर को छोड़कर बाहर आ रही हो।
उसकी बंद होती आंखों ने मुझे ऐसा ही कुछ एहसास कराया। कुछ देर बाद डॉक्टर ने उस सैनिक को मृत घोषित कर दिया। नजदीक से साथी सैनिक की मौत देखने के बाद मुझे यकीन हुआ कि हर शख्स के आत्मा होती है और ईश्वर पक्के तौर पर है। जंग बंद होने के बाद हमने अफगानिस्तान के बाशिंदों और उनके कल्चर को जानना शुरू किया। एक रोज वहां मैंने सुबह की शांति के बीच जो नजारा देखा, वह अनूठा, दिलचस्प और यादगार रहा। सूर्योदय से पहले सभी अफगानी और मेरी दुभाषिया नमाज में मशगूल थी। मैं उनकी इस इबादत पर गौर कर रही थी। इस इबादत से मैं प्रभावित हुई। मैंने अपनी दुभाषिए से इसके बारे में पूछा तो उसने मुझे इस्लाम के बारे में जो कुछ बताया, वह मुझे अच्छा लगा।
मैं वापस अमेरिका लौट आई। अमेरिका आने पर मैं फिर से अपने परिवार वालों के साथ चर्च जाने लगी। चर्च का मुझ पर कोई असर नहीं हुआ और मैंने यह कहते हुए चर्च जाना छोड़ दिया कि ईश्वर की प्रशंसा के लिए मुझे चर्च जाने की जरूरत नहीं है। जनवरी 2011 में मुझे सेना से छुट्टी मिल गई। क्लब-पार्टियों में जाना और मौज मस्ती करना मेरा शगल बन गया। मैं पार्टियों में मौज-मस्ती करने लगी। मैं हर तरह के नियम-कायदों से ऊपर थी। लॉस वेगास के एक क्लब में मेरे साथ एक बुरा हादसा पेश आया। मैंने शराब पी रखी थी। मेरे साथी क्लब से जा चुके थे। मैंने एक पुरुष से लिफ्ट ली जिसने मुझे और शराब पिलाई और मेरे साथ बलात्कार किया। मुझे कुछ होश न था। मुझे होश आया तो मैंने अपने घर के दरवाजे पर खुद को पाया। इस घटना से मैं बेहद दुखी और शर्मिंदा हुई। इस हादसे के बाद तो मेरा ईश्वर से भी भरोसा उठ गया और मैं उन लोगों से भी चिढऩे लगी जो ईश्वर में यकीन रखते थे। मैं आस्तिक लोगों से इस विषय पर विवाद करती कि ईश्वर का अस्तित्व है ही नहीं। मैं पूरी तरह नास्तिक हो गई और शराब के साथ ही ड्रग का भी सेवन करने लगी। पार्टियों में मौज-मस्ती पहले की तरह जारी रही। पड़ोस में एक बार और एक पार्टी के दौरान मेरे साथ बलात्कार की कोशिश हुई। इस बीच मैं नेवादा चली आई, इस उम्मीद से कि शायद यहां मैं खुद को बदल पाऊं, लेकिन मेरे यहां के दोस्तों का सर्किल भी नशेडिय़ों और नास्तिकों का था। मेरी नशे की लत बढ़ती ही गई। मैं अपने दोस्तों से ही मारपीट करने लगी। नशे का मुझ पर ऐसा असर होने लगा कि एक बार तो मैं चार दिनों में सिर्फ तीन घंटे ही सो पाई। एक बार तो लगभग नौ दिनों तक मैं जागती रही। मैं खुद को असहाय महसूस करने लगी। मुझे लगता ना तो कोई मुझे चाहता है, ना कोई मुझे किसी तरह का सहारा देता है। मैं हीन भावना से ग्रसित रहने लगी। इस सोच के चलते मैं लगभग एक हफ्ते रोती रही। मैंने सोचा क्यों न मैं बलात्कार पीडि़त गु्रप में शामिल होकर मदद हासिल करूं। इसी बीच एक तारस नाम की महिला से मेरी मुलाकात हुई। मानो ईश्वर ने उसे मेरी मदद के लिए भेजा हो। वह महिला अल्लाह में यकीन रखती थी। उसने मेरे से बात की, मुझे हौसला दिलाया और मुझे सबसे पहले मदद लेकर खुद को अच्छी तरह खड़ा करने के लिए तैयार किया। मैंने उससे अपने सैनिक जीवन और इस्लाम के बारे में भी चर्चा की। दरअसल उस वक्त तक मैं बेहद टूट चुकी थी और सोचती थी कि क्यों न मैं खुदकुशी कर लूं। मेरी इस बिगड़ी हालत के चलते मुझो लॉस वेगास के हॉस्पिटल में भर्ती कराना पड़ा। हॉस्पिटल में मैंने अपनी दोस्त तारस का दिया हौसला और उससे हुई चर्चा के बारे में ठंडे दिमाग से सोचा। मैंने अपने सौतेले पिता से मेरे लिए कुरआन लाने के लिए कहा। मेरे पिता मेरे लिए कुरआन ले आए। मैंने हॉस्पिटल में ही कुरआन पढऩा शुरू कर दिया। कुरआन पढऩे से मुझो अच्छा महसूस होने लगा। मैं थोड़ी बहुत इबादत करने लगी। उसी अस्पताल में एक मुस्लिम कर्मचारी था जिसका नाम बशीर था। उसने जब मेरे कमरे पर लगे नोट- मुझे इबादत के लिए सुबह 4:20 बजे उठा दिया जाए- पढ़ा तो उसने मुझसे पूछा कि क्या मैं मुसलमान हूं? मैंने उसे बताया कि मैं कोशिश कर रही हूं मुसलमान बनने की। उसने मुझे कुरआन के कुछ अध्याय और नमाज पढऩे के तरीके से संबंधित कुछ किताबें दी। उसने मुझे नमाज पढ़ाना भी सिखाया। मैं अब बेहतर महसूस करने लगी। ड्रग्स लेने की आदत के कारण अस्पताल वाले मुझो हाई पावर की दवा नहीं देते थे, फिर भी मुझे एहसास होने लगा कि मैं अच्छी होती जा रही हूं। मैंने लॉस वेगास के इस्लामिक सेंटर को टेलीफोन किया और इस्लाम सीखने के लिए मदद चाही तो उन्होंने दो अद्भुत स्त्रियों शाहीन और ऐलीजाबेथ को मेरे पास भेजा। मैंने इन्हीं दोनों महिलाओं की उपस्थिति में इस्लाम अपना लिया। ये दोनों मेरे इस्लाम का कलमा पढऩे की गवाह बनीं। मैंने गवाही दी कि सिवाय एक अल्लाह के कोई इबादत के लायक नहीं है और पैगम्बर मुहम्मद सल्ल.अल्लाह के बंदे और रसूल हैं। अविश्वसनीय रूप से उसी पल मैं खुद को बेहतर महसूस करने लगी। मैंने अपने आपको अल्लाह के सुपुर्द कर दिया। अब मैं इस्लामी पर्दा हिजाब पहनती हूं। अल्लाह की पनाह में आना मेरी जिंदगी में चमत्कार के समान हुआ है। मेरे पास अंग्रेजी अनुवाद वाला कुरआन है जिसे मैं पढ़ती हूं। मुझे तो यकीन भी नहीं हुआ कि अल्लाह ने सही राह दिखाने के लिए मुझे चुना। अब मेरे दिल को सुकून है। अपना पुराना अतीत से मैं अब उबर चुकी हूं। जिन लोगों ने मेरा शोषण किया था, मुझ पर जुल्म किया था, उन सबको मैंने माफ कर दिया है। मैंने उन लोगों के लिए दुआ भी की कि अल्लाह उनका मार्गदर्शन करे। अल्लाह को जान लेने के बाद उससे बड़ा कोई एहसास नहीं। अल्लाह की इबादत का समय मेरे लिए सबसे बेहतर वक्त होता है। पहले मैं सोचा करती थी कि धर्म तो कमजोरों के लिए होता है ताकि वे उसका सहारा ले सकें लेकिन अब मैं सोचती हूं कि अल्लाह के प्रति समर्पण के लिए हौसले और शक्ति की जरूरत होती है। इस्लाम अपनाने के बाद मैंने शराब पीना छोड़ दिया। सच्चरित्र रहती हूं। हिजाब पहनती हूं और इस्लाम की शिक्षा लोगों तक पहुंचाती हूं। मैं आपसे गुजारिश करती हूं कि आप मुझे मेरे गुजरे हुए वक्त के साथ न जाचें क्योंकि मैंने अल्लाह और उसकी श्रेष्ठ रचना को पहचान लिया है। अब मुझे मेरी जिंदगी का मकसद मिल गया है।
आप सब बहिन भाइयों को मेरी यह कहानी बताने के पीछे मकसद यह बताना है कि आप कैसे भी हो, किस भी हालात में हो, अल्लाह आपका मार्गदर्शन करता है और आपको एक नेक इंसान बना देता है। मैं इसका जीता जागता उदाहरण हूं। मुझे उम्मीद है कि मेरी इस कहानी से सभी को अच्छा और नेक इंसान बनने की प्रेरणा मिलेगी। सब तरह की तारी फ अल्लाह ही के लिए है। अल्लाह से दुआ है कि वह हमारा मार्गदर्शन करे और हमें सीधी और सच्ची राह सुझाए और इस पर चलाए।
(जीनेशा ने अमेरिका के लॉस वैगास के एक हॉस्पिटल में 21 अपे्रल 2013 को इस्लाम अपना लिया।)
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