BABA SAHAB DR. AMBEDKAR AUR ISLAM

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ب🌷سم الله الرحمن الرحيم ا🌷
 
बाबा साहब डा. अम्बेडकर और इस्लाम


            🌷Part-1🌷
बाबा साहब डा. अम्बेडकर और इस्लाम
मूल रूप से पशु और मनुष्य में यही विशेष अंतर है कि पशु अपने विकास की बात नहीं सोच सकता, मनुष्य सोच सकता है और अपना विकास कर सकता है। हिन्दु धर्म ने दलित वर्ग को पशुओं से भी बदतर स्थिति में पहुंचा दिया है, यही कारण है कि वह अपनी स्थिति परिवर्तन के लिए पूरी तरह कोशिश नहीं कर पा रहा है। हाँ, पशुओं की तरह ही वह अच्छे चारे की खोज में तो लगा है लेकिन अपनी मानसिक ग़ुलामी दूर करने के अपने महान उद्देश्य को गंभीरता से नहीं ले रहा है।
दलितों की वास्तविक समस्या क्या है?
परंपरागत उच्च वर्ग द्वारा दलितों पर बेक़सूरी एवं बेरहमी से किए जा रहे अत्याचारों को कैसे रोका जाए, यही दलितों की मूल समस्या है।
हज़ारों वर्षों से दलित वर्ग पर अत्याचार होते आए हैं, आज भी बराबर हो रहा है। यह अत्याचारों का सिलसिला कैसे शुरु हुआ और आज तक भी यह अत्याचार क्यों नहीं रूके हैं? यह एक अहम सवाल है। इतिहास साक्षी है कि इस देश के मूल निवासी द्रविड़ जाति के लोग थे जो बहुत ही सभ्य और शांतिप्रिय थे। आज से लगभग पांच या छः हज़ार वर्ष पूर्व आर्य लोग भारत में आए और यहां के मूल निवासी द्रविड़ों पर हमले किए। फलस्वरूप आर्य और द्रविड़ दो संस्कृतियों में भीषण युद्ध हुआ। आर्य लोग बहुत चालाक थे। अतः छल से, कपट से और फूट की नीति से द्रविड़ों को हराकर इस देश के मालिक बन बैठे।
                                         इस युद्ध में द्रविड़ों द्वारा निभाई गई भूमिका की दृष्टि से द्रविड़ों को दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है। प्रथम श्रेणी में वह आते हैं जिन्होंने इस युद्ध में बहादुरी से लड़ते हुए अंत तक आर्यों के दांत खट्टे किए। उनसे आर्य लोग बहुत घबराते थे। दूसरी श्रेणी में वे द्रविड़ आते हैं जो इस युद्ध में आरंभ से ही तटस्थ रहें या युद्ध में भाग लेने के थोड़े समय बाद ही युद्ध से अपने आप को अलग कर लिया।
                              आर्यों ने विजय प्राप्त कर लेने के बाद युद्ध में भाग लेने वाले और न लेने वाले दो श्रेणी के द्रविड़ों को शूद्र घोषित कर दिया और उनका काम आर्यों की सेवा करना भी निश्चित कर दिया। केवल इतना फ़र्क़ किया कि जिन द्रविड़ों ने युद्ध में भाग नहीं लिया था उन्हें सछूत-शूद्र घोषित कर शांति से रहने दिया। कोली, माली, धुना, जुलाहे, कहार, डोम आदि इस क्षेणी में आते हैं। लेकिन जिन द्रविड़ों ने इस युद्ध में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और अपनी शूर वीरता का परिचय दिया उन मार्शल लोगों को अछूत-शूद्र घोषित कर दिया और इसके साथ ही उन्हें इतनी बुरी तरह कुचल दिया जिससे कि वे लोग हज़ारों साल तक सिर भी न उठा सके। उनके कारोबार ठप कर दिए, उन्हें गांव के बाहर बसने के लिए मजबूर कर दिया और उन्हें इतना बेबस कर दिया कि उन्हें जीवित रहने के लिए मृत पशुओं का मांस खाना पड़ा। इन्होंने अपनी टट्टी उठवाने तक का काम भी हमें सौंपा जिसे उस समय हमने मजबूरी में उठाना शुरु कर दिया और आज तक उठा रहे हैं। जाटव, भंगी, चमार, महार, खटीक आदि इस श्रेणी के लोग हैं।
किन्तु इस मार्शल श्रेणी के लोगों में से एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा बना जिसने यह तय कर लिया कि ठीक है हम युद्ध में हार गए हैं लेकिन फिर भी हम इन आर्यों की ग़ुलामी स्वीकार नहीं करेंगे। वे लोग घोर जंगलों में निकल गए और वहीं पर रहने लगे। नागा, भील, संथाल, जरायु आदि जंगली जातियां इसी वर्ग में आती हैं, जो आज भी आर्यों की किसी भी सरकार को दिल से स्वीकार नहीं करती हैं और आज भी स्वतंत्रता पूर्वक जंगलों में ही रहना पसंद करती हैं।
                                                        आर्य संस्कृति का ही दूसरा नाम हिन्दु धर्म या हिन्दु समाज है। हिन्दु आज बात तो शांति की करते है, लेकिन हज़ारों वर्ष पूर्व हुए आर्य-द्रविड़ युद्ध में छल से हराए गए द्रविड़ संस्कृति के प्रति महाराजा रावण का प्रतिवर्ष पुतला जलाकर द्वेष भावना का प्रदर्शन करते हैं। आज भी वे शूद्रों को अपना शत्रु और ग़ुलाम मानकर उन्हें ज़िंदा जला डालते हैं, उनका क़त्लेआम करते हैं, उनके साथ तरह-तरह के अवर्णीय लोमहर्षक अत्याचार करते हैं। वर्तमान में हुए कुछ अत्याचारों के उदाहरण इस प्रकार हैं-
मंदिर में जल चढाने के आरोप में हरिजनों को गोली से उड़ा दिया
(हमारे कार्यालय संवाददाता द्वारा) नई दिल्ली 7, अगस्त।
मध्य प्रदेश के शिवपुरी ज़िले में खेरावाली गांव में शिव मंदिर में जल चढ़ाने जा रहे तीन हरिजनों को दिन-दहाड़े गोली से उड़ा दिया गया। तीन अन्य घायल हो गए, इनमें एक ग़ैर-हरिजन था। यह जानकारी यहां मध्य प्रदेश के भूतपूर्व स्वायत्त शासक मंत्री व अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ई. के सदस्य श्री राजाराम सिंह ने दी। उन्होंने बताया कि गोली तो डाकुओं ने मारी लेकिन उन्हें गांव के ठाकुरों ने बुलाया था। घटना का विवरण देते हुए श्री राजाराम सिंह ने बताया कि ठाकुरों ने हरिजनों को पहले ही धमकी दी थी कि उन्हें शिवालय में जल नहीं चढ़ाने दिया जाएगा। हरिजनों ने इस धमकी की रिपोर्ट थाने में लिखवाई। पुलिस ने धारा 107 के अन्तर्गत मामला तो दर्ज कर लिया लेकिन कोई प्रभावी क़दम नहीं उठाया। श्री सिंह के अनुसार हरिजन 28 जुलाई को जब मथुरा ज़िले के सोरोघाट से कांवर में जल लेकर गांव आए और शिवालय जाने लगे तो पहले से उपस्थित डाकुओं के एक गिरोह ने उन पर गोली चलाई। इनमें तीन हरिजन मारे गए तथा अनेक घायल हुए। यह घटना दिन में 3 और 4 बजे के बीच हुई। घटना के बाद डाकू बिना किसी लूटपाट के लौट गए। अभी तक कोई गिरफ़्तारी नहीं हुई। (हिंदुस्तान दैनिक, दिनांक 8-8-1981)
हरिजन को पेड़ पर लटका कर मार दिया
                                    (सांध्य टाइम्स, दिनांक 11-8-1981) कोयम्बतूर से 20 किलोमीटर दूर मानपल्ली गांव में सवर्ण ज़मींदारों ने 20 वर्ष के हरिजन युवक को नारियल के पेड़ से लटका दिया। कई घंटे लटकने के बाद उस युवक की मृत्यु हो गई। पुलिस के अनुसार उस युवक के साथ दो हरिजन औरतों को भी नारियल के पेड़ से टांग दिया गया था। मगर युवक की मृत्यु के बाद उन्हें छोड़ दिया गया। बताया जाता है कि दो ज़मींदार मोटर साईकिल पर गांव से कहीं बाहर जा रहे थे। रास्ते में उन्हें दो हरिजन युवक और दो युवतियां दिखीं। उन ज़मींदारों को रास्ता देने पर झगड़ा हो गया। एक हरिजन युवक भाग खड़ा हुआ। शेष तीनों युवक युवतियों को नारियल के पेड़ से बांध दिया गया, जिससे युवक की मृत्यु हो गई।
                         इसके अतिरिक्त रोज़ाना ही अत्याचारों की ख़बरें अख़बारों में छपती रहती हैं। बेलछी, कफलटा, दिहुली, साढूपुर आदि में हुए दिल दहला देने वाले काण्ड कभी भुलाए नहीं जा सकते।देश में कोई ऐसा क्षण नहीं होगा जबकि दलित वर्ग पर अत्याचार नहीं होता होगा, क्योंकि अख़बार में तो कुछ ही ख़ास ख़बरें छप पाती हैं।
बाबा साहब ने इस संबंध में कहा हैः-
"ये अत्याचार एक समाज पर दूसरे समर्थ समाज द्वारा हो रहे अन्याय और अत्याचार का प्रश्न है। एक मनुष्य पर हो रहे अन्याय या अत्याचारों का प्रश्न नहीं है, बल्कि एक वर्ग द्वारा दूसरे वर्ग पर ज़बरदस्ती किए जा रहे अतिक्रमण और ज़ुल्म, शोषण तथा उत्पीड़न का प्रश्न है।" (‘दलित वर्ग को धर्मान्तरण की आवश्यकता क्यों है' ? के पृष्ठ 9 से)
इस प्रकार यह एक निरंतर से चले आ रहे वर्ग कलह की समस्या है।
                                                           इन अत्याचारों को कौन करता है ? क्यों करता है ? और किस लिए करता है ?अत्याचारी अत्याचार करने में सफल क्यों हो रहा है ? क्या यह अत्याचार रोके जा सकते हैं ? अत्याचारों को रोकने का सही और कारगर उपाय, साधन या मार्ग क्या हो सकता है ? यह कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिन पर दलित वर्ग को आज फिर से संजीदगी से विचार करना चाहिए। दलित वर्ग पर अत्याचार हिन्दु धर्म के तथाकथित सवर्ण हिन्दु करते हैं और वे अत्याचार इस लिए नहीं करते कि दलित लोग उनका कुछ बिगाड़ रहे हैं बल्कि दलितों पर अत्याचार करना वे अपना अधिकार मान बैठे हैं और इस प्रकार का अधिकार उन्हें उनके धर्म ग्रन्थ भी देते हैं।
सवर्ण अपनी परंपरागत श्रेष्ठता क़ायम रखने के लिए अत्याचार करता है। जब दलित वर्ग परंपरागत उच्च वर्ग (हिन्दु) से व्यवहार करते वक़्त बराबरी के, समानता के रिश्ते से बर्ताव रखने का आग्रह करता है तब यह वर्ग कलह उत्पन्न होता है, क्योंकि ऊपरी वर्ग निचले वर्ग के इस प्रकार के व्यवहार को अपनी मानहानि मानता है। इस प्रकार सवर्ण अपनी परंपरागत श्रेष्ठता क़ायम रखने के लिए अत्याचार करता है। सवर्ण और दलित वर्ग के बीच यह एक रोज़ाना होने वाला ‘वर्ग कलह' है।

बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर ने अपने भाषण में बताया है
                                                                "इस तरह से इस वर्ग कलह से अपना बचाव किया जा सकता है। इसका विचार करना अत्यावश्यक है। इस वर्ग कलह से अपना बचाव कैसे होगा ? इस प्रश्न का निर्णय करना मैं समझता हूं मेरे लिए कोई असंभव बात नहीं है। यहां इकट्ठा हुए आप सभी लोगों को एक ही बात मान्य करनी पड़ेगी और वह यह कि किसी भी कलह में, संघर्ष में, जिनके हाथ में सामर्थ्य होती है, उन्हीं के हाथ में विजय होती है, जिनमें सामर्थ्य नहीं है उन्हें अपनी विजय की अपेक्षा रखना फ़िज़ूल की बकवास है। इसके समर्थन में अन्य कोई आधार खोजने की बात भी फ़िज़ूल है। इस लिए तमाम दलित वर्ग को अब अपने हाथ में सामर्थ्य और शक्ति को इकट्ठा करना बहुत ज़रूरी है (‘दलित वर्ग को धर्मान्तरण की आवश्यकता क्यों है' ? के पृष्ठ 10 से)
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