सामर्थ्य अर्थात बल क्या चीज़ होती है ?
बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर ने कहा-
"मनुष्य समाज के पास तीन प्रकार का बल होता है। एक है मनुष्य बल, दूसरा है धन-बल, तीसरा है मनोबल। इन तीनों बलों में से कौन-सा बल आपके पास है ? मनुष्य बल की दृष्टि से आप अल्पसंख्यक ही नहीं बल्कि संगठित भी नहीं हैं। फिर संगठित नहीं, इतना ही नहीं, इकट्ठा भी तो नहीं रहते। दलित लोग गांव और खेड़ों में बिखरे हुए हैं इसी कारण से जो मनुष्य बल है भी उसका भी ज़्यादती ग्रस्त, ज़ुल्म से पीड़ित अछूत वर्ग की बस्ती को किसी भी प्रकार का उपयोग नहीं हो सकता है।"
"धन-बल की दृष्टि से देखा जाए तो आपके पास थोड़ा-बहुत जनबल तो है ही लेकिन धन-बल तो कुछ भी नहीं है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश की कुल आबादी की 55% जनसंख्या आज भी ग़रीबी की रेखा से नीचे का जीवन बिता रही है जिसका 90% दलित वर्ग के लोग ही हैं।"
"मानसिक बल की तो उनसे भी बुरी हालत है। सैंकड़ों वर्षों से हिन्दुओं द्वारा हो रहे ज़ुल्म, छि-थू मुर्दों की तरह बर्दाश्त करने के कारण प्रतिकार करने की आदत पूरी तरह से नष्ट हो गई है। आप लोगों का आत्म विश्वास, उत्साह और महत्वकांक्षी होना, इस चेतना का मूलोच्छेद कर दिया गया है। हम भी कुछ कर सकते हैं इस तरह का विचार ही किसी के मन में नहीं आता है।" (‘दलित वर्ग को धर्मान्तरण की आवश्यकता क्यों है' ? के पृष्ठ 11-12 से) यदि मनुष्य के पास जनबल और धनबल यह दोनों हों भी और मनोबल न हो तो यह दोनों बेकार साबित हो जाते हैं। मान लीजिए आपके पास पैसा भी ख़ूब हो और आदमी भी काफ़ी हों, आपके पास बन्दूक़ें और अन्य सुरक्षा सामग्री भी उपलब्ध हो लेकिन आपके पास मनोबल न हो तो आने वाला शत्रु आपकी बन्दूक़ें और सुरक्षा सामग्री भी छीन ले जाएगा। अतः मनोबल को होना परम आवश्यक है। मनोबल का जगत प्रसिद्ध उदाहरण आपके सामने है। ऐतिहासिक घटना है कल्पना की बात नहीं। नेपोलियन एक बहुत साहसिक एवं अजेय सेनापति के रूप में प्रसिद्ध था, उसके नाम ही से शत्रु कांप उठते थे, लेकिन उसको मामूली से एक सैनिक ने युद्ध में हरा दिया था। विशेष उल्लेखनीय बात यह है कि इस सैनिक ने यह कह कर उसे हराया था कि मैं नेपोलियन को अवश्यय हराऊंगा क्योंकि मैने उसे खेल के मैदान में हरा रखा है। और वास्तव में उसने नेपोलियन को हरा दिया। उस सैनिक ने उस महान शक्तिशाली अजेय कहे जाने वाले नेपोलियन को इसलिए हरा दिया, क्योंकि उसका मनोबल नेपोलियन के प्रति खेल के मैदान से ही बढ़ा हुआ था।
मनोबल की यह एक विशेषता है कि वह एक बार जब किसी के विरुद्ध बढ़ जाता है तो फिर उसका कम होना असंभव होता है। तभी तो नेपोलियन के पास वास्तविक भौतिक शक्ति एवं रण कौशल होने के बावजूद उसके विरुद्ध बढ़े मनोबल वाले एक मामूली से सैनिक ने उसे ऐलान करके हरा दिया। अतः यदि दलित वर्ग यह सोचे कि हम सिर्फ़ अपनी शक्ति के बल पर ही अत्याचारों का मुक़ाबला कर लेंगे तो यह उनकी भूल है। फिर हमें इस पहलू को हरग़िज़ नहीं भूलना चाहिए। सवर्ण हिन्दुओं का मनोबल हमारे विरुद्ध पहले से ही बहुत बढ़ा हुआ है। हम चाहे कितनी भी वास्तविक शक्ति अर्जित कर लें लेकिन वह तो यही सोचते हैं कि- है तो यह फिर वे ही चमार, भंगी (या अछूत) ही, यह कर भी क्या सकते हैं ? इस लिए हमें मनोबल बढ़ाने की ज़रूरत है और यह उसी समय संभव है जब हम किसी बाहरी सामाजिक शक्ति की मदद लें जिसका मनोबल गिरा हुआ नहीं वरन बढ़ा हुआ हो। और जिससे हिन्दु समाज डरता भी हो।
दलितों पर ही ज़ुल्म क्यों होता है?
बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर का कथन है-
"वास्तविक स्थिति का मैने यह जो विश्लेषण किया है यदि यह ठीक है तो इससे जो सिद्धांत निकलेगा उसको भी आप सब लोगों को स्वीकार करना होगा और वह यह है कि आप अपने ही व्यक्तिगत सामर्थ्य पर निर्भर रहेंगे तो आपको इस ज़ुल्म का प्रतिकार करना संभव नहीं है। आप लोगों के सामर्थ्यहीन होने के कारण ही आप पर स्पृश्य हिन्दुओं द्वारा ज्यादती, ज़ुल्म और अन्याय होता है इसमें मुझे किसी भी प्रकार का संदेह नहीं है।" (‘दलित वर्ग को धर्मान्तरण की आवश्यकता क्यों है' ? के पृष्ठ 12 से)
बाबा साहब ने बताया किः-
"आपकी तरह यहां मुस्लिम भी अल्पसंख्यक हैं। जिस तरह महार, चमार, मांगों (भंगियों) के दो-चार घर गांव में होते हैं उसी प्रकार मुस्लमान के भी दो-चार मकान गांव में होते हैं। किन्तु इन मुसलमानों की ओर आंखें उठाकर देखने की किसी भी स्पृश्य हिन्दु की मजाल होगी ? नहीं। किन्तु आप लोगों पर जैसे-जैसे ज़ुल्म ढाए जा रहे हैं, ज़्यादतियां हो रही हैं, इसका कारण क्या है। किसी गांव में मुसलमानों के दो घर होने पर कोई स्पृश्य हिन्दु उनकी ओर आंख उठाकर नहीं देख सकता है। आप (दलित-अस्पृश्य) लोगों के दस मकान होने पर भी स्पृश्य हिन्दु ज्यादती, अन्याय और ज़ुल्म करते हैं। आपकी बस्तियां जला दी जाती हैं, आपकी महिलाओँ से बलात्कार होता है। आदमी, बच्चे और महिलाओं को ज़िंदा जला दिया जाता है। आपकी महिलाओं, बहू और जवान बेटियों को नंगा कर के गांव में घुमाया जाता है यह सब क्यों होता है ? यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न है, इस पर आप लोगों को गंभीरता से चिंतन और खोज करनी चाहिए। मेरी दृष्टि में इस प्रश्न का एक ही उत्तर दिया जा सकता है और वह यह है कि उन दो मुसलमानों के पीछे सारे भारत के मुसलमान समाज की शक्ति और सामर्थ्य है। इस बात की हिन्दु समाज को अच्छी तरह जानकारी होने के कारण उन दो घर के मुसलमानों की ओर टेढ़ी उंगली उठाई तो पंजाब से लेकर मद्रास तक और गुजरात से लेकर बंगाल तक संपूर्ण मुस्लिम समाज अपनी शक्ति खर्च कर उनका संरक्षण करेगा। यह यक़ीन स्पृश्य हिन्दु समाज को होने के कारण वे दो घर के मुसलमान निर्भय होकर अपनी ज़िंदगी बसर करते हैं। किन्तु आप दलित अछूतों के बारे में स्पृश्य हिन्दु समाज की यह धारणा बन चुकी है और वाक़ई सच ही है कि आपकी कोई मदद करने वाला नहीं है, आप लोगों के लिए कोई दौड़ कर आने वाला नहीं है, आप लोगों को रुपये पैसे की मदद होने वाली नहीं है और न ही आपको किसी सरकारी अधिकारी की मदद होने वाली है। पुलिस, कोर्ट और कचहरियां यह सब उनके ही होने के कारण स्पृश्य हिन्दु और दलितों के संघर्ष में वे जाति की ओर देखते हैं, अपने कर्तव्य की ओर उनका कोई ध्यान नहीं होता है, पहले जाति बाद में कुछ और, और जाति वालों को भी इस बात का पूरी तरह यक़ीन होता है कि हमारा कौन क्या बाल बांका कर सकता है। आप लोगों की इस असहाय अवस्था के कारण ही आप पर स्पृश्य हिन्दु समाज ज़्यादती, ज़ुल्म और अन्याय करता है।" (‘दलित वर्ग को धर्मान्तरण की आवश्यकता क्यों है' ? के पृष्ठ 12 से)
बाबा साहब आगे कहते हैं-
"यहां तक जो मैने विश्लेषण किया है उससे दो बातें सिद्ध होती हैं। पहली बात यह है कि बिना सामर्थ्य के आप के लिए इस ज़ुल्म और अन्याय का प्रतिकार करना संभव नहीं है। दूसरी बात यह है कि प्रतिकार के लिए अत्यावश्यक सामर्थ्य आप के हाथ में नहीं है। यह दो बातें सिद्ध हो जाने के बाद तीसरी एक बात अपने आप ही सिद्ध हो जाती है कि यह आवश्यक सामर्थ्य आप लोगों को कहीं न कहीं से बाहर से प्राप्त करना चाहिए। यह सामर्थ्य आप कैसे प्राप्त कर सकते हैं ? यही सचमुच महत्व का प्रश्न है और आप उसका आप लोगों को निर्विकल्प दृष्टि से चिंतन और मनन करना चाहिए।" (‘दलित वर्ग को धर्मान्तरण की आवश्यकता क्यों है' ? के पृष्ठ 13-14 से)
बाहरी शक्ति कैसे प्राप्त करनी चाहिए ?
बाबा साहब के शब्दों को ध्यान से देखिए बाबा साहब लिखते हैं:-
"जिस गांव में अछूत लोगों पर स्पृश्यों की ओर से ज़ुल्म होता है उस गांव में अन्य धर्मावलंबी लोग नहीं होते हैं ऐसी बात नहीं है। अस्पृश्यों पर होने वाला ज़ुल्म बेक़सूरी का है, बेगुनाहों पर ज्यादती है, यह बात उनको (अन्य धर्म वालों को) मालूम नहीं ऐसी कोई बात नहीं है, जो कुछ हो रहा है वह वास्तव में ज़ुल्म और अन्याय है यह मालूम होने पर भी वे लोग अछूतों की मदद करने के लिए दौड़ कर नहीं जाते हैं, इसका कारण आख़िर क्या है ? ‘तुम हमको मदद क्यों नहीं देते हो ? यदि ऐसा प्रश्न आपने उनसे पूछा तो ‘आपके झगड़े में हम क्यों पड़ें ?' यदि आप हमारे धर्म के होते तो हमने आपको सहयोग दिया होता' - इस तरह का उत्तर वे आपको देंगे। इससे बात आपके ध्यान में आ सकती है कि किसी भी अन्य समाज के आप जब तक एहसानमंद नहीं होंगे किसी भी अन्य धर्म में शामिल हुए बिना आपको बाहरी सामर्थ्य प्राप्त नहीं हो सकता है। इसका ही स्पष्ट मतलब यह है कि आप लोगों को धर्मान्तर करके किसी भी अन्य समाज में अंतभूत हो जाना चाहिए। सिवाय इसके आपको उस समाज का सामर्थ्य प्राप्त होना संभव नहीं है। और जब तक आपके पीछे सामर्थ्य नहीं है तब तक आपको और आपकी भावी औलाद को आज की सी भयानक, अमानवीय अमनुष्यतापूर्वक दरिद्री अवस्था में ही सारी ज़िंदगी गुज़ारनी पड़ेगी। ज्यादतियां बेरहमी से बर्दाश्त करनी पड़ेंगी, इसमें कोई सन्देह नहीं है।" (‘दलित वर्ग को धर्मान्तरण की आवश्यकता क्यों है' ? के पृष्ठ 14-15 से)
बाबा साहब के इन विचारों से यह बात अपने आप साफ़ हो जाती है कि सामर्थ्य प्राप्त करने के लिए हमें किसी अन्य समाज का एहसानमंद अवश्य ही होना पड़ेगा। किसी अन्य समाज में हमे अवश्य ही मिल जाना होगा। दलित वर्ग के जो लोग ऐसा समझते हैं कि वह स्वयं अपने संगठन और बाहूबल से ही अपनी समस्या हल कर सकते हैं वे सिर्फ़ यही नहीं कि ख़ुद धोखे और फ़रेब में हैं बल्कि दलित समाज को भी ग़लत राह दिखा रहे हैं- ऐसी राह, जो बाबा साहब के विचारों के बिल्कुल विपरित है।
हिन्दु धर्म में आपके प्रति कोई सहानुभूति नहीं
बाबा साहब ने कहा है-
"हिन्दु धर्म और समाज की ओर यदि सहानुभूति की दृष्टि से देखा जाए तो ठन-ठन गोपाल, चारों ओर से अंधकार नज़र आएगा। हर जगह पर घृणा, द्वेष, अहंकार, अज्ञान और अंधकार ही दिखाई देगा, यही कहना पड़ेगा। इसका आप लोगों को अच्छा ख़ासा अनुभव है। हिन्दु धर्म में अपनत्व की भावना तो है ही नहीं। किन्तु हिन्दु समाज की ओर से आप लोगों को दुश्मनों से भी दुश्मन, ग़ुलामों से भी ग़ुलाम और पशुओं से भी नीचा समझा जाता है।" (‘दलित वर्ग को धर्मान्तरण की आवश्यकता क्यों है' ? के पृष्ठ 18 से)
हिन्दु समाज में क्या आप के प्रति समता की दृष्टि है ?
कुछ हिन्दु लोग अछूतों को कहते हैं कि तुम लोग शिक्षा लो, स्वच्छ रहो, जिससे हम आपको स्पर्श कर सकेंगे, समानता से भी देखेंगे। मगर वास्तव में देखा जाए तो अज्ञानी, दरिद्री और अस्वच्छ दलितों का जो बुरा हाल होता है वही बुरा हाल पढ़्-लिखे पैसे वाले और स्वच्छ रहने वाले तथा अच्छे विचार वाले दलितों का भी होता है। दलित वर्ग की समृद्धि की पराकाष्ठा के प्रति तत्कालीन उपप्रधानमंत्री श्री जगजीवन राम जी को वराणसी में श्री संपूर्णानंद की मूर्ति का अनावरण करने पर जिस तरह से अपमानित होना पड़ा था उससे दलितों की आंखें खुल चुकी हैं कि हिन्दुओं का स्वच्छता के आधार पर समानता का बर्ताव होने का आश्वासन कितना बड़ा धोखा है। याद रहे, श्री जगजीवन राम जी द्वारा अनावरण की गई मूर्ति को गंगाजल से धो कर पवित्र किया गया था।
कुछ भाई अपने आर्थिक पिछड़ेपन ही को अपने उपर हो रहे अत्याचारों का कारण मानते हैं। यह बात ठीक है कि ग़रीबी बहुत से दुखों का कारण है लेकिन ग़रीब तो ब्राह्मण भी हैं, वैश्य भी हैं और क्षत्रिय भी है। ग़रीबी से वे लोग भी परेशान है और वे ग़रीबी के विरुद्ध लड़ भी रहे हैं लेकिन हमें एक साथ दो लड़ाइयां लड़नी पड़ रही है- एक तो ग़रीबी की दूसरी घृणा भरी जाति प्रथा की। एक तरफ हम पर ग़रीबी की मार पड़ रही है और दूसरे हमारी एक विशेष जाति होने के कारण हम पिट रहे हैं। हमें जाति की लड़ाइ तो तुरंत समाप्त कर देनी चाहिए। हम भंगी, चमार, महार, खटीक आदि अछूत तभी तक हैं, जब तक की हम हिन्दु हैं।
हिन्दु धर्म में स्वतंत्रता
क़ानून से आप को चाहे कितने अधिकार और हक़ दिए गए हों किन्तु यदि समाज उनका उपयोग करने दे तभी यह कहा जा सकता है कि यह वास्तविक हक़ है। इस दृष्टि से देखा जाए तो आपको न मंदिर जाने की स्वतंत्रता है और न जीने की स्वतंत्रता है, यह आप भली-भांति जानते हैं। इसके समर्थन में अधिक तथ्य जुटाने की आवश्यकता नहीं है। यदि स्वतंत्रता की दृष्टि से देखा जाए तो हम आपने आप को एक ग़ुलाम से भी बदतर हालत में ही पाएंगे। स्वतंत्रता, समानता एवं बंधुत्व जो मनुष्य के विकास के लिए आवश्यक चीज़े बताई गई हैं उनमें से आप के लिए हिन्दु धर्म में कोई भी चीज़ उपलब्ध नहीं है।
क्या हिन्दु धर्म हमारे पूर्वजों का धर्म था ?
बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर ने बताया है कि हिन्दु धर्म हमारे पूर्वजों का धर्म नहीं था, इसलिए उन्होंने अपने लोगों से उसे छोड़ने के लिए समझाते हुए कैसे कठोर शब्दों का प्रयोग किया है। बाबा साहब लिखते हैं- "हिन्दु धर्म हमारे पूर्वजों का धर्म नहीं हो सकता है, बल्कि उन पर ज़बरदस्ती लादी गई एक ग़ुलामी, दासता थी। हमारे पूर्वजों को इस धर्म में ही रखना यह एक क्रूर ख़ूनी पंजा था जो हमारे पूर्वजों के ख़ून का प्यासा था। इस ग़ुलामी से अपनी मुक्ति पाने की क्षमता और साधन उपलब्ध नहीं थे, इसलिए उन्हें इस ग़ुलामी के विरुद्ध विद्रोह करना संभव नहीं था। उन्हें इसी ग़ुलामी में रहना पड़ा। इसके लिए उन्हें हम दोषी नहीं ठहराएंग,कोई भी उन पर रहम ही करेगा। किन्तु आज की पीढ़ी पर उस तरह की ज़बरदस्ती करना किसी के लिए भी संभव नहीं है। हमें हर तरह की स्वतंत्रता है। इस आज़ादी का सही-सही उपयोग कर यदि इस पीढ़ी ने अपनी मुक्ति का रास्ता नहीं खोजा, यह जो हज़ारों साल से ब्राह्मणी अर्थात हिन्दु धर्म की ग़ुलामी है उसको नहीं तोड़ा तो मैं यही समझूंगा कि उनके जैसे नीच, उनके जैसे हरामी और उनके जैसे कायर जो स्वाभिमान बेचकर पशु से भी गई गुज़री ज़िंदगी बसर करते हैं अन्य कोई नहीं होंगे। यह बात मुझे बड़े दुख और बड़ी बेरहमी से कहनी पड़ेगी।"(दलित वर्ग को धर्मान्तरण की आवश्यकता क्यों है'? के पृष्ठ 34 से)
धर्म, उद्देश्य- पूर्ति का साधन है, अतः धर्म परिवर्तन करो
बाबा साहब कहते हैं-
"यदि आपको इंसानियत से मुहब्बत है तो धर्मान्तर करो। हिन्दु धर्म का त्याग करो। तमाम दलित अछूतों की सदियों से ग़ुलाम रखे गए वर्ग की मुक्ति के लिए एकता, संगठन करना हो तो धर्मान्तर करो। समता प्राप्त करनी हो तो धर्मान्तर करो। आज़ादी प्राप्त करनी हो तो धर्मान्तर करो। अपने जीवन की सफ़लता चाहते हो तो धर्मान्तर करो। मानवीय सुख चाहते हो तो धर्मान्तर करो। हिन्दु धर्म को त्यागने में ही तमाम दलित, पददलित, अछूत, शोषित पीड़ित वर्ग का वास्तविक हित है, यह मेरा स्पष्ट मत बन चुका है।" (‘दलित वर्ग को धर्मान्तरण की आवश्यकता क्यों है' ? के पृष्ठ 51 से)
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