🔹सदक़ा में बकरा देने का हुक्म🔹

🔹सदक़ा में बकरा देने का हुक्म🔹

✍️... मक़बूल अहमद सलफ़ी
हिंदी अनुवाद: अब्दुल मतीन सैयद
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इस मे कोई हरज नहीं है कि कोई मुस्लिम बकरा ग़रीब ओ मोहताज पर सदक़ा करे या फिर बकरा/बकरी और किसी क़िस्म का हलाल जानवर ज़ब्ह कर के इसे फ़ुक़रा ओ मसाकीन में तक़सीम करे इस के मुत'अद्दिद (बहुत से) दलाइल (दलीलें) है चंद एक आप के सामने बयान करता हूं
पहले 'उमूमी ('आम) दलाइल (दलीलें) पेश करता हूं जिन से मा'लूम होगा कि खाने पीने की कोई चीज़ सदक़ा कर सकते हैं जैसे आप ﷺ का यह फ़रमान देखें:
إنْ أردتَ أنْ يَلينَ قلبُكَ ، فأطعِمْ المسكينَ ، وامسحْ رأسَ اليتيمِ(صحيح الجامع:1410)
तर्जुमा: अगर तुम अपने दिल को नर्म करना चाहते हो मिस्कीन (ग़रीब) को खाना खिलाओ और यतीम (अनाथ) के सर पर हाथ फेरो
(सहीह अल-जामे':1410)
इस हदीष से मा'लूम हुआ कि मसाकीन को खिलाना पिलाना अज्र (सवाब) का काम हैं और यह दिलों को नर्म करता है खिलाने पिलाने में आप जो चाहें खिलाए इस में गोश्त भी शामिल है इसी तरह 'उमूमी ('आम) दलील के तहत यह हदीष भी देखे अब्दुल्लाह बिन माक़िल ने हज़रत अदी बिन हातिम रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत की उन्होंने कहा: रसूलुल्लाह ﷺ को फरमाते हुए सुना:
 مَنِ اسْتَطَاعَ مِنْكُمْ أَنْ يَسْتَتِرَ مِنَ النَّارِ وَلَوْ بِشِقِّ تَمْرَةٍ فَلْيَفْعَلْ(صحيح مسلم:2347)
तर्जुमा: तुम में से जो शख़्स आग से महफ़ूज़ (सुरक्षित) रहने की इस्तिता'अत (ताक़त) रखे चाहे खजूर के एक टुकड़े (सदक़ा) के जरिए क्यूँ न हो वो जरूर ऐसा करे 
(सहीह मुस्लिम:2347)
खजूर का त'अल्लुक़ (सम्बन्ध) खाने से हैं और यहां कहा गया है कि खजूर का एक टुकड़ा किसी को सदक़ा कर के जहन्नम से बच सकते हो तो इस से बचो
'उमूमी ('आम) दलाइल के बाद अब ख़ुसूसी (ख़ास) दलाइल ज़िक्र करता हूं जिन में बतौर सदक़ा जानवर ज़ब्ह करने और गोश्त खाने खिलाने का ज़िक्र मिलता है
उम्म-उल-मोमिनीन आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत है:
أنَّهم ذبحوا شاةً فقالَ النَّبيُّ صلَّى اللَّهُ عليْهِ وسلَّمَ ما بقيَ منْها ؟ قلت ما بقيَ منْها إلَّا كتفُها . قالَ : بقيَ كلُّها غيرَ كتفِها(صحيح الترمذي:2470)
तर्जुमा: सहाबा ने एक बकरी ज़ब्ह की नबी-ए-अकरम ﷺ ने पूछा इस में से कुछ बाकी हैं ? आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने कहा: दस्ती (हाथ) के सिवा और कुछ नहीं बाकी हैं आप ने फ़रमाया: दस्ती के सिवा सब कुछ बाकी हैं
इस हदीष का मतलब यह हैं कि बकरी ज़ब्ह कर के इस का जितना हिस्सा फ़ुक़रा ओ मसाकीन में सदक़ा कर दिया गया वो बेहतर और बाकी रहने वाला है और बकरी का जो दस्ती (हाथ का) हिस्सा सदक़ा नही किया जा सका वो बाकी रहने वाला नहीं है इस से आप ﷺ का इशारा अल्लाह के इस कलाम की तरफ़ हैं:
مَا عِندَكُمْ يَنفَدُ ۖ وَمَا عِندَ اللَّهِ بَاقٍ(سورہ النحل:96)
तर्जुमा: तुम्हारे पास जो कुछ हैं सब फ़ानी हैं और अल्लाह-त'आला के पास जो कुछ हैं बाकी हैं (सूरा अन्-नह़्ल:96)
इसी तरह एक दूसरी हदीष इस तरह मर्वी हैं हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत हैं वो बयान करते हैं:
انَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ إِذَا أُتِيَ بِطَعَامٍ سَأَلَ عَنْهُ، أَهَدِيَّةٌ أَمْ صَدَقَةٌ؟ فَإِنْ قِيلَ صَدَقَةٌ، قَالَ لِأَصْحَابِهِ: كُلُوا، وَلَمْ يَأْكُلْ، وَإِنْ قِيلَ: هَدِيَّةٌ، ضَرَبَ بِيَدِهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فَأَكَلَ مَعَهُمْ.(صحیح البخاری:2576)
तर्जुमा: रसूलुल्लाह ﷺ की ख़िदमत में जब कोई खाने की चीज़ लाई जाती तो आप ﷺ दरियाफ़्त फरमाते यह तोहफ़ा हैं या सदक़ा ?
अगर कहा जाता कि सदक़ा हैं तो आप ﷺ अपने असहाब से फरमाते कि खाओ आप ﷺ ख़ुद न खाते और अगर कहा जाता कि तोहफ़ा हैं तो आप ﷺ ख़ुद भी हाथ बढ़ाते और सहाबा के साथ इसे खाते
(सहीह बुखारी:2576)
सदक़ा के गोश्त से मुत'अल्लिक़ (बारे में) एक तीसरी हदीष भी मुलाहज़ा फरमाएं 
अनस रज़ियल्लाहु अन्हु ने बयान किया:
أُتِيَ النَّبِيُّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ بِلَحْمٍ، فَقِيلَ: تُصُدِّقَ عَلَى بَرِيرَةَ، قَالَ: هُوَ لَهَا صَدَقَةٌ وَلَنَا هَدِيَّةٌ(صحیح البخاری:2577)
तर्जुमा: रसूलुल्लाह ﷺ की ख़िदमत (सेवा) में एक मर्तबा गोश्त पेश किया गया और यह बताया गया कि यह बरीरा रज़ियल्लाहु अन्हा को किसी ने बतौर सदक़ा के दिया है नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया: उन के लिए यह सदक़ा हैं और हमारे लिए (जब उन के यहां से पहुंचे तो) हदिया (तोहफ़ा) हैं
(बुखारी:2577)
 सदक़ा के बकरा से मुत'अल्लिक़ (बारे में) एक चौथी हदीष भी देखें 
عن ام عطية، قالت:دخل النبي صلى الله عليه وسلم على عائشة رضي الله عنها، فقال: عندكم شيء؟ قالت: لا، إلا شيء بعثت به ام عطية من الشاة التي بعثت إليها من الصدقة، قال: إنها قد بلغت محلها(صحیح البخاری:2579)
तर्जुमा: उम्मे अतिय्या रज़ियल्लाहु अन्हा ने कहा कि नबी करीम ﷺ आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा के यहां तशरीफ़ ले गए और दरियाफ़्त
फ़रमाया क्या कोई चीज़ (खाने की) तुम्हारे पास हैं ? इन्होंने कहा उम्मे अतिय्या रज़ियल्लाहु अन्हा के यहां जो आप ने सदक़ा की बकरी भेजी थी उस का गोश्त इन्होंने भेजा है इस के सिवा और कुछ नहीं है आप ﷺ ने फ़रमाया कि वो अपनी जगह पहुंच चुकी
(सहीह बुखारी:2579)
दलाइल से यह बात बिल्कुल वाज़ेह (स्पष्ट) हो गई कि सदक़ा के तौर पर खाने पीने की कोई चीज़ ख़्वाह (चाहे) खजूर हो, गोश्त हो या बकरा या बकरी और कोई हलाल जानवर हो फ़ुक़रा ओ मसाकीन को दे सकते हैं इस में शर'अन कोई हरज नहीं हैं
जानवर सदक़ा करने से मुत'अल्लिक़ (बारे में) चंद मसाइल व अहकाम अब यहां आप के सामने जानवर सदक़ा करने से मुत'अल्लिक़ (बारे में) चंद मसाइल व अहकाम भी बयान कर देता हूं ताकि इस बाब (chapter) में सदक़ा की अस्ल हक़ीक़त को समझें और ग़ैर-शर'ई उमूर (काम) से परहेज़ (एहतियात) करे
पहला मसअला: यूहीं (इसी तरह) बग़ैर किसी हाजत व ज़रूरत के भी फ़ुक़रा ओ मसाकीन की इमदाद (मदद) के तौर पर जानवर ज़ब्ह कर के सदक़ा कर सकते हैं या बग़ैर ज़ब्ह किए मुकम्मल (पूरा) जानवर किसी मिस्कीन (ग़रीब) यतीमख़ाना या ख़ैराती इदारो (संस्थाएं) को मोहताजों (ज़रूरतमंदों) के वास्ते (लिए) दे सकते हैं
दूसरा मसअला: बसा-औक़ात (कभी-कभी) घर में कोई बीमार हो तो उस की शिफ़ायाबी (रोगमुक्ति) की निय्यत से भी जानवर सदक़ा कर सकते हैं नबी ﷺ का फरमान हैं:
دَاوُوا مَرضاكُمْ بِالصَّدقةِ(صحيح الجامع:3358)
तर्जुमा: सदक़ा के ज़रिया' अपने मरीजों का 'इलाज करो (सहीह जामे':3358)
तीसरा मसअला: जानवर ज़ब्ह करते वक़्त निय्यत अल्लाह का तक़र्रुब (नज़दीकी) हो बीमार की तरफ़ से जानवर ज़ब्ह करते वक़्त भी तक़र्रुब इलाही मक़्सद हो या'नी (मतलब) यह निय्यत न हो कि जानवर ज़ब्ह करने से ही फ़ाइदा हो जाएगा नहीं निय्यत यह हो कि यह जानवर अल्लाह की रज़ा (ख़ुशी) के लिए ज़ब्ह कर रहा हूं अल्लाह की तौफ़ीक़ से फ़ाइदा होगा
चौथा मसअला: सदक़ा का अस्ल मुस्तहिक़ (हकदार) तो फ़क़ीर ओ मोहताज है ताहम (फिर भी) सदक़ा मालदार को भी दे सकते हैं इस लिए सदक़ा का गोश्त किसी मालदार को भी दे देते हैं तो कोई हरज नहीं हैं
पाँचवाँ मसअला: जब घर में सदक़ा की निय्यत से एक जानवर ज़ब्ह किया जाए तो क्या इस में से घर वाले खा सकते हैं ?
तो इस का जवाब यह हैं कि अगर यह निय्यत कर के जानवर ज़ब्ह किया जाए कि इस में से घर वाले भी खाएं तो बिल्कुल घर वाले भी इस गोश्त से खा सकते हैं लेकिन अगर घर वालों की निय्यत न की गई हो तो पूरा बकरा सदक़ा कर दिया जाए
छठा मसअला: फ़ुक़रा ओ मसाकीन की पैसों से मदद करना अफ़ज़ल हैं या बकरा देना अफ़ज़ल हैं ?
इस सिलसिले में ज़ाहिर सी बात है कि पैसों से मदद करना अफ़ज़ल हैं क्यूँकि (इसलिए कि) पैसों से मुख़्तलिफ़ (अलग-अलग) किस्म की ज़रूरियात पूरी की जा सकती हैं ताहम (फिर भी) सदक़ा में गोश्त देने या जानवर देने में भी कोई हरज नहीं हैं जाइज़ हैं आप देखते है कितने सारे कफ़्फ़ारात (गुनाह के बदले की चीज़ें) हैं जिन में मिस्कीनो को खिलाने का हुक्म हैं वहां नक़दी (कैश) किफ़ायत नहीं करेंगी खिलाना ही हैं तो खिलाने में भी अपनी जगह मस्लहत (भलाई) हैं
जानवर ज़ब्ह करने से मुत'अल्लिक़ (बारे में) कुछ बातिल (गलत)'अक़ाइद (आस्था)
(1) कुछ लोग ख़याल करते हैं कि बीमारी जिन्नात या घर पर किसी मूज़ी (दुष्ट) साया की वजह से हैं लिहाज़ा (इसलिए) जानवर ज़ब्ह करते हैं और इस का ख़ून बहाते हैं इस ए'तिक़ाद (यक़ीन) के साथ इस की वजह से जिन्नात या मूज़ी चीज़ का शर (शरारत) दूर हो जाएगा और तकलीफ़ रफ़' (ख़त्म) हो जाएगी यह ए'तिक़ाद (विश्वास) बातिल (गलत) हैं
(2) इसी तरह कुछ लोग हिफ़्ज़-ए-मा-तक़द्दुम (वह बचाओ जो पहले से कर लिया जाए) के तौर पर जिन्नात और मूज़ी (ज़हरीला) चीज़ के शर (बुराई) से बचने के लिए घर में जानवर पालते हैं या जानवर इस ग़रज़ (निय्यत) से ज़ब्ह करते हैं यह ए'तिक़ाद (विश्वास) भी बातिल (ग़लत) व मर्दूद हैं
(3) ऐसे भी कुछ लोग पाए जाते हैं जो नए घर में दाख़िल होते वक़्त घर और घर वालों की सलामती के तौर पर जानवर ज़ब्ह करते हैं या जिन्नात के शर से नए घर की हिफ़ाज़त के लिए जानवर ज़ब्ह करते हैं यह सब बे-दीनी और शिर्क के क़बील (प्रकार) से हैं हां अगर कोई घर की ने'मत मिलने पर ख़ुशी से लोगों को दा'वत देता हैं या जानवर ज़ब्ह करता हैं तो इस में हरज नहीं

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