मैंने इब्राहीम अलैहिस्सलाम के वाक़ि'ए से क्या सिखा? | Maine Ibrahim Alaihisalam Ke Wakiye se Kya Sikha?
तहरीर: मोहम्मद अनवर मोहम्मद मरसाल
अरबी से उर्दू तर्जमा: अब्दुल ग़फ़्फ़ार सलफ़ी बनारस
हिंदी अनुवाद: अब्दुल मतीन सैयद
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तमाम ता'रीफ़ें अल्लाह के लिए है जो तमाम जहानों का मालिक है मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह के सिवा कोई मा'बूद नहीं इस का कोई शरीक नहीं मैं गवाही देता हूं कि मोहम्मद ﷺ इस के बंदे और रसूल हैं !
हम्द-ओ-सलात के बाद:
हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के किस्से से हासिल होने वाले चंद अस्बाक़ (नसीहत) फ़वाइद (फ़ाइदे) और 'इबरत के पहलूओं को हम यहां ज़िक्र कर रहे हैं:
(1) मैंने इब्राहीम अलैहिस्सलाम के किस्से से सिखा:
कि क़रीब-तरीन लोगों के साथ भी 'अक़ाइद के मु'आमले में कोई मुदाहनत (चापलूसी) नहीं करना चाहिए
"إِنِّيٓ أَرَىٰكَ وَقَوۡمَكَ فِي ضَلَٰلٖ مُّبِينٖ"
(الأنعام :74)
तर्जमा: (इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अपने वालिद से कहा) मैं आपको और आपकी क़ौम को सरीह गुमराही में देख रहा हूं ,
(सूरा अल्-अन्आम:74)
(2) मैंने इब्राहीम अलैहिस्सलाम के किस्से से सिखा:
कि तमाम शरी'अतो में औरत को सबसे ज़्यादा 'इज़्ज़त शरी'अत-ए-इस्लामिया में दी गई है अल्लाह-त'आला ने एक औरत (सय्यदा हाजिरा अलैहिस्सलाम) के दौड़ने को हज्ज व 'उम्रा का रुक्न बना दिया इसके बग़ैर यह 'इबादत सहीह नही हो सकती !
इब्न अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं:
इधर उम्म-ए-इस्मा'ईल अलैहिस्सलाम (पर यह बीती कि वो) हज़रत इस्मा'ईल अलैहिस्सलाम को दूध पिलाती और इस पानी में से ख़ुद पीती रहतीं लेकिन जब मश्क का पानी ख़त्म हो गया तो ख़ुद भी प्यासी हुई और बच्चे को भी प्यास लगी उसने बच्चे को देखा कि वो प्यास के मारे लोट-पोट हो रहा है या'नी तड़प रहा है बच्चे की यह हालत उनके लिए ना-क़ाबिल-ए-दीद थी इस लिए उठकर चली तो सफ़ा पहाड़ी को दूसरे पहाड़ों के ए'तिबार से क़रीब पाया वो इस पर खड़ी हो कर वादी की तरफ़ देखने लगी ताकि उन्हें कोई नज़र आए लेकिन उन्हें वहां कोई चीज़ दिखाई न दी मजबूरन वहां से उतर कर नशेब (निचाई) में पहुंची तो अपना दामन उठा कर बहुत तेज़ी के साथ दौड़ी जैसे कोई सख़्त मुसीबत-ज़दा (आफ़त का मारा) और परेशान-हाल (दुखी) इंसान दौड़ता है फिर नशेब (निचाई) से गुज़र कर मरवा पहाड़ी पर चढ़े उस पर खड़े हो कर देखा कि कोई आदमी नज़र आजाए लेकिन वहां भी कोई आदमी न दिखाई दिया फिर उन्होंने इस तरह सात चक्कर लगाएं इब्न अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा कि नबी ﷺ ने फ़रमाया: लोग इस लिए इन दोनों (सफ़ा व मरवा) के दरमियान स'ई करते हैं,
(सहीह बुखारी:3364)
और अल्लाह ने इनके दौड़ने को हमेशा के लिए बाक़ी रख दिया !
(3) मैंने इब्राहीम अलैहिस्सलाम के किस्से से सिखा:
कि
(حسبنا ﷲ و نعم الوکیل)
" अल्लाह हमें काफ़ी है और वो बेहतर कारसाज़ है "
कह देना काफ़ी है इब्न अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं:
(इब्राहीम अलैहिस्सलाम को जब आग में डाला गया तो उनकी आख़िरीं बात यह थी) " मेरे लिए अल्लाह काफ़ी है और वो बेहतर कारसाज़ है "
" فَأَنجَىٰهُ ٱللَّهُ مِنَ ٱلنَّارِۚ "
पस अल्लाह ने उन्हें आग से बचा लिया ( सूरा अल्-अन्कबूत:24)
(4) मैंने इब्राहीम अलैहिस्सलाम के किस्से से सिखा:
कि मख़्लूक़ की तरफ़ से मिलने वाली अज़िय्यत (तकलीफ़) पर सब्र करना चाहिए इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने उनसे कहा: " ٱعۡبُدُواْ ٱللَّهَ وَٱتَّقُوهُۖ "
" अल्लाह की 'इबादत करो और उससे डरों " (सूरा अल्-अन्कबूत:16) और उन्होंने कहा " حَرِّقُوهُ "
" इसे जला डालो " (सूरा अल्-अम्बिया:68)
(5) मैंने इब्राहीम अलैहिस्सलाम के किस्से से सिखा:
जो अल्लाह के लिए कोई चीज़ छोड़ता है अल्लाह उसे इस की जगह इससे बेहतर चीज़ 'अता करता है,
अल्लाह-त'आला ने फ़रमाया:
فَلَمَّا ٱعۡتَزَلَهُمۡ وَمَا يَعۡبُدُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ وَهَبۡنَا لَهُۥٓ إِسۡحَٰقَ وَيَعۡقُوبَۖ وَكُلّٗا جَعَلۡنَا نَبِيّٗا (مريم:49)
तर्जमा: तो जब इब्राहीम उनसे और उन तमाम चीजों से जिन की वो अल्लाह के सिवा 'इबादत करते थे अलग-थलग हो गए तो हम ने उन्हें इसहाक़ और या'क़ूब 'अता किए और हर एक को हम ने नबी बनाया,
(सूरा-ए-मरियम:49)
(6) मैंने इब्राहीम अलैहिस्सलाम के किस्से से सिखा:
कि 'अमल का बदला उसकी जिंस (नस्ल) से ही मिलता है जिस शख़्स ने अपने बाप से कहा:
" يَٰٓأَبَتِ لَا تَعۡبُدِ ٱلشَّيۡطَٰنَۖ "(مريم:44)
तर्जमा: अब्बा-जान शैतान की 'इबादत न कीजिए,
(सूरा-ए-मरियम:44)
उन्हीं से बाद में कहा गया:
" يَٰٓأَبَتِ ٱفۡعَلۡ مَا تُؤۡمَرُۖ " (الصافات:102)
तर्जमा: अब्बा-जान आपको जो हुक्म दिया गया है इसे कर डालिए,
(सूरा अस्-साफ़्फ़ात:102)
ग़ौर कीजिए वहीअलफ़ाज़ इस्ते'माल किए गए (अब्बा-जान)
(7) मैंने इब्राहीम अलैहिस्सलाम के किस्से से सिखा:
कि दा'वत का आग़ाज़ (शुरू'आत) सबसे क़रीबी रिश्तेदार से करना चाहिए इब्राहीम ने अपने वालिद (आज़र) से शुरू'आत की इरशाद-ए-बारी-त'आला है:
۞ وَإِذۡ قَالَ إِبۡرَٰهِيمُ لِأَبِيهِ ءَازَرَ أَتَتَّخِذُ أَصۡنَامًا ءَالِهَةً إِنِّيٓ أَرَىٰكَ وَقَوۡمَكَ فِي ضَلَٰلٖ مُّبِينٖ (الأنعام:74)
तर्जमा: और जब इब्राहीम ने अपने बाप आज़र से कहा कि क्या आप बुतो को मा'बूद बनाते हैं मैं आपको और आपकी क़ौम को सरीह गुमराही में देखता हूं,
(सूरा अल्-अन्आम :74)
(8) मैंने इब्राहीम अलैहिस्सलाम के किस्से से सिखा:
कि वो क़दम जो अल्लाह के लिए वक़्फ़ हो और उसी के लिए जिते हो उनके आसार (निशानात) बाकी रहते हैं,
इरशाद-ए-बारी-त'आला है:
" وَٱتَّخِذُواْ مِن مَّقَامِ إِبۡرَٰهِـۧمَ مُصَلّٗىۖ "
(البقرة:125)
तर्जमा: और मक़ाम-ए-इब्राहीम को नमाज़ पढ़ने की जगह बनालो,
( सूरा अल्-ब-क़-रा:125)
इब्राहीम अलैहिस्सलाम के क़दमों के निशान अब भी मौजूद है !
(9) मैंने इब्राहीम अलैहिस्सलाम के किस्से से सिखा:
कि लोग फ़रमाँ-बरदारी, इता'अत और ताबे'दारी के मु'आमले में यकसाँ (एक जैसे) नहीं होते ख़लीलुल्लाह से कहा जाता है: " अपने बेटे को ज़ब्ह कर डालो " और वो उसे ज़ब्ह के लिए लिटा देते हैं और मूसा अलैहिस्सलाम की क़ौम से कहा जाता है कि: " गाय ज़ब्ह करो " तो उन्होंने इसे ज़ब्ह तो किया लेकिन क़रीब था कि वो ऐसा न करते पाक है वो ज़ात जिसने मख़्लूक़ के दरमियान (बीच में) यह फ़र्क़ और तफ़ावुत (अंतर) रखा !
(10) मैंने इब्राहीम अलैहिस्सलाम के किस्से से सिखा:
कि हर मरीज़ के लिए एक पैग़ाम है (अपने दिल को अल्लाह के साथ जोड़ लो)
" وَإِذَا مَرِضۡتُ فَهُوَ يَشۡفِينِ "
(الشعراء:80)
तर्जमा: और जब मैं बीमार होता हूं वही मुझे शिफ़ा देता है,
(सूरा अश्-शु-अ़-रा :80)
काश लोग इस बात की तलक़ीन (नसीहत) दवा-ख़ानों और हस्पतालों में मरीज़ को करते रहते !
(11) मैंने इब्राहीम अलैहिस्सलाम के किस्से से सिखा:
कि अल्लाह के अहकाम (आदेश) की ता'मील (हुक्म मानने) में ही हर क़िस्म की भलाई है इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अल्लाह के हुक्म की ता'मील (आज्ञा) की और अपने बेटे को ज़ब्ह करने के लिए तैयार हो गए तो अल्लाह ने उनके बेटे को भी बचा लिया और उनके इस 'अमल को ज़िंदा-ए-जावेद (अमर) कर दिया, अल्लाहु-अकबर !
(12) मैंने इब्राहीम अलैहिस्सलाम के किस्से से सिखा:
कि ख़ौफ़ की हालत में नमाज़ की तरफ़ भागना और दु'आ मांगना चाहिए जब (सारा) को ज़ालिम बादशाह के पास ले जाया गया तो इब्राहीम अलैहिस्सलाम खड़े हो कर नमाज़ पढ़ने लगे और दु'आ करने लगे चुनांचे (इसलिए) अल्लाह ने बद-कार की साज़िश को नाकाम बना दिया और हाजिरा को भी ख़िदमत के लिए 'अता कर दिया रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:
فأتته وهو قائم يصلي، فأومأ بيده: مهياقالت:رد الله كيد الكافر - أو الفاجر - في نحره، وأخدم هاجر
" वो उस वक़्त उनके पास आए जब वो नमाज़ पढ़ रहे थे उन्होंने अपने हाथ से इशारा किया क्या माजरा है ? हज़रत सारा ने कहा अल्लाह ने काफ़िर या फ़ाजिर की तदबीर (कोशिश) को इसी के गले में फेर दिया या'नी नाकाम बना दिया और हाजिरा को ख़िदमत के लिए 'अता किया,
(सहीह बुखारी:3358, सहीह मुस्लिम:2371)
(13) मैंने इब्राहीम अलैहिस्सलाम के किस्से से सिखा:
कि मैं अहल-ए-बातिल की कसरत (भीड़) और अहल-ए-हक़ की क़िल्लत (कमी) से धोका न खाऊं,
" فَـَٔامَنَ لَهُۥ لُوطٞۘ "(العنكبوت: 26)
तर्जमा: पस इब्राहीम पर सिर्फ़ लूत ईमान लाए,
(सूरा अल्-अन्कबूत:26)
(14) मैंने इब्राहीम अलैहिस्सलाम के किस्से से सिखा:
दुनिया में आ'ला (उत्तम) चीज़ों की ता'मीर आख़िरत में भी बुलंदियों का सबब (कारण) बनती है
इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने का'बा की ता'मीर की तो हमारे नबी ﷺ ने (मे'राज की शब) उन्हें बैतुल-मा'मूर से टेक लगाए हुए देखा
हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने सातवें आसमान पर बैतुल-मा'मूर का ज़िक्र किया वहां इब्राहीम अलैहिस्सलाम बैतुल-मा'मूर पर टेक लगाए हुए थे इस में हर-रोज़ (रोज़ाना) सत्तर-हज़ार फ़रिश्ते दाख़िल होते हैं जो कभी उसकी तरफ़ लौट कर नहीं आते,
(अल-नसाई अल-कुबरा:11466)
(15) मैंने इब्राहीम अलैहिस्सलाम के किस्से से सिखा:
कभी कभी एक आदमी हज़ारों अफ़राद (लोगों) के बराबर होता है,
إِنَّ إِبْرَاهِيمَ كَانَ أُمَّةً (النحل:120)
तर्जमा: बेशक इब्राहीम एक उम्मत थे, (सूरा अन्-नह़्ल:120)
या'नी ऐसा इमाम जिस की पैरवी की जाए और जो लोगों को नेकी की ता'लीम दे !
(16) मैंने इब्राहीम अलैहिस्सलाम के किस्से से सिखा:
नेक औलाद की तलब (इच्छा) कितनी अहम है,
رَبِّ هَبْ لِي مِنَ الصَّالِحِينَ (الصافات:100)
तर्जमा: ऐ मेरे रब मुझे नेक लोगों में से औलाद 'अता फ़र्मा, (सूरा अस्-साफ़्फ़ात:100)
(17) मैंने इब्राहीम अलैहिस्सलाम के किस्से से सिखा:
अगर आप अल्लाह के साथ है और आप ने अपनी ज़िम्मेदारियों को अदा कर दिया तो सबब न होने के बावुजूद (तब भी) बहुत बड़े-बड़े नताइज (परिणाम) सामने आ सकते हैं,
وَأَذِّنْ فِي النَّاسِ بِالْحَجِّ (الحج:27)
तर्जमा: और लोगों में हज्ज का ए'लान करो, (सूरा अल्-ह़ज्ज:27)
यह एक पुकार थी जिस की सदा (आवाज़) ख़लीलुल्लाह ने दी थी और उस वक़्त कोई इसे सुनने वाला नहीं
था लेकिन आज अल्लाह ने इस सदा (आवाज़) को तमाम कानों तक पहुंचा दिया !
(18) मैंने इब्राहीम अलैहिस्सलाम के किस्से से सिखा:
अपनी उस औलाद के लिए दु'आ करना जो अभी वुजूद में भी नहीं आई है यह भी औलाद के साथ वफ़ादारी की एक शक्ल है,
رَبِّ اجْعَلْنِي مُقِيمَ الصَّلَاةِ وَمِنْ ذُرِّيَّتِي(ابراہیم:40)۔
तर्जमा: ऐ मेरे रब मुझे और मेरी औलाद को नमाज़ क़ाएम करने वाला बना, (सूरा इब्राहीम:40)
(19) मैंने इब्राहीम अलैहिस्सलाम के किस्से से सिखा:
सबसे 'अज़ीम चीज़ जो नमाज़ पढ़ने इस की पाबंदी करने और उसे न छोड़ने में मदद करती है वो दु'आ है,
رَبِّ اجْعَلْنِي مُقِيمَ الصَّلَاةِ وَمِنْ ذُرِّيَّتِي رَبَّنَا وَتَقَبَّلْ دُعَاءِ ﴾[ابراہیم: 40]۔
तर्जमा: ऐ मेरे रब मुझे नमाज़ क़ाएम करने वाला बना और मेरी औलाद को भी ऐ हमारे रब मेरी दु'आ क़ुबूल फ़रमा, (सूरा इब्राहीम:40)
(20) मैंने इब्राहीम अलैहिस्सलाम के किस्से से सिखा:
अपने घर की चौखट या'नी बीवी का अच्छा इंतिख़ाब (चयन) कीजिए
बहुत ज़्यादा शिकायत करने वाली और हमेशा नाराज़ रहने वाली बीवी मुनासिब (योग्य) नहीं है
इस्मा'ईल अलैहिस्सलाम की शादी के बाद इब्राहीम अलैहिस्सलाम यहां अपने छोड़े हुए ख़ानदान को देखने आए इस्मा'ईल अलैहिस्सलाम घर पर नहीं थे इसलिए आप ने उनकी बीवी से इस्मा'ईल अलैहिस्सलाम के मुत'अल्लिक़ (बारे में) पूछा उन्होंने बताया कि रोज़ी की तलाश में कहीं गए हैं फिर आप ने उनसे उनकी म'आश (रोज़गार) वग़ैरा के मुत'अल्लिक़ (बारे में) पूछा तो उन्होंने कहा कि हालत अच्छी नहीं है बड़ी तंगी से गुज़र औक़ात होती है इस तरह उन्होंने शिकायत की इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने उनसे फ़रमाया कि जब तुम्हारा शौहर आए तो उनसे मेरा सलाम कहना और यह भी कहना कि वो अपने दरवाज़े की चौखट बदल डालें फिर जब इस्मा'ईल अलैहिस्सलाम वापस तशरीफ़ लाए तो जैसे उन्होंने कुछ उंसिय्यत (मुहब्बत) सी महसूस की और दरयाफ़्त फ़रमाया क्या कोई साहिब यहां आए थे ?
उनकी बीवी ने बताया कि हां एक बुज़ुर्ग इस इस शक्ल के यहां आए थे और आप के बारे में पूछ रहे थे मैंने उन्हें बताया (कि आप बाहर गए हुए हैं) फिर उन्होंने पूछा कि तुम्हारी गुज़र औक़ात (गुज़रान) का क्या हाल है ? तो मैंने उनसे कहा कि हमारी गुज़र औक़ात (गुज़रान) बड़ी तंगी से होती है इस्मा'ईल अलैहिस्सलाम ने दरयाफ़्त किया कि उन्होंने तुम्हें कुछ नसीहत भी की थी ? उनकी बीवी ने बताया कि हां मुझसे उन्होंने कहा था कि आप को सलाम कह दो और वो यह भी कह गए हैं कि आप अपने दरवाज़े की चौखट बदल दे इस्मा'ईल अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया कि वो बुज़ुर्ग मेरे वालिद थे और मुझे यह हुक्म दे गए हैं कि मैं तुम्हें जुदा कर दूँ अब तुम अपने घर जा सकती हो चुनांचे इस्मा'ईल अलैहिस्सलाम ने उन्हें तलाक़ दे दी और बनी जरहम ही में एक दूसरी औरत से शादी कर ली जब तक अल्लाह-त'आला को मंज़ूर रहा इब्राहीम अलैहिस्सलाम उनके यहां नहीं आएं फिर जब कुछ दिनों के बाद वो तशरीफ़ लाए तो इस मर्तबा भी इस्मा'ईल अलैहिस्सलाम अपने घर पर मौजूद नहीं थे आप उनकी बीवी के यहां गए और उनसे इस्मा'ईल अलैहिस्सलाम के बारे में पूछा उन्होंने बताया कि हमारे लिए रोज़ी तलाश करने गए हैं इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने पूछा तुम लोगों का हाल कैसा है ? आप ने उनकी गुज़र-बसर (गुज़ारा) और दूसरे हालात के मुत'अल्लिक़ (बारे में) पूछा उन्होंने बताया कि हमारा हाल बहुत अच्छा है बड़ी फ़राख़ी (ख़ुशहाली) है उन्होंने इस के लिए अल्लाह की ता'रीफ़ व सना की इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने दरयाफ़्त फ़रमाया कि तुम लोग खाते क्या हो ? उन्होंने बताया कि गोश्त आप ने दरयाफ़्त किया फ़रमाया कि पीते क्या हो ? बताया कि पानी इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने उनके लिए दु'आ की ऐ अल्लाह इनके गोश्त और पानी में बरकत नाज़िल फ़रमा आँ-हज़रत ﷺ ने फ़रमाया कि उन दिनों उन्हें अनाज मुयस्सर नहीं था अगर अनाज भी उनके खाने में सामिल होता तो ज़रूर आप उसमें भी बरकत की दु'आ करते सिर्फ़ गोश्त और पानी की ख़ुराक में हमेशा गुज़ारा करना मक्का के सिवा और किसी ज़मीन पर भी मुवाफ़िक़ (अनुकूल) नहीं पड़ता इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने (जाते हुए) उससे फ़रमाया कि जब तुम्हारे शौहर वापस आ जाए तो उनसे मेरा सलाम कहना और उनसे कह देना कि वो अपने दरवाज़े की चौखट बाकी रखे जब इस्मा'ईल अलैहिस्सलाम तशरीफ़ लाए तो पूछा कि क्या यहां कोई आया था ?
उन्होंने बताया कि जी हां एक बुज़ुर्ग बड़ी अच्छी शक्ल-ओ-सूरत के आए थे बीवी ने आने वाले बुज़ुर्ग की ता'रीफ़ की फिर उन्होंने मुझसे आप के मुत'अल्लिक़ (बारे में) पूछा (कि कहा है ?) और मैंने बता दिया फिर उन्होंने पूछा कि तुम्हारी गुज़र-बसर का क्या हाल है तो मैंने बताया कि हम अच्छी हालत में है इस्मा'ईल अलैहिस्सलाम ने दरयाफ़्त फ़रमाया कि क्या उन्होंने तुम्हें कोई वसिय्यत भी की थी ? उन्होंने कहा जी हां उन्होंने आपको सलाम कहा था और हुक्म दिया था कि अपने दरवाज़े की चौखट को बाकी रखे,
(सहीह बुखारी:3364)
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