आप के जिस्म (शरीर) का हर हिस्सा अहम (ख़ास) है

🔹आप के जिस्म (शरीर) का हर हिस्सा अहम (ख़ास) है🔹

लेखक: नदीम अख़्तर सलफ़ी

हिंदी अनुवाद: अब्दुल मतीन सैयद
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🔹 आप के जिस्म (शरीर) का एक एक हिस्सा (भाग) और अंग बहुत अहम है अल्लाह ने इसे यूँही बे-मक़्सद नहीं बनाया हर 'उज़्व (अंग) का अपना काम है सर से लेकर पांव तक जिस्म के जितने भी ज़ाहिरी (ऊपरी) और बातिनी (अंदरूनी) हिस्से हैं सब की अपनी अलग अहमियत (महत्व) है वो सब एक दूसरे के साथ मिलकर इंसान में मुख़्तलिफ़ (अलग-अलग) सलाहिय्यतों को पैदा करते हैं उनमें से कोई भी एक हिस्सा अगर बे-कार हो जाए और ढंग से अपना काम न करे तो इंसान बेबस (लाचार) और बेचैन (परेशान) हो जाता है 'इलाज व मु'आलजा (उपचार) में लग जाता है ताकि वो हिस्सा फिर से अपने काम पर लौट आए।

🔹 बल्कि (किंतु) दुनिया की कोई भी चीज़ बिला मक़्सद नहीं बनाई गई हर एक के पीछे कोई न कोई मक़्सद ज़रूर है अल्लाह ने ख़ुद ही कहा है कि (हम ने ज़मीन और आसमानों और उनके दरमियान की चीजों को खेल के तौर पर पैदा नहीं किया) (सूरा अद्-दुख़ान:38)
यही मज़मून सूरा साद आयत नंबर (27) और दूसरी सूरतों में भी बयान हुआ है सूरा साद में है कि
(और हम ने आसमान-ओ-ज़मीन और उनके दरमियान की चीजों को ना-हक़ पैदा नहीं किया यह गुमान तो काफ़िरों का है सू काफ़िरों के लिए ख़राबी है आग की)

🔹ज़मीन-ओ-आसमान जैसी 'अज़ीम (विशाल) और शाहकार मख़्लूक़ और उनके दरमियान की सारी चीज़ों को अल्लाह ने सबसे 'अज़ीम मख़्लूक़ इंसान के लिए बनाया
तो फिर बड़ा सवाल यह है कि इंसानों को क्यूं पैदा किया ?
क्या सिर्फ़ खाने,पीने और सोने के लिए ? क्या सिर्फ़ enjoy करने के लिए ? क्या सिर्फ़ जीने मरने के लिए ? ख़ुद इंसान का अपना कोई काम बग़ैर मक़्सद (इच्छा) और फ़ाइदे के नहीं होता तो जिस ने पूरे संसार और उसमें इंसान जैसी बड़ी मख़्लूक़ को पैदा किया यूंही (बेमतलब) तो नहीं किया होगा ?
बिला-मक़्सद (उद्देश्य) नौ-माह (नौ महीने) मां के पेट में रखकर ज़मीन पर ऐसे ही तो नहीं भेज दिया ?
इसी पर तो हमें ग़ौर करना है इसी सवाल का जवाब न ढूँडने के नतीजें में इंसानों की अकसरिय्यत अँधेरों में भटक रही है।

🔹क्या कभी तन्हाई (एकांत) में आप ने ग़ौर (विचार) किया है कि आप के जिस्म (शरीर) के यह सारे पुर्ज़े और हिस्से आख़िर किसने बनाए और क्यूं बनाए ? आप को इंसान ही क्यूं बनाया कोई और मख़्लूक़ भी बना सकता था ?
आप को इंसान होने के लिए ही क्यूं चुना ? और ज़िंदगी (जीवन) के सारे मराहिल बचपन से जवानी और जवानी से बूढ़ापा क्यूं 'अता किए ?
और उन मराहिल में आप की जो भी ज़रूरियात (ज़रूरते) हैं उन्हें आप के दस्तरस (इख़्तियार) में क्यूं दिया ?

🔹इन सारे सवालों का एक ही जवाब है कि आप की पैदाइश (जन्म) का एक ही मक़्सद (उद्देश्य) था जिसे आप ने अपने जैसे मरे और मिट्टी में मिले हुए इंसानों के पीछे भाग कर और उस की 'इबादत (उपासना) कर के अपने मक़्सद को भुला दिया जब सारे इंसानों को अल्लाह ने अपनी बंदगी के लिए पैदा किया तो यही इंसान इंसान की बंदगी करने पर क्यूं तुला हुआ है ?
क्या यह ज़ुल्म (अन्याय) नहीं कि पैदा किया आपको अल्लाह ने और 'इबादत (पूजा) कर रहे हैं अल्लाह के पैदा कर्दा इंसानों की और वो भी उस की जो मिट्टी में गल-सड़ गया है ?

🔹मेरे भाईयों! अल्लाह ने आप को सिर्फ़ अपनी 'इबादत के लिए ही पैदा किया है इस लिए जिस्म का एक एक हिस्सा सिर्फ़ उसी की बंदगी में लगाना चाहिए क्यूंकि अल्लाह ने आप को यूंही बे-कार पैदा नहीं किया अपनी मर्ज़ी की ज़िंदगी जीने के लिए इस दुनिया में आप को नहीं भेजा अल्लाह की 'इबादत ही पैदाइश (जन्म) का सबसे बड़ा मक़्सद है अगर आप ऐसा नहीं करते तो आप से ज़ियादा एहसान-फ़रामोश (नमक-हराम) इस पूरे संसार में कोई नहीं।

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