रोज़ा के 100 मसाइल

 बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम


रोज़ा के 100 मसाइल (सवाल नंबर:1,2)


लेखक: शैख़. अस'अद आज़मी 


हिंदी अनुवाद: अब्दुल मतीन सैयद

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*सहरी सुन्नत है वाजिब नहीं है*


सवाल:1 

एक शख़्स रमज़ान में सहरी के वक़्त से कुछ पहले सो गया और सहरी नहीं खा सका हालाँकि उस का सहरी खाने का इरादा था लेकिन फ़ज्र (सुब्ह) के बाद उस की नींद खुली क्या उस का रोज़ा दुरुस्त (सही) होगा ?


जवाब:1 

उस का रोज़ा दुरुस्त (सही) होगा क्यूँकि (इसलिए कि) रोज़े की दुरुस्तगी के लिए सहरी खाना शर्त नहीं है सहरी खाना महज़ (सिर्फ़) मुसतहब (पसंदीदा) है अल्लाह के रसूल ﷺ का फ़रमान है "सहरी खाओ क्यूँकि इस में बरकत है"

(मुत्तफ़क़-'अलैह) (शैख़ इब्न बाज़)


*सूरज ग़ुरूब हो जाने के बाद अज़ान से पहले इफ़्तार करना*


सवाल:2

एक सहीह हदीष में अल्लाह के रसूल ﷺ फरमाते हैं

"जब सूरज इधर (मग़रिब) से ग़ुरूब हो जाए और रात उधर मशरिक़ (पूरब) से ज़ाहिर हो जाए तो रोज़े-दार ने इफ़्तार कर लिया"

اوکماقال ﷺ

हम ने तहक़ीक़ के बाद पाया कि जब सूरज फ़िल-वाक़े' (सच में) ग़ुरूब हो जाता है इस के पांच सात मिनट के बाद हमारे यहां मुअज़्ज़िन अज़ान देता है यह मुअज़्ज़िन जंतरी में अजीरी (कुवैत) के लिए दिए गए वक़्त के मुताबिक़ (अनुसार) अज़ान देता है तो क्या ग़ुरूब-ए-आफ़्ताब की तहक़ीक़ हो जाने के बाद मुअज़्ज़िन के अज़ान देने से पहले इफ़्तार करना जाइज़ हैं ?


जवाब:2 

जब रोज़े-दार को ग़ुरूब-ए-आफ़्ताब और रात की आमद (आने) का हक़ीक़ी 'इल्म हो जाए तो उसके लिए इफ़्तार करना जाइज़ हैं अल्लाह रब्ब-उल-'इज़्ज़त का फ़रमान है:

(ثُمَّ أَتِمُّوا الصِّیَامَ إِلَی الَّلیْْل)

"फिर रोज़े को रात तक पूरा करो"

और अल्लाह के रसूल की हदीष है कि: जब रात इधर से ज़ाहिर हो जाए और दिन उधर से रवाना हो जाए और सूरज ग़ुरूब हो जाए तो रोज़े-दार ने इफ़्तार कर लिया 

(मुत्तफ़क़-'अलैह)

इस से मा'लूम हुआ कि इन जंतरीओ का ए'तिबार (भरोसा) नहीं किया जाएगा जो इस हक़ीक़त के मुताबिक़ (अनुसार) न हो नीज़ (और) यह कि सहीह तौर पर ग़ुरूब-ए-आफ़ताब का 'इल्म हो जाने के बाद इफ़्तार करने के लिए अज़ान सुनने की शर्त नहीं है

(सऊदी फ़तवा कमेटी)

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(सवाल नंबर:3)

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*तुलू'-ए-फ़ज्र का यक़ीनी 'इल्म न होने की सूरत (स्थिति) में अज़ान के दौरान (बीच में) खाना-पीना*


सवाल:3 

मुअज़्ज़िन के अज़ान देने की हालत में या अज़ान के कुछ देर बाद तक खाते पीते रहने का क्या हुक्म है ख़ास तौर से ऐसी सूरत (स्थिति) में जब कि तुलू'-ए-फ़ज्र का यक़ीनी तौर पर 'इल्म न हो ?


जवाब:3 

रोज़ा रखने वाले को जो चीज़ खाने पीने से रोकने वाली है वो तुलू'-ए-फ़ज्र है क्यूँकि अल्लाह-त'आला का इरशाद हैं:

(فَالآنَ بَاشِرُوہُنَّ وَابْتَغُوا مَا کَتَبَ اللّہُ لَکُمْ وَکُلُواوَاشْرَبُوا حَتَّی یَتَبَیَّنَ لَکُمُ الْخَیْْطُ الأَبْیَضُ مِنَ الْخَیْْطِ الأَسْوَدِ مِنَ الْفَجْر)

" अब तुम्हें उन औरतों से मुबाशरत की और अल्लाह-त'आला की लिखी हुई चीज़ को तलाश करने की इजाज़त है और तुम खाते पीते रहो यहां तक कि (सुब्ह) का सफ़ेद धागा 

(रात के) सियाह धागे से ज़ाहिर हो जाए "

और नबी-ए-करीम ﷺ का इरशाद हैं:

" जब तक इब्ने उम्मे मकतूम अज़ान न दे खाते पीते रहो क्यूँकि फ़ज्र तुलू' हुए बग़ैर वो अज़ान नहीं देते "

लिहाज़ा (इसलिए) अस्ल ए'तिबार (भरोसा) तुलू'-ए-फ़ज्र ही का होगा पस अगर अज़ान देने वाला क़ाबिल-ए-ए'तिमाद (भरोसेमंद) है और यह कहता है कि वो उस वक़्त तक अज़ान नहीं देता जब-तब कि फ़ज्र तुलू' न हो जाए तो ऐसी सूरत में वो जैसे ही अज़ान शुरू' करे अज़ान सुनते ही खाने पीने से रुक जाना ज़रूरी है

और अगर मुअज़्ज़िन इज्तिहाद कर के और तुलू'-ए-फ़ज्र का अंदाज़ा लगा कर अज़ान देता है तो ऐसी सूरत में भी एहतियात का तक़ाज़ा यही है कि इस की अज़ान सुनते ही खाना-पीना तर्क कर दिया जाए अगर कोई शख़्स खुल्ले मैदान में हो और (आसमान पर) फ़ज्र का मुशाहदा कर रहा हो तो अज़ान सुनने के बावुजूद इस को खाना पीना तर्क करना ज़रूरी नहीं है जब तक वो ख़ुद फ़ज्र तुलू' होते न देखले ब-शर्त-ए-कि रूयत (देखने) से कोई चीज़ माने' (रुकावट) न हो क्यूँकि अल्लाह-त'आला ने सियाह-धागे (रात की तारीकी) से फ़ज्र के सफ़ेद धागे (सुब्ह की सफ़ेदी) के नुमायाँ होने पर हुक्म को मु'अल्लक़ फ़रमाया है और नबी ﷺ ने इब्ने उम्मे मकतूम की अज़ान के बारे में फ़रमाया कि " वो उस वक़्त तक अज़ान नहीं देते जब तक फ़ज्र तुलू' न हो जाए " यहां मुअज़्ज़िन के त'अल्लुक़ (सम्बन्ध) से एक मसअला की तरफ़ में तवज्जोह मबज़ूल कराना चाहता हूं वो यह है कि बा'ज़ (कुछ) मुअज़्ज़िन तुलू'-ए-फ़ज्र से चार पांच मिनट पहले अज़ान दे देते हैं और वो समझते हैं कि रोज़े के लिए बतौर एहतियात वो ऐसा करते हैं यह ऐसा एहतियात है जिस को हम ग़ुलू से ता'बीर कर सकते हैं यह शर'ई एहतियात नहीं है नबी-ए-करीम ﷺ का फ़रमान है कि

”ھَلَکَ الْمُتَنَطِّعُوْنَ“

" दीन में ग़ुलू करने वाले बर्बाद हो गए " 

यह एहतियात दुरुस्त नहीं है इस लिए कि यह लोग अगर रोज़े के वास्ते (कारण) एहतियात कर रहे हैं तो नमाज़ को ख़राब कर रहे हैं क्यूंकि बहुत से लोग अज़ान सुनने के बाद फ़ौरन (तुरंत) उठ कर फ़ज्र की नमाज़ पढ़ लेते हैं ऐसी हालत में यह आदमी जिसने वक़्त से पहले अज़ान देने वाले मुअज़्ज़िन की अज़ान सुन कर फ़ज्र की नमाज़ पढ़ ली इस ने नमाज़ को उनके वक़्त से पहले पढ़ लिया और वक़्त से पहले पढ़ी जाने वाली नमाज़ दुरुस्त नहीं होती ऐसे मुअज़्ज़िन नमाज़ पढ़ने वालों को भी ज़रर (नुक़्सान) पहुँचाते है और रोज़ा रखने वाले को भी क्यूंकि रोज़ा रखने वाले के लिए अभी ब-हुक्म इलाही खाना पीना मुबाह (जाइज़) था लेकिन इस मुअज़्ज़िन ने अज़ान कह कर उन को इससे रोक दिया इस मुअज़्ज़िन ने एक तरफ़ तो रोज़ा रखने वालों पर ज़ुल्म किया कि अल्लाह की हलाल कर्दा चीज़ से उन को रोक दिया तो दूसरी तरफ़ नमाज़ पढ़ने वालों के साथ भी ज़्यादती की क्यूंकि इन्होंने वक़्त होने से पहले नमाज़ पढ़ ली और यह 'अमल उन की नमाज़ को बातिल कर देने वाला है लिहाज़ा (इसलिए) मुअज़्ज़िन को अल्लाह से डरना चाहिए और यह कि दुरुस्त बात तक पहुंचने के लिए जो इज्तिहाद करे इस में किताब-ओ-सुन्नत के बताए हुए तरीक़ो का ख़याल रखें

(शैख़ इब्न उसैमीन)


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*रोज़ा तोड़ने वाली चीज़े*


सवाल:4 

किन किन चीज़ों से रोज़ा टुटता है ?


जवाब:4 

क़ुरआन में रोज़ा तोड़ने वाली तीन चीज़ों का बयान हैं:

खाना-पीना और जिमा' (मुबाशरत) इस की दलील अल्लाह रब्बुल-'इज़्ज़त का यह क़ौल है:

( فَالآنَ بَاشِرُوہُنَّ وَابْتَغُوا مَا کَتَبَ اللّہُ لَکُمْ وَکُلُوا وَاشْرَبُوا حَتَّی یَتَبَیَّنَ لَکُمُ الْخَیْْطُ الأَبْیَضُ مِنَ الْخَیْْطِ الأَسْوَدِ مِنَ الْفَجْرِ ثُمَّ أَتِمُّوا الصِّیَامَ إِلَی الَّلیْْلِ)

" अब तुम्हें उन (औरतों) से मुबाशरत की और अल्लाह-त'आला की लिखी हुई चीज़ों को तलाश करने की इजाज़त है तुम खाते-पीते रहो यहां तक कि सुब्ह का सफ़ेद धागा सियाह धागे से ज़ाहिर हो जाए फिर रात तक रोज़े को पूरा करो "

जहा तक खाने-पीने का मु'आमला है तो वो चाहे हलाल हो या हराम मुफ़ीद (उपयोगी) हो या मुज़िर (हानिकारक) या ग़ैर-मुफ़ीद और ग़ैर मुज़िर थोड़ा हो या ज़ियादा (सब से रोज़ा टुट जाएगा) लिहाज़ा (इसलिए) सिगरेट पीने से भी रोज़ा टुट जाएगा अगरचे (हालांकि) वो जरर-रसाँ (हानि पहुँचाने वाला) और हराम है यहां तक कि अहल-ए-'इल्म कहते हैं कि अगर किसी ने काँच का दाना निगल लिया तो उस का रोज़ा टुट जाएगा हालांकि इस टुकड़े से जिस्म को कोई फ़ाइदा नहीं पहुंचेगा इस के बावुजूद (तब भी) इसे रोज़ा तोड़ने वाली चीज़ों में शुमार किया गया ऐसे ही अगर किसी ने नापाक चीज़ से गूँधा हुआ आटा खा लिया उस का रोज़ा टुट जाएगा बावजूद-ए-कि (अगरचे) वो नुक़सान-देह है।

 

तीसरी चीज़: 

हमबिस्तरी है रोज़ा तोड़ने वाली चीज़ों में यह सबसे भारी चीज़ है क्यूंकि इस में (क़ज़ा के साथ) कफ़्फ़ारा भी वाजिब (ज़रूरी) है और कफ़्फ़ारा यह है कि एक गर्दन (ग़ुलाम या लौंडी) आज़ाद करे अगर यह न मिले तो मुसलसल (लगातार) दो माह (महीने) रोज़ा रखे अगर इस की इस्तिता'अत (ताक़त) न हो तो साठ (60) मिस्कीनों को खाना खिलाएं।

चौथी चीज़: 

लुत्फ़-अंदोज़ी (मज़ा लेने) के तौर पर मनी' ख़ारिज करना

अगर कोई शख़्स मज़ा लेने के लिए मनी' ख़ारिज करता है तो इस का रोज़ा बातिल हो जाएगा अलबत्ता इस में कफ़्फ़ारा नहीं है (सिर्फ़ क़ज़ा है) कफ़्फ़ारा सिर्फ़ हमबिस्तरी में है।

पांचवीं चीज़: 

वो इंजेक्शन जिन को लगवा लेने के बाद खाने पीने से आदमी बे-नियाज़ हो जाए वो ग़िज़ा-बख़्श इंजेक्शन होते हैं अलबत्ता वो इंजेक्शन जो ग़िज़ा (खाने) का काम नहीं करते उन से रोज़ा बातिल नहीं होगा चाहे कोई रगों में लगवाएं या पट्ठों में क्यूंकि ऐसे इंजेक्शन न तो दर-हक़ीक़त (हक़ीक़त में) खाना पीना है और न ही खाने पीने के मा'नी-ओ-मफ़हूम में है।

छटवीं चीज़: 

क़स्दन (जान बूझ कर) क़य (उल्टी) करना अगर कोई शख़्स जान बूझ कर अज़-ख़ुद (ख़ुद-ब-ख़ुद) क़य करेगा तो उस का रोज़ा टुट जाएगा और अगर ख़ुद-ब-ख़ुद इस को क़य (उल्टी) आ जाए तो इस के ज़िम्मा कुछ नहीं है।

सातवीं चीज़: 

हैज़ या निफ़ास का ख़ून जारी होना अगर ग़ुरूब-ए-आफ़ताब से एक लम्हा (मिनट) भी पहले औरत को हैज़ या निफ़ास का ख़ून शुरू' हो जाए तो इस का रोज़ा बातिल हो जाएगा और अगर ग़ुरूब-ए-आफ़ताब के एक लम्हा बाद हैज़ या निफ़ास का ख़ून शुरू' हो तो रोज़ा दुरुस्त होगा।

आठवीं चीज़: 

फ़स्द के ज़री'आ ख़ून निकलवाना क्यूंकि नबी-ए-करीम ﷺ का क़ौल है:

"اَفْطَرَ الْحَاجِمُ وَالْمَحْجُوْمُ“ 

" फ़स्द खोलने वाले और खुलवाने वाले दोनों का रोज़ा टुट जाता है "

पस (इसलिए) अगर किसी ने फ़स्द खुलवाई और उस से ख़ून निकला तो उस का रोज़ा टुट जाएगा उस शख़्स का भी रोज़ा टुट जाएगा जिसने फ़स्द खोली ब-शर्त-ए-कि इसी तरीक़ा पर

यह काम हो जिस तरीक़ा पर नबी-ए-करीम ﷺ के ज़माने में होता था और वो तरीक़ा यह था कि फ़स्द खोलने वाला मुंह से ख़ून का क़ारूरा खींचता था अब अगर ऐसे आलात (हथियार) से फ़स्द खोली जाए जो फ़स्द खोलने वाले (के जिस्म) से लगे नहीं रहते तो ऐसी सूरत में जिस की फ़स्द खोली जाए उस का रोज़ा टुट जाएगा और खोलने वाले का रोज़ा नहीं टुटेगा 

रमज़ान के दिन में किसी ऐसे रोज़े-दार की तरफ़ से जिस पर रोज़ा फ़र्ज़ था अगर मज़्कूरा-बाला रोज़ा तोड़ने वाले का मुंह में से किसी का इर्तिकाब हुआ तो उस पर चार हुक्म मुरत्तब होंगे :

1) गुनाह-गार होना

2) रोज़ा बातिल होना

3) दिन के बाक़ी-माँदा हिस्से में खाने पीने वग़ैरा से परहेज़ करना

4) इस रोज़े की क़ज़ा करना 

और अगर हमबिस्तरी की वजह से रोज़ा ख़राब हुआ है तो पांचवां हुक्म कफ़्फ़ारा का भी मुरत्तब होगा 

लेकिन यह जानना ज़रूरी हैं कि रोज़ा तोड़ने वाली उन चीज़ों से उसी वक़्त रोज़ा टुटेगा जब कि तीन शर्तें पाई जाए

1) रोज़े-दार को 'इल्म हो

2) याद रखते हुए ऐसा करे

3) अपने इरादे और इख़्तियार से करे

'इल्म होने का मतलब यह है कि अगर किसी रोज़े दार को रोज़ा तोड़ने वाली इन चीज़ों का या उन में से किसी एक का 'इल्म नहीं था (कि इस से रोज़ा टुट जाता है)

और उसने इस का इर्तिकाब कर लिया तो उस का रोज़ा (नहीं टुटेगा बल्कि) सहीह होगा चाहे इस की ला-'इल्मी (भूल) वक़्त से मुत'अल्लिक़ (बारे में) हो या हुक्म से वक़्त के बारे में 'इल्म न होने की मिसाल यह है कि कोई शख़्स रात के आख़िरीं हिस्से में उठे और यह समझ कर खाए पिए कि अभी तुलू'-ए-फ़ज्र का वक़्त नहीं हुआ है फिर पता चले कि फ़ज्र (सुब्ह) तो तुलू' हो चुकी है 

ऐसे शख़्स का रोज़ा दुरुस्त होगा क्यूँकि वक़्त के बारे में इसे 'इल्म नहीं था हुक्म के बारे में 'इल्म न होने की मिसाल यह है कि किसी रोज़े-दार को यह मालूम नहीं था कि फ़स्द खुलवाने से रोज़ा टुट जाता है और उस ने फ़स्द खुलवा ली पस इस से कहा जाएगा कि तुम्हारा रोज़ा दुरुस्त होगा इस की दलील अल्लाह-त'आला का यह क़ौल है कि:

 (رَبَّنَا لاَ تُؤَاخِذْنَا إِن نَّسِیْنَا أَوْ أَخْطَأْنَا)

" ऐ हमारे परवरदिगार अगर हम से भूल हो जाए या गलती हो जाए तो हमारी गिरिफ़्त न कर " यह क़ुरआन से दलील हुई सुन्नत से दलील हज़रत असमा बिंत अबू बक्र की वो हदीष है जिसे इमाम बुखारी ने अपनी सहीह बुखारी के अंदर ज़िक्र किया है इस हदीष में हज़रत असमा कहती हैं कि " नबी करीम ﷺ के ज़माने में एक मर्तबा बदली के दिन में (ग़ुरूब ए आफ़ताब का वक़्त समझकर) हम ने रोज़ा इफ़्तार कर लिया फिर सूरज दिखाई पड़ा " 

इस से मा'लूम हुआ कि इन्होंने दिन ही में (ग़ुरूब-ए-आफ़ताब से पहले)

रोज़ा इफ़्तार कर लिया था लेकिन उन को सहीह 'इल्म नहीं था बल्कि (किंतु) महज़ (सिर्फ) यह गुमान (अनुमान) कर के कि सूरज ग़ुरूब हो गया है (रोज़ा इफ़्तार किया था)

इस पर नबी ﷺ ने उन को इस रोज़े की क़ज़ा का हुक्म नहीं दिया अगर क़ज़ा वाजिब होती तो आप ज़रूर हुक्म देते और अगर आप उन को क़ज़ा का हुक्म देते तो (हदीषो में) इसे ज़रूर नक़्ल किया जाता

(लेकिन ऐसा न होने से मा'लूम हुआ कि उन का रोज़ा दुरुस्त था और इस की क़ज़ा की ज़रूरत नहीं)

अलबत्ता (लेकिन) अगर किसी ने यह समझ कर इफ़्तार किया कि सूरज ग़ुरूब हो गया है फिर पता चला कि ग़ुरूब नहीं हुआ है इसे फ़ौरन (तुरंत) खाना पीना तर्क कर देना ज़रूरी है इस का रोज़ा दुरुस्त होगा

दुसरी शर्त यह है कि याद रखते हुए

(रोज़ा तोड़ने वाले कामों का इर्तिकाब) करे इस के बर-'अक्स (विरुद्ध) यह है कि भूल कर करे पस (इसलिए) अगर किसी रोज़े-दार ने भूल कर खा पी लिया तो उस का रोज़ा सहीह होगा क्यूंकि अल्लाह-त'आला का इरशाद हैं:

(رَبَّنَا لاَ تُؤَاخِذْنَا إِن نَّسِیْنَا أَوْ أَخْطَأْنَا)

" ऐ हमारे रब अगर हम से भूल हो जाए या गलती हो जाए तो तू हमारी गिरिफ़्त न कर "

और हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु की रिवायत कर्दा एक हदीष में नबी ﷺ का इरशाद हैं:

" जिस रोज़े-दार ने भूल कर खा पी लिया वो अपना रोज़ा पूरा करे क्यूंकि अल्लाह-त'आला ने इसे खिलाया पिलाया है "

तीसरी शर्त इरादा और इख़्तियार है अगर किसी रोज़े-दार ने रोज़ा तोड़ने वाले उन कामों में से किसी का इर्तिकाब किया लेकिन इस में उस के इरादे और इख़्तियार का कोई दख़्ल नहीं था तो उस का रोज़ा दुरुस्त होगा लिहाज़ा (इसलिए) अगर किसी ने कुल्ली किया और पानी उस के इरादे के बग़ैर उस के पेट में उतर गया तो उस का रोज़ा सहीह होगा

ऐसे ही अगर किसी ने अपनी बीवी को हमबिस्तरी पर मजबूर किया और उस को रोकने पर उस (औरत) का बस न चला तो (उस औरत) का रोज़ा सहीह होगा क्यूंकि उसने अपने इरादे व इख़्तियार से यह काम नहीं किया इस की दलील यह है कि अगर किसी शख़्स को कलमा-ए-कुफ़्र कहने पर मजबूर किया गया हो तो उस के बारे में अल्लाह-त'आला का फ़रमान है:

(مَن کَفَرَ بِاللّہِ مِن بَعْدِ إیْمَانِہِ إِلاَّ مَنْ أُکْرِہَ وَقَلْبُہُ مُطْمَءِنٌّ بِالإِیْمَان)

" जो शख़्स ईमान लाने के बाद कुफ़्र करे (वो अगर) मजबूर किया गया हो और दिल उस का ईमान पर मुतमइन हो (तो वो काफ़िर नहीं होगा) "

पस (इसलिए) अगर किसी रोज़े-दार को रोज़ा तोड़ने पर मजबूर कर दिया जाए या बिला-इरादा (अनजाने में) उस ने रोज़ा तोड़ने वाले किसी काम का इर्तिकाब किया तो उस के ज़िम्मा कोई चीज़ नहीं और उस का रोज़ा सहीह होगा।

(शैख़ इब्न उसैमीन)


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(सवाल नंबर:5-6)

*रेडियो की ख़बर और मस्जिद की अज़ान में फ़र्क़*


सवाल:5 

एक दिन रमज़ान में रेडियो से यह ख़बर दी गई कि मग़रिब की अज़ान दो मिनट के बाद होने वाली है ठीक उसी वक़्त मुहल्ले के मुअज़्ज़िन की अज़ान की आवाज़ सुनाई दी उन दोनों में से किस का ए'तिबार (भरोसा) करना बेहतर है ?


जवाब:5 

अगर मुअज़्ज़िन क़ाबिल-ए-ए'तिमाद (भरोसेमंद) आदमी है और सूरज देख कर अज़ान कहता है तो हम मुअज़्ज़िन ही की इत्तिबा' (पैरवी) करेंगे क्यूंकि वो एक महसूस (ज़ाहिर) चीज़ को देख कर अज़ान देता है और वो है ग़ुरूब-ए-आफ़ताब का मुशाहदा (देखना) अलबत्ता (लेकिन) अगर वो घड़ी देख कर अज़ान देता है और सूरज देख कर नहीं देता तो गुमान-ए-ग़ालिब यह है कि रेडियो का ए'लान ही ज़ियादा दुरुस्त होगा क्यूँकि घड़ियों में वक़्त मुख़्तलिफ़ (अलग-अलग) रहता है और ऐसी हालत में रेडियो पर ए'तिबार (भरोसा) बेहतर और महफ़ूज़ चीज़ है (शैख़ इब्न उसैमीन)


*मग़रिब की सम्त (तरफ़) परवाज़ (उड़ान) करने वाले जहाज़ (फ़्लाइट) में इफ़्तार कब किया जाए ?*


सवाल:6 

हम लोग रमज़ान के महीने में मग़रिब की अज़ान से तक़रीबन (लगभग) एक घंटा क़ब्ल (पहले) रियाज से हवाई-जहाज़ के ज़री'आ (द्वारा) रवाना हुए मग़रिब की अज़ान होने वाली थी और हम सऊदीया की फ़ज़ाओ में थे क्या हम रोज़ा इफ़्तार कर ले जब कि हम सूरज को देख रहे थे जो ख़ासा बलंद (ऊंचा) था और हम फ़ज़ा में थे या हम रोज़ा रखे रहे और अपने मुल्क जा कर रोज़ा इफ़्तार करे या हम सऊदीया की अज़ान के वक़्त के मुताबिक़ रोज़ा इफ़्तार कर ले ?


जवाब:6 

जब जहाज़ (फ़्लाइट) रियाज से उड़ा और वो ग़ुरूब-ए-आफ़ताब से पहले मग़रिब ही की तरफ़ रवाना हुआ तो जब तक सूरज ग़ुरूब न हो आप रोज़ा रखे रहेंगे आप ख़्वाह (चाहे) फ़ज़ा में हो या अपने मुल्क में उतरे सूरज ग़ुरूब होने पर ही आप इफ़्तार करे क्यूंकि नबी-ए-अकरम ﷺ ने फ़रमाया: " जब रात इधर से बढ़ आए इधर से दिन पीछे हट जाए तो उस वक़्त रोज़े-दार ने इफ़्तार कर लिया " (मुत्तफ़क़-'अलैह)

(शैख़ इब्न बाज़)


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(सवाल नंबर:7-10)


*ब-हालत-ए-रोज़ा क़य (उल्टी) आ जाना*


सवाल:7 

क्या क़य (उल्टी) से रोज़ा टुट जाता है ?


जवाब:7 

रोज़े-दार को बहुत से ऐसे उमूर (मसलें) पेश (सामने) आते हैं जिन में उस का अपना कोई दख़्ल (हस्तक्षेप) नहीं होता जैसे ज़ख़्म लग जाना, नकसीर फूटना, क़य (उल्टी) हो जाना, या बग़ैर इख़्तियार के पानी या पेट्रोल हल्क़ में चला जाना, इन में से कोई भी चीज़ रोज़ा तोड़ने वाली नहीं है क्यूंकि नबी ﷺ ने फ़रमाया है: 

" जिस को ख़ुद-ब-ख़ुद क़य (उल्टी) आ जाए उस पर क़ज़ा नहीं है और जिस ने 'अमदन (जान बूझकर) क़य (उल्टी) किया इस पर क़ज़ा है "

(शैख़ इब्न बाज़)


*लु'आब (थूक) निगलना*


सवाल:8 

रोज़े की हालत में लु'आब (थूक) निगलने का क्या हुक्म है ?


जवाब:8 

लु'आब (थूक) से रोज़े पर कोई असर नहीं पड़ता क्यूंकि वो भी एक तरह का थूक ही है पस (इसलिए) अगर कोई उस को निगल जाए तो भी हरज नहीं और अगर थूक दे तो भी हरज नहीं लेकिन नाक या सीने से ख़ारिज (बाहर) होने वाले ग़लीज़ बलग़म को थूकना ज़रूरी है इसे निगलना नहीं चाहिए रहा थूक की नौ'इय्यत (प्रकार) का 'आम लु'आब (थूक) तो इस में कोई हरज नहीं हैं और रोज़े-दार के लिए मुज़िर (हानिकारक) नहीं हैं चाहे वो मर्द हो या औरत

(शैख़ इब्न बाज़)


*बिला-इरादा (अनजाने में) हल्क़ (गले) में पानी उतर जाना*


सवाल:9 

कुल्ली करते या नाक में पानी डालते वक़्त अगर बिला-इरादा (अनजाने में) रोज़े-दार की हल्क़ में पानी उतर जाए तो क्या उस से रोज़ा फ़ासिद हो जाएगा ?


जवाब:9 

अगर रोज़े-दार ने कुल्ली की या नाक में पानी डाला और वो पानी उसके पेट में चला गया तो उस का रोज़ा नहीं टुटेगा क्यूंकि उसने क़स्दन (जान बूझ कर) ऐसा नहीं किया है अल्लाह-त'आला का फ़रमान है:

 (وَلَکِن مَّا تَعَمَّدَتْ قُلُوبُکُم)

" या'नी (गुनाह) वो है जिस का दिल से तुम इरादा करो "

(शैख़ इब्न उसैमीन)


*ग़र्ग़रा (मुंह में पानी लेकर फिराना)

करना*


सवाल:10 

क्या किसी दवा से ग़र्ग़रा करने से रोज़ा टुट जाएगा ?


जवाब:10 

अगर वो दवा हल्क़ (गले) से नीचे न उतरे तो रोज़ा बातिल नहीं होगा लेकिन सख़्त ज़रूरत के बग़ैर ऐसा न करो अलबत्ता (लेकिन) अगर (ब-वक़्त-ए-ज़रुरत ग़र्ग़रा किया और) तुम्हारे पेट में दवा दाख़िल नहीं हुई तो रोज़ा नहीं टुटेगा (शैख़ इब्न उसैमीन)


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(सवाल नंबर:11-12)

आंख और कान में दवा डालना*


सवाल:11 

क्या रोज़ा की हालत में आंख में दवा टपकाने से रोज़ा टुट जाएगा ?


जवाब:11 

सहीह यह है कि आंख में दवा टपकाने से रोज़ा नहीं टुटता अगरचे कि अहल-ए-'इल्म के दरमियान (बीच में) इस सिलसिले में इख़्तिलाफ़ (मतभेद) है बा'ज़ (कुछ)

लोगों का यह कहना है कि अगर दवा का असर हल्क़ (गले) में महसूस हो तो उस से रोज़ा टुट जाएगा लेकिन सहीह यही है कि चाहे असर महसूस हो या न हो रोज़ा नहीं टुटेगा क्यूंकि आंख नुफ़ूज़ (अंदर घुसने) की जगह नहीं है लेकिन जिस शख़्स ने हल्क़ में दवा का असर महसूस किया उसने बतौर एहतियात और इख़्तिलाफ़ से बचने के लिए इस रोज़ा की क़ज़ा कर ली तो कोई हरज की बात नहीं है वर्ना (नहीं तो) सहीह यही है कि इस से रोज़ा नहीं टुटता चाहे आंख में दवा डाली जाए या कान में

(शैख़ इब्न बाज़)


*टूथ-पेस्ट और ब्रश का इस्ते'माल*


सवाल:12 

क्या रोज़े की हालत में दांत साफ़ करने के लिए टूथ-पेस्ट का इस्ते'माल जाइज़ हैं ? 

और अगर ब्रश के इस्ते'माल से मसूढ़ो से मा'मूली सा ख़ून निकल आए तो क्या रोज़ा टुट जाएगा ?


जवाब:12

रोज़े की हालत में पानी से, मिस्वाक से या टूथ-ब्रश से दांत साफ करने में कोई हरज नहीं हैं बा'ज़ (कुछ) लोगों ने ज़वाल-ए-आफ़ताब के बाद रोज़ा-दार के लिए मिस्वाक के इस्ते'माल को मकरूह कहा है क्यूंकि इस से उसके मुंह की बू ख़त्म हो जाती है लेकिन सहीह यही है कि पूरे दिन मिस्वाक करना मुसतहब है मिस्वाक के इस्ते'माल से मुंह की बू ख़त्म नहीं होती बल्कि दांत और मुंह की सफाई होती है और महक (सुगंध) तबख़ीर और खाने के फ़ुज़लात वग़ैरा साफ़ हो जाते हैं अलबत्ता (लेकिन) टूथ-पेस्ट के इस्ते'माल का मकरूह होना ज़ाहिर है क्यूंकि इस में बू होती है और इस का एक मज़ा होता है जो बसा-औक़ात (कभी-कभी) थूक से मिलकर अंदर चला जाता है पस (इसलिए) अगर किसी को ज़रूरत रहे तो सहरी के बाद और फ़ज्र से पहले इसे इस्ते'माल कर लेना चाहिए और अगर कोई शख़्स दिन में इसे इस्ते'माल करता है और इस बात का पूरा ख़याल रखता है कि इस का कोई जुज़ (भाग) अंदर न जाए तो ज़रूरत के पेश-ए-नज़र इस में कोई हरज (नुक़सान) नहीं है ब्रश या मिस्वाक करते वक़्त दांतों से मा'मूली सा ख़ून आ जाने से रोज़ा नहीं टुटता

(शैख़ इब्न जिब्रिन)


🔹..........................

🔹रोज़ा के 100 मसाइल🔹 

(सवाल नंबर:13-15)


लेखक: शैख़ अस'अद आज़मी 


हिंदी अनुवाद: अब्दुल मतीन सैयद

==================


*भूल कर खा पी लेना और देखने वाले का उस को याद दिलाना*


सवाल:13

अगर कोई शख़्स रोज़ा की हालत में भूल कर (ग़लती से) खा पी ले तो इस का क्या हुक्म है ?

और जो शख़्स उस को खाते पीते देखें तो क्या उस को याद दिलाना ज़रूरी है ?


जवाब:13 

ब-हालत-ए-रोज़ा जो शख़्स भूल कर खा पी ले तो उस का रोज़ा दुरुस्त होगा लेकिन जैसे ही उस को याद आए फ़ौरन (तुरंत) रुक जाना ज़रूरी है हत्ता कि अगर लुक़्मा (निवाला) या पानी का घूँट मुंह में होतो उसे थूक देना ज़रूरी है रोज़ा दुरुस्त होने की दलील वो हदीष है जिस में अल्लाह के रसूल ﷺ फरमाते हैं कि " जिस से रोज़ा की हालत में भूल हो गई और उसने कुछ खा पी लिया तो वो अपना रोज़ा पूरा करे क्यूंकि अल्लाह-त'आला ने उसे खिलाया पिलाया है " दुसरी बात यह कि ना-दानिस्ता (ग़लती से) कोई मम्नू' काम करने पर इंसान की गिरिफ़्त नहीं की जाती क्यूंकि कुरआन में है कि:

(رَبَّنَا لاَ تُؤَاخِذْنَا إِن نَّسِیْنَا أَوْ أَخْطَأْنَا)

" या'नी ऐ हमारे रब हम से भूल-चूक हो जाए या ग़लती हो जाए तो हमारी गिरिफ़्त न कर " ”قَدْ فَعَلْتُ“

"या'नी मैंने बंदे की यह दु'आ क़ुबूल कर ली" जो शख़्स ऐसे रोज़े-दार को खाते पीते देखें तो उस पर ज़रूरी है कि उसे याद दिलाए क्यूंकि यह मुनकर काम को बदलने व रोकने से मुत'अल्लिक़ (बारे में) है और नबी-ए-करीम ﷺ ने फ़रमाया है कि " तुम में से जो शख़्स कोई ग़लत काम होता देखें तो इस को अपने हाथ से बदल दे अगर हाथ से नहीं बदल सकता तो ज़बान से और अगर इस की भी ताक़त नहीं तो दिल से "

और इस में कोई शक नहीं कि रोज़ा की हालत में रोज़े-दार का खाना पीना एक मुनकर काम है अलबत्ता (लेकिन) भूल चूक की हालत में यह मु'आफ़ है क्यूंकि इस पर मुवाख़ज़ा (पकड़) नहीं होगा लेकिन जिस शख़्स ने इस को ऐसा करते देखा और उस को मना' नहीं किया वो मा'ज़ूर नहीं समझा जाएगा

(शैख़ इब्न उसैमीन)


*अजनबी औरत से बात-चीत करना और उस का हाथ छूना*


सवाल:14 

रोज़ा की हालत में किसी अजनबी औरत से बात करने या उस का हाथ छू जाने का क्या हुक्म है ? क्यूंकि बा'ज दुकानों और तिजारती मक़ामात पर ऐसा होता है


जवाब:14 

अगर औरत से बात करने में मर्द की बद-निय्यती नहीं है और न ही उस से लुत्फ़-अंदोज़ी (मज़ा लेना) मक़्सूद है इस तौर पर कि तिजारती नौ'इय्यत (प्रकार) की बात हो या रास्ता वग़ैरा पूछने के लिए हो ऐसे ही बिला-इरादा (अनजाने में) हाथ छू जाए तो यह सब काम रमज़ान और ग़ैर रमज़ान दोनों में जाइज़ हैं हां अगर औरत से बात करने का मक़्सद लुत्फ़-अंदोज़

होना हो तो यह सिरे-से (बिल्कुल)

जाइज़ नहीं है न रमज़ान में न ग़ैर रमज़ान में अलबत्ता (लेकिन) रमज़ान में इस की मुमान'अत (मनाही) और सख़्त हो जाती है

(सऊदी फ़तवा कमेटी)


*इंजेक्शन लगवाना*


सवाल:15 

क्या रमज़ान में दिन के वक़्त इंजेक्शन लगवाने से रोज़ा पर कोई असर पड़ेगा ?


जवाब:15 

इंजेक्शन दो तरह का होता है एक वो जिस से ग़िज़ा (खाना) और ताक़त मक़्सूद (मंशा) होती है और इस के ज़री'आ खाने पीने से आदमी बे-नियाज़ हो सकता है ऐसे इंजेक्शन से रोज़ा टुट जाएगा क्यूंकि नुसूस-ए-शर'इय्या जिस मा'नी-ओ-मफ़हूम पर मुश्तमिल होती है वो मा'नी-ओ-मफ़हूम 

जहां कहीं पाया जाएगा वहां वो हुक्म लगाया जाएगा

दूसरा वो इंजेक्शन है जिस से ग़िज़ा (खाना) ताक़त नहीं हासिल होती या'नी इस के ज़री'आ खाने पीने से बे-नियाज़ नहीं हो सकते तो इस से रोज़ा नहीं टुटेगा क्यूंकि शर'ई दलील न लफ़्ज़ी (शाब्दिक) ए'तिबार से इस को शामिल है न मा'नी (मतलब) के ए'तिबार से ऐसा इंजेक्शन न तो खाना पीना है और न ही खाने पीने के मा'नी में है और जब तक शर'ई दलील से रोज़ा के फ़ासिद होने का सुबूत न मिल जाए रोज़ा का बाकी और दुरुस्त होना ही अस्ल है 

(शैख़ इब्न उसैमीन)


🔹..........................🔹

🔹रोज़ा के 100 मसाइल🔹 

(सवाल नंबर:13-15)


लेखक: शैख़ अस'अद आज़मी 


हिंदी अनुवाद: अब्दुल मतीन सैयद

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*भूल कर खा पी लेना और देखने वाले का उस को याद दिलाना*


सवाल:13

अगर कोई शख़्स रोज़ा की हालत में भूल कर (ग़लती से) खा पी ले तो इस का क्या हुक्म है ?

और जो शख़्स उस को खाते पीते देखें तो क्या उस को याद दिलाना ज़रूरी है ?


जवाब:13 

ब-हालत-ए-रोज़ा जो शख़्स भूल कर खा पी ले तो उस का रोज़ा दुरुस्त होगा लेकिन जैसे ही उस को याद आए फ़ौरन (तुरंत) रुक जाना ज़रूरी है हत्ता कि अगर लुक़्मा (निवाला) या पानी का घूँट मुंह में होतो उसे थूक देना ज़रूरी है रोज़ा दुरुस्त होने की दलील वो हदीष है जिस में अल्लाह के रसूल  ﷺ फरमाते हैं कि " जिस से रोज़ा की हालत में भूल हो गई और उसने कुछ खा पी लिया तो वो अपना रोज़ा पूरा करे क्यूंकि अल्लाह-त'आला ने उसे खिलाया पिलाया है " दुसरी बात यह कि ना-दानिस्ता (ग़लती से) कोई मम्नू' काम करने पर इंसान की गिरिफ़्त नहीं की जाती क्यूंकि कुरआन में है कि:

(رَبَّنَا لاَ تُؤَاخِذْنَا إِن نَّسِیْنَا أَوْ أَخْطَأْنَا)

" या'नी ऐ हमारे रब हम से भूल-चूक हो जाए या ग़लती हो जाए तो हमारी गिरिफ़्त न कर " ”قَدْ فَعَلْتُ“

"या'नी मैंने बंदे की यह दु'आ क़ुबूल कर ली" जो शख़्स ऐसे रोज़े-दार को खाते पीते देखें तो उस पर ज़रूरी है कि उसे याद दिलाए क्यूंकि यह मुनकर काम को बदलने व रोकने से मुत'अल्लिक़ (बारे में) है और नबी-ए-करीम ﷺ ने फ़रमाया है कि " तुम में से जो शख़्स कोई ग़लत काम होता देखें तो इस को अपने हाथ से बदल दे अगर हाथ से नहीं बदल सकता तो ज़बान से और अगर इस की भी ताक़त नहीं तो दिल से "

और इस में कोई शक नहीं कि रोज़ा की हालत में रोज़े-दार का खाना पीना एक मुनकर काम है अलबत्ता (लेकिन) भूल चूक की हालत में यह मु'आफ़ है क्यूंकि इस पर मुवाख़ज़ा (पकड़) नहीं होगा लेकिन जिस शख़्स ने इस को ऐसा करते देखा और उस को मना' नहीं किया वो मा'ज़ूर नहीं समझा जाएगा

(शैख़ इब्न उसैमीन)


*अजनबी औरत से बात-चीत करना और उस का हाथ छूना*


सवाल:14 

रोज़ा की हालत में किसी अजनबी औरत से बात करने या उस का हाथ छू जाने का क्या हुक्म है ? क्यूंकि बा'ज दुकानों और तिजारती मक़ामात पर ऐसा होता है


जवाब:14 

अगर औरत से बात करने में मर्द की बद-निय्यती नहीं है और न ही उस से लुत्फ़-अंदोज़ी (मज़ा लेना) मक़्सूद है इस तौर पर कि तिजारती नौ'इय्यत (प्रकार) की बात हो या रास्ता वग़ैरा पूछने के लिए हो ऐसे ही बिला-इरादा (अनजाने में) हाथ छू जाए तो यह सब काम रमज़ान और ग़ैर रमज़ान दोनों में जाइज़ हैं हां अगर औरत से बात करने का मक़्सद लुत्फ़-अंदोज़

होना हो तो यह सिरे-से (बिल्कुल)

जाइज़ नहीं है न रमज़ान में न ग़ैर रमज़ान में अलबत्ता (लेकिन) रमज़ान में इस की मुमान'अत (मनाही) और सख़्त हो जाती है

(सऊदी फ़तवा कमेटी)


*इंजेक्शन लगवाना*


सवाल:15 

क्या रमज़ान में दिन के वक़्त इंजेक्शन लगवाने से रोज़ा पर कोई असर पड़ेगा ?


जवाब:15 

इंजेक्शन दो तरह का होता है एक वो जिस से ग़िज़ा (खाना) और ताक़त मक़्सूद (मंशा) होती है और इस के ज़री'आ खाने पीने से आदमी बे-नियाज़ हो सकता है ऐसे इंजेक्शन से रोज़ा टुट जाएगा क्यूंकि नुसूस-ए-शर'इय्या जिस मा'नी-ओ-मफ़हूम पर मुश्तमिल होती है वो मा'नी-ओ-मफ़हूम 

जहां कहीं पाया जाएगा वहां वो हुक्म लगाया जाएगा

दूसरा वो इंजेक्शन है जिस से ग़िज़ा (खाना) ताक़त नहीं हासिल होती या'नी इस के ज़री'आ खाने पीने से बे-नियाज़ नहीं हो सकते तो इस से रोज़ा नहीं टुटेगा क्यूंकि शर'ई दलील न लफ़्ज़ी (शाब्दिक) ए'तिबार से इस को शामिल है न मा'नी (मतलब) के ए'तिबार से ऐसा इंजेक्शन न तो खाना पीना है और न ही खाने पीने के मा'नी में है और जब तक शर'ई दलील से रोज़ा के फ़ासिद होने का सुबूत न मिल जाए रोज़ा का बाकी और दुरुस्त होना ही अस्ल है 

(शैख़ इब्न उसैमीन)


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