ISLAM DHARAM KYA HAI

Islam Dharma Kya Hai?

इस्लाम धर्म क्या है?

हमारे आम देशबंधु्ओं का सामान्य विचार है कि इस्लाम ‘सिर्फ  मुसलमानों’ का धर्म है। इसके प्रवर्तक ह्ज़रत मुहममद साहब हैं। जो मुसलमानों के पैग़म्बर, महापुरूष हैं। कु़रआन ‘सिर्फ़ मुसलमानों’ का धर्मग्रंथ है। लेकिन सच्चाई इस से भिन्न है। स्वंय मुसलमानों के रवैये और आचार व्यवहार की वजह से यह भ्रम उत्पन्न हो गया है। वरना अस्ल बात तो यह है कि इस्लाम पूरी मानवजाति के लिए है, हज़रत मुहम्मद (ईश्वर की कृपा और शान्ति हो उन पर) सारे इंसानों के पैग़म्बर, शुभचिन्तक, उध्दारक और मार्गदर्शक हैं। और इस्लाम के प्रवर्तक (Founder) नहीं बल्कि शाशवत (Eternal) धर्म के आवाहक हैं। कुरआन पूरी मानवजाति के लिए अवतरित हुआ है।
इस्लाम का अर्थ
इस्लाम, अरबी वर्णमाला के मूल अक्षर स,ल,म, से बना शब्द है। इन अक्षरों से बनने वाले शब्द दो अर्थ रखते हैं: एक शान्ति, दो-आत्मसमर्पण। इस्लामी परिभाषा में इस्लाम का अर्थ होता है: ईश्वर के हुक्म, इच्छा, मर्ज़ी और आदेश-निर्देश के सामने पूर्ण आत्मसमर्पण करके समपूर्ण व शाशवत शान्ति प्राप्त करना…अपने व्यक्तित्व व अन्तरात्मा के प्राति शान्ति, दूसरे तमाम इंसानों के प्रति शान्ति, अन्य जीवधारियों के प्रति शान्ति, ईश्वर की सृष्टि के प्रति शान्ति, इस जीवन के बाद परलोक-जीवन में शान्ति।
इस्लाम का मूल-ग्रंथ
क़ुरआन इस्लाम का मूल-ग्रंथ है। यह प्रथम अक्षर से अंतिम अक्षर तक ईश-वाणी है। विश्व के समस्त धर्मों के मूलग्रंथों से भिन्न क़ुरआन की ऐतिहासिकता एवं विशवसनीयता  शोध व रिकार्ड के मापदंड से प्रमाणिक है। यह ईश्वर की ओर से, फरिशतों ‘जिब्रील’ के माध्यम से 17 अगस्त 610 ई० को मक्का (अरब देश) के एक पहाड़ की गुफ़ा ‘हिरा’ में (जो आज भी पूर्वत: मौजूद है) हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) की 40 वर्ष की उम्र में उन पर अवतरित होना शुरू हुआ जो परिस्थिति एवं आवशयकतानुसार थोड़ा-थोड़ा करके, आप (सल्ल०) के देहावसान (5 जून, 632 ई०) के तीन महीने पहले तक अवतरित होता रहा। अवतरित अंश को तुरंत लिख लिया जाता। ऐसे लिपिकों की कुल संख्या 41 है उन सब के नाम, पिता के नाम, क़बीले के नाम इतिहास के पन्नों में उसी समय से सुरक्षित हैं। आप (सल्ल०) के तीसरे उत्तराधिकारी हज़रत उस्मान (रज़ि०) ने पूर्ण ग्रंथ की सात प्रतियां तैयार कराके इस्लामी राष्ट्र के प्रमुख केन्द्रों पर भिजवाईं, उन में से कुछ प्रतियां आज भी ताशक़न्द, इस्तंबूल आदि के संग्रहालयों में सुरक्षित हैं।
कुरआन में आध्यात्मिक व भौतिक जीवन की सारी मूल-शिक्षाएं समाहित हैं। व्यक्तिगत, दाम्पत्य, पारिवारिक, सामाजिक, सामूहिक सारे आदेश-निर्देश वर्णित हैं। वैचारिक, बौध्दिक, आर्थिक, व्यापारिक, प्रशासनिक, सामरिक, अपराध व दंड संबंधी, तथा राष्ट्रीय व अंन्तर्राष्ट्रीय नियम व क़ानून की मौलिक रूप-रेखा सुनिश्चित कर दी गई हैं। इंसान क्यों पैदा किया गया है? उसकी सृष्टि का मूल उद्देश्य क्या है? ईश्वर से इसका संबंध क्या है? इस संबंध के तक़ाज़े क्या हैं?  इन्सान और विशाल सृष्टि में क्या संबंध है? क्या चीज़ हानिकारक व अवैध है, क्या लाभदायक और वैध है? क्या उचित है, क्या अनुचित है? जु़ल्म क्या है, इंसाफ़ क्या है? इस जीवन के बाद क्या है?  परलोक, स्वर्ग, नरक की वास्तविकता क्या है? कैसे लोग स्वर्ग में जाएंगे और कैसे लोग नरक में? मानव पर मानव के हक़ व अधिकार क्या हैं और ईश्वर के अधिकार हक़ क्या हैं? एकेशवरवाद की विशुध्द वास्तविकता क्या है? शिर्क (अनेकेश्वरवाद) की वास्तविकता, प्रभाव एवं परिणाम क्या हैं? ज़ालिम, सरकश अन्यायी, व्यभिचारी, अत्याचारी इन्सानों और क़ौमों के साथ प्राचीन युगों में ईश्वर की ओर से दंड व विनाश का इतिहास क्या है? मानव-समानता व एकता की दृढ़ बुनियाद क्या हैं? दुर्बलों, ग़रीबों, दरिद्ररों अनाथों, अबलाओं, असहायों, महरूमों मज्ञलूमों व पीड़ितों के अधिकार, माता-पिता, सन्तान, पति-पत्नी, रिश्तेदारों, पड़ोसियों के अधिकार व कर्तव्य क्या क्या हैं? … आदि अनेकानेक विषयों पर आदेश व नियम क़ुरआन में वर्णित हैं।
द्वितीय श्रेणी का स्रोत-‘हदीस’
क़ुरआन की बातें सैध्दान्तिक व मौलिक स्तर की हैं। उन सब को व्यावहारिक व विस्तृत स्तर पर करने, कहने, समझाने और आदर्श व नमूना बनकर पेश करने का काम हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) ने किया। इस पूरी प्रक्रिया के लिखित व प्रमाणिक रिकार्ड को हदीस कहा जाता है। आज ऐसी बेशुमार हदीसें, पूरी प्रमाणिकता के साथ कई भाषाओं में, संसार के अनेक क्षेत्रों में, पुस्तक-रूप में उपलब्ध हैं।

سیرت النبی کریم صلی اللہ علیہ و آلہ و سلم

نبی کریم ﷺ کا جب اس ظاہری دنیا سے پردہ فرمانے کا وقت آیا اس وقت آپ ﷺ کو شدید بخار تھا، آپﷺ نے حضرتِ بلال رضی اللہ عنہ کو حکم دیا کہ مدینہ میں اعلان کردو کہ جس کسی کا حق مجھ پر ہو وہ مسجدِ نبوی میں آکر اپنا حق لے لے۔
جب مدینے کے لوگوں نے یہ اعلان سُنا تو آنکھوں میں آنسو آگئے اور مدینہ میں کہرام مچ گیا، سارے لوگ مسجدِ نبوی میں جمع ہوگئے، صحابۂ کرام کی آنکھوں میں آنسو تھے، دل بے چین وبے قرار تھا۔ پھر نبئ کریم ﷺ تشریف لائے آپ ﷺ کو اس قدر تیز بخار تھا کہ آپ ﷺ کا چہرۂ مبارک سرخ ہوا جارہا تھا۔
نبئ کریم ﷺ نے فرمایا اے میرے ساتھیو! تمھارا اگر کوئی حق مجھ پر باقی ہو تو وہ مجھ سے آج ہی لے لو، میں نہیں چاہتا کہ میں اپنے رب سے قیامت میں اس حال میں ملوں کہ کسی شخص کا حق مجھ پر باقی ہو، یہ سن کر صحابۂ کرام رضی اللہ عنھم کا دل تڑپ اُٹھا، مسجدِ نبوی میں آنسوؤں کا ایک سیلاب بِہ پڑا، صحابہ رو رہے تھے لیکن زبان خاموش تھی، کہ اب ہمارے آقا ہمارا ساتھ چھوڑ کر جارہے ہیں،
اپنے اصحاب کی یہ حالت دیکھکر فرمایا کہ "اے لوگوں ہر جاندار کو موت کا مزہ چکھنا ہے"
میں جس مقصد کے تحت اس دنیا میں آیا تھا وہ پورا ہوگیا ہم لوگ کل قیامت میں ملیں گے،
ایک صحابی کھڑے ہوئے، روایتوں میں انکا نام عُکاشہ آتا ہے، عرض کیا یا رسول اللہ میرا حق آپ پر باقی ہے، آپ جب جنگِ اُحد کے لئے تشریف لے جارہے تھے تو آپ کا کوڑا میری پیٹھ پر لگ گیا تھا میں اسکا بدلہ چاہتا ہوں، یہ سن کر حضرت عمر رضی اللہ عنہ کھڑے ہوگئے اور کہا کیا تم نبئ کریم ﷺ سے بدلہ لوگے؟ کیا تم دیکھتے نہیں کہ آپ ﷺ بیمار ہیں۔
اگر بدلہ لینا ہی چاہتے ہو تو مجھے کُوڑا مار لو لیکن نبئ کریم ﷺ سے بدلہ نہ لو،
یہ سن کر آپ ﷺ نے فرمایا "اے عمر اسے بدلہ لینے دو، اسکا حق ہے اگر میں نے اسکا حق ادا نہ کیا تو اللہ کی بارگاہ میں کیا منھ دکھاؤنگا، اسلئے مجھے اسکا حق اداء کرنے دو،
آپ ﷺ نے کُوڑا منگوایا اور حضرت عُکاشہ کو دیا اور کہا کہ تم مجھے کُوڑا مار کر اپنا بدلہ لے لو۔
حضراتِ صحابہ یہ منظر دیکھ کر بے تحاشہ رُو رہے تھے، حضرت عُکاشہ نے کہا کہ اے اللہ کے رسول ﷺ میری ننگی پیٹھ پر آپکا کُوڑا لگا تھا، یہ سن کر نبئ کریم ﷺ نے اپنا کُرتہ مبارک اُتار دیا اور کہا لو تم میری پیٹھ پر کُوڑا مار لو، حضرتِ عُکاشہ نے جب حضورﷺ کی پیٹھ مبارک کو دیکھا تو کوڑا چھوڑ جلدی سے آپ ﷺ کی پیٹھ کو چُوم لیا اور کہا یارسول اللہ" فَداکَ ابِی واُمی " میری کیا مجال کہ میں آپ کو کُوڑا ماروں، میں تو یہ چاہتا تھا کہ آپکی مبارک پیٹھ پر لگی مہر نبوّت کو چوم کر جنّت کا حقدار بن جاؤں۔ یہ سن کر آپ ﷺ مسکرائے اور فرمایا تم نے جنّت واجب کرلی۔
سبحان اللہ! سبحان اللہ!
اے اللہ ہمے بھی نبئ کریم ﷺ سے سچی محبت کا جزبہ عطا فرما۔ آمین!
الرحیق المختوم صفحہ نمبر ۶۴۸.
تعظیم

Namaz ka tarika

मुकम्मल नमाज़ सहीह अहादीस के मुताबिक़
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بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ

रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया “ नमाज़ उस तरह पढ़ो जिस तरह मुझे
पढ़ते हुए देखते हो. ” (बुख़ारी ह० 631)

🔎क़याम का सुन्नत तरीक़ा

◾ पहले ख़ाना-ए- काबा की तरफ़ रुख़ करके खड़े होना (इब्न माजा ह० 803 )
◾ अगर बाजमात नमाज़ पढ़े तो दूसरों के कंधे से कंधा और टख़ने से टख़ना मिलाना. (अबू दाऊद ह० 662)
◾ फिर तक्बीर कहना और रफ़अ़ यदैन करते वक़्त हाथों को कंधों तक उठाना (बुख़ारी ह० 735, मुस्लिम ह० 861)
या कानों तक उठाना (मुस्लिम ह० 865)
◾ फिर दायां हाथ बाएं हाथ पर सीने पर रखना (मुस्नद अहमद ह० 22313)
दायां हाथ बायीं ज़िराअ़ पर (बुख़ारी ह० 740, मुवत्ता मालिक ह० 377)
ज़िराअ़ : कुहनी के सिरे से दरमियानी उंगली के सिरे तक का हिस्सा कहलाता है [अरबी लुग़त (dictionary) अल क़ामूस पेज 568]
दायां हाथ अपनी बायीं हथेली, कलाई और साअ़द पर (अबू दाऊद  ह० 727, नसाई  ह० 890)
साअ़द : कुहनी से हथेली तक का हिस्सा कहलाता है [अरबी लुग़त (dictionary) अल क़ामूस  पेज 769]
◾ फिर आहिस्ता आवाज़ में ‘सना’ (यानी पूरा सुब्हानक्ल्लाहुम्मा) पढ़ना (मुस्लिम ह० 892, अबू दाऊद ह० 775, नसाई ह० 900)
इसके अलावा और भी दुआएं जो सहीह अहादीस से साबित हैं, पढ़ी जा सकती हैं.
◾ फिर क़ुरआन पढ़ने से पहले ‘अऊज़ू बिल्लाहि मिनश् शैतानिर रजीम’ (क़ुरआन 16:98, बुख़ारी ह० 6115, मुसन्नफ़ अब्दुर्रज्ज़ाक़ ह० 2589)
और ‘बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम’ पढ़ना (नसाई ह० 906, सहीह इब्न ख़ुज़ैमा ह० 499)
◾ फिर सूरह फ़ातिहा पढ़ना (बुख़ारी ह० 743, मुस्लिम ह० 892)
जो शख्स़ सूरह फ़ातिहा नहीं पढ़ता उसकी नमाज़ नहीं होती. (बुख़ारी ह० 756, मुस्लिम ह० 874)
◾ जहरी (ऊँची आवाज़ से क़िराअत वाली) नमाज़ में आमीन भी ऊंची आवाज़ से कहना (अबू दाऊद ह० 932, 933, नसाई ह० 880 )
◾ फिर कोई सूरत पढ़ना और उससे पहले ‘बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम’ पढ़ना (मुस्लिम ह० 894)
◾ पहली 2 रकअ़तों में सूरह फ़ातिहा के साथ कोई और सूरत या क़ुरआन का कुछ हिस्सा भी पढ़ना (बुख़ारी ह० 762, मुस्लिम ह० 1013, अबू दाऊद ह० 859)
और आख़िरी 2 रकअ़तों में सिर्फ़ सूरह फ़ातिहा पढ़ना और कभी कभी कोई सूरत भी मिला लेना. (मुस्लिम ह० 1013, 1014)

🔎 रुकूअ़ का सुन्नत तरीक़ा

◾ फिर रुकूअ़ के लिए तक्बीर कहना और दोनों हाथों को कंधों तक या कानों तक उठाना (यानी रफ़अ़ यदैन करना) (बुख़ारी ह० 735, मुस्लिम ह० 865)
◾ और अपने हाथो से घुटनों को मज़बूती से पकड़ना और अपनी उंगलियां खोल देना. (बुख़ारी ह० 828, अबू दाऊद ह० 731)
◾ सर न तो पीठ से ऊंचा हो और न नीचा बल्कि पीठ की सीध में बिलकुल बराबर हो. (अबू दाऊद  ह० 730)
◾ और दोनों हाथों को अपने पहलू (बग़लों) से दूर रखना (अबू दाऊद  ह० 734)
◾ रुकूअ़ में ‘सुब्हाना रब्बियल अज़ीम’ पढ़ना. (मुस्लिम ह० 1814, अबू दाऊद ह० 869) इस दुआ को कम से कम 3 बार पढ़ना चाहिए (मुसन्नफ़ इब्न अबी शैबा ह० 2571)

🔎 क़ौमा का सुन्नत तरीक़ा

◾ रुकूअ़ से सर उठाने के बाद रफ़अ़ यदैन करना और ‘समिअ़ल्लाहु लिमन हमिदह, रब्बना लकल हम्द’ कहना (बुख़ारी ह० 735, 789)
◾ ‘रब्बना लकल हम्द' के बाद 'हम्दन कसीरन तय्यिबन मुबारकन फ़ीह' कहना. (बुख़ारी ह० 799)

🔎 सज्दा का सुन्नत तरीक़ा

◾ फिर तक्बीर कहते हुए सज्दे के लिए झुकना और 7 हड्डियों (पेशानी और नाक, दो हाथ, दो घुटने और दो पैर) पर सज्दा करना. (बुख़ारी  ह० 812)
◾ सज्दे में जाते वक़्त दोनों हाथों को घुटनों से पहले ज़मीन पर रखना (अबू दाऊद  ह० 840, सहीह इब्न ख़ुज़ैमा ह० 627)
नोट: सज्दे में जाते वक़्त पहले घुटनों और फिर हाथों को रखने वाली सारी रिवायात ज़ईफ़ हैं. (देखिये अबू दाऊद ह० 838)
◾ सज्दे में नाक और पेशानी ज़मीन पर ख़ूब जमा कर रखना, अपने बाज़ुओं को अपने पहलू (बग़लों) से दूर रखना और दोनों हथेलियां कंधों के बराबर (ज़मीन पर) रखना. (अबू दाऊद ह० 734, मुस्लिम ह० 1105)
◾ सर को दोनों हाथों के बीच रखना (अबू दाऊद ह० 726)
◾ और हाथों को अपने कानों से आगे न ले जाना. (नसाई ह० 890)
◾ हाथों की उंगलियों को एक दूसरे से मिला कर रखना और उन्हें क़िब्ला रुख़ रखना. (सुनन बैहक़ी 2/112, मुस्तदरक हाकिम 1/227)
◾ सज्दे में हाथ (ज़मीन पर) न तो बिछाना और न बहुत समेटना और पैरों की उंगलियों को क़िब्ला रुख़ रखना. (बुख़ारी ह० 828)
◾ सज्दे में एतदाल करना और अपने हाथों को कुत्तों की तरह न बिछाना. (बुख़ारी ह० 822)  
◾ सज्दे में अपनी दोनों एड़ियों को मिला लेना (सहीह इब्न खुज़ैमा ह० 654, सुनन बैहक़ी 2/116)
◾ और पैरों की उंगलियों को क़िब्ला रुख़ मोड़ लेना. (नसाई ह० 1102)
नोट: रसूलुल्लाह ﷺ  ने फ़रमाया कि “ उस शख्स़ की नमाज़ नहीं जिसकी नाक पेशानी की तरह ज़मीन पर नहीं लगती.” (सुनन दार क़ुत्नी 1/348)
◾ सज्दों में यह दुआ पढ़ना ‘सुब्हाना रब्बियल आला’ (मुस्लिम ह० 1814, अबू दाऊद ह० 869) इस दुआ को कम से कम 3 बार पढ़ना (मुसन्नफ़ इब्न अबी शैबा ह० 2571)

🔎 जलसा का सुन्नत तरीक़ा

◾ फिर तक्बीर कह कर सज्दे से सर उठाना और दायां पांव खड़ा कर, बायां पांव बिछा कर उस पर बैठ जाना. (बुख़ारी ह० 827, अबू दाऊद ह० 730)
◾ दो सजदों के बीच यह दुआ पढ़ना ‘रब्बिग़ फ़िरली रब्बिग़ फ़िरली ’ (अबू दाऊद ह० 874, नसाई ह० 1146, इब्न माजा ह० 897)
◾ इसके अलावा यह दुआ पढ़ना भी बिल्कुल सहीह है ‘अल्लाहुम्मग्फ़िरली वरहम्नी वआफ़िनी वहदिनी वरज़ुक़्नी’ (अबू दाऊद ह० 850, मुस्लिम ह० 6850)
◾ दूसरे सज्दे के बाद भी कुछ देर के लिए बैठना. (बुख़ारी ह० 757) (इसको जलसा इस्तिराहत कहते हैं)
◾ पहली और तीसरी रक्अ़त में जलसा इस्तिराहत के बाद खड़े होने के लिए ज़मीन पर दोनों हाथ रख कर हाथों के सहारे खड़े होना. (बुख़ारी ह० 823, 824)

🔎 तशह्हुद का सुन्नत तरीक़ा 

◾ तशह्हुद में अपने दोनों हाथ अपनी दोनों रानों पर और कभी कभी घुटनों पर भी रखना. (मुस्लिम  ह० 1308, 1310)
◾ फिर अपनी दाएं अंगूठे को दरमियानी उंगली से मिला कर हल्क़ा बनाना, अपनी शहादत की उंगली को थोडा सा झुका कर और उंगली से इशारा करते हुए दुआ करना. (मुस्लिम ह० 1308, अबू दाऊद ह० 991)
◾ और उंगली को (आहिस्ता आहिस्ता) हरकत भी देना और उसकी तरफ़ देखते रहना. (नसाई ह० 1161, 1162, 1269, इब्न माजा ह० 912)
◾ पहले तशह्हुद में भी दुरूद पढ़ना बेहतर अमल है. (नसाई ह० 1721, मुवत्ता मालिक ह० 204)
◾ लेकिन सिर्फ़ ‘अत तहिय्यात ….’ पढ़ कर ही खड़ा हो जाना भी जायज़ है. (मुस्नद अहमद ह० 4382)
◾ (2 तशह्हुद वाली नमाज़ में) आख़िरी तशह्हुद में बाएं पांव को दाएं पांव के नीचे से बाहर निकाल कर बाएं कूल्हे पर बैठ जाना और दाएं पांव का पंजा क़िब्ला रुख़ कर लेना. (बुख़ारी ह० 828, अबू दाऊद  ह० 730) (इसको तवर्रुक कहते हैं )
◾ तशह्हुद में ‘अत तहिय्यात… ’ और दुरूद पढ़ना. (बुख़ारी ह० 1202, 3370, मुस्लिम ह० 897,908)
◾ दुरूद के बाद जो दुआएं क़ुरआन और सहीह अहादीस से साबित हैं, पढ़ना चाहिए. (बुख़ारी ह० 835, मुस्लिम ह० 897)
◾ इसके बाद दाएं और बाएं ‘अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह ’ कहते हुए सलाम फेरना. (बुख़ारी  ह० 838, मुस्लिम ह० 1315, तिरमिज़ी ह० 295)

नोट: अहादीस के हवालों में काफ़ी एहतियात बरती गयी है लेकिन फिर भी अगर कोई ग़लती रह गयी हो तो ज़रूर इस्लाह करें

سیرت النبی کریم صلی اللہ علیہ و آلہ وسلم

سیرت النبی کریم صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم..

قسط 1..

آج سے سیرت النبی کریم صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم کا مبارک سلسلہ شروع کیا جا رھا ھے لیکن آپ صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم کی سیرت پاک کے تذکرہ سے پہلے بہت ضروری ھے کہ آپ کو سرزمین عرب اور عرب قوم اور اس دور کے عمومی حالات سے روشناس کرایا جاۓ تاکہ آپ زیادہ بہتر طریقے سے سمجھ سکیں کہ آپ صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم کی پیدائش کے وقت عرب اور دنیا کے حالات کیسے تھے..

ملک عرب ایک جزیرہ نما ھے جس کے جنوب میں بحیرہ عرب , مشرق میں خلیج فارس و بحیرہ عمان , مغرب میں بحیرہ قلزم ھے.. تین اطراف سے پانی میں گھرے اس ملک کے شمال میں شام کا ملک واقع ھے.. مجموعی طور پر اس ملک کا اکثر حصہ ریگستانوں اور غیر آباد بے آب و گیاہ وادیوں پر مشتمل ھے جبکہ چند علاقے اپنی سرسبزی اور شادابی کے لیے بھی مشھور ھیں.. طبعی لحاظ سے اس ملک کے پانچ حصے ھیں..

یمن :

یمن جزیرہ عرب کا سب سے زرخیز علاقہ رھا ھے جس کو پرامن ھونے کی وجہ سے یہ نام دیا گیا.. آب و ھوا معتدل ھے اور اسکے پہاڑوں کے درمیان وسیع و شاداب وادیاں ھیں جہاں پھل و سبزیاں بکثرت پیدا ھوتے ھیں.. قوم "سبا" کا مسکن عرب کا یہی علاقہ تھا جس نے آبپاشی کے لیے بہت سے بند (ڈیم) بناۓ جن میں "مارب" نام کا مشھور بند بھی تھا.. اس قوم کی نافرمانی کی وجہ سے جب ان پر عذاب آیا تو یہی بند ٹوٹ گیا تھا اور ایک عظیم سیلاب آیا جس کی وجہ سے قوم سبا عرب کے طول و عرض میں منتشر ھوگئی..

حجاز :

یمن کے شمال میں حجاز کا علاقہ واقغ ھے.. حجاز ملک عرب کا وہ حصہ ھے جسے اللہ نے نور ھدائت کی شمع فروزاں کرنے کے لیے منتخب کیا.. اس خطہ کا مرکزی شھر مکہ مکرمہ ھے جو بے آب و گیاہ وادیوں اور پہاڑوں پر مشتمل ایک ریگستانی علاقہ ھے.. حجاز کا دوسرا اھم شھر یثرب ھے جو بعد میں مدینۃ النبی کہلایا جبکہ مکہ کے مشرق میں طائف کا شھر ھے جو اپنے سرسبز اور لہلہاتے کھیتوں اور سایہ دار نخلستانوں اور مختلف پھلوں کی کثرت کی وجہ عرب کے ریگستان میں جنت ارضی کی مثل ھے.. حجاز میں بدر , احد , بیر معونہ , حدیبیہ اور خیبر کی وادیاں بھی قابل ذکر ھیں..

نجد :

ملک عرب کا ایک اھم حصہ نجد ھے جو حجاز کے مشرق میں ھے اور جہاں آج کل سعودی عرب کا دارالحکومت "الریاض" واقع ھے..

حضرموت :

یہ یمن کے مشرق میں ساحلی علاقہ ھے.. بظاھر ویران علاقہ ھے.. پرانے زمانے میں یہاں "ظفار" اور "شیبان" نامی دو شھر تھے..

مشرقی ساحلی علاقے (عرب امارات) :

ان میں عمان ' الاحساء اور بحرین کے علاقے شامل ھیں.. یہاں سے پرانے زمانے میں سمندر سے موتی نکالے جاتے تھے جبکہ آج کل یہ علاقہ تیل کی دولت سے مالا مال ھے..

وادی سیناء :

حجاز کے شمال مشرق میں خلیج سویز اور خلیج ایلہ کے درمیان وادی سیناء کا علاقہ ھے جہاں قوم موسی' علیہ السلام چالیس سال تک صحرانوردی کرتی رھی.. طور سیناء بھی یہیں واقع ھے جہاں حضرت موسی' علیہ السلام کو تورات کی تختیاں دی گئیں..

نوٹ :

ایک بات ذھن میں رکھیں کہ اصل ملک عرب میں آج کے سعودی عرب , یمن , بحرین , عمان کا علاقہ شامل تھا جبکہ شام , عراق اور مصر جیسے ممالک بعد میں فتح ھوۓ اور عربوں کی ایک کثیر تعداد وھاں نقل مکانی کرکے آباد ھوئی اور نتیجتہ" یہ ملک بھی عربی رنگ میں ڈھل گئے لیکن اصل عرب علاقہ وھی ھے جو موجودہ سعودیہ , بحرین , عمان اور یمن کے علاقہ پر مشتمل ھے اور اس جزیرہ نما کی شکل نقشہ میں واضح طور دیکھی جاسکتی ھے..

عرب کو "عرب" کا نام کیوں دیا گیا اس کے متعلق دو آراء ھیں.. ایک راۓ کے مطابق عرب کے لفظی معنی "فصاحت اور زبان آوری" کے ھیں.. عربی لوگ فصاحت و بلاغت کے اعتبار سے دیگر اقوام کو اپنا ھم پایہ اور ھم پلہ نہیں سمجھتے تھے اس لیے اپنے آپ کو عرب (فصیح البیان) اور باقی دنیا کو عجم (گونگا) کہتے تھے..

دوسری راۓ کے مطابق لفظ عرب "عربہ" سے نکلا ھے جس کے معنی صحرا اور ریگستان کے ھیں.. چونکہ اس ملک کا بیشتر حصہ دشت و صحرا پر مشتمل ھے اس لیے سارے ملک کو عرب کہا جانے لگا..

===========>جاری ھے..

سیرت المصطفیٰ.. مولانا محمد ادریس کاندہلوی..
الرحیق المختوم .. مولانا صفی الرحمن مبارکپوری رحمھمااللہ
الداعی الی الخیرعبدالستار

Taweez pahannah shirk hai

Hazrat-Abdullah-bin masood(r.t.a) ki biwi( wife) Zainab(r.t.a) ka biyaan hai ke 揂bdullah- bin masood(r.t.a)� ne meri garden me ek � Dhaga� dekha to pucha� ye kya hai? Main ne kaha� ye dam kiya hua 揇haga� mujhe diya gaya hai, To 揂bdullah-bin masood(r.t.a)� ne wo 揇haga� kaat dala aur farmaya: yaqinan � abdullah ka khandaan shirk se door hai"....

Hazrat-Aaqbah-Bin-Aamir(r.t.a) farmate hain ke Rasool-Allah{sws}ne farmaya: jisne "Taweez" latkaya Allah iski hajat puri na kare. (*Abu-Dauood*)
Hazrat-Abdullah-Bin-Aakim(r.t.a) farmate hain k Rasool-Allah{sall扐llaahu ta抋alaa alaihi wa� sallam} ne farmaya:jisne 揟aweez� latkai usne Shirk kiya. (*Musnad-Ahmad/Trmizi*) Hazrat-Imraan-Bin-Haseen(r.t.a) se rawayat hai ke Nabi{sall扐llaahu ta抋alaa alaihi wa� sallam} ne ek Aadmi ke Hanth(hand) me pital ka bana hua � Kada(chodi)� dekha to daryaft kiya: Ye kya hai? Isne jawab diya ke ye kamzori se bachne ke liye hai� To aap{sws} ne farmaya: isse utaar kar phek do� isliye ke ye kamzori hi me ezafa karega抋ur isse pahne hue teri 搘afaat(death) � ho gai to tu kabhi kamyaab nahi hosakta�. (*Musnad-Ahmad*) Hazrat-Makeem(r.t.a) se marwe hai Nabi ( sallallahu alaihi wa sallam) ne farmaya: Jisne kisi cheez (taweez,dhaga) ko latkaya to uska bharosa usi par kardiya jata hai. (*Tirmizi/Musnad- Ahmad*).......
🌷🌷🌷🌷🌷🌷MAKTABA AL FURQAN SAMI GUJARAT 9998561553 🌷 🌷 🌷 🌷 🌷 🌷 🌷 🌻 🌻 🌻 🌻 🌻 🌻

MOMIN MOMIN KA AYNA HAI

🌹مومن مومن کا آئینہ ہے🌹
انس رضی اللہ تعالٰی عنہ فرماتے ہیں
کہ
رسول اللہ ﷺ نےفرمایا
المومن مرآة المومن
📕سلسلہ الصحیحۃ 629 📕
یہ حدیث بڑی مختصر هے مگر بہت ہی جامع هے اللہ کے رسول ﷺ نےاس حدیث میں ایک مومن کو دوسرے مومن کا آئینہ قرار دیا ہے حدیث کو سمجھنے کے لئے آئینے کی خصوصیات کا علم هونا ضروری ہے تاکہ هم اس حديث پرکماحقہ عمل کر سکیں اور اس حديث کے مطابق دوسری مسلمان کیلئے آئینہ ثابت ہو سکیں

1⃣ آدمی جب آئینے کے سامنے کهڑا هوتا هے اپنے چہرے پر کوئی گندگی دیکهتا هے تو فورا اسکو ختم کرتا ہے
اسی طرح اگر کسی مسلمان بهائ کو کوئی دوسرا بهائ نصیحت کرے اچھی بات کی ترغیب دے تو اس پر فوراً عمل کرے اور اگر کوئی برائ یا عیب هے تو اس کو فوراً دور کرنے کی کوشش کرے

2⃣آئینہ کے سامنے فقیر کھڑا ھویا بادشاہ وقت بے خوف وخطر حقیقت کا اظہار کرتا ھے.
ایک مومن کو بھی دوسرے کو برائی سے روکنے میں اور نیکی کا حکم دینے میں کسی سے ڈرنا نہیں چاھئےاور کسی کی شخصیت سے مرعوب ہو کر اس کو منکر کی آزادی نہیں دینی چاہیے.

3⃣آئینہ تب ہی کچھ بولتا ہے جب اس کے سامنے کھڑے ہوتے ھیں بغیر پوچھے کسی کی شہادت نہیں دیتا. ایک مومن کو بھی چاہیےکہ وہ شہادت تب دے جب اس سے شہادت طلب کی جاۓ.

4⃣آئینہ منہ کی بات منہ پر ہی کہتا ہےدل میں کچھ نہیں رکھتا
ایک مومن کو بھی چاہیےکہ وہ کسی مومن کوغلطی پر مطلع کرنےکےبعد دل میں اسکےخلاف کوبری سوچ نہ رکھے

5⃣آئینہ اسی وقت ہی بولتا ہے جب اس کے سامنے آئیں گے
ایک مومن کو بهی اسی وقت اصلاح کرنی چاہیے جب کوئی اس کی بات سننے اور سمجهنے والا هو بے موقع و محل و وقت ضائع نہ کرے

6⃣آئینہ اسی وقت تک مخاطب رهتا هے جب تک آپ اسکے سامنے کهڑے رهتے هیں
ایک مومن کو بھی چاہیے کہ جب تک لوگ اس کی بات سننے کے خواہش مند ہوں تب تک ان سے مخاطب رہے اور جب لوگ اکتا جائیں تو بات ختم کر دے

7⃣آئینہ آپ کی خامی صرف آپ کو ہی بتاتا هے پیٹھ پیچھے کسی سے نہیں کہتا
ایک مومن کو بھی چاہیےکہ وه اپنے بهائ کی خامی صرف اسی کو بتائے پیٹھ پیچھے اس کی غیبت نہ کرے

8⃣آئینہ کبھی کسی کے متعلق جهوٹ نہیں بولتا
ایک مومن کو بھی چاہیےکہ وہ اپنی بهائ کی متعلقہ بات میں جهوٹ سے مکمل طور پر اجتناب کرے

9⃣آئینہ اچهایاں اور برائیاں دونوں بیان کرتا ہے کسی ایک پر اکتفا نہیں کرتا
ایک مومن کو بھی چاہیےکہ وہ جب بهی کسی شخصیت پر تبصرہ کرے تو دونوں پہلوؤں کو سامنے رکهے

🔟آئینہ ہر چیز کو اس کی اصل مقدار و کیفیت میں پیش کرتا ہے مبالغہ آرائی یا تنقص نہیں کرتا ایک مومن کو بھی چاہیےکہ وہ ایک مومن کے تعلق سے کسی بھی قسم کی مبالغہ آرائی یا تنقیص سے کام نہ لے

1⃣1⃣آئینہ کسی کا راز دوسرے کو نہیں بتاتا
ایک مومن کو بھی چاہیےکہ وہ اپنے بهائ کے رازوں کو راز هی میں رکھے کسی دوسرے کے سامنے بیان نہ کرے

2⃣1⃣آئینےپراگرسونابھی لگادیاجاۓتوآئینہ اپنااصل کام (اصلاح ) سے منہ نہیں موڑتا
اگرکسی مومن کے پاس مال ودولت بھی آجاۓتووه اللہ کے ذکر اور لوگوں کی اصلاح سے اعراض نہیں کرے

3⃣1⃣آئینہ کسی سے حسد نہیںکرتا کہ اسکی صرف خامیوں کوذکر کرےبلکہ خامیوں اور اچھائیوں دونوںکو واضح کرتا ھے
ایک مومن کو بھی اپنے بھائ سےحسدنہیں کرناچاہیےبلکہ اپنےدل کواسکے متعلق صاف رکھے

4⃣1⃣آئینےکے سامنےکتنے لوگ هی کیوں نہ کهڑے هوں وہ آپ کے عیب صرف آپ هی کو بتاتا هے لوگوں میں اس کی تشہیر نہیں کرتا
ایک مومن کو بھی چاہیےکہ جس بهائ میں کوئی عیب دیکھے وہ صرف اسی کو بتائے لوگوں کے سامنے اس کو بیان نہ کرے جس سے اس کو شرمندگی و ندامت اٹهانی پڑے

5⃣1⃣آئینہ کا مقصد هر وقت هر کسی کی اصلاح هے
لہٰذا مومن کو بھی چاہیےکہ وہ هر وقت اپنے بهائیوں کی اصلاح کی فکر میں لگا رہے

6⃣1⃣آئینہ باوجود ایک شخص کے عیوب دیکھنے کے اس سے نفرت نہیں کرتا بلکہ اس کے عیوب اسکی اصلاح کے لئے اس کے سامنے نمایاں کرتا رهتا هے
ایک مومن کو بھی چاہیےکہ جس بهائ میں کوئی عیب دیکھے تو اس کو اس سے دور کرنے کی کوشش کرے اس عیب کی وجہ سے اس سے نفرت نہ رکھے بلکہ پیار اور محبت سے اسکی اصلاح کرے

7⃣1⃣آئینہ جب بهی کسی کی اصلاح کرتا ہے تو لوگ فوراً اس کی بات کو مان لیتے هیں اس کے چهوٹا بڑا سستا مہنگا هونے کی طرف نہیں دیکھتے
لہٰذا ایک مومن کو بھی چاہیےکہ جب بهی کوئی اصلاح کرے تو اس اصلاح کرنے والے کی قدر و منزلت کی طرف نہ دیکھے بلکہ اپنی اصلاح کی فوراً کوشش کرے

8⃣1⃣آئینہ سے انسان کا تعلق صرف ظاہر کی اصلاح کے لئے هوتا هے
جبکہ ایک مومن کا دوسرے سے ظاهری و باطنی اصلاح کے لئے تعلق هونا چاہیے

9⃣1⃣آئینے کو اگر توڑ بهی دیں تو پھر بهی آپ سے نفرت نہیں کرتا بلکہ پہلے سے بڑھ کر آپ کی اصلاح کی فکر میں رهتا هے
ایک مومن کو بھی چاہیےکہ وہ لوگوں کی تکالیف کی پرواہ نہ کرے بلکہ مرتے دم تک مسلمانوں کی اصلاح کی فکر میں لگا رہے

0⃣2⃣آئینہ کسی کی اصلاح کسی لالچ کی غرض سے نہیں کرتا اور نہ ہی کسی سے طمع کرکهتا هے
ایک مومن کو بھی چاہیےکہ وہ ایک بهائ کی اصلاح صرف رضائے الہی کے حصول کے لیے کرے کسی لالچ و طمع کی امید نہ رکهے

1⃣2⃣آئینہ صرف اپنے مقصد(اصلاح) سے تعلق رکھتا ہے
ایک مومن کو بھی چاہیےکہ وہ بهی اپنے مقصد سے هی تعلق رکهے فضولیات و لغویات سے اجتناب کرے

2⃣2⃣آئینے کا کام صرف اصلاح کرنا هے لوگوں کو بتانا هے اس پر عمل کروانا نہیں
لہٰذا داعي کو بھی چاہیےکہ وہ لوگوں کی اصلاح کرتا رهے چاہیے کوئی عمل کرے یا نہ کرے

3⃣2⃣آئینہ کسی شخص کا عیب دیکھ کر اسکو طعن و تشنیع کا نشانہ نہیں بناتا بلک اس کو صرف مطلع کرتا هے
لہٰذا ایک مومن کو بھی چاہیےکہ وہ کسی کا عیب دیکھ کر اس کو طعن و تشنیع کا نشانہ نہ بنائے بلکہ فوراً اس کی اصلاح کرے

4⃣2⃣آئینہ کبھی کسی شخص کو ماضی کے عیبوں کا طعنہ نہیں دیتا
ایک مومن کو بھی چاہیےکہ وہ اپنے بهائ کے ماضی کے گناہوں اور غلطیوں کا طعنہ نہ دے

5⃣2⃣آئینہ اپنا هو یا کسی کا جب بهی اس کے سامنے سے گزریں گے وہ آپ کی اصلاح کرے گا
ایک مومن کو بھی چاہیےکہ جہاں بهی برائ دیکهے تو اس کو فوراً دور کرنے کی کوشش کرے

6⃣2⃣آئینے کے سامنے هم اس لئیے آتے ہیں کہ وہ هماری اصلاح کرے اور اس کیلئے هم خود خوشی سے آتے هیں
ایک مومن کو بھی چاہیےکہ وہ خود دوسرے مسلمان بهائ کے پاس جائے تاکہ اپنے ایمان و دین کی اصلاح کرسکے
اللہ رب العزت هم سب كو اپنی اصلاح کرنے کی توفیق عطا فرمائے
🌼آمین🌼