ALLAH KI RAHMAT

अल्लाह सुब्हानहु तआला की रहमत (कृपा) बहुत सारे लोग, विशेष तौर पर दूसरे धर्मों के लोग अल्लाह सुब्हानहु तआला के संबंध में बहुत सारी मिथ्याबोध एवं अनभिज्ञता के शिकार हैं एवं इसी कारण से अल्लाह सुब्हानहु के सम्बंदित कुछ असामान्य प्रश्न करते हैं जैसे कि यदि अल्लाह सुब्हानहु तआला अत्यंत दयावान है तो उसने हमारी सृष्टि क्यूँ की जब कि वह जानता है कि हम में से अधिक लोकनरक में ही जाएगें तो वह अपनी ही सृष्टि को नरक में क्यूँ भरना चाहता है, यदि वह इतना कृपालु है तो जानते बुझते हमें पीड़ा में क्यूँ दाल रहा है,अब जब कि हमारी सृष्टि हो चुकी है एवं हम इस संसार में स्थित हैं तो इस प्रकार के प्रश्नों से कोई लाभ नहीं होगा और ना ही इससे कुछ बदलेगा हालांकि मनुष्य प्राकृतिक रूप से उत्सुक होता है उसे सब कुछ जानना होता है पर इस स्थिति में जबकि हमारी सृष्टि हो चुकी हमारे लिये अच्छा यह होगा कि हम यह जानने का प्रयत्न करें कि अल्लाह सुब्हानहु तआला ने इस सम्पूर्ण जगत का निर्माण क्यूँ किया ? सूचि यदि हम अपनी बुद्धि एवं तर्क का उपयोग करें तो विश्व ब्रह्मांड का अस्तित्व ही असंभव होगा अल्लाह सुब्हानहु तआला खूंन का प्यासा नहीं है अल्लाह सुब्हानहु तआला की चेतावनी सच्ची(निष्पक्ष) परीक्षा अल्लाह सुब्हानहु तआला की दया अल्लाह सुब्हानहु तआला की क्षमा निष्कर्ष और देखिये सन्दर्भ यदि हम अपनी बुद्धि एवं तर्क का उपयोग करें तो विश्व ब्रह्मांड का अस्तित्व ही असंभव होगा यहाँ आलोच्य विषय यह है कि जब मनुष्य की एक बड़ी संख्या नरक में जा रही है तो मनुष्य का निर्माण ही नहीं करना चाहिये था तथा यदि कोई इसविषय को और खींचना चाहें तो यह भी पूंछ सकता है कि अल्लाह सुब्हानहु तआला ने इन जानवरों को भी क्यूँ पैदा किया जब कि वह जानता था कि एक जानवर दूसरे जानवर को अवश्य खाएगा इस प्रकार वह एक दुजे को पीड़ित करेगें, उदाहरण के तौर पर हिरण को बाघ एवं शेर खा जाते हैं, चूहे को सांप और बिल्लियां खा लेती हैं जब कि कीड़े और मछलियों को पक्षि खा जाते हैं तथा इसी प्रकार गाय और बकरियां पौधों को अपना भोजन बनाती हैं, इस प्रकार सोचे तो आपके तर्क कायही अर्थ होगा कि इस पृथ्वी में किसी भी प्राणी जीव जंतु या पौधे को नहीं होना चाहिये था एवं ना ही उनको इस प्रकार बनाना चाहिये था कि वे अपने भोजन के लिए एक दूसरे पर निर्भर हो एवं एक दूसरे को मार के ही अपना भोजन प्राप्त करते हो अब अगर हम यहाँ इस तर्क को सच माने को तो यह प्रशन उठेगा कि यदि इस पृथ्वी में कोई प्राणी जीव जंतु ना हों तो इस विशाल ब्रह्मांड के निर्माण का उपदेश ही क्या है ? अल्लाह सुब्हानहु तआला खूंन का प्यासा नहीं है अभी हम ने देखा कि कुछ लोग अल्लाह सुब्हानहु तआला के सम्बंधित क्या धारणा रखते हैं जबकि अल्लाह सुब्हानहु तआला खूंन का प्यासा नहीं एवं ना ही वे लोगों को नरक में दंडित करने की इच्छा रखता है परंतु इसबातको समझने के लिये हमें सबसे पहले यह समझना होगा कि वह कौनसे लोग है जो नरक में जाएगे, अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं "इसमें केवल अभागा प्रविष्टि करे गें"(सूरा लैल:१५), इस विषय मेंहदीस है कि अबु हुरैराह रज़ियल्लाहु अन्हु(अल्लाह इन से प्रसन्न हो) सूचित करते हैं कि मुहमम्द सललेल्लाहु अलैही वसल्लम(इनपर अल्लाह की रहमत ओर सलामती हो) ने कहा कि ""मेरे सभी अनुयायि स्वर्ग में प्रवेश करेंगे सिवाए उनके जो इनकार करेगें, लोगों ने पूछा अए अल्लाह के रसूल! वह कौन लोक हैं जो इनकार करेगें तो मुहमम्द सललेल्लाहु अलैही वसल्लम ने कहा "जो कोई मेरी आज्ञापालन करेगा स्वर्ग में जाएगा तथा जो कोई मेरी आज्ञा का उल्लंघन करेगें तो यही इनकार करने वाले हैं" (सही बुख़ारी :९ /३८४ ) , ऊपर बताई गई आयत एवं हदीस से स्पष्ट रूप से पता चलता है कि कोई भी व्यक्ति स्वयं अपनी इच्छा से ही नरक में जाएगा, यदि आप क़ुरआन पढ़ते हो तो देखोगे कि ऐसी बहुत सारी आयतें हैं जिसमें बताया गया कि इनकार करने वाले अपने पापों पर पछताते हैं तथा वहा कोई ऐसा नहीं होगा जो कहेगा कि मेरे साथ अन्याय हुआ है क्यूंकि वे सब जानते हैं कि उन्हें उन्हीं के कर्मों का दंड मिलरहा हैं नीचे ऐसी ही कुछ आयतें बताई जारही हैं, (१). उस दिन उनके चहरे आग में उलट पलट किये जाएगें कहें गें काश हम अल्लाह सुब्हानहु एवं उसके रसूल की आज्ञाकारिता करते और कहे गें अए हमारे रब(lord) हमने अपने सरदारों एवं बड़ों की बात मानी जिन्हूं ने हमें सीधे मार्ग से भटका दिया, अए हमारे रब(lord) उन्हें दोहरी यातना दे एवं एक विशाल अभिशाप के साथ उन्हें शाप दे" (अल अहज़ाब :६६-६८) (२).“ और अपने रब(Lord)को नकारने वालों के लिये नरक की यातना है एवं वह बहुत ही बुरा ठिकाना है, एवं जब वे इसेमें डाले जाएगें है तो उसकी बड़ी ज़ोर की(भयानक) आवाज़ सुने गें एवं वह खौल रही होगीऐसा प्रतीत होगा कि क्रोध के कारण फट जाएगी, जब कभी उसमें कोई समूह डाला जायगा उससे नरक के दारोग़ा पूछें गें क्या तुम्हारे पास कोई डराने वाला नहीं आया था, वह कहेगें कि निसंदेह आया था परंतु हमने उसे झुटला दिया एवं हमने कहा कि अल्लाह सुब्हानहु ने कुछ भी नहीं उतारा बल्कि तुम बहुत बड़ी गुमराही(mislead) में हो, और कहेगें कि यदि हम सुनते होते या बुद्धि रखते होते तो नरक वालों के संगी ना होते, तो उनहूँ ने अपने पापों को स्वीकार कर लिया- अब ये नरक वाले दफ़ा हो(दूर हों)" (सूरा मुल्क :६-११), इन आयतों से से स्पष्ट रूप से पता चलता है कि नरक वाले अपने पापों को स्वीकार कर पछताते हैं क्यूंकि वे जानते हैं कि उनके पाप ही उनके नरक में जाने का कारण बने एवं उनके पाप ही उन्हें नरक में घसीट लाए, अल्लाह सुब्हानहु तआला से प्रार्थना है कि वह हमें नरक की जला देने वाली दर्दनाक आग से बचाए एवं स्वर्ग की कभी ना समाप्त होने वाली संतुष्टि प्रदान करे, (आमीन या रब्बुल आलमीन) अल्लाह सुब्हानहु तआला की चेतावनी अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं " जिस दिन प्रत्येक व्यक्ति अपनी की हुई भलाई एवं अपनी की हुई बुराई को मौजूद पाएगा, कामना करेगा कि काश उसके एवं उसकी बुराईयों के बीच बहुत दूरी होती-अल्लाह सुब्हानहु तुम्हें अपने आप से डरा रहा है एवं अल्लाह सुब्हानहु तआला अपने बन्दों(भक्तों) पर बड़ा ही कृपाशील है" (अल इमरान :३०), ऊपर बताई गई आयत में अल्लाह सुब्हानहु तआला विश्व संसार के प्रत्येक व्यक्ति को स्पष्ट चेतावनी देरहे हैं कि हर प्रकार की बुराई एवं पाप से दूर रहो तो जो कोई बुराई करता है वह इस चेतावनी के विरुद्ध जाता हैतो उसे सम्झ जाना चाहिये कि उसका परिणाम बहुत बुरा एवं भयानक होसकता है । सच्ची(निष्पक्ष) परीक्षा : अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं (१)." निसंदेह अल्लाह सुब्हानहु तआला एक रत्ती-भर भी ज़ुल्म(अन्याय) नहीं करता एवं यदि नेकी हो तो उसे दुगनी कर देता है एवं अपनी ओर से विशेषत पुण्य भी देता है "(सूरा निसा :४०) (२).एवं नामाए-आमाल(कर्मपत्रिका) सामने रख दिया जाएगा तो तू देखेगा कि अपराधी उसकी लिखत से बहुत डर रहे होगे एवं कह रहे होगें हाय हमारा दुर्भाग्य यह कैसी किताब है जिसने कोई छोटा ना बड़ा (पाप)छोड़ा होगा बल्कि इसने सबको घेर रखा है एवं जो कुछ उनहूं ने किया था सब मौजूद पाएगें एवं तुम्हारा रब किसी पर ज़ुल्म(अन्याय) ना करेगा" (सूरा कहफ़ :४९), (३). जो कोई सीधा मार्ग अपनाता है तो वह स्वयं अपने भले के लिये ही सीधा मार्ग अपनाता है एवं जो भटक जाए उसका बोझ उसी के ऊपर है, कोई बोझ वाला किसी और का बोझ अपने ऊपर नहीं लादे गा एवं हम लोगों को यातना नहीं देते जब तक कोई रसूल ना भेज दें" (सूरा इसरा :१५) इन आयतों से से स्पष्ट रूप से पता चलता है कि अल्लाह सुब्हानहु तआला किसी के साथ कोई अन्याय नहीं करता बल्कि लोग तो केवल अपने कर्मों का फल पाते हैं। (५).अल्लाह सुब्हानहु तआला की दया: अल्लाह सुब्हानहु तआला तो अत्यंत दयावान है और वह नहीं चाहता कि हम नरक में जाए इसीलिये वह अपनी कृपा को बढ़ाता जाता है, हमारे अच्छे कर्मों का दुगना पुण्य देता है एवं हमारे पापों को अनगिनत बार क्षमा भी कर देता है जैसे अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं " निसंदेह अल्लाह सुब्हानहु तआला एक रत्ती-भर भी ज़ुल्म(अन्याय) नहीं करता एवं यदि पुण्य हो तो उसे दुगना कर देता है एवं अपनी ओर से विशेषत पुण्य भी देता है "(सूरा निसा :४०) और कहते हैं "तथा जो कोई अल्लाह सुब्हानहु के हाँ एक पुण्य लेके आएगा उसको वैसी ही १० पुण्यफ़ल मिले गें तथा जो बुराई(पाप) लाएगा उसको वैसे ही (उसके पाप अनुसार) दंड मिलेगा एवं उनके साथ कोई अन्याय ना होगा" (अल अनआम : १६०), हदीस: मुहम्मद सललेल्लाहु अलैही वसल्लम कहते हैं: " जो व्यक्ति किसी पुण्य के काम करने का मनोरथ(इरादा) करे तथा उसे ना कर पाए तब भी अल्लाह सुब्हानहु तआला उसके लिये अपने हां एक पुण्य लिख देता है एवं यदि वह मनोरथ(इरादा) करेने के बाद वह पुण्य का काम करले तो अल्लाह सुब्हानहु तआला उसके लिये अपने हां उस एक पुण्य का १० गुना(times) से ७०० गुना बल्कि उससे भी अधिक पुण्य लिख देता है और जो व्यक्ति किसी पाप के काम करने का मनोरथ(इरादा) करे तथा उसे ना कर पाए तो अल्लाह सुब्हानहु तआला उसके लिये अपने हां एक पुण्य लिख देता है एवं यदि वह मनोरथ(इरादा) करेने के बाद वह पाप करले तो उसके बदले केवल एक पाप लिखा जाता है" (सही बुख़ारी : ६४९१, सही मुस्लिम : १२८ ,१२९ ,१३०) ऊपर बताई गई आयतों एवं हदीसे से हम सम्झ सकते हैं कि अल्लाह सुब्हानहु तआला हमारे छोटे छोटे पुण्य के कारण भी हम पर दया करना चाहता है एवं चाहता है कि हम अधिक पुण्य कमा कर नरक से बच जाए - (१). यदि कोई व्यक्ति एक अच्छा काम करता है तो उसका परीणाम 10-700गुना एवं उससे भी अधिक बढ़ जाता है (अल्लाह सुब्हानहु ही उसकी अधिक सीमा जानता है)। (२). यदि कोई व्यक्ति एक अच्छा काम करने का मनोरथ(इरादा) करे तथा उसे ना कर पाए तब भी अल्लाह सुब्हानहु तआला उसके लिये अपने हां एक पुण्य लिख देता है। (३). यदि कोई व्यक्ति किसी पाप के काम करने का मनोरथ(इरादा) करे तथा उसे ना कर पाए तो अल्लाह सुब्हानहु तआला उसके लिये अपने यहाँ एक पुण्य लिख देता है। (४). यदि कोई व्यक्ति किसी पाप के काम करने का मनोरथ(इरादा) करे तथा उसे कर लेता हो तो अल्लाह सुब्हानहु तआला उसके लिये अपने हां केवल एक पाप लिखता है। यहाँ विचारजनक विषय यह है कि क्यूँ अल्लाह सुब्हानहु तआला हमारे पुण्य के कार्यों को असीमित रूप से दुगना कर देता है एवं जब हम कोई पुण्य करते ही नहीं तब भी हमारे लिये पुण्य लिख देता जबकि पाप के विषय में ऐसा नहीं करता एक बुरा कार्य करने पर केवल एक ही पाप लिखता है इससे पता चलता है कि अल्लाह सुब्हानहु तआला अत्यंत दयालु है वह हमें नरक में नहीं डालना चाहता वह तो हमें स्वर्ग में आनंदित देखना चाहता है निसंदेह अल्लाह सुब्हानहु तआला की दया की कोई सीमा नहीं है। अल्लाह सुब्हानहु तआला की क्षमा इन सब के पश्चात हम मनुष्य होने के कारण कई पाप कर जाते हैं, अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं: (१)."(मेरी ओर से) अए मेरे बन्दों(भक्तों) जिन्हूं ने अपनी जनों पर अतिचार किया है तुम अल्लाह सुब्हानहु की कृपा(रहमत) से निराशा ना हो निसंदेह अल्लाह सुब्हानहु तआला सारे पापों की क्षमा करने वाला है, निश्चयी वह बड़ी क्षमा करने वाला एवं अत्यंत दयावान है "(सूरा ज़ुमर ;५३), (२)."जो कोई व्येक्ति कोई बुराई करे या अपनी जान पर ज़ुल्म(अन्याय) करे फ़िर अल्लाह सुब्हानहु से क्षमा चाहे तो वह अल्लाह सुब्हानहु तआला को क्षमा करने वाला एवं अत्यंत दयावान पाएगा" (निसा :११०), (३).एवं मैं ने कहा कि अपने रब से अपने पाप क्षमा करवाओ(क्षमा मांगो) वह निसंदेह बड़ा क्षमाशील है" ( सूरा नूह :१०) ऊपर बताई गई आयतों से एक निष्पक्ष मन को स्पष्ट रूप से चल जाएगा कि कैसे अल्लाह अल्लाह सुब्हानहु तआला उसकी असीम दया को बढ़ाता जाता है उसकी असीमित क्षमा के माध्यम से, इन सब के पश्चात भी यदि मनुष्य अपने आप को नरक से ना बचा पाए तो अब हम जान सकते हैं कि दोष किसका है यह मनुष्य का दोष है या अल्लाह सुब्हानहु तआला का। निष्कर्ष यदि हम ऊपर बताई गई सारी बातों को पढ़े तो सम्झ सकते हैं कि : (१). अल्लाह सुब्हानहु तआला ने हमें पहले ही बता दिया कि दुष्कर्मों का क्या परिणाम होता है एवं स्पष्ट रूप से चेतावनी भी दी। (२). अल्लाह सुब्हानहु तआला अपनी असीम दया को बढ़ाता जाता है, हमारे पुण्य को दुगना करके एवं हमारे पापों को क्षमा करके, अपनी असीमित क्षमा एवं दयालुता के माध्यम से। (३). हमारी परीक्षण बहुत ही उचित है अल्लाह सुब्हानहु हमें हमारे कर्मों का परिणाम बिना किसी अन्याय के देता है। (४). लोक स्वयं अपनी इच्छा से ही नरक में जाते हैं इसमें अल्लाह सुब्हानहु तआला का कोई दोष नहीं (६). नरक में जाने वाले लोक ना केवल अपने पापों को स्वीकार करेंगे बल्कि उसपर बहुत पछताएगे। चले एक बार अल्लाह सुब्हानहु की इस आयत को चेतावनी के रूप में पढ़े, अल्लाह सुब्हानहु कहते हैं "मैं ने तो केवल तुम्हें भड़कती हुई आग से डराया है, इसमें केवल अभागा प्रविष्टि करे गें" (सूरा लैल:१४ -१५), इसके सिवा एक बात यह भी है कि हम केवल निराशावादी क्यूँ हो जाते हैं ? हम केवल नरक आग के बारे में ही क्यूँ सोच रहे हैं? स्वर्ग के बारे में क्यूँ नहीं सोचते? क्यूँ ना हम स्वर्ग को पाने एवं अल्लाह सुब्हानहु तआला को प्रसन्न करने का प्रयास करें ? यह सर्वविदित है कि जब एक व्यक्ति अल्लाह सुब्हानहु तआला को प्रसन्न करने का प्रयत्न करे एवं उसके आदर्शों का पालण करे तो अल्लाह सुब्हानहु तो क्षमा को पसंद करता है एवं हमें सदैव क्षमा करना चाहता है परंतु कया हम अल्लाह सुब्हानहु से क्षमा मांगना चाहते हैं यदि हाँ तो अभी अपने पापों की क्षमा मांगे क्यूंकि सम्य किसी के लिये नहीं ठहरता। अंत में अल्लाह सुब्हानहु तआला से से प्रार्थना है कि अल्लाह सुब्हानहु हमारे पापों को क्षमा करते हुए हमें सीधे मार्ग पर चलाए । (आमीन या रब्बुल आलमीन) और देखये अल्लाह पर ईमान, तौहीद, शिर्क, अल्लाह के अधिकार, सुन्नत, बिदअत और अन्य

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