यज़ीदी कौन

            यज़ीदी कौन ?

तहरीर जरा लंबी है लेकिन पूरी पढ़ लीजिए यह दरअस्ल (असल में) अमीर-ए-शरी'अत के फ़रज़ंद मौलाना अताउल्लाह मोहसिन शाह बुखारी का ख़िताब है यह तहरीर (लेख) पढ़ें क्या जान-दार और शानदार ख़िताब था !
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    -------- यज़ीदी कौन ? --------
दलील के साथ इख़्तिलाफ़ (मतभेद) करेंगे ?

ख़िताब: इब्न अमीर-ए-शरी'अत सय्यद अताउल्लाह मोहसिन शाह बुखारी,
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सय्यदना हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु के हादिसा-ए-शहादत के ज़िम्न (अंतर्गत) में हमारे मौक़िफ़ (दृष्टि) के मुत'अल्लिक़ (बारे में) यह मशहूर (प्रसिद्ध) किया जाता है कि यह तो यज़ीदी है हत्ता कि पाकिस्तान के एक बड़े ग्रांडील मौलवी ने हमें यज़ीदी लिख भी दिया किसी के लिखने से क्या होता है ?
भाई ! यज़ीदी तो दरअस्ल (अस्ल में) वो है जिसने यज़ीद की बै'अत की और बै'अत की सय्यदना हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु के भाई (मोहम्मद बिन अली अल-मा'रूफ़ मोहम्मद बिन हनफ़िय्या) ने यह हवाला (reference) मज़बूत सनद (दलील) के साथ तारीख़ में मौजूद है और इस मौलवी को 'अमदन (जान बूझ कर) नज़र नहीं आता जो हमें ब-तौर गाली यज़ीदी कहता जाता है,
'अहद-ए-यज़ीद के जिन मा'रूफ़ सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुमा ने बग़ैर (बिना) जब्र-ओ-इकराह (ज़बरदस्ती) यज़ीद की बै'अत की उन में जनाब सय्यदना अब्दुल्लाह इब्न उमर रज़ियल्लाहु अन्हु, जनाब सय्यदना अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु और सय्यदना नोमान बिन बशीर रज़ियल्लाहु अन्हुमा शामिल हैं यज़ीदी यह हुए कि (बल्कि) मैं ? हम ने न तो यज़ीद की बै'अत की न उस का ज़माना पाया न उस के आ'माल देखे, न उस के अहवाल (हालात) देखे, हम ने तो तारीख़ लिखी हुई एक बात सुनाई और जाहिल मौलवियों के मुंह खुल गए कि साहब यह यज़ीदी है, यह यज़ीदी है अब हमें बताओ कि यज़ीद की बै'अत हम ने की कि (या) अब्दुल्लाह इब्न उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने ?
अब्दुल्लाह इब्न अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु ने ?
सय्यदना हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु के भाईयों ने ? हज़रत 'अक़ील रज़ियल्लाहु अन्हु के बेटों ने ?
हज़रत जा'फ़र तय्यार रज़ियल्लाहु अन्हु के बेटे ने ? सय्यदना हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु के बहनोई ने ?
हमारा क्या क़ुसूर है ? यह बताना जुर्म है तो यह जुर्म हम करते रहेंगे,
और न ही ऐसा जुर्म है कि इस के बताने से हम रुक जाए रुक नहीं सकते यह क़ाफ़िला बढ़ेगा बहुत दूर-तक जाएगा और यह तुम्हारा दाम-ए-तज़वीर (मक्र-ओ-फ़रेब) और यह लखनऊ, मुल्तान के बद-म'आशों की बदम'आशियां हम ख़त्म कर के दम लेंगे 
इंशा-अल्लाह !

हमारे बुज़ुर्गों ने हमें इसी रास्ते पर चलाया है सहीह रास्ते पर चलाया है इस्तेक़ामत (मज़बूती) 'अता फ़रमाईं है तुम्हारे जब्र-ओ-तशद्दुद (ज़ुल्म) का हमें कोई डर है न तुम्हारे पैसों की कोई लालच है हमारा कोई त'अल्लुक़ (सम्बन्ध) नहीं है इस से,
इस बात से त'अल्लुक़ है कि बात कब पहुंची है ? किस को पहुंची है ?
किस तरह पहुंची है ? कौन पहुंचाता है ? किस तरह पहुंचाता है ? तुम हमें यज़ीदी कहो यहां हमारे सामने आ के कहो हम तुम्हें बताएंगे यज़ीदी कौन है ? सय्यदना हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु ने सफ़र-ए-कर्बला में सात मर्तबा कहा कि मैं यज़ीद के हाथ पर हाथ रखता हूं मेरा रास्ता ख़ाली करो मैं जाता हूं बताओ यज़ीदी कौन हुआ ?
तुम ने कहा propaganda किया गया कि इस्लाम डूबा जा रहा था हुज़ूर ﷺ की सुन्नते मिटती जा रही थी, दीन मिटा जा रहा था, लोग बद-म'आश हो गए थे हुक्मरानों ने ईरानियों जैसा काम शुरू' कर रखा था कहा है यह और किस मो'तबर (भरोसे-मंद) रिवायत में है ?

तुम्हारी इस गुफ़्तुगू के जवाब में सय्यदना हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु के भाई सय्यदना मोहम्मद बिन अली रज़ियल्लाहु अन्हु की बात वज़्नी है अकेला आदमी तुम्हारी उम्मत ख़बीसा के मुक़ाबले में काफ़ी है तुम्हारे लिए तो आसान है सब का इंकार करना सब को यज़ीदी कह देना उन को भी कहो वो फ़रमाते हैं:
اقمت عندہ خمس سنوات
मैं यज़ीद के पास पांच बरस रहा हूं 
و جدتہ مواظبا علی الصلواۃ
मैं ने इस को नमाज़ों का पाबंद पाया
قائما بالسنۃ
सुन्नत को क़ाएम करने वाला पाया
عالما بالفقہ
मैं ने इस को फ़क़ीह पाया !
यह 'इबारत (लेख) " अल-बिदाया वल-निहाया " में मौजूद है इस को पढ़ो बार-बार पढ़ो ताकि (इसलिए कि) तुम्हारा ईमान दुरुस्त हो तुम्हारे मग़ाज़ी दुरुस्त हो और तुम्हारी ज़बान दुरुस्त हो जो बिगड़ चुकी है ज़बान बिगड़ी तो बिगड़ी थी ख़ैर लीजिए धुन बिगड़ा !

अपना क़िबला दुरुस्त करो और मोहम्मद बिन अली रज़ियल्लाहु अन्हु की बात पढ़ो यह जितने "मौलवी" है चकवाल के अछरे के रावलपिंडी के मुल्तान के कराची के इधर उधर के यह जितने घुमने वाले लट्टू है उन को रस्सी बांधो फिर चलाओ उन को देखो सहीह चले यह बात तारीख़ की है 'अक़ीदा की नहीं वाक़ि'आ हुआ है तारीख़ का तुम ने इस को 'अक़ीदा में शामिल कर लिया है फिर इस की हिमायत में
दूर-अज़्कार (बेबुनियाद) कहानियां कहा से खींच लाते हो हम नहीं सुनना चाहते न मानना चाहते हैं एक लम्हे के लिए भी नहीं !

जनाब मोहम्मद बिन हनफ़िय्या के मुत'अल्लिक़ (बारे में) जनाब सय्यदना अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने हसन व हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हुमा को वसिय्यत की थी कि उन का ध्यान रखना यह भी इसी अल-बिदाया वल-निहाया में है और यह भी अल-बिदाया वल-निहाया में है कि यज़ीद ने हज़रत अबू अय्यूब अंसारी रज़ियल्लाहु अन्हु का जनाज़ा पढ़ाया 
हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया अपनी ऊँटनी के मुत'अल्लिक़ (बारे में)
"ھی ما مورۃ "  
यह मेरी ऊंटनी अल्लाह की तरफ़ से मामूर है 
इस को छोड़ दो जहां अल्लाह का हुक्म होगा वहां यह बैठेगी और यह जनाब सय्यदना अबू अय्यूब अंसारी मेज़बान रसूल रज़ियल्लाहु अन्हु के मकान पर बैठी 
हज़रत अबू अय्यूब अंसारी रज़ियल्लाहु अन्हु क़ुस्तुंतुनिया पर हमले के ग़ज़्वा (लड़ाई) में गए बीमार पड़ गए और मौत ने आ लिया उन्होंने वसिय्यत की के यज़ीद मेरा जनाज़ा पढ़ाए यह मैं ने तो वसिय्यत नहीं की यह " मौलवी साहिबान " को दिखाई नहीं देता और यह भी इसी अल-बिदाया वल-निहाया में लिखा है कि जनाब सय्यदना हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु यज़ीदी फ़ौज में थे क़ुस्तुंतुनिया पर हमले के वक़्त देखो पढ़ो हम भी पढ़ते हैं तुम भी पढ़ो या हम से पढ़ो हम से सिखों यह 'अक़्ल का दौर है शु'ऊर (होशियारी) का दौर है शु'ऊर को जगाना हमारा काम है हम शु'ऊर ('अक़्ल) को ज़िंदा करेंगे हम तुम्हें बताएंगे कि तारीख़ में क्या लिखा है तुम्हारी झूठी तद्लीस ('ऐब) पारा-पारा (चाक-चाक) करेंगे !

सय्यदना हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु ने कर्बला में 9 तारीख़ को आख़िरी मर्तबा यह बात कही मैं सीधा शाम (सीरिया) जाता हूं यज़ीद से गुफ़्तुगू (बात-चीत) करता हूं:
’’ان اضع یدی علی ید یزید فھو ابی عمی‘‘
मैं अपना हाथ यज़ीद के हाथ पर रखता हूं वो मेरे चचा का बेटा है,
यह मैं ने तो नहीं कहा मैं ने तो बताया है बताने और कहने में बड़ा फ़र्क़ है तुम छुपाते हो मैं बताता हूं बस इतना फ़र्क़ है शीओं के गुरू साजिद नक़वी का चचा गुलाब शाह बैठा है उस गुलाब देवी हस्पताल के इंचार्ज के पास जाओ उस से पूछो कि यह तारीख़ में है या नहीं तुम इस का इंकार कर सकते हो ?
तुम नाम-निहाद (नक़ली) अहल-ए-हक़ बनते हो
हक़ उलाट (उल्टा) करा चुके हो अपने नाम ? 
तुम्हें डंके की चोट कहता हूं छुप के नहीं कहता तारीख़ में लिखा है और शी'आ सुन्नी सब किताबों में लिखा है क़बरों को झप्पियां डालने वाले और घोड़े के नीचे से गुज़रने वाले
" मौलवी " और उन के " हवारी "
(मदद-गार) सामने आए और जुरअत (हिम्मत) से बात करे वो अपने गले की ग़रारियां घुमाएं और बताएं कि यह वाक़ि'आ तारीख़ में है कि नहीं और जनाब दिल पे हाथ रख कर सुनिए, जनाब अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने सय्यदना अब्दुल्लाह इब्न ज़ुबैर रज़ियल्लाहु अन्हु को और हज़रत हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु को फ़रमाया:
" قال اتقیا اللہ"
" दोनों अल्लाह से डरो "
 "ولا تفرقا بین جماعۃ المسلمین" 
" और मुसलमानों की जमा'अत में फूट मत डालो " 
"اتقیا" 
तस्निया के सीग़ा के साथ  
"اتقیا اللہ" दोनों अल्लाह से डरो
 " ولا تفرقا "
" मत फूट डालो "
 "بین جماعۃ المسلمین"
" मुसलमानों की जमा'अत में "
यह किस ने कहा ?
अब्दुल्लाह इब्न उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने किस को कहा ? 
अब्दुल्लाह इब्न ज़ुबैर रज़ियल्लाहु अन्हु को और हुसैन बिन अली रज़ियल्लाहु अन्हु को यह बात उमर रज़ियल्लाहु अन्हु का बेटा ही कह सकता है यह उन्हीं की जुरअत बसालत (बहादुरी) है,
मैं तो तीनों का ग़ुलाम हूं मैं तो उन की बारगाह (दरबार) का कफ़्श-बरदार (जूते उठाने वाला) हूं मेरी तो कोई हैसियत नहीं हैसियत तो है अब्दुल्लाह इब्न उमर रज़ियल्लाहु अन्हु की जिन को शैख़-उल-सहाबा और फ़क़ीह-उल-सहाबा कहा गया 
जनाब सय्यदना हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु को उम्मत ने ए'ज़ाज़ा सहाबी माना है सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुमा के दर्जात में आप का वो मक़ाम (स्थान) नहीं है जो सय्यदना अब्दुल्लाह इब्न उमर रज़ियल्लाहु अन्हु का है हिम्मत है तो सय्यदना अब्दुल्लाह इब्न उमर को गाली दो क्यूंकि बड़े यज़ीदी तो वहीं है
और बा'द में हमें भी दे लो मंज़ूर है !

मेरे अब्बा को तो इन मुल्तानियों ने 1933, 'ईस्वी-साल में गालियां दी 1933, 'ईस्वी में झांग वालों ने गालियों का मुरक़्क़ा' (तस्वीर) शाए' (प्रकाशित) किया जुर्म क्या था कि उन वाक़ि'आत को तश्त-अज़-बाम (ज़ाहिर) किया हक़ाइक़ (सच्चाई) खोले तुम्हारी राम लीला की दास्तानें जो तुम ने घड़ रखी है उन को नंगा किया उन के तार-ओ-पूद (ताना-बाना) बिखेरें उन को बेख़ (जड़) से उखाड़ फेंका
कर्बला के झूठ का पोल खोल दिया मुझे अच्छी तरह याद है कि जब 1962, 'ईसवी में हम ने मुल्तान में यौम-ए-मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु मनाया तो एक पुराना फटा हुआ ता'ज़िये का ग़ोल (गिरोह) जा रहा था कहने लगा ओ ल'ईन (मल'ऊन) का लड़का ल'ईन जा रहा है हम ने सुना
अब भी कहो सुनेंगे लेकिन यह बताएंगे कि अब्दुल्लाह इब्न उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने यह कहा उन्होंने यज़ीद की बै'अत की मोहम्मद बिन अली रज़ियल्लाहु अन्हु अल-मा'रूफ़ मोहम्मद बिन हनफ़िय्या ने बै'अत की नोमान इब्न बशीर रज़ियल्लाहु अन्हु ने बै'अत की बै'अत करना अगर जुर्म नहीं है तो बताना कैसे जुर्म है ?
तुम में अगर हिम्मत है तो सय्यदना अब्दुल्लाह इब्न उमर रज़ियल्लाहु अन्हु को कुछ कह कर देखो फिर देखो तुम्हारा हश्र (परिणाम) क्या होता है अब्दुल्लाह इब्न अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु को जो सय्यदना हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु के चचा जान है जनाब सय्यदना 'अली उल मुर्तज़ा रज़ियल्लाहु अन्हु के चचा के बेटे हैं रास-उल-मुफ़स्सिरीन है यह मक़ाम है उन का बहुत बड़े आदमी हैं सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुमा में उन्हें बुरा कहो तुम नाम-निहाद देवबंदी अस्लाफ़ ए देवबंद के ताजिर (सौदागर) ख़ुसूसन (ख़ास-कर) मेरे मुख़ातिब हो फिर देखो ला'नत तुम पर छाजों (कसरत से) बरस्ती है कि नहीं ?
फिर कहता हूं जनाब मैं ने बै'अत नहीं की मैं ने यज़ीद का ज़माना नहीं पाया मेरा वो दोस्त नहीं था मैं उसके पास नहीं रहा न उस से मुझे पैसे मिलते थे न ज़मीनें मिली ज़मीन सय्यदना ज़ैन-उल-'आबिदीन को मिली सरमाया (संपत्ति) उन्हें मिला चालीस दिन यज़ीद के घर में वो रहे और क्या तुम बता सकते हो कि जनाब सय्यदा ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा का इंतिक़ाल (मृत्यु) कहा हुआ ?
बता सकते हो ?
क्या मदीना में ?
(एक आवाज़ दमिश्क़ में) क्यूं ?
क्या करने गई थी वहां ?
तुम तो कहते हो जनाब एक ख़बीस उठा और कहने लगा यह ज़ैनब मुझे दे दो यह माल-ए-ग़नीमत है 
 " استغفراللہ ربی من کل ذنب و اتوب الیہ "
" मैं अल्लाह से अपने तमाम गुनाहों की बख़्शिश माँगता हूं जो मेरा रब है और उसी की तरफ़ रुजू' करता हूं " 
तुम्हें यह कहते हुए बयान करते हुए शर्म नहीं आती ?
नहीं हुआ ऐसे किसी ने कुछ नहीं कहा कोई दरबार नहीं था
मस्जिद में बैठे हुए थे अगर मैं ग़लत कहता हूं तो दलील के साथ मेरी जहालत दूर करो नक़्शे में वो जगह बताओ जहां अमवियो का दरबार था वर्ना मैं बताता हूं कि वो इसी मस्जिद में बैठे थे जनाब सय्यदना मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु भी और यह बेचारा यज़ीद भी एक मक़्सूरा अब्बा-जान ने बनवाया एक मक़्सूरा इस ने बनवाया अपनी हिफ़ाज़त के लिए दोनों मक़्सूरे आज तक मौजूद हैं आज तक तुम्हारी तारीख़ (इतिहास) का और तुम्हारे क़िस्से कहानियों का मुँह चिड़ा रहे हैं और तुम्हारे मुंह पर थप्पड़ मार रहे हैं जिस वाक़ि'आ हर्रा को यह जाहिल मौलवी और तारीख़ (इतिहास) जानिब-दार (हिमायती) और नाम-निहाद (नक़ली) तालिब-ए-'इल्म (student) कहते हैं कि जनाब हर्रा हुआ तीन दिन तक मदीने को हलाल किया गया यह हुआ और वो हुआ कहते होना सुनो
उन्हें अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने:
"جمع بناہ"
अपने बेटों को जम' (इकट्ठा) किया
"و جماعات من اھل بیت النبوۃ" 
और अहल-ए-बैत नुबुव्वत में से जमा'अतों को जम' (इकट्ठा) किया 
एक को नहीं दो को नहीं जमा'अत को जम' (इकट्ठा) किया और कहा ख़बर-दार (होशियार) तुम में से किसी ने यज़ीद की बै'अत तोड़ी तो मेरा उस के साथ यह आख़िरी दिन होगा
जनाब मैं सच बोलता हूं और सच बताता हूं इस लिए कि मैं घोड़े के नीचे से नहीं गुज़रा ऊपर बैठा हूं मैं ने चालीस मील घोड़े पर एक दिन में सफ़र किया है
अलहमदुलिल्लाह! मैं घोड़े का सवार हूं मोहताज नहीं हूं घोड़ा मेरा मोहताज है मेरे हाथों में थामी हुई लग़ाम का मोहताज है मेरी रिकाब (रकाब) मोहताज है !

यह भी इब्न कसीर की अल बिदाया में मौजूद है कि सय्यदना हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु के साथ धोका हुआ वो धोखा खा गए पैंतीस (thirty-five) सहाबा ने आप से कहा कि मत जाएँ इस सफ़र को मुल्तवी (स्थगित) कर दे राफ़िज़ीयो की किताब में मौजूद हैं कि
 "عبداللہ ابن عمر بزمام ناقہ اش جسپید "
" कि अब्दुल्लाह इब्न उमर सय्यदना हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु की ऊंटनी की लगाम से लिपट गए "
(कर्बला में सय्यदना हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु घोड़े पर नहीं ऊंटनी पर सवार थे) और लिपट के कहा जान-ए-बिरादर (प्यारे भाई) देखो तुम्हारे बाप के साथ उनके शी'ओं ने क्या किया तुम्हारे भाई के साथ क्या किया और मैं तुम्हें ख़ून में लत-पत देख रहा हूं तुम मत जाओ अगर जाना ही है तो बच्चों को, बीवी को, बहनों को मत ले जाओ अब आप बताएं कि सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुमा ग़लत थे ?
हिम्मत है तो करो जुरअत सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुमा को ग़लत कहो तो
जरा मुझे गालियां देने से पहले सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुमा को देख लो मैं ने कोई नया मस्लक और नज़रिया ईजाद नहीं किया 
मैं तो सहाबा किराम के नक़्श-ए-क़दम पर चलना चाहता हूं और आप को उसी पर चलने की दा'वत देता हूं ख़ुद ही फ़ैसला कर लो कि सय्यदना हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु की राय (विचार) से इख़्तिलाफ़ (मतभेद) रखने वाले सहाबा को क्या कहोगे ?

मैं हरगिज़ यह नहीं कहता मेरा मौक़िफ़ तो यह है कि सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुमा सब के सब सच्चे और राशिद (नेक) है
उन को ग़लत और बातिल कहने वाले ख़ुद ग़लत बल्कि (किंतु) हर्फ़-ए-ग़लत है !

जनाब सय्यदना अबू सईद ख़ुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु जो सफ़-ए-अव्वल (आ'ला दर्जे) के सहाबा में से हैं वो मना' करते हैं लेकिन कूफ़ियो का धोखा जो दा'वत की सूरत में था कि जनाब हम आपके ग़ुलाम है ज़मीन सरसब्ज़ (उपजाऊ) है फल पक चुका है आप के सिवा हमारा कोई इमाम नहीं,
انت الامام
" आइए अपनी जगह तशरीफ़ रखे "
मगर सय्यदना हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु ने सय्यदना अबू सईद ख़ुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु की बात न मानी जो 'उम्र (आयु) में सय्यदना 'अली रज़ियल्लाहु अन्हु के मिस्ल (समान) थे सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुमा कहते हैं कि हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु आप के शी'आ झूठे हैं फिर हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु ने उन की बात को मान लिया ?
सय्यदना हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु ने इज्तिहाद किया और उम्मत ने उन के इज्तिहाद को तस्वीब (पुष्टि) की 
किसी को जुर्अत (हिम्मत) नहीं कि उन के इज्तिहाद (राय) पर उंगली रख सके और इसे ग़लत कहे
इसी तरह (दीगर) सहाबा के इज्तिहाद पर भी उंगली नहीं उठाई जा सकती अगर कूफ़े की तरफ़ जाना इज्तिहाद तस्लीम (स्वीकार) किया जाएगा तो वापसी की गुफ़्तुगू (बात-चीत) भी इज्तिहाद तस्लीम की जाएगी 
जैसे हम ने सय्यदना हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु को मुज्तहिद माना इसी तरह बाकी सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुमा को मुज्तहिद जाना सय्यदना हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु के मुत'अल्लिक़ (बारे में) दो रिवायते है एक रिवायत यह है कि जिन कूफ़ियो ने आप को ख़त लिखे थे उन्होंने ख़त हासिल करने के लिए ख़ैमे (तंबू) जला दिए लूट-खसूट (लूट-मार) की के यह कहीं उबैदुल्लाह के हाथ न लग जाए वो ख़ुतूत-ए-दा'वत उबैदुल्लाह के हाथ आ जाए तो उन की ख़ैर नहीं थी जो ख़ुतूत नवीस (लिखने वाले) थे दा'ई थे
एक रिवायत है कि उबैदुल्लाह इब्ने ज़ियाद ने फ़ौज का लश्कर भेजा और आप को मजबूर किया कि वो उबैदुल्लाह के हाथ पर बै'अत कर ले 
जनाब सय्यदना हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया तेरे हाथ पर यज़ीद की बै'अत नहीं हो सकती और बात में से बात आ गई कि यह जमहूरी-निज़ाम अगर सहीह है यह तरीक़ा दुरुस्त है और इस्लाम के मुताबिक़ (अनुसार) है तो फिर कर्बला का वाक़ि'आ जिस अंदाज में बयान किया जाता है वो शी'आ के नज़दीक सच्चा क्यूं ?
सुन्नियों के नज़दीक सच्चा क्यूं ?
फिर जमहूरियत (लोकतंत्र) तो सारी
म'आज़-अल्लाह यज़ीद बिन मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु के साथ थी !

सय्यदना हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु के साथ तो जमहूरियत (लोकतंत्र) नहीं थी उन के सगे भाई भी साथ नहीं थे चैलेंज (दा'वा) है मेरा उन के मुत'अल्लिक़ (बारे में) फ़तवा दो वो क्या है ?
सय्यदना हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु के चचा का बेटा साथ नहीं है सय्यदना अब्दुल्लाह इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हु सय्यदना हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु के साथ नहीं है अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु नोमान बिन बशीर रज़ियल्लाहु अन्हु अबू सईद ख़ुदरी रज़ियल्लाहु त'आला 'अलैहिम-अज्म'ईन सय्यदना हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु के साथ नहीं है
निकालो कहीं से छुपा हुआ फ़तवा मारो ख़ंजर और फ़तवा दो अगर जमहूरियत तुम्हें पसंद है तो फिर सहाबा किराम सय्यदना हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु के साथ नहीं है सारे यज़ीद के साथ है मैं तो कहता हूं हाथ भी जोड़ता हूं एक सहाबी सय्यदना हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु के साथ दिखा दो मुँह-माँगा इनाम दूंगा तलाश करो जाओ उन " मौलवी साहिबान " की ख़िदमत में और दरख़्वास्त (निवेदन) करो कही से ढूँडो तारीख़ (इतिहास) के औराक़ (पन्ने) खोलो तारीख़ की बात है ना
'अक़ीदा की बात नहीं है 'अक़ीदा तो हमारा भी है कि वो सहाबी ए रसूल हैं हमारे पेशवा (सरदार) है जैसे अबू सईद ख़ुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु सहाबी है वैसे ही सय्यदना हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु सहाबी है इन्होंने इज्तिहाद किया इन्होंने भी इज्तिहाद किया दोनों बर-हक़ दोनों बच्चे हैं दोनों सहीह है जो नहीं गए वो भी सच्चे हैं जो गए वो भी सच्चे हैं हर सहाबी मुज्तहिद-ए-मुतलक़ है और कोई ग़ैर (दूसरा) सहाबी किसी सहाबी पर तनक़ीद का हक़ नहीं रखता हमारा तो यह 'अक़ीदा है इस से आगे की बात नहीं है 
इस से आगे तारीख़ की बात है कि उन्होंने बड़े सहाबा की नसीहत न मानी और वालिद-ए-माजिद (बाप) के दोस्तों की भी एक न मानी जमहूरियत-जमहूरियत कहा है इस्लाम में जमहूरियत !

तुम कहते हो यह जिहाद था इस्लाम मिट रहा था इस्लाम को जनाब हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु ने कर्बला में ज़िंदा किया नहीं है यह बात न यह जिहाद था और न ही इस्लाम मिट रहा था यह तुम्हारी घड़ी हुई कहानियां हैं तुम्हारे घड़े हुए किस्से हैं यह बात वही है जो सय्यदना हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु ने ख़ुद फ़रमाई और वही क़ौल-ए-फ़ैसल (आख़िरी बात) है आप ने फ़रमाया है ’’ان لی بالعراق حکومۃ‘‘
" कि मुझे हुकूमत की दा'वत दी गई "
और मैं समझ रहा था कि इराकी मुझे हुकूमत देंगे लेकिन अब मेरे दोनों भाई क़त्ल हो गए मुझ पर 'अयाँ (ज़ाहिर) हो गया कि जो सहाबा किराम और मेरे साथी कहते थे वहीं मेरे साथ हुआ 
अब तुम दाएँ-बाएँ जहां चाहे चले जाओ क्यूं फ़रमाया यह ?
और यह फ़लसफ़ा (नज़रिया) जो तुम ने घड़ रखा है कि:
" इब्तिदाअन इस्मा'ईल है इंतिहा हुसैन " यह कैसे ?
मुझे पूछने का हक़ तो दो कि यह भी छीनना चाहते हो ?
सवाल यह है कि अगर इब्तिदाअन (आरंभ) इस्मा'ईल और इंतिहा (अंत) हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु है
और कर्बला का वाक़ि'आ ऐसे ही है जैसे इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने जनाब इस्मा'ईल अलैहिस्सलाम को ज़ब्ह करने के लिए लिटाया:
’’فلما اسلما و تلہ للجبین‘‘
" दोनों में बात तय हो गई और उन्होंने ज़मीन पर लिटा दिया "
फिर क्या इब्राहीम अलैहिस्सलाम को तुम में से कोई ज़ालिम कहता है ?
और इस्मा'ईल अलैहिस्सलाम को कोई मज़लूम कहता है ?
क्यूं नहीं कहते ? कहो ना!
मुझे सवाल का हक़ है और मैं ऐसा सवाल करुंगा जो तुम्हारे ख़िर्मन-ए-बातिल (झूठ के खलियान) को जला के रख दे
घोड़ा बिरादरान ’’آل الفرس ‘‘ 
तुम्हारे लिए कोई रि'आयत (मदद) नहीं कर सकता कान खोल कर सुन लो और तुम सुन्नियों में से भी जो आदमी रवाफ़िज़ के लिए नर्म-गोशा (हमदर्दी) रखता है उस को मु'आफ़ नहीं कर सकता यह दूसरे दर्जे का बे-ईमान है पहले दर्जे का नहीं
मैं बुराई को मिटा नहीं सकता लेकिन बुराई के ख़िलाफ़ ज़बान चलाता हूं तुम भी चलाओ करो मुज़ाहमत (विरोध) मार खाओ जैसे हम खा रहे हैं आज़्मा के देख लो जब भी तुम दीन पर 'अमल करोंगे सब से पहले घर से दुश्मनी पैदा होगी पक्के सच्चे सुन्नी हनफ़ी अपने ही घर में मुख़ालिफ़त (विरोध) करेंगे बीवी मुख़ालिफ़ (विरोधी) हो जाएगी बच्चे कहेंगे अब्बा-जी आप ने यह क्या शुरू' कर रखा है
घर में मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु का नाम लो और यज़ीद का नाम लो हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु का नाम लो और जो भाई सय्यदना हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु के साथ नहीं गए उन का नाम भी लो देखो घर में फ़साद पड़ता है या नहीं ?
इस लिए कि ज़ंगार (ज़ंग) लगे हुए मुद्दत हो गई है उतारते हुए भी 'अर्सा (समय) लगे गा
शी'आ की रिवायत और मुहर्रम की दसवीं की ख़ुराफ़ात (बुराई) से मुतअस्सिर (प्रभावित) मत हो मेरा एक दा'वा (चैलेंज) है और अलहमदुलिल्लाह अपने बुज़ुर्गों से सीना-ब-सीना मुंतक़िल हुआ वो आप को सुनाता हूं यह जितनी रिवायते दसवीं तारीख़ की बयान की जाती है एक भी सहीह नहीं है हिम्मत है तो आ जाओ दो घंटे रोज के निकालो एक हफ़्ते में निचोड़ (नतीजा) निकाल देता हूं बल्कि (किंतु) निचोड़ के रख देता हूं 
इंशा-अल्लाह !

" जला अल-'उयून "
पढ़ लो एक अब्बास कुम्मी को ही पढ़ लो इसी तरह अल-बिदाया वल-निहाया को पढ़ लो और हमारी जान छोड़ दो मैं हमेशा कहता हूं कि हमें गाली मत दो पहले गाली उस को दो जिस ने यज़ीद की बै'अत की और उस के बा'द हमें भी दे लो चलो,
" قبول است گرچه از هست "

अगर जुरअत (हिम्मत) है तो पहले 'अली रज़ियल्लाहु अन्हु के बेटे हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु के भाई को गाली दो अब्दुल्लाह बिन जा'फ़र तय्यार रज़ियल्लाहु अन्हु को गाली दो फिर मुझे भी दे लो बिल्कुल दुरुस्त है और यज़ीद की बीवी अब्दुल्लाह बिन जा'फ़र तय्यार की बेटी को गाली बको वो हमारी मां है फिर हमें भी बक लो पहले मां को गाली दो फिर बेटे को भी दे लेना
जुरअत ? हिम्मत ? खोलो ज़बान
क्या अफ़साने सुनाते हो क्या कहानियां छापते हो क्या ड्रामें स्टेज करते हो और यह सब शी'ओ की किताबों में लिखा हुआ है कि फ़ुलाँ कौन ? फ़ुलाँ कौन ?

मुख़्तसरन (संक्षेप में) यज़ीद का एक भी जुर्म निकाल सकते हो कि उस ने क़ातिलान ए हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु को सज़ा नहीं दी बस ! अगर एडमिनिस्ट्रेशन (प्रशासन) का मसअला बनाए तो यह इस की अपनी सल्तनत (हुकूमत) का मसअला था दिफ़ा' (रक्षा) का पहलू (मतलब) निकलता है इस के बावुजूद (तब भी) मेरा दा'वा (चैलेंज) है कि उस ने ज़ालिमाना कार्रवाई का कोई हुक्म नहीं दिया बेशक जनाब सय्यदना हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु के साथ ज़ुल्म हुआ और यह कूफ़ियो ने किया इन्होंने बिला-वजह (अकारण) इस बात पर मजबूर किया कि इन ख़बीस लोगों 
(उबैदुल्लाह इब्ने ज़ियाद) के हाथ पर बै'अत करे यह मुश्किल काम था और ग़ैरतमंद बाप के ग़ैरतमंद बेटे से क़त'ई (हरगिज़) नामुमकिन (असंभव) था चुनांचे (इसलिए) सय्यदना हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु ने इब्ने ज़ियाद के हाथ पर बै'अत से इंकार फ़रमाया और यज़ीद के पास जाने के लिए रास्ता छोड़ने का मुतालबा किया इसी को बहाना बनाकर कूफ़ियो ने उन्हें शहीद कर दिया और कैंप लूटने वाले भी यही लोग थे जिन्होंने ख़ुतूत (ख़त) लिख कर उन्हें बुलाया और हुकूमत सँभालने की दा'वत दी
सय्यदना हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु सहाबी ए रसूल हैं उन की बहन सहाबिया ए रसूल हैं और बाकी बुज़ुर्ग-ए-ख़ानदाँ की निस्बत (संबंध) 'अज़ीम ख़ानदान की निस्बत है एहतिराम की शान मौजूद हैं इस लिए यह कहना कि वो
ऐसे-वैसे थे बिल्कुल ग़लत है तारीख़ी (ऐतिहासिक) तौर पर मैं इस राय पर क़ाएम हूं कि यज़ीद सय्यदना हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु का मद्द-ए-मुक़ाबिल (हरीफ़) नहीं था हां इराकियों का मद्द-ए-मुक़ाबिल था
वो 'इराक़ी जो सुलैमान इब्ने सर्द अल खुज़ाई के घर साज़िश करते रहे जनाब सय्यदना 'अली रज़ियल्लाहु अन्हु के ज़माने में भी जनाब सय्यदना हसन रज़ियल्लाहु अन्हु के ज़माने में भी और सय्यदना हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु के ज़माने में भी सुलैमान इब्ने सर्द अल खुज़ाई बनू ख़ुज़ा'अ का फ़र्द (व्यक्ति) था बड़ा सरमाया-दार (मालदार) था इस के घर में मीटिंगें होती थी और
सबसे पहले इसी के घर से ख़त (letter) गया ख़त ले जाने वाला अब्दुल्लाह इब्ने वाल था और इस ख़त (letter) में क्या था ?
हैरान होगे आप त'अज्जुब (आश्चर्य) होगा आप को ख़त में लिखा है:
" हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु तुझे मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु के मरने की मुबारक हो अब तू आजा 'इराक़ तेरे लिए सजा हुआ है "
यही ख़त दरअस्ल (असल में) क़त्ल-ए-हुसैन की सबाई साज़िश का सर-ए-आग़ाज़ (भूमिका) था उन्हें धोका दे कर बुलाया गया और फिर आल-ए-रसूल को क़त्ल कर के उम्मत-ए-मुस्लिमा को गिरोह में तक़सीम (विभाजन) करने की यहूदी साज़िश की तकमील की गई !

मुझ से बा'ज़ (कुछ) अहबाब (दोस्तों) ने सवाल किया है कि आप इस ज़हरीले propaganda का जवाब दे जो आप के बारे में 'उमूमन (अक्सर) किया जाता है आप सय्यदना हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु को नहीं मानते अगर तो सय्यदना हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु को इमाम मानने का त'अल्लुक़ (सम्बन्ध) है जिन मा'नों में राफ़िज़ी मानते हैं कि इमाम और नबी बराबर हैं तो कान खोल कर सुन लो मैं नहीं मानता हम ने इस मा'नी (मतलब) में अबू बक्र व उमर व उस्मान व 'अली व मआविया रिज़्वानुल्लाह 'अलैहिम-अज्म'ईन को भी इमाम नहीं जाना हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु को कैसे मान ले ?
क़ाइद (सरदार) पेशवा बुज़ुर्ग मानते हैं और सहाबी ए रसूल मानते हैं और नुबुव्वत के बाद सहाबिय्यत का दर्जा तमाम मरातिब (लक़ब) से बड़ा है इमामत से, ख़िलाफ़त से, विलायत से, नजाबत (शराफ़त) से सब से बुलंद है और हज़रत हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु को उम्मत सहाबी मानती है हम भी सहाबी मानते हैं हम अहल-ए-सुन्नत वल जमा'अत के फ़र्द (व्यक्ति) है और उन को सहाबी ए रसूल ही के बुलंद दर्जा (पद) पर फ़ाइज़ मानते हैं !

हमारे मुत'अल्लिक़ (बारे में) यह भी कहा जाता है कि जनाब वो तो यज़ीदी है यज़ीद को मानते हैं अच्छा तो जनाब यह किताब है मेरे हाथ में
 ’’انساب الاشراف‘‘
यह जनाब अहमद बिन यहया बिन जाबिर अल-बलाज़ुरी की लिखी हुई है इस को ले जाओ और उन " मौलवियों " को दिखाओ जिन्होंने अपनी जहालत को छुपाने के लिए मेरे ख़िलाफ़ इतनी लंबी ज़बान खोल रखी है तुम इन की जहालत को नंगा करो
" अंसाब उल-अशराफ़ " पेज नंबर 4, पर रिवायत है ज़रा सुनिए:
(इमाम अहमद बिन यहया अल-बलाज़ुरी अल मुतवफ़्फ़ा 279) अपने उस्ताद इमाम मदाइनी से नक़्ल करते हैं)

لْمَدَائِنِيّ عَنْ عبد الرحمن بْن مُعَاوِيَة قَالَ، قَالَ عامر بْن مسعود الجمحي: إنا لبمكة إذ مر بنا بريد ينعى مُعَاوِيَة، فنهضنا إلى ابن عباس وهو بمكة وعنده جماعة وقد وضعت المائدة ولم يؤت بالطعام فقلنا له: يا أبا العباس، جاء البريد بموت معاوية فوجم طويلًا ثم قَالَ: اللَّهم أوسع لِمُعَاوِيَةَ، أما واللَّه ما كان مثل من قبله ولا يأتي بعده مثله وإن ابنه يزيد لمن صالحي أهله فالزموا مجالسكم وأعطوا طاعتكم وبيعتكم، ---
(هات طعامك يا غلام، قَالَ: فبينا نحن كذلك إذ جاء رسول خالد بْن العاص وهو على مَكَّة يدعوه للبيعة فَقَالَ: قل له اقض حاجتك فيما بينك وبين من حضرك فإذا أمسينا جئتك، فرجع الرسول فَقَالَ: لا بدّ من حضورك فمضى فبايع.[أنساب الأشراف للبلاذري: 5/ 290 واسنادہ حسن لذاتہ]۔)
(الانساب الاشراف صفحہ نمبر3-4)
" मदाइनी रिवायत करते हैं अब्दुर्रहमान बिन मुआविया से इन्होंने कहा कि " 'आमिर बिन मस'ऊद जमही ने बताया कि मैं मक्का में था कि हज़रत मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु की मौत की इत्तिला' (ख़बर) पहुंची पस (इसलिए) में हज़रत इब्ने अब्बास के पास गया और वो मक्का में थे और उन के पास लोगों की जमा'अत (भीड़) थी दस्तर-ख़्वान बिछा दिया था और अभी तक खाना नहीं लाया गया था तो हम ने उन्हें कहा ऐ इब्ने अब्बास! हज़रत मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु की वफ़ात (मौत) की इत्तिला' (ख़बर) आई है
(यह सुन कर) उन्होंने काफ़ी देर तक सर झुकाए रखा फिर इस के बाद कहा ऐ अल्लाह मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु के लिए वुस'अत (आज़ादी) पैदा फ़रमा बहर-हाल (हर हाल में) अल्लाह की क़सम न इस से पहले इन जैसा है और न इन के बाद ऐसा आएगा और बेशक उन का बेटा यज़ीद उन के घर में सालेह (नेक) आदमी है पस (इसलिए) तुम अपनी मजलिसों को क़ाएम रखो और तुम अपनी इता'अत व बै'अत इस के सुपुर्द (हवाले) कर दो !

यह किस ने कहा अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु ने मैं ने तो बताया है और बताऊंगा जब तक जी (मन) चाहेगा छुपाऊगा नहीं तुम मेरी बे-पनाह (बहुत ज़्यादा) मुख़ालिफ़त (विरोध) कर लो इंशा अल्लाह मैं बताने से गुरेज़ नहीं करुंगा यज़ीदी ही कहना है तो पहले उन सहाबा को कहो फिर उन के सदक़े (बदौलत) मुझे कह लो मैं उन के जूतों पर क़ुर्बान उन के क़दमों की धूल पर मेरे मां बाप क़ुर्बान सारी उम्मत के वली, क़ुत्ब क़ुर्बान यह तुम पीरों और गद्दी-नशीनों के जितने 
" ख़ुलफ़ा-ए-राशिदीन " है ख़लीफ़ा राशिद फ़ुलाँ, ख़लीफ़ा राशिद फ़ुलाँ,
ख़लीफ़ा राशिद हज़रत मदनी, काजी मज़हर चकवाली और अबुल-आला मौदूदी जैसे मौलवी सब के सब हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु के जूते पे क़ुर्बान !

कट तो सकता हूं मगर उन सहाबा को नहीं छोड़ सकता अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु को छोड़ दूं तो मेरा ईमान जाता है नबी ﷺ के बाद क़ुरआन की तफ़्सीर जाती है नबी ﷺ ने दुआएं दी उन के सीने पर फूँक मारी और हां वो सहाबा बद्र के साथ सय्यदना उमर इब्ने ख़त्ताब की शूरा के मेम्बर थे बद्र वालो ने ए'तिराज़ (विरोध) किया कि तुम ने एक लड़के को मेरे मुक़ाबले में बिठा दिया है उमर इब्न ख़त्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा मैं इस लड़के को ले आता हूं जो जी में आए पूछों इस से यह तुम को क़ुरआन के मसाइल व म'आरिफ़ बताएगा यह वो अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु हैं !

मैं अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु की मानूंगा मैं तुम सब को नहीं मानता तुम्हारी बातों का इंकार बेहतर समझता हूं इस की ब-जाए कि उन की बात का इंकार किया जाए इतने बड़े आदमी हैं वो और तुम ले आए हो इस दौर के बुज़ुर्गों को अबुल-कलाम ने यह लिखा है अच्छा तो क्या अबुल-कलाम अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु से बड़े हैं ?
मुफ़्ती अहमद यार ने लिखा है तो क्या मुफ़्ती अहमद यार ख़ान का रुत्बा (दर्जा) सय्यदना अब्दुल्लाह इब्न अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु से बड़ा है ?
सोचने की बात है और जनाब
यह रसूलुल्लाह ﷺ के चचा के बेटे हैं रसूलुल्लाह ﷺ के भाई हैं सहाबी ए रसूल हैं रईस-उल-मुफ़स्सिरीन है किस की बात मो'तबर (भरोसे-मंद) है ? सहाबी की बात या चौदहवीं सदी के फ़ासिक़ मुसलमान की बात एक जुमला 'आम तौर पर (ज़्यादातर) कहा जाता है कि 
" बुज़ुर्गों ने फ़रमाया है "
बड़ा ज़ोर लगा कर कहा जाता है मैं पूछता हूं सहाबी तुम्हारे बुज़ुर्गों के बुज़ुर्ग नहीं हैं ?

मौलाना क़ासिम नानोतवी, मौलाना रशीद अहमद गंगोही, मुफ़्ती किफ़ायत-उल्लाह, सय्यद अताउल्लाह शाह बुखारी और जनाब मुफ़्ती महमूद रहिमहुल्लाह यह बुज़ुर्ग है या सहाबा ?
फ़ैसला तेरा तेरे हाथों में है दिल या शिकम (पेट) 
दिल कहता है सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुमा बुज़ुर्ग है
शिकम (पेट) कहता है हिंदुस्तानी 'उलमा जो मानना है मान लो !

जनाब इन के बुज़ुर्ग कौन है ?
मैं भी इन को बुज़ुर्ग समझता हूं उन का एहतिराम ('इज़्ज़त) करता हूं
लेकिन सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुमा का एहतिराम तो अल्लाह ने मांगा है
तुम्हारा एहतिराम नहीं मांगा साढे़- चारसों आयात सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुमा के लिए उतरी है सहाबा की मद्ह-ओ-मनक़बत (ता'रीफ़) और फ़ज़ीलत के लिए उतरी है हम इन का एहतिराम करते हैं लेकिन सहाबा की बात आएगी तो तमाम ग़ैर सहाबी बुज़ुर्गों का एहतिराम नंबर दो हो जाएगा और सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुमा का एहतिराम नंबर एक पर आ जाएगा !

यज़ीदी कहना है तो अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास को कहो फिर मुझे कह लो
क्या मैं ने यज़ीद की ता'रीफ़ की है ?
मैं ने इस को अच्छा कहा है ?
हां तुम अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास के मुक़ाबले का आदमी लाओ जो कहे कि यज़ीद शराब पीता था ज़िना करता था लौंडिया रखता था कुत्ते पालता था मैं मान लूंगा !

जनाब सुनिए ! हज़रत हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु के भाई हज़रत मोहम्मद बिन हनफ़िय्या का जवाब उन से किसी ने कहा यज़ीद शराब पीता है कहा: ’’اراءیت‘‘ तुने देखा है ? कहा नहीं कहा तुने सुना है ?
तुझे इत्तिला' (ख़बर) दी है उस ने कहा नहीं इत्तिला' (ख़बर) भी नहीं दी फ़रमाया फिर तुझे ख़ुदा का ख़ौफ़ नहीं आता
यह किस ने कहा ?
मोहम्मद बिन हनफ़िय्या ने उन्होंने कहा अच्छा तुने देखा भी नहीं इत्तिला' भी उस ने नहीं दी तो फिर भी कहता है कि वो शराब पीता है तुझे मालूम नहीं क़ुरआन कहता है:
’’الا من شھد بالحق و ھم یعلمون‘‘
" गवाही तो उस की मो'तबर (भरोसे-मंद) है जो 'इल्म रखता और जो जानता हो "
न तुझे 'इल्म है न तू जानता है यह सब कुछ मोहम्मद बिन अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा
वो शख़्स कहने लगा तेरा ख़याल शायद यह हो कि हम तुझे एहतिराम ('इज़्ज़त) से नहीं देखते हम तेरी कमान में लड़ना चाहते हैं
तो मोहम्मद बिन अली रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाने लगे कि सुब्हान-अल्लाह मैं क्यूं लड़ूं मैं तो नहीं लड़ूंगा वो कहने लगा तेरा बाप मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु से लड़ा है कि नहीं उन्होंने फ़रमाया मेरे
बाप जैसा ले आओ आज लड़ता हूं यज़ीद के साथ !

बात समझें जनाब!
सय्यदना अली इब्ने अबू-तालिब जैसा बलंद-मर्तबा हो तो यज़ीद के साथ जंग जारी की जा सकती है उस ने कहा लोग तुझसे नफ़रत करने लग जाएंगे जैसे लोग आज मुझे डराते हैं कि शाह साहिब न बताओ वर्ना लोग नफ़रत करेंगे यही कहा उन्होंने जनाब मोहम्मद बिन अली रज़ियल्लाहु अन्हु को
’’ان یتھموک‘‘ 
कि लोग मुझ पर तोहमत लगाएंगे और तुझ से नफ़रत करने लगे गे फ़रमाने लगे करे मैं यहां से चला जाउंगा मक्का-मुकर्रमा में अल्लाह के घर बैठ जाऊंगा उन्होंने कहा अच्छा अपने अबुल-क़ासिम को भेज दे कहने लगे सुब्हान-अल्लाह जो चीज़ में अपने लिए पसंद नहीं करता अपने बेटे के लिए कैसे पसंद करू ?
एक बेटा भी साथ नहीं भेजूंगा !

मुझे यज़ीदी कहने वालों !
यज़ीदी कहना है तो मोहम्मद बिन अली रज़ियल्लाहु अन्हु को कहो मैं अपने मां बाप को अपने आप को और सारे मौलवियों को क़ुर्बान करता हूं इन के जूतों पर वो बड़े बुलंद मक़ाम के इंसान हैं सय्यदना हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु जितना मक़ाम नहीं उन का मगर कम भी नहीं है एक ही बाप के बेटे हैं फिर उन को कहने लगे कि तू डर गया होगा उन्होंने फ़रमाया भला मैं क्यूं डरता ? मैं पांच साल यज़ीद के पास रहा हूं मैंने उस को शराब पीते नहीं देखा नमाज़ें पढ़ता था फ़िक़्ह (शरी'अत) में दिलचस्पी लेता था फ़क़ीह (शरी'अत का जानकार) था 'आलिम था, पढ़ा-लिखा था, बड़ा अच्छा आदमी था, अमीर-उल-हज बना था यह किस ने कहा ?
मोहम्मद बिन अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा जनाब हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु के भाई ने अब फ़तवा पहले उन पर लगाओ फिर मुझ पर लगाओ अगर हमारा नसब सहीह है और अलहमदुलिल्लाह सहीह है सुम्मा अलहमदुलिल्लाह सहीह है तो पहले हमारे दादा सय्यदना अली रज़ियल्लाहु अन्हु को गाली दो फिर हमें गाली दो बुज़दिल (डरपोक) वा'ज़ फ़रोश क़लम के ताजिरो तुम हिम्मत तो करो फिर देखो तुम्हारा हश्र (परिणाम) क्या होता है ?

मेरा एक सवाल है जवाब आप के ज़िम्मा है कि जब यज़ीद की फ़ौजें मदीना-तय्यबा में आई तो हज़रत ज़ैन-उल-'आबिदीन कहा थे ?
क्या करते थे ? यह मेरा सवाल है
जनाब हज़रत ज़ैन-उल-'आबिदीन
जिन का नाम अली है जो हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु के बेटे हैं
जो कर्बला के वाक़ि'आ में मौजूद थे
और चौबीस बरस के थे उन का लड़का मोहम्मद बाक़िर तीन बरस का था जिन को तुम इमाम बाक़िर कहते हो यह इमाम बाक़िर तीन बरस के थे और उन की वालिदा माजिदा कर्बला में थी उन के वालिद-ए-माजिद कर्बला में थे इस वाक़ि'आ में मौजूद थे 'ऐनी-शाहिद (साक्षी) है उन की राय उन का कोई एक क़ौल (कथन) तारीख़ की सहीह रिवायत से यज़ीद के ख़िलाफ़ ले आओ मैं तुम्हारे साथ हूं
सय्यदना अली बिन हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु अल-मा'रूफ़ ज़ैन-उल-'आबिदीन के साथ थे !

यह मौज़ू' (topic) जितना तवील (लंबा) है तारीख़ में इतनी ही गर्द (धूल) इस पर जमी हुई है इस गर्द-ओ-ग़ुबार (धूल) को साफ़ करने की ज़रूरत है और लोगों को अस्ल सूरत-ए-हाल (स्थिति) और हक़ीक़त हादिसा-ए-कर्बला से रू-शनास (परिचित) कराना वक़्त का तक़ाज़ा (ज़रूरत) है ज़िंदगी बाकी रही तो इस मौज़ू' (topic) पर मज़ीद (ज़ियादा) गुफ़्तुगू आइंदा मजलिस में,
अस्सलामु-'अलैकुम व रहमतुल्लाह !
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नाक़िल: महदी मु'आविया
ब-हवाला: माह-नामा नक़ीब
ख़त्म-ए-नबुव्वत मुल्तान
मुहर्रम-उल-हराम 1414 हिजरी-सन 
जुलाई 1993 'ईसवी,

हिंदी अनुवाद: अब्दुल मतीन सैयद

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