माह-ए-मुहर्रम और मौजूदा मुसलमान

🔹माह-ए-मुहर्रम और मौजूदा मुसलमान🔹
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 الحمد لله والصلاة والسلام على رسول الله و بعد ! ( وَبَشِّرِ الصَّبِرِينَ * الَّذِينَ إِذَا أَصَابَتْهُمْ مُّصِيبَةٌ قَالُوا إِنَّا لِلَّهِ وَإِنَّا إِلَيْهِ رَجِعُونَ * أُولَئِكَ عَلَيْهِمْ صَلَوَتْ مِّنْ رَّبِّهِمْ وَ رَحْمَةٌ وَأُولَئِكَ 
 هُمُ الْمُهْتَدُونَ )

 माह-ए-मुहर्रम वो 'अज़ीम और बा-बरकत महीना है जिसे हदीष में "شہر اللہ " कहा गया है अबू दाऊद में है रसूलुल्लाह ﷺ से पूछा गया रमज़ान के बाद सब से ज़ियादा फ़ज़ीलत वाले रोज़े कौन से है तो आप ने फ़रमाया:
(( شَهْرُ اللَّهِ الَّذِي تَدْعُونَهُ الْمُحَرَّم)) (سنن ابوداود: 2122)
तर्जमा: अल्लाह के इस महीने के रोज़े है जिसे तुम मुहर्रम कहते हो,
(सुनन अबू दाऊद:2122)
 इस माह-ए-मुहर्रम में यौम-ए-'आशूर का रोज़ा इतनी फ़ज़ीलत वाला है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:
 ((احْتَسِبُ عَلَى اللَّهِ أَنْ يُكَفِّرَ السَّنَةَ الَّتِي قَبْلَهُ))
तर्जमा: मैं अल्लाह से उम्मीद रखता हूं कि 'आशूरा का रोज़ा गुज़श्ता साल के गुनाहों का कफ़्फ़ारा होगा,
(सहीह तिर्मिज़ी)
 सहीह बुखारी में है कि रसूल-ए-करीम ﷺ ने यहूदियों को यौम-ए-'आशूर का रोज़ा रखते देखा और पूछा:
((مَا هذَا الْيَوْمُ الَّذِي تَصُوْمُوْنَهُ ))
तर्जमा: तुम लोग इस दिन का रोज़ा रखते हो यह क्या है ?
तो यहूदियों ने जवाब दिया कि यही वो मुबारक दिन है जिस में अल्लाह-त'आला ने मूसा अलैहिस्सलाम और उन की क़ौम को उन के दुश्मन फ़िर'औन और उस के लश्कर से नजात (रिहाई) दी इस पर बतौर शुक्राना मूसा अलैहिस्सलाम ने रोज़ा रखा लिहाज़ा (इसलिए) हम भी रोज़ा रखते हैं तो नबी-ए-करीम ﷺ ने फ़रमाया:
 ((فَنَحْنُ أَحَقُّ وَأَوْلَى بِمُوسَى))
तर्जमा: मूसा अलैहिस्सलाम पर ब-हैसियत नबी मेरा हक़ तुम से ज़ियादा है,
 फिर आप ने ख़ुद भी रोज़ा रखा और लोगों को भी रोज़ा रखने का हुक्म फ़रमाया लेकिन यहूदियों के रोज़े की मुशाबहत (समानता) दूर करने के लिए फ़रमाया अगर मैं अगले साल तक ज़िंदा रहा तो मैं नौ मुहर्रम का रोज़ा भी ज़रूर रखूंगा,

माह-ए-मुहर्रम इस्लामी साल का पहला महीना है अल्लाह-त'आला ने इस माह (महीने) को हुरमत (इज़्ज़त) वाला महीना क़रार दिया 
सूरा अत्-तौबा में है:
((إِنَّ عِدَّةَ ٱلشُّهُورِ عِندَ ٱللَّهِ ٱثۡنَا عَشَرَ شَهۡرٗا فِي كِتَٰبِ ٱللَّهِ يَوۡمَ خَلَقَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ مِنۡهَآ أَرۡبَعَةٌ حُرُمٞۚ ))
तर्जमा: जिस दिन से अल्लाह-त'आला ने यह ज़मीन व आसमान बनाए हैं तभी से अल्लाह की किताब में अल्लाह-त'आला के यहां महीनों की कुल ता'दाद बारह है और उन में से चार महीने हुरमत (इज़्ज़त) वाले हैं,
(सूरा अत्-तौबा:36)

 रजब, ज़ुल-क़ा'दा, ज़ुल-हिज, मुहर्रम मगर अफ़सोस आज इस मुकर्रम व मुहतरम और हुरमत (इज़्ज़त) वाले महीने को हमारे यहां शहादत-ए-हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु का बहाना बना कर रोने-धोने और मातम करने का महीना बना लिया है मगर वाक़ि'आ-ए-कर्बला पर ग़ैर-जानिबदाराना तहक़ीक़ व तज्ज़िया किया जाए तो मा'लूम होता है कि सय्यदना हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु की शहादत के ज़िम्मेदार वही अहल-ए-कूफ़ा है जिन्होंने उन्हें ख़ुतूत लिख कर कूफ़ा बुलवाया और बे-यार-ओ-मददगार (बे-सहारा) छोड़ कर उन में कुछ तो क़ातिलीन ए हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु से जा मिले और कुछ खामोश तमाशाई (दर्शक) बने रहे और बाद में मोहब्बत-ए-हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु के नाम से ऐसी-ऐसी ख़ुराफ़ात घड़ लिए जिन का इस्लाम से कुछ त'अल्लुक़ (सम्बन्ध) नहीं,
यह बात ख़ुद उन की किताब में लिखी है कि कूफ़ियो ने ख़ुद ख़त लिख कर सय्यदना हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु को बुलाया, 
( منتہی الآمال، احسن المقال، ص 398، تذکره الاطهارص 251-250)
फिर कूफ़ियो ने ग़द्दारी की,
(تذکرۃ الا طہارص (264) 
मुस्लिम बिन 'अक़ील और सय्यदना हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु की कूफ़ियो के लिए बद-दु'आ
( تذکرۃ الاطہار ص 270,308 )
 जब कूफ़ियो की ग़द्दारी सय्यदना हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु पर वाज़ेह (स्पष्ट) हो गई तो उन्होंने तीन शराइत पेश की,
(احسن المقال 405 ، تذکرة الاطبارص 289)
 तफ़्सील से क़त'-ए-नज़र (मगर) बिल-आख़िर (आख़िर-कार) सय्यदना हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु शहीद हो गए अब इस वाक़ि'आ को बुनियाद बना कर मातम किया जाता है मगर अहल-ए-सुन्नत और राफ़िज़ी दोनों इस बात पर मुत्तफ़िक़ है कि सय्यदना हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु शहीद है जन्नत के नौजवानों के सरदार हैं सवाल यह है कि मक़ाम-ए-शहादत बड़ा 'अज़ीम मक़ाम (स्थान) है तो फिर शहीद का मातम क्यूं ? क्या तुम दुनिया के सामने इस्लाम और उसके मानने वालों को इतना बुज़दिल बना कर पेश कर रहे हो कि मुसलमानों के सरदार शहीद हो गए तो सारी 'उम्र रोते हुए गुज़ार ते हैं आइए मातम के बारे में शरी'अत-ए-इस्लामिया की ता'लीम पर ग़ौर करें,

सहीह बुखारी में है सय्यदना उम्म-ए-'अतिय्या रज़ियल्लाहु अन्हा फ़रमाती है कि हम से बै'अत लेते वक़्त नबी-ए-करीम ﷺ ने यह 'अहद लिया था कि हम नौहा-ख़्वानी (मातम) नहीं करेंगी,
(सहीह बुखारी:1306, सहीह मुस्लिम:2163)
सहीह मुस्लिम में है कि लोगों में दो बातें ऐसी हैं जिन का इर्तिकाब कुफ़्र है पहली किसी के नसब (ख़ानदान) में ता'न (नुक्ता-चीनी) करना दूसरी मय्यत पर नौहा-ख़्वानी (मातम) करना, (सहीह मुस्लिम:227)
अबू मालिक अशअरी रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फ़रमाया:
मेरी उम्मत में जाहिलिय्यत (अज्ञानता) की चार चीज़ें ऐसी है कि लोग उन को न छोड़ेंगे:
हसब पर फ़ख़्र करना, दूसरों के नसब (ख़ानदान) पर ता'न (व्यंग) करना, सितारों से बारिश की उम्मीद रखना, और चौथी चीज़ नौहा (मातम) करना, (सहीह मुस्लिम:2160) 
रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:
((لَيْسَ مِنَّا مَنْ ضَرَبَ الْخُدُودَ وَ شَقَّ الْجُيُوبَ وَدَعَا بِدَعْوى 
 الْجَاهِلِيَّةِ)) (صحيح بخ صحیح بخاری: 1294 ، صحیح مسلم: 285)
तर्जमा: जो अपने रुख़्सारों (गालों) को पीटे, कपड़े फाड़े और ज़माना-ए-जाहिलिय्यत की तरह नौहा-ख़्वानी (मातम) करे वो हम में से नहीं, 
(सहीह बुखारी:1294, सहीह मुस्लिम:285)

सहीह मुस्लिम (104) में है कि बेशक (अवश्य) रसूलुल्लाह ﷺ बैन करने, सर के बाल बिखेरने और मूनडने और कपड़े फाड़ने वाली औरतों से बरी हैं,
(सहीह मुस्लिम, किताब-उल-ईमान)
सुनन इब्न ए माजा में है:
" नौहा-ख़्वानी (मातम) करने वाली औरत अगर तौबाकिए बग़ैर मर गई तो अल्लाह-त'आला उस के लिए तारकोल के कपड़े और आतिश-गीर (विस्फोटक) माद्दे (पदार्थ) की क़मीस तैयार करेगा "
(सुनन इब्न ए माजा:1581)
" नहज-उल-बलाग़ा " में है कि सय्यदना अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने रसूलुल्लाह ﷺ की वफ़ात (मौत) के बाद आप को मुख़ातिब कर के कहा:
((لَوْلا أَنَّكَ نَهَيْتَ عَنَ الْجَزَع وَأَمَرْتَ بِالصَّبْرِ))
" अगर आप ने हमें बे-सब्री से मना' न किया होता और सब्र का हुक्म न दिया होता तो हम आप की वफ़ात पर ख़ूब रोते "
“ خصال الصدوق“
किताब के सफ़्हा (पेज) नंबर 621, पर यह 'इबारत (लेख) मौजूद है 
सय्यदना अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया:
 ((مَنْ ضَرَبَ يَدَهُ عِنْدَ الْمُصِيبَةِ عَلَى فَخِذِهِ فَقَدْ حَبِطَ عَمَلُهُ ))
" जिस ने मुसीबत में अपनी रानों पर हाथ मारा तो बिला-शुब्हा (यक़ीनन) उस के आ'माल बर्बाद हो गए "
 "منتهى الآمال"
पहली जिल्द पेज नंबर 248, पर है कि सय्यदना हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु ने अपनी बहन सय्यदा ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा से फ़रमाया:
ऐ बहन! मैं तुझे अल्लाह की क़सम देता हूं कि मैं शहीद कर दिया गया तो मातम न करना सीना-कोबी न करना और चेहरा न पीटना न नाख़ुन से छीलना और मेरी शहादत पर बैन न करना,
" फ़ुरू' काफ़ी " जिल्द नंबर 5, पेज नंबर 527 पर कुलैनी लिखता है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने सय्यदा फ़ातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा को वसिय्यत करते हुए फ़रमाया:
((إِذَا أَنَا مِتُّ فَلَا تَخْمِشِي وَجْهَا))
" फ़ातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा जब मैं फ़ौत हो जाऊं तो न अपने चेहरे को नोचना न बाल फाड़ना और न बैन करना और न आवाज़ बुलंद कर के रोना,
 अब यह दलाइल (दलीलें) अहल-ए-सुन्नत और शी'आ किताबों से मैं ने आप के सामने रखे इन को ज़ेहन नशीन करें (याद कर लेना) और अपने मुल्कों में माह-ए-मुहर्रम में होने वाले मातम के मनाज़िर (तमाशे) को सामने रखे और सोचे क्या यह 'अमल शरी'अत-ए-इस्लामिया की खुली ख़िलाफ़-वर्ज़ी (नाफ़रमानी) नहीं ?
सीना-कोबी (छाती पीटने) की अहादीस भी सामने रखे और फिर मातम के इस मंज़र (दृश्य) को भी सामने रखे, 
लोगों! हमारा मक़्सद (इरादा) किसी को नीचा दिखाना, गाली देना, तंज़ (आलोचना) करना नहीं बल्कि हमारी ख़्वाहिश है कि हर आदमी अपनी नर्म-ओ-नाज़ुक (मुलाइम) चमड़ी को आग जहन्नम से बचा ले और इस का एक ही तरीक़ा है कि मोहम्मद-ए-करीम ﷺ के अहकामात के मुताबिक़ (अनुसार)
'अक़ीदा व 'अमल बनालो बच्चों से मातम कराना, जमा (इकट्ठा) करना और छुरियों से मातम अपने जिस्म (शरीर) से ख़ून बहाना अल्लाह के लिए सोचों क्या यह दीन ए मोहम्मद ﷺ है कहीं यह तो नहीं कि हम इतनी तकलीफ़ बरदाश्त कर के भी सवाब से महरूम (वंचित) तो नहीं,
 तवज्जोह व ग़ौरतलब (ध्यान देने योग्य) बात यह है कि कहीं ज़ंजीरों व आग से मातम किया जा रहा है जिस्म (शरीर) से ख़ून बहाया जा रहा है क्या इस की कोई एक दलील क़ुरआन ओ हदीष से मिलती है ?
क्या अइम्मा अहल-ए-बैत ने यह 'अमल किया और हमें इस की ता'लीम दी ? मा'सूम बच्चे जिन पर न नमाज़ फ़र्ज़ है न रोज़ा फ़र्ज़ इन मा'सूमों के सरो पर ज़ख़्म लगाना किस शरी'अत का हुक्म है ?
अमीर-ए-हमज़ा रज़ियल्लाहु अन्हु शहीद हुए क्या उन के ग़म में रसूल-ए-करीम ﷺ ने मातम किया ? क्या मा'सूम बच्चों के सर पर ज़ख़्म लगाया जैसा कि आज किया जा रहा है ?

ज़ंजीरों से मातम करने वालों ! अल्लाह के लिए 'अक़्ल (तमीज़) करो अपने ज़ाकिरो, मुज्तहिदीन से एक बार पूछतो लो कि कोई एक दलील ही आप को दे दें अल्लाह की क़सम वो क़ुरआन ओ हदीष और अइम्मा अहल-ए-बैत से एक दलील भी नहीं दे सकते इसी लिए कोई ज़ाकिर (वक्ता) या मुज्तहिद न ब्लैड से न ज़ंजीरों से मातम करता है न अपने मा'सूम चंद महीने के बच्चे के सर पर ब्लैड या तलवार से ज़ख़्म (चोट) लगाता है और अगर यह सवाब का काम होता तो पहले वो ख़ुद यह काम करता,
 आग पर मातम करने वालों!
तुम भी अपने कलिमे में नाम मोहम्मद ﷺ लेते हो क्या यह 'अमल रसूलुल्लाह ﷺ की ता'लीम है ? अल्लाह ने 'अक़्ल दी है ग़ौर करो तहक़ीक़ करो 
माह-ए-मुहर्रम में मजालिस ज़िक्र-ए-हुसैन क़ाएम कर के सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुमा को गालियां दी जाती है हालाँकि सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुमा वो 'अज़ीम हस्तियाँ है जिन को नबी ﷺ की सोहबत (संगत) के लिए अल्लाह ने मुंतख़ब किया उन्होंने नुसरत-ए-रसूल ﷺ में अपना माल, औलाद, जान हर चीज़ की क़ुर्बानी दी और अल्लाह उन से राज़ी हुआ क़ुरआन सुने,
وَٱلسَّٰبِقُونَ ٱلۡأَوَّلُونَ مِنَ ٱلۡمُهَٰجِرِينَ وَٱلۡأَنصَارِ وَٱلَّذِينَ ٱتَّبَعُوهُم بِإِحۡسَٰنٖ رَّضِيَ ٱللَّهُ عَنۡهُمۡ وَرَضُواْ عَنۡهُ وَأَعَدَّ لَهُمۡ جَنَّٰتٖ تَجۡرِي تَحۡتَهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُ خَٰلِدِينَ فِيهَآ أَبَدٗاۚ ذَٰلِكَ ٱلۡفَوۡزُ ٱلۡعَظِيمُ
(التوبة:100)
तर्जमा: मुहाजिरीन व अंसार (सहाबा) में से सब से पहले (इस्लाम की तरफ़) सबक़त हासिल करने वाले और वो लोग ख़ुलूस के साथ उनकी पैरवी करने वाले हैं अल्लाह उन से राज़ी हो गया और वो अल्लाह से राज़ी हो गए अल्लाह ने उन के लिए ऐसी जन्नतें तैयार की हैं जिन के नीचे नहरें बहती होगी और वो उन में हमेशा रहेंगे,
(सूरा अत्-तौबा:100)

 (لَقَدْ رَضِيَ اللَّهُ عَنِ الْمُؤْمِنِينَ إِذْ يُبَايِعُونَكَ تَحْتَ الشَّجَرَةِ ) 
(الفتح: 18)
अबू दाऊद और तिर्मिज़ी में है रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:
((لَا يَدْخُلُ النَّارَ أَحَدٌ بَايَعَ تَحْتَ الشَّجَرَة)) (سنن ابوداود: 3889 ، سنن ترمذی: 3033)
सहीह बुखारी में हदीस-ए-क़ुदसी है:

 ((مَنْ عَادَى لِي وَلِيًّا فَقَدْ آذَنْتُه بِالْحَرْبِ))
 (صحیح بخاری: 6502)
तर्जमा: जिस शख़्स ने मेरे किसी वली से दुश्मनी की उस के लिए मेरी तरफ़ से ए'लान-ए-जंग है,
(सहीह बुखारी:6502)

सहीह बुखारी में है:

 ((لَا تَسُبُّوْا أَصْحَابِي فَوَالَّذِي نَفْسِي بِيَدِهِ لَوْ أَنْقَقَ أَحَدُكُمْ مِثْلَ أحدٍ ذَهَبًا مَا بَلَغَ مُدَّ أَحَدِهِمْ وَلَا نَصِيفَهُ))
तर्जमा: मेरे सहाबा को गाली मत दो क़सम है उस ज़ात की जिस के हाथ में मेरी जान है तुम में से अगर कोई उहद पहाड़ जितना सोना अल्लाह की राह में ख़र्च कर देगा तो मेरे सहाबी के एक मुट्ठी दाने बल्कि इस से भी आधे के सवाब के बराबर नहीं पहुंच सकता,

तबरानी में है:
((مَنْ سَبَّ أَصْحَابِي فَعَلَيْهِ لَعْنَةُ اللَّهِ وَالْمَلَئِكَةِ وَالنَّاسِ أَجْمَعِينَ)) (صحيح الجامع الصغير للالباني: 1885 )
तर्जमा: जिस ने मेरे सहाबा को गाली दी उस पर अल्लाह, उस के फ़रिश्तों और तमाम लोगों की ला'नत हो,
(सहीह अल-जामे' अल-सग़ीर अल्बानी:1685)
सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुमा को बुरा कहना इस का नतीजा (अंजाम) निहायत (बहुत) ख़तरनाक है रसूलुल्लाह ﷺ का फ़रमान है:
((مَنْ سَبَّ أَصْحَابِي فَقَدْ سَبَّنِي وَمَنْ سَبَّنِي فَقَدْ سَبَّ الله))
तर्जमा: जिस ने मेरे सहाबा को गालियां दी उस ने मुझे गालियां दी और जिस ने मुझे गालियां दी उस ने अल्लाह को गालियां दी,

 (تطبير الجتمعات ص 276 طبع قطر الصارم المسلول ص 577)
इस मक़ाम पर यह बात क़ाबिल-ए-ग़ौर है कि वाक़ि'आ-ए-कर्बला का तज़्किरा (ज़िक्र) करते हुए ख़ुलफ़ा-ए-सोलासा या'नी सय्यदना अबू बक्र रज़ियल्लाहु अन्हु सय्यदना उमर रज़ियल्लाहु अन्हु सय्यदना 'उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु और दीगर (अन्य) सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुमा पर ता'न (नुक्ता-चीनी) और सब्ब-ओ-शत्म (गाली-गलोज) करना जो वाक़ि'आ-ए-कर्बला से 'अर्सा-ए-दराज़ (लंबे समय) क़ब्ल (पहले) दुनिया से तशरीफ़ ले जा चुके हैं निहायत (बहुत) 'अजीब मज़हका-खेज़ है क्यूँकि (इसलिए कि) वाक़ि'आ-ए-कर्बला 60 हिजरी में हुआ तो इस से क़ब्ल (पहले) वफ़ात पाने वाली इन 'अज़ीम शख़्सियात का इस से क्या लेना-देना (वास्ता) ? जब कि उन सब के अहल-ए-बैत बिल-ख़ुसूस (ख़ास तौर पर) सय्यदना अली रज़ियल्लाहु अन्हु और हसन व हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हुमा के ख़ानवादे (ख़ानदान) के साथ निहायत (बहुत) गहरे व क़रीबी रिश्ते क़ाएम थे यह सब बाहम (आपस में) शीर-ओ-शकर (एक दूसरे के साथ जुड़े हुए) थे इस लिए मुहर्रम में उन पर ता'न (व्यंग) करना हक़ीक़त में उन तमाम पाक-बाज़ शख़्सियात पर अंगुश्त-नुमाई (आलोचना) है इस मौक़ा' (अवसर) पर यह सवाल भी उठता है कि क्या वाक़ि'आ-ए-कर्बला को बुनियाद बना कर मुहर्रम के महीने में जो काम किए जाते हैं मसलन (जैसे)
शबीह ज़ुल-जनाह (परों वाले घोड़े की तस्वीर) 'अलामती जनाज़ा, ता'ज़िया पानी व शर्बत की सबीले लगाना नंगे पांव गली बाज़ारो में फिरना क्या यह सब काम अहल-ए-बैत व ख़ानवादा हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु में से किसी ने मोहब्बत या ग़म-ए-हुसैन में किया ?
यक़ीनन (अवश्य) नहीं किया तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि उन कामों की क्या हैसियत व हक़ीक़त है अल्लाह-त'आला तमाम अहल-ए-बैत और सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुमा से मोहब्बत करने और उन सब की 'इज़्ज़त व एहतिराम करने की तौफ़ीक़ 'अता फ़रमाए, आमीन!

लेखक: शैख़ तौसीफ़ उर रहमान
(ख़ुतबात राशिदी: पेज नंबर 77/84)

हिंदी अनुवाद: अब्दुल मतीन सैयद

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