क्रिसमस की मुबारक-बादी (बधाई) का हुक्म | Christmas ki Mubarakbad (Badhai) ka hukm
इब्न अल-हाज रहिमहुल्लाह ने लिखा है कि: अब्दुल रहमान बिन अल क़ासिम रहिमहुल्लाह से पूछा गया क्या ऐसी कश्ती या जहाज़ में सवारी की जा सकती हैं जिस में नसारा (ईसाई) अपनी ईद मनाने के लिए सफ़र कर रहे हो ?
इब्न क़ासिम रहिमहुल्लाह ने इस सफ़र को मकरूह (नापसंद) समझा और कराहत (नफ़रत) की 'इल्लत (कारण) यह बताई कि जिस कुफ़्र पर ख़ुशी मनाने के लिए यह नसारा (ईसाई) जम' (इकट्ठा) हो रहें हैं कहीं उस की वजह से अल्लाह का 'अज़ाब नाजिल न हो जाए (और मुसलमान भी इस 'अज़ाब का शिकार हो जाए)
[لمدخل لابن الحاج رحمه الله (2/ 47)]
क़ारिईन-ए-किराम: जब नसारा (ईसाई) की ईद के मौक़े' पर उन के साथ सफ़र करने को 'उलमा-ए-किराम ने मकरूह (बुरा) समझा है तो फिर उन के कुफ़्र ओ शिर्क पर मुबारकबाद देने को वो कितना संगीन समझते होंगे
इस लिए अल्लाह को ख़ुश करें और हर उस शख़्स और उस के 'अमल से दूर रहें जो अल्लाह को नाराज़ करता हो और उस की नाराज़गी पर ख़ुशी मनाता हो।
वल्लाहु-आ'लम
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लेखक: अबू अहमद कलीमुद्दीन यूसुफ
जामिया इस्लामिया मदीना मुनव्वरह
हिंदी अनुवाद: अब्दुल मतीन सैयद
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